बेवफाई: प्रेमलता ने किस वजह से की आशा की हत्या?

Serial Story: बेवफाई (भाग-1)

‘‘वैसे तो बाग और घर दोनों ही ठीक हैं, फिर भी अपने सामने धनीराम से पौधों की कटाईछंटाई करवा दूंगी. कारपेट और सोफे वगैरा भी वैक्यूम क्लीनर से साफ करवा देती हूं, पार्टी…’’

दया और नहीं सुन सकी और भागी हुई बगीचे में पानी देते अपने पति धनीराम के पास पहुंच कर बोली, ‘‘आज रविवार वाला धारावाहिक और फिल्म दोनों गए. मैडम के बाग की कटाईछंटाई, फिर वैक्यूम से घर की सफाई और फिर पार्टी का प्रोग्राम है…’’

‘‘तुझे कैसे पता? मैडम तो अभी बाहर आई ही नहीं,’’ धनीराम बोला.

‘‘फोन पर किसी को आज का प्रोग्राम बता रही थीं. तुम कमरे में जा कर जल्दी से नाश्ता कर आओ. एक बार मैडम ने काम शुरू करवा दिया तो पूरा होने के बाद ही सांस लेंगी और लेने देंगी.’’

तभी बंगले के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी.

‘‘ले मिल गई पूरे दिन की छुट्टी. मैडम तो अब सब कुछ भूल कर सारा दिन कमरा बंद कर के प्रेमलता मैडम के साथ ही बतियाएंगी,’’ धनीराम चहकते हुए प्रेमलता के लिए गेट खोलने को लपका.

‘‘आशा कहां है?’’ प्रेमलता ने तेजी से अंदर आते हुए पूछा.

‘‘दया गई है बुलाने. आप बरामदे में बैठेंगी या लौन में?’’

प्रेमलता बगैर कुछ बोले तेजी से बरामदे की सीढि़यां चढ़ने लगी और सामने कमरे से निकलती आशा पर नजर पड़ते ही हाथ में पकड़े रिवौल्वर से आशा के सीने में 5-6 गोलियां दाग दीं और फिर उतनी ही तेजी से अपनी गाड़ी की ओर बढ़ते हुए बोली, ‘‘ड्राइवर, पुलिस स्टेशन चलो.’’

‘‘पुलिस यहीं आ रही है मैडम, मैं ने आप के हाथ में रिवौल्वर देखते ही 100 नंबर पर फोन कर दिया है. आप कहीं नहीं जा सकतीं,’’ हाथ में मोबाइल पकड़े दया का कालेज में पढ़ने वाला बेटा यश प्रेमलता का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया.

‘‘ठीक है, पुलिस स्टेशन जाने और शायद फिर वहां से यहां आने से तो यहीं रुकना बेहतर है,’’ कह कर प्रेमलता ने आशा पर झुकी बदहवास सी दया से कहा, ‘‘वह मर चुकी है, उसे मत छूना दया. तुम्हारे हाथ या कपड़ों पर लगा खून देख कर पुलिस तुम्हें भी हिरासत में ले सकती है.’’

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‘‘लेकिन मैडम आप ने अपनी बहन सरीखी सहेली को गोली क्यों मार दी?’’ दया ने रुंधे स्वर में पूछा.

‘‘क्योंकि वह बेवफाई पर उतर आई थी,’’ प्रेमलता ने आवेश में कहा और फिर अपनी जीभ काट ली जैसे न बोलने वाली बात कह गई हो.

तभी पुलिस की जीप आ गई. महापौर प्रेमलता को देखते ही जीप से कूद कर उतरे एएसआई ने उसे सलाम किया.

‘‘संडे सैनसेशन की संपादिका आशालता को मैं ने अपने इसी रिवौल्वर से गोली मारी है. ये सब लोग इस के चश्मदीद गवाह हैं. आप मुझे गिरफ्तार कर लीजिए,’’ प्रेमलता ने रिवौल्वर लिए हाथ आगे बढ़ाए.

‘‘आप जैसी हस्ती को गिरफ्तार करने की मेरी औकात नहीं है, मैडम. मैं अपने सीनियर को फोन कर रहा हूं तब तक आप बैठिए,’’ कह एएसआई धनीराम की ओर मुड़ा, ‘‘कुरसी लाओ मैडम के लिए.’’

‘‘अपने सीनियर के बजाय सीधे एसएसपी अशोक का नंबर मिला कर मुझे दीजिए, मैं स्वयं उन से बात करती हूं,’’ प्रेमलता बोली.

एएसआई ने तुरंत नंबर मिला कर मोबाइल उसे पकड़ा दिया.

‘‘चौंकिए मत अशोक साहब. आप ने ठीक सुना है कि मैं ने आशालता का खून कर दिया है और मैं आत्मसमर्पण कर रही हूं… वजह बताने को मैं बाध्य नहीं हूं… व्यक्तिगत तो है ही… जानती हूं नगर निगम की महापौर ने जानीमानी संपादिका की हत्या की है, हंगामा तो होगा ही. खैर, आप अपने लोगों को कार्यवाही तेज करने को कहिए.’’

इस बीच यश ने आशा की सहायिका स्नेहा को फोन कर दिया था. शीघ्र ही लौन स्नेहा और

उस के सहयोगियों से भरने लगा. चूंकि दया, धनीराम और यश स्नेहा से पूर्वपरिचित थे उन्होंने फोन पर कही आशा की बात, प्रेमलता का आना, गोली मारना और कहना कि वह बेवफाई पर उतर आई थी सभी बातें स्नेहा को बताईं. सिवा उन्हें लाश के पास न जाने देने के एएसआई और कुछ नहीं कर सका. स्नेहा को एक सहयोगी से यह कहते सुन कर कि बेवफाई तो यही हो सकती है कि आशा मैडम प्रेमलता का कोई राज सार्वजनिक करने पर तुली हुई हों, एएसआई ने तुरंत यह बात अपने सीनियर को बताई और उस ने अपने सीनियर को.

प्रेमलता सब से अलग लौन में बैठी थी. उस के सपाट चेहरे पर अगर कोई भाव था तो झुंझलाहट का, क्षोभ या शोक का तो कतई नहीं.

‘‘मैं ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है और अब मैं किसी बात का कोई जवाब नहीं दूंगी स्नेहा, मेरे साथ समय बरबाद करने के बजाय तुम आशा के परिजनों को सूचित कर दो. अगर दिलीप का दुबई का नंबर तुम्हारे पास नहीं है तो मैं बता देती हूं,’’ प्रेमलता ने कहा.

‘‘बोलिए,’’ स्नेहा ने अपना मोबाइल चालू किया.

स्नेहा अभी फोन पर बात कर ही रही थी कि कुछ पुलिस अधिकारी आ गए. इंस्पैक्टर को अपने सहायक को यह कहते सुन कर कि उस नंबर का पता लगाओ जिस पर मरने से कुछ देर पहले आशा बात कर रही थी…

स्नेहा बीच में बोल पड़ी, ‘‘आशाजी दुबई में अपने पति दिलीप से बात कर रही थीं. ऐसा दिलीप सर ने मुझे बताया है और कहा है कि वह जैसे भी होगा शाम से पहले पहुंच जाएंगे.’’

‘‘और शाम को कौन सी पार्टी है?’’

‘‘मुझे तो नहीं पता, लेकिन प्रेमलता मैडम को जरूर मालूम होगा,’’ दया बोली.

प्रेमलता ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘मुझे तो न्योता नहीं मिला और अब जब पार्टी होगी ही नहीं तो क्यों थी या किस के लिए थी इस से अब क्या फर्क पड़ता है?’’

‘‘बहुत फर्क पड़ता है,’’ एसएसपी अशोक की आवाज पर प्रेमलता चौंक पड़ी.

‘‘चलिए, मान भी लिया कि आप ने ‘वह बेवफाई पर उतर आई थी’ जैसा कुछ नहीं कहा था, केवल किसी व्यक्तिगत कारण से हत्या की है कहने से भी काम नहीं चलेगा. हमें तो उस व्यक्तिगत कारण का पता लगा कर सरकार और जनता को सच बताना पड़ेगा. वैसे भी ऐसे हाई प्रोफाइल केस की जांच सीआईडी ही करती है. इसलिए मैं ने सीआईडी कमिश्नर को फोन कर दिया है, क्योंकि आप से कुछ कुबूल करवाने की काबिलीयत मुझ में नहीं है.’’

‘‘लेकिन सीआईडी के हाथों जलील करवाने की तो है ही,’’ प्रेमलता मुसकराई.

‘‘खैर, परवाह नहीं. अब जब नाम वाले हैं तो बदनाम भी जोरशोर से ही होंगे.’’

‘‘अगर अपनी इस बदनामी की वजह मुझे बता देतीं तो मेरा भी नाम हो जाता,’’ अशोक ने उसांस ले कर कहा.

प्रेमलता विद्रूप हंसी हंसी, ‘‘ब्रेफिक्र रहो अशोक, अगर तुम्हें नहीं तो तुम्हारे सीआईडी वालों को भी शोहरत नहीं दिलवाऊंगी.’’

तभी सीआईडी के कमिश्नर की गाड़ी आ गई. स्नेहा ने सभी मीडिया कर्मियों को उन्हें घेरने से रोका. दोनों उच्चाधिकारी आपस में बात कर रहे थे कि इंस्पैक्टर देव अपने सहायक वासुदेव के साथ आ गया. अशोक उसे देख कर चौंके.

‘‘ऐसे पेचीदा केस देव ही सुलझा सकता है अशोक. सो मैं ने तुरंत इसे बुलाना बेहतर समझा,’’ स्नेहा बोली.

‘‘राई का पहाड़ बनाने का शौक है आप लोगों को. 3 चश्मदीद गवाह हैं, रिवौल्वर और मेरा आत्मसमर्पण मिल तो गया है मुझ पर मुकदमा चलाने को… अब इस में पेचीदगी ढूंढ़ने के लिए अपने खास जासूस को लगाने की क्या जरूरत है?’’ प्रेमलता ने पूछा फिर आगे बोली, ‘‘वैसे एक बात बता दूं इंस्पैक्टर देव, मुझे जो कहना था कह दिया. इस से ज्यादा मुझ से तुम कुछ नहीं उगलवा पाओगे.’’

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‘‘इंस्पैक्टर देव अपराधी से पूछताछ के बजाय उस से जुड़ी अन्य चीजों की सीढ़ी बना कर सफलता के शिखर पर पहुंचने के लिए जाने जाते हैं,’’ स्नेहा ने कहा.

इंस्पैक्टर देव ने चौंक कर उस की ओर देखा. लंबी, पतली, सांवलीसलोनी खोजी पत्रकार स्नेहा. हमेशा सीआईडी पर कटाक्ष करने वाली स्नेहा आज उस के पक्ष में बोल रही थी.

‘‘दिलीप की अनुपस्थिति में आशा की सब से करीबी तुम ही हो स्नेहा तो तुम्हीं से पूछताछ करनी पड़ेगी,’’ अशोक ने कहा, ‘‘आशा मेरी बीवी की फ्रैंड थी. सो उस के करीबी लोगों के बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूं.’’

‘‘तब तो आप से भी पूछताछ करनी पड़ेगी सर,’’ देव बोला.

‘‘जरूर देव, कभी कहीं भी.’’

‘‘यह सब कर के तुम अपने दोस्त दिलीप को और भी दुखी करोगे अशोक,’’ प्रेमलता ने चुनौती भरे स्वर में कहा.

‘‘उस की जिंदगी का सब से बड़ा दुख तो तुम उसे दे ही चुकी हो. अब हमारे छोटेमोटे झटकों से क्या फर्क पड़ेगा उसे,’’ अशोक देव की ओर मुड़े, ‘‘तो अब तुम संभालो देव, हम चलते हैं. अपनी सहायिका स्नेहा की आशा बहुत तारीफ किया करती थी. निजी तौर पर स्नेहा उस के कितने करीब थी, मैं नहीं जानता पर आशा की इस अप्रत्याशित मृत्यु का रहस्य खोजने में स्नेहा से तुम्हें बहुत सहयोग मिलेगा. दया और धनीराम भी आशा के पास कई सालों से हैं, उन से भी मदद मिल सकती है. बैस्ट औफ लक देव.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ देव ने सैल्यूट मारा.

सब के जाने के बाद देव स्नेहा की ओर मुड़ा. वह कुछ लोगों को निर्देश दे रही थी.

‘‘यह हमारे औफिस का स्टाफ है औफिसर, इन सब को औफिस जाने दूं या आप इन से कुछ पूछना चाहेंगे,’’ स्नेहा ने पूछा, ‘‘वैसे तो आज छुट्टी है, लेकिन कुछ लोग आज भी काम पर हैं.’’

‘‘आप की इस टिप्पणी के बाद कि आशा प्रेमलता का कोई राज फाश करने जा रही थीं, हमें आशाजी के औफिस के सभी कागजात चैक करने होंगे और सब से पूछताछ भी…’’

‘‘इस सब के लिए तो मैडम का लैपटौप और आई पैड चैक करना ही काफी होगा,’’ स्नेहा ने बात काटी, ‘‘ये दोनों तो घर पर ही मिल जाएंगे. इस मामले में जब सहायक संपादिका यानी मुझे ही कुछ मालूम नहीं है तो स्टाफ के जानने का सवाल ही नहीं उठता.’’

‘‘ठीक है, अभी इन लोगों को औफिस जाने दीजिए. जो पूछना होगा हम वहीं आ कर पूछेंगे. आप आशाजी का लैपटौप और आई पैड कहां रखा होगा जानती हैं?’’

‘‘मैं जानता हूं,’’ यश ने आगे आ कर कहा, ‘‘मैडम की स्टडी यानी औफिसरूम में. आप वहीं चलिए सर, आप को वहां बैठ कर अपना काम यानी हम सब से पूछताछ वगैरा करने में आसानी होगी.’’

‘‘यहां हमें क्या करना चाहिए यह दूसरों को हम से ज्यादा मालूम है,’’ देव ने वासुदेव ने कहा. अपने स्टाफ को भेज कर स्नेहा भी उन के पीछे स्टडीरूम में आ गई.

‘‘मुझे मैडम के पासवर्ड मालूम हैं, क्योंकि कई बार किसी अन्य कार्य में व्यस्त होने पर वे मुझे अपने लैपटौप या आई पैड से कोई फाइल देखने को कहती थीं.’’

‘‘ठीक है, आप देखिए इस विषय में कुछ मिलता है,’’ देव ने कहा, ‘‘तब तक मैं दया के परिवार से पूछताछ करता हूं.’’

‘‘मैडम के भाईबहन वगैरा को हम ने फोन कर दिया है,’’ दया ने बगैर पूछे कहा, ‘‘ससुराल वालों के नंबर हमें मालूम नहीं हैं.’’

‘‘मैडम के मांबाप नहीं हैं?’’

‘‘नहीं, न ही सासससुर यहां हैं. ससुर हैं. वे अपने दूसरे बेटे के पास रहते हैं. उन का नंबर हमें मालूम नहीं है.’’

‘‘और क्या जानती हो मैडम के बारे में?’’

‘‘यही कि अखबार में काम करती थीं. साहब दुबई में काम करते हैं, महीने 2 महीने में आते थे… कभी मैडम भी चली जाती थीं. बड़े अच्छे…’’

‘‘प्रेमलता के बारे में जो भी जानती हो विस्तार से बताओ?’’

दया के चेहरे पर क्रोध और घृणा के भाव उभरे. बोली, ‘‘बस इतना ही जानते हैं

कि वे मैडम की बचपन की सहेली थीं. बावरी सी हो जाती थीं मैडम इन्हें देखते ही. जिस छुट्टी के रोज प्रेमलता अचानक दिन में आ जाती थीं, तब चाहे कितना भी काम पड़ा हो उन के आते ही मैडम हमें अपने कमरे में जाने को कह देती थीं यह कह कर कि जब तक न पुकारें आना मत.’’

‘‘प्रेमलता अकसर आती थीं?’’

‘‘हां, रात को भी यहीं रुकती थीं. मैडम भी जाती थीं उन के घर. औफिस से फोन कर के कह देती थीं कि आज प्रेम के घर जा रही हूं. सुबह आऊंगी. दोनों ही नौकरी करती थीं. सो दिन में तो फुरसत होती नहीं थी.’’

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‘‘साहब की दोस्ती भी थी प्रेमलता से?’’

‘‘पता नहीं. उन के आने पर तो जब कोई दावत होती थी तभी आती थीं वह और दावत में तो साहब सब से ही हंस कर बात करते हैं.’’

‘‘साहब और मैडम में कभी झगड़ा हुआ प्रेमलता का नाम ले कर?’’

‘‘हमारे साहब व मैडम में कभी झगड़ा नहीं होता था साहब.’’

‘‘माफ करिएगा इंस्पैक्टर, आशा मैडम और दिलीप सर जैसे संभ्रांत दंपती नौकरों के सामने नहीं झगड़ते,’’ स्नेहा बोली, ‘‘और फिर उन के झगड़े का प्रेमलता की हत्या करने से क्या संबंध?’’

‘‘मेरे हर सवाल का संबंध हत्या के कारण से है. आप कहिए. आप को मिला कुछ?’’ देव ने पूछा.

‘‘प्रेमलता के बारे में कुछ नहीं, न ही ऐसा कुछ जिस के बारे में मुझे न मालूम हो.’’

‘‘इस में मैडम की व्यक्तिगत फाइलें भी तो हो सकती हैं?’’

‘‘अगर मैं कहूंगी कि लगता तो नहीं, तब भी आप अपनी शिनाख्त तो करेंगे ही सो कर लीजिए,’’ स्नेहा मुसकराई, ‘‘वैसे मैडम के लैपटौप से ज्यादा प्रेमलता का लैपटौप और ड्राइवर वगैरा इस तहकीकात में मदद कर सकते हैं आप की.’’

देव मुसकराया, ‘‘यहां आने से पहले ही मैं ने अपने सहायक वसंत को प्रेमलता के बंगले पर भेज दिया था और कमिश्नर साहब प्रेमलता के स्टाफ को बुलवा कर उस का औफिस खुलवाने की व्यवस्था करवा रहे हैं. आप ने भी सुना होगा, प्रेमलता ने जातेजाते अपने ड्राइवर को यहां रुकने और पुलिस से सहयोग करने को कहा था. अभी लेंगे उस का सहयोग.’’

तभी स्नेहा का मोबाइल बजा, ‘‘ओके सर… बौडी तो पोस्टमार्टम के लिए ले गए… पुलिस पूछताछ कर रही है. प्रेमलता फिलहाल तो सहयोग नहीं कर रही,’’ मोबाइल बंद कर के स्नेहा ने देव की ओर देखा, ‘‘दिलीप सर का फोन था. वे प्लेन में बैठ चुके हैं और 2 बजे तक पहुंच जाएंगे. मैं एअरपोर्ट जाऊंगी उन्हें लाने.’’

‘‘मेरा विभाग पासपोर्ट, कस्टम और सामान लाने की औपचारिकताएं संभाल लेगा. दिलीप को हम प्लेन से निकलते ही अपने साथ ले आएंगे,’’ देव ने कहा, ‘‘बेहतर होगा आप हमारे साथ चलें.’’

स्नेहा ने सीधे उस की आंखों में देखा, ‘‘आप को दिलीप सर पर शक है?’’

‘‘फिलहाल तो नहीं,’’ देव ने बगैर पलकें झुकाए कहा, ‘‘वैसे शक आप कर रही हैं मेरी सहृदयता पर… एक शोकाकुल व्यक्ति की सहायता कर रहा हूं मानवता के नाते.’’

‘‘ओह सो नाइस औफ यू… रास्ते में पूछताछ नहीं करेंगे?’’ स्वर में व्यंग्य था या जिज्ञासा, देव समझ नहीं सका.

‘‘पहले आप दोनों को बात करने दूंगा. फिर मौका देख कर सवाल करूंगा, क्योंकि बगैर सवाल किए तो इस हत्या की वजह पता चलने से रही और जिस के पास इस सवाल का जवाब है वह जवाब देने से रही. सो यहांवहां सवाल कर के ही अटकल लगानी होगी, मुझे भी और आप को भी,’’ देव ने कहा और फिर स्नेहा को भृकुटियां चढ़ाते देख कर जल्दी से बोला, ‘‘वजह की तलाश तो मेरे से ज्यादा आप को है, क्योंकि आशाजी आप की…’’

‘‘आशाजी मेरी बौस ही नहीं, मेरी बड़ी बहन की तरह भी थीं,’’ स्नेहा ने रुंधे स्वर में बात काटी, ‘‘बड़े प्यार से या यह कहिए बड़े मनोयोग से संवार रही थीं मेरा कैरियर. उन जैसी सहृदया, शालीन महिला की हत्या क्यों हुई और वह भी उन की प्रिय सखी के हाथों, यह जानने को मैं वाकई में बेचैन हूं.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं. अच्छा, यह बताइए प्रेमलता आप के औफिस में भी आया करती थीं?’’

‘‘कभीकभार. या फिर उस सार्वजनिक छुट्टी को जब उन की तो छुट्टी रहती थी, लेकिन हमारा औफिस खुला रहता था. तब वे दोपहर को मैडम को लेने आती थीं. स्विमिंग या किसी रिजोर्ट वगैरा में ले जाने को, बिलकुल किसी स्नेहिल बहन या अभिन्न सहेली की तरह और आज उसी सहेली ने बेबात उन का खून कर दिया,’’ स्नेहा का स्वर फिर रुंध गया.

देव ने कुछ देर उसे संयत होने का समय दिया. फिर बोला, ‘‘वही बात तो हमें तलाश करनी है. प्रेमलता कोई कमसिन किशोरी तो है नहीं जो किसी बात पर चिढ़ कर भावावेश में आ कर किसी का खून कर दे.’’

