अनीता शर्मा (लखनऊ)

मेरी मां की दुनिया हम पांच भाई-बहनों और घर की देखभाल तक ही सीमित थी. अभी वो 72 साल की हैं, पर एनर्जी ऐसी की हम लोगों को भी मात दे दें और बहुत धार्मिक प्रवृत्ति वाली, लेकिन अंधविश्वास मे कोई आस्था नहीं. नई चीज सीखने की ललक इतनी कि इस उम्र में भी अपना बैंक का काम या एटीएम से पैसे निकालना हो तो वो खुद ही सब करती हैं. साथ ही और महिलाओं को भी सिखाती हैं. वैसे तो वो सिर्फ 10वीं पास हैं, लेकिन अभी भी कहीं भी अकेले सफर कर सकती हैं.

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मां नहीं सहेली...

मैं कुकिंग और लेखन मे रूचि रखती हूं. वो हमेशा मुझे प्रोत्साहित करती हैं और अगर मेरे पास हैं तो साथ भी जाएंगी. मैं शायद हर किसी से अपनी हर बात नहीं कह सकती, पर मां से ऐसे बात होती हैं जैसे सहेली से हो रही हो. मैं सालों से अपनी व्यस्त दिनचर्या में से इतना समय निकाल लेती हूं कि मां से रोज बात कर उनका हालचाल ले लूं.

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मां के साथ बन जाती हूं बच्ची...

भगवान से मनाती हूं मां स्वस्थ रहे और लंबी उम्र पाए. बागवानी, टहलना पुराने गाने और समाचारपत्र पढ़ना मां को बहुत पसंद है. मां के साथ मै छोटी बच्ची बन कर जिद्द करके आटे का हलवा और चने दाल की सब्जी बनवाती हूं. जब भी मां के साथ होती हूं तो मेरे मन में ये ख्याल आता है "ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान कि सूरत क्या होगी.....”

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