आमतौर पर हम हिंदुस्तानी किसी भी मामले में सबसे पहले और सबसे ज्यादा नकारात्मक बातें सुनते हैं. औनलाइन गेम्स, वर्चुअल गेम्स या वीडियो गेम्स के संबंध में भी यही सच है. जिस किसी भी से बात करिए, वह इसके नुकसानों का पिटारा खोल देगा. शायद ही सौ में कोई एक दो ऐसे लोग मिलें, जिनके पास इन खेलों को लेकर कोई सकारात्मक बातें भी हों. जबकि पश्चिमी दुनिया में, जहां इन खेलों की खोज और उनमें तमाम विकास हुए हैं, वहां ऐसा नहीं है. गोकि वहां भी मनोविद और समाजशास्त्री इनकी अति और लत पर इनके नुकसानों पर प्रकाश डालते हैं. लेकिन वे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि ये खेल कब नुकसानदायक हो जाते हैं. वरना तो ये साफ कहते हैं कि सजगता से अगर इनके साथ दो चार हुआ जाए तो ये नुकसान की बजाय, हमारे विशेषकर बच्चों के मानसिक विकास में बहुत सकारात्मक भूमिका निभाते हैं. ये तमाम खेल वास्तव में मस्तिष्क को तेज या प्रखर करते हैं. तभी तो इन्हें दिमाग की खुराक भी कहा जाता है.
आगे बढ़ने से पहले एक बात यह समझ लीजिये कि ऊपर हमने जिन तीन नामों के खेलों यानी वर्चुअल गेम्स, औनलाइन गेम्स और वीडियो गेम्स का जिक्र किया है, वे दरअसल तीन किस्म के अलग-अलग खेल नहीं बल्कि एक ही खेल के तीन भिन्न-भिन्न संस्करण या टेक्नोलोजी के स्तर पर एक ही खेल के तीन अलग-अलग चरण हैं. ये तीनों ही खेल आंशिक रूप से या मुख्य रूप से इंटरनेट या किसी अन्य कंप्यूटर नेटवर्क के माध्यम से ही खेले जाते हैं. कहने का मतलब इन्हें खेलने या खेल सकने के लिए कंप्यूटर नेटवर्क का होना जरूरी है. आज की तारीख में इनका ऑनलाइन वर्जन सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. इन खेलों का डिजाइन सरल पाठ-आधारित वातावरण से लेकर जटिल ग्राफिक्स और आभासी दुनिया के समावेश तक तक का हो सकता है. कई ऑनलाइन गेम अपने स्वयं के ऑनलाइन समुदाय बनाते हैं, जबकि अन्य गेम, विशेष रूप से सामाजिक गेम, खिलाड़ियों के मौजूदा वास्तविक जीवन के समुदायों को एकीकृत करते हैं.
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पबजी, फोर्टनाइट जैसे गेम्स पिछले काफी दिनों से खूब चर्चा में है. पिछले साल मार्च में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ‘परीक्षा पर चर्चा’ कार्यक्रम में भी इनका जिक्र किया था. आज की तारीख में कई चाइल्ड काउंसलर, पढ़ाई में बच्चों की रुचि बढ़ाने के लिए ऐसे गेम्स के साथ उनके जुड़ाव को प्रोत्साहित किये जाने या इनके जरिये काफी कुछ सीखने की वकालत कर रहे हैं. चूंकि ये गेम्स बच्चों की मेंटल एक्टिविटीज को चैलेंज करते हैं, इसलिए ये बच्चों को आकर्षित भी करते हैं और उनके दिमाग को तीक्ष्ण भी करते हैं. शायद इन खेलों की सबसे बड़ी यूएसपी इनका चैलेंजिंग एप्रोच ही है. इसीलिये ऑनलाइन गेम्स में सबसे ज्यादा उन्हें पसंद किया जाता है जिनमें मेंटल चैलेजिंग स्प्रिट होती है. किशोरों के बीच खूब पंसद किया जाने वाला एक गेम स्क्रेबल है. वास्तव में यह गेम्स में अल्फाबेट के द्वारा शब्द बनाने की एक्टीविटीज है जो कि जैसे जैसे हम आगे बढ़ते हैं जटिल होती जाती है. इसलिए यह बच्चों को बहुत पसंद आता है. देखा यह भी गया है कि ऐसे चैलेंजिंग गेम अगर अप्रत्यक्ष रूप में मनोरंजक भी हों तो सोने में सुहागा होता है, क्योंकि वह बच्चों को कहीं ज्यादा पसंद आते हैं. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर नॉलेज, मेंटल एबिलिटीज और मैमोरी बढ़ाने वाले गेम्स हमेशा सबसे ज्यादा पसंद किये जाते हैं.
