प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब पूर्वोत्तर के राज्यों के छोटेछोटे बाजार, मनमोहक उद्यान व ऊंचाई पर बने घर पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं.
विभिन्न संस्कृतियों का संगम है असम
असम पूर्वोत्तर राज्यों का गेटवे कहलाता है. यह अपने चाय बागानों, फूल, वनस्पति, दुर्लभ नस्ल के गैंडों और यहां मनाए जाने वाले पर्वों, विशेष रूप से बिहू के लिए जाना जाता है. दर्शनीय स्थलों में सब से पहले नाम काजीरंगा नैशनल पार्क का आता है. यहां के मुख्य आकर्षण एशियाई हाथी और एक सींगवाले गैंडे हैं.
इस के अलावा बाघ, बारहसिंगा, बाइसन, वनबिलाव, हिरण, सुनहरा लंगूर, जंगली भैंस, गौर और रंगबिरंगे पक्षी भी यहां के आकर्षण हैं, इसीलिए यह बर्ड्स पैराडाइज भी कहलाता है. नैशनल पार्क में हर तरफ घने पेड़ों के अलावा पेड़ों जितनी लंबाई वाली एक खास किस्म की घास यहां पाई जाती है. घास ऐसी कि इस के झुरमुट में हाथी भी छिप जाएं. ह घास हाथीघास भी कहलाती है.
वैसे, काजीरंगा एलीफैंट सफारी के लिए ही अधिक जाना जाता है. काजीरंगा में जाने का सब से बेहतर समय नवंबर से ले कर अप्रैल तक है. यहां खुली जीप में या हाथी की सवारी कर पहुंचा जा सकता है. काजीरंगा के पास ही नामेरी नैशनल पार्क है. यह रंगबिरंगी चिडि़यों और इकोफिशिंग के लिए जाना जाता है. नामेरी पार्क हिमालयन पार्क के नाम से भी जाना जाता है.
गुवाहाटी से 369 किलोमीटर की दूरी पर शिवसागर है. चाय, तेल व प्राकृतिक गैस के लिए शिवसागर प्रसिद्ध है. यहां के दर्शनीय स्थलों में बोटैनिकल गार्डन, तारामंडल, ब्रह्मपुत्र पर सरायघाट पुल, बुरफुकना पार्क और साइंस म्यूजियम हैं. मानस नैशनल पार्क की भी गिनती असम के दर्शनीय स्थलों में होती है.
और्किड फूलों की सेज है अरुणाचल प्रदेश
असम, मेघालय पर्यटन के बाद अरुणाचल प्रदेश की यात्रा आसानी से की जा सकती है. दरअसल, मेघालय से हो कर जाता है अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर का एक रास्ता. इस के अलावा यहां पहुंचने का एक और रास्ता भी है और वह है मालुकपोंग. यह रास्ता असम के करीब है. यानी असम की यात्रा यहां पूरी हो सकती है, इस के आगे का रास्ता ईटानगर को जाता है.
मालुकपोंग और्किड के खूबसूरत फूलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां और्किड फूलों का एक सैंटर है, जो टिपी और्किडोरियम के नाम से जाना जाता है. यहां 300 से भी अधिक विभिन्न प्रजातियों के और्किड फूलों के पौधे देखे जा सकते हैं. यह राज्य का सब से बड़ा और्किड फूलों का प्रदर्शन केंद्र है.
ईटानगर किले के बाद हिमालय के नीचे से हो कर बहती एक नदी गेकर सिन्यी, जिस का अर्थ गंगा लेक है, ईटानगर के आकर्षण का दूसरा केंद्र है. राजधानी में जवाहरलाल नेहरू म्यूजियम, क्राफ्ट सैंटर और एंपोरियम ट्रेड सैंटर भी हैं. इस के अलावा यहां चिडि़याघर और पुस्तकालय भी हैं.
