पिछले साल मई जून में हम हैदराबाद घूमने गए थे. तपते सुलगते वे दिन आंध्रप्रदेश की राजधानी में जा कर इतने मनोरम बन जाएंगे, कल्पना भी नहीं की थी. राजीव गांधी इंटरनैशनल एअरपोर्ट से बाहर आते ही हरेभरे वृक्षों और फूलों से सरोकार हुआ तो तनबदन में ताजगी भर गई. एक तरफ पुराना शहर अपने बेजोड़ स्थापत्य से हमें लुभा रहा था, वहीं दूसरी ओर हाईटैक सिटी दिग्भ्रमित कर रही थी.

हैदराबाद 500 साल पहले बसा था. आज यह आंध्रप्रदेश की राजधानी है. मूसी नदी के किनारे बसे हैदराबाद और सिकंदराबाद को ट्विन सिटीज के नाम से जाना जाता है. यहां रेल मार्ग, सड़क मार्ग व हवाई मार्ग से जाया जा सकता है. यह तीनों रूट से वैलकनैक्टेड है.

गोलकुंडा फोर्ट

पहला कदम रखा हम ने गोलकुंडा फोर्ट पर. हैदराबाद के इस किले को कुतुबशाही शासकों ने बनवाया था. हम ने प्रवेश किया मुख्य दरवाजे से. इस का नाम फतेह दरवाजा है. यह इतना बड़ा है कि हाथी पर बैठा हुआ आदमी आराम से निकल जाए. ऊंची दीवारों और कई दरवाजों वाला यह किला अनूठा है. किले में 87 परकोटे हैं जिन पर खड़े हो कर सुरक्षाप्रहरी पहरा देते थे.

गोलकुंडा की दास्तान हो और उस में कोहिनूर की चर्चा न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता क्योंकि विश्वविख्यात कोहिनूर हीरे का असली घर गोलकुंडा किला है. यह दुनिया का सब से दुर्लभ और सब से बेशकीमती हीरा है, जो अब ब्रिटेन की महारानी के ताज में जड़ा हुआ है.

चारमीनार

हैदराबाद का नाम सुनते ही चारमीनार जेहन में आती है. ढलती शाम में चारमीनार का सौंदर्य देखते ही बनता है. हैदराबाद के व्यस्ततम बाजार लाड बाजार के बीचो बीच खड़ी यह इमारत कुतुबशाह द्वारा 1591 में बनवाई गई थी. चारमीनार के एक कोने पर स्थित देवी का मंदिर कौमी एकता को दर्शाता है.

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