Serial Story: मौन प्रेम (भाग-1)

मेरा12वीं कक्षा का रिजल्ट आने वाला था. मुझे उम्मीद थी कि मैं अच्छे मार्क्स ले आऊंगी. इस के बाद मेरी इच्छा कालेज जौइन करने की थी. उस समय घर में दादी सब से बुजुर्ग सदस्या थीं और पापा भी उन का कहा हमेशा मानते थे.

जब मेरे कालेज जाने की चर्र्चा हुई तो दादी ने पापा से कहा, ‘‘और कितना पढ़ाओगे? अपनी बिरादरी में फिर लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा और अगर मिला भी तो उतना तिलक देने की हिम्मत है तुझ में?’’

‘‘मां, जब लड़की पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी तो तिलक नहीं देना पड़ेगा.’’

‘‘लड़कियां कितनी भी पढ़लिख जाएंअपने समाज में बिना तिलक की शादी तो मैं ने नहीं सुनी है.’’

‘‘तुम चिंता न करो मां… पोती का आगे पढ़ने का मन है… उसे आशीर्वाद दो कि अच्छे मार्क्स आएं… स्कौलरशिप मिल जाए तो उस की पढ़ाई पर खर्च भी नहीं आएगा.’’

‘‘ठीक है, अगर तेरी समझ में आगे पढ़ने से भावना बेटी का भला है तो पढ़ा. पर मेरी एक बात तुम लोगों को माननी होगी… कालेज में भावना को साड़ी पहननी होगी. स्कूल वाला सलवारकुरता, स्कर्टटौप या जींस में मैं भावना को कालेज नहीं जाने दूंगी,’’ दादी ने फरमान सुनाया.

‘‘ठीक है दादी, जींस नहीं पहनूंगी पर सलवारकुरते में क्या बुराई है? उस में भी तो पूरा शरीर ढका रहता है?’’

‘‘जो भी हो, अगर कालेज में पढ़ना है तो तुम्हें साड़ी पहननी होगी?’’

मेरा रिजल्ट आया. मुझे मार्क्स भी अच्छे मिले, पर इतने अच्छे नहीं कि स्कौलरशिप मिले. फिर भी अच्छे कालेज में दाखिला मिल गया. पर मेरा साड़ी पहन कर जाना अनिवार्य था. मम्मी ने मुझे साड़ी पहनना सिखाया और मेरे लिए उन्होंने 6 नई साडि़यां और उन से मैचिंग ब्लाउज व पेटीकोट भी बनवा दिए ताकि मैं रोज अलग साड़ी पहन सकूं.

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जुलाई मध्य से मेरी क्लासेज शुरू हुईं. नईर् किताबें और स्टडी मैटीरियल लेतेलेते जुलाई बीत गया पर इस साल सिलेबस में कुछ बदलाव हुआ थे, जिस के चलते इतिहास की एक किताब अभी मार्केट में उपलब्ध नहीं थी. प्रोफैसर अपने नोट्स से पढ़ाते थे. कभी 1-2 प्रिंटआउट किसी एक स्टूडैंट को देते थे और उस का फोटोकौपी कर हमें आपस में बांटनी होती थीं.

ऐसे कुछ नोट्स मेरे अलावा बहुतों को नहीं मिल सके थे और सितंबर में पहला टर्मिनल ऐग्जाम होना था. लाइब्रेरी में सिर्फ एक ही रिफरैंस बुक थी, जिसे हम घर ले जाने के लिए इशू नहीं करा सकते थे. वहीं बैठ कर पढ़नी होती थी. मैं जब भी लाइब्रेरी जाती उस किताब पर किसी न किसी का कब्जा होता.

एक दिन मैं उस किताब के लिए लाइब्रेरी गई. उस दिन भी वह किताब किसी ने पढ़ने के लिए इशू करा रखी थी. इत्तफाक से उस किताब पर मेरी नजर पड़ी. मेरी बगल में बैठे एक लड़के ने इशू करा कर टेबल पर रखी थी और वह खुद दूसरी किताब पढ़ रहा था. मैं ने हिम्मत कर उस से कहा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी, अगर इस किताब को आप अभी नहीं पढ़ रहे हैं तो थोड़ी देर के लिए मुझे दे दें. मैं इस में से कुछ नोट कर वापस कर दूंगी.’’

उस ने किताब को मेरी तरफ सरकाते हुए कहा, ‘‘श्योर, आप इसे ले सकती हैं. वैसे हिस्टरी तो मेरा सब्जैक्ट भी नहीं है. मैं ने अपने एक फ्रैंड के लिए इशू कराई है. जब तक वह आएगा तब तक आप इसे पढ़ सकती हैं.’’

‘‘थैंक्स,’’ कह कर मैं ने किताब ले ली.

करीब 20 मिनट के अंदर एक  लड़का आया और बगल वाले लड़के से बोला, ‘‘प्रसून, तुम ने मेरी किताब इशू कराई है न?’’

‘‘मधुर, आ बैठ. किताब है, तू नहीं आया था तो मैं ने इन्हें दे दी है. थोड़ी देर मेंतुम्हें मिल जाएगी.’’

मैं अपना नोट्स लिखना बंद कर किताब उसे देने जाने लगी तभी प्रसून बोला, ‘‘अरे नहीं, आप कुछ देर और रख कर अपने नोट्स बना लें. है न मधुर?’’

मुझे अच्छा नहीं लग रहा था. 5 मिनट बाद मैं ने किताब प्रसून को लौटा दी.

वह बोला, ‘‘आप मेरे सैक्शन में तो नहीं हैं… क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’

‘‘मुझे भावना कहते हैं.’’

मैं उठ कर चलने लगी तो वह बोला, ‘‘मुझे लगता है कि आप को किताब से और नोट्स बनाने बाकी रह गए हैं. आप एक काम करें मुझे सिर्फ पेज नंबर बता दें. मैं आप को वे पन्ने दे सकता हूं.’’

‘‘तो आप क्या किताब में से उन पन्नों को फाड़ कर मुझे देंगे?’’

‘‘क्या मैं आप को ऐसा बेहूदा लड़का लगता हूं?’’

‘‘नहीं, मेरा मतलब वह नहीं था. सौरी, पर आप उन पन्नों को मुझे कैसे देंगे?’’

‘‘पहले आप अपना मोबाइल नंबर मुझे बताएं. फिर यह काम चुटकियों में हो जाएगा.’’

मुझे लगा कहीं मेरा फोन नंबर ले कर यह मुझे परेशान न करने लगे. अत: बोली, ‘‘नो थैंक्स.’’

तब दूसरे लड़के मधुर ने कहा, ‘‘भावनाजी, मैं समझ सकता हूं कि कोई भी लड़की किसी अनजान लड़के को अपना फोन नंबर नहीं देना चाहेगी, पर आप यकीन करें, प्रसून कोई ऐसावैसा लड़का नहीं है. यह तो उन पेजों का फोटो अपने मोबाइल से ले कर आप को मैसेज या व्हाटसऐप अथवा मेल कर सकता है. ऐसा इस ने क्लास की और लड़कियों के लिए भी किया है और उन लड़कियों से इस से ज्यादा कोई मतलब भी नहीं रहा इसे.’’

मैं कुछ देर सोचती रही, फिर अपनी नोटबुक से एक स्लिप फाड़ कर अपना फोन नंबर प्रसून को दे दिया.

वह बोला, ‘‘भावना, आप कहें तो मैं इन के प्रिंट निकाल कर आप को दे दूंगा.’’

‘‘नहीं, इतनी तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं है. आप बस व्हाइटऐप कर दें.’’

उसी रात प्रसून की व्हाट्सऐप पर रिक्वैस्ट आई जिसे मैं ने ऐक्सैप्ट किया और चंद

मिनटों के अंदर वे सारे पेज, जिन की मुझे जरूरत थी, मेरे पास आ गए. मैं ने प्रसून को ‘मैनीमैनी थैंक्स’ टैक्स्ट किया. उस दिन से उस के प्रति मेरे मन में अच्छी भावनाएं आने लगीं.