टिपी और्किड सैंटर से 165 किलोमीटर की दूरी पर बोमडिला है. यह जगह समुद्रतल से लगभग 8 हजार फुट की ऊंचाई पर है. यहां से 24 किलोमीटर की दूरी पर सास्सा में लगभग 100 वर्ग किलोमीटर में फैली पेड़पौधों की एक सैंक्चुरी है. यहां 80 प्रजातियों के 2,600 पौधे हैं जो प्राकृतिक वातावरण में फलतेफूलते हैं.
बोमडिला से 45 किलोमीटर की दूरी पर निरांग है जो मठों तथा गरम झरने के लिए विख्यात है. साथ ही, यह किवी फल के लिए भी मशहूर है. यहां याक और भेड़ प्रजनन केंद्र है. बोमडिला समुद्र से 12 हजार फुट ऊंचाई पर है. इसी रास्ते 14 हजार फुट की ऊंचाई पर विश्व का दूसरा सब से ऊंचा सेला दर्रा है. यहां पैराडाइज या पैलासिड लेक भी है. करीब ही तवांग मठ है. यह जगह मठ के अलावा गुफाओं, झीलों के लिए भी प्रसिद्ध है.
पूर्वी सिआंग जिले का मुख्यालय पासीघाट सियांग नदी के तट पर स्थित है. यहां नदी में फिशिंग और रिवर राफ्टिग का मजा लिया जा सकता है. इस के अलावा दर्शनीय स्थानों में यहां परशुराम कुंड, नैशनल पार्क और कई लेक हैं.अरुणाचल के हरेक टूरिस्ट स्पौट के लिए बसें, टैक्सी, जीप किराए पर मिल जाती हैं. यहां के सभी स्थानों में टूरिस्ट लौज की भी सुविधा है. अरुणाचल प्रदेश में अक्तूबर से ले कर मई तक कभी भी जाया जा सकता है.
रजवाड़ों की धरती है त्रिपुरा
पूर्वोत्तर का राज्य त्रिपुरा राजारजवाड़ों की धरती कहलाती है. इसे प्रदूषणविहीन राज्य माना जाता है. यह इको पर्यटन, हैरिटेज पर्यटन व पर्वतीय पर्यटन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां सालभर अलगअलग किस्म के टूरिज्म फैस्टिवल मनाए जाते हैं. उत्तरपूर्व में असम और पूर्वदक्षिण में मिजोरम से घिरे राज्य त्रिपुरा के पश्चिमदक्षिण में राजधानी अगरतला के अलावा कमल सागर, नील महल, उदयपुर, सेफाजाला पिलक दर्शनीय स्थल हैं.
वहीं पश्चिमउत्तर त्रिपुरा से ऊनोकेटि, जामपुई जैसे दर्शनीय स्थल हैं. अगरतला में सब से महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल उज्जयंत पैलेस है. यह राजमहल अगरतला में 1 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. 3 गुंबद वाले इस दोमंजिले महल की ऊंचाई 86 फुट है.
त्रिपुरा के मंदिरों की शिल्पकला बहुत ही अनूठी है. सबरूम में महामुनि पैगोडा और अगरतला में जेडू मियां की मसजिद, बेलोनिया में चंदनपुर मसजिद व अगरतला में मरियमनगर चर्च हैं. प्राकृतिक पर्यटन में सिपाहीजला, तृष्णा, गोमती, रोवा अभयारण्य और जामपुई हिल जैसे प्राकृतिक पर्यटन स्थल हैं.
वहीं पुरातात्त्विक पर्यटन के लिए उनोकेटि, पिलक, देवतैमुरा (छविमुरा), बौक्सनगर हैं. अगरतला से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर मिजोरम की सीमा के पास जमपुई हिल है, समुद्रतल से इस की ऊंचाई 914 मीटर है. त्रिपुरा की पहाडि़यों की सब से ऊंची चोटी बेतलोगछिप है. यह जमपुई हिल में ही स्थित है.
