सुबह का भूला: क्यों अपने देश लौटना चाहते थे बीजी और दारजी?

सुबह का भूला: भाग-1

सतविंदरजल्दीजल्दी सारे काम निबटा कर घर से निकल ही रहा था कि केट ने पूछ लिया, ‘‘अभी से?’’

‘‘हां, और क्या, 2 घंटे तो एअरपोर्ट पहुंचने में भी लग जाने हैं,’’ सतविंदर उल्लास से लबरेज था किंतु पास बैठे अनीटा और सुनीयल सुस्त से प्रतीत हो रहे थे. आंखों ही आंखों में सतविंदर ने अपनी पत्नी केट से कारण जानना चाहा. उस ने भी नयनों की भाषा में उसे शांत रह, चले जाने का इशारा किया. फिर एक आश्वासन सा देती हुई बोली, ‘‘जाओ, बीजी दारजी को ले आओ. तब तक हम सब नहाधो कर तैयार हो जाते हैं.’’

पूरे 21 वर्षों के बाद बीजी और दारजी अपने इकलौते बेटे सतविंदर की गृहस्थी देखने लंदन आ रहे थे. सूचना प्रोद्यौगिकी में अभियांत्रिकी कर, आईटी बूम के जमाने में सतविंदर लंदन आ गया था. वह अकसर अपने इस निर्णय पर गर्वांवित अनुभव करता था, ‘बीइंग एट द राइट प्लेस, एट द राइट टाइम’ उस का पसंदीदा जुमला था. नौकरी मिलने पर सतविंदर ने लंदन के रिचमंड इलाके में एक कमरा किराए पर लिया. नीचे के हिस्से में मकानमालिक रहते थे और ऊपर सतविंदर को किराए पर दे दिया गया था. कमरा छोटा था किंतु उस के शीशे की ढलान वाली छत की खिड़की से टेम्स नदी दिखाई देती थी.

यह एक अलग ही अनुभव था उस के लिए, ऊपर से किराया भी कम था. सो, सतविंदर खुशी से वहां रहने लगा. मकानमालिक की इकलौती लड़की केट सतविंदर के लिए दरवाजा खोलती, बंद करती. मित्रता होने पर वह सतविंदर को लंदन घुमाने भी ले जाने लगी. सतविंदर ने पाया कि केट बहुत ही सुलझी हुई, समझदार व सौहार्दपूर्ण लड़की है. जल्द ही दोनों एकदूसरे की तरफ खिंचाव अनुभव करने लगे. केट के दिल का हाल उस के नेत्र अपनी मूकभाषा द्वारा जोरजोर से कहते किंतु धर्म की दीवार के कारण दोनों चुप थे. परंतु केट की भलमनसाहत ने सतविंदर का मन ऐसा मोह लिया कि उस ने चिट्ठी द्वारा अपने बीजी व दारजी से अनुमति मांगी. उन की एक ही शर्त थी कि शादी अपने पिंड में हो. सतविंदर, केट व उस के मातापिता सहित अपने गांव आया और धूमधाम से शादी हो गई.

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कुछ सालों में सतविंदर व केट के घोंसले में 2 नन्हे सुर सुनाई देने लगे. अब उन की गृहस्थी परिपूर्ण थी. बीजी बहुत प्रसन्न थीं कि पराए देश में भी उन की आंख के तारे का खयाल रखने वाली मिल गई थी. साथ ही सतविंदर को बनाबनाया घर मिल गया. कुछ समय बाद उस ने अपने ससुर के व्यवसाय में हिस्सेदारी कर ली. आज उस की गिनती लंदन के जानेमाने रईसों में होती थी. उस की तेज प्रगति का श्रेय कुछ हद तक उस की शादी को भी जाता था. सतविंदर व केट अपने बच्चों को ले कर अकसर भारत जाया करते. लेकिन जब से बच्चे बड़े हुए, तब से कभी उन की शिक्षा, कभी उन के कहीं और छुट्टी मनाने के आग्रह के चलते उन का भारत जाना कुछ कम होता गया.

पिछले वर्ष दीवाली के त्योहार पर केट,

बीजी से फोन पर बात कर रही थी, ‘बच्चों की व्यस्तता के कारण हमारा आना अभी संभव नहीं है, बीजी.’ फिर अचानक ही केट के मुंह से निकला, ‘आप लोग क्यों नहीं आ जाते यहां?’ तब से कागजी कार्यवाही पूरी करतेकराते आज बीजी और दारजी लंदन आ रहे थे. दोनों बहुत हर्षोल्लासित थे. पहली बार हवाई सफर कर रहे थे और वह भी विलायत का. इस उम्र में उन्हें उत्साह के साथसाथ इतनी दूर सफर करने की थोड़ी चिंता भी थी. सामान भी खूब था. ठंडे प्रदेश जा रहे थे. दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट देख कर दोनों को सुखद आश्चर्य हुआ. हवाई जहाज के जरीए वे आखिरकार लंदन पहुंच गए.

सतविंदर पहले से ही एअरपोर्ट पर प्रतीक्षारत था. गले मिलते ही बीजी और दारजी के साथसाथ सतविंदर की आंखें भी नम हो चलीं. बीजी की एक हलकी सी हिचकी बंधते ही सतविंदर ने टोका, ‘‘अभी आए हो बीजी, जा नहीं रहे जो रोने लगे.’’ अपने बेटे की बड़ी गाड़ी में सवार हो, उस के घर जाते समय रास्ते में लंदन की सड़क किनारे की हरियाली, वहां का सुहाना मौसम, सड़क पर अनुशासन, सड़क पर न कोई जानवर, न आगे निकलने की होड़ और न ही हौर्न का कोई शोर, सभी ने उन का मन मोह लिया था.

‘‘यह तो आज आप के आने की खुशी सी है जो इतनी धूप खिली है वरना यहां तो अकसर बारिश ही होती रहती है,’’ सतंिवदर ने बताया.

घर के दरवाजे पर केट खड़ी इंतजार कर रही थी. उस ने पूरी खुशी के साथ उन का स्वागत किया. बीजी और दारजी बेहद प्रसन्न थे. उन्हें उन के कमरे में छोड़ केट उन के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करने में लग गई.

‘‘मेरे पोतापोती कित्थे होंगे? उनानूं देखण वास्ते आंखें तरस गी,’’ बीजी से अब और प्रतीक्षा नहीं हो रही थी. दारजी की नजरें भी जैसे उन्हें ही खोज रही थीं. सतविंदर ने दोनों को आवाज लगाई तो अनीटा और सुनीयल आ गए. बीजी और दारजी फौरन उन दोनों को गले से लगा लिया, ‘‘हुण किन्ने वड्डे हो गए नै.’’

‘‘यह कौन सी भाषा बोल

रहे हैं, डैड? हमें कुछ समझ नहीं आ रहा,’’ सुनीयल ने बेरुखी से कहा, ‘‘और बाई द वे, हमारे नाम अनीटा और सुनीयल हैं, अनीता व सुनील नहीं.’’

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सुनीयल की इस बदतमीजी पर सतविंदर की आंखें गुस्से में उबल पड़ीं कि तभी केट वहां आ गई. अभीअभी आए बीजी व दारजी के समक्ष कोई कहासुनी न हो जाए, उस ने त्वरित बात संभालते हुए सब को चायनाश्ता दिया और बच्चों को अपने कमरे में जाने को कह दिया, ‘‘जाओ, तुम दोनों अपनी पढ़ाई करो.’’

केट समझदार थी जो घरपरिवार को साथ ले कर चलना चाहती थी और जानती भी थी. किंतु पराए देश, पराई संस्कृति में पल रहे बच्चों का क्या कुसूर? अनीटा अभी 15 साल की थी और सुनीयल 18 का. मगर जिस देश में वे पैदा हुए, बड़े हो रहे थे उस की मान्यताएं तो उन के अंदर घर कर चुकी थीं. उन्हें बीजी और दारजी से बात करना जरा भी पसंद न आता.

उन के लाए कपड़े व तोहफे भी उन्हें बिलकुल नहीं भाए.

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सुबह का भूला: भाग-2

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बीजी व दारजी भी समझ रहे थे कि अपने ही पोतापोती के साथ संपर्कपुल बनाने के लिए उन्हें थोड़ा और धैर्य, थोड़ी और कोशिश करनी होगी.

अगले हफ्ते सतविंदर व केट, बीजी व दारजी को लंदन के प्रसिद्ध म्यूजियम घुमाने ले गए, ‘‘यहां के म्यूजियम शाम 5 बजे बंद हो जाते हैं, इसलिए हमें जल्दी चलना चाहिए.’’ नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में डायनासोर की हड्डियों का ढांचा, अन्य विशालकाय जानवरों के परिरक्षित शरीर, कोहिनूर हीरे की प्रतियां आदि देख कर दारजी बेहद खुश हुए. विक्टोरिया व अल्बर्ट म्यूजियम में संगमरमर की मनमोहक मूर्तियां, टीपू सुलतान के कपड़े तथा उन की मशहूर तलवार, दुनियाभर से इकट्ठा किए हुए बेशकीमती कालीन, मूर्तियां, कांच, कांसे व चांदी के बरतन इत्यादि देख वे हक्केबक्के रह गए, ‘‘इन गोरों ने केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया ही लूटी.’’