‘‘खून तो भावावेश में आ कर नहीं सोचसमझ कर किया है इंस्पैक्टर. तभी तो वह रिवौल्वर ले कर आई थी. आप के सहायक ने मैडम के कौल रिकौर्ड चैक कर के बताया तो है कि कल रात मैडम ने देर तक प्रेमलता से बात की थी. आप ने भी गौर किया होगा प्रेमलता की आंखें चढ़ी हुई थीं जैसे रात भर जागी हो. ऐसा क्या कहा होगा मैडम ने जिस के कारण न प्रेमलता रात भर सो सकी और न आशा मैडम को आज का दिन देखने दिया,’’ स्नेहा सिसक पड़ी.

‘‘वही तो हमें पता लगाना है स्नेहाजी. अगर आप ऐसे विह्वल होंगी तो कैसे चलेगा,’’ वासुदेव ने कहा और फिर स्नेहा का ध्यान बंटाने को जोड़ा, ‘‘वैसे अच्छा है कि आप ने खोजी पत्रकार बनना पसंद किया हमारे विभाग में आना नहीं, वरना हम जैसों की तो खटिया ही खड़ी कर देनी थी आप ने.’’

देव हंसा, ‘‘बखिया तो हमारे विभाग की अभी भी उधेड़ती रहती हैं. लेकिन इस बार प्रेमलता की असलियत उधेड़ने में मुझे वाकई में आप की मदद चाहिए. चलिए, आशाजी के बैडरूम को देखते हैं, शायद कुछ मिल जाए.’’

‘‘जब आप खुद ही शायद कह रहे हैं तो फिर दिलीप सर के आने तक रुक जाइए. ऐसे मैडम के बैडरूम में जाना और वह भी उन के न रहने के बाद अच्छा नहीं लग रहा. आप चाहें तो बैडरूम सील कर दें,’’ स्नेहा हिचकिचाई, ‘‘मैं प्रेमलता का घर देखना चाहूंगी.’’

‘‘चलिए. वासुदेव, तुम खयाल रखना कोई किसी चीज से छेड़छाड़ न करे. अगर कोई खास फोन हो तो मुझे बता देना,’’ कह देव उठ खड़ा हुआ, ‘‘बजाय इस के कि आप पुलिस की गाड़ी में चलें, मैं आप के साथ आप की गाड़ी में चलता हूं. फिर उसी में एअरपोर्ट चले जाएंगे.’’

प्रेमलता के सरकारी बंगले पर वसंत एक औफिसनुमा कमरे में बैठा कंप्यूटर चैक कर रहा था.

‘‘कुछ मिला क्या?’’ देव ने पूछा.

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वसंत ने मायूसी से सिर हिलाया, ‘‘रूटीन औफिस फाइलें सर. ऐसा कुछ नहीं जिस पर उंगली उठाई जा सके. लेकिन आई पैड में कविताएं भरी पड़ी हैं, शायद रोज ही एक कविता लिखती थीं महापौर…’’

‘‘कहीं उन्हीं कविताओं को छपवाने को ले कर तो झगड़ा नहीं हुआ था दोनों में स्नेहाजी?’’ देव ने वसंत की बात काटी.

‘‘संडे सैनसेशन में कहानियां और कविताएं न छापना मैनेजमैंट की पौलिसी है, जिस में मैडम कोई बदलाव नहीं कर सकती थीं,’’ स्नेहा ने वसंत के कंधे पर झुक कर आई पैड स्क्रीन को देखा, ‘‘और फिर ये कविताएं तो हिंदी में हैं. संडे सैनसेशन में छापने का सवाल ही नहीं उठता? मैं इन्हें पढ़ सकती हूं?’’

‘‘जरूर,’’ वसंत ने आई पैड पकड़ाते हुए कहा, ‘‘प्राय: सभी कविताएं ‘मेरी उम्मीद’ या ‘मेरी उम्मीद की किरण’ को संबोधित हैं. बहुत अच्छी कवयित्री बन सकतीं थीं महापौर अगर उन्होंने उम्मीद को छोड़ कर कोई और विषय भी चुना होता.’’

‘‘लय और छंद का तालमेल बहुत बढि़या है, मेरी जिंदगी है उम्मीद मेरी बंदगी है उम्मीद…’’

‘‘हम यहां कविता पाठ करने नहीं, तहकीकात करने आए हैं,’’ देव ने टोका, ‘‘लगता है वसंत, तुम ने भी अभी तक कविताओं का रसास्वादन ही किया है?’’

‘‘आप ने ही आई पैड चैक करने को कहा था, तो उस में तो कविताएं ही हैं. टेबल टौप में पुरानी रूटीन फाइलें हैं और लैपटौप पर भी औफिस की कोई गोपनीय सूचना नहीं है. प्रेमलता का बैडरूम लौक्ड है. दूसरे कमरों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है.’’

‘‘मास्टर की से बैडरूम खोल लो,’’ देव ने कहा, ‘‘स्नेहाजी, चलिए पहले बैडरूम देखते हैं.’’

बैडरूम में घुसते ही सब चौंक पड़े.

  • क्रमश:

Serial Story: बेवफाई (भाग-3)

आशा की बौडी लेने जब दिलीप अंदर गया तो देव ने स्नेहा से कहा, ‘‘इस ने तो मामला और भी उलझा दिया है.’’

‘‘आप को नहीं लगता कि प्रेमलता ने आशा के अपने पति के पास जाने के फैसले को खुद से बेवफाई समझा था?’’

देव चौंक पड़ा, ‘‘यह तो तभी हो सकता है जब हमारा शक उन दोनों के रिश्तों के बारे में सही हो और दिलीप की यह बात सुन कर कि आशा अब बच्चा चाहती थी हमारा शक तो बेबुनियाद लगता है.’’

‘‘हो सकता है आशा हैट्रो सैक्सुअल हो. हालां मेरा दिलीप सर के साथ रहना जरूरी है, लेकिन उस से भी जरूरी है रूपम से मिलना और वह भी उस के पति के औफिस से लौटने से पहले, क्योंकि उस के सामने रूपम ये सब बातें शायद न करे.’’

देव कुछ बोलता उस से पहले ही दिलीप आ गया, ‘‘मैं तो आशा के साथ ऐंबुलैंस में आऊंगा, आप लोग जाइए. स्नेहा, तुम सुबह से अपने घर से निकली हो सो अब घर जा फ्रैश हो आओ. मेरे घर पर आशा के बहनभाई पहुंच गए हैं और मेरे परिवार वाले भी पहुंचने वाले हैं. मैं ने यश को फोन किया था. उसी ने बताया सब.’’

‘‘ठीक है सर, मैं कुछ देर बाद आती हूं. टेक केयर,’’ स्नेहा का स्वर रुंध गया.

‘‘आप चलिए, मैं दिलीप के साथ रुकता हूं,’’ देव ने कहा, ‘‘मेरा नंबर ले लीजिए, अगर रूपम से कुछ सुराग मिले तो फोन करिएगा.’’

‘‘जरूर.’’

घर जा कर फ्रैश होने के बाद स्नेहा रूपम से मिलने गई. गैस्ट हाउस में रिसैप्शनिस्ट से मैसेज मिलते ही रूपम ने उसे अपने कमरे में बुला लिया.

‘‘मैं ने टीवी पर न्यूज सुनते ही आप के औफिस में फोन किया था पर आप मिली नहीं…’’

‘‘जी हां, मैं भी सीआईडी इंस्पैक्टर के साथ तफतीश में लगी हुई हूं. प्रेमलताजी ने यह कह कर कि आशा बेवफाई पर उतर आई थी, अटकलों का पिटारा तो खोल दिया और फिर यह कह कर कि यह व्यक्तिगत बात है चुप्पी साध ली. अब इतनी बड़ी शख्सीयत का मुंह खुलवाने का रास्ता पुलिस के आला अधिकारियों की समझ में नहीं आ रहा सो मामला आननफानन में सीआईडी के सुपुर्द कर दिया है,’’ स्नेहा सांस लेने को रुकी, ‘‘फिलहाल प्रेमलता के घर पर जो देखा उस से सीआईडी का सब से माहिर इंस्पैक्टर देव भी चकरा गया है और मैं इसी सिलसिले में आप की मदद लेने आई हूं.’’

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‘‘मेरी मदद?’’ रूपम ने भौंहें चढ़ा कर पूछा, ‘‘मैं भला क्या मदद कर सकती हूं? कई वर्षों बाद मैं पिछले सप्ताह आशा से मिली थी. प्रेम से तो अभी मुलाकात ही नहीं हुई. सो उस के घर में आप ने जो देखा उस के बारे में मुझे क्या पता होगा?’’

‘‘मैं बताती हूं, प्रेमलता के बैडरूम में आशा का लाइफसाइज पोट्रैट लगा था…’’

‘‘ओह नो,’’ और रूपम हंसी से लोटपोट हो गई. फिर अपने को संयत करते हुए बोली, ‘‘क्षमा करिएगा, मैं खुद पर काबू नहीं रख सकी.’’

‘‘यानी इस रिश्ते के बारे में आप को मालूम था?’’

‘‘मुझे ही नहीं प्रेम और आशा के साथ होस्टल में रहने वाली सभी लड़कियों को मालूम था. दोनों का कहना था कि हम दोनों का नाम लता है और लता का काम ही लिपटना होता है. सो हम दोनों एकदूसरे से लिपट कर अपने नाम को सार्थक करती हैं. उन के घर वालों को मालूम था या नहीं मैं नहीं जानती,’’ रूपम बगैर कुछ पूछे कहती गई, ‘‘लेकिन इन दोनों ने यह समझ लिया था कि एकदूसरे के साथ रहने के लिए पढ़ाई से बढ़ कर और कोई बहाना नहीं हो सकता.

सो दोनों एकदूसरे से लिपट कर पढ़ती रहती थीं और अव्वल आया करती थीं. सो घर वाले भी आगे पढ़ने में सहयोग दे रहे थे. एमए तक तो दोनों होस्टल में रहती थीं. फिर मेरी शादी हो गई. एक अन्य सहेली से सुना था कि दोनों लताएं विभिन्न व्यवसायिक कोर्स कर रही हैं और होस्टल के बजाय फ्लैट में ऐज ए कपल रह रही हैं.’’

‘‘फिर आशा मैडम ने शादी कैसे कर ली?’’

‘‘यह तो प्रेम ही बता सकती है.’’

स्नेहा ने मायूसी से सिर हिलाया, ‘‘जिस दृढ़ता से सुबह उस ने पुलिस अधिकारियों से कहा था कि इकबाले जुर्म के अलावा वह और कुछ नहीं कहेगी मुझे नहीं लगता कि वह कुछ बताएगी.’’ ‘‘आशा के अपने पति के साथ कैसे संबंध थे?’’

‘‘दिलीप सर जिस तरह से व्यक्ति हैं, उस से तो लगता है दोनों में बहुत प्यार था. वैसे तो मैडम व्यक्तिगत बात नहीं करती थीं, लेकिन जब भी दिलीप सर आने वाले होते थे तो उन के चेहरे और व्यवहार में भी उमंग, उत्साह और आकुलता होती थी और उन के जाने के बाद मायूसी किसी भी सामान्य दंपती की तरह.’’

‘‘मनोविज्ञान की ज्ञाता हो?’’

‘‘ज्ञाता तो खैर नहीं हूं, लेकिन एमए मनोविज्ञान में ही किया है.’’

‘‘तो फिर अपने इस ज्ञान का फायदा उठा कर प्रेम को इमोशनल ब्लैकमेल क्यों नहीं करतीं? उस से जा कर जेल में मिलो और बताओ कि

उस के घर की तलाशी लेने पर तुम्हें और इंस्पैक्टर को उस के और आशा के रिश्ते का पता चल गया है. अभी तक तो तुम ने इंस्पैक्टर को यह बात दिलीप को बताने से रोक लिया है, क्योंकि तुम नहीं चाहतीं कि आशा मरने के बाद पति की नजरों से गिरे. अगर प्रेम को वाकई में आशा से प्यार था तो वह भी अपनी प्यारी आशा की रुसवाई नहीं चाहेगी.’’

‘‘ठीक है इंस्पैक्टर देव से कहती हूं कि मुझे प्रेमलता से मिलने दें,’’ स्नेहा उठ खड़ी हुई, ‘‘आप के सुझाव के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘मैं भी आशा की रुसवाई नहीं चाहूंगी स्नेहा और उसे रोकने का एक ही तरीका है प्रेम का इमोशनल ब्लैकमेल. आशा की रुसवाई रोकने के लिए वह जरूर कुछ बोलेगी.’’

रूपम के कमरे से निकल कर स्नेहा ने देव को फोन कर रूपम के सुझाव के बारे में बताया.

‘‘सुझाव तो अच्छा है, लेकिन प्रेमलता तुम्हें देखते ही सतर्क हो जाएगी और फिर उस को इमोशनल ब्लैकमेल करना मुश्किल होगा. बेहतर होगा कि यह काम रूपम ही करे. तुम उन से आग्रह करो.’’

‘‘ठीक है इंस्पैक्टर, मैं अभी बात करती हूं.’’

थोड़ी हीलहुज्जत के बाद रूपम इस शर्त पर यानी कि वह प्रेमलता से मिलने जेल में नहीं जाएगी और न ही उस की और प्रेमलता की मुलाकात की खबर मीडिया में आएगी, क्योंकि हत्या की अभियुक्ता से उस की दोस्ती उस के पति की पदप्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं होगी.

‘‘मैं आप की बात से सहमत हूं. इंस्पैक्टर से कहती हूं कि जेल से बाहर आप की मुलाकात करवाए.’’

बात देव की समझ में भी आई. अत: उस ने कमिश्नर साहब से बात की.

‘‘मैं आईजी प्रिजन से बात कर के प्रेमलता को मैडिकल चैकअप के बहाने जेल से बाहर भिजवाने की कोशिश करता हूं. ऐसी जगह जहां रूपम उस से बात कर सके और तुम चुपचाप उस बातचीत को रिकौर्ड कर लेना, लेकिन इस में समय लगेगा.’’

‘‘कोई बात नहीं सर, मीडिया को कह देंगे कि सिवा महापौर के इकबाले जुर्म के पुलिस और कोई सुराग जुटाने में अभी तक असफल है.’’

अगले रोज जब मीडिया आशा के अंतिम संस्कार की कवरेज में व्यस्त था, देव और स्नेहा रूपम को एक अस्पताल के वीआईपी ब्लौक में ले गए. एक वातानुकूलित कमरे में सोफे पर बैठी प्रेमलता अखबार पढ़ रही थी. उस के चेहरे पर थकान जरूर थी, पर उदासी या परेशानी नहीं.

रूपम को देख कर वह चौंक पड़ी. बोली, ‘‘अरे रूपम तू… आशी ने बताया तो था कि तू शहर में है, लेकिन यहां अस्पताल में कैसे? सब खैरियत तो है न?’’

‘‘खैरियत तूने छोड़ी ही कहां है?’’ रूपम के स्वर में विद्रूप था, ‘‘टीवी चैनलों और अखबारों की खबरों पर मुझे विश्वास नहीं हुआ कि तू आशा यानी अपनी जान की जान ले सकती है और अगर ले भी ली थी तो तुरंत अपनी जान भी क्यों नहीं दे दी? आत्मसमर्पण का ड्रामा कर के अपनी और आशा की दोस्ती को रुसवा क्यों किया?’’

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प्रेमलता के चेहरे पर ‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था’ जैसे भाव उभरे लेकिन अगले ही पल संयत हो कर बोली, ‘‘तुझे यहां कैसे और किस ने आने दिया?’’

‘‘ससुराल की तरफ से रिश्तेदारी है एक आला पुलिस अफसर से. सो उन्होंने मेहरबानी कर दी.’’

‘‘मेहरवेहरबानी कुछ नहीं, यह जान कर कि तू मेरी सहपाठिन है मुझ से कुछ उगलवाने को भेजा है.’’

‘‘तेरे से अब कुछ उगलवाने की जरूरत किसे है? तेरे बैडरूम की तलाशी और दिलीप से मिली इस जानकारी ने कि आशा यहां की नौकरी छोड़ कर दुबई में बसने जा रही थी, तेरे इस बयान का कि यह बेवफाई पर उतर आई थी का रहस्य भी खोल दिया है, लेकिन बेचारी आशा की इज्जत की तो बुरी तरह धज्जियां उड़ा दीं और जांनिसार पति की नजरों में भी गिरा दिया. अच्छा सिला दिया आशा की दोस्ती का…’’

‘‘बगैर पूरी बात सुने अपना फैसला सुनाने की तेरी कालेज की आदत अभी तक गई नहीं,’’ प्रेम ने बात काटी.

‘‘आदतें कभी नहीं जातीं प्रेम,’’ रूपम व्यंग्य से हंसी, ‘‘तुझे और आशा को जो एकदूसरे की आदत पड़ चुकी थी वह आशा की शादी के बाद गई क्या?’’

‘‘सवाल ही नहीं उठता था. घर वालों के तकाजे से तंग आ कर आशी जब खाड़ी में बसे एक सैल्स ऐग्जीक्यूटिव से शादी कर रही थी तो मैं ने बहुत समझाया था कि ऐसी गलती मत कर, मेरे वाली चाल चल कर घर वालों को बहलाती रह.’’

‘‘तेरी कौन सी चाल थी?’’ रूपम ने दिलचस्पी से पूछा.

‘‘यही कि जब भावी वर से अकेले में मुलाकात हो तो उसे या तो हकीकत बता दो या कुछ ऐसा कहो कि वह स्वयं ही शादी से मना कर दे. मैं ने तो कई लोगों के साथ यही किया और फिर घर वालों से विनती की कि मेरी शैक्षिक योग्यता और नौकरी को देख कर हीनभावना से भर कर जब सभी मुझे नकार देते हैं, तो बारबार रिश्ते की बात चला कर मेरा तमाशा बनाना बंद कर दें. शादी जब होनी होगी हो जाएगी. बात उन की समझ में आ गई.

‘‘लेकिन आशी ने अपनी बीमार मां की खुशी के लिए दिलीप से शादी करनी मान ली कि दुबई में टूअरिंग जौब करने वाला, उसे न तो वहां ले कर जाएगा और न ही जल्दीजल्दी यहां आया करेगा. इसी बात पर वह तलाक ले कर उस से छुटकारा पा लेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. दिलीप कुछ सप्ताह के अंतराल में आता था. तब आशी मुझ से कोई संपर्क नहीं रखती थी. चंद दिनों की बात होती थी. सो मैं बरदाश्त कर लेती थी. लेकिन अब तो दिलीप ने दुबई में अपने लिए ही नहीं आशी के लिए भी नौकरी ढूंढ़ ली थी, आशी इस से बेहद खुश थी. तू ही बता मेरे साथ मरनेजीने के वादे करने वाली आशी का मुझे इस तरह मझधार में अकेले छोड़ कर जाना मैं क्यों और कैसे बरदाश्त करती?’’

प्रेम थोड़ी देर रुक कर फिर बोली, ‘‘इस से पहले कि तू पूछे कि मैं ने यह बात आशी से क्यों नहीं पूछी, तो बता दूं कि पूछी थी और वह इतरा कर बोली कि मैं तो अब रुकने से रही क्योंकि मुझे समझ आ गया है कि जिंदगी की असल कमाई पति के संग गुजारा समय है और तेरे संग गुजारे क्षण जिंदगी का बोनस. बहुत लूट लिया बोनस का मजा अब कुछ कमाई करना चाहती हूं और तुझे भी सलाह देती हूं कि मुझे भूल कर तू भी असली कमाई कर, क्योंकि सिर्फ बोनस के सहारे तो जिया नहीं जा सकता. जीने के लिए तो सभी कमाते हैं सो तू भी कमा और शादी कर के मेरी तरह जिंदगी और घरगृहस्थी का पूरा मजा लूट.’’

‘‘किस से शादी करूं?’’ मेरे यह पूछने पर आशी कुछ देर तो सोचती रही, फिर बोली कि तू ने बताया था कि 5 सितारा होटलों की शृंखला का मालिक अमन तेरे पीछे करोडों रुपए ले कर घूम रहा है कि तू उस के यहां बन रहे होटल में कुछ बोरवैल वगैरा खुदवाने की अनुमति दे दे, उस से क्यों नहीं शादी कर लेती? या कहे तो दुबई में कोई अरब शेख ढूंढ़ूं तेरे लिए.

‘‘बता नहीं सकती रूपम कि कितना गुस्सा आया आशी की इस बेवफाई या बेहयाई पर. देखने में मैं आशी से 21 ही हूं, कितने लड़के मरते थे कालेज में मुझ पर तुझे मालूम ही है और बाद में भी एक से बढ़ कर एक रिश्ते आते रहे मेरे लिए जिन्हें मैं ने आशी के नाम पर कुरबान कर दिया और आज वही आशी मुझे बदचलन अमन या किसी अनजान अरब शेख से शादी करने को कह रही थी. पूरी रात उबलती रही गुस्से में, किसी तरह सुबह का इंतजार किया और बस…’’

‘‘मैं तेरी मनोस्थिति समझ सकती हूं प्रेम. जो हो गया उस के लिए तुझे दोष नहीं दूंगी, लेकिन तेरी और आशा की अच्छी दोस्ती होने के नाते इतनी विनती जरूर करूंगी कि अब चुप रह कर अपने और आशा के रिश्ते की मीडिया और समाज में छीछालेदर मत करवा. आशा को रुसवाई से बचाने के लिए अपनी इस ख्याति को कि तू एक निहायत ईमानदार और कर्त्तव्यपरायण महापौर है लगा दे दांव पर और सिद्ध कर दे कि आशा भी एक कर्त्तव्यनिष्ट पत्रकार थी,’’ रूपम ने चुनौती के स्वर में कहा.

‘‘कैसे?’’ प्रेम ने भृकुटियां चढ़ा कर पूछा.

‘‘तू ने अभी बताया था न कि कोई अमन तुझे लाखों की रिश्वत दे रहा था और भी कई लोग आते होंगे ऐसे प्रस्ताव ले कर?’’ रूपम ने पूछा.

