रेत का समंदर: जब जूलिया मार्टिन की हरीश से हुई मुलाकात

Serial Story: रेत का समंदर (भाग-3)

आधापौना घंटा उन्होंने आराम किया होगा कि अम्माजी ने उन को बाजरे की रोटी और गुड़ की डली थमा दी. साथ में रेगिस्तानी इलाके में मिलने वाली झाड़ी की चटनी भी थी. ऐसा खाना उन के लिए निहायत रूखासूखा था, लेकिन भूख सख्त लगी होने से उन को वह बहुत स्वादिष्ठ लगा. खाना खाने के बाद दोनों पुआल के उसी ढेर पर सो गए.

वह झोंपड़ा रहमत अली खान का था. वह इलाके का जमींदार था. रेगिस्तानी इलाके में खेती कहींकहीं होती थी. शाम ढलते ही रहमत अली खान और उस के चार बेटे ढाणी में आए. एक अनजान ऊंट को, जिस की पीठ पर 2 आदमियों के बैठने वाली कीमती काठी बंधी थी, झोंपड़े के एहाते में चारा खाते देख चौंके.

कौन आया था ढाणी में, कोई पाक रेंजर या सेना का अफसर, लेकिन यहां क्यों आया?

रहमत अली ने झोंपड़े के दरवाजे की सांकल बजाई. अपने बेटे को देखते ही अम्माजी ने उस को अंदर आने का इशारा किया. पुआल पर सो रहे जोड़े को देख कर रहमत अली चौंका, ‘‘कौन हैं ये दोनों?’’

‘‘परली तरफ से भटक कर आया जोड़ा है. रात को चली आंधी में ऊंट भटक गया. सरहद पर लगी बाड़ की तार उखड़ गई होगी.’’

बातचीत की आवाज से जोड़े की नींद खुल गई. दोनों उठ कर बैठ गए.

‘‘सलाम साहब. सलाम मेमसाहब.’’

‘‘सलाम.’’

‘‘यह पाकिस्तानी इलाका है. यह ढाणी मेरी है.’’

‘‘हम भटक कर इधर आ गए.

अब आप ही हमें कोई रास्ता बता दीजिए,’’ हरीश ने विनम्रतापूर्वक उस से कहा.

‘‘अब तो रात होने वाली है. कल सुबह आप को अपने साथ ले चलूंगा,’’ रहमत अली ने उसे आश्वासन देते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मेहरबानी,’’ हरीश ने उम्मीद भरी आंखों से देख कर कहा.

रात को उन की अच्छी आवभगत हुई. सुबह अभी पौ भी नहीं फटी थी कि पाकिस्तानी रेंजरों का एक दस्ता ऊंटों पर सवारी करता ढाणी के समीप आ कर रुका. रहमत अली से कइयों का परिचय था. कई बार वे उस के आतिथ्य का आनंद ले चुके थे.

ऊंटों की हुंकार सुन कर रहमत अली के साथ परिवार के कई और लोगों की भी नींद खुल गई. आंखें मलता रहमत अली बाहर आया.

‘‘सलाम, हुजूर.’’

‘‘सलाम, रहमत अली. कैसे हो?’’

ऊंट से उतरते सुपरिंटेंडैंट रेंजर ने पूछा.

‘‘आप की दुआ से सब खैरियत है. बहुत दिनों बाद दीदार हुए आप के. क्या हालचाल हैं?’’

‘‘सब खैरियत है.’’

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सारे रेंजर ढाणी में चले आए. उन की आवभगत हुई, जलपान का इंतजाम हुआ, तभी अहाते में बंधे ऊंटों में हड़कंप सा मच गया. रहमत अली के ऊंटों में एक नया ऊंट आया था. उस अजनबी ऊंट को अपने रेवड़ में शामिल होना ऊंटों को शायद सहन नहीं हुआ था.

‘‘क्या हुआ?’’ सुपरिंटेंडैंट ने पूछा.

‘‘ऊंट शायद लड़ पड़े हैं.’’

‘‘कोई ऊंट किसी ऊंटनी पर आशिक हुआ होगा. उस का दूसरा आशिक उस से लड़ पड़ा होगा.’’

सब खिलखिला कर हंस पड़े. सब उठ कर ऊंटों के रेवड़ तक पहुंचे. एक ऊंट की पीठ पर कीमती काठी बंधी थी.

‘‘इतनी बढि़या काठी तो अमीरलोग या सैरसपाटा करने वाले सैलानियों के ऊंटों पर होती है. यह ऊंट किस का है?’’

रहमत अली हकबकाया, फिर संभल गया.

‘‘हुजूर, कल रात मेरा भतीजा आया था. उस को ऊंट की सवारी का शौक है. ऊंट मेरा है. काठी वह खुद लाया था. कराची में काम करता है.’’

‘‘ओह. अच्छा रहमत अली, खुदा हाफिज.’’

रेंजर ऊंटों पर सवार हुए और चले गए. रहमत अली और सब की जान में जान आई. अगर हरीश और मेमसाहब के बारे में पता चल जाता तो वे पकड़े जाते, साथ में पनाह देने के इलजाम में रहमत अली भी फंसता.

तब तक सब जाग चुके थे. रेंजर के बारे में पता चलने पर हरीश और जूलिया भी चिंता में पड़ गए.

‘‘मेरे पास पाकिस्तान का वीजा तो है लेकिन सब कागजात तो रिसोर्ट के कमरे में हैं,’’ जूलिया ने कहा.

‘‘मेमसाहब, रेंजर अब इलाके में गश्त पर हैं. दिन में बाहर निकलना खतरनाक है. आप को शाम ढलने पर बाहर ले जा सकते हैं,’’ हरीश ने कहा.

‘‘रात के अंधेरे में फिर रास्ता भटक गए तो?’’ हरीश ने घबरा कर पूछा.

‘‘तसल्ली रखो साहब, इलाके का चप्पाचप्पा मेरा पहचाना हुआ है.’’

 

शाम ढल गई. 2 ऊंट ढाणी से बाहर निकले. एक पर हरीश और मेमसाहब सवार थे, दूसरे पर रहमत अली. ऊंट भारतीय सीमा की दिशा में चल पड़े. शाम का धुंधलका अंधेरे में बदल चुका था. गरमी का अब कोई असर नहीं था. मौसम धीरेधीरे ठंडा होता जा रहा था. दोनों ऊंट अपने रास्ते पर चलते लगातार मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे.

‘‘सफर कितना बाकी है?’’ जूलिया ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘सिर्फ 1 घंटा और लगेगा,’’ रहमत अली ने कहा.

आंखों पर अंधेरे में भी दिख जाने वाली दूरबीन चढ़ाए पाक रेंजर चौकी के आसपास और भारतीय सीमा की तरफ नजर गड़ाए हुए थे.

‘‘सर, 2 ऊंट भारतीय सीमा की तरफ बढ़ रहे हैं,’’ एक सिपाही ने दूरबीन पर निगाह गड़ाए हुए कहा.

‘‘कौन हो सकते हैं?’’

‘‘पता नहीं, सर, एक ऊंट पर 2 सवार बैठे हैं, दूसरे पर केवल 1 सवार है.’’

‘‘वार्निंग के लिए फायर करो.’’

एक हवाई फायर हुआ. रहमत अली समझ गया. अब उस का देखा जाना खतरे से खाली नहीं था. उस ने बगैर एक क्षण गंवाए अपना ऊंट मोड़ लिया.

‘‘साहब, मैं अब वापस जाता हूं. मैं देख लिया गया तो मुश्किल में पड़ जाऊंगा. अब आप खुद आगे जाओ, खुदा हाफिज.’’

रहमत अली ने ऊंट को एड़ लगाई, ऊंट दौड़ चला.

