शादी का रिश्ता प्यार और विश्वास का होता है. दो लोग मिल कर एक जीवन शुरू करते हैं और एकदूसरे का सहारा बनते हैं. मगर जब रिश्तों में प्यार कम और घुटन ज्यादा हो तो ऐसे रिश्ते से अलग हो जाना ही समझदारी मानी जाती है. मगर अलग हो जाने के बाद की राह भी इतनी आसान नहीं होती.

पतिपत्नी के बीच रिश्ता टूटने के बाद अक्सर महिलाओं को ज्यादा समस्याएं आती हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि आर्थिक जरूरतों के लिए महिलाएं अमूमन अपने पुरुष साथी पर निर्भर होती हैं. विवाद की स्थिति में उन्हें आर्थिक तंगी से बचाने के लिए कानून में कई प्रावधान किए गए हैं. इन्ही में एक मुख्य है गुजाराभत्ता.

हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 में पति और पत्नी दोनों को मैंटीनैंस का अधिकार दिया गया है. वहीं स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के तहत केवल महिलाओं के पास यह हक है.

पति से अलग होने के बाद महिला को पति से अपने और बच्चे के पालनपोषण के लिए गुजारेभत्ते के तौर पर हर माह एक निश्चित रकम पाने का हक़ कानून द्वारा दिया गया है. यदि महिला कमा रही है तो भी उसे गुजाराभत्ता दिया जाएगा. यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि वह सम्मान के साथ अपना जीवनयापन कर सके.

पत्नी के नौकरी न करने पर विवाद की स्थिति में कोर्ट महिला की उम्र, शैक्षिक योग्यता, कमाई करने की क्षमता देखते हुए गुजाराभत्ता तय करता है. बच्चे की देखरेख के लिए पिता को अलग से पैसे देने पड़ते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने मासिक गुजारेभत्ते की सीमा तय की है. यह पति की कुल सैलरी का 25 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है. पति की सैलरी में बदलाव होने पर इसे बढ़ाया या घटाया जा सकता है.

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