Serial Story: मंगनी की अंगूठी (भाग-1)

रैस्टोरैंट के हौल में दाखिल हो कर सुमिता ने इधरउधर देखा. सारी मेजें भरी हुई थीं. वह इस रैस्टोरैंट की रैगुलर कस्टमर थी. स्टाफ उस को पहचानता था. हैडवेटर भी तनिक शर्मिंदा था. वह मन ही मन सोच रहा था, ‘मोटा टिप देने वाली मैडम को आज कोई मेज खाली नहीं मिली.’

‘‘मैडम…’’ आ कर वह सौरी बोलता इस से पहले ही सुमिता ने कहा, ‘‘डोंट माइंड, आज रश है.’’

वह जैसे ही वापस जाने को मुड़ी तभी उस की नजर हौल के तनहा कोने में बैठे एक गंभीर सूरत वाले नौजवान पर पड़ी. खयालों में खोया वह नवयुवक फ्रूट जूस के गिलास से धीरेधीरे चुसकियां ले रहा था.

वह तनहा कोना सुमिता को बहुत पसंद था मगर आज वह भी खाली नहीं था. गोल मेज के इर्दगिर्द सिर्फ 2 ही कुरसियां थीं. एक खाली थी दूसरी पर हलकीहलकी दाढ़ी और आंखों पर नजर का चश्मा लगाए गंभीर सूरत वाला वही नौजवान बैठा था.

कुछ सोच कर सुमिता उस मेज के समीप पहुंची. आगंतुक को देख कर नौजवान तनिक चौंका फिर उस ने सवालिया नजरों से सुमिता को देखा.

‘‘आप के सामने की सीट खाली है, अगर माइंड न करें तो मैं बैठ जाऊं?’’ थोड़े संकोच भरे स्वर में सुमिता ने कहा.

‘‘शौक से बैठिए, आई डोंट माइंड’’, स्थिर स्वर में नौजवान ने कहा.

सुमिता ने कुरसी खिसकाई और उस पर बैठ गई. सामने बैठा नौजवान निर्विकार ढंग से अपने फ्रूट जूस के गिलास से चुसकियां लेता रहा.

सुमिता बहुत सुंदर थी. उस का फिगर काफी सुडौल और आकर्षक था. उस को देखते ही नौजवान और अधेड़ कुत्ते की तरह लार टपकाने और जीभ लपलपाने लगते थे. मगर सामने बैठा नवयुवक उस सौंदर्य से लापरवाह था.

सुमिता एक कौल सैंटर में ऊंचे पद पर काम करती थी, उसे मोटी तनख्वाह मिलती थी. वह सैरसपाटा करने, खानेपीने के लिए कभी अकेली तो कभी किसी सहेली या सहयोगी के साथ इस रैस्टोरैंट में आतीजाती थी. यह रैस्टोरैंट उसे काफी पसंद था.

तभी उस का स्थायी वेटर उस के सामने आ गया.

‘‘मैडम…’’

यह सुनते ही सुमिता ने एक क्षण सामने देखा. सामने बैठा नवयुवक फ्रूट जूस पी कर गिलास मेज पर रख कर मैन्यू पढ़ रहा था.

‘‘माई और्डर इज सेम.’’

सिर हिलाता वेटर लौट गया. थोड़ी देर बाद वेटर उस  पसंदीदा लाइट ड्रिंक और फ्रैंच फ्राइज की प्लेट रख कर चला गया.

उस नवयुवक ने भी अपना और्डर दे दिया. वेटर उस का और्डर भी सर्व कर गया. नवयुवक खातापीता रहा. थोड़ी देर बाद सुमिता का खाने का और्डर भी सर्व हो गया. वेटर उस की पसंद जानता था.

आमनेसामने बैठे खापी रहे दोनों नौजवान युवकयुवती थे. युवती मन ही मन सोच रही थी कि नौजवान उस की तरफ ललचाई नजरों से अवश्य देखेगा, लार टपकाएगा व उस पर लाइन मारने की कोशिश करेगा. मगर एक यंत्रचलित पुतले के समान सामने बैठा नौजवान बिना किसी भाव के खातापीता रहा.

बिल अदा कर सुमिता उठ कर खड़ी हुई लेकिन अभी तक वह नवयुवक खाना खा ही रहा था. ‘अजीब आदमी है, शायद सैडिस्ट है.’ सोचती हुई वह बाहर आ गई.

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थोड़े दिन बाद एक शौपिंग मौल की लिफ्ट में जाते समय उस का सामना फिर से उसी सैडिस्ट से हो गया. पहले की तरह वह अब भी निर्विकार था.

‘‘अरे, वह नौजवान या तो कोई फिलौसफर होगा या फिर इंपोटैंट व्यक्ति.’’ उस की कौल सैंटर की सहयोगी नीरू ने कहा.

‘‘अरे, अगर वह इंपोटैंट हुआ या फिलौसफर तब भी इस के किसी का काम का नहीं है,’’ शालू ने कहा.

‘‘वैसे क्या तेरी उस में दिलचस्पी है,’’ नीरू ने शरारत भरी नजरों से उस की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘अरे, इस के ईगो पर चोट पहुंची है, क्योंकि वह न तो इस के फिगर से इंप्रैस हुआ न ही बातों से. इस को उम्मीद थी कि वह इस को देखते ही ललचाएगा, लार टपकाएगा, मगर उस ने तो इस की तरफ ध्यान से देखा भी नहीं,’’ शालू का तीर निशाने पर लगा.

पहले सुमिता तिलमिलाई फिर खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के साथ सभी सहेलियां हंस पड़ीं.

‘‘अगर वह युवक तुझ से इंप्रैस हो जाए और दोस्ती कर ले तब क्या खिलाएगी,’’ मीनाक्षी ने शरारत से कहा.

‘‘इस के पसंदीदा रैस्टोरैंट में लंच करेेंगे,’’ एक सहेली ने कहा.

‘‘लंच का टाइम तो अब भी हो गया है,’’ नीरू की इस बात पर सब सहेलियां अपनाअपना टिफिन खोलने लगीं.

शाम को सब का कार्यक्रम हलके जलपान का बन गया. सब उसी रैस्टोरैंट में पहुंचीं. तभी सुमिता की नजर एक कोने में मेज के करीब बैठे नौजवान पर पड़ी. सभी ने उस की नजर का अनुसरण किया.

‘‘अरे, क्या वही फिलौसफर तो नहीं,’’ नीरू ने कहा.

‘‘वही है.’’

‘‘चलो, हम उस से इंट्रोडक्शन करती हैं.’’

सुमिता पहले तो सकुचाई, लेकिन फिर वह उन के साथ उस नौजवान की मेज के समीप पहुंची.

‘‘हैलो, हैंडसम,’’ सुंदर नवयुवतियों को एकसाथ मेज के पास आ कर खड़े होने और बेबाकी से उस को हैलो, बोलता देख नौजवान सकपकाया.

‘‘हैलो,’’ सुमिता को देख उस की आंखों में पहचान के भाव उभरे मगर वह असमंजस में पड़ा उन को देखता रहा.

‘‘यह आप से पहले भी मिल चुकी है, यह कहती है कि आप शायद कोई फिलौसफर हैं इसलिए हम आप से परिचय करना चाहते हैं,’’ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ओह, श्योर. बैठिए,’’ सामने पड़ी कुरसी की तरफ इशारा करते हुए उस नौजवान ने कहा. सामने एक ही कुरसी थी

3 कुरसियां और लग गईं. ‘‘आप का नाम,’’ उस नौजवान से नीरू ने पूछा.

‘‘मोहित,’’ संक्षिप्त सा जवाब मिला.

‘‘आप क्या करते हैं,’’ दूसरा सवाल मीनाक्षी का था.

‘‘मैं आर्टिस्ट हूं. विज्ञापन कंपनियों के लिए डिजाइन बनाता हूं.’’

‘‘आर्टिस्ट भी फिलौसफर ही होता है,’’ इस टिप्पणी पर सब सहेलियां हंस पड़ीं.

‘‘मेरे मामाजी कहते हैं लेखन, चित्रकला, फिलौसफी सब असामान्य मस्तिष्क के लोगों के काम ही होते हैं,’’ शेफाली की इस बात पर सब सहेलियां फिर हंस पड़ीं. मोहित भी मुसकरा पड़ा.

‘‘अरे, तू भी तो कुछ बोल, असल फिलौसफर तो तू है,’’ नीरू ने सुमिता को कहा.

‘‘मिस्टर, आप का स्टूडियो कहां है?’’ पहली बार सुमिता ने सवाल किया.

इस पर मोहित ने अपने पर्स से एक विजिटिंग कार्ड निकाल कर थमा दिया.

‘‘अब आप हमें कुछ खिलाएंगे या फिर हम आप की खिदमत करें,’’ नीरू ने आंखें मटकाते हुए कहा.

इस पर मोहित हलका सा हंसा और सिर झुकाते हुए बोला, ‘‘फरमाइए, आप की खिदमत में क्या पेश करूं?’’

उस की इस अदा पर सब खिलखिला कर हंस पड़े. फिर सब ने मैन्यू पढ़ कर अपनीअपनी पसंद का और्डर दिया. हलकीफुलकी बातें करतेकरते हंसते हुए खायापिया. अच्छाखासा बिल आया जो मोहित ने मुसकराते हुए अदा किया. फिर अपने कौल सैंटर का पता और सुमिता का मोबाइल नंबर दे कर सब चली आईं.

मोहित अपने स्टूडियो में बैठा सोच रहा था कि वह कंप्यूटर पर ग्राफिक डिजाइन बनाता था. कभी यह काम कागज और ब्रश से होता था. मगर अब सब कंप्यूटर से होता है.

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वह तनहाई पसंद, खुद तक सीमित रहने वाला युवक था. उस का सामाजिक दायरा सीमित था. मूल रूप से वह

एक चित्रकार था. रोजीरोटी के लिए वह  आर्टिस्ट बन विज्ञापन कंपनियों को छोटेछोटे क्रिएटिव डिजाइन, स्कैच बना कर देता था.

30 वर्ष का होने पर भी वह कुंआरा था. कभी आगे बढ़ कर उस ने किसी लड़की से दोस्ती नहीं की थी. अभी तक विवाह न होने का कारण यही था. अपने रिजर्व नेचर की वजह से वह किसी लड़की को पसंद नहीं कर पाता था और न ही कोई लड़की उसे पसंद कर पाती थी.

मगर आज का किस्सा कुछ अजीब सा था. कुछ दिन पहले एक सुंदर सी लड़की उसे रैस्टोरैंट में मिली थी, फिर लिफ्ट में, मगर अपने स्वभाव के कारण वह उस की तरफ ध्यान नहीं दे पाया और चुपचाप बैठा रहा था. अब उस को क्या पता था कि एक दिन उस की यही खुद में सीमित रहने की प्रवृत्ति आकर्षण का कारण बन जाएगी.

सुमिता भी यही सोच रही थी कि दर्जनों पुरुष मित्र होने पर भी उस को कोई प्रभावित नहीं कर पाया था और इस का सब से अहम कारण था कि हर कोई उस पर ललचाई दृष्टि डालता था.

कुछ दिन बाद वह मोहित के स्टूडियो में जा पहुंची. मोहित कंप्यूटर पर ग्राफिक्स बना रहा था. अन्य कंप्यूटरों पर उस के कई सहायक काम कर रहे थे. इन में 3-4 लड़कियां भी थीं.

‘‘अरे, आप… आइएआइए, तशरीफ रखिए,’’सुमिता को देख कर मोहित खिल उठा.

ठंडा पीते हुए सुमिता ने इधरउधर नजर डाली. स्टूडियो में एक तरफ स्टैंड पर कैनवास से बने खाली और अर्धनिर्मित चित्र भी थे.

‘‘क्या कंप्यूटर के जमाने में आप तुलिका और कैनवास पर भी काम करते हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘जो रचनात्मकता ब्रश और कैनवास पर आती है. वह कंप्यूटर के डिजाइन या ग्राफिक्स में नहीं आ सकती.’’

‘‘लेकिन आजकल तो अधिक चलन कंप्यूटर से बनी डिजाइनों का है.’’

‘‘वह तो है, मगर इस तरह बने किसी डिजाइन या तसवीर में वह आत्मा नहीं होती, जो ब्रश से बने चित्र में होती है.’’

मोहित की इस बात को सुन कर सुमिता समझ गई कि मोहित एक चित्रकार के साथसाथ पक्का दार्शनिक भी है. इस के बाद हलकीफुलकी बातें कर सुमिता चली आई.

स्टूडियो में सुमिता का आनाजाना बढ़ गया और अब दोनों शाम को काम समाप्त होने के बाद घूमनेफिरने भी जाने लगे.

सुमिता को उस का सहज, स्वाभाविक स्वभाव और खुद में खोए रहने की प्रवृत्ति पसंद आई. मोहित भी उस से प्रभावित हुआ. वह एक बार उस के कौल सैंटर भी आया मगर वहां का व्यावसायिक और व्यस्त माहौल उस को पंसद नहीं आया.

सुमिता सोचती कि वह मोहित से विवाह संबंधी बात करे या फिर वह ही उस को प्रपोज करेगा.

एक शाम मोहित के पास एक बड़ी विज्ञापन कंपनी का फोन आया.

‘‘मिस्टर मोहित, काैंग्रेचुलेशन.’’

‘‘फौर व्हाट?’’

‘‘पिछले महीने आप के बनाए लैंडस्केप डिजाइन को इंटरनैशनल नैचुरल डिजाइन कौंटैस्ट में पहला अवार्ड मिला है, आप को एक सप्ताह का स्विट्जरलैंड भ्रमण का इनाम मिला है.’’

इस पर मोहित आश्चर्य में पड़ गया.

‘‘मगर मैं तो कभी बाहर घूमने नहीं गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, अब हो आइए.’’

‘‘मेरे पास तो पासपोर्ट भी नहीं है.’’

‘‘आजकल पासपोर्ट 3 दिन में बन जाता है.’’

नियत दिन मोहित भ्रमण के लिए हवाईजहाज पर सवार हुआ, उस के साथ अन्य शहरों से आए कई चित्रकार और आर्टिस्ट भी थे. भ्रमण टूर का कांट्रैक्ट एक टूरिज्म कंपनी ने लिया था.

हवाईजहाज उड़ते ही सब को सीट बैल्ट बांधने की हिदायत दी गई. साथ ही लैमन जूस या टौफी चूसने को दी गईं. हवाई सफर लगभग 7 घंटे का था. पहले हलका नाश्ता सर्व हुआ. फिर दोपहर का भोजन मिला.

