‘‘हमें जरमनी में रहते 5 साल बीत गए,’’ मैं ने मधुकर से कहा, ‘‘मुझे घर की बहुत याद आ रही है.’’
इतने में दरवाजे की घंटी घनघना उठी. दरवाजा खोला तो एक आवश्यक डाक इन के नाम से आई थी. लिफाफा खोल कर देखा तो ब्राजील सरकार की ओर से अनुरोधपत्र था कि संसार के सब से बड़े पनबिजली योजना के संचालन में आप की आवश्यकता है.
पत्र पढ़ कर आश्चर्य हुआ. ब्राजील का नाम सुनते ही मन में आया काफी, सांबा डांस फुटबाल और अमेजन के जंगल.
अगले दिन जरमन दोस्तों से बात हुई. उन्होंने कहा, ‘‘ब्राजील की सड़कों पर सांप और जंगली जानवर चलते हैं और आप को पता नहीं आमजोना की जनजाति कितनी खतरनाक है.’’
कई सारे हां और ना में से निकलते- निकलते हम दोनों एक दिन साओ पावलो के कोंगोइयास हवाई अड्डे पर उतर गए.
जरमनी से कितना भिन्न है यह देश. चमकता हुआ सूरज हिंदुस्तान की याद दिला रहा था. हंसतेमुसकराते चेहरे, गोरे और श्यामरंगी, काले केश वाले अफ्रीकी मूल के लोग सब अपनेअपने काम से कदम बढ़ाते हुए नजर आ रहे थे. ऐसा बहुरंगी सड़क का दृश्य था.
दोना मरिया (मरिया दीदी) ने मुसकराते हुए हम दोनों से हाथ मिलाया फिर गले लगाया. ‘मोयतो प्राजेर, मोयतो प्राजेर’ से हमारा स्वागत किया, यानी बड़ी खुशी हुई, बड़ी खुशी हुई. सुर और ताल से भरी पोर्तगीज भाषा कानों में बड़ी सुरीली लगती है.
आज का भोजन दोना मरिया परिवार के साथ था. मेज स्वादिष्ठ पकवानों से सजी थी, सोपा (सूप), आरोज (चावल), फिजाऊं (राजमा), ओवो (अंडा), सलादा (सलाद), फ्रांगो (चिकन), सोब्रे मेजा (मीठा पकवान) और जूस, ये सब देख कर मन खुश हो गया. रोज का खानापीना ब्राजील में एक महोत्सव जैसा ही होता है.