इस के बाद कुछ दिनों तक मेरी प्रसून या मधुर किसी से भेंट नहीं हुई. उन के सैक्शन भी अलग थे और प्रसून अकसर मधुर के स्कूटर से आता था. मैं कुछ दूर पैदल और कुछ दूर रिकशे से आतीजाती थी.

उस दिन मेरा हिस्टरी का पेपर था. सुबह से ही तेज बारिश हो रही थी. ऐग्जाम तो देना ही था. मैं किसी तरह रिकशे से कालेज गई, पर रिकशे पर भी भीगने से बच नहीं सकी थी. प्रसून की मदद से मेरा पेपर बहुत अच्छा गया. कालेज के गेट से निकली तो बारिश पूरी थमी नहीं थी, बूंदाबांदी हो रही थी.

उस दिन गेट पर कोई रिकशा नहीं मिला, क्योंकि उस दिन जिन्हें आमतौर पर जरूरत नहीं होती थी, भीगने से बचने के लिए वे भी रिकशा ले रहे थे.

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मैं सड़क पर एक किनारे धीरेधीरे चौराहे की ओर आगे बढ़ रही थी जहां से रिकशा मिलने की उम्मीद थी पर लगातार बारिश के चलते सड़क पर पानी जमा हो गया था. मुझे महसूस हुआ कि मेरे पीछेपीछे कोई चल रहा है, पर मैं ने मुड़ कर देखने की कोशिश नहीं की. साड़ी को भीगने से बचाने के लिए एक हाथ से थोड़ा ऊपर कर चल रही थी.

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टीस: रहिला से शादी न करने के पीछे क्या थी रसूल की वजह?

Serial Story: टीस (भाग-3)

रहिला बुरी तरह तिलमिला गई और फिर पैर पटकते हुए गैस्टहाउस में आ गई. फिर सोचने लगी कि और बेइज्जती बरदाश्त नहीं कर सकती. औपरेशन तो हो ही गया है, जितेंद्र से कहेगी पहली उड़ान से उस की वापसी का इंतजाम कर दे. तभी उस का मोबाइल बजा.

‘‘आप कहां हैं मैडम?’’ जितेंद्र ने पूछा, ‘‘जल्दी से अस्पताल के रूम में पहुंचिए राजेंद्रजी की हालत देखने के बाद सारिका मैडम बहुत घबरा गईर् हैं.’’

‘‘अनिता से कहो उन्हें समझाने को, सलिल भी तो होगा वहां. और सुनो जितेंद्र, वहां से फुरसत मिले तो गैस्टहाउस आना,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

कुछ देर बाद ही अनिता के साथ बदहवास सारिका और उस का सामान उठाए जितेंद्र और सलिल आ गए.

‘‘हम मैडम को यहीं ले आए हैं…’’

‘‘अस्पताल के नियमानुसार आईसीयू के मरीज के परिजन को रूम में ही रहना होता है,’’ रहिला ने अनिता की बात काटी.

‘‘उस के लिए मैं हूं न,’’ सलिल बोला, ‘‘जीजाजी का फूला नीला चेहरा देख कर जीजी बहुत घबरा गई हैं.’’

‘‘राजेंद्र साहब के चेहरे का फूलना स्वाभाविक है, क्योंकि रीढ़ की  हड्डी का औपरेशन था. अत: उन्हें पेट के बल लिटाया गया होगा और 7-8 घंटे उस अवस्था में बेहोश लेटने पर मुंह पर खून जमेगा और सोजिश आएगी ही, जो जल्दी उतरेगी भी नहीं. घबराने की बात नहीं है.’’

‘‘यही मैं भी कह रहा हूं रहिलाजी, लेकिन जीजी मेरी बात समझती ही नहीं हैं,’’ सलिल बेबसी से बोला, ‘‘आप जीजी को अपने साथ रखिए ताकि ये ठीक से खा और सो सकें.’’

‘‘लेकिन मैं तो कल सुबह वापस जा रही हूं,’’ रहिला ने बेरुखी से कहा.

‘‘यह…यह कैसे हो सकता है मैडम?’’ अनिता और जितेंद्र एकसाथ बोले.

‘‘मुझे बीच मझधार में छोड़ कर कैसे जा सकती हो रहिला? राजेंद्र अभी आईसीयू में हैं और डा. रसूल से क्लीन चिट मिलने पर ही रूम में आएंगे. 2 दिन तक लगातार औपरेशन करने से डा. रसूल बहुत थक गए हैं और सुना है थकान उतरने पर ही अस्पताल आएंगे. ऐसे में अगर उन से कुछ कहना हुआ तो मैं क्या करूंगी?’’ सारिका ने रुंधे स्वर में पूछा.

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जैसे यह कम नहीं था कि तभी साहिल का फोन आ गया. साहिल ने कंपनी के चेयरमैन की ओर से रहिला का धन्यवाद कर के कहा कि उसे कुछ दिन और दिल्ली में रुकना होगा. रहिला छटपटा कर रह गई. सारिका को तो नींद की गोली खिला कर सुला दिया, लेकिन रहिला खुद नहीं सो सकी. सब लोग उस से ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे डा. रसूल से दोस्ती कोईर् बहुत बड़ी उपलब्धि हो, जबकि उस की नजरों में तो यह अभिशाप ही था.  रसूल का स्कूलकालेज में पढ़ाने वाली लड़की के उपहास ने उसे इतना गहरा कचोटा था कि पढ़ाई से ही दिल उचाट हो गया था. एमफिल का परिणाम इतना संतोषजनक नहीं था कि पीएचडी में आसानी से दाखिला मिल जाता. अब्बू की बात मान कर उस ने साहिल से शादी कर ली थी. बेहद सुखी थी उस के साथ, अपनी पढ़ाई का सदुपयोग विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग देने वाले संस्थान में स्नातकोत्तर प्रत्याशियों को अंगरेजी पढ़ा कर कर रही थी. अगर रसूल ने इतनी छिछोरी टिप्पणी न की होती तो आज वह भी पीएचडी कर के डाक्टर होती और विश्वविद्यालय की प्राचार्य. तब किसी की हिम्मत नहीं होती उसे किसी रसूल की खुशामद के लिए रोकने की.

देर रात तक जागने के बाद रहिला अगली सुबह देर से उठी. सारिका कमरे में नहीं  थी. तैयार होने के बाद वह बाहर आई. अनिता उस का इंतजार कर रही थी.  ‘‘सलिल का फोन आया था कि राजेंद्र साहब को होश आ गया है. अत: सारिका मैडम जितेंद्र के साथ चली गई हैं. आप नाश्ता कर लीजिए. फिर हम भी अस्पताल चलते हैं,’’ अनिता बोली.

जितेंद्र और सलिल अस्पताल के बाहर ही मिल गए.  ‘‘कुछ देर पहले डा. रसूल आए थे. उन्होंने जीजाजी को खड़ा कर के, कुछ कदम चला कर देखा और कहा कि सब ठीक है. इन्हें रूम में शिफ्ट कर दो. रूम में तो मरीज के साथ एक अटैंडैंट ही रह सकता है. लंच और दोपहर के आराम के लिए जीजी को गैस्टहाउस भेज कर मैं जीजाजी के पास बैठ जाऊंगा,’’ सलिल ने कहा, ‘‘यहां का स्टाफ कह रहा है कि पहली बार डा. रसूल ने लगातार 2 दिन तक औपरेशन किए हैं और थकान के बावजूद आज मरीज को देखने आ गए. आप की सिफारिश का असर है रहिलाजी.’’

‘‘मैं ने कोई सिफारिश नहीं की थी सलिल, सिर्फ हाल बताया था. ऐसी नाजुक हालत वाले मरीज को ठीक करने का चैलेंज कोईर् भी काबिल सर्जन नहीं छोड़ता,’’ रहिला व्यंग्य से हंसी.

‘‘यहां तो आप रुक नहीं सकतीं और गैस्टहाउस में भी जा कर क्या करेंगी, कहीं जाना चाहें तो मैं गाड़ी की व्यवस्था कर दूं मैंडम?’’ जितेंद्र ने पूछा.

