केवल एक किलोमीटर के दायरे में फैले खजुराहो के कसबे में खुद को ले कर कभी यह गलतफहमी हो जाना स्वाभाविक बात है कि हम विदेश के किसी देसी महल्ले में हैं. वजह, खजुराहो में देसी कम, विदेशी पर्यटक ज्यादा नजर आते हैं. मुंबई और दिल्ली के बाद सब से ज्यादा पर्यटक आगरा, बनारस और जयपुर से हो कर खजुराहो आते हैं. इसलिए भारत घूमने आए पर्यटकों की प्राथमिकता खजुराहो होती है तो बात कतई हैरत की नहीं है क्योंकि मैथुनरत मूर्तियां वह भी तरह तरह की मुद्राओं में, यहां के मंदिरों की दीवारों में उकेरी गई हैं जो जिज्ञासा के साथ साथ उत्तेजना भी पैदा करती हैं.

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के जिले छतरपुर का कसबा खजुराहो वाकई अद्भुत है. पिछड़ेपन का दर्द बयां करती खजुराहो की सुबह विदेशी सैलानियों के दर्शन से शुरू होती है. दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जहां से यहां पर्यटक न आते हो. जान कर हैरानी होती है कि कई पर्यटक तो यहां नियमित अंतराल से आते हैं और सालों साल यहीं रहना पसंद करते हैं.

अपनी हैसियत और बजट के मुताबिक, पर्यटकों को यहां 300 से ले कर 30,000 रुपए तक का कमरा होटलों में मिल जाता है. जाहिर है जो लंबे वक्त रुकते हैं, वे सस्ते होटल में ठहरते हैं, वह भी मासिक किराया दे कर.

इन विदेशी पर्यटकों के यहां रुकने का कोई तयशुदा मकसद नहीं होता है. चूंकि खजुराहो रहने और खानेपीने के मामले में सस्ता पड़ता है, इसलिए विदेशी पर्यटक यहां लंबे समय तक डेरा डाले रहते हैं. कई विदेशियों ने यहां के लोगों से शादियां तक की हैं जिन की आए दिन चर्चा होती रहती है. खजुराहो के मंदिर घूमने के बाद विदेशी जब नजदीक के गांव घूमते हैं तो उन्हें असली भारत के दर्शन होते हैं जहां अभाव, भूख और जीवनयापन का निचला स्तर है.

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