बीजी व दारजी के पिंड की तुलना में लंदन एक

बहुत भिन्न संस्कृति वाला देश था. सब अपनेआप में मस्त तथा व्यस्त. किसी को किसी से कोई आपत्ति नहीं, कोई मोरल पुलिसिंग नहीं, सब को अपने जीवन के निर्णय लेने की आजादी. हर किसी को अपना परिधान चुनने की छूट. विवाह से पहले साथ रहने की और यदि साथ खुश नहीं, तो विवाहोपरांत अलग रहने की भी आजादी. हर नस्ल का इंसान यहां दिखाई दे रहा था. एक सच्चा सर्वदेशीय शहर.

घर पर बीजी ने ध्यान दिया कि सुबहसवेरे सतविंदर और केट अपनेअपने दफ्तर निकल जाते. न कुछ खा कर जाते और न ही लंच ले कर जाते. बीजी से रहा न गया, ‘‘पुत्तर, तुम दोनों भूखे सारा दिन काम में कैसे बिताते हो? कहो तो सुबह मैं परांठे बना दिया करूं, कोई देर नहीं लगती है?’’

इस पर सतविंदर ने हंस कर कहा, ‘‘बीजी, यहां का यही दस्तूर है. हम रास्ते में एक रेस्तरां से एकएक सैंडविच और कौफी का गिलास लेते हैं, ट्यूब (मेट्रो रेल) स्टेशन पर गाड़ी पार्क कर, अपनीअपनी दिशा पकड़ लेते हैं. लंच में भी हम अन्य सभी की

भांति दफ्तर के पास स्थित रेस्तरां में कुछ खाने का सामान ले आते हैं. यहां ‘औन द गो’ खाने का ही रिवाज है-चलते जाओ, खाते जाओ, काम करते जाओ. आखिर टाइम इज मनी.’’

बीजी को यह जान कर भी हैरानी हुई कि लंदन कितना महंगा शहर है- एक सैंडविच करीब ढाई सौ रुपए का. मगर एक बार जब सतविंदर और केट उन्हें भी रेस्तरां ले गए तो बिल में कुछ अलग ही हिसाब आया देख दारजी बोल बैठे, ‘‘यह रेस्तरां तो और भी महंगा है.’’

अगले दिन से घर यथावत चलने लगा. बच्चे पढ़ने जाने लगे, सतविंदर

अपना व्यवसाय संभालने में व्यस्त हो गया और केट घर व दफ्तर संभालने में. बीजी और दारजी ने ध्यान दिया कि अनीटा को छोड़ने एक काला लड़का आता है जो उम्र में उस से काफी बड़ा प्रतीत होता है. फिर एक शाम खिड़की पर बैठी बीजी की पारखी नजरों ने अनीटा और उस काले लड़के को चुंबन करते देख लिया. उन का कलेजा मुंह को आ गया. ‘जरा सी बच्ची और ऐसी हरकत? जैसा किसी देश का चलन होगा, वैसे ही संस्कार उस में मिलेंगे उस में पल रहे बच्चों को’, सोच कर बीजी चुप रह गईं. परंतु उस रात उन्होंने दारजी के समक्ष अपना मन हलका कर ही डाला, ‘‘निक्की जेई कुड़ी हैगी साड्डी…की कीत्ता?’’

‘‘तू सोचसोच परेशान न होई…कुछ हल खोजते हैं,’’ दारजी की बात से वे कुछ शांत हुईं.

सुबहसुबह बीजी चाय का कप थामे, बालकनी में खड़ी दूर तक विस्तृत रिचमंड हिल और आसपास फैली टेम्स नदी देख रही थीं. सेंट पीटर चर्च और उस के इर्दगिर्द मनोरम हरियाली. कितनी सुंदर जगह है. किंतु दिल में ठंडक हो तब तो कोई इस अनोखे प्राकृतिक सौंदर्य का घूंट भरे. मन तो उद्विग्न था कल रात के दृश्य के बाद से. कुछ देर में केट भी अपना कप लिए बीजी के पास आ खड़ी हुई. तभी बीजी ने मौके का फायदा उठा केट से कल रात वाली बात कह डाली, ‘‘संकोच तो बहुत हुआ पुत्तर पर अपना बच्चा है, टाल भी तो नहीं सकते न.’’

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‘‘आप की बात मैं समझती हूं, बीजी, और यह बात मैं भी जानती हूं, लेकिन यहां हम बच्चों को यों टोक नहीं सकते. यह उन की जिंदगी है. यहां भारत से अलग संस्कृति है. छुटपन से ही लड़केलड़कियों में दोस्ती हो जाती है और कई बार आगे चल कर वे अच्छे जीवनसाथी बनते हैं. कई बार नहीं भी बनते. पर यह उन का निजी निर्णय होता है,’’ केट ने संक्षिप्त शब्दों में बीजी को विदेश में रह रहे लोगों की जिंदगी के एक महत्त्वपूर्ण पहलू से अवगत करा दिया. बीजी को यह बात पसंद नहीं आई मगर वे चुप रह गईं.

परंतु अपने स्कूल जाने को तैयार अनीटा ने उन की सारी बातें सुन लीं. वह सामने आई और उन्हें देख मुंह बिचकाती हुई अपने विद्यालय चली गई. जाते हुए जोर से बोली, ‘‘मौम, आज शाम मुझे देर हो जाएगी. मैं अपने बौयफ्रैंड के साथ एक पार्टी में जाऊंगी, मेरी प्रतीक्षा मत करना.’’

वहां के अखबार से दारजी बीजी को खबरें पढ़, अनुवादित कर सुनाते जिस से उन्हें पता चलता कि ब्रितानियों में सब से अधिक बाल अवसाद, किशोरावस्था में गर्भ, बच्चों में बढ़ती हिंसात्मक प्रवृत्ति, असामाजिक व्यवहार तथा किशोरावस्था में शराब की लत जैसी परेशानियां हो रही हैं. कारण भी सामने थे- अभिभावकों की ओर से रोकटोक की कमी. मातापिता भी मानो ‘अधिकार’ और ‘आधिकारिक’ शब्दों के अर्थों का अंतर समझना भूल चुके थे.

एक सुबह सतविंदर भी वहीं बैठा उन दोनों की यह गुफ्तगू सुन रहा था.

‘‘दारजी, यहां आप बच्चों को सिर्फ मुंहजबानी समझा सकते हैं, समझ गए तो बढि़या वरना आप का कोई जोर नहीं. यहां कोई जोरजबरदस्ती नहीं चलती. आप बच्चे को गाल पर तो क्या पीठ पर धौल भी नहीं जमा सकते, यह अपराध है. मैं आप को एक सच्चा किस्सा सुनाता हूं, मेरा एक मुलाजिम है जिस का छोटा बेटा बिना देखे सड़क पर दौड़ गया. पीछे से आती कार से टक्कर हो गई. घबराया हुआ वह बच्चे को अस्पताल ले कर भागा. अच्छा हुआ कि अधिक चोट नहीं आई थी. बस, धक्के के कारण वह बेहोश हो गया था. खैर, सब ठीक हो गया. फिर कुछ दिनों बाद वह बच्चा एक दिन अचानक दोबारा सड़क पर बिना देखे दौड़ लिया.

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सुबह का भूला: भाग-3

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इस बार उस के पिता ने उस की पीठ पर 2 धौल जमाए और उसे खूब डांटा. पर इस बात के लिए उस पिता की इतनी निंदा हुई कि पूछो ही मत.’’

‘‘पर बेटेजी, यह तो सरासर गलत है. आखिर मांबाप, घर के बड़ेबुजुर्ग और टीचर बच्चों का भला चाहते हुए ही उन्हें डांटते हैं. बच्चे तो आखिर बच्चे ही हैं न. बड़ों जैसी समझ उन में कहां से आएगी? शिक्षा और अनुभव मिलेंगे, तभी न बच्चे समझदार बनेंगे,’’ बीजी का मत था.

‘‘आप की बात सही है, बीजी. बल्कि अब यहां भी कुछ ऐसे लोग हैं, कुछ ऐसे शोधकर्ता हैं जो आप की जैसी बातें करते हैं, पर यहां का कानून…’’ सतविंदर की बात अभी पूरी नहीं हुई थी कि अनीटा कमरे में आ गई, ‘‘ओह, कम औन डैड, आप किसे, क्या समझाने की कोशिश कर रहे हो? यहां केवल पीढ़ी का अंतर नहीं, बल्कि संस्कृति की खाई भी है.’’

जब से अनीटा ने बीजी और केट की बातें सुनी थीं तब से वह उन से खार खाने लगी थी. उस ने उन से बात करनी बिलकुल बंद कर दी. जब उन की ओर देखती तभी उस के नेत्रों में एक शिकायत होती. उन की कही हर बात की खिल्ली उड़ाती और फिर मुंह बिचकाती हुई कमरे में चली जाती.