‘‘तुम और अनिता दिल्ली वाले हो जितेंद्र, तुम चाहो तो अपनेअपने घर हो आओ. मैं गैस्टहाउस में आराम करूंगी, सारिकाजी को लंच भी करवा दूंगी. तुम लोग शाम तक आ जाना,’’ रहिला ने उन दोनों को भेज दिया.

वह अकेले रहना चाहती थी, लेकिन कुछ देर के बाद ही दरवाजे पर दस्तक हुई. सामने रसूल खड़ा था. उम्र के साथ जिस्म और चेहरे पर भराव आ गया था, लेकिन आंखों की चमक वैसी ही चंचल थी.  ‘‘माफ करना रहिला, मेरे शहर में होते हुए भी तुम्हें गैस्टहाउस में रहना पड़ रहा है. मगर चाह कर भी तुम्हें अपने घर चलने को नहीं कह सकता,’’ रसूल ने बगैर किसी भूमिका के कहा.

‘‘क्यों बेगम साहिबा को अनजान मेहमान पसंद नहीं हैं?’’ न चाहते हुए भी रहिला कटाक्ष किए बगैर न रह सकी.

रसूल ने गहरी सांस ली. फिर बोला, ‘‘बेगम साहिबा खुद ही मेहमान की तरह घर आती हैं, रहिला. उन्हें दुनिया में आने वालों को लाने या हमेशा के लिए दुनिया में आने वालों का रास्ता बंद करने यानी हिस्टरेक्टोमी औपरेशन करने से ही फुरसत नहीं मिलती. दिन में लंबा इमरजैंसी औपरेशन कर के आती हैं और रात को डिलीवरी के लिए बुला ली जाती हैं.’’  ‘‘बच्चे तो होंगे, उन का खयाल कौन  रखता है?’’

‘‘नैनीताल होस्टल में हैं दोनों… छुट्टियों में भी यहां के बजाय लखनऊ में अम्मीअब्बू के पास ज्यादा  रहते हैं,’’ रसूल ने फिर गहरी सांस ली, ‘‘बहुत ही मसरूफ गाइनोकोलौजिस्ट हैं, कई नैशनल और इंटरनैशनल अवार्ड विनर डा. जाहिदा सुलताना.’’

‘‘बहुत खूब. मियां पद्मविभूषण न्यूरो सर्जन और बीवी जानीमानी गाइनोकोलौजिस्ट यानी मुकाबले की जोड़ी है.’’

‘‘काहे की जोड़ी रहिला, एक ही छत के नीचे रहते हुए भी रोज मुलाकात नहीं होती. खैर, तुम अपनी सुनाओ, मियांजी क्या करते हैं?’’

‘‘डिप्टी जनरल मैनेजर हैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में… मसरूफ तो रहते हैं, लेकिन इतने भी नहीं कि बीवीबच्चों के साथ वक्त न गुजार सकें.’’

‘‘और तुम क्या करती हो?’’

‘‘आईएएस और एमबीए के उम्मीदवारों को अंगरेजी पढ़ाती हूं, अपने बच्चे और आशियाना यानी घर भी संभालती हूं, जिस पर मियांजी को नाज है.’’

‘‘कुल मिला कर खुशहाल जिंदगी है तुम्हारी?’’

‘‘खुशहाल और मुकम्मल भी. और तुम्हारी?’’

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‘‘मालूम नहीं रहिला. जाहिदा से तो कोई शिकायत नहीं है. मेरे कदम से कदम मिला कर चल रही है मेरी हमपेशा हमसफर, मगर सिर्फ पेशे में. खुद की जिंदगी क्या है शायद भूल चुके हैं हम दोनों,’’ रसूल ने फिर एक गहरी सांस ली, ‘‘अकसर सोचता हूं कि गलती करी अब्बू की डाक्टरप्रोफैसर की जोड़ी बनाने के इरादे का मजाक बना कर और तुम्हें चोट पहुंचा कर जिस की टीस गाहेबगाहे कचोटती रहती है. खैर, सुकून मिला यह जान कर कि खुशगवारगुलजार आशियाना है तुम्हारा.’’

‘टीस से नजात तो मुझे मिली है रसूल यह जान कर कि टीस बन कर ही सही तुम्हारे जेहन में मुकाम तो है मेरा,’ रहिला ने सोचा, ‘लेकिन मेरी खुशहाल जिंदगी के बारे में जान कर तुम्हें अच्छा भले ही लगा हो, टीस से नजात नहीं मिलेगी, पछतावा बन कर और भी चुभा करेगी अब तो.’

Serial Story: टीस (भाग-1)

‘‘गाड़ी के स्पार्क प्लग तो ठीक से लगा नहीं सकता और ख्वाब देख रहा है इंजीनियर बनने के,’’  साहिल को बेटे पर झुंझलाते देख कर रहिला मुसकरा पड़ी, तो साहिल और झुंझला उठा.

‘‘इस में मुसकराने वाली क्या बात है?’’ उस ने पूछा.

‘‘वैसे ही कुछ याद आ गया. इस वर्ष दिल्ली के जिस मशहूर न्यूरो सर्जन डा. गुलाम रसूल को पद्मविभूषण मिला है न वह बचपन में मेरा पड़ोसी था. एक बार बावर्ची के न आने पर चाचीजान ने रसूल को मछली साफ कर काटने को कहा तो वह कांपते हुए मछली ले कर मेरे पास आया. मिन्नतें कर के मुझ से मछली कटवाई और आज देखो कितना सफल सर्जन है.’’

‘‘अचानक इतनी हिम्मत कैसे आ गई?’’

‘‘पता नहीं, क्योंकि तब तो अब्बू का तबादला होने की वजह से रसूल के परिवार से तअल्लुकात टूट गए थे. फिर जब दोबारा लखनऊ आने पर मुलाकात हुई तो पता चला कि रसूल पीएमटी की तैयार कर रहा है. उस की अंगरेजी हमेशा कमजोर रही, इसलिए उस ने मिलते ही मुझ से मदद मांगी.’’

‘‘और तुम ने कर दी?’’

‘‘हां, बचपन से ही करती आई हूं. अंगरेजी में वह हमेशा कमजोर रहा. पीएमटी तो अच्छे नंबरों से पास कर ली और लखनऊ मैडिकल कालेज में दाखिला भी मिल गया, लेकिन अंगरेजी कमजोर ही थी. अत: रोज अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर मैं उसे अंगरेजी बोलना सिखाती थी.’’  तभी फोन की घंटी बजी और बात वहीं खत्म हो गई. आज उसी बात को  याद कर के साहिल रहिला से कह रहा था कि वह उस के बौस के परिवार के साथ दिल्ली जाए और डा. गुलाम रसूल से अपने संपर्क के बल पर तुरंत अपौइंटमैंट ले कर बौस का औपरेशन करवा दे.  साहिल के बौस जनरल मैनेजर राजेंद्र को फैक्टरी में ऊंचाई से गिरने के कारण रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट लगी थी. डाक्टरों ने तुरंत किसी कुशल सर्जन द्वारा औपरेशन करवाने को कहा था, क्योंकि देर और जरा सी चूक होने पर वे उम्र भर के लिए अपाहिज हो सकते थे.

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इस समय सब की जबान पर पद्मविभूषण डा. गुलाम रसूल का ही नाम था. लेकिन वे केवल जटिल औपरेशन ही करते थे. औपरेशन करने में 7-8 घंटे लग जाते थे. मरीज को होश आने के बाद ही घर जाते थे. फिर थकान उतरने के बाद ही दूसरा औपरेशन करते थे. इसीलिए उन से समय मिलना बहुत मुश्किल होता था.

‘‘इतने वर्षों बाद पद्मविभूषण डा. गुलाम रसूल को रहिला की कहां याद होगी…’’

‘‘क्या बात कर रही हो रहिला, अपनी इतनी मदद करने वाली बचपन की दोस्त को कौन भूल सकता है?’’ साहिल ने बात काटी.

‘‘मदद याद होती तो तअल्लुकात ही क्यों बिगड़ते?’’ रहिला के मुंह से अचानक निकला.

