दिल्ली... दिलवालों का शहर. इस शहर की भी अपनी कहानियां हैं, और हर कहानी के अपने मायने हैं. अगर इतिहास की बात करें, तो जिस महाकाव्य में इस शहर का सबसे पहला जिक्र मिलता है, उससे इस शहर की उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है. अगर देखा जाए तो इसकी हर ईंट में कोई न कोई कहानी है. किसी गरीब की रोटी की तलाश की कहानी या फिर किसी राजा के राज्यों को पाने की कभी न मिटने वाली भूख की कहानी.

दिल्ली ने बहुत कुछ देखा है, और देख रही है. इतिहासकारों की माने तो दिल्ली में ही सात राजधानियां बनी और वीरान भी हो गईं... आज के राजा भी तो दिल्ली में ही निवास करते हैं. कहने को ही ‘डेमोक्रेसी’ है अपने देश में. इसका सबूत आए दिन होने वाले चुनाव दे ही देते हैं. खैर मामला राजनीतिक नहीं है, और वैसे भी इस पर ज्यादा बात करना या लिखना लड़कियों को ‘शोभा नहीं देता’.

दिल्ली आए कई महीने हो गए हैं. पर पहचान की तलाश में और अपने पैरों पर खड़े होने की जिद्द और ‘सो-कॉल्ड जर्नलिस्ट’ बनने के ख्वाब ने कुछ समय के लिए मगज से यह बात निकाल दी थी कि मैं देश की राजधानी में हूं. ख्याल आते-आते कई महीने बीत गए. और एट द ऐंड कंपनी द्वारा दिए गए एकमात्र कैजुअल लीव का पूर्ण उपयोग करने की सोची.

दिल्ली जैसा बड़ा शहर और घूमने के लिए इतनी सारी जगह, जाएं तो जाएं कहां ? 2 घंटे की माथा-पच्ची के बाद भी ज्यादा कुछ समझ नहीं आया. जगह इतनी सारी और वक्त न के बराबर. यदा कदा विचार आया कि दिल्ली की पहचान ‘इंडिया गेट’ होकर आया जाए. वैसे भी ‘रंग दे बसंती’ से लेकर ‘क्वीन’ जैसी कई फिल्मों में इसे दिखाया जा चुका है.

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