‘‘सैट, सुनीयल को अपने आगे की शिक्षा हेतु वजीफा मिला है. उस ने आज ही मुझे बताया कि उस के कालेज में आयोजित एक दाखिले की प्रतियोगिता में उस ने वजीफा जीता है. इस कोर्स को ले कर वह बहुत उत्साहित है,’’ केट, सतविंदर यानी सैट को बता रही थी, ‘‘2 साल का कोर्स है और पढ़ने हेतु वह पाकिस्तान जाएगा.’’

‘‘पाकिस्तान? पाकिस्तान क्यों?’’ दारजी का चौंकना स्वाभाविक था.

‘‘दारजी, वह कालेज पाकिस्तान में है और सुनीयल ने वहीं कोर्स करने का मन बना लिया है. वैसे भी, यहां सब देशी मिलजुल कर रहते हैं. भारतीय, पाकिस्तानी, श्रीलंकन, बंगलादेशी, यहां सब बराबर हैं.’’

लेकिन जब बच्चों ने मन बना लिया हो और उन के मातापिता भी उन का साथ देने को तैयार हों तो क्या किया जा सकता है. दारजी बस टोक कर चुप रह गए. उन के गले से यह बात नहीं उतर रही थी कि लंदन में पलाबढ़ा बच्चा आखिर पाकिस्तान जा कर आगे की शिक्षा क्यों हासिल करना चाहता है? ऐसा ही है तो भारत आ जाए, आखिर अपना देश है. इन सब घटनाओं ने बीजी व दारजी को कुछ उदास कर दिया था.

‘‘चलो जी, अस्सी घर चलें. अब तो हम ने अपने बेटे का घर देख लिया, उस की गृहस्थी में

3 महीने भी बिता लिए,’’ एक शाम बीजी, दारजी से बोलीं. अब उन्हें अपने घर की याद आने लगी थी. वह घर जहां पड़ोसी भी उन्हें मान देते नहीं थकते थे, उन से मशविरा ले कर अपने निर्णय लिया करते थे. दारजी सारे अनुभवों से अवगत थे. वे मान गए. अपने बेटे सतविंदर से भारत लौटने के टिकट बनवाने की बात करने के लिए वे उस के कक्ष की ओर जा रहे थे कि उन के कानों में सुनीयल के सुर पड़े, ‘‘जी, मैं खालिद हसन बोल रहा हूं.’’

‘सुनीयल, खालिद हसन?’ दारजी फौरन किवाड़ की ओट में हो लिए और आगे की बात सुनने लगे.

‘‘जी, मैं ने सुना है ओमर शरीफ के बारे में. उन्होंने यहीं लंदन में किंग्स कालेज से पढ़ाई की, और 3 ब्रितानियों तथा एक अमेरिकी को अगवा करने के जुर्म में भारत में पकड़े गए. फिर हाईजैक एयर इंडिया के हवाईजहाज और उस की सवारियों के एवज में रिहा हुए. ओमर ने कोलकाता में अमेरिकी सांस्कृतिक केंद्र को बम से उड़ाया तथा वाल स्ट्रीट पत्रकार दानियल पर्ल को अगवा करने तथा खत्म करने का बीड़ा उठाया. हालांकि ये बातें आज से 14 वर्ष पहले की हैं, हम आज भी ओमर शरीफ को गर्व से याद करते हैं. जी, मैं जानता हूं कि सीरिया में हजारों ब्रितानी जा कर जिहाद के लिए लड़ रहे हैं. मुझे गर्व है.’’

फिर कुछ क्षण चुप रह कर सुनीयल ने दूसरी ओर से आ रहा संदेश सुना. आगे बोला, ‘‘आप इस की चिंता न करें. मैं ने देखा है सोशल नैटवर्किंग साइट पर कि वहां हमारा पूरा इंतजाम किया जाएगा, यहां तक कि वहां न्यूट्रीला भी मिलता है ब्रैड के साथ खाने के लिए. जब आप लोग हमारी सुविधाओं का पूरा ध्यान रखेंगे तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे. जिस लक्ष्य के लिए जा रहे हैं, वह पूरा करेंगे.

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‘‘मैं खालिद हसन, कसम खाता हूं कि अपनी आखिरी सांस तक जिहाद के लिए लड़ूंगा, जो इस में रुकावट पैदा करने का प्रयास करेगा, उसे मौत के घाट उतार दूंगा, ऐसी मौत दूंगा कि दुनिया याद रखेगी.’’

दारजी को काटो तो खून नहीं. यह क्या सुन लिया उन के कानों ने? उन के मनमस्तिष्क में हलचल होने लगी. उन का सिर फटने लगा. धीमे पैरों को घसीटते हुए वे कमरे में लौटे और निढाल हो बिस्तर पर पड़ गए. उन की सारी इंद्रियां मानो सुन्न पड़ चुकी थीं.

दारजी बस शून्य में ताकते बिस्तर पर पड़े रहे. करीब 15 मिनट बाद दारजी कुछ संभले और उठ कर बैठ गए. उन्होंने जो सुना था उस का विश्लेषण करने में वे अब भी स्वयं को असमर्थ पा रहे थे. क्या कुछ कह रहा था सुनीयल? क्या वह किसी आतंकवादी गिरोह का सदस्य बन गया है? क्या उस ने धर्मपरिवर्तन कर लिया है? क्या इसीलिए वह बहाने से पाकिस्तान जाना चाहता है? यह क्या हो गया उन के परिवार के साथ? अब क्या होगा? सोचसोच वे थक चुके थे. निस्तेज चेहरा, निशब्द वेदना, शोक में दिल कसमसा उठा था. क्या वादप्रतिवाद से लाभ होगा, क्या सुनीयल को प्यार, लौजिक से समझाने का कोई असर होगा. यही सब सोच कर दारजी का सिर फटा जा रहा था.

अखबारों में पढ़ते हैं कि जिहाद का काला झंडा खुलेआम लंदन की सड़कों पर लहराया गया या फिर औक्सफोर्ड स्ट्रीट और अन्य जगहों पर भी आईएस के आतंकवादियों के पक्षधर देखे गए. लेकिन इन सब खबरों को पढ़ते समय कोई यह कब सोच पाता है कि आतंकवाद घर के अंदर भी जड़ें फैला रहा है. कौन विचार कर सकता है कि शिक्षित, संस्कृति व संपन्न परिवारों के बच्चे अपना सुनहरा भविष्य ताक पर रख, अपना जीवन बरबाद करने में गर्वांवित अनुभव करेंगे.

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सुबह का भूला: भाग-4

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लेकिन दारजी हार मानने वाले इंसान नहीं थे. उन्हें झटका अवश्य लगा था, वे कुछ समय के लिए निढाल जरूर हो गए थे किंतु वे इस व्यथा के आगे घुटने नहीं टेकेंगे. उन्होंने आगे बात संभालने के बारे में विचारना आरंभ कर दिया.

सुबह केट को बदहवासी की हालत में देख बीजी ने पूछा, ‘‘क्या हो गया,

पुत्तरजी?’’ केट ने उन्हें जो बताया तो उन के पांव तले की जमीन हिल गई. अनीटा गर्भवती थी. और उस का बौयफ्रैंड, वह काला लड़का कालेज में दाखिला ले, दूसरे शहर जा चुका था. अब घबरा कर अनीटा ने यह बात अपनी मां को बतलाई थी. बीजी के जी में तो आया कि अनीटा के गाल लाल कर दें किंतु दूसरे ही पल अपनी पोती के प्रति प्रेम और ममता उमड़ पड़ी. केट के साथ वे भी गईं डिस्पैंसरी जहां से उन्हें अस्पताल भेजा गया गर्भपात करवाने. सारे समय बीजी, अनीटा का हाथ थामे रहीं.

अब यदि बीजी उसे ‘अनीटा’ की जगह आदतानुसार ‘अनीता’ पुकारतीं तो वह नाकभौं न सिकोड़ती थी. केट ने भी उस में यह बदलाव अनुभव किया था जिस से वह काफी खुश भी थी. बीजी उसे अपने देश अपने गांव की कहानियां सुनातीं. इसी बहाने वे उसे भारत की संस्कृति से अवगत करातीं. दादीनानी की कहानियां यों ही केवल मनोरंजक मूल्य  के कारण लोकप्रिय नहीं हैं, उन में बच्चों में अच्छी बातें, अच्छी आदतें, अच्छे संस्कार रोपने की शक्ति भी है. अनीटा भी, खुद ही सही, राह चुनने में सक्षम बनती जा रही थी. उस में बड़ों के प्रति आदरभाव जाग रहा था.

