‘‘बीमार पत्नी को सहानुभूति और सहयोग चाहिए. पत्नी केवल सेवा करने के लिए नहीं होती. वह भी इंसान है. वह भी बीमार पड़ सकती है. पत्नी की बीमारी क्रूरता नहीं है. इस के आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता,’’ भोपाल के फैमिली कोर्ट के जज आर. एन. आनंद ने बीते 10 अक्तूबर को एक मामले में न केवल सटीक फैसला दिया, बल्कि खुदगर्ज यानी मतलबी हो चले उन पतियों को यह नसीहत भी दी है कि वे पत्नी को प्रोडक्ट न समझें. इस रिश्ते की गंभीरता और संवेदनशीलता को प्राथमिकता में रखें.

इस मामले में पति राजेश (बदला नाम) ने अपने आवेदन में यह तर्क दिया था कि उस की पत्नी बीमार रहती है, इसलिए उसे दांपत्य सुख नहीं दे पा रही है. यह क्रूरता है इसलिए उस से तलाक दिलाया जाए.

राजेश की शादी सीमा (बदला नाम) से 2012 में हुई थी. 2014 में दोनों को एक बेटी भी हुई थी, लेकिन इस के बाद सीमा को पैरालिसिस हो गया. राजेश के मुताबिक वह सीमा का इलाज करवाता रहा. इस दौरान बीमारी के चलते वह कई सालों से दांपत्य सुख से वंचित रहा. इसी आधार पर उस ने तलाक चाहा था, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया.

सीमा ने न केवल अपने फिट होने की दलील दी थी, बल्कि उसे साबित करते हुए राजेश पर यह आरोप भी लगाया था कि उस का एक लड़की से अफेयर है और अब वह उस की बीमारी का बहाना बना कर तलाक चाहता है. अदालत ने सीमा की बीमारी और फिटनैस के लिए काउंसलर शैल अवस्थी को नियुक्त किया, जिन्होंने अपनी जांच में पाया कि पत्नी पूरी तरह फिट है.

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