‘‘हां रोज ही.’’

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‘‘तो बस भुना किसी ऐसे प्रस्ताव को. कुबूल कर ले कि आशा ने तुझे किसी के ऐसे प्रस्ताव को स्वीकार करते सुन लिया था और वह इस सनसनीखेज खबर को अपने अखबार में छापने पर अड़ी हुई थी,’’ रूपम ने उकसाने के स्वर में कहा, ‘‘तेरे इस बयान के बाद पुलिस तेरे और आशा के रिश्ते को नजरअंदाज कर तेरी रिश्वतखोरी को उजागर कर देगी.’’

‘‘तू ठीक कहती है रूपम. हत्यारिन के रूप में तो बदनाम हो ही चुकी हूं अब क्यों न भ्रष्ट बन कर आशी को ही नाम और सम्मान दिला दूं,’’ प्रेम ने उसांस ले कर कहा.

‘‘शाबाश, जमी रहना इस फैसले पर,’’ कह कर रूपम बाहर आ गई. बराबर के कमरे से इंस्पैक्टर देव और स्नेहा भी बाहर आ गए.

‘‘वाह रूपमजी, किस चुतराई से आप ने कत्ल की वजह उगलवाई और फिर उस से भी ज्यादा होशियारी से अपनी दिवंगत सहेली की बदनामी को रोका. आप की जितनी भी तारीफ की जाए कम है,’’ दोनों ने एकसाथ कहा.

‘‘2 भ्रमित सहेलियों के लिए इतना करना तो बनता ही था,’’ रूपम मुसकराई.

Serial Story: बेवफाई (भाग-2)

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 आशा और प्रेमलता न सिर्फ शहर की मशहूर हस्तियां थीं, आपस में पक्की सहेलियां भी थीं. अचानक एक दिन प्रेमलता ने अपनी रिवाल्वर से आशा की गोली मार कर हत्या कर दी और पुलिस के सामने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया. इस हाईप्रोफाइल हत्या से पूरा शहर सन्न था. हर किसी की जबान पर एक ही बात थी कि दिनरात साथ रहने वाली इन सहेलियों के बीच आखिर ऐसा क्या विवाद हुआ जो प्रेमलता ने आशा की हत्या कर दी? लेकिन जब पुलिस तफतीश में जुटी तो मामले पर से धीरेधीरे परदा उठने लगा.

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सामने की दीवार पर आशा का बहुत बड़ा आकर्षक चित्र लगा था. बैडरूम की साइड टेबल पर दोनों सहेलियों की कालेज के दिनों की एकदूसरे के गले में बांहें डाले खड़ी तसवीर थी.

‘‘प्रेमलता की अलमारियां खोलने के लिए तो आप महिला कांस्टेबल की मौजूदगी चाहेंगी?’’ देव ने स्नेहा की ओर देखा.

‘‘जी हां, जब तक महिला कांस्टेबल आए तब तक मैं प्रेमलता का फेसबुक अकाउंट चैक कर के, उन की और आशा मैडम की किसी कालेज फ्रैंड से संपर्क करना चाहूंगी.’’

देव ने सराहना से उस की ओर देखा.

‘‘ठीक है. मैं नौकरों से पूछताछ कर रहा हूं, आप भी सुनना चाहेंगी?’’

‘‘यहां भी वही दया वाले जवाब होंगे. असलियत जानने के लिए तो कोई कौमन फ्रैंड ही खोजनी होगी,’’ कह कर स्नेहा आई पैड पर फेसबुक खोलने लगी.

स्नेहा का कहना ठीक था, प्रेमलता की नौकरानी भगवती ने भी वही कहा जो दया ने कहा था.

‘‘हमें तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि बीबीजी आशा बीबी की जान लेंगी. वे तो जान छिड़कती थी उन पर. रात को जब तक आशा बीबी का फोन नहीं आ जाता था कि वे घर आ गई हैं, बीबीजी खाना नहीं खाती थीं. सोने से पहले भी फोन पर दोनों घंटों बतियाती थीं और करतीं भी क्या साहब, दोनों ही तो अकेली थीं. हमारी बीबीजी ने तो ओहदे के चक्कर में शादी नहीं की और आशा बीबी कर के भी ओहदे के पीछे पति के साथ न गईं. दिन तो काम में कट जाता था पर रात एकदूसरे से बतिया कर कटती थी.’’

‘‘यह तुम्हें कैसे पता?’’ देव ने पूछा.

‘‘कई बार देखा, कभी पानी की बोतल रखना भूलने पर कमरे में जाना पड़ता था या दूध के पैसे मांगने या और कोई जरूरी बात पूछने तो बीबीजी कान पर फोन लगाए होती थीं और कहती थीं कि एक पल रुक आशी फिर जल्दी से हमें निबटा कर बतियाने लगती थीं.’’

‘‘फेसबुक या लिंक्डइन में मैडम का अकाउंट नहीं है और न ही मैडम के मोबाइल पर रूपम का नंबर है,’’ स्नेहा मायूसी से बोली.

‘‘यह रूपम कौन है?’’

‘‘1 सप्ताह पहले मैं मैडम के साथ इंटरनैशनल बुक फेयर में गई थी. वहां मैडम को एक पुरानी सहपाठिन रूपम मिली थीं. उन के पति प्रणव कुछ रोज पहले ही किसी कंपनी के वाइस प्रैसिडैंट बन कर यहां आए हैं. रूपम से मिलना बहुत जरूरी है, लेकिन मुझे याद नहीं आ रहा कि उन्होंने अपने पति की कंपनी का क्या नाम बताया था.’’

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‘‘वसंत, तुरंत पता लगाओ कि किस कंपनी में प्रणव नाम का नया वाइस प्रैसिडैंट आया है और कहां रहता है?’’ देव ने स्नेहा की बात काट कर वसंत को आदेश दिया, ‘‘रूपम का पता तो आप को मिल जाएगा, लेकिन उन से मिलने के चक्कर में आप एअरपोर्ट जाना तो नहीं टालेंगी?’’

‘‘वह कैसे टाल सकती हूं, सर ने कहा है मुझे आने को. फोन नंबर मिल जाए तो रूपम से मिलने का समय ले लूंगी. मुझे लगता है उन से जरूर कुछ मदद मिलेगी.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘क्योंकि वह मैडम को प्रेमलता का नाम ले कर छेड़ रही थीं. हो सकता है उन्हें उस रिश्ते के बारे में मालूम हो जिस पर हम शक कर रहे हैं,’’ कहते हुए स्नेहा सकपका गई. देव भी झिझका.

‘‘अगर रूपम हमारे शक की पुष्टि कर देती हैं तो फिर तो यह मामला कुछ हद तक सुलझ जाएगा, लेकिन अभी दिलीप से इस बारे में कुछ पूछना जल्दबाजी होगी.’’

‘‘जी हां, क्योंकि दया के अनुसार तो प्रेमलता दिलीप सर की उपस्थिति में उन के घर नहीं आती थी.’’

तभी महिला कांस्टेबल रैचेल आ गई.

अलमारियों में कपड़ों के अलावा कुछ जेवर थे, कुछ हजार रुपए, चैकबुक और कुछ अन्य दस्तावेज. लेकिन कुछ भी संदिग्ध नहीं था सिवा महंगे विदेशी इत्र और पारदर्शी नाइटियों के.

‘‘हर हसबैंड हैज स्पैंट ए फौरच्युन औन दीज,’’ रैचेल कहे बगैर न रह सकी.

‘‘शी इज अनमैरिड, ए स्पिनिस्टर टू बी ऐग्जैक्ट,’’ स्नेहा के कड़वे व्यंग्य पर देव ने मुश्किल से हंसी रोकी.

‘‘कविताओं से तो नहीं लगता कि महापौर अवसादग्रस्त थीं या किसी मानसिक विकृति का शिकार, लेकिन उन्होंने जो कुछ भी किया है किसी मानसिक व्याधि के कारण ही किया है,’’ देव बोला, ‘‘उन की दवाओं की अलमारी की बारीकी से छानबीन करनी होगी.’’

अलमारी में मामूली खांसीजुकाम, आंखों की दवा और विटामिन की गोलियों के अलावा कुछ नहीं था. तभी वसंत ने बताया कि प्रणव एक विदेशी बैंक का वाइस प्रैसिडैंट है और गोल्फ लिंक्स में बैंक के गैस्ट हाउस में रह रहा है.

‘‘गैस्ट हाउस में तो बगैर फोन किए यानी अपौइंटमैंट लिए भी जा सकती हूं,’’ स्नेहा बोली.

‘‘मगर अभी तो आप एअरपोर्ट चलिए. प्लेन लैंड करने वाला होगा,’’ देव ने कहा और फिर स्नेहा को पार्किंग में रुकने को कह देव अंदर चला गया. फिर कुछ देर बात ही अस्तव्यस्त से व्यथित दिलीप के साथ आ गया. स्नेहा गाड़ी से उतर कर दिलीप के पास गई. उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे. बस इतना ही पूछा, ‘‘आप का सामान सर?’’

‘‘सामान मेरे आदमी घर पर ले आएंगे स्नेहाजी, गाड़ी मैं चलाऊंगा, आप पीछे दिलीपजी के साथ बैठ कर बातें करिए,’’ देव ने कहा, ‘‘बेफिक्र रहिए, तेज चला कर आप की गाड़ी कहीं ठोकूंगा नहीं.’’

‘‘गाड़ी मेरी अपनी नहीं औफिस की है. अब गाड़ी तो क्या, शायद नौकरी भी नहीं रहेगी,’’ स्नेहा का स्वर रुंध गया.

‘‘आशा ने तुम्हें बताया नहीं था कि तुम्हारा नाम आशा की गैरहाजिरी में ऐसोसिएट ऐडिटर के लिए मंजूर हो गया है?’’ दिलीप ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैडम कहीं जाने वाली थीं?’’ स्नेहा ने चौंक कर पूछा.

‘‘मेरे पास दुबई आ रही थी. मैं ने टूअरिंग जौब के बजाय दुबई में डैस्क जौब ले ली है और आशा को वहां भी ऐडिटर की…’’

‘‘ओह आई सी,’’ देव ने बात काटी, ‘‘तो आज शाम पार्टी इसी खुशी में थी?’’

‘‘कैसी पार्टी इंस्पैक्टर?’’ दिलीप ने चौंक कर पूछा. स्नेहा ने दया की कही हुई बात दोहरा दी.

दिलीप ने एक उसांस ली, ‘‘दावत वाली पार्टी नहीं थी. जिस एजेंट ने मुझे दुबई में घर दिलवाया था वही हमें यहां के घर के लिए भी किराएदार दिलवा रहा था. उसी पार्टी को घर दिखाने की बात मैं और आशा कर रहे थे. आशा का पोस्टमार्टम तो हो चुका होगा, इंस्पैक्टर? चलिए, बौडी को ले कर ही घर चलेंगे.’’

‘‘दाहसंस्कार आज ही कर देंगे?’’

‘‘कल सब के आने पर. बौडी आज घर पर ही रखूंगा.’’

‘‘आप प्रेमलता से मिलना चाहेंगे?’’

‘‘क्या फायदा? उस से तो जो उगलवाना है आप ही उगलवाएंगे.’’

‘‘आप की उस से दोस्ती थी?’’

‘‘हालांकि आशा और प्रेम बचपन की सहेलियां थीं, लेकिन उन्होंने अपनी दोस्ती मुझ पर कभी नहीं थोपी यानी आशा न तो प्रेम को जबतब घर बुलाती थी और न ही मुझे उस के घर चलने को कहती थी. वह एक निहायत सौम्य, शालीन महिला हैं, मेरे साथ उन का व्यवहार अपने पद की गरिमा और मर्यादा के अनुकूल था. उस ने आशा की हत्या क्यों की यह मेरी समझ से बाहर है.’’

‘‘दया के अनुसार प्रेमलता अकसर रात को आप के यहां रहती थी और आशाजी उस के. दोनों रोज देर रात तक फोन पर भी बातें भी करती थीं.’’

‘‘मुझे मालूम है आशा अकसर बताती थी कि आज प्रेम आ रही है या वह प्रेम के घर जा रही है. दिन में तो दोनों व्यस्त रहती थीं, रात को ही मिल या बात कर सकती थीं,’’ दिलीप ने कहा और फिर कुछ सोच कर जोड़ा, ‘‘वैसे आशा अकेले रहतेरहते परेशान हो चुकी थी. उसी के कहने पर मैं ने फील्ड जौब छोड़ कर डैस्क जौब ली है. वह अब बच्चा चाहती थी यानी भरीपूरी गृहस्थी.’’

‘‘प्रेमलता ने शादी क्यों नहीं की यह कभी पूछा नहीं आप ने?’’

‘‘प्रेम का अफेयर है किसी ऐसे के साथ जिस से शादी नहीं कर सकती. इस से ज्यादा मुझे नहीं मालूम, क्योंकि आशा के साथ जो भी समय मिलता था उसे मैं दूसरों के बारे में बात करने में नहीं गंवाता था.’’

‘‘यह जो प्रेमलता ने बेवफाई वाली बात कही है उस से आप को भी लगता है कि आशाजी प्रेमलता की कोई गोपनीय बात प्रकाशित करने जा रही थीं?’’

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‘‘यह तो स्नेहा या प्रेमलता के औफिस वाले बेहतर बता सकते हैं. एक बात बता दूं, आशा किसी बात को ले कर परेशान नहीं थी और न ही प्रेमलता से डर कर यहां से भाग रही थी. वह तो चाहती थी कि मैं यहीं वापस आ कर कोई बिजनैस करूं. अभी भी इसी शर्त पर मानी थी कि चंद वर्ष विदेश में पैसा कमा कर फिर यहां आ कर कोई काम करेंगे.’’

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मून गेट: आखिर क्यों गायब हुई करोड़ों की वारिस?

Serial Story: मून गेट (भाग-5)

सोम काका ने तुरंत कार निकाली, छोटा सा हॉस्पिटल था, ‘नवजीवन केंद्र ‘ नीरा रिसेप्शन पर भागती हुई ही गयी, फौरन समर सिंह का रूम पूछा, रिसेप्शनिस्ट ने तुरंत डॉक्टर को बुलाया, करीब चालीस साल का डॉक्टर मुख़र्जी, चालाक सा चेहरा, चौकन्ना सा आदमी, आकर नीरा से बात करने के बजाय गीताली को बुलाने चला गया, गीताली ने आकर कहा,” अरे, दीदी, आपको मुझ पर भरोसा नहीं? समू साहब को अचानक सांस लेने में दिक्कत होने लगी, यहाँ मुझे सब जानते हैं, इसलिए मैं उन्हें यहीं ले आयी, फिलहाल सो रहे हैं.”

डॉक्टर ने भी नीरा से कहा, “ उनका ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ गया था, उन्हें रेस्ट की बहुत जरुरत है, आप अब उनसे सुबह आकर मिल लें, गीताली यहां ही है, वह उनका पूरा ध्यान रख रही है, वैसे भी गीताली ने बताया कि आप काफी बिजी हैं.”

नीरा ने गुस्से में पूछा,” मैं अपने पापा को देख तो सकती हूं न?”

“ओह्ह. श्योर,” कहकर डॉक्टर गीताली को कुछ इशारा करके चला गया, नीरा ने पूछा, “तुमने मुझे उसी टाइम फ़ोन क्यों नहीं किया?”

गीताली चुप रही.

नीरा ने आई सी यू में दूर से पिता को झाँका, उसकी आँखों से आंसू बह निकले, करण ने उसके कंधे पर हाथ रखकर तसल्ली दी, थोड़ी देर में नीरा और करण सोम काका के साथ घर लौट आये. नीरा बहुत परेशान थी, घर के बाकी लोग भी परेशान से आकर समर सिंह की तबियत के बारे में पूछने लगे. करण ने कहा,” नीरा, तुम अब आराम करो, हम सुबह ही फिर हॉस्पिटल चलेंगें.”

करण ने फिर अपने रूम की खिड़की से काफी देर बाद झाँक लिया, उसे बहुत दूर से नीरा के बेड रूम की लाइट जलती दिखी, वह समझ गया कि नीरा परेशान है, सो नहीं पा रही है. करण जैसे ही सोने लेटा, बैंगलोर से कपिल का फोन आ गया, यार, एक बड़ा सुराग हाथ लगा है, यहाँ कनकपुरम में जो इस ढोंगी सुखदेव का आश्रम है, आनंद भवन, वहां आयुर्वेदिक स्पा भी होता है, मेरे दोस्त की वाइफ को इस आश्रम में स्पा के लिए जाने का चस्का है, कल मैं इनके घर था, मैंने यूँ ही इन्हे चंद्रन और इरा की फोटो दिखा कर पूछा कि इन्हे आश्रम में कभी देखा है, तो मैडम ने बताया कि उसने आश्रम में बने मून गेट के अंदर इरा को देखा था, ये मैडम आश्रम में काफी सालों से जाती हैं, इन्होने बहुत कुछ बताया, इस मून गेट को पार करके अंदर जाना मना है, मून गेट के अंदर बहुत ही ख़ास लोग आते जाते हैं. इरा सुंदर, लम्बी सी स्टाइलिश लड़की है, इसलिए उसकी शकल मेरे दोस्त की पत्नी को याद थी. गौतम सर ने कहा है कि तुम दोनों अब फौरन यहाँ पहुंचो और अब आश्रम की खोजबीन करनी है, ऐसा लग रहा है, बहुत से राज खुलेंगें. फौरन यहाँ वापस आ जाओ, नीरा को भी साथ लाना,

“ठीक है, मैं नीरा को अभी सब बता कर प्रोग्राम बनाता हूं.”

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करण ने नीरा को फ़ोन करने से ज्यादा मिल कर सब बताना ठीक समझा, वह जाकर नीरा के रूम का दरवाजा नॉक करने ही वाला था कि उसे नीरा की फ़ोन पर आवाज सुनाई दी, वह कह रही थी,” मुझे तुम्हारी हेल्प चाहिए, अब मुझसे यह सब अकेले नहीं संभल रहा है, जिसे पूरी प्रॉपर्टी मिल रही है, उसी ने सबको नचा कर रख दिया है, अरे, प्रॉपर्टी तो ले ली, अब चैन से तो रहने दे!” नीरा की आवाज में एक गुस्सा था, करण ने अभी तक नीरा को किसी भी बात पर गुस्सा करते नहीं देखा था.

करण ने नॉक किया, नीरा चौंकी, पर सारी बात सुन हैरान रह गयी, बोली,” मैंने तो इरा को आज की भीड़ में ही देखा है!”

“हाँ, देखा होगा, पर यहाँ के आश्रम में तो यही पता चला है न कि दोनों यहाँ से निकल चुके, अब पक्का आनंद भवन ही जायेंगें, कल हमें यहाँ से निकलना होगा, नीरा, मैं अभी टिकट्स बुक करता हूं.”

“पर पापा बीमार हैं, उन्हें इस हालत में छोड़ कर मैं नहीं जा सकती.”

“जाना होगा, नीरा, मैं अपने साथी हॉस्पिटल की ड्यूटी पर लगा देता हूं, तुम्हारे पापा का पूरा ध्यान रखा जायेगा, वे सेफ रहेंगें.”

“ठीक है, मैं भी जय को सब बता कर निश्चिन्त हो जाउंगी,” कहकर उसने अपने दोस्त जय को पूरी बात बता कर पापा का ध्यान रखने के लिए कहा और यह भी कहा कि वह जल्दी वापस आएगी.

अगली सुबह करण और नीरा ने अपनी पैकिंग की, जाने से पहले नीरा ने घोषाल बाबू को बुलाया, उनसे बहुत देर बातें की, पापा की हर बात का ध्यान रखने के लिए कहा, फिर घर में काम कर रहे हर सदस्य को सारे निर्देश दिए और हॉस्पिटल पहुंचे. गीताली दोनों को बैग लिए देख चौंकी, नीरा ने उससे ख़ास बात ही नहीं की, सीधे रूम में जाकर समर सिंह के पास गयी, पर वे शायद दवाइयों के असर में गहरी नींद सोये थे. गीताली ने ही बात शुरू की, दीदी, चिंता मत करो, समू साब ठीक हैं, बस उन्हें आराम चाहिए.”

“गीताली, मेरी बात ध्यान से सुनो, पापा को सर के अलावा तुम कुछ नहीं कहोगी, अपनी हद में रहो,” नीरा ने आज एक फटकार लगा ही दी.

गीताली के चेहरे पर नागवारी के भाव आये, पर चुप रही. इतने में जय भी वहां पहुँच गया, नीरा ने उसे करण से मिलवाया, जय ने कहा,” नीरा, अब यहाँ की चिंता मत करना, जाओ, और टच में रहेंगें ही.”

जय और करण के दो साथियों पर, पिता की हेल्थ की जिम्मेदारी छोड़ नीरा बहुत भारी मन से बैंगलोर लौटी. करण गौतम से मिलने चला गया, नीरा उसे ढेर सा थैंक्स कहती अपने फ्लैट पर लौट आयी. करण ने नीरा के जाते ही एक आदमी को फ़ोन करके नीरा पर निगरानी रखने के लिए कह दिया, नीरा को उसने भी अभी क्लीन चिट नहीं दी थी, कुछ संदेह उस पर भी उसे हो रहा था, वह खुल कर बात नहीं करती थी, सबसे बहुत नाप तौल कर बोलती थी, हर समय एक अलर्टनेस थी उसके व्यवहार में. किंजल ने फौरन उसे फ़ोन किया, सब हाल चाल पूछे, अगली सुबह करण का फोन आया, उसने सब स्पष्ट करते हुए कहा,” सब तैयारी हो गयी हैं, आश्रम के अंदर आज शाम को ही जाना है, अंदर जाने का रजिस्ट्रेशन हो चुका है, खबर मिली है, इरा अंदर ही है और आश्रम में गैर कानूनी काम भी होते हैं, चिंता मत करना, हम दोनों के साथ दो और लोग आज आश्रम के अंदर जा रहे हैं, हम तुम्हे लेने शाम को आ जायेंगें.”