अनीटा की ओर से बीजी व दारजी अब निश्ंिचत थे. परंतु दारजी के गले की फांस तो जस की तस बरकरार थी. जितना समय बीत जाता, उतना ही नुकसान होने की आशंका में वृद्धि होना जायज था. उन्हें जल्द से जल्द इस का हल खोजना था. अनुभवी दिमाग चहुं दिशा दौड़ कर कोई समाधान ढूंढ़ने लगा.

शाम को दफ्तर से लौट कर केट ने सब को सूप दिया. बीजी और अनीटा बालकनी में बैठे सूप स्टिक्स का आनंद उठा रहे थे. सतविंदर अभी लौटा नहीं था. सुनीयल ने कक्ष में प्रवेश किया कि दारजी बोलने लगे, ‘‘बेटा सुनीयल, फ्रांस के नीस शहर में हुए हमले की खबर सुनी? इन आतंकवादियों को कोई खुशी नसीब नहीं होगी, ऊंह, बात करते हैं अमनशांति की. बेगुनाहों को अपने गरज के लिए मरवाने वाले इन खुदगरजों को इंसानियत कभी भी नहीं बख्शेगी.’’

दारजी का तीर निशाने पर लगा. सुनीयल फौरन आतंकवादियों का पक्ष लेने लगा, ‘‘आप को क्या पता कौन होते हैं ये, क्या इन का उद्देश्य है और क्या इन की विचारधारा? बस, जिसे देखो, अपना मत रखने पर उतारू है. सब आतंकवादी कहते हैं तो आप ने भी कह डाला, ये आतंकवादी नहीं, जिहादी हैं. जिहाद का नाम सुना भी है

आप ने?’’

‘‘शायद तू भूल गया कि मैं भारत में रहता हूं जहां आतंकवाद कितने सालों से पैर फैला रहा है. और तू जिस जिहाद की बात कर रहा है न, मैं भी उसी सोच पर प्रहार कर रहा हूं. यदि जिहाद से जन्नत का रास्ता खुलता है तो क्यों इन सरगनाओं के बच्चे दूर विदेशों में उच्चशिक्षा प्राप्त कर सलीकेदार जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं, क्यों नहीं वे बंदूक उठा कर आगे बढ़ते? और ये सरगना खुद क्यों नहीं आगे आते? स्वयं फोन व सोशल मीडिया के पीछे छिप कर दूसरों को निर्देश देते हैं और मरने के लिए, दूसरों के घरों के बेटों को मूर्ख बनाते हैं.

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‘‘तुम्हारी पीढ़ी तो इंटरनैट में पारंगत है. साइट्स पर कभी पता करो कि जिन घरों के जवान बेटे आतंकवादी बन मारे जाते हैं उन का क्या होता है. जो बेचारे गरीब हैं, उन्हें ये आतंकवादी पैसों का लालच देते हैं, और जो संपन्न घरों के बच्चे हैं उन का ये ब्रेनवौश करते हैं. जब ये जवान लड़के मारे जाते हैं तो इन की आने वाली पीढ़ी को भी आतंकवादी बनने का प्रशिक्षण देने की प्राथमिकता दी जाती है. अर्थात खुद का जीवन तो क्या, पूरी पीढ़ी ही बरबाद. लानत है इन सरगनाओं पर जो अपने घर के चिरागों को बचा कर रखते हैं और दूसरे घरों के दीपक को बुझाने की पुरजोर कोशिश में लगे रहते हैं.’’

दारजी ने कुछ भी सीधे नहीं कहा, जो

कहा आज के आम माहौल पर कहा. फिर भी वे अपनी बातों से सुनीयल के भटकते विचारों में व्याघात पहुंचाने में सफल रहे. कुछ सोचता सुनीयल लंदन के सर्द मौसम में भी माथे पर आई पसीने की बूंदें पोंछने लगा. बुरी तरह मोहभंग होने के कारण सुनीयल शक्ल से ही व्यथित दिखाई देने लगा. मानो दारजी के शब्दों की तीखी ऊष्मा की चिलकियां उस की नंगी पीठ पर चुभने लगी थीं.

अगले 3 दिनों तक सुनीयल अपने कमरे से बाहर नहीं आया. उस के कमरे की

रोशनी आती रही, फोन पर बातों के स्वर सुनाई देते रहे. परिवार वाले नेपथ्य से अनजान थे. सो, चिंतामुक्त थे. दारजी के कदम सुनीयल के कक्ष के बाहर टहलते रहते किंतु खटखटाना उन्हें ठीक नहीं लगा. उन्हें अपने खून और अपनी दिखाई राह पर विश्वास था. आखिर तीसरे दिन जब दरवाजा खुला तब सुनीयल ने दारजी को अपने समक्ष खड़ा पाया. उन की विस्फारित आंखों में प्रश्न ही प्रश्न उमड़ रहे थे. सुनीयल ने बस एक हलकी सी मुसकान के साथ उन के कंधे पर हाथ रखते हुए केट से कहा, ‘‘मौम, मैं पाकिस्तान नहीं जा रहा हूं. इतना खास कोर्स नहीं है वह, मैं ने पता कर लिया है.’’ दारजी ने झट सुनीयल को सीने से चिपका लिया.

सप्ताहांत पर सतविंदर जब बीजी व दारजी के भारत लौटने की टिकट बुक करने इंटरनैट पर बैठा तो यात्रा की तारीख पूछने की बात अनीटा ने सुन ली.

‘‘बीजी, क्या मैं आप के साथ भारत चल सकती हूं?’’ रोती हुई अनीटा को बीजी ने गले से लगा लिया.

‘‘तेरा अपना घर है पुत्तर, चल और जब तक दिल करे, रहना हमारे पास.’’

‘‘मुझे यहीं छोड़ जाओगे क्या दारजी,’’ सुनीयल भी सुबक रहा था.

हवाईजहाज की खिड़की से जब बीजी और दारजी आकाश में तैर रहे बादल के टुकड़ों को ताक रहे थे, तब केट और सतविंदर के साथ कभी सुनीयल तो कभी अनीटा फैमिली सैल्फी लेने में मग्न थे.

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दूसरा विवाह: विशाल के मन में क्या चल रहा था सोनाक्षी की भाभी के लिए?

Serial Story: दूसरा विवाह (भाग-3)

सूरज के मांपापा भी बहू को बंधन में बांध कर नहीं रखना चाहते थे और अब जब बेटा ही नहीं रहा उन का, फिर बहू को वे किस अधिकार से अपने पास रख सकते थे? लेकिन लीना दूसरे विवाह को हरगिज तैयार न थी क्योंकि सूरज अब भी उस का प्यार था, उस का पति था. लीना वह स्थान किसी और को नहीं देना चाहती थी. उस के लिए तो अब यही घर उस का अपना घर था और सूरज के मांपापा उस की ज़िम्मेदारी.

याद है उसे, जब भी सूरज का खत या फोन आता, एक बात तो वह जरूरत कहता था, ‘लीना, मेरे मांपापा अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी हैं, उन का ध्यान रखना’ और लीना कहती, ‘हां, वह इस ज़िम्मेदारी को अच्छे से निभाएगी, चिंता न करें.’ ऐसे में कैसे वह अपने वचन से पलट सकती थी? इसलिए उस ने कभी फिर दूसरा विवाह न करने का फैसला ले लिया.

सूरज के जाने के बाद वह बखूबी अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही है. लेकिन सूरज की कमी उसे खलती रहती है. इसलिए तो उस ने अपनेआप को किताबों में झोंक दिया था. वैसे, सूरज के मांपापा भी यही चाहते थे कि लीना दूसरा विवाह कर ले अब. कई बार कहा भी उन्होंने. कई रिश्ते भी आए. पर लीना का एक ही जवाब था कि वह दूसरा विवाह नहीं करेगी.

उस दिन सोनाक्षी को अच्छे से तैयार होते देख लीना कहने लगी, “कब तक यों ही सजसंवर कर विशाल को रिझाती रहोगी ननद रानी? क्यों नहीं कह देतीं उस से अपने मन की बात? एकदूसरे को अच्छी तरह समझने लगे हो तुम दोनों, तो अब क्या सोचविचार करना? कहीं ऐसा न हो, मांपापा तुम्हारी शादी कहीं और तय कर दें और फिर तुम कुछ न कर पाओ.”

भाभी की बात सोनाक्षी को भी सही लगी कि अगर विशाल आगे नहीं बढ़ रहा है, तो क्यों नहीं वही आगे बढ़ कर अपने प्यार का इजहार कर देती है. लेकिन कैसे वह अपने प्यार का इजहार करे, समझ नहीं आ रहा था.

“अब इस में सोचनासमझना क्या है सोनू? देखो, अगले हफ्ते ही विशाल का जन्मदिन है, तो इस से अच्छा मौका और क्या होगा.” लीना की यह बात सोनाक्षी को जंच गई और मन ही मन उस ने इजहारे प्यार का फैसला कर लिया. सोचा लिया उस ने कि कैसे वह विशाल के सामने अपने प्यार कर इजहार करेगी.