‘‘मतलब? कुछ रंजिशवंजिश हो गई थी?’’ साहिल ने कुरेदा.

रहिला ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘नहीं, हमेशा की तरह अचानक वहां से अब्बू का तबादला हो गया था. न रसूल के परिवार ने हमारा बरेली का अतापता मांगा न हम ने दिया. मुद्दत के बाद अखबार में उसे पद्मविभूषण मिलने की खबर से पता चला कि वह दिल्ली में है…’’  ‘‘अब जब पता चल ही गया है तो उस का फायदा उठा कर राजेंद्र और उन के परिवार को नई जिंदगी दिलवा दो रहिला. अभी उन की उम्र ही क्या है… नौकरी में तरक्की मिलने वाली है… सही इलाज न हुआ तो सब खत्म हो जाएगा… उन के मासूम बच्चों और बीवी के बारे में सोचो. उन से तो तुम्हारी अच्छी दोस्ती है रहिला.’’

‘‘सवाल दोस्ती का नहीं इनसानियत का है साहिल और मैं नहीं समझती कि डा. गुलाम रसूल जैसे आदमी से इनसानियत की उम्मीद करनी चाहिए. मिलना तो दूर की बात है वह मुझे फोन पर पहचानेगा भी नहीं. उस पर समय बरबाद करने के बजाय इंटरनैट पर किसी दूसरे न्यूरो सर्जन की तलाश करते हैं.’’  ‘‘कर रहे हैं भई, मगर ट्रैक रिकौर्ड गुलाम रसूल का ही सब से बढि़या है. तुम एक बार उन्हें फोन कर के तो देखो,’’ साहिल ने आजिजी से कहा.

‘‘बगैर नंबर के?’’

‘‘यह सुनते ही कि तुम उन्हें जानती हो राजेंद्रजी की पत्नी सारिका ने डा. रसूल का मोबाइल, दिल्ली के घर का लैंडलाइन नंबर और पता मंगवा लिया है. अगर तुम ने फोन करने में देर की तो सारिका खुद आ जाएंगी तुम से मदद मांगने… अच्छा लगेगा तब तुम्हें?’’  रहिला सिहर उठी. बौस की बीवी होने के बावजूद सारिका का व्यवहार हमेशा उस से सहेली जैसा था. ‘अपने अभिमान और स्वाभिमान को ताक पर रख कर सारिका की खातिर रसूल की अवहेलना एक बार और सहन करना तो बनता ही है,’ सोच उस ने नंबर मिलाया. स्विच्ड औफ था.

घर पर फोन नौकर ने उठाया, ‘‘डाक्टर साहब औपरेशन थिएटर से बाहर आने के बाद ही मोबाइल खोलते हैं. आप मोबाइल पर ही कोशिश करती रहें. घर कब आएंगे मालूम नहीं.’’

‘‘तो तुम कोशिश करती रहो और जैसे भी हो उन्हें राजेंद्रजी का इलाज करने को मना लो. सवाल मेरी नौकरी का नहीं इनसानियत का है रहिला.’’

‘‘नौकरी तो तुम्हारी राजेंद्रजी की हालत ने और भी पक्की कर दी है. तुम ही तो संभालोगे उन की जिम्मेदारी. अत: अब सवाल हमारी नैतिकता और ईमानदारी का भी है साहिल. हमें उन का सही इलाज करवाना होगा. सोच रही हूं रसूल को कैसे घेरा जाए.’’

‘‘सोचो, मैं तब तक अस्पताल जा कर सारिका को तसल्ली देता हूं,’’ कह कर साहिल रहिला को यादों के भंवर में डूबनेउबरने के लिए छोड़ कर चला गया…  गुलाम रसूल से बचपन में तो प्यार नहीं था, लेकिन कालेज में लड़कियों से  प्यारमुहब्बत के किस्से सुनते हुए लंबा, छरहरा रसूल अपने सपनों का राजकुमार लगने लगा था और एक रोज रसूल ने यह पूछ कर कि तुम्हारे इंगलिश लिटरेचर में मेरे जैसा हैंडसम हीरो है कोई? और उस के क्यों पूछने पर यह कह कर क्योंकि तुम लड़कियों की पसंद किताबी हीरो के इर्दगिर्द ही घूमती है, उस की सोच को हकीकत में बदल दिया था और वह सपनों की रोमानी दुनिया में विचरने लगी थी.  पढ़ाई के बढ़ते बोझ ने उन का मिलनाजुलना कम कर दिया था और फिर रसूल होस्टल में रहने चला गया था. जब भी घर आता था तो उस से मिलता जरूर था. लेकिन जैसे औपचारिकता निभाने को. रहिला को एमए करते ही कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिली ही थी कि गुलाम रसूल का रिजल्ट भी आ गया. वह भी डाक्टर बन गया था.

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Serial Story: टीस (भाग-2)

‘‘क्यों न इन दोनों की शादी कर दी जाए गुलाम अली?’’ अब्बू ने रसूल के वालिद से कहा था.

‘‘सही कह रहे हो शम्शुल हक. लाजवाब जोड़ी रहेगी डाक्टर और प्रोफैसर की. मैं रसूल और उस की अम्मी को अभी बताता हूं. कल पीर के मुबारक दिन पर महल्ले में शीरनी बंटवा देंगे?’’

अगले रोज अब्बू के पूछने पर कि शीरनी मंगवाएं, गुलाम अली ने टालने के लहजे में कहा कि रसूल अभी शादी के लिए तैयार नहीं है. एमडी करने के बाद सोचेगा.  ‘‘तो अभी शादी करने को कह कौन रहा है? रहिला को भी एमफिल करनी है. जब तक रहिला की एमफिल पूरी होगी तब तक रसूल भी एमडी कर के शादी के लिए तैयार हो जाएगा.’’

‘‘लेकिन अपने मुकाबले की डाक्टर लड़की से स्कूलकालेज में पढ़ाने वाली से नहीं. गुलाम रसूल को तो यह डाक्टरप्रोफैसर की जोड़ी बनाने वाली बात ही एकदम बचकानी लगी,’’ गुलाम अली ने व्यंग्य से कहा.

अब्बू को ही नहीं रहिला को भी यह बात सरासर अपनी काबिलीयत की तौहीन लगी थी. दोनों परिवारों में तअल्लुकात ठंडे होने शुरू हो गए थे और इस से पहले कि और बिगड़ते, हमेशा की तरह अचानक अब्बू का तबादला हो गया. जल्द ही उन्होंने रहिला के लिए इंजीनियर साहिल तलाश कर लिया…  तभी साहिल और सारिका आ गए.

‘‘डा. रसूल को फोन लगाओ रहिला, मेरे भाई का दिल्ली से फोन आया है कि डाक्टर साहब औपरेशन थिऐटर से बाहर आ गए हैं,’’ सारिका ने उतावली से कहा.  रहिला ने स्पीकर औन कर के नंबर मिलाया. दूसरी ओर से बहुत ही थकी सी आवाज में किसी ने हैलो कहा. रहिला आवाज पहचान गई.

‘‘सुनिए, मैं रहिला बोल रही हूं, रहिला शम्श…’’

‘‘बोलो रहिला,’’ थकी आवाज में अब चहक थी, ‘‘शम्शवम्श लगाने की क्या जरूरत है…’’

‘‘सोचा शायद रहिला नाम से न पहचानो, बड़ी परेशानी में फोन कर रही हूं… किसी की जिंदगी का सवाल है,’’ और एक ही सांस में रहिला ने सारी बात बता दी.

‘‘लेकिन ऐसे मरीज को भोपाल से दिल्ली कैसे लाओगी?’’

‘‘एअर ऐंबुलैंस से डाक्टर साहब,’’ साहिल बोला, ‘‘औन ड्यूटी ऐक्सीडैंट हुआ है. अत: कंपनी ने एअरऐंबुलैंस की व्यवस्था करवा दी है.’’

