जया सिंह चौहान

मां शब्द ही संपूर्ण ब्रह्मांड है, मां की तुलना किसी से नहीं कर सकते हैं. हमारी मां ने बचपन से ही हमें बहुत प्यार से रखा था. हम चार बहनें थीं पर मां ने कभी महसूस नहीं होने दिया कि हम बेटियां हैं और पढ़ाई की तरफ भी पूरा ध्यान देती थीं.  जिसको जितना पढ़ना है पढ़ाई करो, मां की प्रथम पाठशाला जीवन में बहुत ही उपयोगी होती है. जब मां के पेट में बच्चा रहता है तो एक नाल  द्वारा जुड़ा होता है जिससे वह जीवित रहता है. आज भी हम मां के द्वारा दिए गए सांसो पर ही जिंदा है, शायद हमारी मां जैसा कोई ना हो.

अभी भी अगर हमें कोई तकलीफ होती है तो पता नहीं कैसे अनुमान लगा लेती हैं और तुरंत फोन करती हैं कि बेटा तुम ठीक तो हो? ऐसा ही एक वाकया मैं आपसे साझा करना चाहती हूं.

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जब मां को हुआ मेरी तकलीफ का अहसास...

एक बार का वाक्या है हमारी मां बहुत बीमार थीं. बिस्तर से उठ भी नहीं पाती थीं. हम उन्हें देखने गए थे. अचानक बहुत बड़ी दुर्घटना घट गई. गैस की लपटों ने हमें घेर लिया, जिससे मेरा चेहरा हाथ, बाल और आईब्रो सहित सब कुछ जल गया. पता नहीं कैसे मेरी मां को मेरी आवाज से लगा कि मुझे कुछ हो गया है. वह चिल्लाती रही कि बाबू मेरे पास आ जाओ, क्या हो गया. तुम हमको दिखा दो कुछ तो हो गया है. पर हमने कहा- नहीं, अम्मा कुछ नहीं हुआ है. पर वो नही मानीं और बोलीं- कुछ तो हुआ है तुम्हें, तुम्हारी आवाज बहुत कमजोर थी. जिसको हम महसूस कर रहे हैं.

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