‘‘मिस्टर, आप वैज लेंगे या नौनवैज,’’ एक खूबसूरत व्योमबाला ने मोहित के समीप आ कर पूछा. किसी खयाल में खोया मोहित एकदम चौंका और बोला, ‘‘मैं दोनों ही खा लेता हूं, जो अच्छा बना है ले आइए.’’

उस के इस जवाब पर आगेपीछे और सामने की कतार में बैठे यात्री हंस पड़े. व्योमबाला भी हंस पड़ी.

‘‘मिस्टर, हवाईजहाज में खाना किचन में नहीं बनता बल्कि बंद पैकेट्स में सप्लाई होता है. आप अगर वैजिटेरियन पैकेट मांगेंगे तो वैजिटेरियन मिलेगा और नौनवैज मांगेंगे तो वही मिलेगा.’’

‘‘ठीक है, नौनवैज ही दे दो.’’

एयरहोस्टैस एक पैकेट और एक खाली प्लेटचम्मच उसे थमा कर आगे बढ़ गई. अगली सीट के पीछे फोल्डिंग टेबल का इंतजाम था. सहयात्री की देखादेखी मोहित ने भी मेज खींच ली और उस पर प्लेट रख कर पैकेट खोला.

फिर आइसक्रीम व कौफी सर्व हुई. व्योमबाला एक ट्रौली में यह सब सर्व कर रही थी. उस का पाला पहली बार हवाईजहाज की यात्रा करने वाले यात्रियों से पड़ता ही रहता था. उसे मोहित जैसे यात्री मिलते ही रहते थे.

जहाज हवाईअड्डे पर उतरा तब तक शाम ढल आई थी जहां से मुख्य शहर काफी दूर था. एक स्टेशन वैगन में अनेक यात्री सवार हुए. व्योमबाला एक एयरबैग थामे आ गई और संयोग से उसे मोहित के बगल में सीट मिली.

‘‘क्या आप स्विट्जरलैंड पहली बार आए हैं?’’ एयरहोस्टैस ने बातचीत शुरू की.

‘‘मैं हवाईजहाज में पहली बार सवार हुआ हूं.’’

‘‘आप यहां क्या करने आए हैं?’’ बेहतरीन दाढ़ी बढ़ाए मस्तमौला नजर आने वाले सुंदर नैननक्श वाले युवक की तरफ गौर से देखते व्योमबाला ने पूछा.

‘‘मैं एक आर्टिस्ट हूं. विज्ञापन कंपनियों के लिए ग्राफिक्स और डिजाइन बनाता हूं. हाल ही में मेरे एक डिजाइन को एक प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला है. इस के लिए एक सप्ताह के लिए स्विट्जरलैंड भ्रमण का इनाम मिला है.’’

व्योमबाला प्रशंसात्मक नजरों से उस की तरफ देखने लगी.

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‘‘आप तो नियमित आती रहती होंगी.’’

‘‘जी हां, हमारा तो प्रोफैशन ही ऐसा है.’’

‘‘यहां कब तक ठहरेंगी?’’

‘‘3 दिन, वापसी के पूरे यात्री मिलने में 3 दिन लग ही जाते हैं.’’

‘‘समय बिताने के लिए आप क्या करती हैं?’’

‘‘यहां समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता. सारा स्विट्जरलैंड बहुत खूबसूरत है. बर्फ पर स्कीइंग करते, पहाड़ों पर ऐक्सपिडिशन करते और बड़ी झील में बोट चलाते समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता,’’ व्योमबाला ने कहा.

इस तरह हलकीफुलकी बातें होती रहीं. मुख्य शहर बर्न आधे घंटे बाद आया. एक तीनसितारा होटल में ठहरने का इंतजाम था. व्योमबाला और उस के क्रू के अनेक साथी नियमित आतेजाते थे, इसलिए स्टाफ उन्हें पहचानता था.

अगले दिन साइट सीइंग के लिए भ्रमण दल एक टूरिस्ट बस में सवार हुआ. सचमुच सारा स्विट्जरलैंड ही खूबसूरत था. व्योमबाला भी साथ थी.

मोहित और उस की मुलाकात हलकीफुलकी दोस्ती में बदल गई.

‘‘आप का क्या नाम है,’’ रैस्टोरैंट में मैन्यू पढ़ते मोहित ने पूछा.

‘‘सुमिता वालिया, और आप का?’’

‘‘मेरा नाम तो मोहित है,’’ मोहित उस की तरफ अपलक देख रहा था. उस के इस तरह देखने पर सुमिता वालिया तनिक चौंकी और उस ने पूछा, ‘‘आप इस तरह मेरी तरफ क्यों देख रहे हैं?’’

‘‘एक ही महीने में 2-2 लड़कियों से वास्ता पड़ा और संयोग से दोनों का नाम भी सुमिता है.’’

इस पर सुमिता वालिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘वह दूसरी सुमिता कौन है,’’ उस ने मोहित से जानना चाहा.

‘‘वह एक कौल सैंटर में काम करती है. एक बार रैस्टोरैंट में मेज खाली नहीं थी तो मेरे समीप ही आ कर बैठी थी. फिर पता नहीं मुझ पर कैसे आकर्षित हो गई थी.’’

‘पता नहीं कैसे आकर्षित हो गई थी,’ कहने पर सुमिता वालिया ने उस की तरफ गौर से देखा. क्या कभी मोहित ने अपने व्यक्तित्व पर गौर नहीं किया.

रैस्टोरैंट का माहौल मोमबत्तियों के मद्धिम प्रकाश में बहुत रोमानी हो गया था. हलकेफुलके ड्रिंक्स के बाद एकदूसरे की पसंद का खाना खाया गया. खाने के बाद टहलने का प्रोग्राम बना. बाहर हलकीहकी बर्फबारी हो रही थी.

‘‘आप भारी गरम कपड़े नहीं लाए.’’ मोहित के हलके पुलओवर की तरफ देखते हुए सुमिता वालिया ने कहा.

‘‘मैं कभी ऐसी जगह आया ही नहीं.’’

‘‘चलिए, मेरे पास ऐक्स्ट्रा ओवर कोट है,’’ सुमिता के साथ मोहित उस के होटल के कमरे में चला गया. ओवरकोट उसे फिट आ गया.

हलकी बर्फबारी में दोनों काफी देर तक इधरउधर घूमते रहे. घूमतेघूमते सुमिता स्वयं को मोहित के गले में बांहें डाले देखने लगी. शहर के एक किनारे पर काफी बड़ी झील थी. जिस की दूसरी सीमा साथ लगते जरमनी को छूती थी.

‘‘कल मुझे वापस जाना है,’’ सुमिता ने कहा.

‘‘मेरा अभी 4 दिन का भ्रमण बाकी है.’’

‘‘कहां घूमोगे?’’

‘‘क्या पता? यह तो भ्रमण टूर का संचालक बताएगा.’’

शायद सुमिता वालिया कहना चाहती थी कि अगर ठहरती तो भ्रमण और भी सुखद रहता मगर वह खामोश रही. अपनाअपना मोबाइल नंबर दे कर दोनों ने विदा ली.

भ्रमण समाप्त कर मोहित भी सप्ताहांत में लौट आया. थोड़ेथोड़े अंतराल पर कौल सैंटर में कार्यरत सुमिता भी आती रही. दोनों पहले की तरह ही शाम को खानेपीने, घूमनेफिरने को निकलते रहे.

एक शाम व्योमबाला सुमिता वालिया का फोन आया. उस ने मोहित को शाम के खाने के लिए आमंत्रित किया. स्थान वही था जहां कौल सैंटर वाली सुमिता मिली थी. यह जान कर मोहित की स्थिति बड़ी खराब हो गई, क्योंकि उसी शाम उस का दूसरी सुमिता के साथ खाने का प्रोग्राम था और स्थान वही था. अब वह क्या करे? कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

व्योमबाला को तो कौल सैंटर वाली सुमिता के बारे में बता दिया था मगर व्यस्तता के कारण कौल सैंटर वाली सुमिता को व्योमबाला सुमिता के बारे में नहीं बता पाया था.

‘जो होगा देखा जाएगा,’ इस विचार को ले कर वह वहां जाने के लिए तैयार होने लगा. पहले वह कभी भी शाम को घूमने जाते समय तैयार नहीं होता था मगर जब से उस की दोस्ती सुमिता से हुई और अब व्योमबाला से तब से वह अपने व्यक्तित्व की तरफ ध्यान देने लगा था.

शानदार काले ईवनिंग सूट और मैच करती टाई लगाए कीमती परफ्यूम से महकता मोहित रैस्टोरैंट में पहुंचा. व्योमबाला एक रिजर्व टेबल पर बैठी उस का इंतजार कर रही थी. मोहित को देखते ही चौंक पड़ी. उस का व्यक्तित्व एकदम से बदल गया. कहां तो वह एक बेतरतीब, मस्तमौला सा साधारण कपड़े पहनने वाला नौजवान और अब कहां यह एकदम से अपटूडेट सूटबूटटाई में सजाधजा नौजवान.

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‘‘हैलो,’’ दोनों ने एकदूसरे से हाथ मिलाया.

‘‘बहुत अच्छे लग रहे हो, एकदम शहजादा गुलफाम की तरह,’’ व्योमबाला ने मोहित को देखते हुए कहा.

अपनी तारीफ से कौन खुश नहीं होता, इसलिए मोहित भी यह सुन कर खुश हो गया.

‘‘आप भी तो बला की दिलकश और हसीन नजर आ रही हैं,’’ व्योमबाला हलकी नीले रंग की शिफौन साड़ी पहने हुए थी और उस से मैच करता लो कट ब्लाऊज और मैच करती हलकी ज्वैलरी सचमुच उस के सौंदर्य में चार चांद लगा रही थी.

(क्रमश:)

सहेली का दर्द: भाग 3- कामिनी से मिलने साक्षी क्यों अचानक घर लौट गई?

‘‘पर कामिनी संयुक्त परिवारों में तो ये सब…’’

साक्षी की बात को बीच ही में काटते हुए कामिनी बोली, ‘‘हां साक्षी, मुझे पता है. पर संयुक्त परिवार में कुछ लोगों की मनमानियों से किसी का वजूद ही खतरे में पड़ जाए तो? क्या एक पत्नी को अपने पति के साथ जीने का हक नहीं मिलता? क्या एक पत्नी की सिर्फ इसलिए बली चढ़ा दी जाती है कि भाइयों को बुरा न लग जाए? उसे कुछ बोलने का हक नहीं? तुम जैसी भी हो अच्छी हो साक्षी. तुम्हें पता है तुम्हारे पति कितने बजे घर आएंगे. घर आने के बाद पता है एकसाथ सोएंगे, बातें करेंगे. और तुम्हें ये भी पता है कितने बजे औफिस जाएंगे. तुम्हें पता है पति की इनकम कितनी है. उतना तुम खर्च कर सकती हो. लेकिन मुझे कुछ नहीं पता. वैभव का न आने का टाइम है, न जाने का. आज आएंगे भी या नहीं, यह भी पता नहीं. कब खानापीना, सोना है कोई समय तय नहीं है साक्षी,’’ कामिनी ने कहा.

कामिनी ने साक्षी को अपनी लाइफ के हर पहलू की बातें बताईं.

‘‘चलो कामिनी अब सो जाओ, रात का 1 बज रहा है,’’ साक्षी ने कहा.

‘‘हां, साक्षी सोते हैं. तुम भी सफर के बाद आराम नहीं कर पाई,’’ कामिनी बोली.

‘‘मैं जरा सौरभ को संभाल कर आती हूं. अगर वे सोए नहीं होंगे, तो वहीं सो जाऊंगी.’’

‘‘ठीक है साक्षी, देख लेना,’’ कामिनी ने सोते हुए कहा.

साक्षी के मन में उथलपुथल चल रही थी कि आखिर कामिनी के प्रति वैभव की उदासीनता  की वजह क्या है? इतनी खूबसूरत होते हुए भी कामिनी में उस की रुचि क्यों नहीं है? आज सुबह नाश्ते की टेबल पर वैभव ने जिस तरह से देखा, उस से तो लगता है उस के दिल में कुछ है. वैभव की नजरों में अजीब सा आकर्षण और निमंत्रण था. साक्षी सोचती हुई अपने पति सौरभ के कमरे में जा रही थी कि उसे एक कमरे में लाइट जलती दिखी.

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‘इस वक्त कौन है इस रूम में?’ उस ने सोचा. फिर साक्षी ने जैसे ही कमरे में झांका तो देखा कि वैभव नाइट ड्रैस में एक अलमारीनुमा टेबल के आगे चेयर पर बैठा है.

‘‘जीजू आप? कब आए?’’ साक्षी ने चौंकते हुए पूछा और फिर कमरे में प्रवेश कर गई.

‘‘अरे, सालीजी… आइए न अंदर.’’ वैभव ने साक्षी को कमरे में प्रवेश करते देखा तो बोला.

‘‘आप कब आए? बताया क्यों नहीं? मैं और कामिनी कमरे में बातें कर रही थीं,’’ साक्षी ने चहकते हुए कहा.

‘‘अभी कुछ देर पहले ही आया था. आप दोनों बातों में व्यस्त थीं, तो मैं ने डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझा,’’ वैभव बोला.

‘‘पर कामिनी तो सो चुकी है शायद,’’ साक्षी ने वैभव के साथ वाली चेयर पर बैठते हुए कहा.

साक्षी ने देखा वैभव शराब पी रहा था. उस के मिनी बार में कई विदेशी ब्रैंड सजे थे. उस की आंखों में नशे के डोरे साफ नजर आ रहे थे.

लेकिन साक्षी की रुचि वैभव से बातें करने में थी. अत: पूछा, ‘‘जीजू, आप शराब क्यों पीते हो?’’

‘‘कोई खुशी के लिए थोड़े पीता है साक्षी. इनसान के दिल में कोई न कोई ऐसा गम होता है, जिसे भुलाने के लिए जरूरी हो जाता है पीना,’’ वैभव ने भावुक होते हुए कहा. उस की आंखें भर आई थीं.

वैभव की डबडबाई आंखों को देख साक्षी भावुक हो गई. तुरंत उठ कर वैभव की आंखें पोंछते हुए बोली, ‘‘जीजू, प्लीज मत रोइए… मुझे बताइए क्या बात है?’’

साक्षी को नजदीक देख वैभव चेयर पर बैठेबैठे ही उस से लिपट गया.

उधर जब कामिनी सोच रही थी कि काफी देर हो चुकी है, लेकिन साक्षी नहीं आई. वह सो गई या आ रही है? इसी सोच में उसे नींद नहीं आ रही थी. वह अपने कमरे से बाहर निकली और साक्षी के कमरे की तरफ चल पड़ी. वैभव के बार वाले कमरे में लाइट जल रही थी और धीमेधीमे बातें करने की आवाजें आ रही थीं. वह चौंकी और सीधे उस कमरे में प्रवेश कर गई.

