जिससे भी पूछोगे एक ही जवाब मिलेगा, गर है वो हिन्दुस्तानी तो लाजवाब ही मिलेगा... हमारे देश की बात ही कुछ और है और देशवासियों की तो पूछिए ही मत. हां, इक्का-दुक्का दंगों और धर्म सुधारक दस्तों द्वारा किए गए हिंसा को छोड़ दें तो यहां के लोग बड़े ‘पाक’ दिल और नेक ख्यालात के हैं. इतने भोले हैं कि पत्थर को भी ईश्वर और मनुष्य को जानवर से बद्तर समझने लगते हैं...!
हम उस देस के वासी हैं जहां, गऊ को माता कहते हैं, पर जहां के लोग मां-बहन वाली गाली के बिना एक पल नहीं गुजार सकते. साल में दो दिन कन्या पूजन का विशाल आडंबर करते हैं और बाकि दिन उन्हीं को अपनी हवस का शिकार बनाने से नहीं चूकते. अब आप कहेंगे ये कौन सी नई बात है. हर रोज यही सब होता है. ये तो मामूली सी परेशानी है कि देश में बलात्कार हो रहे हैं, पर उससे बड़ी और सोचने पर मजबूर कर देने वाली बात यह है कि हम बलात्कार के आदी होते जा रहे हैं. हमें गैंग-रेप और बाल-उत्पीड़न की खबरें पढ़ने, सुनने, देखने की आदत हो गई है. खैर रंगीले देस में हर सुबह दिखने वाली धनक की छटा ही अनोखी है. फिर दंगे और बलात्कार तो रोज का किस्सा और हमारी जिन्दगी का हिस्स बन गए हैं...
चलिए समाज पर भाषण देकर आपको बोर करने के बजाय, मुद्दे की बात की जाए. जरा अपना बचपन याद करिए. किसी बच्चे के अटपटे नाम पर कितना चिढ़ाते थे सब उसे. अगर आप उनमें से कोई एक हैं, तो हमें आपसे पूरी हमदर्दी है. एक व्यक्ति के नाम पर उसे इतना चिढ़ाया जाता था, जरा सोचिए एक ऐसे शहर, गांव या बस्ती के बारे में जो अपने अटपटे नाम के कारण विश्व-विख्यात है.