कोरोना के कारण मार्च में जब लॉक डाउन घोषित हुआ तो जनसामान्य की समस्त गतिविधियों पर ब्रेक लग गया और लोग अपने अपने घरों में कैद हो गए परन्तु अब 5 माह बाद कोरोना हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है जिसके साथ ही हमें जीना सीखना होगा. यूँ भी जीवन चलने का नाम है अतः इंसानी गतिविधियों को रोका नहीं जा सकता. घर में अब तक कैद रहे लोग घूमने जाने का भी प्लान करने लगे हैं. कोरोना से पहले जहां लोग अतिथि के आने पर खुश होते थे वहीं अब मेहमान के आने की सूचना प्राप्त करते ही कोरोना का भूत हावी हो जाता है. आजकल ऐसा ही कुछ हाल है मेरी पड़ोसन जूही का. परसों जैसे ही उसके एक पारिवारिक मित्र ने अपने आने की सूचना दी तो जूही को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह हंसे या रोये. अब बरसों पुराने घनिष्ट संबंधों को कोरोना के नाम पर खराब भी तो नहीं किया जा सकता. यही सब बातें जब उसने अपनी सास को बतायीं तो वे बोलीं, "कोरोना तो अब हमारे साथ ही रहने वाला है बेटा, बेहतर है कि तुम आने वाले का जोश से स्वागत करो पर हां सावधानियों का दामन लेशमात्र भी न छोड़ना."
निस्संदेह सास से बात करके उसे बहुत अच्छा लगा और वह जोश के साथ मेहमानों के स्वागत की तैयारी में लग गयी.
रक्षाबन्धन के त्यौहार पर रश्मि की ननद अपने परिवार सहित पुणे से मुम्बई आ धमकी. आने की सूचना भी रश्मि को मात्र 3 घंटे पहले दी. अब कैसे क्या करे इस कोरोना के टाइम में, कमरों के छोटे से फ्लैट में कैसे मैनेज होगा सोचकर ही उसका सिर चकरा गया. वह अभी प्लानिंग में ही लगी थी कि ननद ने ही पुनः फोन करके कहा,"भाभी चिंता मत करियेगा हम लोग कोरोना टेस्ट करवा कर ही आ रहे हैं.मैं आकर सब मैनेज कर लूंगी. तब जाकर कहीं रश्मि को चैन आया.
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