अंदर का दृश्य देख वह चौंकी. वैभव कुरसी पर बैठा था और साक्षी की कमर में हाथ डाले लिपटा था. वैभव की नजरें कमरे में प्रवेश कर रही कामिनी के रौद्ररूप पर पड़ी, तो वह साक्षी को छोड़ सीधा बैठ गया.

‘‘वैभव क्या कर रहे हो… शर्म नहीं आती तुम्हें मेरी सहेली के साथ भी ऐसा करते हुए?’’ कामिनी चिल्लाई.

अचानक कामिनी की आवाज सुन कर साक्षी चौंक पड़ी.

‘‘चिल्ला क्यों रही हो? इस में गलत क्या हो गया?’’ वैभव भी चिल्लाया.

‘‘एक यह रूप है वैभव का, देख ले साक्षी. रो धो कर ये नाटक करते हैं… इन्हें नई नई औरतें चाहिए… यही वजह है कि इन की रुचि मुझ में नहीं रही अब,’’ कामिनी ने साक्षी को झकझोरते हुए कहा.

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‘‘मुझे माफ कर दो कामिनी… अनजाने में…’’

इस से पहले कि साक्षी अपनी बात पूरी कर पाती कामिनी बीच में बोल पड़ी, ‘‘मुझे अफसोस यह है कि उन में से एक औरत तुम भी बनने जा रही थीं.’’

उधर शोरशराबा सुन अपने कमरे में जग रहा सौरभ बाहर आया. दूर एक कमरे में से आवाजें आ रही थीं तो सौरभ उस तरफ चल पड़ा.

कामिनी ने दूर से सौरभ को कमरे की तरफ आते देख लिया. एक पल को कांप गई वह कि अगर सौरभ को वैभव की हरकत के बारे में पता चल गया तो क्या होगा?

कामिनी का दिमाग तेजी से काम कर रहा था. वह साक्षी के साथ तो कम से कम ऐसा नहीं होने देगी.

‘‘क्या हुआ साक्षी… कामिनी जी?’’ सौरभ ने कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा, तो साक्षी में तो जैसे काटो तो खून नहीं. वह शांत खड़ी रही.

तभी कामिनी ने सामान्य होते हुए कहा, ‘‘अरे जीजू कुछ नहीं. वैभव अब आए थे और बिना खाना खाए सो रहे थे, तो इन्हें डांट रही थी.’’

‘‘ओह… तो यह बात है… मुझे लगा पता नहीं क्या हो गया है,’’ सौरभ ने कहा.

अचानक कामिनी का बदला रूप देख कर साक्षी की जान में जान आ गई. उस ने जरा भी नहीं सोचा कि यों शराब पीते अकेले पुरुष के कमरे में नहीं जाना चाहिए था. नशे की हालत में कुछ भी हो सकता था. यह बात उस ने सोची क्यों नहीं? क्यों वह वैभव के लिए इतनी लूजर हो गई?

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‘‘साक्षी तुम जीजू के साथ कमरे में जा कर सो जाओ, काफी रात हो चुकी है,’’ कामिनी ने कहा तो साक्षी में हिम्मत आई कि वह वहां से जा सके. साक्षी और सौरभ अपने कमरे में चले गए.

कामिनी अपने बैडरूम में चली गई. बैडरूम में जाते ही कामिनी की रुलाई फूट गई. उस ने अपना दर्द भुलाने के लिए साक्षी को कुछ दिन दिल्ली बुलाया था, लेकिन उसी के साथ क्या करने चला था वैभव.

अगले दिन साक्षी और सौरभ अपने शहर लौट गए. साक्षी एक बुरा अनुभव ले कर जा रही थी. कामिनी का दर्द उस की समझ में आ रहा था. साक्षी को अपनी पैसे वाली सहेली और खुद का वजूद समझ आ चुका था.

सहेली का दर्द: भाग 2- कामिनी से मिलने साक्षी क्यों अचानक घर लौट गई?

साक्षी और सौरभ ने बड़े नर्म गद्दे वाले डबल बैड पर कुछ देर आराम किया. फिर कसबे में खुद के बैडरूम जितने चमचमाते बाथरूम में फुहारे के नीचे नहाए तो लगा जैसे तनमन खिल गया हो. खुशबू से मन प्रसन्न हो गया. कुछ देर बाद एक नौकर ने दरवाजा नौक कर के बताया कि मेम साहब ब्रेकफास्ट के लिए आप का इंतजार कर रही हैं.

सुबह के 11 बज रहे थे. ब्रेकफास्ट टेबल पर कामिनी और वैभव बैठे थे कि साक्षी और सौरभ ने वहां प्रवेश किया. साक्षी ने एक नजर टेबल पर डाली. अनेक तरह का नाश्ता लगा हुआ था.

‘‘आओ साक्षी, जीजू. ये मेरे पति वैभव,’’ कामिनी ने खड़े होते हुए परिचय करवाया. वैभव की नजरें साक्षी की नजरों से टकराईं तो एक पल को साक्षी की सलोनी सी सूरत को देखता रह गया. कामिनी की खूबसूरती के आगे वैभव को साक्षी में बहुत कुछ नजर आ गया.

सौरभ ने देखा साक्षी की नजरें वैभव पर टिकी हुई हैं. सौरभ बेचैन हो उठा. उस ने वैभव से हैलो कर के हाथ मिलाया.

‘‘और वैभव ये साक्षी और सौरभ जीजू,’’ कामिनी ने उन दोनों का परिचय भी कराया.

‘‘तुम्हारा क्या प्रोग्राम रहेगा कामिनी?’’ वैभव ने नाश्ता करते हुए पूछा.

‘‘भई मेरा प्रोग्राम तो अब साक्षी और जीजू ही तय करेंगे. जब तक दिल्ली में हैं इन के ही साथ रहूंगी,’’ कामिनी ने साक्षी के हाथ में अपना हाथ रखते हुए कहा.

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‘‘ओके, तुम इन्हें खूब घुमाओफिराओ. मुझे तो अभी निकलना है. रात को घर आ गया तो ठीक वरना नाइट स्टे जहां भी रहूंगा, कर लूंगा,’’ वैभव ने कहा.

‘‘प्लीज वैभव, 1-2 दिन तो टाइम पर…’’ कामिनी ने कहना चाहा.

‘‘समझा करो भई, मेरी खास डील इस वीक में ही होनी है तो थोड़ा बिजी रहूंगा,’’ वैभव ने थोड़ा कड़क आवाज में कामिनी की बात काटते हुए कहा.

‘‘ओके,’’ कामिनी ने कहा. वह साक्षी से नजरें नहीं मिला पाई. आंखें नम थीं उस की.

साक्षी ने कुछकुछ भांप लिया कि कामिनी और वैभव का रिश्ता ठीक नहीं है. वह बोली कुछ नहीं. बस नजरें बचा कर वैभव को देख रही थी. वह भी लगातार बातोंबातों में साक्षी को देखे जा रहा था.

कामिनी ने साक्षी और सौरभ को दिन भर घुमाया. लालकिला, इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, लोधी गार्डन. सिर्फ घुमाया ही नहीं दोनों की सुखसुविधा का भी खयाल रखा. खानापीना, खूब सारी बातें. शाम को सब घर लौटे.

डिनर के बाद कामिनी ने साक्षी से कहा, ‘‘आज की रात तो जीजू को छोड़ देगी न अकेला? मेरे साथ सो जाओ. खबू बातें करेंगी.’’

‘‘अरे, यार तू रोज मेरे साथ सोए तो आज क्या, हमेशा के लिए छोड़ दूं तेरे जीजू को,’’ साक्षी ने मजाक में हंसते हुए कहा.

‘‘नहीं यार, कामिनी इतना जुल्म नहीं करेगी जीजू पर. बस तुम जब तक यहां हो तब तक सो लो,’’ कामिनी ने कहा.

कामिनी ने साक्षी से उस की गृहस्थी का हालचाल पूछा, ‘‘पति के साथ कैसी गुजर रही है? क्या दिनचर्या रहती है? कोई दिक्कत तो नहीं?’’

‘‘हमारा क्या है कामिनी. छोटी सी दुनिया है. मध्यवर्गीय लोग हैं. पति सुबह 9 बजे घर से औफिस जाते हैं. शाम को 6 बजे घर आ जाते हैं. कभीकभी लंच करने घर ही आ जाते हैं, क्योंकि औफिस पास ही है. रात को 8 बजे डिनर कर 10 बजे तक सो जाते हैं. सुबह 6 बजे उठ कर वाक पर चले जाते हैं हम दोनों. बस इस तरह से टाइम पास हो रहा है,’’ साक्षी ने संक्षेप में अपनी दिनचर्या बताई.

‘‘कोई दिक्कत तो नहीं न साक्षी? जीजू से ठीक पटती है न?’’ कामिनी ने पूछा.

‘‘हांहां, कोई दिक्कत नहीं है. मेरी पूरी इज्जत करते हैं. घर के काम में भी हाथ बंटा देते हैं. सब ठीक चल रहा है. पर तेरे जैसे ठाटबाट तो नहीं हैं यार हमारे,’’ साक्षी ने नि:श्वास छोड़ते हुए कहा.

‘‘अच्छा है साक्षी, मेरे जैसे नहीं हैं. जो तेरे पास है वह मेरे से भी अच्छा है,’’ कामिनी ने कहा.

‘‘क्यों मजाक कर रही हो यार? कहां तुम ने खुद को इतना मैंटेन कर के रखा है, कहां हम. तेरे पास तो बहुत कुछ है कामिनी,’’ साक्षी ने कहा तो कामिनी की आंखें डबडबा आईं. झरझर आंसू बह निकले.

हतप्रभ रह गई साक्षी, ‘‘क्या हुआ कामिनी? रो क्यों रही हो?’’ उस ने पूछा.

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‘‘कुछ नहीं साक्षी… बस यों ही कसबे वाली लाइफ याद आ गई,’’ कामिनी ने रुंधे गले से कहा.

‘‘सच बताओ, क्या बात है कामिनी? तुम तो बहुत इमोशनल हो गई हो?’’ साक्षी ने कामिनी के आंसू पोंछते हुए कहा.

और फिर कामिनी बोलती चली गई…

‘‘साक्षी, तुम यह जो ऐशोआराम देख रही हो न, यह सब झूठ है… यह सब कहने को है. इस में मानसिक शांति नहीं है. इस में रहने के लिए कितना बनावटी जीवन जीना पड़ता है, यह तुम्हें नहीं मालूम. सिर्फ धनदौलत को ऐशोआराम नहीं कहते. यह सिर्फ ऊपरी चमकदमक है. इस में न सुख है न चैन. पति रात को कब आते हैं, यह मुझे नहीं पता होता. आ जाएं तो कब मेरे साथ सोते हैं, यह भी पता नहीं होता. कईकई दिनों तक अच्छे से हमारी बात भी नहीं हो पाती. कहने को तो तुम कह सकती हो कि मैं मौडर्न हूं, जवान हूं अभी भी, लेकिन किस के लिए? मेरी रातें तनहाइयों में गुजरती हैं और दिन किट्टी पार्टियों में फ्रैंड्स के साथ बीतते हैं. मुझे यों लगता है कुछ भी नहीं है मेरा अपना. मैं अपनी मरजी से जी नहीं सकती, खा नहीं सकती, कपड़े नहीं पहन सकती… साक्षी मेरा मानना है कि औरत चाहे कितनी भी पढ़ीलिखी हो, किसी भी पद पर हो, बिजनैस करती हो, लेकिन जैसे ही वह घर में घुसती है वह पति के शिकंजे में होती है. औरत कम खा ले, कम पहन ले. शारीरिक रूप से विकलांग पति को भी शायद सहन कर ले, लेकिन जो पुरुष मानसिक रूप से विकलांग हो, जिस की संकीर्ण सोच हो उस के साथ कैसे जीए, यह सब से बड़ी दिक्कत होती है,’’ कामिनी बोले जा रही थी.

साक्षी तो आश्चर्यचकित थी, पर कामिनी अपनी पीड़ा बताए जा रही थी…

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‘‘साक्षी, जिस पुरुष का अपना ही वजूद न हो उस की औरत का क्या वजूद होगा? यह मुझ से ज्यादा कोई नहीं जान सकता. वैभव 3 भाइयों में सब से बड़े हैं. लेकिन कामकाज दोनों छोटे भाइयों के हाथ में है. वे जो फैसला करते हैं, जो आदेश देते हैं वैभव करते हैं. उन के आदेश के आगे न मेरा वजूद है न मेरे बच्चों का. छोटे भाई जो काम कहें, वे वैभव करते हैं. जहां भेजते हैं, चले जाते हैं. वे अपने भाइयों को कुछ नहीं कह पाते. वे उन की नजरों में अच्छे बने रहने के लिए हमें झोंक देते हैं. घर में अगर 100 भी चाहिए हों तो भाइयों से मांगने पड़ते हैं,’’ कामिनी ने कहा.

आगे पढ़ें- साक्षी की बात को बीच ही में काटते हुए कामिनी बोली…

एहसास : बिंदास आजादी ने श्रेया को कैसे गर्त में पहुंचा दिया

Serial Story: एहसास (भाग-1)

आईने में निहारती, तैयार होती श्रेया से किरण ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हो इस समय?’’ श्रेया बड़बड़ाई, ‘‘ओह मौम, आप को बताया तो था कि आज मनजीत की बर्थडे पार्टी है, उसी में जा रही हूं.’’

‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि तुम लोगों की बर्थडे पार्टी इतनी देर से क्यों शुरू होती है? थोड़ी पहले नहीं हो सकती क्या?’’

मांबेटी की तकरार सुन कर किशोर को लगा कि अगर उन्होंने मध्यस्थता नहीं की, तो बात बिगड़ सकती है. ड्राइंगरूम से उन्होंने कहा, ‘‘किरण, यह तुम लोगों की किटी पार्टी नहीं है, जो दोपहर में होती है. यह तो जवानों की पार्टी है… श्रेया बेबी, तुम जाओ, मम्मी को मैं समझाता हूं.’’

‘‘थैंक्स ए लौट… पापा… बाय सीयू.’’

‘‘बाय ऐंड टेक केयर स्वीटहार्ट… थोड़ीथोड़ी देर में फोन करती रहना.’’

श्रेया ने सैनिकों की तरह सैल्यूट मारते हुए कहा, ‘‘येस सर,’’ और चली गई.

उस के जाते ही किरण की बकबक शुरू हुई, ‘‘श्रेया को आप ने बिलकुल आजाद कर दिया है. मेरी तो यह सुनती ही नहीं है.’’