रुद्रसागर नीरमहल, अमरपुर डुमबूर, विशालगढ़ कमला सागर वाटर टूरिज्म के लिए जाने जाते हैं. अगरतला से 55 किलोमीटर की दूरी पर नीरमहल है, जो रुद्रसागर झील के किनारे बसा है. इस का स्थापत्य मुगलकालीन है. ठंड के मौसम में यहां यायावर पक्षियों का जमघट लगा रहता है.
हर साल यहां नौकायन प्रतियोगिता का आयोजन होता है. अगरतला से 27 किलोमीटर की दूरी पर कमला सागर झील है. इको टूरिज्म के लिए कई इको पार्क हैं. अगरतला से 178 किलोमीटर की दूरी पर उनोकेटि है. यह जगह चट्टानों पर खुदाई कर के बनाई गई कलाकृतियों के लिए विख्यात है.
भारत का स्कौटलैंड है मेघालय का शिलौंग
मेघालय की राजधानी शिलौंग भारत का स्कौटलैंड कहलाता है. मेघालय के पश्चिम में खासी हिल्स है. यहां के पर्यटन स्थलों में रानीकोर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है. यहां रिलांग नदी के संगम में पर्यटक वाटर स्पोर्ट्स का लुत्फ उठाते हैं. यहीं शिलौंग पीक भी है, जो मेघालय की सब से ऊंची चोटी है. सुरक्षा की दृष्टि से यह स्थान काफी संवेदनशील माना जाता है. खासी हिल्स वन्यजीवों और विभिन्न प्रकार की प्रजाति के पेड़पौधों के लिए जानी जाती है.
करीब में ही लेडी हैदरी पार्क विभिन्न प्रजातियों के फूलों से सजा हुआ है. यहां एक छोटा सा चिडि़याघर भी है. अनेक प्रजातियों की तितलियों का एक संग्रहालय भी यहीं है. शिलौंग के पास घिरे जंगल और और्किड के खूबसूरत फूलों के बीच स्थिर कृत्रिम झील वाडर्स लेक में पर्यटक बोटिंग का मजा उठाते हैं.
मेघालय को झरनों के लिए भी जाना जाता है. यहां के मीठा झरना, हाथी झरना दर्शनीय स्थलों में गिने जाते हैं. मीठा झरना हैप्पी वैली में है. बारिश के दिनों में इस की खूबसूरती देखते ही बनती है. वायुसेना के ईस्टर्न कमांड के पास हाथी झरना या ऐलिफैंट फौल्स है. यहां के अन्य दर्शनीय स्थलों में मेरंगनोलखा रोड पर ग्रेनाइट की एक विशाल खड़ी चट्टान कैलौंग रौक है.
शिलौंग के पास गरम पानी का भी एक झरना है जो जैकरम के नाम से जाना जाता है. यहां के करीबी दर्शनीय स्थलों में चेरापूंजी भी है, जो सर्वाधिक बारिश झेलने वाला क्षेत्र है. हाल ही में चेरापूंजी का नाम बदल कर सोहरा रख दिया गया है. यहीं मनोरम पहाडि़यों के बीच एक प्राकृतिक गुफा है मौसिनराम. पास ही नोहकालीकाई झरना है. इस के अलावा प्राकृतिक रूप से मैग्मा से निर्मित एक प्रख्यात गुंबदाकार क्यालांग चट्टान भी यहीं है, जो शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र के लिए जानी जाती है.
मिजोरम से पड़ोसी मुल्क का नजारा
भारत का दूसरा साक्षर राज्य मिजोरम है. यहां की राजधानी आइजोल को पूर्वोत्तर का आखिरी छोर कहा जा सकता है. आइजोल 112 साल पुराना शहर है, जो कि समुद्रतल से लगभग 4 हजार फुट की ऊंचाई पर बसा है. प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसे मिजोरम में लकडि़यों से बने खास तरह के मकान देखे जा सकते हैं. घरों में और्किड फूलों की सजावट आम है.