‘‘अब क्या करें?’’ जूलिया ने सहमी आवाज में पूछा.

‘‘हौसला रखो,’’ हरीश ने कहा और ऊंट की पहले रस्सी खींची और फिर ढीली करते हुए उसे टहोका दिया. ऊंट सरपट रेत पर दौड़ पड़ा.

‘‘सर, एक ऊंट वापस दौड़ गया, दूसरा भारतीय सीमा की तरफ दौड़ रहा है,’’ निगहबानी करने वाले सिपाही ने अपने अधिकारी से कहा.

‘‘वापस जाने वाला सवार और ऊंट तो काबू में नहीं आ सकते, कोई लोकल ही होगा. तुम आगे जा रहे ऊंट और उस पर सवार जोड़े को काबू करो.’’

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पहले एक हवाई फायर हुआ. फिर जमीनी फायरों का सिलसिला शुरू हुआ. उस के बाद कई रेंजर अपनेअपने ऊंटों पर सवार हो उस तरफ लपक पड़े.

चांद आसमान पर चढ़ रहा था. रेत का समंदर चांदनी में ऐसे चमक रहा था जैसे चांदी की चादर बिछी हो. 2 सवारों को रात की पिछली पहर से अपनी पीठ पर ढो रहे ऊंट को जैसे खतरे की गंभीरता का एहसास हो चुका था, वह तेजी से सरपट दौड़ रहा था.

‘‘साहब, कमाल की बात है?’’ एक पाक रेंजर ने अपने साथ दौड़ रहे ऊंट पर सवार अफसर से हैरत में कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘भाग रहा ऊंट दोदो सवार उठाए हुए है, लेकिन फिर भी काबू में नहीं आ रहा. हम अकेले सवार हैं लेकिन हमारे ऊंट की स्पीड इतनी नहीं है.’’

‘‘अरे भाई, मौत का डर हर किसी को कुछ ज्यादा ताकत और जोश दिला देता है.’’

भारतीय सीमा में बीती रात को ढह गई तार की बाड़ को भारतीय फौजी ठीक कर रहे थे. उन्होंने हवाई फायरों और फिर जमीनी फायरों की लगातार आवाजें सुनीं. उन्होंने आंखों पर रात के अंधेरे में दिखने वाली दूरबीनें लगा कर देखा. एक ऊंट पर 2 सवार सामने से आ रहे थे.

फौजियों को ध्यान आया कि कल रात से ऊंट पर सवार एक टूरिस्ट जोड़ा लापता था. उन को सारा मामला समझ में आ गया. धीरेधीरे पाक रेंजर पीछा करते आ रहे थे.

भारतीय फौजियों ने फौरन अपना मोरचा संभाल लिया. ऊंट पर सवार जोड़े ने जैसे ही सीमा को पार कर भारतीय सीमा में प्रवेश किया, उन्होंने पहले हवाई फायर किया, फिर सर्चलाइट का प्रकाश फेंका.

पाक रेंजर वापस लौट गए. हरीश और जूलिया देर रात को सेना  की मदद से सुरक्षित अपने रिसोर्ट में पहुंच गए. अपने कमरे में पहुंच उन्होंने राहत की सांस ली. पर तब तक रेत के इस समंदर में सैर करतेकरते जूलिया हरीश को अपना दिल दे चुकी थी. हरीश को भी जूलिया भा गई थी. जब दोनों जयपुर लौटे, हरीश ने अपने घर में दिल की बात कह दी. हरीश के मातापिता सब समझ गए. जूलिया मार्टिन का भी पूरा परिवार भारत आया. दोनों की शादी बहुत धूमधाम से हुई.

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Serial Story: रेत का समंदर (भाग-2)

दृश्य रोमांटिक था. जूलिया ऊंट वाले की आंखों की चमक से उस की शरारत को समझ गई और मुसकराई. हरीश भी मुसकराया. दोनों एक ही ऊंट पर सवार हो गए. ऊंट वाला ऊंट की रस्सी थामे आगेआगे चला. ऊंट हिचकोले खाता, दोनों के शरीर आपस में टकराते, पहले थोड़ा संकोच हुआ फिर दोनों को मजा आने लगा.

ऊंट वाला तजरबेकार था. जोड़ों का इस तरह मौजमस्ती करना और अठखेलियां करना उस का देखाजाना था.

‘‘साहब, ऊंट इस इलाके को पहचानता है. मैं एक जगह बैठ जाता हूं, यह आप को घुमाता रहेगा. इस को बिठाना हो तो इस के कंधे को पांव से हलका टहोका देना. यह बैठ जाएगा. खड़ा करना हो तब भी ऐसा ही करना.’’

ऊंट वाला रस्सी जूलिया को थमा कर एक तरफ चला गया. ऊंट गोलाकार घूमता हुआ एक दायरे से दूसरे दायरे में चलता रहा. दूरदूर तक रेत किसी समंदर के पानी की तरह फैला हुआ था. टिब्बों के पीछे जोड़े एकदूसरे में खोए हुए थे.

हिचकोले लगने से जूलिया और हरीश के शरीर आपस में टकराते, पीछे हटते फिर टकराते. जूलिया एकाएक उचकी और पलट कर सीधी हो हरीश की तरफ मुंह कर के बैठ गई. अब दोनों आमनेसामने थे. सीने से सीना टकरा रहा था. थोड़ी देर ऐसा चला, फिर जूलिया ने बांहें फैला हरीश को अपनी बांहों में भर लिया. हरीश ने ऊंट को पांव का टहोका दिया, वह बैठ गया.

दोनों नीचे उतर रेत के नरम बिस्तर पर जा लेटे. दोनों के हाथ एकदूसरे की तरफ बढ़े, आंखें एकदूसरे में कुछ ढूंढ़ रही थीं दोनों दीनदुनिया से बेखबर धीरेधीरे एकदूसरे में समाते गए.

आसमान में सीधा दिखता चांद धीरेधीरे पश्चिम दिशा की तरफ उतरने लगा. रात गहरी और ठंडी होती गई. देह की उत्तेजना थम चुकी थी. दोनों एकदूसरे की बांहों में समाए मीठी नींद के आगोश में थे. ऊंट भी सो गया था.

शांत शीतल रात के आखिरी पहर में हवा अचानक तेज हो गई. मीठी नींद का आनंद लेते जोड़े अचकचा कर उठ बैठे. सब अपनेअपने कपड़े संभालते ऊंटों पर सवार होने लगे. अनुभवी ऊंट वाले मौसम का रुख समझ गए. रेगिस्तानी आंधी आ रही थी. कइयों ने अपनेअपने ऊंट बिठा दिए और सवारियों को उन के पीछे आंधी थम जाने तक ओट में बैठे रहने को कहा.

जूलिया और हरीश के ऊंट वाले का कहीं पता नहीं था. आंधी अभी बहुत तेज नहीं हुई थी.

‘‘हम ऊंट पर सवार हो कर चलते हैं. गोल चक्कर काट लेते हैं. ऊंट वाला शायद इधरउधर ही हो,’’ जूलिया ने कहा.

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ऊंट धीरेधीरे दायरे में चलने लगा. तभी आंधी एकदम तेज हो गई. घबरा कर ऊंट सरपट दौड़ पड़ा. हरीश ने टहोके पर टहोके दिए. लेकिन थमने के बजाय वह तो तेजी से दौड़ने लगा. हरीश के पीछे बैठी जूलिया ने उस को पीछे से बांहों में कस कर जकड़ लिया.

आंधी का वेग बढ़ता गया. सुहानी चांदनी रात रेतीली अंधियारी रात में बदल गई. तेज अंधड़ का यह भयावना रूप जूलिया को बेसब्र बना रहा था.

वह ऊंची आवाज में लगातार बोले जा रही थी, ‘‘ऊंट को बिठाने की कोशिश करो.’’

हरीश ने रस्सी  कस कर खींची, टहोका दिया. ऊंट धीरेधीरे थमने लगा. सामने एक जंगली झाड़ दिखा. ऊंट वहीं रुक गया. फिर से टहोका देने पर वहीं बैठ गया. दोनों उतर गए. आंधी शांत हो रही थी.

रात बीत चुकी थी. मौसम साफ था. दोनों उठे और ऊंट पर सवार हो गए. ऊंट खड़ा हो चलने लगा. दोनों ने बेचैन नजरों से इधरउधर देखा. हर तरफ जैसे रेत का समंदर फैला था. कहींकहीं रेतीला सपाट मैदान था तो कहीं ऊंचेनीचे रेत के टिब्बे. कहीं भी कोई आबादी, जानवर, आदमी या पेड़पौधे कुछ भी नहीं. सब तरफ रेत ही रेत.

‘‘हम रिसोर्ट से किस दिशा में हैं?’’ जूलिया ने भरसक अपनी घबराहट को काबू में रखते हुए कहा.

जूलिया के इस सवाल का जवाब हरीश क्या देता. उस ने ऊंट की रस्सी को एक बार खींचा और ढीला छोड़ दिया. ऊंट हिचकोले देता धीरेधीरे चल पड़ा. हालात समझ से बाहर थे.

परिस्थिति जो कराए, यही भावना दोनों के भीतर भर रही थी. ऊंट जाने कहां किस लक्ष्य की ओर चल रहा था. दोनों चुपचाप बैठे चारों तरफ देख रहे थे. प्यास से गला सूख रहा था, भूख भी लग आई थी. रात के रोमांस, उमंग और उत्तेजना का अब कहीं कोई वजूद नहीं था, मानो नींद में कोई सुंदर सपना देख लिया हो.

‘‘सुना है इस इलाके के साथ पाकिस्तान का इलाका लगा हुआ है,’’ काफी देर बाद खामोशी तोड़ते हुए जूलिया ने कहा.

‘‘हां, साथ का इलाका पाकिस्तान का है लेकिन सीमा पर कांटेदार बाड़ है.’’

‘‘रेत के तूफान में बाड़ उजड़ भी तो सकती है,’’ जूलिया की आवाज में डर छिपा था.

‘‘आप का मतलब है हम कहीं भटक कर पाकिस्तान की सीमा में तो प्रवेश नहीं कर गए?’’ हरीश चौंका.

‘‘मेरा अंदाजा तो यही है. ऊंट को चलतेचलते 3-4 घंटे हो चुके हैं. अगर हम रिसोर्ट के करीब होते या भारतीय सीमा में होते तो अब तक कहीं न कहीं तो पहुंच गए होते,’’ जूलिया ने बहुत इत्मीनान से परिस्थिति को समझने की कोशिश की.

‘‘थोड़ा आगे चलो, फिर ऊंट की दिशा मोड़ते हैं. पाकिस्तान भारत के पश्चिम में है. सूरज हमारे पूर्व से अब सीधा आसमान में हमारे सिर के ऊपर है. इस हिसाब से हम जैसलमेर के उस टूरिस्ट रिसोर्ट से पश्चिम में हैं. पाकिस्तान में न भी हों, तब भी पश्चिम दिशा में काफी दूर चले आए हैं,’’ अब जैसे हरीश की चेतना भी जगी.

ऊंट आगे बढ़ता रहा.

‘‘प्यास से मेरा गला सूख रहा है,’’ हरीश ने बर्दाश्त न कर पाने की दशा में कह ही दिया.

‘‘अपनी उंगली से अंगूठी उतार कर चूस लो,’’ जूलिया को व्यावहारिक समझ अधिक थी.

हरीश ने ऐसा ही किया. जूलिया भी अपनी उंगली मुंह में डाल कर चूसने लगी. थूक और लार गले की खुश्की को दूर करने लगे. तभी कुछ देख कर हरीश चौंका और जोर से बोला, ‘‘सामने कोई गांव है.’’

कुछ नजदीक पहुंचने पर मिट्टी की कच्ची दीवारों और बांस व पेड़ की डालियों से बने झोपड़े दिखने लगे. वह गांव पाकिस्तानी था या भारतीय, अभी यह समझ में नहीं आ रहा था. सीमा के दोनों तरफ के गांव, खासकर रेगिस्तानी इलाके के गांव एकसमान ही हैं. आखिर भारत और पाकिस्तान कभी एक देश ही तो थे.

‘‘यह गांव भारतीय है या पाकिस्तानी?’’ जूलिया ने पूछा.

‘‘रेगिस्तानी इलाके में जहांतहां ऐसे कुछेक झोंपड़े बने होते हैं, इन को ढाणी कहा जाता है, गांव नहीं. ढाणी भारतीय इलाके में हो या पाकिस्तानी इलाके में, एक समान ही दिखते हैं. यहां के लोगों का पहनावा, खानपान और बोली सब एक जैसी होती है.’’

‘‘अगर यह ढाणी पाकिस्तान में हुई तो?’’

‘‘देखा जाएगा. प्यास से गला खुश्क है, भूख से अंतडि़यां सूख रही हैं. ऊंट भी प्यासा है, अब वहीं चलते हैं.’’

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ऊंट ढाणी के करीब पहुंचा. आसमान पर चढ़ता सूरज आग बरसा रहा था. दोपहर अभी चढ़ी नहीं थी लेकिन गरमी से धरती और आसमान सब तप रहा था.

ढाणी में मुश्किल से 10-12 झोपडि़यां थीं. सब के दरवाजे बंद थे. एक बड़े एहाते में एक बड़ा पोखर था जिस में जमा पानी का रंग लगभग हरा था. उस के किनारों पर काई जमा थी.

ऊंट पानी देखते ही मचला. हरीश ने टहोका दिया. ऊंट बैठ गया. दोनों के उतरते ही ऊंट पानी के पोखर की तरफ लपका और सड़ापसड़ाप की आवाज के साथ पानी गटकने लगा.

प्यास से गला तो जूलिया और हरीश का भी सूख रहा था, लेकिन दोनों ऊंट की तरह पोखर का पुराना, काई वाला पानी कैसे पीते?

दोनों ने चारों तरफ नजर दौड़ाई. पोखर के चारों तरफ झोंपडि़यों के दरवाजे बंद थे. किस का दरवाजा खटखटाएं. तभी सामने की झोंपड़ी का दरवाजा खुला. एक वृद्धा ने, जिस ने झालरचुनटदार घाघरा व चोली पहन रखी थी और सिर पर दुपट्टा डाल रखा था, दरवाजे से बाहर झांका.

एक वृद्धा को यों देख हरीश उस के घर के दरवाजे के सामने गया और बोला, ‘‘अम्माजी, पांय लागूं.’’

‘‘जीते रहो, बेटा. यहां कैसे आए?’’

‘‘आंधी में ऊंट रास्ता भटक कर इधर चला आया.’’

‘‘कहां से आए हो?’’

‘‘जैसलमेर से.’’

‘‘हाय रब्बा, यह तो मुन्ना बाओ का इलाका है, पाकिस्तान है. यहां रेंजरों ने तुम्हें देख लिया तो गोली मार देंगे. जल्दी से अंदर चले आओ.’’

जूलिया मार्टिन का अंदाजा सही था. रेत के तूफान में ऊंट रास्ता भटक कर पाकिस्तान में प्रवेश कर गया था. अब सामने हर पल खतरा दिख रहा था.