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‘‘तो लाने में देर मत करिए… ऐंबुलैंस में जो डाक्टर साथ आएंगे उन से मेरी बात करवा दीजिए… मैं यहां भी अपने स्टाफ को सभी जरूरी हिदायतें दे देता हूं कि पहुंचते ही मरीज को इमरजैंसी में शिफ्ट कर दें और फैमिली को रूम दे दें ताकि आप को कोई परेशानी न हो… आप बेफिक्र हो कर मरीज को ले आएं,’’ कह कर डा. गुलाम रसूल ने फोन काट दिया.

साहिल और सारिका तो खुशी से उछल पड़े, लेकिन रहिला एक बार फिर अपनी अवहेलना से तिलमिला गई. बगैर उस से कुछ कहे फोन काट देना सरासर उस की बेइज्जती थी.

‘‘आप घर जा कर दिल्ली चलने की तैयारी करिए,’’ साहिल ने सारिका से कहा, ‘‘मैं अस्पताल जा कर साथ चलने वाले डाक्टर की डा. रसूल से बात करवाता हूं और रहिला, तुम भी अपना सामान पैक करो दिल्ली जाने को.’’

‘‘मैं…मैं दिल्ली जा कर क्या करूंगी? जितनी बात की जरूरत थी कर ली…’’

‘‘अभी बहुत बातों की जरूरत है रहिला और उस से भी ज्यादा मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है. तुम्हारे साथ चलने से मुझे बहुत सहारा रहेगा,’’ सारिका ने रहिला के साथ पकड़ लिए.

रहिला उसे मना नहीं कर सकी और फिर जाने की तैयारी करने लगी.

‘‘रहिला, साथ चलने वाले डाक्टर से डाक्टर रसूल की बात हो गई  है. उन्होंने डाक्टर को समझा दिया है कि उड़ान में क्या सावधानियां बरतनी जरूरी हैं और यह भी कहा है बेफिक्र हो कर आइए, आप मेरे मेहमान हैं,’’ साहिल ने कुछ देर के बाद आ कर कहा.

‘‘तो फिर मेरे जाने की तो जरूरत ही नहीं रही साहिल…’’

‘‘जरूरत और भी बढ़ गई है शुक्रिया करने को… राजेंद्रजी का औपरेशन कई घंटे तक चलेगा. उस दौरान सारिका को संभालने को भी तो कोई होना चाहिए.’’

‘‘अस्पताल में मरीज के पास तो सारिका ही रह सकती हैं, मैं कहां रहूंगी?’’

‘‘अस्पताल के सामने ही एक गैस्टहाउस है, वहां पर कंपनी की ओर से कमरे बुक करवा दिए हैं. यहां से कंपनी की जनसंपर्क अधिकारी अनिता भी तुम्हारे साथ जा रही हैं और वित्त विभाग के जितेंद्र सिंह भी. दोनों को ही तुम बहुत अच्छी तरह जानती हो.’’

रहिला ने राहत की सांस ली.  ‘‘इतने लोगों को ऐंबुलैंस में बैठने देंगे?’’

‘‘सिर्फ सारिकाजी को. तुम, अनिता और जितेंद्र शाम की फ्लाइट से जा रहे हो.’’

जब रहिला अस्पताल पहुंची तो राजेंद्रजी को इमरजैंसी में ऐडमिट करवा कर सारिका अपने भाई सलिल के साथ रूम में थी. दोनों भाईबहन एक स्वर में डा. रसूल के गुण गा रहे थे कि कितनी आत्मीयता से मरीज के बिलकुल ठीक हो जाने का आश्वासन दिया और उन लोगों के रहने, खाने के बारे में पूछा.

‘‘मेरे बारे में तो नहीं पूछा न?’’ रहिला ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘इतना समय ही कहां था उन के पास.’’

‘हां, वक्त तो मेरे पास ही खाली रहा है हमेशा कभी उसे पढ़ाने को तो कभी कोई खुशामद करने को,’ रहिला ने कड़वाहट से सोचा, ‘सारिका के साथ उस का भाई है. अत: कल औपरेशन होते ही वापस चली जाऊंगी.’  देर शाम रहिला भी सारिका के साथ औपरेशन थिएटर के बाहर खड़ी थी कि तभी थिएटर का दरवाजा खुला और डाक्टर के परिधान में रसूल बाहर आया. दोनों की नजरें मिलते ही रसूल की आंखों में पहचान की चमक उभरी, लेकिन अगले ही पल वह सारिका की ओर मुड़ा, ‘‘मैं ने चोट का मुक्कम्मल इलाज कर दिया है, अब आप ने सही तीमारदारी की तो जल्द ही आप के शौहर अपनी पुरानी फौर्म में लौट आएंगे. उन के आईसीयू में जाने से पहले आप उन्हें पल भर को देख लीजिए और फिर खुद भी आराम कीजिए. मरीज की देखभाल के लिए आप का चुस्तदुरुस्त रहना बेहद जरूरी है.’’

‘‘आप का बहुतबहुत शुक्रिया डाक्टर…’’

‘‘शुक्रिया मेरा नहीं…’’ रसूल ने बात काटी और इस से पहले कि रहिला समझ पाती वह उस की ओर देख रहा था या छत की ओर एक नर्स ने सारिका को अंदर जाने का इशारा किया. रहिला भी लपक कर उस के पीछे जाने लगी.

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‘‘अंदर सिर्फ मरीज की बीवी जा सकती है, तुम नहीं,’’ रसूल ने उसे रोका, ‘‘वैसे तुम ठहरी हुई कहां हो?’’

‘‘सामने वाले गैस्टहाउस में.’’

‘‘दैन गो देयर, यहां भीड़ लगाना मना है,’’ और रसूल तेज कदमों से आगे बढ़ गया.

आगे पढ़ें- रहिला बुरी तरह तिलमिला गई और…

Serial Story: महकी रात की रानी (भाग-1)

उसेलाइब्रेरी में आते देख अमोली ने सोचा कि औफिस में किसी नए औफिसर ने जौइन किया है. आसमानी शर्ट के साथ गहरे नीले रंग की टाई लगाए गौरवर्णीय वह युवक अमोली को बहुत आकर्षक लगा. लाइब्रेरी में घुसते ही वह पत्रिकाओं के रैक के पास पहुंचा और एक पत्रिका निकाल उलटपुलट कर देखने लगा. कुछ देर बाद वह पुस्तकों की ओर बढ़ गया. अमोली अपनी सीट पर बैठी कंप्यूटर में नई पुस्तकों की ऐंट्री कर रही थी. कुछ देर बाद उस युवक ने ग्राफिक डिजाइनिंग पर एक पुस्तक ला कर अमोली के सामने मेज पर रख दी.

‘‘मिल ही गई… इस बुक को मेरे नाम पर इशू कर दीजिए,’’ कहते हुए वह अमोली के सामने वाली कुरसी पर बैठ गया.

‘‘बुक इशू करवाने के लिए आप की डिटेल ऐंटर करनी पड़ेगी… अपना नाम, डिपार्टमैंट, पता वगैरह बताएं प्लीज,’’ अमोली उस की ओर देखते हुए बोली.

‘‘इस की जरूरत नहीं, औलरैडी ऐंटर्ड है सबकुछ… पिछले कई दिनों से छुट्टी पर था… वाइफ काफी बीमार हैं… मैं सुजीत कुमार… आप शायद इस औफिस में नई हैं… आप से पहले तो एक उम्रदराज मैडम बैठती थीं यहां पर…’’

अमोली ने सुजीत का नाम सर्च किया. एक व्यक्ति ही था औफिस में इस नाम का. फोटो भी था वहां. अमोली ने बुक इशू कर दी.

कुछ देर मुसकरा कर अमोली को देखने के बाद बोला, ‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर… मिलते रहेंगे और फिर तेजी से बाहर निकल गया.’’

डिजाइनिंग की एक मल्टीनैशनल फर्म में वहां काम करने वाले लोगों के लिए बनी हुई थी वह लाइब्रेरी. अमोली वहां 2 माह पहले ही आई थी. सारा दिन काम में व्यस्त रहने के कारण उस की किसी से मित्रता नहीं हो पाई थी. बुक इशू करते समय या कोई जानकारी देते हुए जब कुछ देर के लिए किसी से उस की बातचीत हो जाती तब उसे बहुत अच्छा लगता था.

