आलिया और रणबीर ने किया बेटी के नाम का ऐलान, दादी ने किया है नामकरण

बॉलीवुड की स्टार आलिया भट्ट और रणबीर कपूर हाल ही माता-पिता बने थे, आलिया ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया था, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी, इसी बीच बेटी को जन्म लिए 24 दिन बीत गए है और स्टार्स ने अपनी बेटी के नाम का ऐलान सोशल मीडिया पर किया है.

आपको बता दें. कि आलिया ने बेटी को जन्म 6 नवंबर को दिया था, जिसके नाम अब सामने आ चुका है जी हां, आलिया और रनबीर ने अपनी बेटी का नाम एक टी-शर्ट पर प्रिंट कराया है, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर फैंस से साझा की है. आलिया की बेटी का नाम राहा कपूर रखा है. जिसको बहुत ही खूबसूरती से सोशल मीडिया पर शेयर किया है. ये नाम रणबीर की मां नीतू कपूर ने रखा है।

 

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शेयर फोटो में अपनी बेटी राहा कपूर के नाम का मतलब भी बताया है और एक लंबी पोस्ट लिख कर डाली है आलिया ने बताया है कि ये नाम उनकी दादी (नीतू कपूर) ने चुना है। राहा नाम के बहुत सारे मतलब होते है. राहा का सही मतलब दिव्य रास्ता है. स्वाहिली में इसका मतलब जॉय (खुशी) है. संस्कृत में इसका मतलब वंश है. बंगाली भाषा में इसका मतलब आराम, कंफर्ट और रिलीफ है. अरबिक में इसका मतलब शांति है. इसका मतलब खुशी, आजादी और आशीर्वाद भी होता है और सच में उसके नाम के साथ… उस पहले पल से जब हमने उसे गोद में लिया… हमने ये सब महसूस किया. शुक्रिया राहा, हमारे परिवार और हमारी जिंदगी में आने के लिए. ऐसा लगता है कि जैसे हमारी जिंदगी अभी शुरू हुई हो.

आलिया और रणबीर का बिजी शेडयूल

 

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कपल के वर्क फ्रंर्ट की बात करें, तो आलिया इन दिनों फिल्मों से ब्रेक पर है. जबकि स्टार रणबीर कपूर अपने अपकमिंग फिल्म एनिमल की शूटिंग में बीजी चल रहे है इस फिल्म को कबीर सिंह फेम निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा बना रहे है. इस फिल्म के बाद एक्टर फिल्म ब्रह्मास्र2 में बीजी नज़र आएंगे .दूसरी ओर आलिया भी ब्रह्मास्र2 की शूटिंग में बीजी नज़र आएंगी. इसके अलावा हॉलीवुड की फिल्म हार्ट ऑफ स्टोन में काम करेगी।

एक्ट्रेस नीना गुप्ता ने खोले लाइफ के कई राज, पढ़ें इंटरव्यू 

80 के दशक में वह प्रसिद्द क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स के साथ प्रेम संबंधों की वजह से चर्चा में रही और बिन ब्याहे ही माँ बनकर बेटी मसाबा को जन्म देने वाली अभिनेत्री नीना गुप्ता के इस बोल्ड स्टेप की काफी आलोचना हुई, लेकिन उसने किसी बात पर बिना ध्यान दिए ही आगे बढ़ती गयी. हालाँकि विवियन ने बेटी को अपना नाम दिया, पर नीना को पत्नी का दर्जा नहीं दिया. नीना ने सिंगल मदर बनकर बेटी को पाला, जो एक प्रसिद्ध फैशन डिज़ाइनर है. इसके बाद साल 2008 में नीना ने चार्टेड एकाउंटेंट विवेक मेहरा से शादी की और अब खुश है. नीना स्पष्टभाषी है, जिसका प्रभाव उसके कैरियर पर भी पड़ा, पर वह इससे घबराती नहीं.