‘‘किरण, सोचो, यह हमारी संतान है.’’

‘‘वह भी एकलौती… और लाडली भी,’’ पति की बात बीच में काटते हुए किरण बोली.’’

‘‘तुम गुस्से में कुछ भी कहो, लेकिन हमें अपनी संतान पर भरोसा होना चाहिए. श्रेया 21 साल की हो गई है. बच्चों की यह उम्र बड़ी नाजुक होती है. इस उम्र में ज्यादा रोकटोक ठीक नहीं है. कहीं विद्रोह कर के गलत रास्ते पर चली गई तो…’’

‘‘लेकिन यह भी तो सोचो, रात 9 बजे वह पार्टी में जा रही है, वहां न जाने कैसेकैसे लोग आए होंगे.’’

किशोर ने दोनों हाथ हवा में फैलाते हुए कहा, ‘‘किरण, अब श्रेया की चिंता छोड़ कर मेरी चिंता करो. कुछ खानेपीने को मिलेगा कि किचकिच से ही पेट भरना होगा.’’

‘‘जब देखो तब मजाक, बात कितनी भी गंभीर हो, हंस कर उड़ा देते हो.’’ बड़बड़ाते हुए किरण किचन में चली गई.

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श्रेया की तरह ही किशोर भी मांबाप की एकलौती संतान थे. अमेरिका के एक विशाल स्टोर को कौटन की शर्ट्स सप्लाई करने का बढि़या बिजनैस था उन का. नोएडा के इंडस्ट्रियल एरिया में बहुत बड़ी फैक्टरी भी थी, जहां शर्ट्स तैयार होती थीं. नोएडा के ही सैक्टर 15ए जैसे पौश एरिया में उन की विशाल कोठी थी. राज्य के ही नहीं, केंद्र के भी तमाम राजनेताओं और अधिकारियों से उन के अच्छे संबंध थे.

इन्हीं संबंधों की वजह से वे एनजीओ भी चलाते थे. एनजीओ का कामकाज श्रेया संभालती थी. शायद श्रेया के लिए ही उन्होंने एनजीओ का काम शुरू किया था. इस से भी उन्हें मोटी कमाई होती थी, लेकिन पुराने विचारों वाली किरण को श्रेया से हमेशा शिकायत रहती थी. उसे ले कर जब भी पतिपत्नी में बहस होती, किरण बनावटी गुस्सा कर के एक ही बात कहती, ‘‘मेरी तो इस घर में कोई गिनती ही नहीं है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. इस घर में पहला नंबर तुम्हारा ही है.’’

‘‘ये सब बेकार की बातें हैं,’’ किरण उसी तरह कहती, ‘‘छोड़ो इन बातों को. मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं, जितना तुम समझते हो.’’

श्रेया की सहेली थी, मनजीत कौर. दोनों ने एमबीए साथसाथ किया था. एमबीए करने के बाद जहां श्रेया अपने एनजीओ का कामकाज देखने लगी थी, वहीं मनजीत एक मल्टीनैशनल कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हो गई थी, लेकिन दोनों के संबंध आज भी वैसे ही थे. वे सप्ताह में कम से कम 2-3 बार तो मिल ही लेती थीं, लेकिन रविवार की शाम का खाना निश्चित रूप से दोनों किसी रैस्टोरैंट में साथसाथ खाती थीं.

मनजीत को पार्टियों का बहुत शौक था इसलिए वह अकसर पार्टियों में जाती रहती थी. इस के बाद श्रेया से मिलने पर पार्टियों की चर्चा भी करती थी. कभीकभार श्रेया भी मौका मिलने पर मनजीत के साथ डिस्कोथिक, होटल या रैस्टोरैंट में होने वाली पार्टियों में चली जाती थी. एक दिन मनजीत ने कहा, ‘‘यार श्रेया, इस संडे को एक अलग तरह की पार्टी है. तू कभी इस तरह की पार्टी में गई नहीं है इसलिए मैं चाहती हूं कि तू भी उस पार्टी में मेरे साथ चल.’’

‘‘अलग तरह की पार्टी. उस पार्टी में क्या होता है?’’ श्रेया ने हैरानी से पूछा.

‘‘चल कर खुद ही देख लेना. लौटने में थोड़ी देर हो सकती है, इसलिए घर में कोई बहाना बना देना. बहाना क्या बनाना, बता देना कि मेरी बर्थडे पार्टी है.’’

उसी पार्टी में शामिल होने के लिए मनजीत जब श्रेया को एक फार्महाउस में ले कर पहुंची, तो उसे बहुत हैरानी हुई. श्रेया ने पूछा, ‘‘तू मुझे यहां क्यों ले आई?’’

‘‘यहीं तो वह पार्टी है. इस तरह की पार्टियां ऐसी ही जगहों पर होती हैं, क्योंकि ये एकदम व्यक्तिगत होती हैं. इन पार्टियों में वही लोग आते हैं, जो आमंत्रित होते हैं. अनजान लोगों को अंदर बिलकुल नहीं जाने दिया जाता,’’ मनजीत ने समझाया.

दोनों फार्महाउस की विशाल इमारत के सामने पहुंचीं, तो वहां खड़ा एक युवक आगे बढ़ा और मनजीत से हाथ मिलाते हुए बोला, ‘‘तो यही हैं आप की फ्रैंड श्रेयाजी,’’ इस के बाद वह श्रेया को गहरी नजरों से देखते हुए बोला, ‘‘मैं अमन हूं, आप पहली बार मेरी इस पार्टी में आई हैं, इसलिए आप का विशेष रूप से स्वागत है.’’

कानफोड़ू डीजे म्यूजिक, म्यूजिक की ताल पर थिरकते युवकयुवतियां. पूरा हौल सिगरेट के धुएं से भरा था. मनपसंद दोस्त… सबकुछ तो था यहां. फिर भी श्रेया का मन नहीं लग रहा था. इसलिए उस के मुंह से निकल गया, ‘‘व्हाट ए बोरिंग पार्टी… यहां के जिक में कोई दम नहीं है. यहां तो सब जैसे नशे में हैं.’’

श्रेया की बात का कोई और जवाब देता, उस से पहले वही स्मार्ट युवक, जो गेट पर मिला था, उस के सामने आ कर बोला, ‘‘हाय श्रेया, शायद आप यहां खुश नहीं हैं. आप को न मेरी यह पार्टी अच्छी लग रही है और न ही यह म्यूजिक.’’

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‘‘जी, आप की इस पार्टी में मैं बोर हो रही हूं. म्यूजिक में भी कोई दम नहीं है. क्राउड भी बहुत है. फिर यहां मैं देख रही हूं कि लोग डांस करने के बजाय छेड़छाड़ ज्यादा कर रहे हैं. मुझे यह सब पसंद नहीं है.’’

‘‘दरअसल, मेरा डीजे आज छुट्टी पर है इसलिए इस डीजे को लगाना पड़ा. आप पहली बार इस पार्टी में आई हैं, इसलिए आप को यहां का माहौल रास नहीं आ रहा है. बेसमैंट में मेरा पर्सनल कमरा है. वहां अच्छा म्यूजिक कलैक्शन भी है और एकांत भी. आप वहां चल सकती हैं. वहां हर चीज की व्यवस्था है. खानेपीने की, म्यूजिक की और आराम करने की भी.’’

आगे पढ़ें- अमन की बातें सुन कर श्रेया का दिमाग घूम गया, वह…

Serial Story: एहसास (भाग-2)

अमन की बातें सुन कर श्रेया का दिमाग घूम गया, वह होंठों ही होंठों में बुदबुदाई, ‘‘हूं, अमीर बाप की औलाद, अपनेआप को समझता क्या है? आप का एकांत, म्यूजिक, ड्रिंक और आराम आप को मुबारक.’’

‘‘मिस श्रेया, एक मिनट. आप को मुझ से बात न करनी हो, तो कोई बात नहीं. लेकिन जाने से पहले मेरी एक बात जरूर सुन लीजिए.’’

दोनों हाथ कमर पर रख कर श्रेया बोली, ‘‘बोलो.’’

‘‘मिस श्रेया, मैं ने आप से जो कहा, शायद उस से आप ने मुझे पैसे वाले बाप का बिगड़ा बेटा समझ लिया. आप सोच रही हैं कि यह फार्महाउस मेरे बाप का है और मैं उन के पैसे पर ऐश कर रहा हूं. यही सोच है न आप के दिमाग में मेरे लिए.’’

श्रेया ने कोई जवाब नहीं दिया. वह होंठ चबाते हुए यही सोच रही थी कि इस का कहना सच है. यही धारणा थी उस के मन में उस के प्रति.

श्रेया को चुप देख कर अमन आगे बोला, ‘‘श्रेया, ऐसी बात नहीं है. फौर योर काइंड इन्फौरमैशन, 2 साल पहले मैं लंदन से पढ़ाई पूरी कर के दिल्ली आया हूं. वहां 4 साल पढ़ाई करने के बाद जीतोड़ मेहनत कर के जो कमाया है, कुछ वह रकम और कुछ बैंक से कर्ज ले कर यह फार्महाउस खरीदा है. यह फार्महाउस मैं पार्टियों के लिए किराए पर देता हूं और खुद भी पार्टियां करता हूं. बाप की एक पाई भी इस में नहीं लगी है. आप जैसे ग्राहकों की मेहरबानी से मैं इस फार्महाउस से मोटी कमाई कर रहा हूं. उम्मीद है कि अगले साल तक मैं इस में रैस्टोरैंट और डिस्कोथिक भी शुरू कर दूंगा. इस के अलावा ऐंटरटेनमैंट के बिजनैस में मोटी रकम लगाने का इरादा है. जस्ट विश मी ए लक, आप ने मुझे जो समय दिया, उस के लिए धन्यवाद. चलिए.’’

श्रेया ने हाथ बढ़ा कर अमन को रोका, ‘‘रुकिए, मिस्टर अमन, सौरी. आप को मैं पहचान नहीं पाई, यह मैं स्वीकार करती हूं. ऐक्चुअली आज मेरा मूड ठीक नहीं है. चलिए, आप का म्यूजिक कलैक्शन देखती हूं. मेरा मतलब सुनती हूं.’’

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‘‘थैंक यू, चलिए.’’

अगले दिन सुबह श्रेया की आंख खुली, तो मम्मी झकझोर रही थीं, ‘‘श्रेया…श्रेया… ओ श्रेया…’’

श्रेया दोनों हाथों से सिर दबाते हुए बोली, ‘‘ओह मौम, कितने बजे हैं? मेरा तो सिर फटा जा रहा है…’’

‘‘साढ़े 11 बज रहे हैं और अब भी तेरा सिर फटा जा रहा है? पार्टी में क्या पिया था?’’

‘‘क्या… साढ़े 11…’’ इतना कहतेकहते श्रेया को रात की बातें याद आ गईं. पैप्सी पीतेपीते उसे चक्कर आ गया था. फिर उसे होश नहीं रहा. अच्छा हुआ कि मनजीत ने उसे झकझोर कर जगाया था और घर तक छोड़ गई थी. श्रेया कान पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘ओ मौम, आप तो जानती हैं कि मैं हार्ड ड्रिंक नहीं लेती. आप की कसम मम्मी.’’

श्रेया ने कसम खाई, तो किरण को थोड़ी राहत महसूस हुई. उन्होंने बेटी का हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा, ‘‘चल उठ, जल्दी से नहाधो कर नाश्ता कर ले.’’

अंगड़ाई ले कर आलस्य को झटकते हुए श्रेया पलंग से उठ कर खड़ी हुई. मम्मी के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘मम्मी, पापा तो चले गए होंगे? उन से थोड़ा काम था.’’

‘‘तो मोबाइल पर बात कर ले,’’ किरण ने कहा, ‘‘रास्ते में होंगे. अभी फैक्टरी नहीं पहुंचे होंगे.’’

बाथरूम का दरवाजा बंद करते हुए श्रेया बोली, ‘‘जाने दीजिए. रात को आएंगे, तो बात कर लूंगी. एक प्रोजैक्ट के बारे में चर्चा करनी थी. खैर, अब तो वह हो नहीं पाएगी.’’

शाम को किशोर लौटे, तो घर का माहौल देख कर ही समझ गए कि स्थिति ठीक नहीं है. ब्रीफकेस मेज पर रख कर सोफे पर पसरते हुए बोले, ‘‘भई, कोई मुझे भी तो बताएगा कि यहां क्या हुआ है?’’

‘‘आप की लाडली कह रही है कि उसे एक प्रोजैक्ट तैयार करना है, जिस में राजस्थान के एक गांव में देहव्यापार करने वाली महिलाओं में होने वाले यौन रोगों के बारे में पता कर के उन के इलाज और उन के पुनर्वास के लिए क्या व्यवस्था की जा सकती है, इस का सर्वे करना है. यह वहां जा कर उन के बीच रह कर उन के बारे में सर्वे करेगी. लड़की के लिए यह कैसा प्रोजैक्ट है?’’

किशोर उठ खड़े हुए, ‘‘रियली, यह बात है. मैं तो मझा श्रेया ने किसी क्रिश्चियन लड़के से प्यार कर लिया है और…’’

‘‘अरे, आप भी कैसे बाप हैं?’’

‘‘देखो किरण, तुम्हें श्रेया की चिंता है न? तुम्हारा सोचना है कि उस गांव में वह अकेली जाएगी. तो सुनो, मुझे तो इस बात की जरा भी चिंता नहीं है. रही बात तुम्हारी चिंता की, तो हम एक काम करते हैं. हम भी इस के साथ चलते हैं. जैसलमेर में मेरा एक दोस्त रहता है. उसी के पड़ोस में एक मकान किराए पर ले लेंगे. तब तो अपनी लाड़ली अकेली नहीं रहेगी. फिर इस के एनजीओ में काम करने वाले लोग भी तो रहेंगे. यह वहां अपना काम करेगी और हम लोग जैसलमेर घूमेंगे. श्रेया, तुम्हें कब जाना है?’’

‘‘प्रोजैक्ट जल्दी ही जमा करना है. आप को जब समय मिले, पहुंचा दीजिए. प्रोजैक्ट जमा होने के बाद ही मंत्रालय से ऐड मिलेगा. मैं इस प्रोजैक्ट को किसी भी हालत में हाथ से नहीं जाने देना चाहती.’’

15 दिन में तैयारी कर के किशोर बेटी श्रेया और पत्नी किरण के साथ जैसलमेर से 60 किलोमीटर दूर रेत के धोरों के बीच बसे एक कसबे में रहने वाले सरपंच के यहां जा पहुंचे. किशोर को देखते ही सरपंच ने कहा, ‘‘आइए…आइए… किशोरजी, कल रात को ही आप लोगों के बारे में साहब का फोन आया था.’’