सुजीत अकसर वहां आने लगा था. छुट्टियों से लौटने पर उसे नया काम दे दिया गया था जो फोटोशौप से संबंधित था. इस विषय में उसे अधिक जानकारी नहीं थी. अत: वह इंटरनैट और पुस्तकों की मदद ले रहा था. इसी सिलसिले में प्राय: लाइब्रेरी जाना हो जाता था. वहां जा कर वह कुछ देर अमोली के पास जरूर बैठता था.

बातोंबातों में अमोली को पता लगा कि सुजीत की पत्नी को एक ऐसी बीमारी है जिस में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता शरीर की कार्यप्रणालियों पर ही आक्रमण करना शुरू कर देती है. इस बीमारी के कारण उस का अब चलनाफिरना भी कम हो गया था और वह अपना अधिकतर समय बिस्तर पर ही बिताती थी. सुजीत पिछले 3 महीनों से पत्नी के उपचार के लिए अवकाश पर था. उन का 8 महीने का 1 बेटा भी है, जिस की देखभाल के लिए इन दिनों सुजीत की साली आई हुई थी.

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सुजीत से बातें करते हुए अमोली को बहुत संतोष मिलता था. एक तो सुजीत जैसे व्यक्ति का साथ, उस पर हालात से परेशान इंसान के मन को कुछ देर तक अपनी बातों से सुकून पहुंचाना. अमोली सुजीत के साथ समय बिताते हुए सुखद एहसास से भर जाती थी. धीरेधीरे वे एकदूसरे के अच्छे मित्र बनते गए और शाम अकसर साथ कौफी पीते हुए किसी कैफे में बिताने लगे.

सुजीत के साथ कुछ समय बिताने और उस का दर्द सा झा करने के बाद अमोली शाम को घर पहुंच कर कुछ देर आराम करती और फिर काम में मां की मदद करती. थोड़ी देर बाद ही पिता दफ्तर से लौट आते और चाय पीतेपीते ही अपना लैपटौप खोल कर बैठ जाते. काफी समय से वे अमोली के लिए एक वर की तलाश कर रहे थे. अमोली को जब वे अपनी पसंद के किसी लड़के का प्रोफाइल दिखाते तो अनजाने में वह उस की तुलना सुजीत से कर बैठती.

अगले दिन जब सुजीत के साथ इस विषय में

वह चर्चा करती तो सुजीत प्रत्येक

लड़के में कोई न कोई कमी निकाल देता. अमोली मन ही मन सबकुछ सम झ रही थी. उस से दूर हो कर सुजीत एक अच्छी दोस्त को खोना नहीं चाहता था.

सुजीत अमोली के साथ अब मन की बातें सा झा करने लगा था. एक दिन पत्नी की बीमारी की चर्चा करते हुए वह बोला, ‘‘पता है अमोली, कहने को तो यह बीमारी उसे कुछ महीनों से अपने लपेटे में लिए है, पर मैं एक पत्नी का सुख विवाह के बाद कुछ दिनों तक ही भोग पाया था. शादी के बाद जल्द ही प्रैगनैंट हो गई थी वह. प्रैगनैंसी में उस ने कई तरह के कौंप्लिकेशंस का सामना किया, फिर बच्चे की देखभाल में दोनों की रतजगाई… और अब यह असाध्य रोग. कभीकभी लगता है टूट जाऊंगा मैं.’’

अमोली सुन कर बेबस हो जाती थी. वह जानती थी कि सुजीत सचमुच समय से लड़ रहा है. ‘‘तुम्हें अपने लाइफपार्टनर में कौन सी खूबियां चाहिए?’’ एक दिन रैस्टोरैंट में बैठे हुए सुजीत अमोली से पूछ बैठा.

‘‘हैंडसम हो या न हो, पर केयरिंग हो. बुरे वक्त में मेरा साथ दे, वैसे ही जैसे आप दे रहे हैं,’’ अमोली मुसकरा दी.

‘‘मैं हैंडसम नहीं हूं क्या?’’ बच्चों की तरह मासूम सा मुंह बना कर सुजीत बोला.

‘‘अरे नहीं बाबा… आप अपनी मैडम का कितना खयाल रखते हो, इसलिए कहा मैं ने ऐसा… वैसे देखने में तो जनाब हीरो लगते हैं किसी फिल्म के,’’ कहते हुए अमोली ने सुजीत का गाल पकड़ कर खींच लिया.

अमोली का हाथ अपने गाल से हटाते हुए सुजीत गंभीर हो कर बोला, ‘‘प्लीज अमोली, ऐसा न करो… अपने से दूर रखो मु झे, नहीं तो मैं भूल जाऊंगा कि हम सिर्फ दोस्त हैं.’’

‘‘भूल जाओगे? तो क्या सम झोगे मु झे?’’

अमोली उस का आशय नहीं सम झ पाई थी.

‘‘कैसे सम झाऊं तुम्हें? यह तो सम झती हो न कि फिजिकल नीड नाम की भी कोई चीज होती है. मैं भी तो एक इंसान हूं न. भीतर से एक मीठी सी  झन झनाहट महसूस होने लगी थी तुम्हारे टच से… सच बताओ अमोली, तुम्हें भी तो किसी की कमी इस उम्र में खलने लगी होगी… अकेले में किसी का साथ पाना चाहती हो न तुम भी?’’ सुजीत ठंडी आह भरते हुए बोला.

अमोली बहुत देर तक सिर  झुकाए बैठी रही.

आगे पढ़ें- मैं परेशान नहीं करना चाहता था तुम्हें…

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Serial Story: महकी रात की रानी (भाग-2)

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‘‘अरे, किस खयाल में खो गई? मैं परेशान नहीं करना चाहता था तुम्हें… चलो किसी और टौपिक पर बात करते हैं बाहर चल कर,’’ कह कर सुजीत कुरसी से उठ गया और अमोली का हाथ पकड़ कर उसे भी उठा दिया. दोनों मुसकराते हुए रैस्टोरैंट से बाहर निकल आए.

उस रात अमोली को बहुत देर तक नींद नहीं आई. सोचती रही कि सुजीत सच ही तो कह रहा है, उसे भी तो कोई स्वप्निल स्पर्श गुदगुदाता रहा है, एक पिपासा दिनरात महसूस करती है वह. सुजीत के दिल पर क्या बीतती होगी? वह तो विवाहित है. अपनी पत्नी का साथ देते हुए भी एक अकेलापन… सचमुच रातें तो उस की छटपटाहट का पर्याय ही बन गई होंगी. उफ, कैसी विषम परिस्थिति है.

सुजीत और अमोली एकदूसरे के साथ अब और भी खुलने लगे थे. अमोली को सुजीत की आंखों में एक चाहत सी दिखाई देने लगी थी. पहले वह कौफी पीने के बाद अमोली को अपनी कार से मैट्रो स्टेशन तक ही छोड़ता था, पर अब अकसर घर तक छोड़ देने का हठ ले कर बैठ जाता. अमोली के बैठते ही वह कार में रोमांटिक गाने लगा कर मतवाला सा हो कर ड्राइविंग करने लगता. अमोली उसे देख मुसकराती रहती. घर आ कर उस की सुनहरी कल्पनाओं में अब सुजीत चला आता था.

उस दिन लंच में अमोली के पास सुजीत आया तो उस का चेहरा गुमसुम सा था. अमोली ने उसे अपने साथ खाना खाने को कहा तो बोला, ‘‘मन नहीं कर रहा आज कुछ खानेपीने को… पता है, एक वीक बिताना पड़ेगा तुम्हारे बिना मु झे… मुंबई में ट्रेनिंग के लिए जाना है परसों. घर पर तो अभी साली साहिबा की मेहरबानी से सब ठीक चल रहा है… लेकिन पता नहीं कैसे रह पाऊंगा बिना तुम्हारे?’’

‘‘इतना निर्भर हो जाओगे मु झ पर तो कैसे चलेगा? अच्छा है न, इस बहाने थोड़ा मु झ से दूर होना सीख जाओगे,’’ अमोली मेज पर सिर टिका कर

स्नेह से सुजीत की ओर देखते हुए बोली.