नीना गुप्ता हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर अदाकारा, टीवी अभिनेत्री,निर्माता, निर्देशक के रूप में परिचित है. उन्होंने अपने हॉट फोटो शूट, प्रेम प्रसंगों और नयी सोच को लेकर हमेशा चर्चा में रही. उनकी फिल्मों की अगर बात करें तो उन्होंने हमेशा लीक से हटकर फिल्में की और कमोवेश सफल रही. वह आज भी गृहशोभा पढ़ती है और इस पत्रिका के प्रोग्रेसिव विचार से सहमत रखती है. उनकी फिल्म उंचाई की सफलता को लेकर वह बहुत खुश है और ज़ूम लिंक पर बातचीत की जिसमे उन्होंने अपने कैरियर से जुडी कई राज से पर्दा उठाया, आइये जाने उनके जीवन की कुछ ऐसी रोचक बातें. 

फिल्म की सफलता के बारें में कुछ भी कहना कम होगा, क्योंकि इस फिल्म को जिस भावना के साथ बनाई गयी है, वह उसमे पूरी तरह से उतर कर आई है. इसके अलावा इतनी बड़ी फिल्म मेकर राजश्री प्रोडक्शन और उसमे सूरज बडजात्या की सोच जुडी हुई है. फिल्म में दिखाई गयी भावना इतनी प्योर है कि उसका एहसास सभी को हो रहा है. इसलिए ये सफल हुई है, इसे युवा और वयस्क सभी खुद को जोड़ पा रहे है. मैं बहुत अधिक खुश हूँ, क्योंकि पेंडेमिक के बाद दर्शकों को हॉल तक लाना मुश्किल हो रहा था, लेकिन इस फिल्म ने वो काम कर दिखाया.

 सुनहरे दिन 

ओटीटी की वजह से आज सभी उम्र और वर्ग के कलाकारों को काम मिल रहा है, इसे नीना सबसे अच्छा समय मानती है, वह कहती है कि आज हर कोई बिजी है और काम जरुरी भी है, क्योंकि पेंडेमिक की वजह से लोगों ने 3 साल तक किसी प्रकार की काम नहीं किये है, लेकिन अब वे इसे मेहनत से कर रहे है. आर्टिस्ट्स से लेकर, निर्माता, निर्देशक, टेक्निशियन आदि सभी को आज कुछ न कुछ काम है. अच्छी-अच्छी भूमिका भी मुझे करने को मिल रही है, लेकिन अच्छाई के साथ-साथ कुछ गलत चीजे भी जीवन में आती है, मसलन कींडल, मोबाइल, लैपटॉप में कहानी लोग पढने लगे है, लेकिन किताब और बुक शॉप अभी भी है, वे बंद नहीं हुई है. वैसे ही थिएटर जाने की आदत जो लोगों में थी, जिसमे वे अपने परिवार के साथ आउटिंग पर जाना समझते है, उसकी जगह में कमी नहीं आ सकती. इसके लिए इंडस्ट्री के सभी को एक अच्छी कहानी कहने की जरुरत है.

खुद की सोच बनी जर्नी में रुकावट  

नीना के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आये है, लेकिन उन्होंने उससे निकलकर आज एक मुकाम पर पहुंची है, जहां उन्हें दर्शक भी देखना पसंद करते है, लेकिन जितनी पॉपुलैरिटी उन्हें मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल पाई है, इसकी वजह के बारें में नीना बताती है कि मेरी जर्नी में मैंने जितनी मेहनत की थी, उसका श्रेय नहीं मिलने की वजह, मैं खुद को दोषी मानती हूँ, क्योंकि कई बार मेरा ध्यान काम से भटक जाता था और खुद सेटल होने की इच्छा होती थी, मेरा ध्यान उस समय एक पुरुष पर था. जैसा कि जवान होने पर अधिकतर महिला एक अच्छा घर -परिवार बसाना चाहती है. इसके अलावा मेरी दूसरी गलती थी, मुझे इस इंडस्ट्री में घुसने के लिए क्या करना चाहिए ये बताने वाला कोई नहीं था. तीसरी बात मेरा शाय नेचर, जिसमे मैं किसी से काम के बारें में कह नहीं सकी, मेरे एक दोस्त जो फिल्मे बनाता था, उससे भी मैंने कभी काम मांग नहीं पाई. फिल्म इंडस्ट्री में ‘मैं अच्छी एक्टिंग करती हूँ, मुझे काम दो’ ये कहना पड़ता है, तब मुझे लगता था कि वे गुस्सा होंगे, पर ऐसा नहीं होता, काम मिलता है. यही मेरी जर्नी में रुकावट बनी है. 