“मेरा जाना जरुरी है? यह काम तो पुलिस अपने आप कर सकती है?”

करण उसके स्वर के रूखेपन पर कुछ हैरान हुआ, फिर कहा,” पुलिस की तरह गए तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा, इनकी पहुँच बहुत ऊपर तक है, सारे मंत्री इनके हर कामों में इनके साथ हैं, कुछ ज्यादा ही गड़बड़ हुई तो देखा जायेगा, अपने कुछ कपडे रख लेना, समय लग सकता है.”

नीरा ने ‘ठीक है ‘ कह कर फ़ोन रख दिया, वह अपने पिता के लिए परेशान थी, उसने फिर जय को फोन किया, जय ने बताया,” अंकल को डिस्चार्ज कर दिया गया, वे काफी ठीक थे, अब उन्हें घर पर ही आराम करना है, तुम चिंता मत करो, मैं घर भी जाता रहूंगा.”

नीरा को बड़ी हैरानी हुई, उसके वहां से हटते ही पापा को घर भेज दिया गया, मतलब गीताली उसे ही पापा से बात करने का मौका नहीं दे रही थी, पता नहीं, क्या होने वाला है, अब यह आश्रम! उसे नहीं जाना किसी बाबा वाबा के आश्रम में, इस इरा ने उसे परेशान कर दिया है! वह थोड़ी देर लेट गयी, आनंद की याद आयी, उससे बात करने का मन हुआ, पर वह तो गायब ही हो गया था, उस पर मुसीबत आते ही भाग खड़ा हुआ था, इतने दिन उसने एक भी फोन नहीं किया था, और वह मूर्ख, उससे शादी के सपने देख रही थी, उसकी आँखें भर आयी, अचानक करण ने फिर फोन किया, सीधे पूछ लिया, “उदास हो? परेशान हो?”

नीरा हैरान हुई, हलके से मुस्कुरा दी, कहा, “आपको मुझसे ब्रेक नहीं चाहिए? कबसे मेरे साथ ही घूम रहे हैं! आप भी तो रेस्ट कर लीजिये, मैं ठीक हूं, थैंक्स.”

“ठीक है, शाम को मिलते हैं.”

करण, नीरा और कपिल शहर से करीब तीस किलो मीटर दूर बने आनंद आश्रम में शाम को पहुँच गए, तीनो ने अपना रजिस्ट्रेशन करवा रखा था, इसलिए अंदर जाने में दिक्कत नहीं हुई. प्रवेश आसानी से हो गया. तीनो ने सबसे पहले आश्रम पर एक नजर डाली, आश्रम क्या, कोई फाइव स्टार होटल लग रहा था, तीन मंजिल का, सुन्दर, आकर्षक सा आश्रम तीनो को मंत्रमुग्ध सा कर गया, तीनो के रूम्स दूसरी फ्लोर पर थे, हर रूम को खोल कर देखा तीनो ने, किसी होटल का कमरा लग रहा था, अटैच्ड बाथरूम, साफ़, सुन्दर बेड के साथ सारी जरूरी चीजें, तीनो के साथ आश्रम का कर्मचारी मोहन था जो उन्हें सब डिटेल्स देता रहा, वह बता रहा था, आज आप लोग आराम करो, कल सुबह पांच बजे मेडिटेशन के लिए ग्राउंड में पहुँच जाना, स्वामी जी तो विदेश गए हैं कल, विएतनाम में उनका पंद्रह दिन का सेशन है.”

नीरा ने मुँह लटका कर कहा,” ओह्ह, मतलब स्वामीजी के दर्शन नहीं हो पायेंगें? मैं तो उनके प्रवचन सुनने ही आयी थी, बड़ी फैन हूं उनकी.”

“आप चिंता न करें, मैडम, स्वामी चंद्रन हैं यहाँ, वे भी कल ही आये हैं, अब उन्ही के सेशन होंगें, आपको उनसे मिलकर अच्छा लगेगा.”

नीरा ने भोले पन से पूछा,” अच्छा? वे मिलते हैं आम लोगों से?”

मोहन हंसा, आप चिंता न करें, वे आपसे जरूर मिलेंगें. अब आप लोग आश्रम घूमो, आराम करो, कल मिलते हैं, डिनर करने डाइनिंग रूम में आ जाना, चाय पीनी हो तो अभी भी वहां जाकर पी सकते हैं.”

कपिल ने शराफत से हाथ जोड़ दिए, थैंक यू, मोहन भाई.”

करण ने कहा,” ऐसा करते हैं, पहले फ्रेश होकर चाय पीने चलते हैं, फिर जरा आश्रम की खोज खबर ली जाए.”

दोमंजिला डाइनिंग रूम को देख कर तीनो की आँखें फटी की फटी रह गयी, हद से ज्यादा लम्बा चौड़ा डाइनिंग रूम जहाँ लगभग साठ हजार लोग रोज खाना खा सकते थे. तीस पैंतीस सेवक डाइनिंग रूम की ड्यूटी पर थे, सेल्फ सर्विस की पॉलिसी थी तब भी इतने लोग अपनी सेवा दे रहे थे. सात्विक खाना होगा, यह जानकार करण ने मुँह बनाया तो नीरा को हंसी आ गयी, करण ने धीरे से कहा,” हर समय यह ध्यान रखना कि पूरे आश्रम में हजारों सी सी टी वी हैं.” नीरा चौंकी,उसके मुँह से निकल गया,” आपको कैसे पता?”

“जानती हो न मैं किस प्रोफेशन में हूं?”

चाय पीकर तीनो घूमते घूमते उस जगह पहुंचे जहाँ आयुर्वेदिक स्पा होता था, वहां रिसेप्शन पर एक युवा, सुन्दर लड़की ने उनका स्वागत किया, तीनो ने पूछा, हम कब स्पा करने आ सकते हैं?”

लड़की जिसने अपना नाम राधा बताया था, हंसने लगी, बोली,” सबसे पहले लोग स्पा ही करवाते हैं यहाँ, मेडिटेशन बाद में करते हैं.”

कपिल ने सादगी से कहा, मेरे कई रिश्तेदार यहाँ आ चुके हैं, बहुत तारीफ़ सुनी है यहाँ की हर बात की.”

राधा मुस्कुरायी, “आप परसों शाम को आ सकते हैं, आज और कल की बुकिंग तो फुल है.”

“वैसे ये इतना फेमस कैसे है?”

“देखिये, सर, अयूर का मतलब है, जीवन, और वेद का मतलब है विज्ञान, आयुर्वेद हमारा करीब पांच हजार साल पुराना विज्ञान है, जब आप यहाँ का अनुभव लेंगें, आपको अपने तन, मन और आत्मा तक में एक हार्मोनी महसूस होगी, वैदिक मन्त्रों के स्वर के साथ आयुर्वेदिक डॉक्टर्स की देख रेख में यहाँ जब आप अपना समय बिताएंगें, आपको वह पल जीवन भर याद रहेंगें, विदेशी तो इस जगह के फैन हैं, इस समय भी करीब दो हजार विदेशी आश्रम में मौजूद है.”

नीरा ने अचानक कहा,” ठीक हैं, अभी चलें?” उसने जब करण की तरफ देख कर उलझन से कहा तो सब राधा को,” फिर आते हैं,” कहकर वहां से निकल गए, और नीरा जल्दी जल्दी चलती हुई दूर एक बेंच पर बैठ गयी, कपिल ने पूछा,” क्या हुआ, नीरा? अचानक?”

“कहीं एक कोने से अजीब सी स्मेल आ रही थी वहां, मेरा सर घूमने लगा था.”

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करण हंसा, “मैडम, स्पा के साथ अंदर कोई ड्रग्स भी ले रहा था.” नीरा का मुँह खुला का खुला रह गया.

करण ने यूँ ही इधर उधर नजर डाली, कोई भी नहीं दिख रहा था, पर दूर कुछ सीढ़ियां थीं, दोनों तरफ फूलो से लदे पेड़ थे, सीढ़ियों के ऊपर से पेड़ों को छूता हुआ एक हरी भरी डालियों का मून गेट बना था, मून गेट की खूबसूरती देखते ही बनती थी, बहुत ही सुंदर, तरह तरह के फूलों से भरी डाल ऊपर जाकर दूसरी तरफ के पेड़ों को आधे चाँद की सी गोलाई में छू रही थी, नीचे एक छोटे से सरोवर में फूलों से बने उस चाँद की परछाई की सुंदरता ने सबका मन मोह लिया था, सब इस मून गेट को काफी देर तक निहारते रहे, साइड में एक बड़ा बोर्ड लगा था,” विज़िटर्स आर नॉट अलाउड.” मून गेट के उस पार जाने के लिए कुछ सीढ़ियां बनी थीं, इस समय अँधेरा हो चुका था, शाम के धुंधलके में मून गेट के आसपास लॉन में जलती हलकी हलकी लाइट्स से वहां का माहौल खुशनुमा सा लग रहा था. तीनों ने एक दूसरे को देखा, मून गेट की तरफ चलने का इशारा हुआ ही था कि पता ही नहीं चला कहाँ से एक बाउंसर टाइप हट्टा कट्टा पहलवान सा आदमी आकर गुर्राया,” बस, इसके आगे नहीं जाना है, अब आप लोग अपने रूम में जाइये.”

नीरा ने पूछा,” कितना सुंदर लग रहा है सब, हम आगे नहीं देख सकते?”

“नहीं, अभी आप लोग आज ही आएं है न, बस कल से योग, ध्यान लगाइये, बस, ज्यादा इधर उधर देखना मना है, और मून गेट के उस पार बस आश्रम के ख़ास लोग ही जा सकते हैं, अब आप लोग जाइये.”

करण ने पूछा,” मून गेट के उस तरफ क्या है?”

“क्यों? बता तो दिया, आश्रम के लोग रहते हैं.

तीनो करण के रूम में ही आकर बैठ गए, करण ने गौतम से बात की, गौतम ने फ़ोन पर एक प्लान बताकर सारे निर्देश दिए. करण नीरा और कपिल से भी सब बता कर कहने लगा, “इरा यहीं है, चंद्रन सुबह ही दिखेगा, उसके बाद, नीरा, तुम अच्छी तरह समझ लो कि अब तुम्हे क्या करना है, हमारे और पांच साथी अलग से अभी यहाँ पहुँच चुके हैं, वे सब अलग रूम में ठहरे हैं, यह तो अच्छा है कि यहाँ फोन मना नहीं है, फोटो लेना मना है, और हमारे आने की खबर बाउंसर्स को भी है, सोचो जरा, एक एक विजिटर पर पूरी नजर रखी जाती है, इसका मतलब जम कर कुछ घोटाला है.”

नीरा ने अचानक कहा,” ठीक है, जैसा आप लोग कह रहे हैं, कल कर लूंगी,” कहते हुए नीरा एकदम बेचैन सी लगी, अब जाकर थोड़ा आराम करती हूं,” कहते हुए वह उठ गयी. करण और कपिल को बहुत हैरानी हुई, कपिल ने कहा,”यार, इसे क्या हुआ?”

करण ने धीरे से उठते हुए अपनी विंडो का पर्दा हटाकर बाहर झाँका तो नीरा तेज तेज क़दमों से नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों की तरफ जा रही थी. करण ने अपने नए साथियों में से एक अंजलि को फ़ोन करके नीरा का पीछा करने के लिए कहा.

नीरा खुली हवा में घूमती हुई किसी को फोन कर रही थी, अंजलि उसके आसपास सैर करती हुई सुनने की कोशिश करती रही पर जैसे ही अंजलि नीरा के पास से गुजरती, नीरा चुप हो जाती, पर घोषाल बाबू का नाम अंजलि के कानों में पड़ ही गया. अंजलि ने करण को फौरन रिपोर्ट दी. अगली सुबह आश्रम में उपस्थित हर इंसान बड़े ग्राउंड में बिछी बड़ी दरी पर आकर बैठ गया, चंद्रन सफ़ेद कपड़ों में जैसे खुद को भगवान मानता हुआ आया, वहां रखी सुखदेव की बड़ी सी फोटो को नमन किया, करण ने सब लोगों पर एक नजर डाली, काफी विदेशी भी थे, और उसकी नजर अचानक पीछे बैठे गौतम पर पड़ी तो उसे एक करंट सा लगा, गौतम ने मुस्कुराकर उसे सबसे छुपा कर थम्स अप का इशारा कर दिया. करण और उसके साथियों ने एक नजर सब पर डाली, इरा कहीं नहीं थी, सबको थोड़ी निराशा हुई. उधर नीरा जल्दी जल्दी आते हुए मून गेट से थोड़ा दूर मुँह से एक जोर की आह निकालते हुए चक्कर खा कर गिर पड़ी, एक बाउंसर अचानक प्रकट हुआ, उसने मून गेट के अंदर किसी माया को जोर से आवाज दी, माया भागी आयी, घास पर बेसुध पड़ी नीरा को हिला डुला कर देखा, बोली, अभी तो सब ध्यान में लगे हैं, क्या करें, इसे अंदर ले जाएँ?”

बाउंसर कुटिलता से हंसा, ”हाँ, खूबसूरत लड़की तो मून गेट के अंदर जा ही सकती है, ले जाओ इसे अंदर, स्वामीजी भी उस इरा से बोर हो गए होंगें, बहुत दिन बाद नया माल आया है.”

माया हंसी,” चलो, इसे अंदर रखते हैं, यह मून गेट के अंदर रहने लायक ही है.”

दोनों उसे उठाकर अंदर कहीं एक रूम में ले गए, बाउंसर ने माया से कहा,” जाओ, डॉक्टर रीता को भेजो.”

नीरा को माया के बाहर जाने की आहट सुनाई दी, बाउंसर के पदचाप भी थोड़ा दूर होते सुने तो उसने आँखों की झिर्री से देखा, यह एक छोटा सा कमरा था, डॉक्टर रीता ने आकर उसका चेक अप करना शुरू ही किया था कि उसने आँखें खोल दी, कमजोर सी आवाज में बोली,” क्या हुआ?”

बाउंसर ने उसे बताया कि वह बेहोश हो गयी थी. नीरा ने उठने की कोशिश की तो माया ने रीता को कुछ इशारा किया, रीता ने फौरन कहा,” अभी आराम करो, अब यहाँ आयी हो तो स्वामी जी से मिल कर ही जाना.”

“मैं बाहर मिल लूंगी.”

“बाहर तो अभी बहुत भीड़ है और स्वामीजी वहां से सीधे स्पा की तरफ जायेंगें, आज अभी यहीं रुको.”

“जी, ठीक है.”

“शाबाश, आराम करो,” कहकर रीता ने उसे दो गोलियां दी,” इसे खा लो.”

नीरा ने ऐसी एक्टिंग की जैसे उसने खा ली हो, पर निगली नहीं थी, फिर बोली,” मुझे वाशरूम जाना है.”

माया ने उसे बाहर कुछ दूर का रास्ता दिखा दिया, नीरा ने देखा, एक लाइन से कुछ रूम्स थे, सब खुले थे, बस कोने वाले रूम में ताला लगा था, उसे कुछ सूझा, वह उस ताले वाले रूम के पास से धीरे धीरे चलते हुए एक गाने की लाइन गाने लगी “अजीब दास्ताँ है ये“ नीरा कुछ पल रुकी, अंदर से धीरे से आवाज आयी, “कहाँ शुरू, कहाँ ख़तम “ नीरा की आँखों से आंसू बह निकले, इरा अंदर थी, शायद किसी मुसीबत में, यह गाना दोनों बहनें खूब मिलकर गाती थीं, दोनों की माँ का यह फेवरिट गाना था, वाशरूम में आकर नीरा ने करण को प्लान के अनुसार मैसेज कर दिया.

देखते ही देखते करण अपने साथियों के साथ मून गेट पार करके अंदर जाने लगा,

अचानक दो बाउंसर्स कहीं से अचानक प्रकट हुए, उनके कुछ कहने से पहले ही करण ने सख्ती से कहा, “कोई भी हरकत करने की कोशिश मत करना, हमारे और साथी आते ही होंगें, हमें इस लड़की की ही तलाश थी.”

करण ने ताले वाले रूम की तरफ इशारा किया, इतने में आश्रम के कुछ और दबंग टाइप आकर उन सबको जबरदस्ती मून गेट से बाहर भेजने लगे तो गौतम और कुछ साथियों के साथ आ गया और फिर तो देखते ही देखते इरा शर्मिंदा सी नजरें झुका कर कोने में आकर खड़ी हो गयी.

नीरा इरा पर चिल्लाई,” इरा, यह क्या किया तुमने? शर्म नहीं आयी तुम्हे? पापा को कितनी तकलीफ दी, पता है न?क्यों किया ऐसा?”

करण ने इरा के पास जाकर पूछा,”यह कहाँ मिला तुम्हे ?”

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‘’ काफी दिन पहले मैं एक टूर पर दिल्ली गयी थी, वहीं एक होटल में मुझे चंद्रन मिला, चंद्रन ने ही समझाया कि इस दुनिया में कोई सगा नहीं, सब कुछ क्षणभंगुर है, सारा जगत मिथ्या है, सर्वशक्तिमान के चरणों में ही सुख है, बस, फिर इसकी ही दुनिया में आ गयी.”

इतने में चंद्रन भी कुछ उलझा सा वहां पहुंचा,

करण ने गुस्से से चंद्रन से पूछा,” इसकी प्रॉपर्टी पर नजर है न तुम लोगों की? जानता हूं तुम्हे अच्छी तरह से, इस बेवक़ूफ़ से सब हथिया लेते तुम!”

इरा शर्मिंदा सी हुई पर अभी भी उसकी नजरों में चंद्रन के लिए आसक्ति थी.नीरा ने भरे से स्वर में कहा ,”इरा, इतनी गलतियां कैसे कर दी?तुम तो इतनी इंटेलीजेंट हो,कैसे फस गयी इन लोगों के चंगुल में ?”

”बस,हो गयी गलती!पता नहीं कैसा प्रेशर था,ऑफिस का या बॉयफ्रैंड्स से ब्रेक अप का,पता नहीं क्या हुआ, चंद्रन की बातें अच्छी लगने लगी,और उसे प्यार करने लगी,इसी ने सुखदेव महाराज से यहीं मिलवाया,उन्होंने भी ऐसी बातें की कि सब कुछ छोड़ कर इन्ही लोगों की दुनिया अच्छी लगने लगी,तन मन धन से लुटती रही और पता नहीं किस शान्ति की खोज में इन्ही के साथ रहने लगी,फिर पता चला कि यहाँ ड्रग्स का खूब धंधा है,कलकत्ता में ही थी मैं भी,वहां वाले आश्रम में भी यही सब होता है,वहां से आने ही नहीं दिया जा रहा था मुझे पर मैंने बहुत ज़िद की तो यहाँ आ तो गयी पर चंद्रन को अब लगने लगा था कि मैं यहाँ से भागने की कोशिश कर सकती हूं इसलिए मेरे रूम को बाहर से बंद किया जाने लगा, मुझे पता है,मैंने कई बेवकूफियां कर दीं, कई गलतियां कर दी, अब मैं समझ रही हूं कि मेरी पढाई लिखाई,करियर सब बेकार गया,इन लोगों की बातों में आकर मैं पापा से भी कितना बहस कर के आयी,मेरी अकल पर सचमुच एक पर्दा सा पड़ गया था,बड़ी भूल हुई. पता नहीं,पापा मुझे माफ़ करेंगें या नहीं,नीरा,अब मेरी हेल्प करोगी ?”

गौतम और उसके साथियों ने चंद्रन को भागने का मौका नहीं दिया, मून गेट के अंदर के हिस्से की तलाशी हुई, कई लड़कियां नशे में बेसुध मिली, ड्रग्स का कारोबार खूब चल रहा था, इरा ने स्वीकार कर लिया कि उसने कई आपराधिक कामों में चंद्रन का साथ दिया है, और वह पिता से पैसे लेकर चंद्रन को ही देना चाहती थी.  नीरा सचमुच गुस्से से चलती हुई मून गेट के बाहर निकल गयी, पवन ने चंद्रन से कहा, “तुम जरा मेरे साथ चलो. बहुत दिन से तुम पर नजर थी, आज हाथ आये हो.” करण भी उन्हें कुछ कहकर नीरा के पीछे पीछे आया, करण ने धीरे से कहा,” तुमने काफी रिस्क लिया, थैंक यू, पर अभी सोच रहा हूं , नीरा, तुम किसी मुसीबत में भी पड़ सकती थी, मैं आने में देर कर देता तो? करण ने परेशान होकर कहा तो नीरा ने कहा, “तो क्या हुआ? मूवीज में देखा नहीं कि पुलिस सब होने के बाद में ही आती है.”

करण ने उसे घूरा तो वह मुस्कुरा दी, “आज बहुत दिन बाद चैन आया है कि इरा ठीक है, पर उसने जो किया, बहुत बुरा किया. पापा को कितनी चिंता दी.”

उसी समय नीरा ने पिता को एक एक बात बताई, समर सिंह ने ठंडी सांस लेकर कहा,” तुम अपना ध्यान रखना बेटा, मैंने घोषाल बाबू को और वकील साब को बुलाकर सब कुछ तुम्हारे नाम कर दिया है.”

“पापा, आप ठीक रहें, मुझे कुछ नहीं चाहिए,” कहते कहते नीरा का स्वर भर्रा गया. उसने जैसे ही फ़ोन रखा, पीछे से करण ने आकर उसे छेड़ा,” अच्छा, मेरे कुछ सवालों का जवाब दोगी?”

“पूछो.”

“कल किसे फ़ोन कर रही थी?”

“ओह्ह, तो मेरी भी जासूसी हो रही थी?”

