प्रेम मानव जीवन की मुधरतम भावना है लेकिन इस को परिभाषित करना लगभग असंभव है. प्रेम को शब्दों में परिभाषित करना उचित भी नहीं है. जिस तरह बहती हवा को या फूलों की खुशबू को हम देख नहीं सकते जबकि उसे अनुभव कर सकते हैं उसी तरह प्रेम भी एक एहसास है. प्रेम का अर्थ अलगअलग व्यक्तियों के लिए, अलग उम्र के लोगों के लिए और अलग रिश्तों के लिए भिन्न हो सकता है.

प्रेम जो आकर्षण से मिलता है, वह क्षणिक होता है. आकर्षण कम या समाप्त होते ही यह प्रेम लुप्त हो जाता है. जो प्रेम किसी सुखसुविधावश मिलता है, वह घनिष्ठता तो ला सकता है पर  वांछित और स्थायी उत्साह या आनंद नहीं देता है.

प्रेम अनंत होता है, आप जितना उस के निकट जाएंगे वह उतना ही अधिक आप को आकर्षक लगेगा. यह आकाश की तरह अनंत है, जिस की कोई सीमा नहीं है. प्रेम ज्ञान से प्राप्त होता है और इस के लिए खुद को समझने की जरूरत है. प्रेम की बात तो हर कोई करता है पर इस की समझ विरले को ही होती है.

आज हम आमतौर पर जिस प्रेम की बात करते हैं वह महज अस्थायी आकर्षण, सुविधा व वासनापूर्ति तक सीमित है. प्रेम एक समर्पण है जिस में अगर कोई अपेक्षा हो तो वह दूषित हो जाता है. मानव के ज्ञान, सुंदर व्यवहार, सदाचरण और उस के मन की निर्मलता से जो प्रेम उत्पन्न हो वही हमें अंदर से आनंदित कर सकता है. प्रेम एक अद्भुत भाव है जिस का असर सब पर होता है.

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