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सोनाक्षी ने तो पहली ही नजर में विशाल को अपना दिल दे दिया था. लेकिन विशाल ने आज तक नहीं जताया उसे कि वह उस से प्यार करता है. लेकिन उस की बातों, हावभाव और सोनाक्षी को ले कर उस की बेचैनी को देख, उसे यही लगता है कि वह भी उस से प्यार करता है. वैसे भी, जरूरी तो नहीं की हर बात कह कर ही जताई जाए. मेरे लिए तो इतना ही काफी है कि मुझ से मिले बिना वह एक दिन भी नहीं रह पाता है. तभी तो कोई न कोई बहाना बना कर सीधे मेरे घर आ पहुंचता है. अपने मन में यह सोच सोनाक्षी मुसकरा पड़ी थी.

सोनाक्षी को यह नहीं पता कि विशाल उस से नहीं, बल्कि उस की विधवा भाभी लीना से प्यार करता है और उस की खातिर ही वह उस के घर बहाने बना कर जाता रहता है. यह कब, कैसे और कहां हुआ. नहीं पता उसे. लेकिन जैसेजैसे उस ने लीना को जाना, उस के प्रति वह आकर्षित होता चला गया. इसलिए सोनाक्षी से मिलने के बहाने ही वह उस के घर चला आता था. भले ही वह सोनाक्षी से बातें करता था पर उस का दिल और दिमाग तो लीना के पास ही होता था.

लीना को एक दिन भी न देखना उसे बेचैन कर देता था. रातदिन, बस, उसी का चेहरा उस की आंखों के सामने नाचता रहता. जब वह अपनी आंखें बंद करता तब भी लीना दिखाई देती उसे और जब आंखें खोलता तब भी उस का ही चेहरा नजर आता था उसे. लेकिन वह यह बात किसी से भी बता नहीं पा रहा था. अपने परिवार वालों से भी नहीं क्योंकि जानता था एक विधवा से शादी समाज सहन नहीं कर पाएगा.

पूछना चाहता है वह समाज से और समाज में रह रहे लोगों से कि जब एक विधुर दूसरा विवाह कर सकता है, तो विधवा क्यों नहीं? क्यों एक पति के न रहने पर औरत अपने मन का खापी और पहनओढ़ नहीं सकती? हंसबोल नहीं सकती? आखिर इतना जुल्म क्यों होता है औरत पर? लेकिन दुख तो उसे इस बात का होता है कि औरत अपने ऊपर हो रहे जुल्म को बरदाश्त करती रहती है. ऐसा नहीं है कि औरत में हिम्मत नहीं होती या उस के पास बोलने को शब्द नहीं होते. वह अपनी हिम्मत और शब्द का इस्तेमाल करती नहीं. इधर, विशाल ने संकल्प ले लिया कि वह लीना के चेहरे से उदासी का बादल हटा कर रहेगा. उसे अपना बना कर रहेगा. आदमी की संकल्पशक्ति दृढ़ होनी चाहिए.

उस दिन अचानक विशाल को अपने घर आए देख लीना चौंक पड़ी क्योंकि कभी वह सोनाक्षी के न होने पर घर नहीं आया और सब से बड़ी बात यह कि वह जानता था सोनाक्षी अपने मांपापा के साथ बीमार बूआजी को देखने गई है.

“वि…विशाल जी आप, इस वक़्त? सोनू, मतलब सोनाक्षी तो घर पर नहीं है. मांपापा के साथ बूआजी को देखने गई…“

“हां, पता है मुझे,” बीच में ही विशाल बोल पड़ा, “वैसे, मैं यहां सोनाक्षी से नहीं, बल्कि आप से मिलने आया हूं लीना जी.” विशाल बोलने में भले घबरा रहा था मगर आज वह अपने दिल की बात लीना तक पहुंचा कर रहेगा, सोच कर आया था.

“आ…आप बैठिए, मैं आप के लिए चाय ले कर आती हूं,” कह कर लीना मुड़ी ही थी कि विशाल ने उस का हाथ पकड़ लिया. विशाल को इस रूप में देख कर वह चौंक उठी क्योंकि उस की आंखें आज कुछ और ही भाषा बोल रही थीं जो लीना को साफसाफ दिखाई दे रहा था. “वि…विशाल जी, आप आप यह क्या कर रहे हैं? छोड़िए मेरा हाथ” अपने हाथों को उस की पकड़ से छुड़ाते हुए लीना बोली.

“मैं ने यह हाथ छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है लीना जी. मैं आप से प्यार करता हूं. शादी करना चाहता हूं आप से,” एक सांस में ही विशाल ने अपना फैसला लीना को सुना दिया.

“पर, आप तो सोनाक्षी से…” अचकचा कर लीना पूछ बैठी.

“नहीं, मैं ने कभी भी सोनाक्षी को उस नजर से नहीं देखा. मैं तो आप से प्यार करता हूं लीना जी,” उस के करीब जाते हुए विशाल बोला. लेकिन लीना उस से दूर छिटक गई.

“पागल हो गए हैं आप? ये कैसी बातें कर रहे हैं मुझ से ?” गुस्से से लीना की आंखें लाल हो गईं. उसे तो यही लगता था कि विशाल सोनाक्षी से प्यार करता है, इसलिए वह बहाने बना कर उस से मिलने को घर आ जाता है. लेकिन यह तो… “प्लीज,” अपने दोनों हाथ जोड़ कर लीना कहने लगी, “ऐसी बातें मत कीजिए मुझ से. जाइए यहां से, वरना किसी ने देख लिया, तो अनर्थ हो जाएगा. जानते नहीं क्या आप, मैं एक विधवा हूं?” यह कह कर वह जाने लगी कि विशाल ने उसे रोक लिया और उस के आसपास अपनी बलिष्ठ भुजाओं का घेरा बना दिया जिस से वह निकल नहीं पाई.

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आज वह सोच कर आया था कि जरूरत पड़ी तो वह लीना के सासससुर से भी बात कर लेगा. कहेगा कि वह लीना से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. नहीं मानता वह समाज के इन ढकोसलों को. लेकिन उसे नहीं पता था की पीछे खड़ी सोनाक्षी सब देख ही नहीं रही है, बल्कि उस ने सब सुन भी लिया है.

विशाल से वह कुछ पूछती, मगर वह वहां से बिना कुछ बोले ही निकल गया और लीना ने अपने कमरे में जा कर दरवाजा लगा लिया. सोनाक्षी ने कई बार विशाल को फोन लगाया, पर उस ने उस का फोन नहीं उठाया और न लीना कुछ बता रही थी.

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Serial Story: दूसरा विवाह (भाग-1)

सोनाक्षी ‘बाय’ बोल कर औफिस जाने लगी, तभी उस की भाभी लीना ने उसे रोका और खाने का डब्बा थमा दिया, जिसे वह आज भी भूल कर जा रही थी. मगर वह कहने लगी कि रहने दो, आज वह औफिस की कैंटीन में खा लेगी.

“कोई जरूरत नहीं, ले कर जाओ. रोजरोज बाहर का खाना सेहत के लिए ठीक नहीं होता, झूठमूठ का गुस्सा दिखाती हुई लीना बोली, “मां को बताऊं क्या?”

“अच्छाअच्छा, ठीक है, लाओ, पर मां को कुछ मत बताना, वरना उन का भाषण शुरू हो जाएगा.” उस की बात पर लीना मुसकरा पड़ी और खाने का डब्बा उसे थमा दिया.

सोनाक्षी और लीना थीं तो ननद-भाभी लेकिन दोनों सखियां जैसी थीं जिन्हें हर बात बेझिझक बताई जा सकती है. “प्लीज भाभी, मां को मत बताना की कभीकभार मैं कैंटीन में खा लेती हूं, वरना वह गुस्सा करेगी,” सोनाक्षी बोल ही रही थी कि विशाल उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया.

लीना जानती थी वह कुछ न कुछ बोलेगी ही विशाल के बारे में और फिर दोनों के बीच बहसबाजी शुरू हो जाएगी. और वही हुआ भी. सोनाक्षी कहने लगी, “अब मैं निकलती हूं, वरना वह राक्षस, विशाल, गला फाड़ कर सोनाक्षीसोनाक्षी चिल्लाने लगेगा. अजीब इंसान है, कितनी बार कहा है नीचे से आवाज मत लगाया करो, सब सुनते हैं, पर नहीं, अक्ल से दिवालिया जो ठहरा, समझता ही नहीं है.“

“अच्छा, तो अक्ल से दिवालिया इंसान हूं मैं, और तुम ज्ञान की देवी, ओहो ओहो… पीछे से विशाल की आवाज सुन सोनाक्षी ने दांतों तले अपनी जीभ दबा ली कि यह क्या बोल गई वह. अब तो यह विशाल का बच्चा छोड़ेगा नहीं उसे. “बोलो, चुप क्यों हो गई? वैसे, मुझे लगता है दिमागी इलाज की तुम्हें जरूरत है क्योंकि आज औफिस बंद है. पता नहीं, शायद, आज ईद है?” बोल कर विशाल हंसा, तो लीना को भी हंसी आ गई.