श्रेया अपने पापा और मम्मी के साथ वहां के एक गांव में देहव्यापार करने वाली महिलाओं के जीवन पर अध्ययन करने आई थी. उसे यहां महीने, डेढ़ महीने रहना था. किशोर के एक मित्र जैसलमेर में डिप्टी कलैक्टर थे. उन्होंने ही शहर से इतनी दूर श्रेया के रहने के लिए सरपंच से कह कर एक मकान की व्यवस्था करवा दी थी. किशोर, श्रेया और किरण को चायनाश्ता कराने के बाद सरपंच ने वहां खड़े एक युवक से कहा, ‘‘बुधिया, यह ले चाबी. साहब को उस मकान पर पहुंचा दे, जहां इन के रहने की सारी व्यवस्था की गई है.’’

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‘‘यह लड़का…’’ किशोर ने पूछा.

‘‘अरे साहब, यह बुधिया है. आप यहां नए हैं. पूरे दिन आप के साथ रहेगा. घर की साफसफाई करेगा, घरबाहर के काम करेगा. पहले यह एक ढाबे पर काम करता था. खाना भी बना लेता है. गरीब घर का लड़का है, जो इच्छा हो, जाते समय दे दीजिएगा,’’ सरपंच ने कहा.

आगे पढ़ें- श्रेया 18-19 साल के उस युवक को देख रही थी. गठा…

Serial Story: एहसास (भाग-3)

श्रेया 18-19 साल के उस युवक को देख रही थी. गठा शरीर, भरीपूरी पानीदार आंखें, बिखरे बाल. शरीर से चिपकी टीशर्ट और हाफ पैंट.

धीरेधीरे सब व्यवस्थित हो गया. अच्छा गांव था. साफ दिल के लोग थे. रोज सवेरे श्रेया और बुधिया निकल पड़ते. किशोर अपनी कार ले गए थे. श्रेया स्वयं गाड़ी चलाती थी, इसलिए उसे कहीं भी आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. देहधंधा करने वाली महिलाओं से श्रेया मिलती, उन से बातें करती, सवाल करती और उन के जवाब वौइस रिकौर्डर में रिकौर्ड कर लेती. शाम को घर आ कर अपने लैपटौप में सब सेव कर लेती. अगले दिन फिर वही काम.

उस शाम श्रेया बाथरूम से निकली, तो उस के युवा शरीर में जवानी की उथलपुथल मची थी. यह भी कैसा इलाका है. वह जिस गांव में सर्वे कर रही थी, वहां के लोग पत्नियों से धंधा कराते हैं, व्यभिचार की कमाई खाते हैं. पैसों के लिए अपनी पत्नी को दूसरे के हवाले करते हैं. न जाने कैसेकैसे लोग उन के पास आते हैं और उन से कितनी ही महिलाओं को कैसेकैसे यौनरोग लग गए हैं.

फिर भी वे धंधा करती हैं. अपनी ये बीमारियां न जाने कितने लोगों को बांट रही हैं. इस के अलावा भी गांवों में ऐंटरटेनमैंट के नाम पर पत्नी से व्यभिचार, एक से अधिक लोगों से संबंध, पत्नी को पत्नी न समझ कर उस का हर तरह से शोषण, ऐसीऐसी बातें श्रेया को जानने को मिलतीं, जिन से उस का  रोमरोम सिहर उठा था.

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श्रेया समय से प्रोजैक्ट पूरा कर के नोएडा वापस आ गई. उस ने प्रोजैक्ट तैयार कर के जमा भी कर दिया. काम पूरा होने के कुछ दिन बाद एक दिन किरण ने पति से कहा, ‘‘अपनी श्रेया को पता नहीं क्या हो गया है? जैसलमेर से लौटने के बाद वह चुपचुप रहती है.’’

‘‘वह ज्यादा बोलती है, तब भी तुम्हें परेशानी होती है. अब चुप है, तो भी तुम्हें परेशानी हो रही है,’’ किशोर ने हंसी में कहा.

‘‘बच्चे जैसे रहते हैं, उसी तरह रहें, तो अच्छे लगते हैं. मैं बड़बड़ाती हूं, तो इस का मतलब यह नहीं कि वह अपना स्वभाव ही बदल ले,’’ थोड़ा परेशान हो कर किरण ने कहा.

‘‘सयानी लड़की है. हर चीज मैं नहीं पूछ सकता. मां लड़कियों की सहेली जैसी होती है. अब तुम्हीं पता करो कि चुप्पी की वजह क्या हो सकती है?’’

इस के बाद किरण ने श्रेया से चुप्पी की वजह पूछी, तो उस ने जो बताया, सुन कर वह सन्न रह गईं. उसी शाम श्रेया को एम्स के रिटायर्ड स्किन स्पैशलिस्ट डा. स्वजन को दिखाया गया. डा. स्वजन ने श्रेया की गहन जांच की. उस के बाद उन्होंने उसे किरण के साथ बाहर भेज कर किशोर को अंदर बुला लिया और बड़ी गंभीरता से बोले, ‘‘आप की बेटी का किसी ऐसे आदमी से संबंध है, जो खतरनाक यौनरोग का शिकार है. यह यौनरोग उन्हीं मर्दों को होता है, जो अकसर बाजारू औरतों के पास जाते हैं. यह रोग उन्मुक्त सैक्स करने वालों को होता है, यह ऐसा रोग है, जो जीवन भर पीछा नहीं छोड़ेगा. जब तक दवा चलती रहेगी, ठीक रहेगा. दवा बंद होने के कुछ दिन बाद फिर उभर आएगा.’’

किशोर क्या कहते, उन का सिर शर्म से झुक गया. उन्होंने श्रेया को जो छूट दी थी, उस ने उस का गलत फायदा उठाया था. उन्हें बेटी पर बहुत विश्वास था, लेकिन उस ने उन के विश्वास को तोड़ दिया था. अब उन्हें पश्चात्ताप हो रहा था कि उन्होंने पत्नी की बात मानी होती, तो आज बेटी की जिंदगी बरबाद न होती. बेटी तो नासमझ थी, वे तो समझदार थे. अगर अपनी समझदारी दिखाते हुए बेटी पर अंकुश लगाए रहते, तो आज यह दिन देखने को न मिलता. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहें, इसलिए डाक्टर जो कहते रहे, सिर झुकाए सुनते रहे.

डाक्टर ने आगे कहा, ‘‘इस के लिए बच्चे ही नहीं, मांबाप भी उतने ही दोषी हैं. मांबाप के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं होता और जिन के पास समय होता है, वे अपने बच्चों को आधुनिक बनाने के चक्कर में बिगाड़ देते हैं. बच्चे देर रात तक पार्टियां करते हैं, डिस्कोथिक जाते हैं, उन्हें रोकते ही नहीं. इस तरह की जगहों पर जाने वाले बच्चे ही ऐसे रोग लाते हैं. वहां नशा करने के बाद वे किस से मिलते हैं, क्या करते हैं, उन्हें होश ही नहीं रहता. उस के बाद जिंदगी बरबाद हो जाती है. आप की बेटी को एड्स भी हो सकता था. अब आप इस बात का ध्यान रखें कि आगे वह उस आदमी से न ही मिले, तो अच्छा रहेगा वरना दवा भी फायदा नहीं करेगी.’’

डाक्टर की बातें सुन कर किशोर को श्रेया पर गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन इस के लिए वे खुद को भी दोषी मान रहे थे. उन्होंने ही उसे आजादी दे रखी थी. उन्होंने सोचा, अगर इन सब बातों की जानकारी किरण को हो गई, तो वह बेटी का ही नहीं, उन का भी जीना हराम कर देगी. वे डाक्टर के कैबिन से बाहर आए, तो किरण ने उन्हें सवालिया नजरों से घूरा. श्रेया की नजरों में भी सचाई जानने की उत्सुकता थी. जब किशोर कुछ नहीं बोले, तो श्रेया ने पूछ ही लिया, ‘‘पापा, डाक्टर ने आप को अकेले में क्यों बुलाया था, कोई गंभीर बात है क्या?’’

‘‘नहीं, कोई गंभीर बात नहीं है. डाक्टर ने ऐसे ही बातचीत के लिए बुलाया था. चलो, घर चलते हैं,’’ कह कर किशोर आगे बढ़ गए, तो पीछेपीछे श्रेया और किरण भी चल पड़ीं. घर आ कर वे ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठ गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि श्रेया को वे उस की बीमारी के बारे में कैसे बताएं, जिस से वह स्वयं को उस आदमी से मिलने से रोक सके. वे सामने बैठी श्रेया को एकटक ताक रहे थे. श्रेया को पापा की नजर बदलीबदली सी लगी. इस तरह उन्होंने उसे पहले कभी नहीं देखा था. श्रेया से रहा नहीं गया, तो उस ने कहा, ‘‘क्या बात है पापा, डाक्टर ने क्या कहा, मुझे क्या हुआ है?’’

किशोर ने पलभर में निर्णय ले लिया. उन्हें लगा कि सचाई छिपाने का कोई फायदा नहीं है. बेटी को बचाने के लिए उन्होंने शर्मसंकोच त्याग कर कहा, ‘‘बेटा, केयरफुली, डाक्टर के कहने के अनुसार तुम्हें खतरनाक यौन रोग हुआ है. यह बीमारी तुम्हें किसी ऐसे आदमी से मिली है, जिसे यह बीमारी पहले से रही होगी.’’

श्रेया बच्ची नहीं थी, उस की समझ में आ गया कि पापा क्या कह रहे हैं. पापा की बातें सुनते ही उसे कमरा गोलगोल घूमता हुआ लगा. बड़ी मुश्किल से उन के मुंह से निकला, ‘‘व्हाट…आप? हैव यू गोन मैड. नो…नो… दिस इज नौट पौसिबल.’’

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‘‘श्रेया प्लीज. जस्ट टैल मी कि तुम्हारा किस आदमी से संबंध है. बेटा, अब उस से बिलकुल संबंध मत रखना. डाक्टर ने कहा है कि अगर उस आदमी से संबंध खत्म नहीं किए, तो यह बीमारी कभी ठीक नहीं होगी.’’

पापा की बात सुन कर श्रेया को झटका सा लगा. उस की समझ में यह नहीं आया कि आज तक उस ने ऐसा कुछ किया ही नहीं, तो फिर डाक्टर या पापा उस से ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं. राजस्थान में वह ऐसी औरतों से मिली जरूर है, जिन्हें इस तरह की बीमारी थी, तो क्या मिलने भर से उसे इस बीमारी ने पकड़ लिया, लेकिन ये लोग संबंध बनाने की बात कर रहे हैं जबकि आज तक उस ने किसी पुरुष से संबंध बनाया ही नहीं है.

श्रेया उठी और पापा के सीने पर सिर रख कर फफक पड़ी. किशोर बिना कुछ बोले उस की पीठ सहलाने लगे. उन्होंने श्रेया को रोने दिया, जिस से उस का मन हलका हो जाए, रो लेने के बाद श्रेया ने किशोर से सीने पर सिर रखेरखे ही कहा, ‘‘पापा, आप सोच रहे होंगे कि नासमझी में बच्चों से गलतियां हो जाती हैं, लेकिन मैं ने इस तरह की कोई गलती नहीं की है.’’

‘‘कोई बात नहीं बेटा, जो हो गया, सो हो गया. तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. हम तुम्हारे साथ हैं. जरूरत पड़ी, तो हम तुम्हारा इलाज विदेश तक में कराएंगे. ठीक है, तुम आराम करो. इस सब के बारे में अभी अपनी मम्मी को कुछ मत बताना, वे बेकार में परेशान होंगी,’’ कह कर किशोर बगल में रखे फोन से किसी को फोन करने लगे.

श्रेया सोच में डूब गई. तभी उसे 8-9 महीने पहले की फार्महाउस की वह पार्टी याद आ गई. फार्महाउस के स्मार्ट मालिक अमन की बातों से प्रभावित हो कर श्रेया बेसमैंट में स्थित उस के कमरे में चली गई थी. बहुत अच्छा कमरा था. सोफासैट, छोटा सा बार और कुछ बार स्टूल, अमन ने कहा, ‘‘बोलिए, क्या लेंगी श्रेयाजी? व्हाइट वाइन या रैडवाइन? हाऊ अबाउट चिल्ड बीयर?’’

‘‘सौरी, नो हार्ड ड्रिंक फौर मी. जस्ट गिव मि ए ग्लास औफ पैप्सी, अगर हो, तो… न हो तो पीने के लिए पानी ही दे दीजिए.’’

‘‘औफकोर्स पैप्सी है. आप सामने की रैक से अपने मनपसंद गाने की सीडी सलैक्ट कीजिए, तब तक मैं पैप्सी ले आता हूं,’’ कह कर अमन बार की ओर चला गया, तो श्रेया सीडी देखने लगी. थोड़ी देर बाद अमन श्रेया के पास आ कर बोला, ‘‘श्रेया, यह लो पैप्सी. भई, मुझे तो कोक पसंद है, हम दोनों की ड्रिंक भले ही सौफ्ट है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि हमारी फ्रैंडशिप हार्ड होगी… चीयर्स.’’

श्रेया ने मुसकराते हुए अपना गिलास धीरे से अमन के गिलास से टकराया और पैप्सी की चुसकी लेने लगी. थोड़ी देर बाद श्रेया का सिर चकराने लगा. क्या हुआ, वह सोच पाती, उस के पहले ही अमन ने उसे बांहों में भर लिया था. ‘ओह नो…’ अब उस की समझ में आया कि सादी पैप्सी पीने के बावजूद अगले दिन वह क्यों सुस्त थी. उस का शरीर क्यों टूट रहा था. उस के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘यू रास्कल, आई विल किल यू.’’

श्रेया की चीख सुन कर फोन पर बातें कर रहे किशोर फोन छोड़ कर बोले, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

‘‘कुछ नहीं पापा, डाक्टर सच कह रहे हैं. मेरे साथ धोखा हुआ है. मगर…’’

श्रेया की बात काटते हुए किशोर बोले, ‘‘जो हुआ बेटा जाने दो. मैं ने कहा न कि मैं तुम्हारा इलाज विदेश में कराऊंगा. जब मैं तुम्हारे साथ हूं, तो तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

श्रेया एक बार फिर पापा के सीने से लग कर सिसकते हुए बोली, ‘‘थैंक्यू पापा. मुझे भी अपनी गलती का एहसास हो गया है लेकिन हमें उस आदमी की शिकायत पुलिस में करनी चाहिए. अन्यथा वह मेरी जैसी न जाने कितनी युवतियों की जिंदगी बरबाद करता रहेगा.’’

