मिनल हमेशा अपने दोनों टीनेजर्स बच्चों को कहती रहती है कि घर में बड़ा कोई भी आये, उसके पाँव
छुओ या फिर उनसे बातचीत करों, कई बार तो बच्चे ऐसा करते है, पर कई बार वे इसका विरोध
करने लगते है, जो मिनल को बुरा लगता है.
असल में आज के बच्चों की परवरिश अलग तरीके से होती है, क्योंकि वे एकाकी परिवार में रहते है, जहाँ दादा-दादी या नाना-नानी नहीं होते, या बीच-बीच में वे आते जाते है, ऐसे में उनके साथ गहरा रिश्ता नहीं बन पाता. वे उनकी आदतों या बातों से परिचित नहीं होते. उनके साथ वे किसी भी रूप में सहज नहीं हो पाते. उनके लिए दादा या चाचा एक आम व्यक्ति से अधिक कुछ भी नहीं होता. इसके अलावा कई बार बड़ों का व्यवहार बच्चों को पसंद नहीं होता. बड़े अगर खुद को मेंटर समझने लगे, तो बातें बिगड़ती है.
सिखाएं बचपन से आदतें
8 साल की रिया अपने दादाजी को इसलिए नहीं पहचान पायी, क्योंकि उसने होश सम्हालने के बाद
उन्हें नहीं देखा. दादा के उसके घर आने पर, जब उनके पिता ने दादाजी के पैर छुने के लिए कहा तो
वह घबराकर कमरे में भाग गई और दरवाजे के पीछे से उन्हें देखती रही. इस बारे में मनोचिकित्सक
डॉ. पारुल टांक कहती है कि बच्चों को छोटी अवस्था से ही अपने बड़ो का आदर सम्मान, अनुशासन,
शिष्टाचार आदि सिखाने की आवश्यकता होती है. रातों-रात कुछ नहीं होता. उन्हें धीरे-धीरे परिवार में
सबका महत्व समझ में आता है. इसे धैर्य के साथ करना पड़ता है. आज के भागदौड़ भरी जिंदगी में
बच्चों के माता-पिता खुद ही अपने परिवार और रिश्तेदारों से दूर होते जा रहे है. ऐसे बच्चों को दोष
देना उचित नहीं. अगर बच्चे नहीं मानते या परिवार से सम्बन्ध बनाने से अनाकानी करते है तो उन्हें
छोड़ देना चाहिए, अधिक जोर देना उचित नहीं. उन्हें समझाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. कई
बार माता-पिता उनकी बातें न सुनने पर हाथ उठा देते है, जो ठीक नहीं. बच्चों की मानसिक दशा को
समझने की जरुरत है.