यही नहीं, और्किड फूलों के विंडो बौक्स पूरे आइजोल में देखने को मिल जाते हैं. आइजोल में राज्य का एक म्यूजियम है, जहां मिजोरम की संस्कृति, राज्य का इतिहास, यहां के आदिवासियों की पोशाक से ले कर इन की सांस्कृतिक झलक देखने को मिलेगी. इस छोटे से शांत शहर से 204 किलोमीटर की दूरी पर चंफाई है. यहां से म्यांमार की पहाडि़यों का दूरदूर तक नजारा देखा जा सकता है.
आइजोल से 85 किलोमीटर की दूरी पर टाडमिल है जो लेक के लिए जाना जाता है. यहां बोटिंग की जा सकती है. यहां से 137 किलोमीटर की दूरी पर वानतांग नाम का एक जलप्रपात है. यह मिजोरम का सब से ऊंचा स्थान है. यहां थेंजोल हिल स्टेशन भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.
यहां के पहाड़ पर बहुत सारी विरल प्रजाति की वनौषधि, मसाले और विभिन्न प्रजाति के और्किड भी देखने को मिल जाते हैं. यहां डंपा अभयारण्य है, जहां हिरण, बाघ, चीता और हाथी जैसे जंगली जानवरों को देखा जा सकता है.
भारत के माथे की मणि मणिपुर
भारत के माथे पर मणि समान शोभायमान है मणिपुर. इस का 67 फीसदी हिस्सा खूबसूरत फूलों, हरीभरी वनस्पतियों और जंगलों से अटा पड़ा है. ये जंगल 900 मीटर से ले कर 2,700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं. यहां पाया जाने वाला सिरोई लिली दुनियाभर में प्रसिद्ध है. यहां लगभग 500 प्रकार के और्किड के पौधे पाए जाते हैं. रंगबिरंगे और्किड के फूल यहां की फिजा में चारचांद लगाते हैं.
आमतौर पर यहां के सभी घरों में रंगबिरंगे और्किड फूलों के गुलदस्ते देखने को मिल जाएंगे. यही नहीं, यहां की महिलाएं अपने बालों को और्किड के फूलों से सजाती हैं. जंगल के जीवजंतुओं में खास हैं-स्पौटेड लिंगशांग, बारबैक्ड कबूतर, लेपर्ड, बर्मी आदि. यहां कई किस्म के दुर्लभ पशुपक्षी भी पाए जाते हैं.
नागालैंड की सैर के बाद कोहिमा से सड़क के रास्ते मणिपुर जाया जा कता है. कोहिमा से चलने वाली बस सीधे इंफाल पहुंचाती है. इंफाल में मणिपुरी संस्कृति का पूरा नजारा देखने को मिल सकता है. टिकेंजित पार्क यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मारे गए ब्रिटिश-भारतीय सैनिकों की याद में यहां एक स्मारक है. यह स्मारक शहीद मीनार कहलाता है.
इस के अलावा मोइरांग के रास्ते पर एक जापानी युद्ध स्मारक भी है. यहां चिडि़याघर, म्यूजियम और विश्व का एकमात्र तैरता हुआ पार्क भी है. यह पार्क केइबल लामजाओ नैशनल पार्क के नाम से जाना जाता है. यहां के लोकटक और सैंट्रा नामक टापुओं को देखने के लिए पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं. मणिपुर के खास आकर्षण यहां की मार्शल आर्ट, नृत्य और मूर्तिकला हैं.
