हमारा देश आज किसानों का देश कहलाता है, पर एक वक्त था जब हमारा देश कारीगरों का देश था. यहां की कारीगरी और सोने पर ही तो विदेशी मुग्ध हो गए थे. वो आए और देश के टुकड़े-टुकड़े कर के चले गए. बाकी रह गईं तो बस कुछ टूटी फूटी निशानियां. इनमें से कुछ को तो संरक्षित कर लिया गया है पर कुछ अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. इन्हीं संरक्षित निशानियों में से एक है कुम्भलगढ़ किला. राजपूत अपनी आन बान शान और देश पर मर मिटने की भावना के लिए जाने जाते हैं और राजपूती आन बान शान का प्रतीक है कुम्भलगढ़ किला. चित्तौड़गढ़ किले के बाद यह राजस्थान का दूसरा सबसे विशाल किला है.
उदयपुर से 82 किमी की दूरी पर बसा यह किला मेवाड़ के कई राजाओं का घर था. समय समय पर यहां मेवाड़ के कई राजाओं ने वास किया था. दस्तावेजों की कमी के कारण इस किले के शुरुआती इतिहास के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस स्थान पर राजा सम्प्रति ने किले का निर्माण करवाया था, पर इसके बाद के इतिहास के बारे में कोई खास जानकारी उपलब्ध नहीं है.
द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया
चीन के पास दुनिया की सबसे लंबी दीवार होगी, पर भारत में विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार है. यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में भी कुम्भलगढ़ किले का नाम शामिल है. महाराणा कुम्भा ने 15वीं शताब्दी में इस किले को राजा सम्प्रति द्वारा बनाए गए दुर्ग के अवशेषों पर बनवाया था. यह समुद्रतल से 1100 फीट की ऊंचाई पर अरावली पर्वत श्रेणियों पर बना है. 19वीं सदी तक इसका विस्तार किया गया.19वीं शताब्दी के दौरान महाराणा फतेह सिंह ने इसकी मरम्मत करवाई. कुम्भलगढ़ किले की दीवार 36 किमी लंबी है.