सवाल
मैं गांव के एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं. वह आईटीआई कर रहा है और बहुत अच्छा है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं, पर हम दोनों एक ही गांव के हैं, लिहाजा हमारे मम्मी पापा नहीं मानेंगे. हम क्या करें?

जवाब
पहले कुछ गांवों में ऐसा रिवाज था, पर आजकल ऐसी बातें फुजूल मानी जाती हैं. आप दोनों मिल कर अपने घर वालों को समझाएं, तो वे मान सकते हैं. बात न बने तो शहर में जा कर कोर्ट मैरिज की जा सकती है, पर लड़के को गुजारा करने लायक पैसा कमाना चाहिए.

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निर्मला से क्यों नाराज था उसका परिवार

निर्मला अपने पति राजन के साथ जिद कर के अपनी दादी के श्राद्ध में मायके आई थी. हालांकि राजन ने उसे बारबार यही कहा था कि बिन बुलाए वहां जाना ठीक नहीं है, फिर भी वह नहीं मानी और अपना हक समझते हुए वहां पहुंच ही गई.

निर्मला ने सोचा था कि दुख की इस घड़ी में वहां पहुंचने पर परिवार के सभी लोग गिलेशिकवे भूल कर उसे अपना लेंगे और दादी की मौत का दुख जताएंगे. पर उस का ऐसा सोचना गलत साबित हुआ.

सभी ने निर्मला को देख कर भी नजरअंदाज कर दिया, मानो वह कोई अजनबी हो.

इस के बावजूद भी निर्मला को उम्मीद थी कि परिवार वाले भले ही उसे नजरअंदाज करें, मां ऐसा नहीं कर सकतीं.

तभी निर्मला ने राजन की तरफ इस तरह देखा, मानो वह मां के पास जाने की उस से इजाजत ले रही हो. फिर वह अकेली ही मां की तरफ बढ़ गई.

उस समय निर्मला की मां औरतों के हुजूम में आगे बैठी हुई थीं. जब मां ने निर्मला को अपने करीब आते देखा, तो वे उठ कर तेजी से दूसरे कमरे में चली गईं.

मां के पीछेपीछे निर्मला भी वहां पहुंच गई और प्यार से बोली, ‘‘मां, यह सब कैसे हुआ? क्या दादी बहुत दिनों से बीमार थीं?’’

‘‘तुम से मतलब? आखिर तुम पूछने वाली होती कौन हो? चली जाओ यहां से. फिर कभी भूल कर भी इस घर की तरफ मत देखना, नहीं तो तुम मेरा मरा हुआ मुंह देखोगी,’’ गुस्से से चीखते हुए उस की मां बोलीं.

‘‘ऐसा न कहो, मां. नहीं तो मैं अनाथ हो जाऊंगी. आखिर तुम्हारा ही तो सहारा है मुझे. मां हो कर भी तुम मेरे मन की भावना को नहीं समझोगी, तो और कौन समझेगा?’’ रोते हुए निर्मला बोली.

‘‘नहीं समझना है मुझे. कुछ नहीं समझना,’’ चीखते हुए उस की मां ने कहा.

‘‘क्यों नहीं समझना है, मां? तुम्हें समझना ही पड़ेगा. अपनी बेटी के दुख को महसूस करना ही पड़ेगा. आखिर मेरा इतना ही कुसूर था न कि मैं ने राजन से सच्चा प्यार किया? उस से शादी की, जो हमारी बिरादरी का नहीं है?

‘‘लेकिन मां, तुम मुझे गौर से देखो कि मैं राजन के साथ कितनी खुश हूं. मुझे किसी बात का दुख नहीं है,’’ खुशी जताते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘मुझे कुछ नहीं देखना है और न ही सुनना है, बस. तुम अभी और इसी समय उस राजन को ले कर यहां से चली जाओ, ताकि तुम्हारी दादी का श्राद्ध शांति से पूरा हो सके,’’ मां बोलीं.

‘‘हम यहां से चले जाएंगे, मां, रहने के लिए नहीं आए हैं. केवल दादी के श्राद्ध में आए हैं. बस, उसे पूरा हो जाने दो. क्योंकि दादी से मेरा और मुझ से उन का कितना गहरा लगाव था, यह तुम अच्छी तरह से जानती हो. मेरे बिना तो वे कुछ भी नहीं खातीपीती थीं,’’ सुबकते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘इसीलिए तो तुम उस कलमुंहे राजन के साथ भाग गई और कोर्ट में जा कर शादी कर ली. तब तुम्हें दादी का इतना खयाल नहीं था, जबकि उन्होंने तुम्हारी याद में अपनी जान दे दी?’’