“हाँ, पेशे से मजबूर हूं,” कहकर वह हंस दिया. “घर में मौजूद लोगों के बारे में, पापा की हेल्थ के बारे में घोषाल अंकल से पूछती रहती हूं, उन्होंने ही यह भी बताया कि पापा की तबियत उस दिन सचमुच खराब हुई थी जब गीताली उन्हें पास के ही हॉस्पिटल ले गयी थी, अंकल ने कहा कि वह सचमुच पापा का ध्यान रखती है.”

“पर यह समू साब क्या था?”

“जाकर पूछ लेना.”

“ओह्ह, अच्छा! मुझे फिर वहां ले जाना चाहती हो?”

नीरा झेंप गयी, इतने में चंद्रन, इरा और बाकी कुछ लोगों को लेकर गौतम की टीम आश्रम से बाहर निकलने लगी, वहां माहौल में अचानक एक अफरातफरी सी हुई, इरा ने जाते जाते नीरा को ‘सॉरी ‘ कहा तो नीरा की आँखें डबडबा गयीं, उसने पास खड़े करण से पूछा,” इसे और कोई तकलीफ होने से बचा सकते हैं?”

करण ने उसे घूरते हुए कहा,” क्या रिश्वत मिलेगी?”

“मैं आपको एक ईमानदार पुलिस अफसर समझ रही थी.”

“जी, वो तो मैं हूं, पर दिल के आगे बेईमान हो गया हूं.”

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आश्रम के अंदर जो धंधा चल रहा था, वह तो अभी लम्बा केस चलने वाला था. सुखदेव चुप बैठने वाला नहीं था, उसके ऊपर बड़े नेताओं का हाथ था, जो होता, उसमे अभी समय था. फिलहाल नीरा को करण ने उसके फ्लैट पर छोड़ा, दोनों अब तक इस केस और इरा की ही बातें करते रहे थे, नीरा जैसे ही अपने फ्लैट में घुसी, करण का मैसेज आया,” मून गेट के अंदर खड़ी तुम खुद ही एक चाँद का टुकड़ा लग रही थी, और मैं चाहता हूं, कि यह चाँद अब मेरे आँगन में उतरे, मंजूर है?”

नीरा ने बस हार्ट की इमोजी भेज दी थी.

Serial Story: मून गेट (भाग-1)

रात के बारह बजे, ब्रिगेड रोड, बैंगलोर की एक सोसाइटी, एवरग्रीन के बाहर आनंद ने बाइक रोकी, पीछे बैठी नीरा ने उसकी कमर में हाथ डाल दिया, आनंद के कंधे पर सर रख कर कहा, “यार, मन ही नहीं हो रहा है तुमसे अलग होने का, आओ न, ऊपर मेरे फ्लैट पर चलो.”

आनंद ने हंसकर कहा, “ऐसी बात क्यों कर रही हो जो पॉसिबल नहीं है? तुम्हारी बहन मुझे रात को इस समय घर में घुसने देगी?”

नीरा ने नीचे से ही तीसरी फ्लोर पर स्थित ऊपर अपने फ्लैट पर एक नजर डाली, फिर कहा, “हमारे फ्लैट की लाइट बंद है, लग रहा है, इरा घर नहीं लौटी, इसका मतलब वो भी अपने बॉय फ्रेंड के साथ कहीं ऐश कर रही है, चलो यार, रास्ता साफ़ है.”

“पक्का, चलूँ?”

“हाँ यार, आई लव यू, तुमसे दूर नहीं रहा जाता.”

इरा और नीरा दो मेधावी, उच्च पदस्थ, बोल्ड एंड ब्यूटीफुल बहनें एवरग्रीन सोसाइटी में दो साल से इस फ्लैट में रह रही थीं. कलकत्ता के धनी, समृद्ध, नामी शख्सियत, जमींदार समर सिंह मुखर्जी की दोनों बेटियां पूरी तरह खुश और संतुष्ट अपनी लाइफ को एन्जाय कर रही थीं. दोनों ने ही जौब बैंगलोर में शुरू की थी. फ्लैट में आकर आनंद ने नीरा को बाहों में भर लिया. नीरा हंसी, “रुको, मुझे पहले इरा को फ़ोन करने दो. कन्फर्म कर लूं कि कहां है, फिर आराम से एन्जौय करेंगें.”

नीरा ने अपने से 2 साल बड़ी बहन इरा को फ़ोन मिलाया पर घंटी बजती रही और‌ फ़ोन नहीं उठा तो नीरा ने कहा, “छोड़ो, वासु के साथ ही होगी.”

आनंद हंसने लगा, “यार, तुम दोनों बहनों का अच्छा है. फुल मस्ती के साथ जी रही हो, कोई रोक टोक नहीं.”

“जलन हो रही है?” नीरा ने हंसकर आनंद के गले में बाहें डाल दी. आनंद ने उसकी कमर में हाथ डाल उसे अपनी ओर खींच लिया. दोनों एक दूसरे में खोते चले गए. थोड़ी देर बाद आनंद घर जाने के लिए खड़ा हो गया, तो नीरा ने कहा, “वैसे अब मुझे इरा की चिंता भी हो रही है आनंद. इरा कहीं भी जाए, बता कर ही जाती है.”

“वासु को फ़ोन कर लो, उसका नंबर है तुम्हारे पास?”

“हां है. ये ठीक कहा तुमने.”

नीरा अपने फ़ोन में उसका नंबर देखने लगी. वासु को फ़ोन मिलाया. घंटी बजती रही. आनंद ने कहा, “रात बहुत हो गई है, हो सकता है सो गया हो.”

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नीरा कुछ परेशान सी दिखी, अचानक बेड के कोने में रखे एक छोटे से टेबल पर उसकी नजर पड़ी तो वह चौंकी. टेबल की दराज में से एक पेपर झाँक रहा था, नीरा लपकी. पेपर निकाला. नीरा को एक तेज झटका लगा. इरा की ही हैंड राइटिंग थी. लिखा था, “डोंट लुक फॉर मी-इरा.”

नीरा जोर से चिल्लाई, “देखो, आनंद.”आनंद ने भी नोट पढ़ा, कुछ समझ नहीं आया, इतना ही पूछा, “तुम्हारा दोनों बहनों का कोई झगड़ा तो नहीं हुआ?”

“अरे नहीं नहीं, हम कभी नहीं झगड़ती, इरा मुझसे दो साल ही तो बड़ी है, हम दोनों तो बहुत अच्छी दोस्त जैसी हैं. क्या करूँ? कहाँ चली गयी यह? कहां ढूंढूं?”

“कहीं तुम्हे परेशान करने के लिए तो नहीं लिख गयी और अभी किसी फ्रेंड के घर हो?”

“ऐसा मजाक तो उसने कभी किया नहीं.”

रात के 2 बज चुके थे. आनंद ने परेशान नीरा को अकेले छोड़कर जाना ठीक नहीं समझा. बोला, “सुबह उसके दोस्तों को फ़ोन करना, अभी आराम कर लो, दिन भर आफिस में थी, थोड़ा रेस्ट कर लो. नीरा, मैं भी अभी रुकता हूं. सुबह पता करते हैं.”

आनंद वहीँ बेड पर अधलेटा सा हो गया, नीरा इधर से उधर टहलती रही, फिर आनंद के हाथ पर ही सर रखकर लेट गयी, नींद तो किसी को भी नहीं आ रही थी, दिमाग परेशान था, इरा की चिंता हो रही थी. आनंद और नीरा एक कॉमन फ्रेंड के घर मिले थे, दोस्ती हुई जो अब प्यार में बदल चुकी थी. दोनों बहनें पिता से फ्री थीं, अपनी बातें पिता से फ़ोन पर शेयर करती रहती, नीरा ने अपने पिता को भी आनंद के बारे में बता दिया था. इरा और नीरा की माँ बहुत पहले इस दुनिया से जा चुकी थीं, भाई कोई था नहीं. समर सिंह मुखर्जी ने अपनी दोनों बेटियों को बहुत लाड प्यार से पाला था. पुरानी जमींदारी थी. अथाह दौलत थी. समर सिंह एक भले इंसान थे. उम्र के इस मोड़ पर कई बीमारियों ने उन्हें घेर रखा था. बेटियों को उन्होंने पढ़ा लिखा कर उनको खुद अपने पैरों पर खड़ा करने की छूट दी थी. वर्ना जो वेतन पातीं थीं, उससे ज्यादा तो हर साल हवेली को रंग करने में खर्च कर दिया जाता था. अब वे कलकत्ता में दोस्तों और नौकरों के सहारे रहते. बेटियां लगातार उनके संपर्क में रहतीं.

सुबह होते ही नीरा ने अपने और आनंद के लिए चाय बनाई, जल्दी से फ्रेश होकर तैयार हुई, बोली, “आनंद, वासु के घर चलते हैं.”

“चलो.”

दोनों जय नगर पहुंचे, वासु अपने पेरेंट्स के साथ वहीं रहता था. नीरा वासु के घर तो कभी नहीं गयी थी. वहां पहुंच कर उसने वासु को फ़ोन मिलाया. अपना परिचय देकर उसका एड्रेस पूछा. वासु के बताने पर दोनों उसकी बिल्डिंग के नीचे जाकर रुक गए. आनंद ने कहा, “नीरा, अभी सात ही बजे हैं, अभी उसके घर ऊपर जाना ठीक रहेगा या उसे नीचे बुला लें?” अभी आनंद की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वासु का फ़ोन आ गया, “नीरा, मैं ही नीचे आ रहा हूं.”

आनंद ने सुनकर कहा, “लो, प्रौब्लम ही ख़तम हो गई.”

वासु नीचे आ गया. नीरा वासु से कई बार मिल चुकी थी. वह घर आता रहता. आते ही बोला, “नीरा, क्या हो गया सुबह सुबह?”

“वासु, इरा कहाँ है?”

“क्या? क्या हुआ? मुझे तो नहीं पता?”

“इरा रात भर घर नहीं आई, वासु,” कहते कहते नीरा का स्वर भर्रा गया, वासु बुरी तरह चौंका, कहा, ”क्या?”

“हां,” नीरा ने उसे इरा का लिखा नोट नहीं बताया, पर आगे कहा,” तुम्हारी उससे कुछ बात हुई कल? तुम कब मिले थे उससे?”

वासु कुछ देर चुप रहा, फिर धीरे से कहा, ”नीरा, हमारा तो ब्रेक अप हो गया.”

नीरा को जैसे करंट सा लगा. जोर से बोली, ”क्या? कब? मुझे तो इरा ने बताया ही नहीं. हुआ क्या?”

“एक महीने से हम टच में नहीं हैं. जब से वह एक माह पहले कोलकाता से लौट कर आई थी तभी से. बड़ी वीयर्ड बातें कर रही थी. कहने लगी थी कोई अपना नहीं होता. शादी नहीं करूंगी क्योंकि कोई सगा नहीं, कोई संबंधी नहीं. यह जीवन तो क्षणभंगुर है. तुम्हें बांध कर नहीं रख सकती.”

अब नीरा को वासु से इस बारे में और बात करना ठीक नहीं लगा, इस बीच आनंद चुप ही था, अब बोला, “चलें? नीरा.”

“ठीक है, वासु, कहीं से, किसी भी दोस्त से कुछ पता चले तो बताना, “कहकर नीरा और आनंद वहां से चले गए. आनंद ने एक कैफे में बाइक रोकी, बोला, “नीरा, आओ कुछ खा लें. ऑफिस जाओगी क्या?”

“समझ नहीं आ रहा, क्या करूँ? इरा की चिंता हो रही है. उसने मुझे अपने ब्रेक अप के बारे में भी नहीं बताया, पता नहीं क्या बात है, कहाँ है! पिछले महीने पिता जी के पास गई तो थी.”

“आफिस जाओगी?”

“नहीं, आज छुट्टी लूंगी. उसके और दोस्तों से पता करती हूं. तुम मुझे घर छोड़ दो, फिर आफिस जाना.”

“हां, अब पहले घर जाऊंगा. मम्मी पापा को रात में झूठ बोला था कि एक दोस्त के घर हूं. काम है, फ्रेश होकर आफिस जाऊंगा. शाम को मिलता हूं, वैसे कहो तो मैं भी छुट्टी ले लूं?”

“नहीं, नहीं. तुम जाओ. आज तो मैं फ़ोन पर ही उसके दोस्तों से बात करुँगी, या इरा के ऑफिस भी चली जाऊंगी. “दोनों ने एक एक कप कॉफ़ी के साथ एक एक सैंडविच खाया. नीरा को उसके फ्लैट पर छोड़ कर फिर आनंद ऑफिस चला गया.

इरा अचानक पिताजी से मिलने गई थी. नीरा ने सोचा था कि वह वासु के बारे में बात करने गई होगी. पिता जी ने मना कर दिया होगा तो शायद उसने वासु से संबंध तोड़ लिया होगा. पर यह आध्यात्मिक बातें उसकी समझ में नहीं आ रही थीं. इरा तो पक्की लैफटिस्ट थी. तभी तो दोनों करोड़ों रुपए की मालकिनें होते हुए भी वे साधारण सी नौकरियां कर रही थीं.

अब नौ बज रहे थे, नीरा ने ऑफिस छुट्टी का मेल भेज दिया, रात भर की जागी थी, थकी आँखें बंद कर लेट कर सोचने लगी कि कहाँ और कैसे ढूंढें इरा को, बहन की कितनी ही बातें उसके दिमाग में घूमने लगीं. वासु से ब्रेक अप हो गया है, उसे क्यों नहीं बताया? दोनों बहनों की ज़िन्दगी तो एक दूसरे के लिए खुली किताब थी. वासु से पहले भी इरा का जो बौय फ्रैंड था, तनय. उससे भी इरा का जब ब्रेक अप हुआ इरा ने सब कुछ नीरा से शेयर कर लिया था कि तनय को शराब पीने की बुरी आदत थी. इरा तो मेंटली बहुत स्ट्रांग है, इस ब्रेकअप के बाद वह जरा भी दुखी नहीं हुई थी. वासु से भी उसके नजदीकी सम्बन्ध थे, कहीं वह वासु से ब्रेक अप के बाद दुखी तो नहीं हो गयी? कहीं उसने कुछ… नहीं नहीं, एक बुरा ख्याल आते ही नीरा झटके से उठ कर बैठ गयी. क्या करे? पापा को बताये? नहीं, पापा को दो महीने पहले ही दूसरा हार्ट अटैक आया है, आर्थराइटिस के मरीज हैं. कहीं परेशान होकर बैंगलोर ही न आ जाएं? वे तो किसी भी तरह से सफर के लायक नहीं. नहीं, पापा को परेशान नहीं करुंगी. खुद कोशिश करती हूं इरा को ढूंढने की!

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नीरा के पास इरा के कलीग्स नील और तपन का नंबर था, ये दोनों कई बार घर आकर महफ़िल भी जमा चुके थे, नीरा ने पूरी बात नील को बताकर पूछा,” कल उसका ऑफिस में मूड कैसा था?”

नील चौंका, “वह तो कल ऑफिस आयी ही नहीं थी.”

“क्या?”

“हाँ, परसो आई थी, एकदम हमेशा की तरह काम किया, हंसती बोलती रही. उसका मूड परसों तो बिलकुल खराब नहीं था. नीरा, बताओ क्या करना है? तुम अकेली परेशान न होना.”

तपन भी सुनकर चौंका था, इतना बोला, “ परसों तो उसका मूड ठीक था, पर हां, कुछ दिन पहले मैंने नोट किया था कि वह बार बार किसी से फोन पर बात करने के लिए कोई कोना ढूंढती. वह कुछ दिनों से बहुत देर तक फ़ोन पर रहती, जबकि पहले ऐसा नहीं होता था. वह काम पर ज्यादा ध्यान देती थी, फ़ोन पर कम दिखती थी पहले. अभी एक बार तो बौस ने भी उसे टोक दिया था.”

यह जानकारी नीरा के लिए नई थी. वह यह जानती थी कि इरा काम के समय फ़ोन देखती भी नहीं है. कई बार तो उससे बात करने के लिए उसे खुद मैसेज डालने पड़ते, इरा, फ़ोन उठाओ, जरुरी बात है. “ वह इरा अब किससे इतनी बात कर रही थी! नीरा अब चिंतित हुई, उसने इरा की ऑफिस की अच्छी फ्रेंड निराली को फ़ोन मिलाया. निराली भी हैरान होती हुई बोली, “यह क्या चक्कर हो गया, नीरा? वासु से ब्रेक अप हो गया और उसने मुझे बताया भी नहीं. मुझसे तो बहुत कुछ शेयर कर लेती थी, कहां चली गई, पर हां, नीरा, अगर ब्रेकअप हो भी गया था तो भी वह मुझे एक दिन भी दुखी नहीं दिखी. कुछ तो गड़बड़ है, मुझे बताओ, क्या हेल्प कर सकती हूं?” फिर सोच कर बोली, “हां याद आया, अभी पंद्रह दिन पहले कांफ्रेंस रूम में किसी के साथ कौनकाल कर रही थी. एक लड़की और एक पुरुष की आवाज थी. मैंने बिना खटखटाए दरवाजा खोला था तो आखिरी शब्द स्पीकर फोन पर सुनाई दिए थे. कोई लड़की कह रही थी कि मामला करोड़ों का है. मुझे देखते ही इरा ने फोन काट दिया था. फिर कुछ कहे बिना रूम से चली गई थी. उसके पास कोई प्रोजेक्ट ऐसा नहीं जिसमें करोड़ों की डील हो. मैंने पूछना चाहा पर उसका मूड देख कर चुप ही रही.”

नीरा के लिए भी यह नया एंगल था.

“बताउंगी, थैंक्स, यार, तुम लोगों को कुछ भी पता चले तो मुझे जरूर बताना.”

“श्योर, डिअर, टेक केयर.”

नीरा इन सबसे बात करके हटी ही थी कि उसकी कलीग, अच्छी दोस्त किंजल का फ़ोन आ गया, ”क्या हुआ, भाई? पता चला, छुट्टी पर हो? ”

नीरा पूरी बात उसे बताते हुए सिसक ही पड़ी, रात भर के रोके हुए आंसू दोस्त से बात करते हुए छलक ही आये. किंजल नीरा के लिए सोचकर परेशान हुई, बोली, ”रुक, मैं भी छुट्टी लेकर आ रही हूं.” नीरा ने मना किया पर किंजल ने “ मैं आ रही हूं,” कहकर फ़ोन रख दिया. घर परिवार से दूर रहने वाली, नए शहर में जॉब करने वाली लड़कियों के लिए दोस्त ही तो परिवार होता है, किंजल एक घंटे में नीरा के फ्लैट पर मौजूद थी, फिर से पूरी बात सुनी और कहा, “यह तो ठीक किया तुमने कि अपने पापा को नहीं बताया, पर चिंता मत करो, गौतम किस दिन काम आएगा?”

नीरा ने उदास आँखों से सवाल किया, “कौन गौतम?”

“अरे, मेरे पति का नाम भूल गयी तुम?”

नीरा चौंकी, “हाँ, सच में अभी नहीं सूझा था.”

“तो अब मेरा पति गौतम नहीं, एसीपी गौतम तुम्हारी सेवा में हाजिर रहेंगें,” कहकर किंजल ने फौरन अपने पति एसीपी गौतम को फ़ोन करके कहा, “जनाब, आप जरा फौरन नीरा के फ्लैट पर आइये, यहाँ आपकी सख्त जरुरत है. “ उसने नीरा का एड्रेस बता कर फ़ोन रख दिया और नीरा के गले में बाहें डाल दी, उसे तसल्ली दी,” चिंता मत करो, गौतम सब ठीक कर देगा, इरा का पता जल्दी चलेगा, अब परेशान मत हो.”

गौतम जल्दी ही आया, एक बार अपने घर में ही नीरा से मिल चुका था जब किंजल ने कुछ दोस्तों को घर बुलाया था, वह एक ईमानदार, तेज दिमाग, पैनी नजरों वाला पुलिस इंस्पेक्टर था, आते ही नीरा को तसल्ली दी, “इरा का पता जल्दी चल जायेगा, अब बैठ कर मुझे पूरी बात बताओ कि किस किस से तुम्हारी बात हुई है और सबने क्या क्या कहा है.”

नीरा नोट मिलने से लेकर सबसे अब तक हुई पूरी बात उसे बताती चली गई. गौतम सब अपनी डायरी में नोट करता रहा. वह जब तक कुछ सोच रहा था, नीरा सबके लिए चाय बना लायी. गौतम ने फिर सब दोस्तों के फ़ोन नंबर भी ले लिए. अचानक गौतम ने पूछा, “नीरा, तुम्हारे पापा की संपत्ति का वारिस कौन है?”

नीरा के चेहरे का रंग उड़ गया, धीरे से बोली,”इरा, मेरे ख्याल से मुख्य वारिस वही है. पिछले साल ही पिता जी ने कहा था कि बड़े बेटों की तरह वारिस बड़ी बेटी को बनाना चाहते हैं. उस समय मेरी पिताजी से झड़प भी हुई थी. उन्होंने बीमारी का बहाना बनाकर मुझसे रजामंदी पर हस्ताक्षर कराए थे. वे नहीं चाहते थे कि किसी भी प्रौपर्टी के टुकड़े हों. हमारी बुआओं को भी दादाजी ने कुछ नहीं दिया था.”

सामने बैठे गौतम ने अपनी पैनी नजरें यह सुनकर नीरा पर जमा दीं. “तो क्या तुम दोनो बहनों में इसे लेकर कोई समस्या नहीं हुई?”

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नीरा चुपचाप नजरें झुकाई बैठी रही, कुछ आंसू भी गालों पर ढलक आये तो गौतम ने कहा, “डोंट वरी, नीरा. इस बारे में बात बाद में करेंगे. इरा का जल्दी पता चलेगा. अब यह बताओ, वह कहां कहां ज्यादा जाती थी.”

“खाली समय में वासु के साथ आजकल ‘वाइट रूम ‘ ज्यादा बैठती थी, उसे इस कैफे का एम्बिएंस बहुत पसंद था, एम.जी.रोड पर बहुत घूमती थी.”

