आस्ट्रेलिया के मोनाश और क्लेयटन विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक इकलौते बच्चे दूसरे बच्चों के मुकाबले 16% कम जोखिम उठाना पसंद करते हैं. साथ ही उन में स्वार्थ की भावना भी ज्यादा होती है. यह निष्कर्ष चीन में 1979 में ‘एक परिवार एक ही बच्चा’ की नीति लागू होने के पहले और उस के बाद के वर्षों में पैदा हुए बच्चों का आपसी तुलनात्मक अध्ययन कर के निकाला गया है. इकलौते बच्चों को परिवार में बेहद लाड़प्यार मिलता है, जिस की वजह से उन में बादशाही जिंदगी जीने की आदत पड़ सकती है. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इस का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. वे स्वार्थी तो होते ही हैं, भाईबहनों के अभाव की वजह से बचपन से इन में प्रतियोगी भावना की कमी पाई जाती है. यही नहीं यूरोप में किए गए एक शोध के मुताबिक इकलौती संतान के मोटे होने की संभावना भी भाईबहन वाले बच्चों की तुलना में 50% अधिक होती है. यह निष्कर्ष यूरोप के 8 देशों के 12,700 बच्चों पर किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आया.

ऐसे बच्चे अन्य बच्चों की तरह घर से बाहर निकल कर कम खेलते हैं और टीवी देखने के ज्यादा आदी होते हैं. वे खानेपीने में भी मनमानी करते हैं. मांबाप प्यारदुलार में उन की हर मांग पूरी करते जाते हैं. इन वजहों से उन में मोटे होने की संभावना ज्यादा पाई जाती है.

एकल परिवार

आज के संदर्भ में देखा जाए तो इस तरह के शोधों और उन से निकाले गए निष्कर्षों पर गौर करना लाजिम है. आज बढ़ती महंगाई और बदलती जीवनशैली ने सामाजिक संरचना में परिवर्तन ला दिया है. संयुक्त परिवारों के बजाय अब एकल परिवारों को प्रमुखता मिल रही है. पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं. पत्नी को घर के साथ दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है. ऐसे में कभी परिस्थितिवश तो कभी सोचसमझ कर लोग एक ही बच्चे पर परिवार सीमित करने का फैसला ले लेते हैं. हाल ही में भारत में एक मैट्रिमोनियल साइट (शादी.कौम) द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं की तुलना में पुरुष एक से अधिक बच्चों की इच्छा अधिक रखते हैं. सर्वे में जहां 62% पुरुषों ने एक से ज्यादा बच्चों की जरूरत पर बल दिया, वहीं सिर्फ 38% महिलाओं ने ही इस में रुचि दिखाई.

दरअसल, पुरुष सोचते हैं कि बच्चे उन के जीवन के केंद्र हैं और एक सफल शादी के सूचक हैं, इसलिए वे ज्यादा बच्चे पसंद करते हैं. इस के विपरीत महिलाएं, जिन्हें मूल रूप से बच्चों के देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, कम बच्चे चाहती हैं. मैट्रोज के कपल्स पर आधारित इस सर्वे में पाया गया कि 42% मैरिड कपल्स के पास सिंगल चाइल्ड थे, जबकि 28% मैरिड कपल्स के 1 से ज्यादा बच्चे थे. इस सर्वे में एक दिलचस्प बात यह भी सामने आई कि लव मैरिज करने वाले कपल्स सिंगल चाइल्ड तो अरैंज मैरिज वाले कपल्स 1 से ज्यादा बच्चे पसंद करते हैं. लव मैरिज करने वाले कपल्स में से 49% ने सिंगल चाइल्ड की इच्छा जताई, जब कि अरैंज मैरिज करने वाले कपल्स में से 62% एक से अधिक बच्चों के ख्वाहिशमंद थे, क्योंकि वे बेटा और बेटी दोनों ही चाहते थे.

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सोच में बदलाव

इस संदर्भ में मैट्रो हौस्पिटल की कंसल्टैंट साइके्रटिस्ट, अवनि तिवारी कहती हैं कि आजकल की बढ़ती महंगाई और टूटते संयुक्त परिवारों की परंपरा ने लोगों की सोच में बदलाव पैदा किया है. अब लोग बच्चे को जन्म देने का फैसला बहुत सोचविचार कर लेते हैं, क्योंकि पतिपत्नी दोनों को अपना कैरियर भी देखना होता है. उधर घर में सास, मां, मौसी, बूआ आदि की कमी रहती है. ऐसे में सारी जिम्मेदारी स्वयं उठानी पड़ती है. फिर अधिक उम्र में विवाह की वजह से भी रिप्रोडक्टिव कैपिसिटी घट रही है. बड़े शहरों में रहने वाले ज्यादातर कपल्स किसी तरह एक बच्चा तो मैनेज कर लेते हैं, क्योंकि ऐसा उन्हें समाज के लोगों का मुंह बंद करने और खुद भी मांबाप बनने का आनंद उठाने के लिए जरूरी लगता है. पर दूसरे बच्चे की बात पर उन्हें सोचना पड़ता है. अकसर यह भी होता है कि एक पार्टनर यदि इच्छुक भी है, तो दूसरा बढ़ती जिम्मेदारियों और खर्चों का वास्ता दे कर दूसरे को चुप करा देता है. ऐसे घरों में अब चूंकि बच्चा इकलौता होता है तो मांबाप की सारी उम्मीदें उसी से जुड़ी होती हैं. उन के पास यह विकल्प नहीं होता कि चलो एक बच्चा डाक्टर बनना चाहता है तो कोई बात नहीं, दूसरा मेरी मरजी के मुताबिक इंजीनियर या वकील वगैरह बन जाएगा. पतिपत्नी की सारी उम्मीदों का केंद्र वह इकलौता बच्चा रहता है.

