अगर आपको भी इतिहास में रूचि है तो आप भी एक बार मेहारानगढ़ उन्हीं जरूर जाएं. राजस्थान के अन्य किलों की ही तरह, जोधपुर का मेहारानगढ़ किला भी राजसी ठाठ का एक नमूना है जो राजपूतों के राज में बनाया गया था. राजपूत शासक महाराजा राव जोधा सिंघ को जोधपुर के पास ही मारवार के 1000 साल पुराने मांडोर के किले में रहना सुरक्षित नहीं लगता था.
राजा अपनी राजधानी जोधपुर में ले आए जो उन्हें मारवार से ज्यादा सुरक्षित लगता था. सन् 1459 में उन्होंने मेहारानगढ़ किले की त्रुटिहीन रचना की नींव रखी.
इस बड़े से किले के परिसर को भौचीरिया(चिड़ियों का पहाड़) पहाड़ पर बनवाया गया. वहां ऐसा माना जाता है कि, उस पहाड़ पर रहने वाले इकलौते इंसान, चीरिया नाथजी, पक्षियों के भगवान को जब वह जगह छोड़ कर जाने को कहा गया तब उन्होंने जोधपुर की भूमि को श्राप दिया की इस जमीन पर हमेशा पानी की कमी की परेशानी रहेगी. हालांकि उसके बाद राजा ने उस साधु के लिए किले के पास ही एक मंदिर और रहने को घर बनवा दिया, फिर भी जोधपुर में आज भी सूखे के मार झेलनी ही पड़ती है.
मेहारानगढ़ किले का यह बड़ा सा परिसर जोधपुर शहर से 400 फीट उपर बसा हुआ है. चारों तरफ से आलीशान महलनुमा संरचनाओं और आंगन से घिरे हुए इस किले में राजपूतों के आर्किटेक्चर स्टाइल की झलक दिखती है.
इस किले में 7 फाटक हैं, जिनमें से 4 फाटक शासकों की विजय का जश्न मानने के लिए बनाए गये थे. ये 4 फाटक हैं, जय पोल, फतेह पोल, डेढ़ काम्ग्रा पोल और लोहा पोल जिनका अपना ही ऐतिहासिक महत्व है. इस किले के अंदर मोती महल, शीशा महल, फूल महल, सिलेह खाना और दौलत खाना है.