आती है सहजता अनुभव से 

नेचुरल लुक की बात करें तो नीना ने हमेशा सहजता से भूमिका निभाई है, इसे कर पाने की वजह उनका अनुभव और लगातार सीखते रहने की कोशिश है. नीना कहती है कि मैंने शुरू में अपने प्रतिभा को आगे लाने में समर्थ भले ही न रही हो, पर अब मुझे हर भूमिका अलग और नयी मिल रही है. हालाँकि मैंने शुरू में अभिनेत्री की भूमिका नही निभाई, लेकिन छोटे-छोटे बहुत काम फिल्म और टीवी में किये है, जिससे मेरे पास एक अनुभव है. मेरे अंदर ‘सबसे बेस्ट हूँ’ का गुमान कभी नहीं आया, इससे मैं नीचे नहीं गिरी और आज भी सीख रही हूँ. आज भी मैं अपने काम में 10 गलतियाँ ढूंढती हूँ. समय मिलने पर मैं दिल्ली अपने पति और उनके परिवार वालों से मिलने चली जाती हूँ. रोज की दिनचर्या की बात करें, तो सुबह उठकर मैडिटेशन करना, खाना बनाना, टहलना आदि रोज करती हूँ. साथ ही महीने के 15 दिन मैं शास्त्रीय संगीत भी सीखती हूँ.

मुश्किल दौर   

नीना गुप्ता के सबसे मुश्किल दौर के बारें में पूछने पर वह बताती है कि मेरे जीवन का सबसे मुश्किल दौर तब था, जब मसाबा पैदा हुई.  सोशल, फाइनेंसियल, पर्सनल प्रेशर आदि बहुत सारे मेरे जीवन में आ गए थे. सबकुछ करने में बहुत समस्या आई है, लेकिन हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ समस्या होती है, केवल उसका स्वरूप अलग होता है. परेशानी आने पर अगर मैं नशे की शरण में या सेल्फ पिटी करूँ, तो उसका हल निकलने वाला नहीं और उस स्थिति में आगे बढ़ना भी बहुत कठिन होता है. ऐसे में सबकुछ भूलकर आगे निकलना पड़ता है. कैसे चलू, कौन साथ होगा, पैसे का इंतजाम कैसे होगा आदि कई समस्याएं सामने खड़ी होती है, लेकिन सभी आगे बढ़ सकते है, पैसे है, तब भी पैसे न हो तब भी, केवल कुछ को एक संकल्प लेनी पड़ती है. उस वक्त मेरे पास भी पैसे नहीं थे, मैं पेइंग गेस्ट में रहती थी. मेरा एक दोस्त मुंबई के पृथ्वी थिएटर में कैफे चलाता था. उसको मेरे हाथ का बनाया बैगन का भरता बहुत पसंद था, मैं उसके लिए भरता बनाकर ले जाती थी. उस दिन मुझे फ्री में डिनर मिल जाता था. काम कोई भी छोटा नहीं होता, कल अगर मेरे पास पैसे न हो, तो मैं झाड़ू-पोछा, या खाना बनाकर भी पैसे कमा सकती हूँ. मैंने एम् फिल की पढाई की है, मैं बच्चों को पढ़कर या योगा सिखाकर भी पैसे कमा सकती हूँ. ऐसी परिस्थिति में कभी ये सोचना ठीक नहीं कि पति ने मुझे पैसे नहीं दिए, छोड़ दिया है, बच्ची है, तो मेरा क्या होगा. हर काम हमेशा काम ही होता है. 