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किशोर फटी आंखों से बेटी को देखते रहे. उस के चेहरे पर दृढ़ता देख कर सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘ठीक है बेटी, हम इस की भी व्यवस्था करते हैं. अभी कमिश्नर साहब से बात कर के सारी बात बताते हैं.’’

पिता की बातें सुन कर श्रेया एक बार फिर से फफक पड़ी.

Serial Story: सूना आसमान (भाग-3)

पूर्व कथा :

अमिता और अनुज दोनों बाल्यकाल से दोस्त होते हैं और धीरेधीरे उन की दोस्ती परवान चढ़ती है, लेकिन बाद में दोनों का अलगअलग स्कूल में ऐडमिशन हो जाता है और उन का मिलनाजुलना कम हो जाता है. क्या अनुज अमिता को अपनी हमसफर बना पाया.

आगे पढ़िए…

मैं अमिता के घर कभी नहीं गया था, लेकिन बहुत सोचविचार कर एक दिन मैं उस के घर पहुंच ही गया. दरवाजे की कुंडी खटखटाते ही मेरे मन को एक अनजाने भय ने घेर लिया. इस के बावजूद मैं वहां से नहीं हटा. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अमिता की मां सामने खड़ी थीं. वे मुझे देख कर हैरान रह गईं. अचानक उन के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला. मैं ने अपने दिल की धड़कन को संभालते हुए उन्हें नमस्ते किया और कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ जाऊं?’’

‘‘आं… हांहां,’’ जैसे उन्हें होश आया हो, ‘‘आ जाओ, अंदर आ जाओ,’’ अंदर घुस कर मैं ने चारों तरफ नजर डाली. साधारण घर था, जैसा कि आम मध्यवर्गीय परिवार का होता है. आंगन के बीच खड़े हो कर मैं ने अमिता के घर को देखा, बड़ा खालीखाली और वीरान सा लग रहा था. मैं ने एक गहरी सांस ली और प्रश्नवाचक भाव से अमिता की मां को देखा, ‘‘सब लोग कहीं गए हुए हैं क्या,’’ मैं ने पूछा.

अमिता की मां की समझ में अभी तक नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें. मेरा प्रश्न सुन कर वे बोलीं, ‘‘हां, बस अमिता है, अपने कमरे में. अच्छा, तुम बैठो. मैं उसे बुलाती हूं,’’ उन्होंने हड़बड़ी में बरामदे में रखे तख्त की तरफ इशारा किया. तख्त पर पुराना गद्दा बिछा हुआ था, शायद रात को उस पर कोई सोता होगा. मैं ने मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. मैं उस के कमरे में ही जा कर मिल लेता हूं. कौन सा कमरा है?’’

अब तक शायद हमारी बातचीत की आवाज अमिता के कानों तक पहुंच चुकी थी. वह उलझी हुई सी अपने कमरे से बाहर निकली और फटीफटी आंखों से मुझे देखने लगी. वह इतनी हैरान थी कि नमस्कार करना तक भूल गई. मांबेटी की हैरानगी से मेरे दिल को थोड़ा सुकून पहुंचा और अब तक मैं ने अपने धड़कते दिल को संभाल लिया था. मैं मुसकराने लगा, तो अमिता ने शरमा कर अपना सिर झुका लिया, बोली कुछ नहीं. मैं ने देखा, उस के बाल उलझे हुए थे, सलवारकुरते में सिलवटें पड़ी हुई थीं. आंखें उनींदी सी थीं, जैसे उसे कई रातों से नींद न आई हो. वह अपने प्रति लापरवाह सी दिख रही थी.

‘‘बैठो, बेटा. मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं? तुम पहली बार मेरे घर आए हो,’’ अमिता की मां ऐसे कह रही थीं, जैसे कोई बड़ा आदमी उन के घर पर पधारा हो.

मैं कुछ नहीं बोला और मुसकराता रहा. अमिता ने एक बार फिर अपनी नजरें उठा कर गहरी निगाह से मुझे देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न डोल रहा था. मैं तुरंत उस का जवाब नहीं दे सकता था. उस की मां के सामने खुल कर बात भी नहीं कर सकता था. मैं चुप रहा तो शायद वह मेरे मन की बात समझ गई और धीरे से बोली, ‘‘आओ, मेरे कमरे में चलते हैं. मां, आप तब तक चाय बना लो,’’ अंतिम वाक्य उस ने अपनी मां से कुछ जोर से कहा था.

हम दोनों उस के कमरे में आ गए. उस ने मुझे अपने बिस्तर पर बैठा दिया, पर खुद खड़ी रही. मैं ने उस से बैठने के लिए कहा तो उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ऐसे ही ठीक हूं,’’ मैं ने उस के कमरे में एक नजर डाली. पढ़ने की मेजकुरसी के अलावा एक साधारण बिस्तर था, एक पुरानी स्टील की अलमारी और एक तरफ हैंगर में उस के कपड़े टंगे थे. कमरा साफसुथरा था और मेज पर किताबों का ढेर लगा हुआ था, जैसे अभी भी वह किसी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. छत पर एक पंखा हूम्हूम् करता हुआ हमारे विचारों की तरह घूम रहा था.

मैं ने एक गहरी सांस ली और अमिता को लगभग घूर कर देखता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’ मैं बहुत तेजी से बोल रहा था. मेरे पास समय कम था, क्योंकि किसी भी क्षण उस की मां कमरे में आ सकती थीं और मुझे काफी सारे सवालों के जवाब अमिता से चाहिए थे.

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वह कुछ नहीं बोली, बस सिर नीचा किए खड़ी रही. मैं ने महसूस किया, उस के होंठ हिल रहे थे, जैसे कुछ कहने के लिए बेताब हों, लेकिन भावातिरेक में शब्द मुंह से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. मैं ने उस का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, ‘‘देखो, अमिता, मेरे पास समय कम है और तुम्हारे पास भी… मां घर पर हैं और हम खुल कर बात भी नहीं कर सकते, जो मैं पूछ रहा हूं, जल्दी से उस का जवाब दो, वरना बाद में हम दोनों ही पछताते रह जाएंगे. बताओ, क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’

‘‘नहीं, उस ने कहा, लेकिन उस की आवाज रोती हुई सी लगी.’’

‘‘तो, तुम मुझे प्यार करती हो? मैं ने स्पष्ट करना चाहा. कहते हुए मेरी आवाज लरज गई और दिल जोरों से धड़कने लग गया. लेकिन अमिता ने मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया, शायद उस के पास शब्द नहीं थे. बस, उस का बदन कांप कर रह गया. मैं समझ गया.’’

‘‘तो फिर तुम ने हठ क्यों किया? अपना मान तोड़ कर एक बार मेरे पास आ जाती, मैं कोई अमानुष तो नहीं हूं. तुम थोड़ा झुकती, तो क्या मैं पिघल नहीं जाता?’’

वह फिर एक बार कांप कर रह गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मेरी तरफ नहीं देखोगी?’’ उस ने तड़प कर अपना चेहरा उठाया. उस की आंखें भीगी हुई थीं और उन में एक विवशता झलक रही थी. यह कैसी विवशता थी, जो वह बयान नहीं कर सकती थी? मुझे उस के ऊपर दया आई और सोचा कि उठ कर उसे अपने अंक में समेट लूं, लेकिन संकोचवश बैठा रहा.

उस की मां एक गिलास में पानी ले कर आ गई थीं. मुझे पानी नहीं पीना था, फिर भी औपचारिकतावश मैं ने गिलास हाथ में ले लिया और एक घूंट भर कर गिलास फिर से ट्रे में रख दिया. मां भी वहीं सामने बैठ गईं और इधरउधर की बातें करने लगीं. मुझे उन की बातों में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन उन के सामने मैं अमिता से कुछ पूछ भी नहीं सकता था.

उस की मां वहां से नहीं हटीं और मैं अमिता से आगे कुछ नहीं पूछ सका. मैं कितनी देर तक वहां बैठ सकता था, आखिर मजबूरन उठना पड़ा, ‘‘अच्छा चाची, अब मैं चलता हूं.’’

‘‘अच्छा बेटा,’’ वे अभी तक नहीं समझ पाई थीं कि मैं उन के घर क्यों आया था. उन्होंने भी नहीं पूछा. इंतजार करूंगा, कह कर मैं ने एक गहरी मुसकान उस के चेहरे पर डाली. उस की आंखों में विश्वास और अविश्वास की मिलीजुली तसवीर उभर कर मिट गई. क्या उसे मेरी बात पर यकीन होगा? अगर हां, तो वह मुझ से मिलने अवश्य आएगी.

पर वह मेरे घर फिर भी नहीं आई. मेरे दिल को गहरी ठेस पहुंची. क्या मैं ने अमिता के दिल को इतनी गहरी चोट पहुंचाई थी कि वह उसे अभी तक भुला नहीं पाई थी. वह मुझ से मिलती तो मैं माफी मांग लेता, उसे अपने अंक में समेट लेता और अपने सच्चे प्यार का उसे एहसास कराता. लेकिन वह नहीं आई, तो मेरा दिल भी टूट गया. वह अगर स्वाभिमानी है, तो क्या मैं अपने आत्मसम्मान का त्याग कर देता?

हम दोनों ही अपनेअपने हठ पर अड़े रहे. समय बिना किसी अवरोध के अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. इस बीच मेरी नौकरी एक प्राइवेट कंपनी में लग गई और मैं अमिता को मिले बिना चंडीगढ़ चला गया. निधि को भी जौब मिल  गया, अब वह नोएडा में नौकरी कर रही थी.

इस दौरान मेरी दोनों बहनों का भी ब्याह हो गया और वे अपनीअपनी ससुराल चली गईं. जौब मिल जाने के बाद मेरे लिए भी रिश्ते आने लगे थे, लेकिन मम्मी और पापा ने सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दिया था.

निधि की मेरे प्रति दीवानगी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मैं उस के प्रति समर्पित नहीं था और न उस से मिलनेजुलने के लिए इच्छुक, लेकिन निधि मकड़ी की तरह मुझे अपने जाल में फंसाती जा रही थी. वह छुट्टियों में अपने घर न जा कर मेरे पास चंडीगढ़ आ जाती और हम दोनों साथसाथ कई दिन गुजारते.

मैं निधि के चेहरे में अमिता की छवि को देखते हुए उसे प्यार करता रहा, पर मैं इतना हठी निकला कि एक बार भी मैं ने अमिता की खबर नहीं ली. पुरुष का अहम मेरे आड़े आ गया. जब अमिता को ही मेरे बारे में पता करने की फुरसत नहीं है, तो मैं उस के पीछे क्यों भागता फिरूं?

अंतत: निधि की दीवानगी ने मुझे जीत लिया. उधर मम्मीपापा भी शादी के लिए दबाव डाल रहे थे. इसलिए जौब मिलने के सालभर बाद हम दोनों ने शादी कर ली.

निधि के साथ मैं दक्षिण भारत के शहरों में हनीमून मनाने चला गया. लगभग 15 दिन बिता कर हम दोनों अपने घर लौटे. हमारी छुट्टी अभी 15 दिन बाकी थी, अत: हम दोनों रोज बाहर घूमनेफिरने जाते, शाम को किसी होटल में खाना खाते और देर रात गए घर लौटते. कभीकभी निधि के मायके चले जाते. इसी तरह मस्ती में दिन बीत रहे थे कि एक दिन मुझे तगड़ा झटका लगा.

अमिता की मां मेरे घर आईं और रोतेरोते बता रही थीं कि अमिता के पापा ने उस के लिए एक रिश्ता ढूंढ़ा था. बहुत अच्छा लड़का था, सरकारी नौकरी में था और घरपरिवार भी अच्छा था. सभी को यह रिश्ता बहुत पसंद था, लेकिन अमिता ने शादी करने से इनकार कर दिया था. घर वाले बहुत परेशान और दुखी थे, अमिता किसी भी तरह शादी के लिए मान नहीं रही थी.

‘‘शादी से इनकार करने का कोई कारण बताया उस ने,’’ मेरी मां अमिता की मम्मी से पूछ रही थीं.

‘‘नहीं, बस इतना कहती है कि शादी नहीं करेगी और पहाड़ों पर जा कर किसी स्कूल में पढ़ाने का काम करेगी.’’

‘‘इतनी छोटी उम्र में उसे ऐसा क्या वैराग्य हो गया,’’ मेरी मां की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था. पर मैं जानता था कि अमिता ने यह कदम क्यों उठाया था? उसे मेरा इंतजार था, लेकिन मैं ने हठ में आ कर निधि से शादी कर ली थी. मैं दोबारा अमिता के पास जा कर उस से माफी मांग लेता, तो संभवत: वह मान जाती और मेरा प्यार स्वीकार कर लेती. हम दोनों ही अपनी जिद्द और अहंकार के कारण एकदूसरे से दूर हो गए थे. मुझे लगा, अमिता ने किसी और के साथ नहीं बल्कि मेरे साथ अपना रिश्ता तोड़ा है.

मेरी शादी हो गई थी और मुझे अब अमिता से कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए था, पर मेरा दिल उस के लिए बेचैन था. मैं उस से मिलना चाहता था, अत: मैं ने अपना हठ तोड़ा और एक बार फिर अमिता से मिलने उस के घर पहुंच गया. मैं ने उस की मां से निसंकोच कहा कि मैं उस से एकांत में बात करना चाहता हूं और इस बीच वे कमरे में न आएं.

मैं बैठा था और वह मेरे सामने खड़ी थी. उस का सुंदर मुखड़ा मुरझा कर सूखी, सफेद जमीन सा हो गया था. उस की आंखें सिकुड़ गई थीं और चेहरे की कांति को ग्रहण लग गया था. उस की सुंदर केशराशि उलझी हुई ऊन की तरह हो गई थी. मैं ने सीधे उस से कहा, ‘‘क्यों अपने को दुख दे रही हो?’’

‘‘मैं खुश हूं,’’ उस ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘शादी के लिए क्यों मना कर दिया?’’

‘‘यही मेरा प्रारब्ध है,’’ उस ने बिना कुछ सोचे तुरंत जवाब दिया.

‘‘यह तुम्हारा प्रारब्ध नहीं था. मेरी बात को इतना गहरे अपने दिल में क्यों उतार लिया? मैं तो तुम्हारे पास आया था, फिर तुम मेरे पास क्यों नहीं आई? आ जाती तो आज तुम मेरी पत्नी होती.’’

‘‘शायद आ जाती,’’ उस ने निसंकोच भाव से कहा, ‘‘लेकिन रात को मैं ने इस बात पर विचार किया कि आप मेरे पास क्यों आए थे. कारण मेरी समझ में आ गया था. आप मुझ से प्यार नहीं करते थे, बस तरस खा कर मेरे पास आए थे और मेरे घावों पर मरहम लगाना चाहते थे.

‘‘मैं आप का सच्चा प्यार चाहती थी, तरस भरा प्यार नहीं. मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि किसी के सामने प्यार के लिए आंचल फैला कर भीख मांगती. उस प्यार की क्या कीमत, जिस की आग किसी के सीने में न जले.’’

‘‘क्या यह तुम्हारा अहंकार नहीं है?’’ उस की बात सुन कर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया था.

‘‘हो सकता है, पर मुझे इसी अहंकार के साथ जीने दीजिए. मैं अब भी आप को प्यार करती हूं और जीवनभर करती रहूंगी. मैं अपने प्यार को स्वीकार करने के लिए ही उस दिन आप के पास मिठाई देने के बहाने गई थी, लेकिन आप ने बिना कुछ सोचेसमझे मुझे ठुकरा दिया. मैं जानती थी कि आप दूसरी लड़कियों के साथ घूमतेफिरते हैं, शायद उन में से किसी को प्यार भी करते हों. इस के बावजूद मैं आप को मन ही मन प्यार करने लगी थी. सोचती थी, एक दिन मैं आप को अपना बना ही लूंगी. मैं ने आप का प्यार चाहा था, लेकिन मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई. फिर भी अगर आप का प्यार मेरा नहीं है तो क्या हुआ, मैं ने जिस को चाहा, उसे प्यार किया और करती रहूंगी. मेरे प्यार में कोई खोट नहीं है,’’ कहतेकहते वह सिसकने लगी थी.

‘‘अगर अपने हठ में आ कर मैं ने तुम्हारा प्यार कबूल नहीं किया, तो क्या दुनिया इतनी छोटी है कि तुम्हें कोई दूसरा प्यार करने वाला युवक न मिलता. मुझ से बदला लेने के लिए तुम किसी अन्य युवक से शादी कर सकती थी,’’ मैं ने उसे समझाने का प्रयास किया.

वह हंसी. बड़ी विचित्र हंसी थी उस की, जैसे किसी बावले की… जो दुनिया की नासमझी पर व्यंग्य से हंस रहा हो. वह बोली, ‘‘मैं इतनी गिरी हुई भी नहीं हूं कि अपने प्यार का बदला लेने के लिए किसी और का जीवन बरबाद करती. दुनिया में प्यार के अलावा और भी बहुत अच्छे कार्य हैं. मदर टेरेसा ने शादी नहीं की थी, फिर भी वह अनाथ बच्चों से प्यार कर के महान हो गईं. मैं भी कुंआरी रह कर किसी कौन्वैंट स्कूल में बच्चों को पढ़ाऊंगी और उन के हंसतेखिलखिलाते चेहरों के बीच अपना जीवन गुजार दूंगी. मुझे कोई पछतावा नहीं है.

‘‘आप अपनी पत्नी के साथ खुश रहें, मेरी यही कामना है. मैं जहां रहूंगी, खुश रहूंगी… अकेली ही. इतना मैं जानती हूं कि बसंत में हर पेड़ पर बहार नहीं आती. अब आप के अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस की आंखों में अनोखी चमक थी और उस के शब्द तीर बन कर मेरे दिल में चुभ गए.

मुझे लगा मैं अमिता को बिलकुल भी नहीं समझ पाया था. वह मेरे बचपन की साथी अवश्य थी, पर उस के मन और स्वभाव को मैं आज तक नहीं समझ पाया था. मैं ने उसे केवल बचपन में ही जाना था. अब जवानी में जब उसे जानने का मौका मिला, तब तक सबकुछ लुट चुका था.

वह हठी ही नहीं, स्वाभिमानी भी थी. उस को उस के निर्णय से डिगा पाना इतना आसान नहीं था. मैं ने अमिता को समझने में बहुत बड़ी भूल की थी. काश, मैं उस के दिल को समझ पाता, तो उस की भावनाओं को इतनी चोट न पहुंचती.

अपनी नासमझी में मैं ने उस के दिल को ठेस पहुंचाई थी, लेकिन उस ने अपने स्वाभिमान से मेरे दिल पर इतना गहरा घाव कर दिया था, जो ताउम्र भरने वाला नहीं था.

सबकुछ मेरे हाथों से छिन गया था और मैं एक हारे हुए जुआरी की तरह अमिता के घर से चला आया.

Serial Story: सूना आसमान (भाग-1)

अमिता जब छोटी थी तो मेरे साथ खेलती थी. मुझे पता नहीं अमिता के पिता क्या काम करते थे, लेकिन उस की मां एक घरेलू महिला थीं और मेरी मां के पास लगभग रोज ही आ कर बैठती थीं. जब दोनों बातों में मशगूल होती थीं तो हम दोनों छोटे बच्चे कभी आंगन में धमाचौकड़ी मचाते तो कभी चुपचाप गुड्डेगुडि़या के खेल में लग जाते थे.

धीरेधीरे परिस्थितियां बदलने लगीं. मेरे पापा ने मुझे शहर के एक बहुत अच्छे पब्लिक स्कूल में डाल दिया और मैं स्कूल जाने लगा. उधर अमिता भी अपने परिवार की हैसियत के मुताबिक स्कूल में जाने लगी थी. रोज स्कूल जाना, स्कूल से आना और फिर होमवर्क में जुट जाना. बस, इतवार को वह अपनी मां के साथ नियमित रूप से मेरे घर आती, तब हम दोनों सारा दिन खेलते और मस्ती करते.

हाईस्कूल के बाद जीवन पूरी तरह से बदल गया. कालेज में मेरे नए दोस्त बन गए, उन में लड़कियां भी थीं. अमिता मेरे जीवन से एक तरह से निकल ही गई थी. बाहर से आने पर जब मैं अमिता को अपनी मां के पास बैठा हुआ देखता तो बस, एक बार मुसकरा कर उसे देख लेता. वह हाथ जोड़ कर नमस्ते करती, तो मुझे वह किसी पौराणिक कथा के पात्र सी लगती. इस युग में अमिता जैसी सलवारकमीज में ढकीछिपी लड़कियों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता था. अमिता खूबसूरत थी, लेकिन उस की खूबसूरती के प्रति मन में श्रद्धाभाव होते थे, न कि उस के साथ चुहलबाजी और मौजमस्ती करने का मन होता था.

वह जब भी मुझे देखती तो शरमा कर अपना मुंह घुमा लेती और फिर कनखियों से चुपकेचुपके मुसकराते हुए देखती. दिन इसी तरह बीत रहे थे.

फिर मैं ने नोएडा के एक कालेज में बीटैक में दाखिला ले लिया और होस्टल में रहने लगा. केवल लंबी छुट्टियों में ही घर जाना हो पाता था. जब हम घर पर होते थे, तब अमिता कभीकभी हमारे यहां आती थी और दूर से ही शरमा कर नमस्ते कर देती थी, लेकिन उस के साथ बातचीत करने का मुझे कोई मौका नहीं मिलता था. उस से बात करने का मेरे पास कोई कारण भी नहीं था. ज्यादा से ज्यादा, ‘कैसी हो, क्या कर रही हो आजकल?’ पूछ लेता. पता चला कि वह किसी कालेज से बीए कर रही थी. बीए करने के बावजूद वह अभी तक सलवारकमीज में लिपटी हुई एक खूबसूरत गुडि़या की तरह लगती थी. लेकिन मुझे तो जींसटौप में कसे बदन और दिलकश उभारों वाली लड़कियां पसंद थीं. उस की तमाम खूबसूरती के बावजूद, संस्कारों और शालीन चरित्र से मुझे वह प्राचीनकाल की लड़की लगती थी.

गरमी की एक उमसभरी दोपहर थी. मैं अपने कमरे में एसी की ठंडी हवा लेता हुआ एक उपन्यास पढ़ने में व्यस्त था, तभी दरवाजे पर एक हलकी थाप पड़ी. मैं चौंक गया और लेटेलेटे ही पूछा, ‘‘कौन?’’

‘‘मैं, एक मीठी आवाज कानों में पड़ी. मैं पहचान गया, अमिता की आवाज थी, मैं ने कहा, आ जाओ, दरवाजे की सिटकिनी नहीं लगी है.’’

‘‘हां,’’ उस का सिर झुका हुआ था, आंखें उठा कर उस ने एक बार मेरी तरफ देखा. उस की आंखों में एक अनोखी कशिश थी, जो सामने वाले को अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी. उस का चेहरा भी दमक रहा था. वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. उस के नैनन बहुत सुंदर थे. मैं एक पल के लिए देखता ही रह गया और मेरे हृदय में एक कसक सी उठतेउठते रह गई.

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‘‘तुम…अचानक…इतनी दोपहर को? कोईर् काम है?’’ मैं उस के सौंदर्य से अभिभूत होता हुआ बिस्तर पर बैठ गया. पहली बार वह मुझे इतनी सुंदर और आकर्षक लगी थी.

वह शरमातीसकुचाती सी थोड़ा आगे बढ़ी और अपने हाथों को आगे बढ़ाती हुई बोली, ‘‘मिठाई लीजिए.’’

‘‘मिठाई?’’

‘‘हां, आज मेरा जन्मदिन है. मां ने मिठाई भिजवाई है,’’ उस ने सिर झुकाए हुए ही कहा.

‘‘अच्छा, बधाई हो,’’ मैं ने उस के हाथों से मिठाई ले ली.

मैं उस वक्त कमरे में अकेला था और एक जवान लड़की मेरे साथ थी. कोई देखता तो क्या समझता. मेरा ध्यान भी उपन्यास में लगा हुआ था. कहानी एक रोचक मोड़ पर पहुंच चुकी थी. ऐसे में अमिता ने आ कर अनावश्यक व्यवधान पैदा कर दिया था. अत: मैं चाहता था कि वह जल्दी से जल्दी मेरे कमरे से चली जाए. लेकिन वह खड़ी ही रही. मैं ने प्रश्नवाचक भाव से उसे देखा.

‘‘क्या मैं बैठ जाऊं?’’ उस ने एक कुरसी की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘हां…’’ मेरी हैरानी बढ़ती जा रही थी. मेरे दिल में धुकधुकी पैदा हो गई. क्या अमिता किसी खास मकसद से मेरे कमरे में आई थी? उस की आंखें याचक की भांति मेरी आंखों से टकरा गईं और मैं द्रवित हो उठा. पता नहीं, उस की आंखों में क्या था कि डरने के बावजूद मैं ने उस से कह दिया, ‘‘हांहां, बैठो,’’ मेरी आवाज में अजीब सी बेचैनी थी.

कुरसी पर बैठते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या आप को डर लग रहा है?’’

‘‘नहीं, क्या तुम डर रही हो?’’ मैं ने अपने को काबू में करते हुए कहा.

‘‘मैं क्यों डरूंगी? आप से क्या डरना?’’ उस ने आत्मविश्वास से कहा.

‘‘डरने की बात नहीं है? चारों तरफ सन्नाटा है. दूरदूर तक किसी की आवाज सुनाई नहीं पड़ रही. भरी दोपहर में लोग अपनेअपने घरों में बंद हैं. ऐसे में एक सूने कमरे में एक जवान लड़की किसी लड़के के साथ अकेली हो तो क्या उसे डर नहीं लगेगा?’’

वह हंसते हुए बोली, ‘‘इस में डरने की क्या बात है? मैं आप को अच्छी तरह जानती हूं. आप भी तो कालेज में लड़कियों के साथ उठतेबैठते हैं, उन के साथ घूमतेफिरते हो. रेस्तरां और पार्क में जाते हो, तो क्या वे लड़कियां आप से डरती हैं?’’

मैं अमिता के इस रहस्योद्घाटन पर हैरान रह गया. कितनी साफगोई से वह यह बात कह रही थी. मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि हम लोग लड़कियों के साथ घूमतेफिरते हैं और मौजमस्ती करते हैं?’’

‘‘अब मैं इतनी भोली भी नहीं हूं. मैं भी कालेज में पढ़ती हूं. क्या मुझे नहीं पता कि किस प्रकार युवकयुवतियां एकदूसरे के साथ घूमते हैं और आपस में किस प्रकार का व्यवहार करते हैं?’’

‘‘लेकिन वे युवतियां हमारी दोस्त होती हैं और तुम…’’ मैं अचानक चुप हो गया. कहीं अमिता को बुरा न लग जाए. अफसोस हुआ कि मैं ने इस तरह की बात कही. आखिर अमिता मेरे लिए अनजान नहीं थी. बचपन से हम एकदूसरे को जानते हैं. जवानी में भले ही आत्मीयता या निकटता न रही हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि वह मुझ से मिल नहीं सकती थी.

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अमिता को शायद मेरी बात बुरी लगी. वह झटके से उठती हुई बोली, ‘‘अब मैं चलूंगी वरना मां चिंतित होंगी,’’ उस की आवाज भीगी सी लगी. उस ने दुपट्टा अपने मुंह में लगा लिया और तेजी से कमरे से बाहर भाग गई. मैं ने स्वयं से कहा, ‘‘मूर्ख, तुझे इतना भी नहीं पता कि लड़कियों से किस तरह पेश आना चाहिए. वे फूल की तरह कोमल होती हैं. कोई भी कठिन बात बरदाश्त नहीं कर सकतीं.’’

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फिर मैं ने झटक कर अपने मन से यह बात निकाल दी, ‘‘हुंह, मुझे अमिता से क्या लेनादेना? बुरा मानती है तो मान जाए. मुझे कौन सा उस के साथ रिश्ता जोड़ना है. न वह मेरी प्रेमिका है, न दोस्त.’’

उन दिनों घर में बड़ी बहन की शादी की बातें चल रही थीं. वह बीए करने के बाद एक औफिस में स्टैनो हो गई थी. दूसरी बहन बीए करने के बाद प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी और सिविल सर्विसेज में जाने की इच्छुक थी. एक कोचिंग क्लास भी जौइन कर रखी थी. सब के साथ शाम की चाय पीने तक मैं अमिता के बारे में बिलकुल भूल चुका था. चाय पीने के बाद मैं ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और यारदोस्तों से मिलने के लिए निकल पड़ा.

मैं दोस्तों के साथ एक रेस्तरां में बैठ कर लस्सी पीने का मजा ले रहा था कि तभी मेरे मोबाइल पर निधि का फोन आया. वह मेरे साथ इंटरमीडिएट में पढ़ती थी और हम दोनों में अच्छी जानपहचान ही नहीं आत्मीयता भी थी. मेरे दोस्तों का कहना था कि वह मुझ पर मरती है, लेकिन मैं इस बात को हंसी में उड़ा देता था. वह हमारी गंभीर प्रेम करने की उमर नहीं थी और मैं इस तरह का कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था. मेरे मम्मीपापा की मुझ से कुछ अपेक्षाएं थीं और मैं उन अपेक्षाओं का खून नहीं कर सकता था. अत: निधि के साथ मेरा परिचय दोस्ती तक ही कायम रहा. उस ने कभी अपने पे्रम का इजहार भी नहीं किया और न मैं ने ही इसे गंभीरता से लिया.