बच्चा सोचता है कि सब कुछ तो मेरा ही है. इस से उस में न तो प्रतियोगी भावना पैदा होती है और न ही वह अच्छा पीयर रिलेशनशिप यानी हमउम्र साथियों से दोस्ती ही डैवलप कर पाता है. यदि समय पर ध्यान न दिया जाए तो संभव है कि बच्चा आत्मकेंद्रित हो जाए. पर मांबाप बचपन से उस में सही संस्कार और सोच पैदा करें तो इस स्थिति से बचा जा सकता है. मांबाप को चाहिए कि वे बच्चे को रिश्तेदारों और पड़ोसियों के हमउम्र बच्चों के साथ मिक्सअप होना सिखाएं. उस के हाथ से दूसरों को चीजें दिलवाएं. बच्चे को अकेला न छोड़ें. बड़े भाईबहन के रहने से छोटा बच्चा अकसर सारे काम जल्दी सीख जाता है, क्योंकि बड़ा भाई/बहन उसे सब सिखाता जाता है. पर चूंकि यहां बच्चा अकेला है, तो मांबाप को ही यह भूमिका निभानी होगी. बच्चे के साथ बच्चा बन कर रहना होगा, उस के साथ खेलना होगा और उसे अच्छी आदतें सिखानी होंगी.

मिथक और वास्तविकताएं

वैसे यह कहना कि बच्चा इकलौता है तो वह हमेशा ही हठी, स्वार्थी या आत्मकेंद्रित होगा, जरूरी नहीं है. यह बात महत्त्वपूर्ण है कि उस की परवरिश कैसे की गई है. आप महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध या फिर आइजैक न्यूटन का उदाहरण ले सकते हैं. ये भी इकलौते बच्चे थे पर मानवता और देशसेवा के नाम अपनी जिंदगी उत्सर्ग कर दी. दुनिया को नया ज्ञान दिया. बच्चे में आप शुरू से मिलजुल कर रहने और दूसरों के लिए परवाह करने की आदत डालें तो बड़े होने पर बच्चे का व्यक्तित्व संतुलित और उदात्त होगा. अकसर कहा जाता है कि अकेला बच्चा अकेलेपन का शिकार हो सकता है और आगे चल कर वह असामाजिक प्रवृत्ति का इंसान बनता है, पर यह भी जरूरी नहीं. ‘किंग औफ रौक ऐंड रौल’ कहे जाने वाले एल्विस प्रेश्ले को ही लीजिए. वे अपने असंख्य प्रशंसकों एवं दोस्तों के बीच काफी लोकप्रिय रहे. न सिर्फ गाने की वजह से वरन उदात्त और मिलनसार स्वभाव की वजह से भी. वे अपने दोस्तों की बहुत मदद करते थे और उन्हें हर तरह से सपोर्ट देते थे.

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रखें कुछ बातों का खयाल

  1. बच्चे से दोस्ताना व्यवहार करें. घर में उसे अकेला महसूस न होने दें.
  2. जब भी वक्त मिले, बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. उसे अच्छी किताबें पढ़ने को दें.
  3. बच्चे को थोड़ा स्पेस भी दें. उस की जिंदगी में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप न करें.
  4. जब बच्चा भाईबहन न होने की शिकायत करे तो उसे समझाएं कि चचेरेममेरे भाई बहन भी उतने ही करीबी हो सकते हैं. उसे रिश्तेदारों के बच्चों से मिलाने ले जाएं. आसपास के बच्चों से दोस्ती करने को प्रेरित करें.
  5. बच्चे में स्कूल में दोस्तों और घर में रिश्तेदारों के बच्चों के साथ मिल कर रहने, अपनी चीजें शेयर करने और अच्छा बरताव करने की आदत डालें.
  6. बच्चे पर जरूरत से ज्यादा प्रैशर न डालें. अकेला बच्चा है तो आप उसे हर क्षेत्र में परफैक्ट देखना चाहेंगे. उस के जरीए अपना सपना पूरा करना चाहेंगे. पर ध्यान रखें, इस चक्कर में उस पर अनावश्यक दबाव न बनाएं. उसे अपना बचपन जीने दें.
  7. अपने बच्चे की केयर करने और उस की खुशियों की परवाह करने के साथ उसे अनुशासन में रहना भी सिखाएं. उस की हर जायज व नाजायज मांग पूरी न करें. उस की इच्छा का खयाल रखें. पर वह गलत बात की जिद करे तो मना करें.
  8. अपने बच्चे में अच्छे मानवीय गुणों, नैतिक मूल्यों और संस्कारों की नींव डालने का प्रयास करें.
  9. किसी भी चीज का सकारात्मक पक्ष देखने की आदत भी डालें.
  10. बच्चा आप के लिए अनमोल है पर उसे यह एहसास न दिलाएं कि वह दूसरों से बढ़ कर  है या उस की खुशी के लिए आप किसी भी हद तक जा सकते हैं. बच्चे को सामान्य जिंदगी जीने दें. उसे घमंडी या बदतमीज न बनाएं. कभीकभी उसे गलत काम करने पर डांटें और सजा भी दें.
  11. बच्चे में सदैव मखमली बिस्तर पर रहने की आदत न डालें. उस में अपना काम स्वयं करने की आदत बचपन से डालें. यही नहीं घरेलू कामों में भी उसे अपनी मदद के लिए बुलाएं. इस से जहां उसे काम में सहयोग देने की आदत पड़ेगी, वहीं आप के साथ अधिक वक्त बिताने का मौका भी मिलेगा.

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