मिला दोस्तों का सहयोग 

नीना गुप्ता को हर पढ़ाव में एक अच्छा दोस्त मिला है, जिससे उन्हें बहुत सहयोग मिला है. सबसे अधिक अच्छा दोस्त दीपक काजिर है, जिसके साथ 10 साल तक बात न भी करने पर मुझे पता है कि वह मेरा साथ हर मुसीबत में देगा. इसके अलावा मुंबई में दंगे के समय मैं आराम नगर में थी, वहां पर रहने वाले पडोसी पति-पत्नी ने भी मुझे बहुत हेल्प किया. मेरे पिता की मत्यु के बाद भी इन दोनों दम्पति ने बहुत सहयोग दिया है. अभी भी मैं सालों बाद अपने दोस्तों से मिलती हूँ और बहुत अच्छा महसूस होता है. मेरी सबसे अच्छी दोस्त मेरी बेटी मसाबा है. हम दोनों आपस में कपडे शेयर करते है, जूते की साइज़ दोनों की एक है. साथ में शौपिंग करते है, कहीं घूमने भी साथ जाते है. आज के समय में माता-पिता को बच्चों के दोस्त बनना है, उन्हें रेस्पेक्ट दें और उनकी बातें सुने. कई बार माता-पिता उन्हें छोटा समझकर उनकी बातें टाल देते है, जो ठीक नहीं.  

मैं आने वाले नए साल में सभी से ईमानदारी से काम करने का सुझाव देती हूँ, क्योंकि कई बार काम समय पर नहीं मिलता, लेकिन मेहनत जारी रखना है, ताकि एक न मिले दूसरा अवश्य मिल सकता है. 

Sonam Kapoor ने दिखाई बेटे वायु की पहली झलक, शेयर किया क्यूट वीडियो

बॉलीवुड की फेशन क्वीन कही जाने वाली एक्ट्रेस हाल ही मां बनी थी. जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड में थी. बता दें, हम बात कर रहे है सोनम कपूर अहूजा की, जो कि मां बनने के बाद बेहद ही खुश है और उनसे जुड़ी कुछ सोशल मीडिया पर फोटो शेयर हुई है.

शादी के चार साल बाद मां बनी सोनम कूपर

आपको बता दे, कि सोनम कपूर और आंनद अहूजा की शादी साल 2018 में हुई थी, कपल की शादी काफी धूमधाम से हुई थी. शादी के चार साल बाद 30 अगस्त 2022 को सोनम कपूर अहूजा को एक बेटा हुआ था. जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पहले कभी नहीं देखी गई, लेकिन अब तीन महीने बीत जाने के बाद, पहली बार सोशल मीडिया बेटे वायु की फोटो वायरल हो रही है. जी हां, कपल ने पहली बार अपने बेटे वायु की वीडियो शेयर की है. एक्ट्रेस ने बेटे की सोशल मीडिया पर पहली झलक दिख लाई है.

 

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सोनम ने ये वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर की है. जिसमे वो अपने पति आनंद कपूर आहूजा के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करती दिखाई दे रही है. वीडियो को शेयर करते हुए अपने पिता अनिल कपूर और मां सुनीता कपूर को भी टैग किया है. उन्हे वायु के पैरेंट्स बताया गया है. 

मुंबई में हुआ था, बेटा वायु

 

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सोनम कपूर और आंनद अहूजा काफी समय से मुंबई में रह रहे थे. फिल्म स्टार ने अपनी डिलीवरी भी मुंबई मे की थी. कपल माता-पिता मुबंई में ही बना थे और बेटे का वेलकम किया था. बता दें, कि बेटे के जन्म के करीब दो महीने बाद एक्ट्रेस वापस अपने पति आंनद अहूजा के साथ लंदन के लिए रावाना हो गई. वर्क फ्रंट की बात करें तो सोनम अपने काम से छुट्टी ले चुकी है और बेटे के साथ टाइम स्पेंड कर रही है.