‘‘ऊंट को दरवाजे के खंभे के साथ बांध दो और जल्दी से अंदर आ जाओ,’’ अनजान वृद्धा ने चाव और अपनेपन से  कहा.

दोनों ऐसा ही कर जल्दी से झोंपड़े के अंदर चले गए. मिट्टी या गारे की दीवारों से बने उस झोंपड़े में गरमी के मौसम में भी ठंडक थी. मटके का पानी बर्फ के समान शीतल था. गड़वा के बाद गड़वा, लगातार कई गड़वे पानी दोनों ने पिया. फिर अम्माजी ने उन को गुड़ का मीठा ठंडा शरबत पीने को दिया. दोनों फर्श पर पड़े फूस के ढेर पर जा लेटे. अम्माजी बाहर जा कर ऊंट को पुआल और चारा डाल आईं.

आगे पढ़ें- आधापौना घंटा उन्होंने आराम किया होगा कि…

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Serial Story: रेत का समंदर (भाग-1)

हवामहल से बाहर आ कर जूलिया मार्टिन ने इधरउधर देखा, थोड़ी दूर पर आटोरिकशा स्टैंड था, जहां पर काले रंग पर पीली पट्टी वाले कई आटोरिकशा कतार में खड़े थे. सधे कदमों से चलती वह वहां तक पहुंची.

सलवारकमीज पहने और कंधे पर खादी का झोला लटकाए एक अंगरेज मेमसाहब को अपने आटो के समीप आते देख जींस और टीशर्ट पहने दरम्यानी कदकाठी और चुस्त शरीर वाला चालक अपने आटो से बाहर आ गया.

‘‘फोर्ट औफ आमेर,’’ जूलिया ने केवल इतना कहा.

हामी में सिर हिलाते चालक ने पिछली सीट पर बैठने का इशारा किया. सवारी के बैठते ही वह आटो ले कर चल पड़ा.

जूलिया मार्टिन इंगलैंड से भारत घूमने के लिए आई थी. कई शहरों और दर्शनीय स्थलों से घूमघाम कर अब वह जयपुर और राजस्थान के दूसरे दर्शनीय स्थलों को देखने आई थी.

आटोरिकशा को आमेर के किले के बाहर इंतजार करने को कह कर वह किला देखने अंदर चली गई. 2 घंटे बाद बाहर आई तो उस ने देखा आटो चालक पिछली सीट पर अधलेटा सो रहा था. एक बार उस ने सोचा कि उस को झिंझोड़ कर उठा दे. फिर यह सोच कर कि नींद से जगाना ठीक नहीं, वह चालक वाली सीट पर बैठ कर इंतजार करने लगी. और उसे पता भी नहीं चला कि कब वह ऊंघतेऊंघते सो गई.

किले से बाहर आते पर्यटकों ने इस अजीब नजारे को हैरत से देखा. यात्री तो चालक सीट पर बैठा हैंडल पर सिर रखे सो रहा था जबकि चालक पिछली सीट पर अधलेटा सो रहा था.

पहले कौन जागा पता नहीं. घंटेभर बाद दोनों की नींद टूटी. गरम दोपहरी, हलकी-हलकी हवा देती शाम में बदल गई थी.

‘‘मेमसाहब,’’ थोड़ा सकुचाते हुए आटो चालक यानी हरीश बोला.

‘‘डोंट माइंड, आई वाज आल्सो टायर्ड.’’

टूटीफूटी अंगरेजी बोलने और काम  लायक समझने वाला हरीश मुसकराया. जूलिया मार्टिन भी मुसकराई. वह हंसते हुए पिछली सीट पर आ बैठी. आटो स्टार्ट कर हरीश ने सिर घुमा कर उस की तरफ सवालिया लहजे में देखा.

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‘‘बैक टू जयपुर.’’

आटोरिकशा के जयपुर पहुंचतेपहुंचते शाम का अंधेरा छा गया था. उस के बताए लौज के बाहर आटो रोक हरीश ने उस की तरफ देखा.

‘‘कितना चार्ज हुआ?’’

हरीश हिसाब लगाने लगा. आनेजाने का किराया उतना नहीं था जितना समय का चार्ज था. लेकिन वह खुद भी तो झपकी लगतेलगते सो गया था.

‘‘मेमसाहब, जो ठीक समझें, दे दें.’’

इस सादगी भरे जवाब में जूलिया मुसकराई. अभी तक उस का वास्ता ज्यादा पैसा ऐंठने वाले आटो चालकों और दुकानदारों से पड़ा था. उस ने 500-500 रुपए के 2 नोट निकाले और उस की तरफ बढ़ाए. सकुचाते हुए हरीश ने एक नोट थाम लिया और कहा, ‘‘इतना काफी है.’’

हरीश के व्यवहार ने जूलिया मार्टिन को बहुत ही प्रभावित किया.

‘‘कल सुबह यहां आ जाना, 10 बजे,’’ कहती हुई जूलिया मार्टिन लौज के अंदर चली गई. हरीश भी आटो आगे बढ़ा ले चला. अब उस का दिल और अधिक दिहाड़ी बनाने का नहीं था. वह सीधे अपने घर पहुंचा.

उस की मां ने उस को जल्दी आया देख कर पूछा, ‘‘आज जल्दी आ गया?’’

‘‘आज एक अंगरेज मेमसाहब मिल गई थी. उस से सारे दिन की दिहाड़ी बन गई,’’ फिर उस ने सारा वाकेआ बताया. मां के साथ उस के वृद्ध पिता और छोटी बहन भी खिलखिला कर हंस पड़ी.

अगले दिन हरीश 10 बजे लौज के बाहर आटोरिकशा ले कर जा पहुंचा. जूलिया जैसे उसी का इंतजार कर रही थी. वह लपकती सी बाहर चली आई.

‘‘आज कहां?’’ हरीश ने पूछा.

‘‘सारा जयपुर.’’

‘‘ठीक है. तेल का खर्चा आप का, मेरी दिहाड़ी 500 रुपए.’’

‘‘ऐसा हिसाब हमारे यहां नहीं होता.’’

‘‘तब कैसा होता है?’’

‘‘वहां तो काफी महंगा पड़ता है. चालक और गाड़ी का किराया अलग, तेल व मरम्मत खर्च अलग.’’

‘‘मैडम, मैं तो सोचता हूं कि भारत के बनिए ही पैसा ऐंठने में चालाक हैं, अब आप के हिसाब से तो आप अंगरेज ज्यादा चालाक हैं.’’

‘‘बातें बढि़या करते हो. आटो चलाओ, सारा दिन तुम्हारी बातें सुनूंगी,’’ जूलिया मार्टिन ने हंसते हुए कहा.

हरीश भी हंसा. आटो पूरे दिन जयपुर के छोटेबड़े बाजार, हर टूरिस्ट स्पौट पर घूमता रहा. सुबह हरीश ने टंकी फुल भरवा ली थी. शाम को जूलिया ने दोबारा टंकी फुल भरवा दी और भुगतान कर दिया.

दिनभर उन के बीच हलकाफुलका हंसीमजाक होता रहा. दोनों ने साथसाथ कभी ढाबे में, कभी होटल में खायापिया. उस के इसरार पर हरीश उस के साथ टूरिस्ट स्पौट भी देखने गया. हरीश उस शाम भी जल्दी घर लौट आया. अगले दिन जयपुर के बाहरी इलाकों वाले टूरिस्ट स्पौट्स देखने का कार्यक्रम बना. 3-4 दिनों तक यही सिलसिला चला.

‘‘हरीश, वह मेमसाहब तेरे पीछे पड़ गई है क्या?’’ मां ने पूछा.

‘‘पता नहीं, एक सवारी है. जहां वह कहती है, उसे घुमा देता हूं.’’

