हमारे देश में प्यार में पड़ना उतना मुश्किल नहीं है जितना उस प्यार को निभाने के लिए प्रेमीप्रेमिका का एकदूसरे से मिलना. शहरों में तो आशिकों की आफत ही आ जाती है. अपने स्कूलकालेज या वर्किंग प्लेस में मिलें तो लैलामजनू का टैग लग जाता और कहीं वे किसी पब्लिक प्लेस में रोमांस ढूंढ़ें तो मनचले, लफंगे उन के पीछे पड़ जाते हैं.
कहने को आज मौल ऐसे मिलन के लिए सेफ होते हैं पर वहां किसी अपने के देखने का डर रहता है या वहां सीसी टीवी में कैद होने की आफत रहती है. ऐसे में प्यार के पंछी किसी पार्क में इश्क की गुटरगूं करने की सोचते हैं और पार्क जैसी जगह जाना जेब पर भी भारी नहीं पड़ता है. दूसरी जगहों पर तो बेवजह खर्चे बढ़ने का डर रहता है. लेकिन पार्क में मनचलों व लफंगों से निबटना बहुत बड़ा सवाल बन जाता है.
पहले जोड़े एकदूसरे से मिलने के लिए तरसते थे, लेकिन आज जिन जोड़ों को हम देखते हैं वे खुलेआम अपने प्यार में खोए नजर आते हैं. कोई जोड़ा गार्डन में, तो कोई पार्क में, तो कोई किले में छिपछिप कर इश्क फरमा रहा होता है. मगर इन इश्कजादों को लूटने के लिए लुटेरे भी आसपास ही घूमते रहते हैं.
लुटेरा कोई भी हो सकता है. कोई पुलिस वाला या फिर किन्नर. इन के अनेक चेहरे होते हैं, जिन्हें पहचान पाना आसान नहीं होता है.
ऐसे ही कुछ लुटेरों ने रिया और सुमित को लूटा. रिया और सुमित अकसर रविवार के दिन गार्डन में मिलते थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि वे किसी की नजरों का शिकार हो रहे हैं.