फाइनल एग्जाम खत्म होते ही 10 साल की रिदिमा और 13 साल का निपुण खूब रोमांचित हो उठे थे. दोनों ने खूब मेहनत की थी और दोनों को अच्छे रिजल्ट की आशा थी. अपनी इस भरपूर मेहनत के लिए वे अपने पिता परेश की ओर से किसी विदेशी पर्यटन स्थल पर एक पखवाड़े के हौलीडे के इनाम की उम्मीद कर रहे थे. उन के परिवार का यह पहला विदेशी दौरा होने वाला था. असल में कपड़े के थोक व्यापारी परेश को पिछले साल भारी मुनाफा हुआ था और उस ने पत्नी नेहा और बच्चों से विदेश ट्रिप का वादा किया था. सब कुछ ठीक था, लेकिन 40 वर्षीय परेश ने यह महसूस नहीं किया कि उस के द्वारा ट्रिप के लिए अलग कर के रखी गई रकम काफी नहीं है. उस ने औफ या पीक सीजन और बच्चों की छुट्टियों को मद्देनजर रखते हुए ट्रिप की योजना बनाई थी. पर ट्रिप को फाइनालाइज करने में हुई देरी की वजह से एअरलाइंस टिकटों की कीमत बढ़ गई थी और लौजिंग यानी ठहरने का खर्च भी किफायती नहीं रह गया था.

परेश के लिए यह सांपछछूंदर वाली स्थिति थी. थोक विक्रेता होने के नाते उस के लिए व्यवसाय में से नकदी निकालना मुश्किल था, क्योंकि इस से उस की उधार दे सकने की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता था, साथ ही वह ट्रिप को स्थगित भी नहीं कर सकता था, क्योंकि इस से उस का परिवार मायूस हो जाता. परेश का मामला कोई अकेला मामला नहीं है. भारतवासी अच्छे हौलीडे प्लानर नहीं हैं. उन में चूक जाने की आम प्रवृत्ति है, कभी महज आलस की वजह से तो कभी वाजिब ध्यान न देने के कारण. ज्यादातर मामलों में लौजिंग ट्रिप के ठीक पहले बुक की जाती है और यात्रा के टिकट वास्तविक अवकाश के 2-3 हफ्ते पहले. इस ढिलाई के चलते शुरुआती बजट कभी पूरा नहीं पड़ता और सावधानी बरतने तथा अग्रिम रूप से प्लानिंग किए जाने पर कई लग्जरीज पर मिल सकने वाली छूट से वंचित रह जाना पड़ता है. अगर आप भी ऐसी परेशानी में नहीं पड़ना चाहते, तो एक कम लागत वाली और मजेदार वेकेशन प्लान करने के लिए निम्न टिप्स पर गौर करें:

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