‘‘शहर में और भी तो आटोरिकशा वाले हैं?’’

हरीश खामोश रहा.

अगले दिन जूलिया मार्टिन ने उस को अपने लौज के कमरे में बुलाया.

‘‘आप के परिवार में कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरे मातापिता हैं. छोटी बहन है. बात क्या है?’’

‘‘मैं समाज विज्ञान के एक टौपिक पर शोध कर रही हूं, जिस का ताल्लुक भारतीय समाज से है. इसी सिलसिले में भारत घूमने आई हूं. तथ्य इकट्ठे करने के लिए आप के परिवार से मिलना चाहती हूं.’’

हरीश को बात समझ में आ गई. वह जूलिया को अपने घर ले गया. एक अंगरेज युवती को पंजाबी सलवारकमीज पहने और चुन्नी डाले देख हरीश की

मां बड़ी हैरान हुईं. उन को यह जान कर हैरानी हुई कि वह एक रिसर्च स्कौलर थी.

भारतीय परिवार कैसे होते हैं? रहते कैसे हैं? हालांकि उन की जीवनशैली पर सैकड़ों शोध पहले हो चुके थे लेकिन अब जूलिया भी इस विषय पर रिसर्च कर रही थी.

जूलिया का हरीश के घर आनाजाना शुरू हो गया. हरीश के साथ उस का जयपुर की गलियों, महल्लों में घूमनाफिरना भी होने लगा.

‘‘आप मेरे साथ राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में घूमने चलोगे?’’ एक शाम जूलिया ने पूछा.

‘‘जरूर चलूंगा,’’ हरीश कह तो आया, लेकिन घर में मां ने पूछा, ‘‘तेरी दिहाड़ी का क्या होगा?’’

पहले तो हरीश अचकचाया, फिर जवाब दिया, ‘‘मेमसाहब देंगी.’’

‘‘घुमानेफिराने के लिए गाइड होते हैं?’’

‘‘वह मुझे गाइड ही बनाना चाहती है.’’

‘‘भैया, गाइड बनतेबनते कुछ और न बन जाना,’’ छोटी बहन शरारती लहजे  में बोली.

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टूरिस्ट बस ने जूलिया और उस के गाइड हरीश को जैसलमेर के रेगिस्तानी इलाके में एक टूरिस्ट रिसौर्ट के पास उतार दिया. वहां का प्रति यात्री किराया हरीश को हैरानपरेशान कर देने वाला था, लेकिन मेमसाहब के लिए यह सामान्य बात थी.

मौजमस्ती के कार्यक्रमों में ऊंटों पर रेगिस्तान के सुदूरवर्ती इलाकों का भ्रमण और खानापीना, यही वहां का मुख्य आकर्षण था.

गोरी मेमों को ऊंटों पर बिठा कर चांद की रोशनी में रेत के विशाल मैदान दिखाना, जो किसी समंदर के समान दिखते थे, अलगअलग दिशाओं में सैर करवाना, उन्हें राजस्थानी लोकगीत व नृत्य सुनाना, दिखाना वहां के ऊंट वाले और स्थानीय निवासी बड़े उत्साह से करते. पर्यटक भी शांत व ठंडी हवा में टिब्बों की आड़ में मौजमस्ती करने का अवसर पा कर विशेष उत्साहित होते थे.

‘‘आप इस इलाके में कभी आए हो?’’

‘‘नहीं, मैं ने सारा राजस्थान नहीं देखा,’’ हरीश ने कहा.

‘‘मेमसाहब, आप और साहब अलगअलग ऊंट ले कर क्या करेंगे? एक ही ऊंट काफी है,’’ किराए पर ऊंट देने वाले ने कहा.

‘‘एक ऊंट पर दोनों कैसे बैठेंगे?’’

‘‘वह देखिए, सामने कई जोड़े एक ही ऊंट पर बैठे चले जा रहे हैं,’’ रेत के विस्तार में हौलेहौले जा रहे ऊंटों पर सवार जोड़ों की तरफ इशारा करते हुए ऊंट वाले ने कहा.

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दो बहनें: क्या हुआ शीला और प्रीति के बीच?

Serial Story: दो बहनें (भाग-3)

‘‘तुम इतनी घबरा क्यों रही हो? तुम कांप रही थीं, इसलिए मैं ने तुम्हें पकड़ा था,’’ सिड बोला.

‘सिड, वह पहले ही तुम पर शक करती है, अब तो बात और भी बिगड़ जाएगी,’ वह बुदबुदाई, ‘क्या शीला कहीं से देख रही है?’

‘‘पार्टी कैंसिल करनी पड़ेगी, सिड. मेरा मन नहीं है,’’ प्रीति अब शीला की बात से डर रही थी. कहीं वह सचमुच न आ जाए. कहीं रहस्य खुल न जाए.

साल का आखिरी दिन था. शाम के 7 बजे थे, फिर भी प्रीति ने सभी नौकरों को छुट्टी दे दी थी. पीछे मंद स्वर में म्यूजिक औन था. सिड किचन काउंटर के बगल में एक ऊंचे स्टूल पर बैठा मार्टीनी की छोटीछोटी चुस्कियां ले रहा था और पिछले 15 मिनटों से प्रीति की किचन में आगेपीछे चलने की कदमताल सुन रहा था. लेकिन उस की नजरें बाहर फाटक पर टिकी हुई थीं. प्रीति घड़ीघड़ी रुकती, आह भरती और उस के कंधे पर अपना सिर रख देती. सिड तब हलके से उस का सिर थपथपाता, दिलासा देता.

‘‘ओह, कितना अनप्लेजेंट लग रहा है,’’ वह कहती, ‘‘उसे हमारे मजे वाले दिन को खराब कर के क्या मिला? हाऊ सैल्फिश.’’

सिड की समझ में नहीं आ रहा था कि प्रीति को हुआ क्या है?

‘‘तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं, बेबी. ऊपर रखा है, बैडरूम में,’’ कह कर सिड ने उस का माथा चूम लिया.

प्रीति अपनी धुन में बोले जा रही थी, ‘‘फिर भी, मेरा 16वां जन्मदिन ही बैस्ट था. शुरू से अंत तक शीला का प्लान किया हुआ.’’

घड़ी ने 8 बजे का घंटा बजाया और उस ने सोचा, ‘मुझे नहीं लगता कि अब वह आएगी.’

‘‘चलो, किसी की नई साल की पार्टी में ही चलते हैं,’’ कह कर वह ऊपर कपड़े बदलने चली गई. कमरे में जब उसे ज्यादा ठंड महसूस हुई, उसे लगा कि सामने वाली खिड़की खुली है. सिड की लापरवाही पर सिर हिलाते हुए वह उसे बंद करने के लिए बढ़ी तो देखा कि खिड़की बंद थी. इधर उस के नथुने फड़फड़ाने लगे.

‘यह क्या? शैनल नंबर फाइव, तो यह था मेरा सरप्राइज?’

वह इसी विचार में डूबी हुई थी जब उस की नजर सामने रखी आरामकुरसी पर पड़ी. शीला उस में धंस के बैठी  सिगरेट फूंक रही थी और प्रीति को देख कर मुसकरा रही थी.

‘‘मैं ने सुना, तुम बता रही थीं सिड को अपने 16वें जन्मदिन के बारे में. तुम्हें याद रहा. दैट वाज स्वीट.’’

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प्रीति उसे फटी आंखों से देख रही थी, ‘‘मैं ने तुम्हें अंदर आते हुए नहीं देखा. तुम अंदर कब आईं?’’

‘‘काफी देर हो गई आए हुए. आंख भी लग गई थी. जगी तब जब तुम ने नौकरों को दफा करना शुरू किया.’’

