दोपहर का रसोई का काम निबटा कर मैं अपने बैडरूम में बैड पर लेटी ही थी कि तभी मोबाइल बजने पर जाग गई. फोन की स्क्रीन पर अपनी बैस्टी निर्वीका का नाम देख मैं खुशी से उछल पड़ी.
‘‘इतने दिन लगा दिए यार अपने हनीमून में, एक बार फोन तक नहीं किया मुझे कि मेरी खैरखबर ले लेती. अब विहान जो तुझे मिल गया है. अब मैं कहां की बैस्टी, कैसी बैस्टी?’’ मैं ने निर्वी से कहा.
‘‘अरे मिनी गुस्सा मत कर यार. पिछले कुछ दिन इतने हैक्टिक बीते कि पूछ मत. फिर जो मैं ने पुष्कर जैसे तीर्थस्थल को अपने हनीमून स्पौट के तौर पर चुना, उस में भी बहुत जबरदस्त पंगा हो गया. विहान को हनीमून के लिए पुष्कर बिलकुल रास नहीं आया. इस के चलते वह दोनों दिन मेरी जान खाता रहा कि तुम हनीमून के लिए आई हो या तीर्थ यात्रा के लिए? सच में हनीमून के लिए मेरा पुष्कर का चुनाव बहुत गलत रहा. कदमकदम पर मंदिर, पंडित, पुजारी, घंटियों, मंत्रों, पूजा की आवाज.
विहान तो कहने लगा, ‘‘हनीमून के लिए तुम्हें चप्पेचप्पे पर मंदिरों वाला यही शहर सू?ा? जहां मूड थोड़ा रोमांटिक होता वहीं कोई मंदिर दिख जाता और रोमांस का सारा मूड चौपट हो जाता.’’
निर्वी की ये बातें सुन मैं बेतहाशा ठठा कर हंस पड़ी, ‘‘मूर्ख लड़की, आखिर पुष्कर जैसे एक धार्मिक शहर को तू ने हनीमून डैस्टिनेशन के तौर पर चुना ही क्यों? पूरे राजस्थान में और भी तो बढि़या जगहें हैं. चित्तौड़, उदयपुर कहीं भी चली जाती. यह तेरी सूई आखिर पुष्कर पर ही क्यों अटक गई, आखिर मैं भी तो सुनूं जरा?’’