हैदराबाद की सोंधी बिरयानी की ही तरह यहां का इतिहास भी बहुत मजेदार है. निजामों का यह शहर दक्षिण भारत का सब से प्रसिद्ध नगर है. इस के प्रसिद्ध होने की कई वजहें हैं. सब से बड़ी वजह शहर से लगभग 11 किलोमीटर दूर स्थित गोलकोंडा का किला है. गोलकोंडा एक छोटा सा कसबा है. हीरे की खानों और उन में से निकले कोहिनूर और होप जैसे बेशकीमती हीरों के लिए मशहूर गोलकोंडा का अपना अलग ऐतिहासिक महत्त्व भी है.

गोलकोंडा में मौजूद दुर्ग आज भी कुतुबशाही के राजाओं की शानोशौकत की गवाही देते हैं. ग्रेनाइट की पहाडि़यों में 3 मील लंबी और मोटे पत्थरों की बनी मजबूत दीवारों से घिरा 8 दरवाजों वाला यह दुर्ग, अपने प्राचीन गौरव की गाथा सुना, लोगों को अतीत में धकेल देता है.

इस विशाल किले को अकेले देखना बोरियतभरा हो सकता है, मगर एक गाइड की सहायता से इस किले को देखा जाए तो किले के महत्त्वपूर्ण स्थानों व उन से जुड़ी जानकारियों का लुत्फ उठाया जा सकता है. यहां आसानी से मात्र 750 रुपए में अंगरेजी और हिंदी भाषा बोलने वाले गाइड मिल जाते हैं.

गाइड गोलकोंडा किले को दिखाने की शुरुआत किले के सब से रोचक स्थान से करता है. यह स्थान है फतेह दरवाजा. यहां ध्वनिक आभास किया जा सकता है. इस के लिए गाइड जोर से ताली बजा कर दिखाता है, जिस की गूंज किले के हर कोने में सुनाई देती है.

गाइड इस तकनीक से जुड़ी कहानी भी सुनाता है. जिस के अनुसार, कुतुबशाही काल में सैनिक आपातकालीन स्थिति में ताली बजा कर राजा को दुश्मनों के आक्रमण का संदेश देते थे. ताली की गूंज दुर्ग के सब से ऊंचे स्थान पर बने राजा के कक्ष तक सुनाई देती थी.

इस रोचक किस्से को सुनाते हुए गाइड किले के दूसरी ओर बनी रामदास जेल दिखाने ले जाता है. इस जेल का नाम एक कैदी के नाम पर पड़ा है जो कुतुबशाही राज्य के दौरान प्रजा से कर वसूलता था और राजकोष में डाल देता था. मगर धनचोरी करने की वजह से उसे जेल में डाल दिया गया. इस जेल से एक और रोचक तथ्य जुड़ा हुआ है, वह यह है कि इस जेल में बौलीवुड फिल्म ‘तेरे नाम’ की शूटिंग हुई थी. पर्यटक इस तथ्य से खुद को आसानी से जोड़ लेते हैं, इसलिए फतेह दरवाजे के बाद किले का यह स्थान दूसरा सब से लोकप्रिय स्थान है.

इस तरह गाइड की मदद से पूरे किले को 3-4 घंटे में पूरा घूमा जा सकता है. मगर किले की सुंदरता निहारना और इतिहास जानना तब तक अधूरा है जब तक किले में होने वाला लाइट शो न देखा जाए. यह शो कुतुबशाही राजाओं की प्रेमकहानी और उन की वीरता की कहानी सुनाता है, जिसे देखनासुनना बेहद रोचक लगता है. इस शो के साथ ही किले की यात्रा पूरी हो जाती है.

चारमीनार और लाड बाजार चारमीनार को हैदरबाद का दिल कहा जाता है. कुतुबशाही वास्तुकला का अनुपम उदाहरण पेश करती इन मीनारों पर चढ़ कर पूरे हैदराबाद शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है. यह नजारा बेहद अद्भुत लगता है.

इस के अलावा चारमीनार के पश्चिमी ओर हलचल से भरी गलियों के इलाके को लाड बाजार कहा जाता है. यह बाजार नगों से जड़ी चूडि़यों के लिए प्रसिद्ध है. इस के अतिरिक्त यहां मोतियों के हार और मोतियों से बने सामान की दुकानें भी हैं. दिलचस्प बात यह है कि नगों वाली जो चूडि़यां दूसरे शहरों में ज्यादा कीमतों पर मिलती हैं, वही चूडि़यां लाड बाजार में बहुत ही सस्ते दामों में मिल जाती हैं.

मुंह में आ जाएगा पानी हैदराबाद के खाने में मुगलई, तुर्की और अरबी पाकशैली की झलक मिलती है. मगर बिरयानी हैदराबाद की संस्कृति का अटूट हिस्सा है.

सिकंदराबाद रेलवेस्टेशन पर उतरते ही रेलवे के कैफेटेरिया से ले कर पूरे शहर में बिरयानी हर होटल के मेन्यूकार्ड में अव्वल नंबर पर होती है. मगर होटल पैराडाइज की कच्चे गोश्त वाली बिरयानी यहां काफी प्रसिद्ध है. यहां के प्रमुख व्यंजनों में हलीम, पाया और हैदराबादी मुर्ग आदि लाजवाब हैं. हैदराबाद के इतिहास से ले कर पकवान तक पर्यटकों पर इतना गहरा प्रभाव डालते हैं कि इस शहर में बारबार आने का दिल करने लगता है.

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