सिगरेट का धुआं हवा में सांप की भांति उठ रहा था, ‘‘ओह यस, इट इज योर बर्थडे टुडे. तुम जियो हजारों साल साल के दिन हों पचास हजार.’’

‘‘यह तुम किस से बातें कर रही हो, डार्लिंग?’’ आवाज सुन कर सिड भी आ गया. शीला को देखते ही उस का चेहरा तमतमा उठा, ‘‘तुम?’’

‘‘क्यों? चौंक गए.’’

सिड कुछ बुदबुदा रहा था, मगर आवाज गले में फंस सी गई थी.

शीला का चेहरा भी कुछ पीला सा हो गया था.

‘‘सिड, तुम ने मुझे मारना क्यों चाहा?’’ शीला बोली, ‘‘मैं ने तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा था.’’

‘‘सिड ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि मैं चुपचाप खड़े हो कर तुम्हारी यह बकवास सुन रही हूं. तुम को अपने सब से प्यारे पति से ऐसे बोलने दे रही हूं,’’ शीला पर नजर गड़ाते हुए प्रीति बोली.

‘‘और तुम कर भी क्या सकती हो?’’ फिर सिड को देखते हुए जोरदार आवाज में बोली, ‘‘जब तक मुझे अपने सवाल का जवाब नहीं मिलेगा, मैं वापस नहीं जाऊंगी,’’ शीला उसी आरामकुरसी पर वैसे ही बैठी रही थी.

सिड अब नौर्मल हो गया था. वह प्रीति के कंधों को पकड़े खड़ा था.

‘‘नो बेबी, माई हाउस, माई रूल्स, माई वे. यहां बस मेरी चलती है. मुझे किसी बात का जवाब देने की जरूरत नहीं और तुम तो अब खुशीखुशी वापस जाओगी,’’ यह कह कर प्रीति ने पर्स से रिवाल्वर निकाल कर शीला पर तान दिया और कहा, ‘‘और मेरे पास तुम्हें वापस भेजने का बड़ा अच्छा रास्ता भी है.’’

सिड भौचक्का सा देख रहा था कि प्रीति को हुआ क्या है. क्या बोल रही है?

वह घबरा गया और दो कदम पीछे हट गया. फिर बुदबुदाया, ‘शीला को मारने का प्लान मैं ने और प्रीति ने खुद बनाया था पर क्या किसी को पता चल गया? प्रीति बारबार शीलाशीला क्यों कर रही है. क्यों उस कुरसी की ओर नजरें गड़ाए हुए है.’

‘‘जल्दी खत्म करो, प्रीति. प्लीज,’’ सिड कह रहा था.

‘‘पागल हो गई हो क्या?’’ अपनी घनी बरौनियों के पीछे से शीला उन दोनों को देख रही थी और धीमेधीमे मुसकरा रही थी, ‘‘तुम मुझे, अपनी बहन को मारोगी?’’ यह कह कर उस ने फिर अपनी सिगरेट का कश लिया. उस की सिगरेट की आदत काफी बढ़ गई थी. पहले वह सिर्फ स्टाइलिश लगने के लिए कभीकभार ही सिगरेट फूंकती थी. अब, एक सिगरेट खत्म होती नहीं थी कि दूसरी जल जाती थी.

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प्रीति ने अपनी उंगली रिवाल्वर के घोड़े पर घुमाई और अगले क्षण जोर से धमाका हुआ. शीला के मुंह से निकला हुआ आखिरी शब्द था, ‘‘बाय.’’

धूल और धुएं के बादलों में लिपटी हुई, वह चली गई. न कोई चीख निकली, न कोई पुकार, लेकिन प्रीति को लगा कि धमाके के बाद उस ने उस की खिंचती हुई आवाज यह कहते हुए सुनी, ‘‘जब तक मुझे अपने सवाल का जवाब नहीं मिलेगा, मैं वापस नहीं जाऊंगी.’’

धूल थम गई. धुआं खिड़की से बाहर चला गया. न जाने फिर लाश क्यों नहीं मिली?

प्रीति ने देखा कुरसी पर खून के निशान भी न थे. हां, सीट पर गोली फंसी थी. सिड जोरजोर से चीख रहा था, ‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें प्रीति. प्रीति होश में आओ. प्रीति, यू स्वीट गर्ल. प्रीति, यू आर बिग बिच.’’

बड़ा अजीब है यह मियाबीवी का जोड़ा, कैसे तुनकमिजाज हो गए हैं ये. बातबात में लोगों को काटने को दौड़ते हैं. बेवजह बहस करते हैं. खरगोश की तरह अचानक चौंक जाते हैं, बौराए से घूमते हैं. दोस्त हों या दुश्मन, अब सब इन से कतराते हैं.

हर साल प्रीति की हालत बद से बदतर होती जा रही है. सोना भी कम हो गया है. एक और अजीब आदत है प्रीति की कि वह किसी को ढूंढ़ती रहती है. उस को लगता है कि उस के आसपास कोई बैठा है, आरामकुरसी में लेटे हुए या बारस्टूल पर बैठे हुए या किचन के काउंटर पर टिके हुए कोई औरत, ऐंठती, सिगरेट फूंकती, टांग हिलाती, देख रही है, मुसकरा रही है, किसी सवाल के जवाब का इंतजार कर रही है.

प्रीति का यह बदला रुख देख कर सिड भी परेशान है. वह भी आपा खोता सा दिख रहा है.

सिड शीला के नाम पर फिल्म बनाना चाहता था पर प्रीति और सिड दोनों ने ही उस प्रसिद्ध अभिनेत्री को भगा दिया था, चिल्लाचिल्ला कर. प्रीति चीखी थी, ‘‘शीला पर फिल्म उस के मरने के बाद बनेगी. अभी वह काम बाकी है.’’

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Serial Story: दो बहनें (भाग-2)

‘‘कितनी भली लग रही हो, मेरी जान,’’ ऐसा कह कर वह एक लंबी हंसी हंसी. फिर उस ने अपनी सिगरेट का कश लिया. इस बीच, उस ने अपनी नजर प्रीति के चेहरे से नहीं हटाई.

‘‘क्या हुआ माई स्वीटनैस,’’ अपनी खनकती आवाज में वह बोलती रही, ‘‘मुझे देख कर खुश नहीं हुई?’’

प्रीति शीला को विस्फारित नेत्रों से देख रही थी. उस का मुंह एकदम सूख गया था. एक शब्द भी निकालना मुश्किल हो गया था.

‘‘नहीं,’’ आखिर एक शब्द निकल ही आया, ‘‘हमें तो लगा था कि ऐक्सिडैंट.

शीला ने धुएं का छल्ला बनाते हुए कहा, ‘‘ऐक्सिडैंट? कैसा ऐक्सिडैंट? कोई ऐक्सिडैंट नहीं हुआ था. वह तो मुझे मारने की कोशिश की गई थी जो नाकामयाब रही. हूं न तुम्हारे सामने, माई डार्लिंग,’’ वह फिर हंस दी.

लेकिन जब प्रीति उस से गले मिलने उस की तरफ बढ़ी, तो उस ने अपना हाथ उठा कर उसे आगे बढ़ने से रोक दिया, ‘‘नहीं, वहीं रहो. तुम्हें क्या लगता है, मैं भूल गई हूं, कैसी एलर्जी हो जाती है तुम्हें, मेरी सिगरेट के धुएं से. लेकिन फिर भी,’’ मुंह से धुएं का बड़ा सा बादल निकालते हुए वह बोली, ‘‘फिर भी तुम्हारा हर आशिक चेन स्मोकर था. हाऊ आइरौनिक.’’ फिर वह जोरजोर से हंसने लगी और हंसतेहंसते उस ने अपनी सिगरेट बुझा दी.