दूसरों की नकल करके मेकअप करने का प्रयास कभी न करें- आकांक्षा रंजन कपूर

लगभग हर बच्चा बड़ा होकर उसी पेश को अपना कैरियर बनाता है, जिस माहौल व परिवेश में उसकी परवरिश होती है. यही वजह है कि फिल्मी माहौल में पली बढ़ी सभी संताने फिल्म उद्योग में ही सक्रिय हैं. ऐसी ही संतानों में से एक आकांक्षा रंजन कपूर हैं, जो कि इन दिनों ‘नेटफ्लिक्स’ पर स्ट्रीम हो रही फिल्म ‘‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’’ में राज कुमार राव, राधिका आप्टे व हुमा कुरेशी के संग निक्की अधिकारी के किरदार में नजर आ रही हैं. आकांक्षा रजन कपूर के पिता अपने समय के अभिनेता व टीवी सीरियल निर्माता व निर्देशक शशि रंजन हैं. उनकी मां अनु रंजन एक पत्रिका की संपादक व प्रकाशक रही हैं. आकांक्षा रंजन कपूर की बड़ी बहन अनुश्का रंजन भी अभिनेत्री हैं. वैसे आकांक्षा रंजन कपूर का कहना है कि उन्हे तो नर्सरी कक्षा से ही अभिनय का चस्का रहा है, तब तक उन्हे इस बात का अहसास ही नहीं था कि उनके माता पिता क्या करते हैं.

प्रस्तुत है आकांक्षा रंजन कपूर से हुई बातचीत के अंश. . .

आपकी परवरिश फिल्मी महौल मे हुई. इसके अलावा जब आपकी बड़ी बहन अनुश्का ने अभिनय में कैरियर बना लिया, तो इससे आपका हौसला बढ़ा होगा?

-जी हॉ!ऐसा आप कह सकते हैं. पर उस वक्त मैं इतनी समझदार भी नही थी. मैं तो करिश्मा कपूर को ेदेखकर सोचती थी कि मुझे भी यही करना है. मै तो यही कहती थी कि यदि करिश्मा कपूर कर सकती है, तो मैं भी कर सकती हूं. इतना ही नही मुझे जिस अभिनेत्री का काम पसंद आ जाता, मैं उसी की तरह बनने की बात करने लगती थी. तो आप मान लीजिए, कि मुझे बचपन से ही अभिनय का चस्का था. मैने नर्सरी में भी नाटकों में अभिनय किया था.

आपको अभिनय का प्रशिक्षण लेने की जरुरत पड़ी या नहीं?

-मेेरे अंदर अभिनय के गुण थे. लेकिन उन्हे पॉलिश करने के मकसद से मैने स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद अभिनय व फिल्म विधा को समझने के लिए मंुबई के गोरेगांव स्थित ‘व्हिशलिंग वूड स्कूल’ से दो साल का कोर्स किया. फिर परफार्मिंग आर्ट्स के आईटीए स्कूल से भी चार माह का कोर्स किया. मैने बौलीवुड डांस के साथ ही कत्थक नृत्य भी सीखा. मैने विकास सर से डिक्शन क्लासेस ली. पूरे तीन साल तक मैंने खुद को इस तरह से तैयार किया.

आपने म्यूजिक वीडियो ‘हम ही हम थे’ से कैरियर शुरू किया था. इसकी कोई खास वजह थी?

-अभिनय व नृत्य का प्रशिक्षण पूरा होने के बाद मैने संघर्ष शुरू किया. लंबे संघर्ष के बाद मुझे फिल्म ‘गिल्टी’ मिली. मैने इस फिल्म के लिए आवश्यक तैयारी शुरू की. लेकिन फिल्म ‘गिल्टी’ की शूटिंग शुरू होने से एक माह पहले ही मुझे इस गाने के म्यूजिक वीडियो के लिए बुलाया गया. मुझे गाना बहुत पसंद आया. गाना इतना संुदर था कि मैने सोचा कि इसे कर लेती हूं, इससे कैमरे के सामने काम करने की प्रैक्टिस हो जाएगी. क्योंकि तब तक मैं कैमरे के सामने गयी नहीं थी. इसके अलावा इसमें आपरशक्ति खुराना भी थे.  इस म्यूजिक वीडियो में काम करके मुझे काफी कुछ सीखने को मिला. कैमरा एंगल की समझ बढ़ी.

