प्लेन जब म्यांमार की राजधानी यांगोन पहुंचने से पहले म्यांमार के पानी से भरे हुए खेतों के ऊपर विशाल घंटों के आकार के बने बौद्ध मंदिरों और पैगोडाओं के ऊपर से गुजर रहा था, तब मैं बाहरी दुनिया से लगभग कटे हुए और हर जगह सैनिकों से घिरे हुए लोगों की कल्पना कर रहा था. पर क्या मेरी यह कल्पना सही थी? म्यांमार में कुछ दिन रहने के बाद मेरी कल्पना गलत साबित हो गई.
कहने की आवश्यकता नहीं कि आज का म्यांमार (1989 में बर्मा का नाम बदल कर म्यांमार कर दिया गया) अपने पड़ोसी एशियाई देशों की तुलना में 20 या 21 भले ही न हो, उन के बराबर कदम मिलाने की दिशा में आगे अवश्य बढ़ रहा है. वहां भी शहरों में सैटेलाइट डिश जगहजगह दिखाई पड़ती हैं जिन से अमेरिकी सीएनएन के साथ ही कोरियाई सोप कार्यक्रम और सीरियलों का प्रसारण चौबीसों घंटे होता रहता है. इस के साथ ही उस के प्राकृतिक संसाधनों सोना, रूबी, पैट्रोल, गैस और लकड़ी आदि से तो अच्छीखासी विदेशी मुद्रा मिलती ही है, चीन से उस का व्यापार भी बराबर बढ़ रहा है.
राजधानी यांगोन (रंगून नाम बदल कर अब यांगोन कर दिया गया है) के साथ ही अन्य शहरों में भी व्यापारी व नौकरीपेशा लोग साफसुथरे सारोंग (म्यांमार की पोशाक) और धुली कमीज पहने मोबाइल पर बात करते नजर आते हैं. उपनिवेशकालीन विशाल भवनों के साथ ही फ्लैटों के आधुनिकतम बहुमंजिलीय ब्लौक भी जगहजगह दिख जाते हैं. पर यूरोपीय रंगढंग में रंगे आज के म्यांमार की राजधानी ठेठ एशियाई भी है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता.