गर्मियां आते ही लोग ऐसी जगहों पर जाना पसंद करते हैं, जहां पर बस उन्हें गर्मियों से मुक्ति मिल सके. इस वजह से ज्यादातर लोग उतराखंड और हिमाचल प्रदेश के हिल स्टेशनों को चुनते हैं. आज हम आपको औफबीट डेस्टिनेशन के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां जाकर न सिर्फ आप मजेदार छुट्टियां बिता सकते हैं बल्कि आप इस जगह के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं. हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के शहर मैनपाट की, जिसे ‘मिनी शिमला’ के नाम से भी जाना जाता है. मैनपाट की खास बातों में शामिल है आलू का पठार, शिमला सा मौसम, तिब्बतियों का बसेरा, हिलती हुई धरती, जमीन पर उमड़ते-घुमड़ते बादल.
ये जगहें हैं खास
मैनपाट का टाइगर प्वाइंट एक खूबसूरत झरना है. यहां झरना इतनी तेजी से गिरता है कि शेर के गरजने जैसी आवाज आती है. वहीं यहां के मेहता प्वाइंट में घाटी का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है. मछली प्वाइंट भी यहां की खूबसूरत जगहों में से एक है.
यहां कूदने पर हिलती है धरती!
मैनपाट के पास जलजली वो जगह है, जहां दो से तीन एकड़ धरती काफी नर्म है और यहां कूदने से धरती गद्दे की तरह हिलती है. जलजली के आसपास रहने वालों के मुताबिक कभी यहां जलस्रोत रहा होगा जो समय के साथ ऊपर से सूख गया और अंदर जमीन दलदली रह गई. यह एक टेक्निकल टर्म ‘लिक्विफैक्शन’ का एक उदाहरण है. वहीं इसका एक सिद्धांत ये भी है कि पृथ्वी के आंतरिक दबाव और पोर स्पेस (खाली स्थान) में सौलिड के बजाय पानी भरा हुआ है इसलिए यह जगह दलदली और स्पंजी लगती है.
मिनी शिमला के अलावा कहते हैं ‘छोटा तिब्बत’ भी
10 मार्च 1959 को तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद भारत के जिन पांच इलाकों में तिब्बती शरणार्थियों ने अपना घर-परिवार बसाया, उसमें एक मैनपाट है. मैनपाट के अलग-अलग कैंपों में रहने वाले ये तिब्बती यहां टाऊ, मक्का और आलू की खेती करते हैं. यहां के मठ-मंदिर, लोग, खान-पान, संस्कृति सब कुछ तिब्बत के जैसी है, इसलिए इसे मिनी तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है.
कैसे पहुंचे
मैनपाट पहुंचने के लिए अंबिकापुर-रायगढ़ राजमार्ग से होते हुए काराबेल नामक स्थान से घूमकर जाने पर 85 किमी तथा अंबिकापुर से दरिमा हवाई अड्डा मार्ग से जाने पर 50 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है. राजधानी रायपुर से इसकी दूरी करीब 390 किमी है. अंबिकापुर जिला मुख्यालय आकर टैक्सी या बस से यहां पहुंचा जा सकता है.