दोनों को खुद पर हंसते देख सोनाक्षी को पहले तो बहुत गुस्सा आया, लेकिन फिर दांत निपोरती हुई बोली, “हां भई, पता है मुझे, वह तो मैं तुम्हारा टैस्ट ले रही थी.“

“टेस्ट… ले रही थी या अपने दिमाग का टैस्ट दे रही थी?” ज़ोर का ठहाका लागते विशाल बोला, तो लीना हंसी रोक न पाई.

“वैसे, एक बात बताओ, क्या सच में तुम्हें पता नहीं था कि आज औफिस बंद है या मुझ से मिलने की बेताबी थी?” उस की आंखों में झांकते हुए विशाल बोला, तो शरमा कर सोनाक्षी ने अपनी नजरें नीची कर लीं.

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सच बात तो यही है कि उसे सच में पता नहीं था कि आज औफिस की छुट्टी है. वह तो विशाल से मिलने को इतना आतुर रहती है कि औफिस जाने के लिए रोज वक़्त से पहले ही तैयार हो कर उस की राह देखने लगती है और आज भी उस ने वही किया. जरा भी भान नहीं रहा उसे की आज औफिस की छुट्टी है. वह तैयार हो कर विशाल की राह देखने लगी. विशाल के साथ बातें करना, उस के साथ वक़्त गुजारना सोनाक्षी को बहुत अच्छा लगता है. दरअसल, मन ही मन वह उस से प्यार करने लगी है और यह बात लीना भी जानती है कि सोनाक्षी विशाल को पसंद करती है. लेकिन घर में सब को यही लगता है कि दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं. विशाल और सोनाक्षी एक ही औफिस में काम करते हैं और दोनों एकदूसरे को 2 सालों से जानते हैं. चूंकि दोनों एक ही औफिस में काम करते हैं इसलिए सोनाक्षी विशाल के साथ उस की ही गाड़ी में औफिस जातीआती है.

दोनों बातों में लगे थे. तब तक लीना सब के लिए चाय बना लाई. वह अपनी चाय ले कर सोफ़े पर बैठ गई और उन की बातों में शामिल हो गई. लीना के हाथों की बनी चाय पी कर विशाल कहने से खुद को रोक नहीं पाया कि लीना के हाथों में तो जादू है. उस के हाथों की बनी चाय पी कर मूड फ्रेश हो जाता है.

सच में, लीना चाय बहुत अच्छा बनाती है, यह सब कहते हैं और सिर्फ चाय ही नहीं, बल्कि उस का हर काम फरफैक्ट होता है और यही बात विशाल को बहुत पसंद है. उसे गैर जिम्मेदार और कामों के प्रति लापरवाह इंसान जरा भी पसंद नहीं है. वह खुद भी अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाता है. लड़का है तो क्या हुआ? अपने घर के सारे काम वह खुद करता है और यह बात लीना को बहुत अच्छी लगती है.

लीना की बड़ाई सुन कर मुंह बनाती हुई सोनाक्षी कहने लगी कि चाय वह भी अच्छा बना लेती है. तो चुटकी लेते हुए विशाल बोला, “हां, पी है तुम्हारे हाथों की बनी चाय भी, बिलकुल गटर के पानी जैसी.” उस की बात पर सब हंस पड़े और सोनाक्षी मुंह बनाते हुए विशाल पर मुक्का बरसाने लगी कि वह उस का मज़ाक क्यों बनाता है हमेशा?

कुछ देर और बैठ कर विशाल वहां से जाने को उठा ही कि लीना ने उसे रोक लिया यह बोल कर कि वह खाना खा कर ही जाए. लीना के इतने प्यार से आग्रह पर विशाल ‘न’ नहीं कह पाया. वैसे, विशाल यहां यह बताने आया था कि आज बुकफेयर का अंतिम दिन है, इसलिए वहां चलना चाहिए, लेकिन सोनाक्षी मूवी देखने के मूड में थी.

“मूवी? नहींनहीं, बेकार में 3 घंटे पकने से अच्छा है बुकफेयर चलना चाहिए,” सोनाक्षी की बात को काटते हुए विशाल बोला. कब से विशाल बुकफेयर जाने की सोच रह था पर औफिस के कारण जा नहीं पा रहा था. आज छुट्टी है, तो सोचा वहां चला जाए.

सोनाक्षी का तो बिलकुल वहां जाने का मन नहीं था पर लीना बुकफेयर का नाम सुनकर ही चहक उठी. उसे किताबें पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. कोई कहे कि पूरे दिन बैठ कर किताबें पढ़ती रहो, तो उकताएगी नहीं वह, इतना उसे किताब पढ़ना अच्छा लगता है. तभी तो वह जब भी मार्केट जाती है, बुकस्टॉल से अपने लिए दोचार अच्छीअच्छी किताबें खरीद लाती है.

अकसर औरतों को कपड़ेगहनों का शौक होता है. अलमारी अटी पड़ी होती है कपड़ों से उन की, लेकिन लीना की अलमारी किताबों से अटी पड़ी है. एक भूख है उसे पढ़ने की. एक दिन भी न पढे, तो खालीखाली सा लगता है उसे और विशाल के साथ भी ऐसा ही है. कितना भी बिजी क्यों न हो अपनी लाइफ में, रोज थोड़ाबहुत पढ़ना नहीं भूलता वह. रहा ही नहीं जाता बिना पढ़े उसे. ज़िंदगी सार्थक लगती है उसे पढ़ने से, वरना तो इंसान के जीवन में भागमभाग लगा ही रहता है.

लेकिन लीना दोनों के बीच कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती थी. इसलिए ‘घर में बहुत काम है,’ का बहाना कर जाने से मना कर दिया. लेकिन विशाल तो जिद पर अड़ गया कि उसे भी उन के साथ बुकफेयर चलना ही पड़ेगा. हार कर लीना को उन के साथ जाना पड़ा.

बुकफेयर में जहां लीना और विशाल किताबें देखने में व्यस्त थे, वहीं सोनाक्षी बस आतेजाते लोगों को निहारने और मोबाइल में व्यस्त दिख रही थी. उस के चेहरे से लग रहा था उसे यहां आ कर जरा भी अच्छा नहीं लगा. वह तो कहीं घूमने या फिल्म देखने की सोच रही थी, मगर विशाल उसे यहां खींच लाया. इशारों से कहा भी उस ने कि चलो अब यहां से, बोर हो रही हूं, तो विशाल ने भी इशारों से कहा कि ‘अभी रुकेगा वह यहां, चाहे तो वह जा सकती है घर.

क्या करती वह, एक तरफ बैठ गई और अपना मोबाइल चलाने लगी. गुस्सा भी आ रहा था उसे कि यहां आई ही क्यों? घर में ही रहती इस से अच्छा. भले ही सोनाक्षी और विशाल एकदूसरे को 2 सालों से जानते थे, पर उन की एक भी आदत ऐसी नहीं थी जो आपस में मेल खाती हो. इसलिए अकसर दोनों में अपनेअपने मत को ले कर टकराव होता. और फिर हारने को दोनों में से कोई तैयार नहीं होता.

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वहीँ, विशाल को लीना का साथ इसलिए भी अच्छा लगता था क्योंकि दोनों की बहुत सी आदतें मिलतीजुलती थीं. बातविचारों में भी वह बहुत शालीन थी. उस से बातें कर विशाल को मानसिक स्फूर्ति मिलती थी. जिस तरह से वह बोलती थी न, लगता जैसे उस की बातों से शहद टपक रहा हो. उस के रूप, रस और गंध में विशाल ऐसे खो जाता कि उसे कुछ होश ही नहीं रहता था. जब सोनाक्षी टोकती, उसे तब होश आता कि कहां है वह और किसी सोच मे डूबा था.

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Serial Story: दूसरा विवाह (भाग-4)

2 दिनों बाद विशाल फिर आया, लेकिन लीना से मिलने नहीं, बल्कि उस के सासससुर से उस का हाथ मांगने. अब अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें ही न? बहू को बेटी बना कर विदा करना सपना था उन का, लेकिन लीना ही दूसरा विवाह करने को तैयार नहीं हो थी. लेकिन आज जब सामने से आ कर विशाल ने उस का हाथ मांगा तो उन्होंने तुरंत हां कर दी. इस उम्र में अपने सासससुर को और दुख नहीं देना चाहती थी, इसलिए लीना ने भी मौन सहमति दे दी. पर, वह विशाल से शादी नहीं करना चाहती थी, क्योंकि जानती है विशाल सोनाक्षी का प्यार है.

उधर लीना के मातापिता भी बेटी की गृहस्थी फिर से बसते देख खुशी से झूम उठे थे. मगर विशाल के मातापिता इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे. वे एक विधवा को अपनी बहू नहीं स्वीकारना चाहते थे. लेकिन विश्वास था विशाल को कि वे इस रिश्ते के लिए मानेंगे जरूर एक दिन, और न भी मानें, तो उस का फैसला अटल है.