“ठीक है, चलो, वाइट रूम एक चक्कर लगा लेते हैं, और आज मैं वासु से भी मिलूंगा,” और फिर नीरा को गौर से देखते हुए कहा, आनंद से भी मिलना चाहूंगा.”

गौतम ने फिर किंजल से पूछा, हमारे साथ आओगी या घर जाओगी?”

“मैंने तो नीरा के साथ रहने के लिए ही आज छुट्टी ली है, घर जाकर क्या करुँगी, पति ड्यूटी पर है, दोस्त परेशान है, घर पर अकेले मेरा मन कहाँ लगेगा,” किंजल ने माहौल को हल्का बनाने की कोशिश करते हुए मुस्कुराकर जवाब दिया.

वर्दी देखते ही वाइट हाउस के माहौल में एक सतर्कता सी आ गई. यह एक खूबसूरत कैफे था. मैनेजर तेजस रेड्डी नीरा को पहचानता था, उसने सबका मुस्कुराकर स्वागत किया. सबके लिए कॉफ़ी आर्डर करता हुआ आया और सबको बैठने के लिए कहा. तेजस खुशमिजाज बंदा था. नीरा ने पूछा, “तेजस भाई, इरा यहाँ लास्ट कब आयी थी?”

तेजस ने याद करते हुए बताया,”एक महीना तो हो गया होगा. काफी दिनों से नहीं आए तुम दोनों, सब ठीक तो है?”

इस बार गौतम ने कहा, “इरा गायब है, उसे ढूंढना है, लास्ट टाइम जब वह यहाँ आयी तो किसके साथ थी?”

“अकेली ही आयी थी, हां, बस इतना याद आ रहा है, लगातार फ़ोन पर थी, बहुत देर तक बातें करती रही थीं, अक्सर कुछ देर मेरे पास खड़ी होकर भी मेरे हालचाल लिया करती, उस दिन बस फ़ोन पर ही रही, हां, सर, और याद आया, उन्होंने उस दिन रोस्ट चिकन ओपन सैंडविच पार्सल करवाए थे.”

इस बात पर नीरा बुरी तरह चौंकी, “क्या? पर हम लोग तो प्योर वेजीटेरियन हैं.”

तेजस ने कहा, “हाँ, मैडम, इसलिए यह बात अभी याद आयी, आप लोग तो हमेशा प्योर वेजिटेरिअन मील आर्डर करते हैं. “ फिर उसने गौतम का रुख करते हुए कहा,” ये दोनों मैडम दो साल से यहाँ की रेगुलर कस्टमर हैं, सर, मेरे लायक कोई भी काम होगा तो मैं हेल्प करने के लिए रेडी हूं.”

गौतम ने कहा, “फिलहाल तो तुम्हे इतना करना है कि इरा यहाँ आये या कहीं भी दिखे तो फौरन हमें बताना, फोन नंबर नोट कर लो.”

वहां से बाहर निकलकर गौतम ने कहा, अब तुम दोनों जाओ, मुझे थोड़ा काम है, हम टच में रहेंगें.”

आगे पढ़ें- नीरा और किंजल फिर नीरा के ही फ्लैट पर….

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Serial Story: मून गेट (भाग-3)

गौतम ने अपने ऑफिस में करण को बुलाया था, करण! गौतम का ख़ास आदमी, बहुत विश्वस्त, हैंडसम और बहुत तेज दिमाग का धनी करण गौतम के साथ मिलकर कई केस हल कर चुका थ. गौतम ने इरा के गायब होने की पूरी बात बताकर कहा,” अब तुम नीरा के साथ कलकत्ता जाओ, इनके घर परिवार पर नजर डालना, इरा को वहां देखा गया है. नीरा पर भी शक की सुई जाती है, प्रॉपर्टी का मामला हो सकता है,” गौतम के आगे बोलने से पहले ही किंजल ने उसे फ़ोन किया, बोली, नीरा को बॉस ने छुट्टी दे दी है, वह कल का ही टिकट बुक करना चाहती है, तुम बताओ, किसे भेज रहे हो उसके साथ? ”

“करण को.”

“वाह, वाह, यह हुई न बात! दो सुन्दर, युवा दिल साथ रहेंगें तो हो सकता है, इस केस में कुछ गुल खिल ही जाए.”

गौतम को हंसी आ गयी, किंजल बोली, तुम तो जानते ही हो, मुझे ये दोनों कितने प्यारे हैं.”

“नीरा को बोल दो, अपने साथ एक टिकट और भेज दे. मैं उसे करण के डिटेल्स भेज देता हूं. “ कहकर गौतम ने करण का रुख किया,” चलो, बरखुरदार, लग जाओ काम पर, ये रहा नीरा का नंबर, “ गौतम की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कपिल उत्साहित होता हुआ अंदर आया, सेल्यूट किया,” सर, उस स्केच वाले लड़के के बारे में पता चला है कि वह तो सुखदेव महाराज का ख़ास शिष्य है.”

गौतम चौंका,’ क्या? वह अंग्रेजदां बाबा? ओह नो. यह क्या चक्कर है!”

“जी, सर, बाबा का ख़ास आदमी है, चंद्रन.”

“पर यह इरा के साथ कलकत्ता में क्या कर रहा था? जरा पूरी खोज खबर निकालो इस बाबा और इसके चेले की! और करण, अब तुम तैयारी करो, और लगातार मेरे टच में रहना, नीरा के साथ रहना, नजर रखना.”

“जी, सर” सेल्यूट मारकर करण और कपिल दोनों गौतम के ऑफिस से निकल गए.

करण नीरा को एयरपोर्ट पर ही मिला, ग्रीटिंग्स के बाद दोनों कुछ गंभीर से ही रहे, सिक्योरिटी चेकिंग के बाद करण ने शालीनता से बात करनी शुरू की, काफ़ी के लिए पूछा. नीरा के हां कहने पर उसके साथ कैफे काफ़ी डे आ गया, इस समय करण अपनी यूनिफार्म में नहीं था, फिर वह नीरा से उसकी फैमिली के बारे में और इरा के बारे में पूछता रहा. फ्लाइट टाइम पर थी. बोर्डिंग स्टार्ट हो गयी तो दोनों अपनी अपनी सोचों में गुम अपनी अपनी सीट्स पर बैठ गए. नीरा ने फिर थोड़ी देर में अपने बैग से एक बुक पढ़ने के लिए निकाली, तो बाई चांस करण ने भी उसी टाइम अपने बैग से भी बुक निकाली, फिर मुस्कुराकर पूछा, “आपको भी रीडिंग का शौक है?”

“जी, बहुत, रीडिंग से ज्यादा तो मैं कुछ भी एन्जॉय नहीं करती.”

दोनों का एक शौक मिला तो बातों के कई सूत्र हाथ में आ गए, दोनों ने अपनी अपनी कितनी ही पढ़ी हुई बातों की चर्चा शुरू की तो बातों का एक अनवरत सिलसिला अनजाने ही चल निकला, जब दोनों की नजर अपने हाथों में बंद बुक्स पर पढ़ी तो दोनों अचानक हंस पड़े, और अपनी बुक्स में नजरें गड़ा ली.

फिर करण ने अचानक पूछा, “इरा किसी बाबा को मानती थी? कोई स्प्रिचुअल गुरु?”

“नहीं, बिलकुल नहीं. क्यों?”

“सुखदेव महाराज का नाम सुना है?”

“हाँ, कई टी वी के शोज पर दिखते हैं. उनका तो बंगलौर में एक बड़ा आश्रम भी है न? इंग्लिश फ़्लूएंट है, फेसबुक पर कई बार उनका पेज दिखता रहता है, मेरी कई फ्रेंड्स ने उनका पेज लाइक किया हुआ है.”

“आजकल बढ़िया धंधा बना लिया है, धर्म के नाम पर कुछ जानकारी इकट्ठी कर लो और प्रवचन शुरू कर दो, बस, बिजनेस हिट! और अगर इंग्लिश बढ़िया है तो सोने पर सुहागा, फिर तो नई पीढ़ी भी सुन ही लेगी, और ये सुखदेव महाराज तो बहुत कम समय में अपने फॉलोवर्स जुटा चुके हैं. मेरा बस चले तो हर बाबा का प्रवचन बैन कर दूँ!”

करण के आक्रोश पर नीरा मुस्कुरा कर रह गयी. हर वक्त दिमाग में इरा घूम रही थी. दोनों एयरपोर्ट से बाहर निकले तो समर सिंह के पुराने ड्राइवर, साठवर्षीय सोम लेने आये हुए थे, नीरा ने उनका अभिवादन किया, “कैसे हो काका?”

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“ठीक हूं, बेटा.”

नीरा ने करण का परिचय करवाते हुए इतना ही कहा,” ये मेरे कलीग हैं, काका, कलकत्ता घूमने आये हैं.

करण ने नीरा को चौंक कर देखा, धीरे से कहा, “वैरी स्मार्ट.” फिर मन में सोचा, इतनी सीधी भी नहीं है जितनी लगती है.

-रास्ते में नीरा ने धीरे से पूछा, “आप पहली बार यहाँ आये हैं?”

“जी, थोड़ा अपना शहर दिखाएँगीं?”

“जी, पर क्या आप सचमुच शहर घूमने आये हैं या मुझ पर नजर रखने?”

“मैं तो अपने फेवरिट गुरु के आदेश का पालन कर रहा हूं.”

इतने में सोम काका ने पूछा,” बेटा, इरा कैसी हैं?”

नीरा चुप रही, फिर कुछ सोच कर बोली,” ठीक है, काका. पापा की तबीयत कैसी चल रही है?”

“बस, ऐसी ही रहती है, कभी कभी चिंता होने लगती है, पर गीताली ने सब कुछ बहुत अच्छी तरह से संभाला हुआ है. जबसे इरा दी गई हैं, साब  कुछ खोये खोये रहते हैं.”

करण चौंका,” कौन गीताली?”

नीरा ने बताया,” पापा के लिए एक नर्स रखी है, जबसे वह आई है, हम दोनों कुछ निश्चिंत होकर अपना जॉब कर पा रहे हैं.”

“कब से है गीताली आपके घर?”

“दो साल से.”

नीरा ने फिर सोम काका से पूछा,”इरा जब कोलकाता आई थी, कुछ खास हुआ था क्या.”

“नीरा आपको तो मालूम ही होगा कि इरा और चंद्रन साहब दोनों आए थे और कई बार घंटों कमरे में बंद हो कर बात करते रहे थे. कभी इरा गुस्से में निकलती कभी साब. वह तो गीताली ने कमरे में घुसना शुरू कर दिया तब इरा और चंद्रन नाराज से होकर चले गए थे.”

नीरा की हैरानी की कोई सीमा नहीं थी, इरा ने चंद्रन को पापा से मिलवाया, उसे खबर ही नहीं, पापा और इरा किसी ने भी उससे इस मीटिंग का ज़िक्र क्यों नहीं किया? पापा ने एक तो प्रॉपर्टी के सिलसिले में उससे कुछ भी पूछने की जरुरत नहीं समझी.

नीरा को इरा और चंद्रन के पापा के साथ हुए किसी मनमुटाव के बारे में मालूम नहीं था पर उसने सोम काका को कुछ नहीं कहा.

शोभा बाजार पहुँचने में आधा घंटा ही लगा, ‘नील भवन ‘ दूर से ही चमक रहा था, नीरा ने बताया,” मम्मी का नाम नीला था, इसलिए पापा ने घर का नाम नील भवन रखा,” जैसे ही दरबान ने गेट खोला, करण को लगा, जैसे वह किसी मूवी के सेट पर आ गया है, खूब बड़ा सा हरा भरा लॉन, किनारे किनारे खूबसूरत फूलों की क्यारियां, इतने में नीरा ने सोम काका से कहा,” काका, इनका बैग गेस्ट हाउस में रखवा देना और मेरा बैग मेरे रूम में, तब तक मैं इन्हे पापा से मिलवा देती हूं.”

नीरा कार से उतर कर सीधे अपने पापा के रूम की तरफ चलने लगी. बड़ा सा कॉरिडोर नीरा के साथ पार करता हुआ करण हैरान सा उसके साथ चल रहा था, कॉरिडोर में दोनों तरफ एक से बढ़कर एक खूबसूरत पेंटिंग्स लगी हुईं थीं, इतने अमीर पिता की संतान, नीरा! कितनी सिंपल दिखती है! अभी तक उसकी किसी बात से अंदाजा नहीं हुआ था कि बंगलौर के उस एक बैडरूम फ्लैट में रहने वाली यह लड़की करोड़पति जमींदार की बेटी है. उसने फिर चलते चलते नीरा पर नजर डाली, एक ब्लैक जीन्स और एक वाइट टॉप, पोनीटेल, शोल्डर पर लैपटॉप वाला बैग उठाये, सादी सी दिखती नीरा उसके दिल में जगह बनाने लगी तो उसने फौरन अपने को अलर्ट किया.

समर सिंह अपने रूम में अधलेटे से कोई किताब पढ़ रहे थे, नीरा उन्हें जैसे ही दिखी, वे, “मेरी बच्ची”, कहते हुए बेड से उठने लगे, तो नीरा ही उन तक जल्दी से पहुँच उनके गले लग गयी, दोनों पिता पुत्री भावुक से चुपचाप एक दूसरे के गले लगे रहे, अब तक करण एक कोने में खड़ा समर सिंह के बड़े से कमरे पर नजर डालने लगा. विशालकाय बेड, उसके साइड में रखे छोटे टेबल जिन पर कुछ बुक्स रखीं थीं, उनकी और उनकी पत्नी की बहुत सुन्दर युवावस्था की तस्वीर. एक कोने में एक बड़ी, सुंदर टेबल और तीन आरामदायक सोफा चेयर, और एक चेयर जो उनके बेड के पास रखी हुई थी. एक दीवार पर नीरा और इरा की प्यारी सी खिलखिलाती तस्वीर, अचानक उसके कानों में नीरा की आवाज पड़ी,” पापा, इनसे मिलिए, ये हैं करण!”

समर सिंह धीरे से नीरा का सहारा लेते हुए खड़े हुए, मुस्कुराकर करण से हाथ मिलाया, “ वेलकम टू नील भवन, यंग मैन! “करण को उनका यह अंदाज पसंद आया, समर सिंह बोले,” आओ, बैठो,” तीनो सोफा चेयर पर बैठे ही थे कि गीताली अंदर आयी, आते ही नीरा से चहक कर बोली,” हेलो, दीदी. आप कैसी हैं! बड़ी दीदी नहीं आयी?”

‘ नहीं. तुम कैसी हो?”

“एकदम ठीक! मैं आप लोगों के लिए कुछ भिजवाती हूं, दीदी, क्या लेंगी? “

नीरा ने करण से पूछा,” क्या लेंगें आप?”

“एक कप चाय”

“अभी भिजवाती हूं,” कहकर गीताली मुड़ी, करण ने उस पर नजरें जमा दीं, करीब तीस साल की उम्र, बेहद खूबसूरत, गीताली. समरसिंह की यह युवा, तेजतर्रार सी स्टाइलिश नर्स, करण को थोड़ा चौंका गयी थी. उसका पहनावा बेहद मॉडर्न था, ऊपर से नीचे तक देखने में, बात करने की अदाओं में, वह एक आम सिंपल नर्स नहीं, एक मॉडल जैसी लगी. थोड़ी ही देर में एक हाउस हेल्प इंदु, उम्र करीब पचास साल, सबके लिए एक ट्रे में चाय और कितनी ही तरह की चीजें ले आयी, पीछे पीछे गीताली भी आयी, समर सिंह से बोली,” आपके लिए सिर्फ यह अनार का जूस है, फिर नीरा से कहा,” दीदी, खाने पीने का काफी परहेज है न, बहुत ध्यान रखना पड़ता है.”

नीरा बस मुस्कुरा दी, इतना ही कहा,”तुम पर ही तो पापा की हेल्थ छोड़कर हम बहनें वहां आराम से रह लेती हैं.”

गीताली वहीँ खड़ी रही, करण ने नोट किया कि गीताली सबकी बात सुनना चाहती है. उसका उस रूम से जाने का कोई मूड नहीं दिखा और नीरा पिता के साथ एकांत चाहती है. इंदु नीरा और करण को चाय देकर जा चुकी थी, करण ने समर सिंह पर नजर डाली, करीब पैंसठ साल के समर सिंह का व्यक्तित्व काफी असरदार था, शांत चेहरे पर एक भली सी मुस्कान, उम्र इतनी नहीं दिखी जितना बीमारियों ने घेर लिया था, फिर नीरा ने कह ही दिया, “गीताली, अभी मैं पापा के पास ही हूं, तुम जाकर अपने रूम में आज अभी थोड़ी देर आराम कर सकती हो.”

करण ने देखा, गीताली के मुँह पर एक नागवारी सी उभरी, और वह,”ओके, दीदी, जब जरुरत हो, बुलवा लेना. “ कहकर चली गयी तो नीरा थोड़ी रिलैक्स लगी. समर सिंह करण से उसके जॉब, फॅमिली के बारे में पूछते रहे, अब करण ने समर सिंह से खुल कर बात करने का मोर्चा संभाल ही लिया, उसने बड़े अदब से बात शुरू की,” सर, आपकी बड़ी बेटी गायब है, और मैं यहाँ उसकी खोजबीन के लिए ड्यूटी पर हूं, पर आप बिलकुल परेशान मत होइए, बहुत जल्दी ही सब पता चल जायेगा.”

““क्या?” समर सिंह जैसे पूरा काँप गए,” नीरा! यह क्या कह रहे हैं?”

नीरा और करण उन्हें पूरी बात बताते रहे, और वे सुबक उठे, “कहाँ होगी मेरी फूल सी बच्ची? क्या हो गया?”

करण उन्हें बहुत सी बातें बताकर तसल्ली देता रहा, नीरा और समर अपने आंसू पोंछते रहे, माहौल ग़मगीन था, समर सिंह ने पूछा, ऍफ़ आई आर हो गयी?”

“पापा, आपकी हेल्थ के बारे में सोच कर रिपोर्ट नहीं की, आप किंजल को जानते हैं न, उसके पति गौतम इस केस को देख रहे हैं, उन्होंने ही करण जी को यहाँ थोड़ी जांच पड़ताल के लिए भेजा है.”

करण ने थोड़ा हँसते हुए कहा,” करण जी? आप मुझे करण ही कहेंगीं तो मैं अच्छी तरह अपना काम कर पाउँगा. “ इस बात पर समर सिंह और नीरा हलके से मुस्कुरा दिए, करण ने फिर कहा, “सर, ऍफ़ आई आर अब करने से शायद बात बाहर चली जाएगी कि हम चौकन्ने हैं, सुखदेव की जरा खबर लेनी होगी,

समर सिंह कुछ रूक कर बोले,”मैंने उसकी बात नहीं मानी तो उसने कहीं कुछ कर तो नहीं लिया.”

“कौन सी बात?” नीरा ने चौंक कर पूछा. समर सिंह उत्तर देते उससे पहले ही गीताली ने कमरे में घुसते हुए कहा, “समू साहब, अब इस बात को रहने दें. आप जितनी बार इसके बारे में सोचते हैं, आप की तबीयत खराब हो जाती है. नीरा दी आप अभी आराम कर लें. कल समू साहब से पूछ लेना.”कहते हुए गीताली ने समर सिंह को बिस्तर पर लिटा दिया. वह बत्ती बंद करके उन्हें जबरन सा बाहर करने लगी.

नीरा का सिर भन्ना गया. कौन सी बात? इरा क्या मांगने आई थी? और यह गीताली किस हक से समर सिंह को समू साहब कहती है? इस नाम से तो पापा को मां बुलाया करतीं थीं. समू साहब सुनकर नीरा के तन बदन में आग लग गयी, उसने जलती नजरों से गीताली को देखा, गीताली ने बेबाक, धृष्ट नजरों से उसे देखते हुए समर सिंह का हाथ पकड़ कर कहा, बस, अब आप आराम कीजिये. चलिए, लेटिए.”

नीरा ने टोका, “रुकिए पापा, आपने इरा की कौनसी बात नहीं मानी थी? और आपने मुझे फ़ोन पर भी नहीं बताया कि कोई चंद्रन इरा के साथ आपसे मिलने आया है, क्या चाहिए था इरा को?”

समर सिंह कुछ कहते, इसके पहले गीताली ने कहा, “दीदी, इरा दीदी के जाने के बाद समू साहब की तबीयत बहुत खराब हो गयी थी, बड़ी मुश्किल से कुछ ठीक हुए हैं, प्लीज, वह सब अब दोबारा मत पूछें.”

नीरा अपमानित सा महसूस कर रही थी. कल की लड़की का इतना हक? क्या चल रहा है? वह करण को सब कुछ नहीं बताना चाहती थी इसलिए चुप रही और अपने कमरे में चली गई. फिर उसने घोषाल बाबू को बुलवाया. घोषाल 42 साल से समर सिंह के अकाउंट संभाल रहा है. करण भी चाहता था कि सब लोगों से बात कर ली जाए.

“तो आपके घर में कितने लोग काम करते हैं?”

जवाब नीरा ने दिया,” ड्राइवर -सोमकाका, नर्स –गीताली, हाउस हेल्प –इंदु, और महेश, माली –विजेंद्र, कुक -अनीता. और घोषाल बाबू जो सब अकाउंट देखते हैं.”

“मतलब, छह लोग हमेशा यहाँ रहते हैं और घोषाल रोज आते हैं?”

“हाँ.”

“मैं सबसे अलग अलग मिलना चाहूंगा, आप लोग किसी को न बताएं कि इरा गायब है, और मैं पुलिस से हूं.”

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“ठीक है, आप अपने रूम में थोड़ा रेस्ट कर लें, फिर जिससे चाहे, मिल लें.”

करण ने गेस्ट रूम में जाकर सबसे पहले गौतम को पूरी रिपोर्ट दी, करण ने पूछा,” सर, हम सीधे सीधे चंद्रन और सुखदेव से पूछताछ नहीं कर सकते?”

