हाल ही में उत्तराखंड के रुड़की के नारसन बौर्डर पर क्रिकेटर ऋषभ पंत भीषण कार हादसे का शिकार हुए और उन्हें देहरादून के मैक्स अस्पताल में भरती कराया गया. वहां कुछ दिनों तक उन का इलाज चला. इस दौरान ऋषभ पंत और उन के घर वाले इस वजह से परेशान रहे क्योंकि उन्हें मिलने के लिए लगातार लोग आते रहे. मिलने आने वालों की बढ़ती संख्या के कारण ऋषभ पंत आराम नहीं कर पा रहे थे.

दरअसल, ऋषभ पंत के घायल होने की सूचना से उन के फैंस चिंतित हो गए. प्रसिद्ध व्यक्ति होने के कारण कुछ खास लोगों के अलावा फैंस भी उन के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए अस्पताल पहुंचने लगे. खास लोगों में विधायक, मंत्रियों, अधिकारियों के साथसाथ कुछ फिल्म अभिनेता तक ने मैक्स अस्पताल पहुंच कर ऋषभ पंत का हालचाल जाना. आगंतुकों की इस भीड़ की वजह से घायल ऋषभ और उन के परिजन थोड़े असहज हो उठे.

ऋषभ पंत के परिजनों का कहना था कि लोग निर्धारित घंटों के बाद भी उन से मुलाकात करने आ रहे थे. पंत के स्वास्थ्य की देखभाल कर रही मैडिकल टीम के एक सदस्य का कहना था कि ऋषभ को आराम करने के लिए पर्याप्त समय मिलना आवश्यक है. शारीरिक के साथ मानसिक रूप से भी उन्हें आराम की जरूरत है. दुर्घटना में लगी चोटों के कारण वे दर्द में थे.

मिलने आने वाले लोगों से बात करने से उन की ऊर्जा खत्म हो जाती थी. इस ऊर्जा को उन्हें तेजी से ठीक होने के लिए उपयोग में लाना चाहिए. अंतत: डाक्टर को कहना पड़ा कि जो लोग उन से मिलने की योजना बना रहे हैं उन्हें अभी इस से बचना चाहिए. ऋषभ पंत को उन्हें आराम करने देना चाहिए.

एक अहम उद्देश्य अस्पताल में आने का समय सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक और शाम 4 बजे से शाम 5 बजे तक था. इस समय सीमा में केवल एक विजिटर मरीज से मिल सकता है. ऋषभ पंत का मामला एक हाई प्रोफाइल मामला होने की वजह से काफी अधिक लोग मिलने आ रहे थे. इसलिए यह एक बड़ी समस्या बन गई.

सिर्फ प्रसिद्ध व्यक्ति ही नहीं अपना कोई परिचित या रिश्तेदार भी बीमार हो जाता है तो शिष्टाचारवश हम उस से मिलने, उस का हौसला बढ़ाने या उस की मदद करने अस्पताल पहुंच जाते हैं. कोविड-19 में जब लोगों का घरों से निकलना बंद था तो हम वीडियो कौलिंग पर एकदूसरे का हालचाल पूछ रहे थे. बीमार व्यक्ति से मिलने जाने का एक अहम उद्देश्य यह भी होता है कि बीमार को ऐसा नहीं लगे कि वह दुखदर्द में अकेला है. हम मुख्य रूप से उस की हिम्मत बढ़ाने और यह जताने के लिए जाते हैं कि वह अकेला नहीं और हम इस परेशानी के समय में उस के साथ हैं.

मगर मरीज के प्रति हमारी यह चिंता कभीकभी मरीज के लिए ही कठिन पड़ जाती है. इसलिए अस्पताल में किसी बीमार व्यक्ति से मिलने जाना हो तो हमें इन सामान्य ऐटिकेट्स का खयाल रखना चाहिए:

सही समय पर जाएं

जाने से पहले अस्पताल में मुलाकात का समय ज्ञात कर लें. प्रत्येक हौस्पिटल में मिलने का समय निर्धारित होता है. हमें उस नियम का हमेशा पालन करना चाहिए. सब से पहले हमें वार्ड बौय से मरीज से मिलने की अनुमति लेनी चाहिए. जो समय हमें दिया जाता है उसी समय में मरीज से मिलने जाना चाहिए. हमें डाक्टर के हौस्पिटल राउंड, मरीज के खाने के समय, हौस्पिटल सैनिटेशन या मरीज की साफसफाई के समय उस के पास जाने से बचना चाहिए.

पूरी कोशिश करें कि आप सही समय पर अस्पताल पहुंचें और उचित समय पर वहां से लौट सकें. गलत समय पर जाने से से न तो आप मरीज की मदद कर पाएंगे और न ही कोई बात हो पाएगी.

भीड़ न लगाएं

जहां तक संभव हो बीमार व्यक्ति के पास भीड़ न लगाएं. डाक्टर के विजिट का समय हो तो चुपचाप बाहर निकल आएं. परिजनों और डाक्टर को ही बीमार के पास रहने दें.

दूसरों का भी खयाल रखें

बीमार को ज्यादा बोलने के लिए न उकसाएं. हंसीमजाक कर के माहौल को हलका करने की गलतफहमी न रखें. अस्पताल में और भी मरीज होते हैं जो हो सकता है गंभीर स्थिति से जू?ा रहे हों. उन का भी खयाल रखें.