अमोली की हथेली अपनी दोनों हथेलियों के बीच छिपाते हुए वह बोला, ‘‘यों छिपी हो तुम मेरे मन में… दूरी नहीं, मैं तो बस अब सिर्फ करीबी के सपने देखता हूं… यह हाथ मेरा सहारा है और यह चेहरा… ये होंठ मेरा सपना.’’

सुजीत के प्रेम में भीगे शब्दों ने अमोली का मन भिगो दिया.

शाम को कौफी पीते हुए भी सुजीत 1 सप्ताह अमोली से दूर रहने पर उदास था. मैट्रो स्टेशन पर अमोली को छोड़ते हुए तो जैसे उस का कलेजा ही छलनी हुआ जा रहा था.

सुजीत के जाने के बाद अमोली भी उदास हो गई. सुजीत, अमोली और यह नया रिश्ता… पूरा सप्ताह अमोली की सोच बस इसी के इर्दगिर्द घूमती रही.

जब 1 सप्ताह बीत गया और सुजीत नहीं लौटा तो अमोली चिंतित हो गई. उस ने कई बार कौल किया, पर फोन नौट रिचेबल था. एक बार मिला भी तो ‘हैलो’ के बाद सुजीत की आवाज ही नहीं आई.

‘क्यों न एक बार सुजीत के घर चली जाऊं? उस की पत्नी से पता लग जाएगी वजह… और वहां सुजीत न सही उस की वह खुशबू तो रचीबसी होगी जो रोज मु झे अपने मोहमाश में जकड़े रहती है,’ सोचते हुए अमोली ने कंप्यूटर खोल सुजीत के घर का पता नोट कर लिया.

अगले दिन रविवार था. अमोली ने बुके खरीदा और कैब बुक कर सुजीत के घर पहुंच गई.

घर ढूंढ़ने में उसे कोई विशेष परेशानी नहीं हुई. बस मन में एक  िझ झक अवश्य थी कि सुजीत की पत्नी और साली को वह अपना परिचय कैसे देगी.

डोरबैल बजाते ही दरवाजा खुला तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. कालेज में उस की सहेली रही नमिता सामने खड़ी थी. ‘तो नमिता की बहन है सुजीत की पत्नी वाह,’ सोचते हुए अमोली की सारी  िझ झक दूर हो गई. अमोली को देख कर नमिता का मुंह भी प्रसन्नता से खुला का खुला रह गया.

‘‘अरे, मु झे क्या पता था कि सुजीत तेरे जीजू हैं. उन के साथ ही काम करती हूं मैं. उसी औफिस की लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन हूं,’’ सोफे पर बैठते हुए अमोली बोली.

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‘‘हा… हा… हा… अच्छा उन से काम है तु झे. पर जीजू नहीं यार, सुजीत मेरे मियांजी हैं… मुंबई में हैं वे इन दिनों… कल आ रहे हैं वापस. पर तूने जीजू कैसे बना दिया उन्हें मेरा?’’

‘‘वह क्या है न… बात यह है कि तू तो लगती ही नहीं शादीशुदा…’’ शब्द अमोली के गले में अटके जा रहे थे.

‘‘थैंक्स डियर,’’ नमिता खिल उठी.

‘‘इन शौर्ट्स में देख कर कौन कहेगा कि तू एक नन्हेमुन्ने की मौम है,’’ अमोली संभलते हुए बोली.

‘‘अच्छा तो सुजीत ने तु झे मिंटू के बारे में भी बता दिया… बड़ा नौटी होता जा रहा है मिंटू… सुजीत के पीछे से अकेले उसे संभालना बहुत मुश्किल हो रहा है… अभी तो सो रहा है.’’

कुछ देर बातें करने के बाद, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं. आज मेड छुट्टी पर है,’’ कह कर नमिता किचन में चली गई.

अमोली का दिमाग जैसे कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं था.

‘नमिता… सुजीत की पत्नी… बिलकुल दुरुस्त है यह तो वह बीमारी… क्यों किया सुजीत ने ऐसा?’ वह अपने को लुटा सा महसूस कर रही थी.

नमिता से मिल कर अमोली को पुराना समय याद आ रहा था. कालेज में साथ पढ़ने वाली नमिता उस की पक्की सहेली तो नहीं थी, पर दोनों में मित्रता अवश्य थी.

‘‘क्या सोच रही है? चल आ चाय पीते हुए फिर एक बार कालेज वाली सहेलियां बन जाती हैं,’’ नमिता की खनकती आवाज सुन अमोली को ध्यान आया कि वह नमिता के ड्राइंगरूम में बैठी है.

‘‘सुजीतजी पिछले काफी समय से छुट्टी पर थे न?’’ अमोली ने अपने को संयत कर पूछा.

‘‘हां… औफिस में तो मेरी बीमारी के नाम से ली थी छुट्टियां, पर तु झ से क्या छिपाना. दरअसल, एक नई जौब औफर हुई थी उन्हें. कुछ दिन काम कर के देखना चाह रहे थे. पसंद नहीं आया वहां का माहौल, इसलिए दोबारा पुरानी जगह चले गए.’’

‘अच्छा हुआ न वरना हम कैसे मिलते,’’ अपने मुंह पर नकली मुसकान चिपकाते हुए अमोली बोली.

चाय पीते हुए नमिता से कुछ देर तक बातें करने के बाद अमोली वापस चली

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आई. उस का बेचैन मन उसे कुछ भी सोचने नहीं दे रहा था. सुजीत ने उस से इतना बड़ा छल किया है, इस बात पर उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था.

अगले दिन सुजीत वापस आ गया. अपने आने का समाचार उस ने अमोली को व्हाट्सऐप पर दिया, किंतु अमोली ने कोई जवाब नहीं दिया.

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Serial Story: महकी रात की रानी (भाग-3)

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लंच के समय अमोली का मन कुछ खाने को नहीं कर रहा था. वह चुपचाप अपनी सीट पर बैठी थी कि सुजीत फू्रटचाट ले कर आ गया. अमोली की टेबल पर चाट की प्लेट रख वह सामने वाली कुरसी पर बैठ गया. बोला, ‘‘मु झे पता था तुम भूखी बैठी होंगी… पहले यह चाट खाओ और फिर डांट लगाना जी भर के.’’

सुजीत की बात सुन अमोली चुपचाप बैठी रही, पर मन ही मन गुस्से से उबल रही थी. ‘‘जानता हूं, बहुत नाराज हो मु झ से… सोच रही होंगी किस धोखेबाज से पाला पड़ गया. पर मेरे  झूठ बोलने की वजह नहीं जानना चाहोगी?’’

‘‘जो भी वजह हो आप ने अच्छा नहीं किया,’’ अमोली के अंदर दबा क्रोध बाहर आ गया.

‘‘मेरा कुसूर है, मानता हूं पर क्या करता मैं? मन से कभी दूर नहीं होता… तुम्हारा यलो कलर की साड़ी में दपदप करता रूप… यही कलर था न तुम्हारी साड़ी का उस फोटो में जो मैट्रीमोनियल साइट पर डाला हुआ था 2 साल पहले… उस पिक को देख कर दीवाना हो गया था मैं… कहा था मैं ने पेरैंट्स से कि पहली बार कोई लड़की पसंद आ रही है मु झे… इसी से बात आगे बढ़ाओ, मगर अपने मम्मीपापा की इकलौती बेटी नमिता का पैसा उन की आंखों को चकाचौंध किए था… बांध दिया उसे मेरे गले… फिर अचानक जब औफिस में तुम्हें देखा तो बस देखता ही रह गया… फोटो से कहीं ज्यादा सुंदर नजर आ रही थीं तुम… नहीं रोक सका खुद को… अब माफ करो या सजा दो, सब मंजूर है.’’

‘‘पर सच भी तो बोल सकते थे न तुम?’’ सुजीत के इस बार सही बात बता देने पर अमोली कुछ शांत हो गई थी. उसे याद था कि शादी.कौम पर 2 साल पहले सचमुच पीले रंग की साड़ी में तसवीर डाली थी उस की.