“यही तो परेशानी है कि इस बाबा पर नेताओं, बड़े बिज़नेस मैन का हाथ है, कहीं इरा को कोई नुकसान न पहुंचे, अपने तौर से चंद्रन का पता करने की कोशिश करते हैं, कुछ सुराग हाथ न लगा तो फिर कुछ करना पड़ेगा.”

आगे पढ़ें- करण गौतम से बात करने के बाद…

Serial Story: मून गेट (भाग-4)

करण गौतम से बात करने के बाद फ्रेश होकर नए सिरे से इस केस के बारे में सोचने लगा, फिर उसने गीताली से मिलने का मन बनाया, वह दोबारा समर सिंह के रूम की तरफ बढ़ा, फिर इरादा बदल लिया, और यूँ ही विला में इधर से उधर टहलता रहा, दूर से उसे दिखा, कुछ सीढ़ियां, उसके दोनों तरफ हरे भरे पेड़, एक हरा भरा सा कमरा दिखा, उसके बाहर एक आदमी एक बड़े बर्तन में पानी डाल रहा था, करण तेज क़दमों से उसकी तरफ बढ़ा, वह आदमी चौंका, फिर बोला, नमस्ते, साहब, आप ही छोटी दीदी के मेहमान हो?”

“हाँ, तुम यहाँ क्या काम करते हो?”

“माली हूं.”

“कबसे?”

“दस साल हो गए, साहब.”

“क्या नाम है?”

“विजेंद्र.”

“इस कमरे में क्या है?”

विजेंद्र मुस्कुराया, देखेंगें?”

“क्या है?”

“आइये, साहब” कहकर विजेंद्र ने पानी का बर्तन उठाया, और उस जगह का दरवाजा खोल कर अंदर गया, तो करण चौंक कर पीछे हटा, यह बर्ड हाउस था! तरह तरह की रंगीन चिड़ियों से गुलजार, सब विजेंद्र को जैसे पहचानती थीं, कुछ तो उसके कंधे पर आकर बैठ गयी, करण को लगा, जैसे वह कोई सुन्दर सपना देख रहा है, चिड़ियों की चहचाहट से उस जगह में ही एक अलग सी बात थी, करण ने मन में सोचा, अमीरों के शौक!’ विजेंद्र ने पानी वहां रखे एक बड़े बर्तन में उड़ेल दिया, सभी चिड़िया उस बड़े से बर्तन के चारों ओर एक बड़ा सा घेरा बनाकर बैठकर पानी पीने लगी, बहुत प्यारा दृश्य था, करण इस जगह की, और चिड़ियों के पानी पीने की फोटो लेने से खुद को रोक नहीं पाया, विजेंद्र ने कहा, अब चलें? साहब?”

दोनों बाहर आ गए, विजेंद्र ने कहा,” साहब ने यह जगह बड़े शौक से बनवायी, वे यहाँ कुछ देर आकर कभी कभी बैठते हैं, पर गीताली को यहाँ चिड़ियों का शोर अच्छा नहीं लगता तो वह साहब को यहाँ से जल्दी ही ले जाती है.”

“क्यों? उसे क्या परेशानी है यहाँ?”

“क्या पता, साहब, उसके अपने ही नखरे हैं.”

“अच्छा, एक बात बताओ,” कहकर उसने अपने फ़ोन में चंद्रन की फोटो ज़ूम की और पूछा,” यार, एक बात बताओ, यह आदमी कभी यहाँ आया है?”

विजेंद्र ने फोटो को बहुत ध्यान से देखा, साहब, चंद्रन जी! अभी तो आये थे इरा दीदी के साथ! बहुत गुस्से में ही घूमती रही दीदी इस बार.”

“ठीक है, चलो, फिर मिलते हैं. ‘ करण जैसे ही आगे बढ़ा, पीछे से विजेंद्र ने कहा,” पर साहब, यह है कौन?”

“दोस्त है मेरा,” कहकर करण हंसा.

करण ने फिर समर सिंह के रूम की तरफ रुख करना चाहा, नीरा तो पता नहीं कहाँ गायब हो गयी थी, उसका रूम भी पता नहीं कौन सा था, उसने घूम घूम कर पूरी विला का एक एक कोना देखा, इतने में उसे इंदु के साथ एक आदमी आता दिखा, इंदु बोली,” साब, ये महेश है, आपको किसी भी चीज की जरुरत हो, महेश को बता देना, छोटी दीदी ने कहा है.”

“अच्छा, ठीक है, तुम्हारी छोटी दीदी है कहाँ?”

“साहब के रूम में.”

“मुझे वहां तक पहुंचा दो, मुझे तो अभी तक रास्ते ही नहीं याद हो रहे हैं कि कहाँ जाना है.”

महेश हँसता हुआ बोला, आइये,” करण को समर सिंह के रूम के बाहर ही छोड़ कर महेश चला गया, समर सिंह लेटे हुए थे, नीरा पास बैठी उनका माथा सहला रही थी, करण को यह दृश्य भला सा लगा, उसे देख नीरा उठ कर खड़ी हो गई. तभी गीताली, जो वहीं बैठी थी, बोली, “खाना लग गया है, सब चलिए.”

करण सबके साथ डाइनिंग एरिया में आया, उसने एक नजर चारों तरफ डाली, हर चीज से समृद्धि, वैभव दिखाई दे रहा था, एक क्लास थी, आभिजात्य छाप थी.खाने में कई तरह की चीजें थीं, समर सिंह का खाना परहेज वाला था. इंदु, महेश और कुक अनीता ने खूब मन से खाना खिलाया. माहौल में इरा के प्रसंग से उदासी सी थी. करण ने नीरा से पूछा, “आप लोगों की इनकम के इस समय क्या साधन हैं?”

जवाब नीरा ने दिया,” प्रॉपर्टी बहुत है, कई माल्स, कई घर किराए पर दिए हुए हैं, उनका किराया आता है, और पास के गावों में जमीनें हैं जो कई लोग देखते हैं, दादा जी भी एक बड़े जमींदार थे, वे गांव में रहते थे, हमारी पढाई लिखाई के लिए पापा ने यहाँ रहकर यह घर बनवाया और हम फिर यहीं पले बढ़े.”

खाना खाकर करण ने कहा, ”मुझे गीताली से कुछ बात करनी होगी, क्या आप उसे बुलवा सकती हैं?”

नीरा ने कहा,” ऐसा करते हैं कि आप लाइब्रेरी में चलिए, मैं वहीँ उसे भेज देती हूं, वहां एकांत है, आप डिस्टर्ब भी नहीं होंगें, फिर महेश को बुलाकर करण को लाइब्रेरी दिखाने के लिए कहा. लाइब्रेरी तो सचमुच करण को प्रभावित कर गयी, कई सेक्शंस थे, फिक्शन, नॉन फिक्शन, फेमस पर्सनॅलिटीज़ की ऑटो बायो ग्राफ़िक्स, बहुत अच्छा कलेक्शन था, इतने में गीताली आ गयी, करण ने उससे उसकी फैमिली के बारे में पूछा. उसका सपाट जवाब था, “ कोई नहीं है, शादी नहीं की. “ कहकर उसने बात ही ख़तम कर दी. फिर करण उससे नीरा और इरा के बारे में कई बातें पूछता रहा, वह अनमनी सी जवाब देती रही. करण ने उसे फिर अचानक अपने फोन में एक फोटो दिखा कर पूछा,” इसे कभी देखा है?”

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गीताली के चेहरे पर हैरानी के भाव आये,करण को वह कुछ अलर्ट सी होती लगी, फिर उसने करण को ध्यान से देखा,” आप कौन हैं, सर?”

“फिलहाल तो यहाँ मेहमान हूं, बताओ, देखा है इसे?”

“यही तो आये थे इरा दीदी के साथ, क्या भव्य व्यक्तित्व था. ज्ञानी लोगों की बात ही अलग होती है न साब!

स्वामी चंद्रन!”

“स्वामी चंद्रन?”

“सुखदेव महाराज का यहाँ भी एक छोटा आश्रम है, मैं पहले कभी कभी स्वामी चंद्रन के प्रवचन सुनने जाती थी, अब तो समू साहब की सेहत का ध्यान रखने में ही समय चला जाता है. मैं नहीं चाहती समू साहब को कोई तकलीफ हो. काफी ज्ञानी हैं स्वामी जी. इरा दी भी चार पांच बार दो-तीन दिन में ही समू साहब से मिलवाने लाई थी. आखिरी दिन तो साब दोनों से बहुत नाराज़ हुए थे. संपत्ति को लेकर बात हो रही थी जो साब को पसंद नहीं आ रही थी.”

“जितनी तनख्वाह तुम्हे यहाँ मिलती होगी, उससे सब खर्च आराम से निकल जाते हैं तुम्हारे?” कहकर उसकी महँगी साड़ी पर नजर डाली करण ने.”

“हाँ, साहब, अकेली जान के खर्चे ही कितने हैं! यहीं तो रहती हूं. साहब सबको एक परिवार ही तो समझते हैं.”

करण कुछ देर उसे ध्यान से देखता रहा, फिर बोला,” तुम्हारी छोटी दीदी कहाँ हैं इस समय? मैं यहीं बैठा हूं, उन्हें भेज दीजिये.”

थोड़ी देर में नीरा अपना खुला लैपटॉप उठाये वहीँ चली आयी, करण गौतम को फीड बैक देकर हटा था, करण ने कहा,” ओह्ह्ह, मैंने आपको डिस्टर्ब किया?”

“नहीं, नहीं, ऑफिस का एक प्रोजेक्ट है, उसी पर काम चलता रहता है, अभी बॉस ने कुछ अर्जेंट काम कहा है.”

“बड़ी बड़ी टेक कम्पनीज में काम करने का फ़ायदा?” कहकर करण हंस दिया तो उसके कहने के ढंग पर नीरा भी हंस दी, बोली, आपने मुझे बुलवाया है? कुछ काम है?”

“आपको नहीं लगता, गीताली इस सैलरी में काफी बन ठन कर रह लेती है? उसकी इतनी महँगी साड़ियां? क्या सचमुच आप लोग बहुत सैलरी देते हैं?”

“मैंने भी उससे एक दिन पूछ लिया था, तो उसने बताया था कलकत्ता में आधी रात को बाजार लगता हैजहाँ पुरानी बनारसी साड़ी भी उसे डेढ़ सौ रुपए में मिल जाती है, इस बाजार में लगभग दो हजार दुकानदार हैं.”

“आप मुझे अपना शहर कब दिखाएंगी?”

“बस थोड़ा काम ख़तम कर लूँ? शहर आज दिखाती हूं. शाम को चलते हैं.”

करण फिर थोड़ी देर समर सिंह के पास बैठा पर वे किसी भी बारे में कुछ भी बताने में कतराते रहे. गीताली हर समय चिपकी ही रही. करण फिर घर में रहने वाले हर शख्स से बातचीत करता रहा, नीरा को ऑफिस के काम से चार घंटे बाद ही छुट्टी मिली, वह फ्रेश होकर आयी तो करण लाइब्रेरी में बैठा था, उसे देखकर बोला,”अगर मैं समर सिंह की बेटी होता तो आराम से घर में रहता, इतनी देर लैपटॉप में सर न खपाता, ऐश करता.” नीरा मुस्कुराकर रह गयी, उसने अनीता को बुलाकर कहा, आज हम दोनों का खाना मत बनाना, बाहर ही कुछ खायेंगें,” और फिर अपने पिता को बताकर गैराज की तरफ बढ़ी, सोम काका को शायद वह पहले ही बता चुकी थी, वे तैयार थे. नीरा ने कार में बैठते हुए कहा,” काका,बाली गंज चलिए, सबसे पहले इन्हे लूची आलू दोम खिलाते हैं.”

करण ने पूछा,” यह क्या है?”

“खाने के शौक़ीन लोगों को कलकत्ता कभी निराश नहीं करता, लूची पूरी की तरह ही होती है, आलू दोम, दम आलू का बंगाली संस्करण है.”

“आपको कैसे पता, मैं खाने का शौक़ीन हूं.”

“मैंने लंच आपके साथ ही किया है, और जबसे निकले हैं, साथ ही खा रहे हैं,” कहते हुए नीरा हंस दी, फिर अचानक से पूछा, “इरा के गायब होने का कोई सिरा हाथ लगा?”

“हाँ, कुछ तो लग रहा है, यह गीताली भी एक पहेली लग रही है. यह एक मिनट भी समर सिंह का साथ नहीं छोड़ती. वे भी उसके दीवाने नजर आते हैं. क्यों न हो. जवान है फ्लर्ट करने में माहिर लग रही है. स्वामी चंद्रन को भी ढूंढना है, सुखदेव के यहाँ के आश्रम में आज रात एक चक्कर लगाना है.

“मेरे साथ?”

“नहीं, अकेले. आप कार में ही रुकना.”

करण ने खूब मन से लूची पूरी का आनंद लिया, नीरा ने कहा,” अब आपको कॉलेज बुक स्ट्रीट मार्किट ले जाती हूं, इस जगह को पुस्तक प्रेमियों का स्वर्ग माना जाता है,यहाँ दुनिया की सभी किताबें मिल जाती हैं,आपको पढ़ने का शौक है, आपको यह जगह बहुत पसंद आएगी,” कहते कहते नीरा बुरी तरह चौंकी, उसने दूर रोड के साइड पर नजर डालते हुए जोर से आवाज दी,इरा, इरा!” भीड़ इतनी थी कि वह खुद ही परेशान सी आगे बढ़ी, फिर रुक गयी, करण ने पूछा, क्या हुआ?”

“मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने इरा को किसी के साथ देखा, इरा ही थी! मैं उसका टॉप पहचान गयी, हम दोनों ने ही एक साथ एक जैसा टॉप लिया था! वह कोलकाता में क्या कर रही है?”

करण सोच में पड़ गया, फिर उसने नीरा के चिंतित, उदास चेहरे पर एक नजर डाली, फिर कहा, “बहुत जल्दी हम उसे ढूंढ निकालेंगें, वो हमारे आसपास ही है तो इतना मुश्किल नहीं होगा, एक मिनट, मुझे एक कॉल करना है, अभी आया,” कहकर करण ने साइड में जाकर गौतम को सब बताया, गौतम ने उसे दो लोगों के फ़ोन नंबर दिए जिनकी वह आगे हेल्प ले सकता था.

करण ने न जाने कितनी किताबें खरीद ली, नीरा को समझ आ गया कि सचमुच करण को जबरदस्त पढ़ने का शौक है, अब आठ बज रहे थे, नीरा ने कहा, अब आपको हावड़ा ब्रिज दिखाती हूं.”

“सब आज ही दिखा देंगीं?”

“नहीं, नहीं, एक दिन में कहाँ कलकत्ता देखा जाता है! बस, इसके बाद कुछ खा कर घर.”

हावड़ा ब्रिज! हुगली नदी पर बना ये ब्रिज हावड़ा और कोलकाता शहर को जोड़ता है, इसकी खासियत है कि इस पुल में कोई नट बोल्ट नहीं है. यह दुनिया का सबसे व्यस्त कैंटीलीवर ब्रिज भी है.”

पानी में पुल पर जलती लाइट्स की परछाई बहुत सुन्दर लग रही थी, नीरा ने पूछा, लाइये, आपकी पिक्स ले दूँ?”

करण ने उसे अपना फ़ोन दे दिया, थोड़ी फोटो ली, फिर करण ने पूछा, “आओ. एक सेल्फी साथ ले लें?”

नीरा थोड़ा सकुचाई, फिर उसके साथ खड़ी हो गयी, करण ने कुछ सेल्फी साथ लीं, नीरा ने फिर सोम काका को डेकर्स लेन चलने के लये कहा, वहां एक कैफे से थोड़ी दूर कार रुकवाई, बोली, काका, हम डिनर करेंगें, आपको कुछ खाना है तो आ जाइये.”

“नहीं, बेटा, आप लोग खा कर आइये, मैं यहीं कार के आसपास ही कुछ खा लूँगा, पार्किंग की प्रॉब्लम है, कार छोड़ कर कहीं जाना ठीक नहीं होगा.”

“ठीक है, काका.”

कैफे में बैठ कर नीरा ने कहा,” मैं और इरा यहाँ बहुत आते थे, यह हमारी मनपसंद जगह है, यहाँ का एग डेविल हमारा फेवरिट है, इसे कसौंदी के साथ सर्व करते है जो बंगाल की ख़ास सरसों की चटनी है.” नीरा ने एग डेविल आर्डर किया, “करण, मैं सोच रही हूं कि पापा से अकेले में सब बात करूँ, सब पूछूं, कि इरा और चंद्रन के साथ उनका झगड़ा किस बात पर हुआ.”

“हां, ठीक है, तुम्हारा पूरा हक़ है अपने पापा से हर बात करने का, बेटी हो उनकी!” नीरा अब थोड़ी सहज हुई, उसने पूछ लिया,” आप मैरिड हैं?”

“शकल से मैरिड लगता हूं?”

करण के सेंस ऑफ़ ह्यूमर का नीरा को अब तक अंदाजा हो चुका था, वह हंस पड़ी. करण ने शरारत से कहा, “नहीं, अभी तक अकेला हूं, ढूंढ रहा हूं.” फिर नीरा को चिढ़ाते हुए कहा,” आप के क्या हाल हैं? आनंद से ब्रेक अप के बाद आपका मूड कैसा है?”

नीरा ने घूरा,”सब पता करके आये हैं?”

“जी, सब.”

नीरा फिर चुप रही, करण शरारत से मुस्कुराता रहा, आर्डर सर्व हुआ तो खाने में बिजी हो गया, नीरा ने उसे खाते हुए ध्यान से देखा, करण की नजरें अपनी प्लेट पर थीं, पर बोला, “निहार लिया हो तो आप भी खाना शुरू करें, जरा जल्दी है.”

नीरा झेंप गयी, बोली,”किस बात की जल्दी है?”

“बहुत घूम फिर लिए, जरा स्वामी जी के पास भी चक्कर काटना है.” नीरा गंभीर हुई, “अभी?”

“हाँ, आज ही, अभी जाऊंगा, आप कार में रहना, मेरे दो साथी और मुझे वहीँ मिलेंगें.”

करण ने कार में बैठते हुए सोम काका से कहा, “काका, जरा अब गरिया हाट चलेंगें.”

नीरा को सोम काका के साथ एक जगह छोड़ करण सुखदेव के आश्रम की कोलकाता ब्राँच की तरफ बढ़ा, बाहर सुखदेव महाराज के नाम का एक बोर्ड और एक बड़ी सी फोटो लगी हुई थी, यह पुराना इलाका था, थोड़ा सन्नाटा था, शहर से थोड़ा हटकर बने आश्रम के आसपास छोटी मोटी दुकाने थीं, गेट के पास ही करण को दो लोग मिले, पवन और अनिल, तीनो कुछ देर बातें करते रहे, फिर अंदर की तरफ बढ़े तो एक वॉचमैन ने रोक लिया, करण ने सख्ती से पूछा, “स्वामीजी आज कल कहाँ हैं?” अपना आइडेंटिटी कार्ड दिखाया तो वह सतर्क हुआ, होशियारी से कहा, “रात हो गयी है, अब अंदर जाना मना है, कल ही दर्शन होंगें.” पवन ने उसे आड़े हाथों लिया, और पुलिस के साथ ठीक से सहयोग करने की धमकी दी, कहा, करण,अनिल, तुम लोग जाओ अंदर, मैं इसे देखता हूं.”

करण और अनिल दबे पाँव अंदर की ओर बढ़े, अजीब सी ख़ामोशी थी, इतने में दो वॉचमैन आये और उन्हें अंदर बढ़ने से रोक लिया, करण ने कहा, हमें स्वामी जी से मिलना है.”

“वे तो अभी बैंगलोर की फ्लाइट के लिए निकल गए.”

करण को एक तेज झटका लगा, फिर इरा की फोटो दिखा कर पूछा, “यह लड़की उसके साथ है?”

उस आदमी ने कहा, “ध्यान नहीं.”

पवन ने घूरा तो वह बेशर्मी से हंस दिया, “कई लोग आते जाते रहते हैं, साहब, सबका ध्यान थोड़े ही रहता है!” पवन ने फिर गुस्से में उस आदमी का हाथ मरोड़ ही दिया, वह दर्द से चिल्ला उठा, “हाँ, साहब, यही साथ है.”

वे सब वापस बाहर आ गए.

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“नील विला “पहुंच कर कार से उतर कर नीरा ने करण से कहा, अब आप रेस्ट करें, मैं अभी पापा से बात करती हूं, मुझे पूरी बात जाननी है, मुझे जरा चैन नहीं आ रहा है.”

“ ठीक है,” कहकर करण गेस्ट रूम की तरफ बढ़ गया, वह अंदर नहीं गया, अँधेरे में यूँ ही बाहर खड़ा होकर कुछ देर सोचता रहा, अचानक उसने देखा, नीरा अंदर नहीं गयी, लॉन के एक तरफ जाकर किसी से फ़ोन पर बहुत देर बातें करती रही, इतनी रात यह किससे बात कर रही है, यह तो सीधे अपने पापा के पास जाने वाली थी. करण की नजरें नीरा पर ही टिकी रहीं, वह हैरान था, इस घर में चल क्या रहा है, यह मिस्ट्री कब सुलझेगी, सब एक से बढ़कर एक लग रहे हैं! उसने फिर अंदर जाकर गौतम को फ़ोन मिला दिया, और उसे एक एक बात बताई, गौतम बहुत कुछ निर्देश देता रहा.”

नीरा समर सिंह के रूम की तरफ बढ़ी, तो उनके रूम में अँधेरा था, वह चौंकी, अंदर झाँका, पापा नहीं दिखे तो वह तेज आवाज में चिल्लाई, इंदु, अनीता.”

दोनों भागी आयीं, दोनों के मुँह उतरे हुए थे, नीरा चीखी,” पापा कहां हैं?”

