चंडीगढ़ के एक स्कूल में नशा कर के आए छात्र को डांटने पर उस ने स्कूल टीचर को पीट-पीट कर लहूलुहान कर दिया. परीक्षा में फेल होने पर डांटने के बाद छात्र ने प्रिंसिपल पर 4 गोलियां दाग दीं.
प्ले स्कूल की प्रिंसिपल स्वाति गुप्ता का कहना है, ‘‘आजकल एकल परिवारों और महिलाओं के कामकाजी होने से स्थितियां बदल गई हैं. दो-ढाई साल के बच्चे सुबह-सुबह सजधज कर बैग और बोतल के बोझ के साथ स्कूल आ जाते हैं. कई बच्चे ट्यूशन भी पढ़ते हैं. कई बार महिलाओं को बात करते सुनती हूं कि क्या करें घर पर बहुत परेशान करता है. स्कूल भेज कर 4-5 घंटों के लिए चैन मिल जाता है.’’
गुरुग्राम के रेयान स्कूल का प्रद्युम्न हत्याकांड हो या इसी तरह की अन्य घटनाएं, जनमानस को क्षणभर के लिए आंदोलित करती हैं. लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात.
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साइकोलौजी विभाग की हैड दीपा पुनेठा का कहना है, ‘‘पेरैंट्स अपने बच्चे के भविष्य के लिए जरूरत से ज्यादा सचेत रहने लगे हैं. बच्चे के पैदा होते ही वे यह तय कर लेते हैं कि उन का बच्चा डाक्टर बनेगा या फिर इंजीनियर. वे अपने बच्चे के खिलाफ एक भी शब्द सुनना पसंद नहीं करते हैं.’’
चेन्नई में एक छात्रा ने शिक्षक की पिटाई से नाराज हो कर आत्महत्या कर ली. दिल्ली में एक शिक्षक द्वारा छात्र पर डस्टर फेंकने के कारण छात्र ने अपनी आंखें खो दीं. इस तरह की घटनाएं आएदिन अखबारों की सुर्खियां बनती रहती हैं.
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