इंटर के बाद मैं नोएडा चला गया, तो उस ने भी मेरे नक्शेकदम पर चलते हुए गाजियाबाद के एक प्रतिष्ठान में बीसीए में दाखिला ले लिया. उस ने एक दिन मिलने पर कहा था, ‘‘मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’

‘‘अच्छा, कहां तक?’’ मैं ने हंसते हुए कहा था.

‘‘जहां तक तुम मेरा साथ दोगे.’’

‘‘अगर मैं तुम्हारा साथ अभी छोड़ दूं तो?’’

‘‘नहीं छोड़ पाओगे. 3 साल से तो हम आसपास ही हैं. न चाहते हुए भी मैं तुम से मिलने आऊंगी और तुम मना नहीं कर पाओगे. यहां से जाने के बाद क्या होगा, न तुम जानते हो, न मैं. मैं तो बस इतना जानती हूं, अगर तुम मेरा साथ दोगे, तो हम जीवनभर साथ रह सकते हैं.’’

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मैं बात को और ज्यादा गंभीर नहीं करना चाहता था. बीटैक का वह मेरा पहला ही साल था. वह भी बीसीए के पहले साल में थी. प्रेम करने के लिए हम स्वतंत्र थे. हम उस उम्र से भी गुजर रहे थे, जब मन विपरीत सैक्स के प्रति दौड़ने लगता है और हम न चाहते हुए भी किसी न किसी के प्यार में गिरफ्तार हो जाते हैं. हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे.

वह मुझे अच्छी लगती थी, उस का साथ अच्छा लगता था. वह नए जमाने के अनुसार कपड़े भी पहनती थी. उस का शारीरिक गठन आकर्षक था. उस के शरीर का प्रत्येक अंग थिरकता सा लगता. वह ऐसी लड़की थी, जिस का प्यार पाने के लिए कोई भी लड़का कुछ भी उत्सर्ग कर सकता था, लेकिन मैं अभी पे्रम के मामले में गंभीर नहीं था, अत: बात आईगई हो गई. लेकिन हम दोनों अकसर ही महीने में एकाध बार मिल लिया करते थे और दिल्ली जा कर किसी रेस्तरां में बैठ कर चायनाश्ता करते थे, सिनेमा देखते थे और पार्क में बैठ कर अपने मन को हलका करते थे.

तब से अब तक 2 साल बीत चुके थे. अगले साल हम दोनों के ही डिग्री कोर्स समाप्त हो जाएंगे, फिर हमें जौब की तलाश करनी होगी. हमारा जौब हमें कहां ले जाएगा, हमें पता नहीं था.

मैं ने फोन औन कर के कहा, ‘‘हां, निधि, बोलो.’’

‘‘क्या बोलूं, तुम से मिलने का मन कर रहा है. तुम तो कभी फोन करोगे नहीं कि मेरा हालचाल पूछ लो. मैं ही तुम्हारे पीछे पड़ी रहती हूं. क्या कर रहे हो?’’ उधर से निधि ने जैसे शिकायत करते हुए कहा. उस की आवाज में बेबसी थी और मुझ से मिलने की उत्कंठा… लगता था, वह मेरे प्रति गंभीर होती जा रही थी.

मैं ने सहजता से कहा, ‘‘बस, दोस्तों के साथ गपें लड़ा रहा हूं.’’

‘‘क्या बेवजह समय बरबाद करते फिरते हो.’’

‘‘तो तुम्हीं बताओ, क्या करूं?’’

‘‘मैं तुम से मिलने आ रही हूं, कहां मिलोगे?’’

मैं दोस्तों के साथ था. थोड़ा असहज हो कर बोला, ‘‘मेरे दोस्त साथ हैं. क्या बाद में नहीं मिल सकते?’’

‘‘नहीं, मैं अभी मिलना चाहती हूं. उन से कोई बहाना बना कर खिसक आओ. मैं अभी निकलती हूं. रामलीला मैदान के पास आ कर मिलो,’’ वह जिद पर अड़ी हुई थी.

दोस्त मुझे फोन पर बातें करते देख कर मुसकरा रहे थे. वे सब समझ रहे थे. मैं ने उन से माफी मांगी, तो उन्होंने उलाहना दिया कि प्रेमिका के लिए दोस्तों को छोड़ रहा है. मैं खिसियानी हंसी हंसा, ‘‘नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ फिर बिना कोई जवाब दिए चला आया. रामलीला मैदान पहुंचने के 10 मिनट बाद निधि वहां पहुंची. वह रिकशे से आई थी. मैं ने उपेक्षित भाव से कहा, ‘‘ऐसी क्या बात थी कि आज ही मिलना जरूरी था. दोस्त मेरा मजाक उड़ा रहे थे.’’

उस ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘सौरी अनुज, लेकिन मैं अपने मन को काबू में नहीं रख सकी. आज पता नहीं दिल क्यों इतना बेचैन था. सुबह से ही तुम्हारी बहुत याद आ रही थी.’’

‘‘अच्छा, लगता है, तुम मेरे बारे में कुछ अधिक ही सोचने लगी हो.’’

हम दोनों मोटरसाइकिल के पास ही खड़े थे. उस ने सिर नीचा करते हुए कहा, ‘‘शायद यही सच है. लेकिन अपने मन की बात मैं ही समझ सकती हूं. अब तो पढ़ने में भी मेरा मन नहीं लगता, बस हर समय तुम्हारे ही खयाल मन में घुमड़ते रहते हैं.’’

मैं सोच में पड़ गया. ये अच्छे लक्षण नहीं थे. मेरी उस के साथ दोस्ती थी, लेकिन उस को प्यार करने और उस के साथ शादी कर के घर बसाने के बारे में मैं ने कभी सोचा भी नहीं था.

‘‘निधि, यह गलत है. अभी हमें पढ़ाई समाप्त कर के अपना कैरियर बनाना है. तुम अपने मन को काबू में रखो,’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं अपने मन को काबू में नहीं रख सकती. यह तुम्हारी तरफ भागता है. अब सबकुछ तुम्हारे हाथ में है. मैं सच कहती हूं, मैं तुम्हें प्यार करने लगी हूं.’’

मैं चुप रहा. उस ने उदासी से मेरी तरफ देखा. मैं ने नजरें चुरा लीं. वह तड़प उठी, ‘‘तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे?’’

मैं हड़बड़ा गया. मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हुए मैं ने कहा, ‘‘चलो, पीछे बैठो,’’ वह चुपचाप पीछे बैठ गई. मैं ने फर्राटे से गाड़ी आगे बढ़ाई. मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि ऐसे मौके पर कैसे रिऐक्ट करूं? निधि ने बड़े आराम से बीच सड़क पर अपने प्यार का इजहार कर दिया था. न उस ने वसंत का इंतजार किया, न फूलों के खिलने का और न चांदनी रात का… न उस ने मेरे हाथों में अपना हाथ डाला, न चांद की तरफ इशारा किया और न शरमा कर अपने सिर को मेरे कंधे पर रखा.

बड़ी शालीनता से उस ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. मुझे बड़ा अजीब सा लगा कि यह कैसा प्यार था, जिस में प्रेमी के दिल में प्रेमिका के लिए कोई प्यार की धुन नहीं बजी.

एक अच्छे से रेस्तरां के एक कोने में बैठ कर मैं ने बिना उस की ओर देखे कहा, ‘‘प्यार तो मैं कर सकता हूं, पर इस का अंत क्या होगा?’’ मेरी आवाज से ऐसा लग रहा था, जैसे मैं उस के साथ कोई समझौता करने जा रहा था.

‘‘प्यार के परिणाम के बारे में सोच कर प्यार नहीं किया जाता. तुम मुझे अच्छे लगते हो, तुम्हारे बारे में सोचते हुए मेरा दिल धड़कने लगता है, तुम्हारी आवाज मेरे कानों में मधुर संगीत घोलती है, तुम से मिलने के लिए मेरा मन बेचैन रहता है. बस, मैं समझती हूं, यही प्यार है,’’ उस ने अपना दायां हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और बाएं हाथ से मेरा सीना सहलाने लगी.

मैं सिकुड़ता हुआ बोला, ‘‘हां, प्यार तो यही है, लेकिन मैं अभी इस मामले में गंभीर नहीं हूं.’’

‘‘कोईर् बात नहीं, जब रोजरोज मुझ से मिलोगे तो एक दिन तुम को भी मुझ से प्यार हो जाएगा. मैं जानती हूं, तुम मुझे नापसंद नहीं करते,’’ वह मेरे साथ जबरदस्ती कर रही थी.

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क्या पता, शायद एक दिन मुझे भी निधि से प्यार हो जाए. निधि को अपने ऊपर विश्वास था, लेकिन मुझे अपने ऊपर नहीं… फिर भी समय बलवान होता है. एकदो साल में क्या होगा, कौन क्या कह सकता है?

इसी तरह एक साल बीत गया. निधि से हर सप्ताह मुलाकात होती. उस के प्यार की शिद्दत से मैं भी पिघलने लगा था और दोनों चुंबक की तरह एकदूसरे को अपनी तरफ खींच रहे थे. इस में कोई शक नहीं कि निधि के प्यार में तड़प और कसमसाहट थी. मेरे मन में चोर था और मैं दुविधा में था कि मैं इस संबंध को लंबे अरसे तक खींच पाऊंगा या नहीं, क्योंकि भविष्य के प्रति मैं आश्वस्त नहीं था.

एक साल बाद हमारे डिग्री कोर्स समाप्त हो गए. परीक्षा के बाद फिर से गरमी की छुट्टियां. मैं अपने शहर आ गया. छुट्टियों में निधि से रोज मिलना होता, लेकिन इस बार अपने घर आ कर मैं कुछ बेचैन सा रहने लगा था. पता नहीं, वह क्या चीज थी, मैं समझ ही नहीं पा रहा था. ऐसा लगता था, जैसे मेरे जीवन में किसी चीज का अभाव था. वह क्या चीज थी, लाख सोचने के बावजूद मैं समझ नहीं पा रहा था. निधि से मिलता तो कुछ पल के लिए मेरी बेचैनी दूर हो जाती, लेकिन घर आते ही लगता मैं किसी भयानक वीराने में आ फंसा हूं और वहां से निकलने का कोई रास्ता मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा.

अचानक एक दिन मुझे अपनी बेचैनी का कारण समझ में आ गया. उस दिन मैं जल्दी घर लौटा था. मां आंगन में अमिता की मां के साथ बैठी बातें कर रही थीं. अमिता की मां को देखते ही मेरा दिल अनायास ही धड़क उठा, जैसे मैं ने बरसों पूर्व बिछड़े अपने किसी आत्मीय को देख लिया हो. मुझे तुरंत अमिता की याद आई, उस का भोला मुखड़ा याद आया. उस के चेहरे की स्निग्धता, मधुर सौंदर्य, बड़ीबड़ी मुसकराती आंखें और होंठों को दबा कर मुसकराना सभी कुछ याद आया. मेरा दिल और तेजी से धड़क उठा. मेरे पैर जैसे वहीं जकड़ कर रह गए. मैं ने कातर भाव से अमिता की मां को देखा और उन्हें नमस्कार करते हुए कहा, ‘‘चाची, आजकल आप दिखाई नहीं पड़ती हैं?’’ वास्तव में मैं पूछना चाहता था कि आजकल अमिता दिखाई नहीं पड़ती.

मुझे अपनी बेचैनी का कारण पता चल गया था, लेकिन मैं उस का निवारण नहीं कर सकता था. अमिता की मां ने कहा, ‘‘अरे, बेटा, मैं तो लगभग रोज ही आती हूं. तुम ही घर पर नहीं रहते.’’

मैं शर्मिंदा हो गया और झेंप कर दूसरी तरफ देखने लगा. मेरी मां मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘लगता है, यह तुम्हारे बहाने अमिता के बारे में पूछ रहा है. उस से इस बार मिला कहां है?’’ मां मेरे दिल की बात समझ गई थीं.

अमिता की मां भी हंस पड़ीं, ‘‘तो सीधा बोलो न बेटा, मैं तो उस से रोज कहती हूं, लेकिन पता नहीं उसे क्या हो गया है कि कहीं जाने का नाम ही नहीं लेती. पिछले एक साल से बस पढ़ाई, सोना और कालेज… कहती है, अंतिम वर्ष है, ठीक से पढ़ाई करेगी तभी तो अच्छे नंबरों से पास होगी.’’

‘‘लेकिन अब तो परीक्षा समाप्त हो गई है,’’ मेरी मां कह रही थीं. मैं धीरेधीरे अपने कमरे की तफ बढ़ रहा था, लेकिन उन की बातें मुझे पीछे की तरफ खींच रही थीं. दिल चाहता था कि रुक कर उन की बातें सुनूं और अमिता के बारे में जानूं, पर संकोच और लाजवश मैं आगे बढ़ता जा रहा था. कोई क्या कहेगा कि मैं अमिता के प्रति दीवाना था…

‘‘हां, परंतु अब भी वह किताबों में ही खोई रहती है,’’ अमिता की मां बता रही थीं.

आगे की बातें मैं नहीं सुन सका. मेरे मन में तड़ाक से कुछ टूट गया. मैं जानता था कि अमिता मेरे घर क्यों नहीं आ रही थी. उस दिन की मेरी बात, जब वह मेरे कमरे में मिठाई देने के बहाने आई थी, उस के दिल में उतर गई थी और आज तक उसे गांठ बांध कर रखा था. मुझे नहीं पता था कि वह इतनी जिद्दी और स्वाभिमानी लड़की है. बचपन में तो वह ऐसी नहीं थी.

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अब मैं फोन पर निधि से बात करता तो खयालों में अमिता रहती, उस का मासूम और सुंदर चेहरा मेरे आगे नाचता रहता और मुझे लगता मैं निधि से नहीं अमिता से बातें कर रहा हूं. मुझे उस का इंतजार रहने लगा, लेकिन मैं जानता था कि अब अमिता मेरे घर कभी नहीं आएगी. एक साल हो गया था, आज तक वह नहीं आई तो अब क्या आएगी? उसे क्या पता कि मैं अब उस का इंतजार करने लगा था. मेरी बेबसी और बेचैनी का उसे कभी पता नहीं चल सकता था. मुझे ही कुछ  करना पड़ेगा वरना एक अनवरत जलने वाली आग में मैं जल कर मिट जाऊंगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा.

क्रमश:

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