इंदु ने कहा, “कुछ समझ ही नहीं आया, दीदी, अचानक गीताली ने टैक्सी बुलाई, और हमें कहा, साहब की तबीयत खराब है, उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करना है, और वह साहब को टैक्सी में ले गयी.” गुस्से में नीरा का सर भन्ना गया, उसने गीताली को फोन मिलाया, “क्या हुआ,पापा को? तुमने मुझे फ़ोन क्यों नहीं किया? सारे फैसले तुम खुद कर लोगी? एड्रेस बताओ, पापा कहां है? मैं आ रही हू.”

नीरा भागती हुई करण के पास पहुंची, उसे रोते हुए पूरी बात बताई, करण ने कहा,” चलो, फौरन हॉस्पिटल चलते हैं.”

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Serial Story: मून गेट (भाग-2)

नीरा और किंजल फिर नीरा के ही फ्लैट पर आ गए, दोनों कुछ देर के लिए लेट गयी, किंजल ने नीरा को शांत करने के लिए कहा, “नीरा, अब तुम सब गौतम पर छोड़ दो, बहुत जल्दी ही इरा का पता चल जायेगा.”

नीरा की बेचैनी की कोई सीमा नहीं थी, उसने रोज की तरह अपने पापा से बात की, उन्होंने परेशान होते हुए कहा,” नीरा, इरा ने कई दिन से मुझसे बात नहीं की, कहां है वह?”

“पापा, पहले ऑफिस के काम में बहुत व्यस्त थी. अब ऑफिस की एक मीटिंग में जिस जगह गयी है वहां का नेटवर्क बहुत खराब है. आप बिलकुल चिंता मत करना, वह बिलकुल ठीक है. “ वह बहुत देर अपने पापा से बिलकुल नार्मल तरीके से बात करते हुए हंसती हंसाती रही. फ़ोन रखकर अचानक रोने लगी. किंजल ने फौरन उसे गले से लगाया चुप करवाया. वह सुबकते हुए कहने लगी,” किंजल, पापा से कब तक छुपाउंगी? और, पता चलते ही कहीं उनकी तबियत खराब न हो जाए. वे बहुत बीमार रहते हैं, उनके सिवा तो हमारा कोई और है भी नहीं.”

“डोंट वरी, नीरा. गौतम अब तक काम पर लग गया होगा. इस केस की रिपोर्ट तो तुमने अपने पापा की हेल्थ को ध्यान में रखते हुए नहीं की, अच्छा किया, अब गौतम अपने तरीके से सब पता कर लेगा.”

गौतम ने अपने ऑफिस जाकर इंस्पेक्टर कपिल और सुरेश को बुलाकर उन्हें केस के बारे में बताते हुए कहा, “ये रहे सबके फ़ोन नंबर. आनंद और वासु को यहाँ बुलवाओ. मुझे उनसे बात करनी है, फौरन, आज ही. और एक आदमी नीरा की निगरानी के लिए लगा दो, वह घर से कब निकली, कहां गई, किससे मिली, सब नजर रखवाओ.”

“जी सर,” दोनों गौतम को सेल्यूट कर चले गए.

गौतम और कामो में व्यस्त हो गया, अचानक उसे कुछ याद आया, उसने नीरा को फ़ोन किया, “जरा चेक करो, उसका बैग, कपडे, और क्या क्या सामान फ्लैट पर नहीं है, उसका ऑफिस का बैग? लैपटॉप?” नीरा ने उसे कुछ देर बाद फ़ोन किया, बताया, “ वह अपने काफी कपडे ले गयी है, ऑफिस का बैग, लैपटॉप, अपने सारे वॉलेट, कार्ड्स, सब जरुरी सामान.”

“ठीक है, मतलब तैयारी से गयी है.”

आनंद जब कपिल के साथ आया तो काफी घबराया हुआ था, उसके चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी, गौतम ने उसे बैठने का इशारा किया, गौतम ने पूछा,” उस शाम के बारे में एक एक डिटेल्स बताते चलो, जब तुम नीरा के साथ उसके फ्लैट पर गए थे.”

“हमेशा की तरह मैंने उसे उसकी बिल्डिंग तक ड्राप किया, उसने नीचे से देखा, उसके फ्लैट की लाइट बंद थी, उसे लगा, उसकी बहन इरा अभी तक नहीं लौटी है, उसने मुझे ऊपर चलने के लिए कहा, मैं उसके साथ गया, और…. आनंद झिझका तो गौतम ने कहा,” हां, ठीक है, तुम लोगों साथ सोए. ठीक?”

“यस, सर.”

“ठीक है, फिर?”

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“फिर अचानक नीरा की नजर टेबल की ड्राअर से झांक रहे एक पेपर पर पड़ी जो इरा लिख कर गयी थी. बस, तबसे वह परेशान है और यही चिंता है कि इरा कहां है.”

“उसी बेड पर साथ सोए जिसके बराबर में टेबल से नोट लिखा पेपर झाँक रहा था, तुम्हारी नजर नहीं पड़ी थी?”

“नहीं, सर.”

“तुम्हें कैसे पता कि वह नोट इरा ने ही लिखा था?” गौतम ने तल्खी से पूछा.

आनंद ने कहा, ”मैंने तो कभी इरा की हैंड राइटिंग नहीं देखी थी. हो सकता है कि किसी और की हैंड राइटिंग हो.”

गौतम ने कहा वह चैक करेगा. फिर पूछा, “दोनों बहनों के आपसी सम्बन्ध कैसे हैं?”

“बहुत दोस्ताना, बहुत प्यार है दोनों बहनों में, एक दूसरे से बहुत खुली हुई हैं.”

“वासु को जानते हो?”

“जी”

“कैसा लड़का है?”

“दोनों बहनों में से किसी का बर्थडे होता है, या कोई और पार्टी, तब वासु से मिलना हुआ है, काफी सुलझा हुआ, शांत सा लगा हमेशा.”

“इरा तुम्हे पसंद करती है? तुम्हारे साथ उसकी बॉन्डिंग कैसी है?”

“जब भी मिला हूं, नार्मल बातचीत ही हुई, सर”

“ठीक है, अभी तुम जाओ, जब भी जरुरत होगी, बुलाएँगे तुम्हे.”

आनंद ने वहां से निकलते ही नीरा को फ़ोन किया,” यार, आज पहली बार तुम्हारे चक्कर में पुलिस स्टेशन आना पड़ गया, मेरे पेरेंट्स सुनेंगें तो बहुत नाराज होंगें.”

नीरा ने उदास स्वर से कहा,” आनंद, कैसी बात कर रहे हो? क्या तुम इस केस में हमारी हेल्प नहीं करना चाहते?”

आनंद ने कहा, ”नहीं, ऐसी बात नहीं है, पर ये पुलिस स्टेशन के चक्कर मुझसे नहीं लगाए जायेंगें,” कहकर आनंद ने फ़ोन रख दिया तो नीरा की आँखों में आंसू आ गए, किंजल ने पूरी बात सुनी तो हैरान हुई, बोली, नीरा, पहले से ही इरा के लिए परेशान हो, अब आनंद की बात पर दुखी होकर मत बैठना, मुसीबत के समय लोगों के सही रंग दिख जाएँ तो संभल जाना चाहिए.”

नीरा बहुत उदास, चुप ही रही.

कपिल ने फ़ोन पर ही गौतम को बता दिया था कि वासु बड़ी मुश्किल से आपसे मिलने के लिए तैयार हुआ है, वह उखड़ा सा आया. गौतम के इशारे पर बैठ गया. गौतम ने पूछा,” इरा को कबसे जानते हो?”

“साल भर से. वाइट फील्ड एरिया में जहाँ मेरा ऑफिस है, वहीं कई आई टी कंपनियों के ऑफिस हैं, मेरे कई दोस्त वहां के कई ऑफिसेस में हैं, उन्ही में से एक दोस्त ने इरा से मिलवाया था, इरा के ऑफिस में भी मेरा आना जाना हुआ तो दोस्ती हो गयी थी.”

“इरा के बारे में और कुछ बताओ.”

वासु पहले तो चुप रहा, फिर उसने कहना शुरू किया,” काफी बोल्ड है इरा, मुझसे पहले भी जिसके साथ उसका अफेयर था, उससे ब्रेक अप के बाद एक दिन भी दुखी नहीं रही थी वो, अपनी लाइफ का हर पल अपने हिसाब से जीने वाली हैं दोनों बहनें, अमीर पिता की संतानें हैं, कोई जिम्मेदारी है नहीं, खूब आज़ादी से जीती हैं, इरा ने मुझसे अचानक एक महीने पहले दूरी बनानी शुरू कर दी थी, मुझे अभी तक कारण भी नहीं पता कि उसने मुझसे ब्रेक अप क्यों किया.”

गौतम ने पूछा, “कुछ तो हुआ होगा ब्रेकअप से पहले? कोई झगड़ा, मन मुटाव वगैरा.”

“कुछ खास नहीं पर 3-4 महीने से हम कम मिलते थे. इरा बताती थी कि उसका आफिस में काम बढ़ गया है. वह कुछ दिनों के लिए अचानक कोलकाता भी गई थी और उसके बाद जब भी मिली उसके फोन पर फोन आते थे.” वासु ने जोड़ा.

“उसके पहले बॉय फ्रेंड के बारे में बताओ, कुछ पता है? क्या नाम है उसका?”

“तनय, वेलेंदूर एरिया में रहता है, इरा ने ही बताया था.” वासु ने बताया.

“ठीक है, अभी तुम जाओ, जरुरत होगी तो बुलाएंगें.”

वासु के जाने के बाद गौतम ने नीरा को फ़ोन किया, “तनय का नंबर है तुम्हारे पास?”

“जी, अभी देती हूं.”

गौतम ने सुरेश को तनय का नंबर देते हुए कहा, “इसे बुलाओ, फौरन.”

पूरा दिन किंजल नीरा के साथ रही, अब अँधेरा हो चला तो किंजल ने कहा,” यहां अकेली मत रहो अभी, मेरे साथ चल कर रहो, नीरा.”

“नहीं, नहीं, मैं ठीक हूं, यहीं रहूंगी, तुम बिलकुल चिंता मत करो, तुमने तो आज बहुत साथ दिया, गौतम को भी मेरी तरफ से बहुत सा थैंक्स बोलना.”

“फॉर्मेलिटी मत करो, नीरा, यहीं रहना चाहती हो तो ठीक है, पर जरा भी मन घबराए, चली आना, हम दोस्त हैं, और परेशान मत हो, गौतम काम पर लग चुका है. “किंजल चली गयी तो नीरा ने फिर अपने पापा को फोन किया. बहुत देर तक बातें की, उनकी तसल्ली कर दी कि इरा यहीं कहीं है. वे बारंबार उसके लिए चिंता कर रहे थे जबकि पहले कभी ज्यादा पूछताछ नहीं करते थे. तो यूँ ही लेट कर इरा का सोशल मीडिया अकाउंट चेक करने लगी, उसे एक झटका सा लगा. इरा ने अपना फेसबुक, इंस्टाग्राम सब डीएक्टिवेट कर रखा था, उसने आनंद को फ़ोन किया, उसके फ़ोन की घंटियां बजती रहीं. फ़ोन नहीं उठाया तो नीरा समझ गयी कि आनंद पुलिस के चक्कर में पड़ने से बचने के लिए उससे दूरी बना रहा है. उसने एक ठंडी सांस ली. आंसू बह निकले, वह आनंद को सचमुच प्यार करने लगी थी. बहुत जल्दी उसे अपने पापा से मिलवाने ले जाने के लिए भी सोच चुकी थी. पर अब! सब ख़तम होने वाला था.

तनय का फ़ोन नहीं मिला तो गौतम ने इंस्पेक्टर सुरेश को कहा कि नीरा से पता पूछकर किसी को भेज कर उसे बुलवा ले, तनय बैंगलोर से बाहर दो दिन के टूर पर गया हुआ था. उस दिन तो तनय से किसी की बात नहीं हो पायी. रात को गौतम घर पहुंचा, उसके फ्रेश होने के बाद किंजल अधीर सी होते हुए इरा की खोज के बारे में पूछने लगी, गौतम ने कहा,” इतनी जल्दी कुछ नहीं कह सकता, अभी तो सब मेरे शक के घेरे में हैं, “ फिर मुस्कुराते हुए किंजल की आँखों में आँखें डाल कर कहा,” तुम्हारी सहेली भी.”

किंजल तुनकी,” खबरदार, मेरी सहेली पर जरा भी शक किया तो, कबसे जानती हूं उसे.”

गौतम मुस्कुरा कर रह गया.

तीसरे दिन तनय गौतम के सामने उसके ऑफिस में बैठा था. गौतम ने पूछना शुरू किया, “इरा से ब्रेक अप क्यों हुआ था?”

तनय ने झेंपते हुए कहा, “मैं उस समय थोड़ा ड्रिंक करने लगा था, इरा को मेरा ड्रिंक करना पसंद नहीं था, फिर थोड़ा तल्खी से कहा,” मुझे तो ड्रिंक करने पर इतना गुस्सा दिखाया, पर मैडम खुद ड्रिंक करती हैं बार में बैठकर.”

गौतम चौंका,” क्या? तुमने कब देखा उसे? कहाँ देखा?”

“एम जी रोड पर एक आदमी के साथ बैठ कर ड्रिंक कर रही थी.”

“कौन था? जानते हो?”

“नहीं, मैंने तो पहली बार देखा था उस लड़के को. पर मैंने इरा को लास्ट मंथ फिर उसी लड़के के साथ कार से आते जाते दो तीन बार देखा है.”

गौतम ने फौरन सुरेश को आने के लिए कहा, उसके आते ही गौतम ने कहा, “ये जो बता रहा है, उसका स्केच बनवाओ, दोनों लड़कियों के पूरे सर्किल में पता करो,कि किसी को पता है, इरा किसके साथ उठती बैठती थी.”

“ओके सर” कहकर सुरेश तनय को लेकर अपने आर्टिस्ट से स्केच बनवाने चला गया.

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तनय के बताने के आधार पर जो स्केच बन कर आया, वह एक सुंदर, स्मार्ट लड़के का था. घने, थोड़े बड़े,बालों वाले, फ्रेंच कट दाढ़ी, तनय ने बताया था, लड़का अपने पहनावे, अपने एक स्टाइल से बहुत अमीर लगा था. इंस्पेक्टर सुरेश और कपिल ने इरा और नीरा के एक एक कांटेक्ट से जाकर पता किया कि किसी ने उस लड़के को कहीं देखा है? पर निराशा ही हाथ लगी. सब हैरान थे कि इरा ने इस लड़के के बारे में किसी से भी कुछ शेयर क्यों नहीं किया था? नीरा बहुत हैरान थी, ऐसा क्या है जो इरा छुपा रही थी, कहीं वह किसी खतरे में तो नहीं है? वह कहां है. ठीक तो है! नीरा बहुत परेशान थी, अब समर सिंह भी इरा से बात करने के लिए ज्यादा बेचैन से होने लगे, उन्हें अब शक होने लगा कि नीरा उनसे कुछ छुपा रही है. वे बारंबार फोन करते. इधर नीरा परेशान थी, जब कुछ समझ नहीं आया, वह किंजल के घर गयी,उस समय गौतम भी घर पर ही था, नीरा ने कहा, “पापा को शायद अब कुछ शक होने लगा है कि मैं उनसे कुछ छुपा रही हूं, वे बार बार इरा के बारे में पूछ रहे हैं,” उसकी बात ख़त्म भी नहीं हुई थी कि कलकत्ता से उसके बचपन के दोस्त जय का फ़ोन आया, वह और नीरा बचपन के साथी थे, थोड़े दिन पहले ही उसने दोनों की ही एक कॉमन फ्रेंड निशा से विवाह किया था, जय ने आम हालचाल के बाद पूछा, यार, तुम क्यों नहीं आयी इरा के साथ?”

नीरा बुरी तरह चौंकी,”इरा के साथ?”

‘ हाँ, भाई, मैंने उसे पिछले महीने पार्क स्ट्रीट में देखा.”

“क्या कह रहे हो? जय?”

“पक्का?”

“हाँ, कोई उसके साथ था, मैं थोड़ा दूर था, मैंने उसे आवाज़ नहीं दी, मुझे लगा, तुम आयी होगी तो मिलने आओगी ही, तुम नहीं आयी थी?”

“नहीं, जय, मैं तो नहीं आयी थी, इरा ही थी, पक्का?”

“हाँ यार, हुआ क्या है? परेशान सी क्यों लग रही हो?”

“बाद में फ़ोन करती हूं, जय.”

फ़ोन रखकर नीरा ने गौतम और किंजल को हैरान होते हुए जय से हुई बात के बारे में बताया. गौतम ने कहा,” नीरा, फौरन जय को व्हाट्सएप्प पर उस नए स्केच वाले लड़के की फोटो भेजकर पूछो, कि क्या इरा के साथ यही लड़का था.”

“जी. “वहीँ बैठे बैठे नीरा ने जय को फोटो भेज दी, फोटो उसके फ़ोन में थी ही. पांच मिनट के अंदर पुष्टि हो गयी कि स्केच वाला लड़का ही इरा के साथ कलकत्ता के पार्क स्ट्रीट एरिया में था. गौतम ने कहा,’ बहुत बड़ी गड़बड़ लग रही है, नीरा, वह कलकत्ता गई और पापा से नहीं मिली? हद है! चल क्या रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि पापा से मिली हो और मुझे भी नहीं बताया. पापा और इरा के बीच कोई खिचड़ी पकती हो और मुझे मालूम तक नहीं?”

नीरा ने एक ठंडी सांस लेकर कहा,” मेरा मन पापा के पास जाने का कर रहा है, बहुत ही चिंता हो रही है कि यह हो क्या रहा है, मैँ अगर पापा के पास कुछ दिन के लिए चली जाऊं तो आप अपनी खोजबीन जारी तो रखेंगें न भैया?”

नीरा गौतम को भैया ही कहती पर फिर भी गौतम, गौतम था, अभी उसने नीरा को इस केस में क्लीन चिट नहीं दी थी, कुछ सोचता हुआ बोला,” मुझे तुम्हारे कलकत्ता जाने में कोई ऑब्जेक्शन नहीं है, पर मेरा एक ख़ास आदमी तुम्हारे साथ जायेगा, वहां भी तुम्हारे साथ ही रहेगा और फिर तुम्हारे साथ ही लौट आएगा, तुम कितने दिन के लिए जाना चाहती हो?”

“कल ऑफिस जाकर अपने बौस से बात करती हूं, एक हफ्ते में आ जाउंगी, पापा को सामने बैठ कर इरा के गायब होने की बात बताउंगी तो उनकी चिंता बाँट भी सकती हूं.”

“ठीक है, मुझे बताना कि तुम कब जाना चाहती हो?”

“कल ऑफिस में बात होने के बाद बताती हूं.”

नीरा के वहां से निकलते ही गौतम ने किसी को फ़ोन करके तुरंत अपने आफिस पहुंचने के लिए कहा, फिर किंजल से अचानक पूछा,” किंजू, दोनों बहनों का आपसी सम्बन्ध कैसा था?”

“मैंने तो दोनों के बीच कोई मनमुटाव नहीं देखा, जैसे आजकल की आत्मनिर्भर लड़कियां होती है, दोनों वैसी ही हैं, और ये तो खानदानी रईस हैं, फिर भी कभी कोई दिखावा नहीं, कोई घमंड नहीं.”

“नीरा ने कभी इरा की किसी बात की तुमसे शिकायत नहीं की?”

“नहीं, पर कभी कभी जब हम सब साथ बैठते, इरा नीरा को चिढ़ाती, कि देख, नीरा, पापा मुझे ज्यादा प्यार करते हैं, “ हम सब पूछते ऐसा क्यों, तो वह हंस देती, कहती, नीरा को पता है. “ नीरा उस समय चुप ही रहती, वो तो मुझे अब अंदाजा हुआ कि उसके पापा ने अपनी सारी जायदाद का मुख्य वारिस इरा को बनाया होगा, इसलिए वह नीरा को चिढ़ाती रही होगी.

“क्या तुम्हे लगता है, नीरा इरा के साथ कुछ गलत कर सकती है?”

“नहीं, कभी नहीं.”

“यार, पुलिस वाले की बीबी हो. इतनी जल्दी किसी पर यकीन नहीं करते, यह तो सीख लो.”

किंजल के घूरने पर गौतम हंस कर जाने के लिए उठ गया.

अगले दिन नीरा आफिस गई, अब तक सब इरा के गायब होने के बारे में जान चुके थे, सब उसे तसल्ली देते रहे. किंजल ने उसे बॉस से पूछने के लिए इशारा किया, वह अपने सीनियर संजीव मेहरा के पास गयी, उन्हें पूरी बात बताकर एक हफ्ते की छुट्टी मांगी, संजीव बोले, “ हां, अपने पापा से मिल आओ, पर जल्दी ही एनुअल मीटिंग की तैयारी करनी है, तुम्हे अपने प्रोजेक्ट को भी पूरा करना है, ऐसा करो, लैपटॉप साथ ही रखना, भले ही चली जाओ, पर काम करती रहना.”

“जी, सर.”

किंजल ने उसके बाहर निकलते ही इशारे से उसे अपने पास बुलाया, कहा,” यही कहा होगा न, काम करती रहना!”

नीरा को किंजल के अंदाजे पर हंसी आ गयी, बोली, तुम तो बॉस को पूरी तरह जान गयी.”

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“और क्या, मेहरा जी का बस चले तो सबकी लाइफ से रात का कांसेप्ट ही ख़तम कर दें, बस, दिन रहे और सब ऑफिस में बैठे रहें, काम करते रहें, न रात हो, न कोई घर जाए!”

“ओफ्फो, क्यों कोस रही हो उन्हें इतना, आराम से मुझे छुट्टी दे दी.”

“आराम से? बेटा, तुम जाओ, तुमसे पूछूंगी कि कितने आराम से दी है.”

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