लेखिका- आरती श्रीवास्तव

जब तक आप खुद अपने बौस न हों, आप कहीं भी काम करें आप का कोई न कोई बौस जरूर होगा. बौस आप से खुश रहे, यह आप के लिए अच्छा है और एक प्रकार से जरूरी भी है. ‘द बौस इज औलवेज राइट’ यह कथन हम सब ने सुना होगा. हालांकि, इस का मतलब यह नहीं लगा लेना चाहिए कि बौस के साथ आप का कोई मतभेद नहीं होना चाहिए या बौस कभी गलत हो ही नहीं सकता. बौस भी हमारी तरह हाड़मांस का जीव होता है और हम जिन भूमिकाओं में हैं ऐसी ही भूमिकाओं से गुजरते हुए वह बौस की कुरसी तक पहुंचा होता है.

जैसे कर्मचारी अलगअलग प्रकार के होते हैं वैसे ही बौस लोगों की भी किस्में हुआ करती हैं. यदि बौस परिपक्व तथा संतुलित दृष्टिकोण वाला है तो अपने मातहतों से उस की अपेक्षाएं भी वाजिब होंगी. इस तरह के बौस को चापलूसी व जीहुजूरी नहीं पसंद होती. उत्तम कोटि के बौस अपनी टीम के सदस्यों के कार्य, उत्पादकता व आचरण पर नजर रखते हैं और इन्हीं के आधार पर कर्मचारियों का मूल्यांकन करते हैं. यदि आप निष्ठापूर्वक तथा ईमानदारी से संगठन में अपना काम करते हैं तो बौस की नजर में आप को अच्छा कर्मचारी माना ही जाना चाहिए. ज्यादा जरूरी यह जानना है कि योग्य बौस अपने कर्मचारियों में किन बातों को पसंद नहीं करते. ये सारी बातें काम से ही जुड़ी हुई हैं.

आप बौस के पास बिजनैस से जुड़ी किसी चर्चा के लिए जाते हैं और यह जाहिर होता है कि आप पूरी तैयारी के साथ नहीं गए हैं तो बौस को अच्छा नहीं लगता. आप के लिए सिर्फ विचार प्रकट करना पर्याप्त नहीं, विचार के पीछे तर्क भी बताने को तैयार रहना चाहिए. कुछ बौस निर्णय लेने में आंकड़ों पर बहुत निर्भर करते हैं. वहां अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए आप को आंकड़ों पर आधारित अनुमानों के साथ जाना होगा.

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किसी को कुछ नया, कुछ अलग करने को कहा जाए और वह सीधे कह दे कि उस से यह नहीं होगा तो यह अच्छी छवि नहीं पेश करता. उत्तर होना चाहिए ‘हां, मैं कोशिश करता हूं और मदद की जरूरत होगी तो अमुक से पूछ लूंगा.’

संगठनों में काम का बोझ कभी कम, कभी सामान्य तो कभी ज्यादा हुआ करता है. कर्मचारियों की भूमिकाएं भले विभाजित हों, पर एक अच्छी टीम में जरूरत के अनुसार सदस्य एकदूसरे के साथ कार्य शेयर करते हैं.

प्रत्येक कर्मचारी को अच्छा टीम प्लेयर होना चाहिए. आप इस पर ध्यान देंगे तो दिनोंदिन बेहतर होते जाएंगे. जब कोई कंपनी कर्मचारियों का चयन कर रही होती है तो उम्मीदवार में टीमभावना की परख विशेष रूप से करती है. लोगों से ही टीम बनती है तथा संगठन टीमों को मिला कर बना होता है. हां, कार्य को ले कर आप से कोई बिलकुल अनुचित अपेक्षा की जाए तो आप विनम्रतापूर्वक अपना प्रतिरोध व्यक्त कर सकते हैं, करना भी चाहिए.

कंपनियां लोगों को उन की योग्यताओं, कुशलताओं तथा दृष्टिकोण अर्थात एटीट्यूड के आधार पर चुनती हैं. पर इस का मतलब यह नहीं होता कि आप हमेशा उसी स्तर पर बने रहेंगे. समय के साथ इन का विकास होना चाहिए, तभी तो आप का भी विकास होगा.

नया ज्ञान हासिल करने, नई कुशलताएं अर्जित करने तथा अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाने के प्रति उदासीनता आप में निहित संभावनाओं को साकार होने से तो रोकेगी ही, आप बौस की दृष्टि में भी कभी सामान्य से विशिष्ट नहीं हो पाएंगे.

मौका देख कर बौस के सामने औरों की कमियां गिनाने वाले शायद यह बताना चाहते हैं कि वे खुद कितने अच्छे हैं. समझदार बौस ऐसी आलोचनाएं सुन भले ही लें, कर्मचारियों के विषय में राय बनाने के लिए औरों की टिप्पणियों को महत्त्व नहीं देते.

बौस खुद भी तो देखता रहता है कि कौन कर्मचारी क्या और कैसे कार्य कर रहा है. निर्णय लेने में ढीला या अकुशल होना भी आप की छवि बिगाड़ता है. कई संगठनों में जो प्रणाली है, उस के अनुसार बौस को नीचे वालों की संस्तुतियों पर निर्णय लेना होता है. अगर यह संस्तुति करना आप का कार्य है तो आप की टिप्पणी स्पष्ट होनी चाहिए कि किसी प्रस्ताव विशेष को स्वीकार किया जाना है या नहीं, साथ ही, इस के साथ औचित्य भी बताना चाहिए.

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हमारा अपनी मुश्किलों को ले कर परेशान होना स्वाभाविक है. परंतु मुश्किलें और चुनौतियां आप की कंपनी के साथ भी होती हैं. संगठन के सभी कर्मचारियों को खुद रुचि ले कर जानना चाहिए कि कंपनी का कारोबार कैसा चल रहा है, इस के समक्ष किस प्रकार की चुनौतियां हैं तथा आप कंपनी की मदद किस प्रकार से कर सकते हैं.

सिर्फ अपनी सीट पर बैठे हुए कार्य करते रहना, कोई नवीन पहल न करना तथा प्रत्येक छोटेबड़े परिवर्तन का प्रकट या अप्रकट रूप से विरोध करना आप की छवि को खराब करता है. क्या आप ऐसा चाहेंगे?

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