हर कलाकार की तमन्ना होती है कि उसकी प्रतिभा बड़े परदे पर नजर आए. पर आपकी पहली फिल्म ‘गिल्टी’ तो ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर आयी. इससे कुछ मायूसी हुई होगी?

-बिलकुल नही. मैं कई वर्षों से अभिनय में कैरियर शुरू करने के लिए कोशिशें कर रही थी. कोई बात नही बन रही थी. मेरी तमन्ना हीरोईन बनना और खुद को बड़े परदे पर देखने की थी. पर शुरूआत नहीं हो पा रही थी. ऐसे में जब मेरे पास ‘गिल्टी’ का आफर आया, तो मैने लपक लिया. आखिर मुझे अभिनय करने का अवसर जो मिल रहा था. मैं चाहती थी कि फिल्म इंडस्ट्री को अहसास हो कि मैं लोगो के सामने अभिनय कर सकती हूं. इसलिए बुरा नही लगा था. बल्कि खुशी हुई थी कि आखिरकार मुझे अभिनय करने का अवसर मिला. पर इच्छा है कि मेरा काम बड़े परदे पर नजर आए. मुझे उम्मीद है कि वक्त आने पर ऐसा भी होगा. ‘गिल्टी’ के बाद मैने ओटीटी पर वेब सीरीज ‘रे’ की.  अब ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर ही मेरी फिल्म ‘मोनिका ओ माई डार्लिंग’ स्ट्रीम हो रही है.

‘गिल्टी’ के स्ट्रीम होने के बाद किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली थीं?

-नेटफ्लिक्स ने इसके स्ट्रीम होने से एक दिन पहले  पत्रकारों को यह फिल्म दिखायी थी, उस वक्त हम सभी कलाकार वहां पर थे. तब जिस तरह से पत्रकारों के अलावा अन्य कलाकारों व क्रिएटिब लोगो ने मेरे काम की तारीफ की थी, उससे मैं  अंदर ही अंदर अति उत्साहित हो गयी थी. मेरे लिए वह पहला मौका था, जब मैं अपने काम की तारीफ सुन रही थी. मेरी समझ मेंे नही आ रहा था कि मैं क्या कहूं.  पर मुझे अच्छा लग रहा था कि पहली बार में ही मेरे काम को पसंद किया जा रहा है.

हालिया फिल्म ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’’ करने की क्या वजह रही?

-मैने निर्देशक वासन बाला के साथ वेब सीरीज ‘रे’ की थी. फिर एक दिन उनका फोन आया कि एक मल्टीस्टारर फिल्म है, क्या मैं करना चाहूंगी? जब उन्होने मुझे राजकुमार राव, राधिका आप्टे व हुमा कुरेशी के नाम बताए, तो मैं उत्साहित हो गयी. तो मैने तुरंत कह दिया कि सोचने वाली क्या बात है. जब ऐसे बेहतरीन कलाकार हैं. फिर श्रीराम राघवन सर हों, तो मैं मना नही कर सकती. और जब पटकथा सुनायी, तो वह भी कूल और बहुत ही अलग तरह की थी. मेरे दिमाग में आया कि अगर मैं अच्छा काम कर पायी, तो लोग जरुर पसंद करेंगें. मैने इससे पहले डार्क व गंभीर किरदार निभाए थे और पहली बार मुझे इसमें कॉमेडी करने को मिला. कॉमेडी करना कठिन होता है. इतना ही नही अब लोग देख रहे हैं, और उन्हे भी अहसास हो रहा है कि इसमें मेरे किरदार का कोई एक डायमेंशन नही है. कुछ ग्रे है. कुछ कन्फ्यूजन है. मतलब इसमें मुझे अपने अंदर की प्रतिभा को निखारने के पूरे अवसर मुझे नजर आए थे. वही हुआ.