वैसे तकनीकी का फ्लेवर भी युवाओं को खूब पसंद आता है. यही वजह है कि तमाम पारंपरिक खेल भी ऑनलाइन के रूप में आकर बच्चों को बहुत पसंद आते हैं. जैसे ऑनलाइन वर्जन में आने के बाद लूडो और चैस का क्रेज फिर से बच्चों में अच्छा खासा दिखने लगा है. पजल्स गेम्स सिरीज में माइंड पजल्स, आई क्यू पजल्स, माइंड बेंडिंग, नंबर पजल्स, वर्ड सर्च, सूडोकू जैसे गेम्स भी माइंड को शॉर्प बनाने के लिए काफी पंसद किए जाते हैं. खेलों के मनोविज्ञान की समझ रखने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक ऑनलाइन गेम लर्निंग बिहेवियर को बेहतर कर सकते हैं. ये गेम्स बच्चों की मेमोरी बढ़ाने में काफी हद तक मददगार होते हैं. वास्तव में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर नॉलेज, मेंटल एबिलिटिज और मैमोरी बढ़ाने वाले कई गेम्स आ चुके हैं. ऐसे गेम्स खेलकर बच्चों में तर्कशक्ति विकसित करने की क्षमता पैदा होती है.
सवाल है ये खेल इतनी तेजी से लोकप्रिय क्यों हो रहे हैं. इसके पीछे एक कारण हमारी बदलती जीवनशैली भी है. वर्चुअल गेम्स आज इसलिए भी, खासकर शहरों में बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, क्योंकि इनके लिए साथी खिलाड़ी की जरूरत नहीं पडती. सिर्फ एक कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट या मोबाइल फोन पर इन्हें अकेले खेलते रहा जा सकता है. यही वजह है कि आजकल आप अपने इर्द-गिर्द नजर डालें तो नयी पीढ़ी के तमाम किशोर वर्चुअल गेम्स में डूबे नजर आते हैं. इसकी एक वजह बड़े शहरों में खेलों के लिए आउटडोर स्पेस का लगातार कम होते जाना है. खासकर मुंबई, दिल्ली, बंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों की बात करें तो यहां पहले भी इसी वजह से काफी इंडोर गेम्स विकसित हुए हैं. मुंबई में तो लंबे समय तक कैरम सबसे पसंदीदा इंडोर गेम रहा है. एक जमाना था जब मुंबई में तमाम चॉल और सोसायटीज में लोग कैरम खेलते हुए खूब दिखा करते थे. तमाम चॉल्स में तो कैरम की अड्डेबाजी जमती थी. मगर इंटरनेट और एंड्रोयड के बाद इंडोर गेम्स की यह पुरानी पसंद अलविदा हो गयी है.
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आजकल तो कंप्यूटर से लेकर मोबाइल तक में सॉलिटेयर, हार्ट, कैंडी क्रश सागा, सब-वे सर्फर, टेंपल रन, रोड फाइटर, गैलैक्सी, ऐज ऑफ एंपायर्स, आस्फाल्ट-8, हिल क्लाइंब, कट द रोप, व्हेयर इस माई वॉटर, चेस और एंग्री बर्ड्स जैसे गेम्स में नौजवान पीढ़ी को खूब भा रहे हैं. इन सभी गेम्स ने ऐसा रंग जमाया है कि पुराने वाले इंडोर गेम्स गायब हो गए हैं. गेम जीतने और ज्यादा से ज्यादा लेवल पार करके ज्यादा से ज्यादा पॉइंट्स हासिल करने का ऐसा क्रेज हो गया है कि लोग घंटों तक इन गेम्स से चिपके रहते हैं, फेसबुक और वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन गेम्स में अपनी उपलब्धियों को शेयर करना भी एक ट्रेंड बन गया है. अब तो कोई भी गेम यह ध्यान में रखकर बनाया जाता है कि वह मोबाइल या कंप्यूटर, किस प्लेटफॉर्म पर ज्यादा खेला जाएगा.
सुपरहिट गेमिंग का फंडा यह है कि गेम सीखने में आसान, लेकिन खेलने में मुश्किल होना चाहिए. गेम में यह खूबी भी होनी चाहिए कि किसी को खेलते देखकर दूसरे भी उसे खेलने के लिए लालायित हो जाएं. इसी वजह से तमाम नये गेम बहुत जल्दी लोकप्रिय हो जाते हैं. चैटिंग और ब्लॉगिंग की दुनिया में खोए रहने वालों में भी अब ऑनलाइन गेमर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है. हालांकि सिर्फ इनसे दिमाग तेज ही नहीं होता कई बार कुंद भी होता है मसलन वर्चुअल गेम्स खेलने वालों के व्यक्तित्व में कई तरह की कमियां पायी गयी हैं. अकेले खेलने की वजह से जीत या हार के पलों में स्वाभाविक प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाते. इनमें खेल भावना और सहनशीलता का अभाव हो जाता है. अपने मन के मुताबिक कुछ न होने पर वे बहुत जल्दी उत्तेजित, उद्वेलित और नर्वस हो जाते हैं. इस सबके चलते इनमें अपने परिवेश से बाहर के लोगों के साथ बातचीत करने में आत्मविश्वास की कमी दिखती है.