किसी से कोई बात उगलवाने के लिए प्राय: हम अपनी कोशिश तब तक जारी रखते हैं, जब तक कि पूरी बात अपने मन की तसल्ली लायक न उगलवा लें.
रीना और सविता ननदभाभी हैं. सविता की रीना के अलावा 2 ननदें और हैं. किसी अवसर पर सविता की अपनी बीच वाली ननद से कुछ कहासुनी हो गई, जिस से संबंधों में कड़वाहट आ गई. छुट्टियों में जब रीना भाभी के घर रहने आई, तो उस ने बातोंबातों में चर्चा की कि बीच वाली जीजी आई थीं. कुछ खरीदारी करनी थी.
चूंकि सविता के मन में चोर था, इसलिए वह यह मान ही नहीं सकती थी कि बीच वाली ननद ने कोई बुराई न की हो. अत: उस ने तत्काल पूछा, ‘‘क्या कह रही थीं?’’
जवाब मिला, ‘‘कुछ खास नहीं. वही राजीखुशी की बातें कर रही थीं.’’
अनावश्यक कान भरना
पर चूंकि सविता का तनाव बीच वाली ननद से चल रहा था. अत: वह मान ही नहीं सकती थी कि वे अपनी बहन के घर जाएं और दोनों बहनों में उस की बाबत कोई चर्चा ही न हो. अत: उस के मन के चोर ने उसे उकसाया तो उस ने फिर कहा, ‘‘कुछ तो चर्चा हुई ही होगी. आखिर रही तो घर पर ही थीं. क्या कह रही थीं, बताती क्यों नहीं? मैं तो बस यों ही यह जानना चाह रही हूं कि आखिर वे क्या कह रही थीं?’’
रीना चूंकि पूरी बात जानती थी अत: समझदारी से काम लेते हुए बोली, ‘‘सच भाभी, जीजी ने तो कुछ भी नहीं कहा. कुछ कहा होता तभी तो बताती.’’
सविता अब भी भरोसा नहीं कर पाई. उसे लगा दोनों बहनें एक हो गई हैं. मिल कर उस की खूब बुराई की होगी, नमकमिर्च लगा कर. अब देखो कैसे भोली बन रही है. जैसे कुछ कहासुना ही न हो.