प्रीति की नजरें शीला पर से अब जा कर हट पाई थीं. गरमियों की छुट्टियों में दोनों बहनें किसी नई जगह जाती थीं, शिमला, नैनीताल, मसूरी आदि. इन की मम्मी को असल में हिलस्टेशन बहुत पसंद थे. जहां भी ये बहनें जातीं, हालात कुछ ऐसे बनते कि ये हमेशा अपने चारों तरफ अपने हमउम्र नौजवानों को पातीं. शीला से तो इन नौजवानों को डर लगता था. वह उन्हें घास भी नहीं डालती थी. मगर प्रीति का हर गरमी में एक नया अफसाना हो ही जाता था.

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‘‘मुझे तुम्हारे सभी आशिक पसंद थे, लेकिन पिन्का सब से अच्छा था. याद है?’’

खयालों में खोई प्रीति मुसकरा रही थी.

अब भी उसे याद था वह दृश्य. ऊंचाई इतनी थी कि बादल जमीन पर आ गए थे. मोटरसाइकिलों पर सवार कई सारे नौजवान दूर से आतेआते, उन तक पहुंच कर आगे निकल गए थे. बस, एक रुक कर देर तक दोनों बहनों को घूरघूर कर देख रहा था. उस के घूरने में कोई छिछोरापन नहीं था. ‘ऐसी होती हैं दिल्ली की लड़कियां,’ वह यह सोच रहा था, बाद में उस ने खुद ही यह बात प्रीति को बताई थी. वह था पिन्का. उस गरमी की छुट्टियों में पूरा शिमला प्रीति ने उस की मोटरसाइकिल पर पीछे बैठ कर देखा.

प्रीति ने आखिर कह ही दिया, ‘‘हां, मुझे अपने सभी आशिक पसंद थे, सिर्फ आखिरी वाला कभी नहीं अच्छा लगा. लेकिन मजेदार बात यह है कि बस, एक वही स्मोक नहीं करता था. जस्ट नौट माई टाइप. काश, तुम ने उस से शादी नहीं की होती,’’ सूखते गले और होंठों को गीला करने की असफल कोशिश करने लगी वह.

शीला ने एक और सिगरेट जला ली थी और बड़े ध्यान से प्रीति को देख रही थी.

‘‘सिड में बहुत सी अच्छी क्वालिटीज हैं. तुम ने उसे ठीक से नहीं समझा,’’ प्रीति बोली.

गहरी सांस लेते हुए वह बोली, ‘‘शायद, तुम ठीक कह रही हो. लेकिन उस ने मेरी कार क्यों टैंपर की?’’

प्रीति का मुंह फक् पड़ गया. बड़ी मुश्किल से वह बस इतना ही कह पाई, ‘‘ऐसा मत कहो. यह सच नहीं है. सिड तुम्हें बहुत चाहता है.’’

‘‘मैं तुम्हें बहुत कंट्रोल करती हूं, यही कह कर वह तुम्हें ले गया था न? अब वह तुम्हें कंट्रोल करता है. मुझे लगता है तुम्हें शौक है किसी न किसी के कंट्रोल में रहने का. गड़बड़ तुम में है, प्रीति.’’

वह फिर जोर से हंसने लगी. प्रीति को फिक्र हो रही थी कि आसपास वाले कहीं शिकायत न करने लगें. लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा. सब या तो खा रहे थे या बस उसे ही देख रहे थे. शीला की तरफ किसी का ध्यान न था. उस को लगा कि उस की आवाज ही नहीं निकलेगी. बड़ी मुश्किल से वह हिम्मत जुटा पाई, ‘‘शीला, यह सच नहीं है कि सिड ने तुम्हारी कार के साथ टैंपर किया था.’’

‘‘सच?’’ कुरसी से उठते हुए शीला बोली, ‘‘देखो तो. यहां मैं बातों में उलझ गई, वहां मेरा इंतजार हो रहा है. पता नहीं वह वेटर मेरा दोसा ले कर क्यों नहीं आया. बैठा होगा कहीं, इधरउधर, अपने प्यारे नेपाल के खयालों में खोया हुआ. खैर, कोई बात नहीं. आज बिना खाने के ही काम चलाना पड़ेगा. तुम से मैं बाद में मिलूंगी.’’

‘‘रुको, शीला, तुम यों नहीं जा सकतीं.’’

‘‘तुम्हारी पार्टी में आऊंगी. परसों है न? योर बर्थडे बैश.’’

प्रीति ने हौले से अपना सिर हिला दिया.

एक सुंदर हंसिनी की भांति इठलाती हुई शीला दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी. प्रीति ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘सुनो, क्या तुम वाकई सोचती हो…मेरा मतलब है, सिड और तुम्हारी कार…तुम बिना बात के शक कर रही हो…सोचो, कोई तुम्हें क्यों मारना चाहेगा?’’

यह सुनते ही शीला अपनी हील की नोक पर घूम गई. उस ने सिगरेट का गहरा कश लिया और प्रीति की ओर देखते हुए उसे आंख मारी और फिर बोली, ‘‘कई वजहें हो सकती हैं, माई इनोसैंट सिस्टर. पैसा, यश, रौब वगैरह सब काम की चीजें हैं, चाहे वे अपनी मेहनत की हों. या किसी और की,’’ यह कहने के साथ ही उस ने प्रीति को एक फ्लाइंग किस दिया.

‘‘सच, अब और नहीं रुक सकती. काम है. तुम्हें मैं कल 10 बजे फोन करूं?’’ जवाब का इंतजार किए बिना शीला वहां से चली गई. वापस मुड़ने पर प्रीति ने देखा कि उस का खाना कब का आ कर ठंडा भी हो गया था.

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‘‘क्या बात है, मेम साब? खाना अच्छा नहीं लगा? छुआ तक नहीं. कुछ और लाऊं?’’ वेटर ने बड़े अदब से कहा.

जो लोग बैठे थे वे प्रीति को घूर रहे थे. उन की चहेती शीला की बड़ी बहन है. कुछकुछ तो शीला जैसी ही है पर शीला वाली बात कहां है उस में, हर आंख में यही कथन था. यही बात प्रीति को वर्षों से सालती रही है.

अगले दिन औफिस में प्रीति बड़ी कसमसाहट महसूस कर रही थी. वैसे उस का मोबाइल नंबर नया था इसलिए शीला के फोन के आने की संभावना थी ही नहीं. फिर भी, मन बेचैन था. अभी 10 बजे ही थे कि फोन की घंटी बज उठी. बहुत सहम कर उस ने फोन उठाया.

‘‘हैलो.’’

उधर से जानीपहचानी सी आवाज सुनाई दी. इस से पहले कि वह आगे कुछ कह पाती, पीछे से 2 हाथों ने उस के कंधे पकड़ लिए. जब तक वह यह देखने के लिए मुड़ी कि कौन है, फोन ही कट गया. वह कोई और नहीं, सिड था.

आगे पढ़ें- साल का आखिरी दिन था. शाम के 7 बजे थे, फिर भी प्रीति ने…

Serial Story: दो बहनें ( भाग-1)

उस का नाम प्रीति नहीं था. उस की मां ने उस का नाम प्रतिमा रखा था. मगर प्रीति नाम में कुछ अलग ही खनक थी. जब लोग उसे इस नाम से पुकारते थे तो उसे लगता था कि वह खूबसूरत है. इसीलिए उस ने अपना नाम प्रीति कर लिया था. वह साल के आखिरी दिन पैदा हुई थी, उसे इस में तारों की साजिश लगती थी. उस के पैदा होने का कोई न कोई खास मतलब जरूर है, ऐसा उसे लगता था.