शूरवीरों की भूमि नागालैंड
जलप्रपातों, पहाड़ों के बीच बसा नागालैंड ट्रैकिंग, राफ्टिंग के शौकीनों के लिए बेहतरीन स्थल माना जाता है. इस राज्य का गेटवे दिमापुर है. हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन केवल यहीं है. हालांकि नागालैंड राज्य की राजधानी कोहिमा (144 किलोमीटर) है, लेकिन दिमापुर नागालैंड का मुख्य शहर माना जाता है. दिमापुर के करीब चुमुकेदिमा नामक एक टूरिस्ट विलेज कौंप्लैक्स है. यहां से पूरे दिमापुर को देखा जा सकता है. यहां से 74 किलोमीटर की दूरी पर दोयांग नदी के पास गवर्नर्स कैंप नामक टूरिस्ट स्पौट है. यहां पर्यटक रिवर राफ्ंिटग, फिशिंग, कैंपिंग करते हैं.
कोहिमा में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र अरदुरा पहाड़ पर लाल छतवाला कैथेड्रल चर्च है. इसे एशिया के सब से बड़े कैथेड्रल चर्च के रूप में जाना जाता है. यह लगभग 25 हजार वर्गफुट में फैला हुआ है. चर्च में बेथलेहम जैतून की लकड़ी से बनी सुंदर नाद आकर्षण का केंद्र है. दक्षिण में लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर दजुकोउ एक खूबसूरत घाटी है, जो फूलों के खूबसूरत गुलदस्ते जैसी है. यहां के एकोनिटम और एंफोबियस फूल की ख्याति दुनियाभर में है. दिमापुर से करीब सेइथेकिमा गांव में ट्रिपल फौल्स है, जो एक तिमंजिला झरना है. यह पर्यटकों और ट्रैकिंग के शौकीनों की पसंदीदा जगह मानी जाती है.
यहां का संग्रहालय नगा संस्कृति, स्थापत्य और यहां की सामाजिकसांस्कृतिक प्रथाओं को जानने में बहुत मददगार है. कोहिमा के दक्षिण में 15 किलोमीटर की दूरी पर जाफू पीक नामक पहाड़ है, जिस की ऊंचाई समुद्रतल से 3,048 मीटर है. नवंबर से मार्च तक इस पहाड़ की चढ़ाई की जा सकती है. लगभग 5 घंटों की ट्रैकिंग के बाद जाफू पीक पहुंचना संभव होता है.
जाहिर है ट्रैकर्स के लिए यह बड़ा आकर्षण का केंद्र है. यहां की पर्वत शृंखलाओं में रोडोडैंड्रौन पेड़ों की सब से ऊंची प्रजाति पाई जाती है. गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में रोडोडैंड्रौन ने अपना नाम दर्ज करा लिया है. ऊंचाई में यह पेड़ 130 फुट तक होता है और इस के तने का व्यास 11 फुट तक चौड़ा होता है.
जाफू पर्वत शृंखलाओं की चोटी से जुकोऊ वैली को देखा जा सकता है. यहां की जलधाराएं जाड़े के दिनों में जम जाती हैं. लेकिन गरमी के दिनों में यह वादी दुलहन की तरह सज जाती है. यहीं एक और दर्शनीय स्थल है मोकोकचुंगा, जो समुद्रतल से 1,325 मीटर की ऊंचाई पर बसा है. यहां से पूरे शहर का दृश्य देखा जा सकता है. कोहिमा से 80 किलोमीटर की दूरी पर संतरे और अनन्नास के लिए मशहूर शहर वोखा है. नागालैंड पहुंचने का रास्ता कोलकाता से हो कर गुजरता है. सियालदह से कंचनजंघा ऐक्सप्रैस से गुवाहाटी हो कर नागालैंड पहुंचा जा सकता है. इस के अलावा जनशताब्दी ऐक्सप्रैस से 5 घंटे का सफर कर के दिमापुर पहुंचा जा सकता है. दिमापुर घूम लेने के बाद 3 घंटे के सड़क के रास्ते कोहिमा जाया जाता है. हवाई रास्ते से भी दिमापुर पहुंचा जा सकता है, फिर सड़क के रास्ते कोहिमा.