रमादान यानी रमजान के महीने में एक मुसलिम देश में आ कर मैं जिस अनोखे अनुभव से गुजर रही थी, उस पर हंसूं या रोऊं, समझ में नहीं आ रहा था. एक तरफ विश्वास का अद्भुत नजारा था, तो दूसरी तरफ सारा दिन सभी रेस्तरां, होटल आदि बंद होने के कारण हमारे जैसे पर्यटक परेशान थे. हम थे मोरक्को के कासाब्लांका में. एक दिन जब मैं उपनिवेशवादी कासाब्लांका के सब से बड़े चौक पैलेस मोहम्मद षष्ठ को देखते समय धूप और गरमी से परेशान हो कर एक किनारे खड़ी हो कर साथ में लाया पानी पीने लगी, तो वहां से गुजरती एक महिला ने मुझे उसे पीने को मना किया. बताने लगी रमादान है.
अरबी में कहा गया उस का ‘रमादान’ शब्द समझ में तो आ ही गया, लेकिन वह वहां से थोड़ी दूर चल कर 2 अन्य व्यक्तियों के पास रुकी और उन से कुछ कह कर मेरी ओर मुड़ कर इशारा करने लगी. समझ में आ गया कि वह उन्हें बता रही थी कि मैं रमादान में पानी पी रही थी. मैं इस पर हैरान थी कि कैसे कटेंगे ये दिन. गरमी, धूप, चलनाफिरना, दुकानों और कारखानों में सभी तरह के शारीरिक परिश्रम जस के तस और उस पर यह निर्जल उपवास. हम तो अपने होटल केनजी बाजमा, जो 35, एवेन्यू मुले हसन ले कासाब्लांका पर था, लौट आए. लंच के लिए हमारे पास लंदन से लाया कुछ पैक्ड खानेपीने का सामान था, जिसे हम एहतियात के तौर पर साथ ले कर आए थे.
कल हम रात में हीथ्रो से रायल एअर मोरक्को की फ्लाइट से कासाब्लांका पहुंचे थे. फ्लाइट का समय था शाम 6.10, लेकिन विमान रवाना हुआ 7.45 पर. 3 घंटे की यात्रा के बाद लगभग 11 बजे हमारी हवाईयात्रा पूरी हुई. हवाईयात्रा में ऐसा खाना कभी नहीं मिला था. शाकाहारी होने की वजह से हमारे लिए उपलब्ध थे उबले मोटे चावल, उबली सब्जियां वे भी बगैर नमक की. वही खाना पड़ा, क्योंकि भूख लगी थी. हां, एक पैकेट में 4 खजूर भी थे. होटल, जहां हम रुके सुविधाओं से भरपूर था.