फिल्म ‘‘मोनिका ओ माय डार्लिंग ’’ में आपके अभिनय के संदर्भ किस तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं?

-देखिए, मैं फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों, अपने पारिवारिक सदस्यों और अपने दोस्तों की प्रतिक्रियाओं पर ज्यादा ध्यान नही देती. मैं यह मानकर चलती हूं कि यह लोग तो मेरा हौसला बढ़ाने के लिए मेरे काम की प्रशंसा ही करेंगें. मुझे उम्मीद कम थी कि फिल्म आलोचक मेरे बारे में कुछ लिखेंगें. मुझे लग रहा था कि आलोचक केवल राज कुमार राव, राधिका आप्टे और हुमा कुरेशी के बारे में ही लिखेंगे. पर हर किसी को हमारी फिल्म पसंद आयी. बड़े से बड़े फिल्म आलोचक ने मेरे बारे में लिखा और सोशल मीडिया पर पोस्ट भी डाली. कई आलोचकों ने मेरे अभिनय को स्पेशल मेंशन किया. यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. मैं इसें अधिक पाने की उम्मीद भी नही कर सकती थी. कई फिल्म निर्देशक,  जिनके साथ काम करने का मैं सपना देख रही हूं, वह भी मेरे अभिनय की प्रशंसा करते हुए ट्वीट कर रहे हैं. इससे मैं अति उत्साहित हूं. मैने हर किसी की पोस्ट के जवाब में उनका शुक्रिया अदा करने के साथ ही उनके साथ काम करने की ख्वाहिश व्यक्त की.  देखिए, इतने वर्षों से मैं कह रही थी कि मैं काबिल हूं. . मैं काबिल हूं, पर उसकी सुनवाई नहीं थी. लेकिन अब मेरा काम देखकर लोगों को अहसास हो रहा है कि मैं काबिल हूं. यह बात मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाती है.

आपने वासन बाला के निर्देशन में फिल्म ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग ’के अलावा वेब सीरीज ‘रे’ की है. उनमें आपको क्या खासियत नजर आयी?

-वासन बाला मास्टर माइंड और जीनियस निर्देशक हैं. उनके काम करने का तरीका बहुत अलग है. उन्हे सिनेमा बहुत पसंद है. उनके सिनेमा में अनचाहे ही दर्शकों के लिए कुछ न कुछ नयापन आ ही जाता है.

आपने कत्थक नृत्य का प्रशिक्षण हासिल किया है. यह आपको अभिनय में किस तरह से मदद करता है?

-जब मेरे पापा ने मुझे कत्थक नृत्य सीखने की सलाह दी थी. तो मुझे उनकी बात समझ में नहीं आयी थी. मैने उनसे कहा था कि मुझे बौलीवुड में काम करना है. इसलिए मैं बौलीवुड डांस सीखती हूं. पर उन्होंने मुझ पर कत्थक नृत्य सीखने का दबाव डाला. और मैने सीखा. पर इस नृत्य को सीखने के बाद मुझे अहसास हुआ कि इस नृत्य की वजह से मेरे अभिनय व डांस में जो ‘ग्रेस’ आता है, वह बौलीवुड डांस से नहीं आ सकता. हमारे हाथ के हाव भाव, आंखे सभी अभिनय में मदद करते हैं. कत्थक नृत्य के प्रशिक्षण के चलते हम बहुत ठहराव के साथ अभिनय करते हैं. हम हाथ भी स्टाइल में हिलाते हैं. कत्थक नृत्य ने मुझे आंखों से बात करना सिखाया. अब मुझे लगता है कि कत्थक के चलते अभिनय में मुझे बड़ी मदद मिल रही है.