‘‘मुझे दादी का बहुत खयाल था, मां. परंतु मैं क्या करती, आप सभी तो मुझ से खफा थे. डर के चलते मैं नहीं आ सकी,’’ रोते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘बड़ी आई डर वाली. जब इतना ही डर था, तो घर से कदम बाहर निकालते समय हजार बार सोचती? फिर भी कुछ नहीं सोचा.

‘‘अरे, क्या अपनी बिरादरी में लड़कों की कमी हो गई थी, जो उस नाशपीटे राजन के साथ भाग गई?’’ तीखी आवाज में उस की मां ने कहा.

मां के सवालों का जवाब देने के बजाय निर्मला ने कहा, ‘‘मां, मुझे जी भर कर कोस लो, लेकिन उन्हें कुछ न कहो, क्योंकि अब वे मेरे पति हैं.’’

‘‘तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे दुनिया में केवल एक तुम ही पति वाली हो, बाकी सब दिखावे वाली हैं,’’ खिल्ली उड़ाते हुए उस की मां बोलीं.

‘‘मां, मेरी अच्छी मां, तुम तो मुझे ऐसा न कहो. हर मांबाप का सपना होता है कि मेरी बेटी अच्छे घर में ब्याहे, सुखशांति से रहे. उन्हीं में से मैं एक हूं.

‘‘तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि मैं ने अपने जीवनसाथी का खुद ही चुनाव कर तुम लोगों की परेशानी को दूर किया है. इस के बावजूद भी सभी की तरह तुम भी मुझे नजरअंदाज कर रही हो?’’ दुखी हो कर निर्मला ने कहा.

‘‘हां, तुम इसी काबिल हो, इसीलिए नहीं मिलेगा अब तुम्हें वह लाड़प्यार और अपनापन, जो कभी यहां मिला करता था…’’

निर्मला की मां की बातें अभी पूरी भी नहीं हो पाई थीं कि पिता, भाई, बहन व भाभी सभी वहां आ गए और गुस्से से निर्मला को घूरने लगे.

तभी उस के पिता दयाशंकर ने गुस्से में कहा, ‘‘कलंकिनी, मुझे तो तेरा नाम लेते हुए भी नफरत हो रही है. आखिर तुम ने मेरे घर में कदम रखने की हिम्मत कैसे की?’’

‘‘ऐसा न कहिए, पापा. आखिर इस घर से मेरा भी तो कोई रिश्ता है? उसी रिश्ते के वास्ते तो मैं यहां आई हूं. मुझे और मेरे पति को अपना लीजिए, पापा,’’ रोतेगिड़गिड़ाते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘खबरदार, जो मुझे पापा कहा. तेरा पापा तो उसी दिन मर गया था, जिस दिन तू इस घर को छोड़ कर गई थी. रहा सवाल अपनाने का, तो यह हक अब तुम खो चुकी हो.’’

‘‘नहीं, पापा नहीं. ऐसा न कहो और ठंडे दिमाग से सोचो कि प्यार करना क्या कोई जुर्म है?

‘‘आखिर मैं भी तो बालिग हूं. जब मैं अपना भलाबुरा सोचसमझ सकती हूं, तो फिर मुझे फैसला लेने का हक क्यों नहीं है? और फिर चाहे बातें भविष्य की हों या जीवनसाथी चुनने की, लड़कियों को यह हक जरूर मिलना चाहिए,’’ थोड़ा खुश हो कर निर्मला ने कहा.

‘‘तू मुझे हक के बारे में समझा रही है? अगर तू इतनी ही समझदार होती, तो अपनी ही जाति के लड़के से शादी करती, न कि किसी दूसरी जाति के लड़के से,’’ निर्मला के पिता ने कहा.

‘‘दूसरी जाति के लड़के क्या इनसान नहीं होते? क्या उन में समझदारी नहीं होती? इस की मिसाल तो राजन ही हैं, जिन्होंने मुझे जिंदगी की सारी खुशियां दे रखी हैं, कोई कमी महसूस नहीं होने दी है उन्होंने. मैं इस तरह के जातपांत के भेदभाव को नहीं मानती, जो एक इनसान को दूसरे इनसान से अलग करता हो, आपस में दूरियां बढ़ाता हो…

‘‘मैं केवल इनसानियत की जात को जानती व मानती हूं,’’ निर्मला बोलती चली गई.

‘‘बस करो अपनी यह बकवास और उस राजन के साथ यहां से चलती बनो,’’ इस बार चीखते हुए निर्मला का भाई विशाल बोला.

