आए ठहरे और रवाना हो गए, जिन्दगी क्या है सफर की बात है...
रोजाना बस से, ट्रेन से या मेट्रो से 9 से 5 की नौकरी करने के लिए किया जाने वाला सफर, सफर नहीं कहलाता. गौरतलब है कि, जिन्दगी है तो जिए जा रहे हैं... मशीनी दुनिया की मशीनी आदतों की बलिहारी, चंद लम्हें खुद के लिए निकालना कोई गुनाह तो नहीं है. और चंद लम्हें खुद के लिए निकालने का मतलब किसी रिश्तेदार के यहां चाय-बिस्किट खाने जाना कभी नहीं होता, न ही 1 हफ्ते की छुट्टियां लेकर किसी भीड़-भाड़ वाले पर्यटन स्थल की यात्रा, सुकून देती है. ऐसी यात्रा में मजा बहुत आता है, इसमें कोई शक नहीं है. पर अगर इंसानों से ही बचना था तो भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाने का कोई तुक नहीं है.
तो क्यों न किसी ऐसी जगह की यात्रा की जाए, जहां इंसानी चहल-पहल कम हो पर प्राकृतिक सौंदर्य दोगुना हो? आराम से कुछ दिन बिताने हैं तो धारचूला जरूर जाएं. यह जगह इंसानों के बीच उतनी लोकप्रिय नहीं हो पाई है, शायद इसलिए अभी तक शोषित होने से बची हुई है.
धारचूला उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बसा एक खूबसूरत शहर है. हां, शहर के बाशिंदों को यह शहर नहीं लगेगा, क्योंकि यहां शहर जैसी सुविधायें नहीं हैं पर यहां की खूबसूरती कॉन्क्रीट के जंगलों में उपलब्ध सुविधाओं के सामने कुछ नहीं है. हिमालय की पहाड़ियों के बीचों-बीच बसा है धारचूला. यहां के स्थानीय निवासियों के अनुसार किसी जमाने में यहां से कई व्यापारी मार्ग होकर गुजरते थे. यह चारों तरफ से हिमालय की खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ बेहद खूबसूरत कस्बा है.