आज हम आपको म्यूजियम के बारे में बाताने जा रहें हैं. देश के हर म्यूजियम की अपनी एक अलग ही कहानी है और अपनी खासियतों की वजह से वह अस्तित्व में बना हुआ है. कोई म्यूजियम एशिया का सबसे बड़ा म्यूजियम है तो कहीं पर मानव कंकाल या यू कहें ममी को जगह दी गई है. कही रेलवे का इतिहास है तो कहीं पे गुड़ियों की श्रृंखला.

तो चलिये आज आपको हम ले चलते हैं देश के कुछ खास म्यूजियम. यकिन मानिए इन जगहों पर आकर आप को काफी अच्छा अनुभव होगा और देश के बारे में जानने को काफी कुछ मिलेगा.

इंडियन म्‍यूजियम, कोलकाता

पश्‍चिम बंगाल के कोलकाता में स्‍थित भारतीय संग्रहालय भारत के सर्वश्रेष्ठ संग्रहालयों में से एक है. यहां प्राचीन वस्तुओं, युद्धसामग्री, गहने, कंकाल, ममी, जीवाश्म, तथा मुगल चित्र आदि का दुर्लभ संग्रह है. इसकी स्थापना डा. नथानियल वालिक नाम के डेनमार्क के वनस्पतिशास्त्री ने सन 1814 में की थी. यह एशिया का सबसे पुराना और भारत का सबसे बड़ा संग्रहालय है.

शंकर इंटरनेशनल डौल्‍स म्‍यूजियम, दिल्‍ली

शंकर अन्तर्राष्ट्रीय डौल्‍स संग्रहालय नई दिल्ली में स्थित है जिसे मशहूर कार्टूनिस्ट के शंकर पिल्लई ने बनाया था. यहां विभिन्न परिधानों में सजी गुड़ियों का संग्रह है, जो विश्व के सबसे बड़े संग्रहों में से एक है. यह संग्रहालय बहादुर शाह जफर मार्ग पर चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट के भवन में स्थित है. इस गुड़िया घर के निर्माण के पीछे एक रोचक कहानी है. कहते हैं कि जवाहरलाल नेहरू जब देश के प्रधानमंत्री थे तो शंकर उनके साथ जाने वाले पत्रकारों के दल के सदस्य थे. उनकी गुड़ियों में गहरी रुचि थी.

वे प्रत्येक देश की तरह-तरह की गुड़ियां एकत्र किया करते थे. धीरे-धीरे उनके पास 500 तरह की गुड़ियां इकट्ठी हो गईं. तो अपने कार्टूनों के साथ वे इन गुड़ियों की भी प्रदर्शनी लगाने लगे. इसमें एक ही मुश्‍किल थी कि बार-बार गुड़ियों को लाने ले जाने में कई टूट जाती थीं.

एक बार नेहरू अपनी बेटी इन्दिरा गांधी के साथ प्रदर्शनी देखने गए और वो उन्‍हें बेहद पसंद आई. उस समय शंकर ने उन्हें अपनी परेशानी बताई और नेहरू जी ने उनके लिए एक स्थाई घर का सुझाव दिया. इस तरह गुड़ियों को रहने के लिए “गुड़िया घर” नाम का एक अनोखा घर मिल गया. 5184.5 वर्ग फुट आकार वाले इस संग्रहालय में 160 से अधिक कांच के केस में गुड़ियां सजी हैं.

केलिको म्‍यूजियम औफ टैक्‍सटाइल, अहमदाबाद

केलिको वस्‍त्र संग्रहालय भारत के शानदार कपड़ा संग्रहालयों में से एक है और यह भारतीय कपड़ों के विविध संग्रह के कारण जाना जाता है. अहमदाबाद में इस संग्रहालय को श्री गौतम साराभाई और उनकी बहन गीरा साराभाई ने 1949 में स्‍थापित किया था. यहां न केवल भारत में मुगल युग के दौरान बने प्राचीन कपड़ो को प्रदर्शित किया गया है बल्कि यह देश के विभिन्न हिस्सों के कपड़ा उद्योग की प्रगति के बारे में भी बताता है. यहां प्रदर्शित सुंदर कश्मीरी पश्मीना, कालीन और इकत हथकरघा के सामान देखने लायक हैं. इस संग्रहालय में 10 साल से कम आयु वाले बच्चों को आने की अनुमति नहीं है.

एचएएल हैरिटेज सेंटर एंड एयरोस्‍पेस म्‍यूजियम, बेंगलुरु

ये भारत में अपनी तरह का पहला म्‍यूजियम है. इसे हिंदुस्‍तान एयरोनौटिक्‍स लिमिटेड ने बनवाया है इसीलिए इसे एचएएल हैरिटेज सेंटर एंड एयरोस्‍पेस म्‍यूजियम कहा जाता है. बंगलुरू शहर के रेलवे स्‍टेशन से लगभग 10 किलोमीट दूर ये म्‍यूजियम 4 एकड़ के क्षेत्रफल में हरे भरे इलाके में बनाया गया है. म्‍यूजियम के दो मुख्‍य भवन हैं जिनमें से एक में कई तस्‍वीरों के जरिए 1940 से लेकर अब तक एवियेशन के क्षेत्र में हर दशक में हुए विकास को दर्शाया गया है. जबकि दूसरा हाल मोटर क्रौस सेक्शन कहलाता है, इसमें एयरो इंजन के मौडल रखे हैं जो इंजन के विभिन्‍न कार्यों को हाईलाइट करते हैं.

