प्रीति सिंह, (युगांडा)

जब मै 4 साल की थी मेरे पिता का देहांत हो गया था. उस समय मां की उम्र भी 22 से 24 साल रही होगी. इस उम्र में पति का ना रहना और उनके बिना विधवा के रूप में बाकी उम्र काटना बड़ी जिम्मेदारी वाली बात थी. नाते रिश्तेदार चाहते थे कि मां दूसरी शादी कर ले. जिससे उनको विधवा बन कर सारी जिदंगी ना काटनी पडे. हमारे समाज में विधवा के रूप में जिदंगी व्यतीत करना सरल नहीं होता है. मां ने लोगों की बातों को अनसुना कर दिया. उनको लगता था कि दूसरी शादी के बाद उनके दो छोटे बच्चो का क्या होगा ? पता नहीं दूसरे पिता से बच्चों को वह प्यार मिल पायेगा या नहीं. ऐसे में मेरी मां ने दूसरी शादी नहीं करने का फैसला किया.

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बच्चों की खातिर लिया इतना बड़ा फैसला...

बच्चों की परवरिश के लिये मां ने ना केवल दूसरी शादी नहीं की बल्कि खुद ही स्कूल और बैंक में नौकरी करके उनका पालन पोषण शुरू किया. बच्चों को पढ़ालिखा कर बड़ा किया उनकी शादी की. अब जब मैं शादी होकर पति के पास आई और जब वह जौब करने जाते तो मैं अकेले रहती, खालीपन सा लगता था. तब मुझे लगा कि हम तो अकेले इतना समय भी व्यतीत नहीं कर पा रहे है. जबकि मां ने हम लोगों के लिये पूरा जीवन अकेले निकाल दिया.

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मां बनकर हुआ अहसास...

इसके बाद जब मेरी बेटी हुई तो मुझे मां और बेटी के बीच रिश्ते की सही कीमत का अंदाजा हुआ. आज बेटी का मां के जीवन में और मां के लिये बेटी का महत्व समझ आया. मैं कुछ भी कर लूं पर मां के उस त्याग की कीमत कभी चुका नहीं सकती. मां बेटी का रिश्ता बड़ा अनमोल होता है. आज मैं अपने पति के साथ देश से बाहर हूं पर मुझे अपने देश और मम्मी और घर परिवार की बहुत याद आती है.

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