‘‘अगर मैं सच बोलता तो क्या इतनी क्लोज हो पातीं तुम मु झ से? तुम्हारे प्यार को बस महसूस करना चाहता था मैं. मु झे पता है कि एक दिन पराई हो जाओगी… जीवनभर के लिए बांध कर तो नहीं रख सकता हूं तुम्हें, पर सोचा कि जितना भी साथ तुम्हारा पा लूं उतना अच्छा… बीलीव मी… आई एम नौट लाइंग दिस टाइम.’’

सब सुन कर अमोली कुछ देर खामोश बैठी रही. फिर कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘सौरी, मु झे नहीं पता था कि आप मु झे पहले से ही पसंद करते हैं, माफ कर दोगे न?

‘‘थैंक यू अमोली, पर यह सवाल तो मु झे पूछना चाहिए था… चलो अंत भला तो सब भला… अब शाम को मिलते हैं कौफी शौप में… थैंक्स अगेन,’’ और मुसकरा कर लाइब्रेरी से बाहर चला गया सुजीत.

शाम को दोनों जा कर कौफी टेबल पर बैठे तो अमोली ने बात शुरू करते हुए पूछा, ‘‘और क्या बताया नमिता ने आप को मेरे बारे में?’’

‘‘बस पुराने दिनों को याद कर रही थी… कैसा कोइन्सिडैंस है न कि तुम उस की सहेली निकलीं. कह रही थी कि तुम्हें अपने घर देखते ही वह तो खुशी से पगला सी गई थी,’’ सुजीत हंसते हुए बोला.

‘‘झूठ, सफेद  झूठ बोल रही है नमिता…’’ ‘‘अरे, क्या तुम उस के साथ नहीं पढ़ती थीं?’’ आश्चर्यचकित हो सुजीत पूछ बैठा.

‘‘यह बात नहीं है. मेरा मतलब नमिता के खुश होने से था. उस का तो मूड औफ हो गया था मु झे देख कर… पता है क्यों? मेरे पहुंचते ही अक्षय को वापस जो जाना पड़ा था.’’

‘‘किस को, कहां से जाना पड़ा था वापस?’’ माथे पर त्योरियां चढ़ाता हुआ सुजीत बोला.

‘‘अरे, कालेज में था न हमारा क्लासमेट अक्षय, नमिता का पक्का दोस्त… तुम्हारे घर आया था उस दिन… मु झ से बस हैलो कर के वापस चला गया.’’

‘‘लेकिन किसी अक्षय की बात कभी नमिता ने मु झ से नहीं की… मु झे तो आज पता लगा है.’’

‘‘पर नमिता तो उस दिन मु झ से कह रही थी कि वे दोनों अकसर मिलते रहते हैं… दोनों को साउथ इंडियन खाने का शौक है, इसलिए जिस जगह जा कर वे कालेज टाइम में खाया करते थे वहीं अकसर अब भी जाते रहते हैं…इधर कुछ दिनों से बेटे के कारण नमिता नहीं जा पा रही तो वह ही आ जाता है मिलने…दोस्ती निभाना खूब जानता है अक्षय.’’

‘‘पर नमिता न जाने क्यों छिपाती रही ये सब मु झ से… आज ये सब बातें सुन कर मेरा जी तो चाह रहा है कि अभी नमिता को फोन कर कह दूं कि जाओ उसी अक्षय के पास… क्यों रह रही हो मेरे साथ,’’ सुजीत अन्यमनस्क सा दिख रहा था.

‘‘छोड़ो न गुस्सा… लो आ गई कौफी,’’ कौफी का कप सुजीत की ओर खिसकाते हुए अमोली ने कहा.

‘‘मु झे हैरानी हो रही है कि नमिता ने मु झ से कभी अक्षय का जिक्र नहीं किया… कहती रहती है हमेशा कि बहुत प्यार करती है मु झे… पर देखो उस का यह प्यार… धोखेबाज… जरूर दाल में काला है,’’ कौफी का घूंट भरते हुए सुजीत का चेहरा उस हारे हुए खिलाड़ी सा दिख रहा था, जो खीजने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाता.

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‘‘प्यार का मतलब यह तो नहीं कि नमिता की कोई पर्सनल लाइफ नहीं है… क्या हुआ अगर आप को नहीं बताया? होगी कोई वजह.’’

‘‘पर हसबैंडवाइफ में इतनी अंडरस्टैंडिंग तो होनी चाहिए कि सब बातें आपस में शेयर करें. तुम नहीं सम झोगी, अभी शादी नहीं हुई न तुम्हारी.’’

‘‘हां, नहीं हुई शादी. पर आप की इस बात से सहमत हूं कि पतिपत्नी में आपसी सम झ का होना बहुत जरूरी है. आप तो अक्षय के बारे में सुनते ही बेचैन हो गए और सोचो अगर मैं उस दिन नमिता को आप के और अपने रिश्ते के बारे में बता देती तो क्या होता? वह भी ऐसे ही निराश होती न?’’

सुजीत चुपचाप अमोली को सुन रहा था.

‘‘देखिए, पत्नी या पति के अपनेअपने अलग दोस्त हो सकते हैं, फिर दोस्त चाहे महिला हो या पुरुष, इस में कुछ गलत नहीं है. पर आप अगर नमिता को बिना बताए मु झ से दोस्ती रख सकते हैं तो नमिता किसी अक्षय से क्यों नहीं? आप मु झे पहले से पसंद करते थे और मेरा साथ चाहते थे तो नमिता को भी यह अधिकार होना चाहिए कि ऐसे किसी पसंद करने वाले से अपना संबंध न तोड़े और आप को इस की जानकारी भी न दे. क्या कुछ गलत कहा मैं ने?’’

‘‘पर नमिता से शादी मेरी मरजी के खिलाफ हुई थी.’’

‘‘तो इस में उस का क्या दोष? फिर यह भी तो हो सकता है कि वह भी किसी और से करना चाह रही हो शादी, पर उस के मम्मीपापा को आप पसंद थे.’’

कुछ देर तक सोचने के बाद सुजीत बोला, ‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो… ये

बातें तो कभी मेरे दिमाग में आई ही नहीं.’’

अमोली खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘मेरा मजाक उड़ा रही हो,’’ सुजीत के चेहरे पर बेचारगी झलक रही थी.

‘‘नहीं बाबा, खुद पर हंस रही हूं… पता है, अक्षय नामक किरदार मैं ने आज ही गढ़ा है. ऐसा कोई व्यक्ति नमिता की जिंदगी में नहीं है और कभी था भी नहीं. मेरा मकसद आप को इस रिश्ते की अहमियत तक लाना था जिसे आप भूल चुके थे.’’

‘‘तुम खूबसूरत ही नहीं गजब की सम झ भी रखती हो,’’ सुजीत अमोली को देख मुसकरा दिया.

‘‘नहीं, मैं एक औरत होने के नाते औरत के मन को सम झती हूं बस. मु झ से भी जिंदगी में कोई भूल हो सकती है… मेरे दोस्त बने रहना और ऐसे वक्त पर सही राह दिखाना मु झे,’’ अमोली भी मुसकरा दी.

कौफी पी कर दोनों बाहर आए तो हमेशा की तरह सुजीत ने अमोली को मैट्रो स्टेशन तक छोड़ने के लिए अपनी कार में बैठा लिया. रास्ते में एक जगह कार रोक कर कुछ लाने बाहर चला गया. जब लौटा तो साथ में लाए पैकेट को डैशबोर्ड पर रख दिया. अखबार के कागज में डोरी में बंधे पैकेट से  झांकते सफेद फूलों को देख अमोली सम झ गई कि सुजीत सड़क के किनारे बैठी गजरेवाली से रात की रानी के फूलों का गजरा खरीद लाया है. वह जानती थी कि नमिता को बालों में गजरा लगाना बहुत पसंद है. फूलों की सुगंध कार में फैल गई.

‘अब इन रात की रानी के फूलों की तरह सुजीत और नमिता का जीवन भी प्रेम की महक से सराबोर होने वाला है,’ सोच कर अमोली मन ही मन मुसकरा उठी.

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