सूरज के मांपापा ने जब लीना और विशाल की शादी की बाद सोनाक्षी को बताई और कहा कि अब वे चैन से मर सकते हैं, तो सोनाक्षी, विशाल और लीना की शादी से खुश होने का दिखावा जरूर कर रही थी, मगर अंदर से वह आग की तरह धधक रही थी. विशाल के मुंह से यह बात सुन कर ही कि, वह लीना से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है, कैसे उस का गुलाबी चेहरा झुलस कर राख़ हो आया था. सहन नहीं कर पा रही थी कि विशाल उसे ठुकरा कर उस की भाभी का हो गया. अपने कमरे में जा कर तड़ातड़ अपने ही गालों पर थप्पड़ बरसाने लगी थी वह और फिर घुटनों में सिर दे कर बुक्का फाड़ कर रोई थी.

उसे लग रहा था कि जिस भाभी को उस ने अपना दोस्त माना, उस ने ही उस की पीठ पर खंजर भोंक दिया. भले ही वह सब के सामने अखंड शांति का दिखावा कर रही थी, जता रही थी कि उन की शादी से वह प्रसन्न है, पर अपने अभिमान पर हुए आघात से वह धूधू कर जल रही थी.

एक बार तो उस के मन में आया था कि आत्महत्या कर ले. जिस अतुल रूप यौवन पर उसे बहुत गुमान था, उसे अपने हाथों से नोच डाले, टुकड़ेटुकड़े कर तोड़ दे उसे. पर तभी ध्यान आया कि इस से क्या होगा? उन का कुछ बिगड़ेगा? नहीं, बल्कि और उन का रास्ता साफ हो जाएगा. इसलिए वह उन्हें सिखाएगी.

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उस के मन में लीना को ले कर बहुत गुस्सा भरा हुआ था और जब तक वह उसे सबक नहीं सिखा देती, बदला नहीं ले लेती उन से, तब तक उस के मन को शांति नहीं मिलेगी. लीना सोनाक्षी का दुख समझ रही थी, पर क्या करे वह भी. लेकिन एक रास्ता सूझा उसे और उस ने विशाल से मिलने का मन बना लिया.

फोन पर लीना को विशाल से बातें करते देख सोनाक्षी का खून खौल उठा. मन तो किया उस के हाथ से फोन छीन कर फेंक दें और कहे, ‘लज्जा नहीं आई तुम्हें मेरे प्यार को छीनते हुए? अरे, दोबारा विवाह ही करना था, तो क्या लड़कों की कमी थी दुनिया में? मेरा प्यार क्यों छीन लिया तुम ने?’ फिर मन हुआ टेबल पर रखी गरम चाय उस के मुंह पर दे मारे, ताकि उस का यह सुंदर चेहरा बिगड़ जाए. आखिर इस के इसी सुंदर चेहरे पर विशाल को प्यार हो गया न? और इस के इसी सुंदर चेहरे की वजह से ही विशाल ने उसे ठुकरा दिया न? लेकिन उस ने अपने उबलते गुस्से को कंट्रोल कर लिया और उस की बातें सुनने लगी.

लीना विशाल से पास के ही कौफीहाउस में मिलने की बात कह रही थी. लीना के जाने के कुछ देर बाद वह भी घर से निकल पड़ी. अपने चेहरे को दुपट्टे से आधा ढक कर उस ने गौगल्स चढ़ा लिया था ताकि कोई उसे पहचान न पाए. और जा कर ठीक उन के पीछे वाली टेबल पर बैठ गई ताकि उन की बातें ठीक तरह से सुन पाए. फिर वह सोचेगी कि उसे क्या करना है. पता नहीं वह क्या प्लान बना रही थी दोनों को ले कर, यह तो वही जाने.

विशाल ने 2 कप कौफी और्डर किया और गौर से लीना को देखने लगा, जो अब भी सिर झुकाए उसी तरह बैठी थी. “कुछ परेशान लग रही हो,” लीना के चेहरे को पढ़ते हुए विशाल बोला.

“हां, हूं मैं परेशान. और इस की वजह आप हैं. क्यों कर रहे हैं आप ऐसा? मांपापा के सामने मैं कुछ बोल नहीं पाई और न ही फोन पर आप को समझा सकती थी. लेकिन आज मैं आप को यहां यह समझाने आई हूं कि जिद छोड़ दीजिए. आप का प्यार मैं नहीं, बल्कि सोनाक्षी है. अच्छा किया क्या आप ने उस का दिल तोड़ कर? नहीं चाहिए मुझे आप की दया. आप खुद इस शादी से इनकार कर दीजिए, प्लीज,” हाथ जोड़ कर लीना कहने लगी, “और अपना लीजिए मेरी सोनू को. प्यार करती है वह आप से बहुत.”

लीना की बातें सुन कर पहले तो कुछ देर विशाल उसे देखता रहा, फिर बोला, “एक बात बताओ, क्या कभी कहा तुम से सोनाक्षी ने कि मैं ने उसे आई लव यू कहा? क्या एक लड़का और एक लड़की की दोस्ती का मतलब प्यार हो जाता है? नहीं न, फिर कैसे लगा तुम्हें या किसी को भी कि मैं उस से प्यार करता हूं. मैं ने अपनी ज़िंदगी में सिर्फ एक लड़की को चाहा और वह तुम हो लीना तुम और मैं तुम पर कोई दया नहीं कर रहा, बल्कि सच्चे दिल से तुम्हें प्यार करता हूं.”

उस बातों पर लीना का चेहरा झुक गया, क्योंकि विशाल की आंखों में उस के लिए प्यार साफसाफ दिख रहा था. “और जब मैं उस से प्यार ही नहीं करता, फिर शादी का क्या मतलब? बेईमानी नहीं होगा, यह हम दोनों के साथ? क्या खुश रह पाएंगे हम एकदूसरे के साथ, बोलो? मैं तुम से प्यार करता हूं लीना और तुम्हारे साथ ही खुश रह पाऊंगा. जानता हूं कि, मैं भी तुम्हें अच्छा लगता हूं. मेरे साथ रहते हुए तुम कितनी खुश रहती हो, देखा है मैं ने. लेकिन तुम जकड़ी हुई हो समाज की सोच के साथ कि लोग क्या कहेंगे? एक विधवा का जो ठप्पा लगा है न तुम पर, उस से तुम भी नहीं निकलना चाहती हो. बताओ न, क्यों नहीं निकलना चाहतीं? तुम ने ही एक रोज बताया था मुझे कि जब तुम्हारी चाची की जौंडिस से मौत हो गई थी, तब उन के मरने के कुछ महीने बाद ही तुम्हारे चाचा ने दूसरा विवाह कर लिया था. तो उन्हें समाज कुछ क्यों नहीं बोलता? सिर्फ औरतें ही क्यों समाज की बनाई चक्की में पिसती रहें, बोलो न?”

“वह सब मुझे नहीं पता, लेकिन यह जानती हूं कि एक विधवा के लिए दूसरा विवाह करना पाप है. हो सके तो आप सोनाक्षी से शादी कर लीजिए, वह आप से बहुत प्यार करती है,” कह कर नम आंखों से लीना वहां से उठ कर चली गई और विशाल वहीं बैठा जाने क्या सोचने लगा. कुछ देर बाद वह भी वहां से चला आया. काफी अपसेट लग रहा था वह. उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे?

विशाल के जाने के बाद सोनाक्षी भी वहां से निकल गई. आज लीना की बातें सुन कर उस का मन रो पड़ा. सोचने लगी, वह कितनी स्वार्थी हो गई है? जब उस के भाई सूरज की मौत हुई थी तब लीना को देख कर उस का भी कलेजा फटा था. वह भी चाहती थी लीना की गृहस्थी फिर से बस जाए. कोई उस का हाथ थाम कर फिर से उस की ज़िंदगी में बहार ले आए.

लेकिन आज जब कोई उसे दिल से प्यार करने वाला मिला है, उस से शादी करना चाहता है, तो उसे बुरा लग रहा है? सही तो कहा विशाल ने, कब उस ने मुझ से प्यार का इजहार किया? बल्कि मुझे ही यह गलतफहमी हो गई थी कि वह मुझे चाहता है.

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मैं तो यह सोच कर वहां गई थी कि सब के सामने उन्हें जलील करूंगी. बताऊंगी लोगों को कि कैसे उस की अपनी भाभी, जिसे वह अपना सबकुछ समझती थी, ने उस का प्यार छीन लिया. लेकिन वह तो यहां आ कर स्तब्ध रह गई. उस की भाभी तो आज व अब भी पहले उस के बारे में ही सोचती है, चाहती है विशाल उस से शादी करने से मना कर सोनाक्षी को अपना ले. यह सब सोचतेसोचते सोनाक्षी घर पहुंच गई.

