कुछ दिनों पहले अपनी कॉलेज की मित्र से अचानक मिलना हुआ. उसके हालचाल पूछती लेकिन उसके रहन-सहन और चेहरे के भाव पढ़ कर हाल-चाल स्वतः ही समझ आ गए.

फिर भी मन नहीं माना सो पूछ लिया “कैसी हो स्नेहलता” ?

उस ने बात काटते हुए कहा “तुम बताओ कैसी हो, मेरा तो क्या है यहीं मायका, यही ससुराल कुछ बदला नहीं. सुना है तुम्हारे पति नेवी में अफसर हैं, बड़ी मौज-मस्ती की ज़िन्दगी होती है इस फील्ड के लोगों की”

हम्म होती तो है पर तुम मुझ से कुछ छिपाने की कोशिश कर रही हो, मुझे ऐसा महसूस हो रहा है.  देखो मैं जैसी कल थी वैसी ही आज हूँ नेवी का अफसर मिला तो क्या मैं बदल जाऊंगी ?

वह अपने मन के उदगार खोल देना चाहती थी पर शायद डरती थी कि जग हंसाई न हो इसलिए टाल भी रही थी.  जैसे ही मैं ने अपने न बदलने की बात कही तो बोली आज व्यस्त हूँ कल पार्क में मिलते हैं और उसने मुझे अपना फोन नंबर दे दिया.

एक खूंटे से खोला दूसरे पर बाँधा 

अगले दिन हम पार्क में मिले तो थोड़ी देर औपचारिक बातें की. उसके बाद उसने जो बताया वह सुनकर मैं आश्चर्यचकित थी.  कहने लगी “क्या बताऊँ शादी के समय बताया  गया कि पति इंजीनियर हैं, कहने को तो हैं भी सही लेकिन विवाह के समय से ही कहीं टिक कर काम नहीं करते थे. सो हर एक- दो माह में बेरोजगार हो जाते. कुल मिला कर यह हुआ कि फिर इनके स्वभाव के कारण काम मिलना ही बंद हो गया.  अब इतने बरसों से बेरोजगार हैं. न तो कोई आमदनी ऊपर से सारा दिन घर बैठ कर हुकुम चलाना. मैं नौकरी करती हूँ तो कहते हैं पत्नी कमाए और पति घर में रहे तो पत्नी ही घर खर्च चलायेगी न. अब तू मेरे खर्चे उठा.

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