उस के परिवार की असली हीरोइन शीला थी. उम्र में उस से 1 साल छोटी उस की बहन शीला और कोई नहीं ‘सिल्क शीला’ के नाम से मशहूर अभिनेत्री थी. देश का चमकता तारा थी वह. शान, शोहरत तो उस के पांव पर पड़े थे. ओह, क्या नहीं था उस में.

शीला हवा में उड़ती, आसमान को छूती, बादल जैसी थी और खुद प्रीति जमीन पर पड़ी हुई, उस बादल की स्लेटी परछाईं के नीचे दबी हुई, अपनी नीरस जिंदगी जी रही थी. यह थी उस की हकीकत और यह बात प्रीति को काफी सताती थी.

एक दिन प्रीति के लिए अचानक धूप निकल आई. शीला एक कार ऐक्सिडैंट में मारी गई. एक अजीब हादसा था. लाश घाटी में कहीं गिर गई थी. शीला के लाखों फैंस की दुनिया में मातम की लहर छा गई. मायूसी ने उन्हें उस की इकलौती जीवित बहन प्रीति की तरफ मोड़ दिया. प्रीति के चेहरे में उन्हें अपनी परमप्रिय शीला की झलक दिखाई दी. उस से वे शीला के बारे में जानना चाहते थे. कैसी थी वह, उस के बचपन के किस्से, उस की छोटीमोटी आदतें, उस की पसंदनापसंद, सब कुछ जानना चाहते थे वे.

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आने वाले दिनों और महीनों में प्रीति को लोगों ने अपने सिरआंखों पर बिठा लिया और वह उन के विस्मित ध्यान में लोटने लगी. दोनों बहनों का बचपन कैसे व्यतीत हुआ, इस पर एक नामी लेखक के साथ किताब लिखने का प्लान भी बनने लगा. और केक के ऊपर लगे हुए लाल चैरी के बारे में तो पति सिड हरदम याद दिलाता था. तमाम कानूनी कागजात पूरे हो जाने के बाद प्रीति को इंश्योरैंस कंपनी में नौकरी मिल गई थी और कंपनी की तरफ से जो पैकेज मिला था वह भी कम भारी नहीं था.

प्रीति अब संपूर्ण स्वतंत्रता के साथ एक मिड लेवल कौर्पोरेट औरत की जिंदगी व्यतीत कर रही थी. उस ने अपना कैरियर बड़े धीरज और मेहनत के साथ बनाया था. लेकिन अपनी मशहूर बहन के सामने उसे अपनी सब सफलताएं फीकी लगती थीं. अब उस की छोटी बहन इस दुनिया में नहीं रही. बस, उस की यादें ही बची थीं और उन यादों की हिफाजत करना उस के जिम्मे था. और क्या चाहिए था उसे. अवसर का पासा खुदबखुद गिर कर सही दाने दिखा रहा था. सही कहा गया है, दुनिया में देर है लेकिन अंधेर नहीं.

एक दिन प्रीति दफ्तर में बहुत व्यस्त थी. उसे अपनी असिस्टैंट लतिका से कोई जरूरी काम था इसलिए वह उसे ढूंढ़ रही थी. डैस्क पर उसे न पा कर उस ने अनुमान लगाया कि हो न हो वह प्रोग्राम मैनेजर रैंबो के औफिस में गई है. वह रैंबो के औफिस में गई. औफिस का दरवाजा अंदर से बंद था. परदे भी गिरे हुए थे.

‘तो यह बात है. कितना मजा आएगा उस की रोंदी सूरत देखने में जब वह उस रिपोर्ट को पढ़ेगी जो इस वक्त मैं अपने मन में लिख रही हूं. ‘आई जस्ट कांट वेट,’ मन ही मन बड़बड़ाते हुए पैर घसीट कर वह वापस अपने औफिस में आ गई. यह काम बेशक उसे ध्यान से करना पड़ेगा, क्योंकि जहां औफिस की टीम का हर सदस्य उस के अंडर में था और वे सभी इस बात से डरते थे कि प्रीति मैडम उन की रिपोर्ट में क्या लिखेंगी, उस की अपनी रिपोर्ट की इंक रैंबो के पैन से निकलती थी.

‘थोड़ी ताजी हवा ले ली जाए,’ यह सोचते हुए वह औफिस से बाहर आ गई. उस के पास अकसर औफिस वालों के साथ शेयर करने के लिए कई सारी रसदार बातें हुआ करती थीं, लेकिन उस दिन वह अलग मूड में थी.

‘मैं अब काफी आगे बढ़ गई हूं. वे सब कैम्पेनशैम्पेन जो चलते रहते हैं अंदर, अब मुझे उन में शामिल होना शोभा नहीं देता,’ वह सोच रही थी.

उस के लिए पदोन्नति अकस्मात, अनचाहे ट्रांसफर की चिंताएं, ये सब पुरानी बातें हो गई थीं. औरों को बस काटना, उन का मजाक उड़ाना, बौस के कान में औरों की एकाएक पदावनति का कीड़ा डालना, या फिर मिल कर किसी एक के चक्कर दिलाने वाले पतन की कल्पना करना, ये सब बातें अब उसे थका देने वाली लगने लगी थीं.

आज बाहर निकल कर उस ने चैन की सांस ली थी. उसे बड़ा अच्छा लग रहा था. पास के एक कैफे में अर्ली लंच के लिए घुस गई. वेटर गोरखा था. उस के मुसकराते चेहरे की हर शिकन से गरमाहट रिस रही थी. और्डर लेने के बाद वह चला गया, बड़े हिचकिचाते हुए वह चारों ओर देखने लगी. लोगों की उस पर टिकी हुई नजरों को खोजना, यह उस का नया शौक बन गया था. वह सैलिब्रिटी जो बन गई थी शीला के कारण. लेकिन उस वक्त कैफे खाली था.

अचानक उसे पीछे से सरसराहट की आवाज आई, सिल्क साड़ी की सरसराहट, लेकिन उस ने उसे नजरअंदाज कर दिया. पर जब सिगरेट की हलकी, मिंट वाली बू उस तक पहुंची उस के बदन में जैसे बिजली सी दौड़ पड़ी. एक जानीपहचानी सी महक उस के नथुनों ने महसूस की. उस ने एक गहरी सांस ली. इस में कोई शक नहीं था कि जो सिगरेट फूंकने वाली महिला उस के पीछे बैठी थी, उस ने वही फरफ्यूम लगाया था जो उस की बहन का फेवरिट हुआ करता था.

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रोज सुबह तैयार होने के बाद, शीला शनैल नंबर फाइव की 5 बूंदें ठीक उनउन जगहों पर लगाती थी जहांजहां वह अपने चहेतों से चुंबन चाहती थी. प्रीति खयालों में खो गई. तभी किसी औरत के पहले जोर से हंसने और फिर बोलने की आवाज आई, ‘‘चाहे मेरे हजार टुकड़े कर के चारों तरफ बिखेर दिए जाएं, लेकिन मेरी बहन मुझे इगनोर करे, ऐसा कदापि न हो.’’

प्रीति से न रहा गया. उस ने  तेजी से पलट कर देखा. सामने बैठी थी सर्वांग सुंदर, मूर्तिनुमा, हवा में उठी 2 तिरछी उंगलियों में सिगरेट दबाए, रेशमी साड़ी पहने मुसकराती उस की बहन शीला. बड़े अंदाज से उस ने अपना सिर एक तरफ टेढ़ा किया हुआ था. वह (शीला) उसे अजीब नजरों से घूर रही थी. प्रीति को लगा मानो 2 छुरियों ने उसे पकड़ रखा है.

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