आज उस के मन में विशाल और लीना को ले कर कोई गुस्सा या द्वेष नहीं था. बल्कि, वह खुश थी कि उस की भाभी का दूसरा विवाह होने जा रहा है और वह अपने हाथों से उसे सजाएगी, उसे लाल जोड़ा पहनाएगी. खूब नाचेगीगाएगी. और वह गुनगुनाने लगी, ‘मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुलहिया, सज के आएंगे दूल्हे राजा…’

Serial Story: दूसरा विवाह (भाग-2)

लीना को भी विशाल से बातें करना अच्छा लगता था. पता नहीं क्यों, पर उसे देखते ही लीना के चेहरे पर मुसकान तैर जाती. उन की दोस्ती तो किताबों से शुरू हुई थी. अकसर दोनों एकदूसरे को अपनीअपनी किताबें लेतेदेते रहते थे. पढ़ना दोनों को बहुत अच्छा लगता था. लेकिन वहीं सोनाक्षी किताबों से कोसों दूर भागती. कहता जब विशाल कि किताबें पढ़ कर देखो कभी, ज्ञान का खजाना छिपा है उस में. तब मुंह बनाती सोनाक्षी कहती कि नहीं, उसे इन किताबोंउताबों में कोई दिलचस्पी नहीं है. उसे तो, बस, विशाल में दिलचस्पी है. और उस की बात पर विशाल मुसकरा पड़ता था.

सोनाक्षी का किताबों से दूरदूर तक कोई नातारिश्ता नहीं था. आश्चर्य होता उसे कि कैसे कोई इतनी मोटीमोटी किताबें हफ्तेदस दिन में खत्म कर सकता है? वह तो सालों तक भी एक किताब खत्म नहीं कर पाएगी.

उसे तो फिल्में देखना, घूमना, होटलों में भोजन करना पसंद है. ज़िंदगी में मौजमस्ती होती रहे, बस, और कुछ नहीं चाहिए उसे. इसलिए तो कभीकभी विशाल के साथ भी वह बोर होने लगती थी क्योंकि उस के साथ होते हुए भी वह किताबों में खोया रहता था. गुस्से में कह भी देती, ‘किताबों से ही क्यों नहीं बातें करते? उसे ही अपना दोस्त बना लो न.’ तो हंसते हुए विशाल कहता कि वह तो अभी कुछ साल पहले उस की दोस्त बनी है. लेकिन ये किताबें तो बचपन से उस की साथी हैं, जो आजीवन उस का दोस्त रहेंगी.

लेकिन, अब एक और दोस्त मिल गई है उसे लीना के रूप में. बिलकुल उस की तरह ही सोच रखने वाली. जब भी दोनों बातें करने लगते, सोनाक्षी तुनक कर वहां से उठ कर चल देती और कहती कि उन की बातों का मुद्दा सिर्फ किताबें और पढ़ाई ही क्यों होती है, कुछ और क्यों नहीं होता? और उस की बात पर दोनों हंस पड़ते.

‘हंसो मत यार, सही कह रही हूं. और कोई बात नहीं सूझती क्या तुम दोनों को? जब देखो किताबें, देशदुनिया और राजनीति पर बातें करते रहते हो. अरे भई, कुछ इंट्रेस्टिंग बातें भी कर लिया करो कभी. मैं तो स्कूलकालेज की ही किताबें पढ़पढ़ इतनी ऊब चुकी थी कि सोचती कब पीछा छूटे इन से और मैं चैन की सांस लूं,’ हंसती हुई सोनाक्षी अपने बचपन की बातें याद कर कहती, ‘तुम्हें पता है विशाल, बचपन में मेरा स्कूल से भागने का रिकौर्ड था.

‘घर से मेरा स्कूल कुछ दूरी पर ही था. पापा मुझे स्कूल छोड़ कर जैसे ही जाते, मैं पीछेपीछे घर पहुंच जाती. यह रोज का किस्सा बन गया था. परेशान थे मांपापा मुझे ले कर. डर लगता उन्हें की कहीं रास्ते में कोई गाड़ी ठोकर न मार दे मुझे या कोई उठा कर ही ले भागा, तो फिर क्या करेंगे वे. और स्कूल से भागना क्या अच्छी बात है? इसलिए एक बार पापा ने टीचर को ही डांट पिला दी कि बच्चा उन के स्कूल से भाग जाता है, क्या उन्हें पता नहीं चलता? अगर बच्चे को कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा फिर?

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‘फिर क्या था, टीचर ने उस रोज मुझे रस्सी से बांध दिया ताकि मैं स्कूल से भाग न सकूं. लेकिन मैं ने रोनाचिल्लाना इतना मचाया कि उन्हें मुझे खोलना ही पड़ा. लेकिन प्रिंसिपल ने भी कह दिया कि स्कूल में अब मेरे लिए कोई जगह नहीं है. ऐसे बच्चे को वह अपने स्कूल में नहीं पढ़ा सकते. बहुत खुश थी मैं कि स्कूल और किताबों से मेरा पाला छूटा. लेकिन पापा ने जो मार मारी न उस रोज, आह, आज भी कांप उठती हूं याद कर के.

‘उस दिन के बाद से मैं स्कूल से कभी नहीं भागी, लेकिन किताबों के प्रति मेरी नफरत बरकरार रही. वह तो पापा के डर के कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी पड़ी, वरना तो पढ़ाई मुझे सजा से कोई कम नहीं लगती है आज भी,’ सोनाक्षी बोली.

‘कैसी बातें कहती हो तुम सोनाक्षी? पढ़ना क्या सजा होता है? अरे, किताबों में तो ज्ञान का भंडार छिपा है. मैं तो किताब पढ़ने के अलावा और कुछ सोच ही नहीं सकता. सोने से पहले रोज जब तक थोड़ा पढ़ न लूं, नींद नहीं आती’ विशाल की बात पर लीना ने भी सहमति जताई और कहा कि उसे भी बिना पढे नींद नहीं आती. काम से फुरसत मिलते ही वह किताब ले कर बैठ जाती है. मजा आता है उसे पढ़ने में.

एक सुर में दोनों को बोलते देख सोनाक्षी हंस पड़ी और एक लंबी सांस छोड़ती हुई बोली, ‘हूं, मुझे लगता है तुम दोनों की जोड़ी खूब जमेगी, क्योंकि एकजैसे जो हो तुम दोनों.’

उस की बातों पर दोनों एकदूसरे को देखने लगे और आंखों ही आंखों में जो बातें हुईं, ये तो उन्हें ही पता था. कहते हैं, आंखें दिल के झरोखे सी होती हैं. झरोखे बंद भी हो सकते हैं, पर होंठों की कोर एक ऐसा सूचक है जो कभी चुकता नहीं.

विशाल अपलक अब भी लीना को वैसे ही निहार रहा था. कुछ क्षणों की वह तंद्रा लीना को मानो उस कमरे से दूर अलग कहीं ले गई थी जहां होंठों के कोरों का कसाव, बिना तनिक कांपें भी, जैसे अनजाने कुछ नरम पड़ गया था. मुंह के आसपास की असंख्य शिराओं का अदृश्य तनाव कुछ ढीला हो गया था और जीवन का अदम्य लचीलापन जैसे फिर उभर कर एक स्निग्ध लहर बन गया था. ऐसा पहले भी कई बार हुआ जब किताबें लेतेदेते दोनों के हाथ आपस में स्पर्श कर जाता तो उन की आंखें बातें करने लगती थीं.

सोनाक्षी ने उसे झंकझोरा तो पाया कि वह कहीं खो गया था. लेकिन लक्ष्य किया उस ने कि उस के चेहरे के हावभाव को कोई पढ़ नहीं पाया. नास्तिकों की भीड़ में जैसे कोई भक्त अनदेखे क्षणभर आंख बंद कर अपने आराध्य का ध्यान कर लेता है, वैसे ही विशाल कहीं पर भी हो या किसी के साथ हो, अपनी लीना को मन की आंखों से देख ही लेता था.

लेकिन फिर भी लीना विशाल को सिर्फ एक अच्छा दोस्त समझती थी. उस के दिल में कुछ भी नहीं था उसे ले कर. वह तो आज भी अपने दिल में सूरज को बसाए हुए थी, जो अब इस दुनिया में नहीं है. 4 वर्षों पहले लीना और सूरज विवाह बंधन में बंधे थे. हंसतेमुसकराते शादी के 2 साल कैसे गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला. लेकिन एक दिन सूरज की मौत की खबर ने लीना को तोड़ कर रख दिया. एक तसल्ली थी की उस का सूरज देश के लिए शहीद हुआ है. गर्व था उसे अपने पति पर.

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सूरज फौज में था. अपनी बेटी को विधवा के रूप में देख कर लीना की मां ने तो खटिया ही पकड़ ली और उस के पापा गुमसुम से हो गए. लेकिन वे चाहते थे कि उन के जीतेजी बेटी का घर फिर से बस जाए क्योंकि ज़िंदगी इतनी छोटी भी नहीं होती कि बगैर किसी सहारे के जिया जा सके और वे कब तक बेटी के साथ रह पाएंगे. आज न कल, वे भी अपनी आंखें मूंद ही लेंगे, फिर क्या होगा लीना का?

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