‘‘भैया, मुझे जो चाहो कह लो, मैं सब बरदाश्त कर लूंगी. लेकिन उन के बारे में कुछ भी नहीं सुन सकती. क्योंकि एक पत्नी अपने सामने पति की बेइज्जती कभी बरदाश्त नहीं कर सकती.’’

‘‘अच्छा, तब तो मुझे तुम्हारे पति की बेइज्जती करनी ही होगी, वह भी तुम्हारे सामने,’’ नजरें तिरछी करते हुए विशाल बोला.

‘‘क्या…? यह तुम कह रहे हो? जबकि तुम भी किसी के पति हो और तुम्हारी पत्नी तुम्हारे सामने खड़ी है. महाभारत मचा दूंगी मैं यहां. तुम क्या समझते हो अपनेआप को कि वे तुम से कमजोर हैं?

‘‘वे जूडोकराटे में ब्लैकबैल्ट हैं और साथ ही पुलिस में भी हैं. उन से टकराना तुम्हें महंगा पड़ेगा, भैया.

‘‘हां, मैं यदि चाहूं, तो तुम्हारी पत्नी के सामने तुम्हारी बेइज्जती जरूर करवा सकती हूं, ताकि तुम बेइज्जती के दर्द को महसूस कर सको.

‘‘लेकिन, मैं इतनी बेवकूफ भी नहीं हूं कि तुम्हारी तरह कुछ करने से पहले कुछ सोचसमझ न सकूं. औरत हूं, इसलिए औरत का दर्द समझती हूं. लिहाजा, ऐसा कुछ नहीं करना चाहूंगी, जिस से कि भाभी के मन में दुख हो.’’

निर्मला की बातें सुन कर उस की भाभी सुबक पड़ी और उस ने आगे बढ़ कर निर्मला को गले लगा लिया.

‘‘माधुरी, यह तुम क्या कर रही हो? दूर हटो उस से. इस से हमारा कोई रिश्ता नहीं है,’’ चीखते हुए विशाल बोला.

‘‘रिश्ता है क्यों नहीं? खून का रिश्ता है हमारा, इसलिए अपनी बहन को अपना लीजिए. इस ने ठीक ही कहा है कि जातपांत कुछ नहीं होता. होती है तो केवल इनसानियत, और इनसानियत का रिश्ता,’’ निर्मला की तरफदारी लेते हुए उस की भाभी माधुरी ने कहा, मानो वह भी इनसानियत के रिश्ते को ही अहमियत दे रही हो.

लेकिन माधुरी की बातें सुन कर विशाल बौखला गया. वह गुस्से से बोला, ‘‘माधुरी, लगता है इस के साथसाथ तुम्हारा भी दिमाग खराब हो गया है, कहीं…’’

अभी विशाल अपनी बातें पूरी भी नहीं कर पाया था कि तभी वहां राजन आ गया और सूझबूझ का परिचय देते हुए गंभीरता से बोला, ‘‘निर्मला, अब चलो यहां से. बहुत हो चुकी तुम्हारी बेइज्जती. मैं अब और सहन नहीं कर सकता.

‘‘मैं ने सबकुछ सुन लिया है और जान लिया है कि ये लोग ऐसे पत्थरदिल इनसान हैं, जो जातपांत का ढोंग रच कर समाज को गंदा करते हैं.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कहते हैं. अब मुझे समझ में आया कि मैं ने यहां आ कर कितनी बड़ी भूल की है?

‘‘ले चलिए मुझे. अब एक पल भी मैं यहां रुकना नहीं चाहूंगी,’’ उठते हुए निर्मला बोली और अपने पति राजन का हाथ थाम कर घर से बाहर जाने लगी.

उस की छोटी बहन उर्मिला ने दौड़ कर निर्मला का हाथ थाम लिया और सिसकते हुए बोली, ‘‘दीदी, मत जाओ. मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

‘‘पगली, मैं कहां तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं? हां, जातपांत और उन बुरे रिवाजों को छोड़ कर जा रही हूं, जिसे मां, पापा व भैया ने अपनी मुट्ठियों में जकड़ रखा है.

‘‘मैं यहां नहीं आऊंगी तो क्या हुआ, तुम तो अपनी दीदी के घर आ सकती हो?’’ निर्मला बोली.

‘‘जरूर आऊंगी दीदी,’’ उर्मिला ने खुश हो कर कहा.

‘‘मैं इंतजार करूंगी,’’प्यार से उस के सिर पर अपना हाथ फेरते हुए निर्मला ने कहा और अपने पति राजन के साथ घर से बाहर निकल गई.

VIDEO : मौडर्न मौसैक नेल आर्ट

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