सालार जंग म्‍यूजियम, हैदराबाद

सलारजंग संग्रहालय एक चर्चित म्यूजियम है, जहां हैदराबाद के समृद्ध और गौरवशाली इतिहास को प्रदर्शित किया गया है. ये देश के तीन राष्ट्रीय संग्रहालय में से एक है. यह संग्रहालय 1951 में नवाब मीर यूसुफ खान के महल में स्थापित किया गया था. जिसे अब लोकप्रिय सालार जंग तृतीय कहा जाता है. संग्रहालय में कार्पेट, फर्नीचर, मूर्ति, पेंटिंग्स, पांडुलिपि, मृत्कला, टेक्सटाइल, घड़ी और धातु की अन्य चीजें रखी गई हैं. यह सभी चीजें सलार जंग परिवार की थी, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ी थीं. इनमें से कुछ चीजें पहली शताब्दी की हैं. कहते हैं कि नवाब मीर यूसुफ अली खान ने 35 सालों के दौरान अपने धन का एक बड़ा हिस्सा इन चीजों को इकठ्ठा करने मे खर्च कर दिया था.

नेशनल रेल म्‍यूजियम, दिल्‍ली

राष्ट्रीय रेल परिवहन संग्रहालय नई दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित है, जो भारत की रेल धरोहर के बारे में बताता है और रेलों के 140 साल के इतिहास की झलक प्रस्तुत करता है. यह संग्रहालय लगभग 11 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है. इस संग्रहालय में भाप इंजनों और कोयले से चलने वाली गाड़ियों के मौडल के अलावा, पूर्व वाइसरीगल डाइनिंग कार, और मैसूर के महाराजा रोलिंग सैलून जैसी सुविधाजनक गाडियां भी प्रस्‍तुत की गई हैं. फेयरी लोकोमोटिव क्वीन भी यहां दिखाई गई रेलों में एक अहम हिस्सा है. इस संग्रहालय में ट्रेनों के अदंर की पुरानी तस्वीरों की जानकारी का एक बड़ा संग्रह भी शामिल है. इसका निर्माण ब्रिटिश वास्तुकार एम जी सेटो ने 1957 में किया था. यहां पूरे संग्रहालय में घुमाने वाली एक छोटी रेलगाड़ी भी चलती है. इस संग्रहालय में विश्व की प्राचीनतम चालू हालत की रेलगाड़ी भी है, जिसका इंजन सन 1855 में निर्मित हुआ था.

गवरमेंट म्‍यूजियम, चेन्‍नई

चेन्नई के एग्मोर में बना है गवरमेंट संग्रहालय इसीलिए इसे एग्मोर संग्रहालय भी कहा जाता है. यह संग्रहालय एक सुंदर औपनिवेशिक इमारत पैन्थियोन कौम्प्लेक्स में स्थित है. दक्षिण भारत के इतिहास की सबसे वैभवशाली झलक इस संग्रहालय में दिखाई देती है. इसकी कांस्य मूर्तिकला संग्रह गैलरी में 7वीं शताब्दी के पल्लव शासन के दौर की कांस्य की मूर्तियां रखी गई हैं और 9 वीं और 11 वीं शताब्दियों के बीच चोल साम्राज्य की भी कुछ बेहतरीन मूर्तियां यहां मौजूद हैं. इस संग्रहालय में प्राचीन दक्षिण भारत के कुछ बौद्ध अवशेष और सिक्के भी रखे हैं.

द प्रिंस औफ वेल्‍स म्‍यूजियम, मुंबई

द प्रिंस औफ वेल्‍स म्‍यूजियम को अब छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय मुंबई के नाम से जाना जाता है. इसका निर्माण 1922 में वेल्स के राजकुमार की भारत यात्रा के समय किया गया था. इसका निर्माण मुम्बई के प्रतिष्ठित उद्योगपतियो और नागरिकों से सहायता लेकर मुम्बई सरकार ने स्मारक के रूप में करवाया था. यह भव्य भवन दक्षिण मुम्बई के फोर्ट एरिया में विलियम मे, एल्फिंस्टन कालेज के सामने स्‍थित है. इसके सामने रीगल सिनेमा और पुलिस आयुक्त का कार्यालय बना है.

नेपियर म्‍यूजियम, तिरुअनंतपुरम

नेपियर म्‍यूजियम केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम में है. इसका भवन भारतीय सीरियन वास्तुशैली में बना है. 1855 में बना ये भवन भारत के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक है. इसका नाम मद्रास के गवर्नर लौर्ड चार्ल्स नेपियर के नाम पर रखा गया है. संग्रहालय में कई ऐतिहासिक मूर्तियां, आभूषण, हाथी दांत की कलात्मक वस्तुयें और 250 वर्ष पुरानी नक्काशी से बनी हुई चीजें रखी गई हैं.

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