जब बीमार कोई महिला हो

यदि आप बीमार महिला से मिलने जा रहे हों तो विशेष ध्यान रखें. बिना पूछे हरगिज कमरे में प्रवेश न करें. बीमार के पास बहुत ज्यादा देर न बैठें. इलाज के दौरान कई तरह के मैडिकल उपकरण महिला की मदद को लगे होंगे जिन के कारण उन की स्थिति अस्तव्यस्त हो सकती है. ऐसे में हो सकता है कि वह महिला या उस के परिजन आप की उपस्थिति में कुछ असहज महसूस करें. इसलिए मदद के लिए भी जाना हो तो बस कुछ पल बैठें और बाहर आ जाएं. बाहर परिजनों से बात कर सकते हैं.

हौस्पिटल स्टाफ से सही व्यवहार करें

अस्पताल पहुंचने पर वहां के कर्मचारियों जैसेकि वार्ड बौय, नर्स, डाक्टर, वार्ड सिस्टर, रिसैप्शनिस्ट वगैरह सभी से अच्छा व्यवहार करना चाहिए क्योंकि अस्पताल में वे सब मरीज का खयाल रखते हैं. उन के काम में बाधा पहुंचाने की कोशिश कभी न करें. इलाज के बाद मरीज को लगाए गए उपकरणों के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ न करें. डाक्टर से फुजूल बात न करें. जानपहचान निकालने की कोशिश में उन का समय बरबाद न करें.

पेशैंट रूम को पिकनिकरूम न बनाएं

अकसर हम कई लोग मिल कर अस्पताल जाते हैं और अपने साथ मरीज के लिए फलाहार के साथसाथ और कई तरह की खानेपीने की चीजें भी ले जाते हैं. इस तरह एक तरह से हम पेशैंटरूम को पिकनिकरूम की तरह बनाने का इंतजाम कर लेते हैं. मगर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बीमारी सामान्य हो या गंभीर, ज्यादातर मामलों में मरीज को सब से अधिक नुकसान दूसरे लोगों से होने वाला इन्फैक्शन ही पहुंचाता है.

एक समय में एक से ज्यादा व्यक्ति मरीज से मिलने न जाएं. यदि खानेपीने के लिए मरीज को कुछ देना चाहते हैं तो पहले डाक्टर या डाइटीशियन से पूछ जरूर लें. बेहतर होगा कि आप मरीज के लिए नहीं बल्कि उस की तीमारदारी कर रहे परिजनों के लिए घर से कुछ बना कर चायनाश्ता आदि ले जाएं. उन्हें इस वक्त इन की जरूरत होगी.

साफसफाई का रखें ध्यान

मरीज से मिलने जाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन या हैंडवाश से धो लें. सब से अधिक इन्फैक्शन बैक्टीरिया युक्त नाखूनों और हाथों से ही फैलते हैं. खुद को सैनिटाइज करने के बाद ही मिलने जाएं. बेहतर होगा कि मास्क भी पहन कर जाएं. इजाजत मिलने पर ही मरीज के करीब जाएं वरना परिजनों से बातचीत कर के ही हालचाल जान लेना बेहतर होगा.

नकारात्मक बातें न करें

अकसर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के मरीजों से मिलने जाने पर लोग नकारात्मक बातें करने लग जाते हैं. मरीज के सामने बीमारी के खर्चे, जीनेमरने आदि की बातें करना गलत है. हम चिंता जताते हुए अचानक किसी ऐसे केस के बारे में बात कर जाते हैं जिस में कैंसर पीडि़त की मौत हो गई हो. जरा सोचिए उस समय कैंसर ग्रस्त मरीज पर क्या बीतती होगी.

किसी भी बीमारी से ग्रस्त मरीज के सामने हमेशा सकारात्मक और हौसला बढ़ाने वाली बातें ही करें. मरीज को आप के प्यार और प्रोत्साहन की जरूरत है, आप की सलाह और दिशानिर्देशों की नहीं. हमें यह जरूर खयाल रखना चाहिए कि वह व्यक्ति पहले से ही अपनी बीमारी से परेशान है. उसे और ज्यादा परेशान करने की जरूरत नहीं है.

अपने ज्ञान पर रखें कंट्रोल

मरीज की बीमारी के लिए किस तरह का इलाज किया जा रहा है इस बारे में बात करते हुए आप इलाज के और संभावित विकल्पों की बात कर सकते हैं, मगर कभी जरूरत से अधिक ज्ञान न बघारें. उसे किसी तरह की टैंशन न दें. अकसर हम इंटरनैट पर रोग के बारे में अधकचरा ज्ञान प्राप्त कर रोगी और डाक्टर के सामने अपना ज्ञान बघारते हैं. हमें इस से बचना चाहिए.

यह याद रखना चाहिए कि जिस बीमारी और इलाज के बारे में डाक्टर ने कई सालों तक पढ़ाई की है उन के सामने अपना ज्ञान बघारना गलत है. अपनी तरफ से किसी नुसखे या दवा की सलाह न दें. वैसे भी मरीज से अधिक बातें न करें इस से वह थकान अनुभव करती है.

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