क्या आपने व्हिश्लिंग वुड एक्टिंग स्कूल में ट्रेनिंग के दौरान स्टूडेंट जो फिल्में बनाते हैं, उनमें अभिनय किया था?

-जी हॉ! किया था. मगर कई वर्ष हो गए, उन फिल्मों को देखा नहीं है. वहां पर निर्देशन का प्रशिक्षण ले रहे स्टूडेंट को हर दह माह में फिल्म बनानी होती थी. म्यूजिक वीडियो निर्देशित करने होते थे. मैने कई लघु फिल्में की हैं. जिनमें से एक यूट्यूब पर मौजूद है. जिसमें में सिगरेट पीने की एक्टिंग करती हूं.

जब आपने स्टूडेंट की फिल्मों में अभिनय किया था, उस वक्त आपने किस तरह की फिल्में करने का सपना देखा था?

-सच कहूं तो उस वक्त ज्ञान कम था. उन दिनों जिस तरह की फिल्में बन रही थी और मै जिस तरह की फिल्में में देख रही थी, उसी तरह की फिल्में करने के बारे में सोच रही थी. लेकिन तब से अब तो सिनेमा काफी बदल गया है. उन दिनों ‘गिल्टी’ या ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’ जैसी फिल्में करने के बारे में सोच ही नहीं सकती थी. उन दिनों इस तरह का सिनेमा बनता ही नहीं था. उन दिनों बौलीवुड मसाला फिल्में बन रही थीं, जिनमें बौलीवुड डांस का बोलबाला था.

आपको लगता है कि ओटीटी के आने से सिनेमा बदल गया है?

-जी हॉ! सौ प्रतिशत. . . अन्यथा हम ‘गिल्टी’ या ‘ रे ’ या ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’ जैसी फिल्मों की बात सोच नही सकते थे. ओटीटी के आने से पहले तो वही डांस युक्त बौलीवुड मसाला फिल्में ही बन रही थीं. अब तो हर प्रतिभाशाली कलाकार,  निर्देशक,  लेखक व संगीतकार को काम मिल रहा है.

पर सुना है कि ओटीटी पर कलाकार को काम उसके सोशल मीडिया के फालोवअर्स के आधार पर मिलता है?

-मुझे लगता है कि आज कल यह हर जगह लागू हो गया है. फिर चाहे हम किसी ब्रांड को साइन करे या ओटीटी या फिल्म साइन करें. मुझे फालोवअर्स का गेम समझ में नहीं आता, मगर यह है. फिर भी ओटीटी पर टैंलेंट की कद्र ज्यादा हो रही है. ओटीटी पर हम छोटे और बड़े कलाकार के साथ काम कर सकते हैं. वहां पर छोटे बड़े का कोई अंतर नही है. मेरा कहना है कि अब लोगों के सामने अवसर काफी हो गए हैं.

लेकिन आपको नही लगता कि फालोवअर्स के आधार पर जब काम दिया जाता है, तो कई बार टैलेंट की अनदेखी भी हो जाती है?

-आपने एकदम सही कहा. एक प्रतिभाशाली कलाकार को कई वजहों से काम नहीं मिलता. इनमें से फालोवअर्स की संख्या भी एक मुद्दा है. फालोवअर्स की वजह से मेरी दीदी को भी एक फिल्म नहीं मिली थी. तब हम सभी कान्फ्यूज थे कि ऐसा भी होने लगा है. महज इंस्टाग्राम के फालोवर्स की वजह से काम नही मिला? यहां हर इंसान की किस्मत अलग है. इसके बावजूद मैं कहती हूं कि ओटीटी पर काम करने के अवसर ज्यादा हैं. यदि ओटीटी न होता तो मेरे कैरियर की शुरूआत न हो पाती. मैं तो उसके पहले से फिल्मों के लिए कोशिश कर रही थी. पर काम मिला तो ओटीटी पर ही.

कहते है कि एक किरदार को निभाते समय कलाकार को दो चीजों की जरुरत पड़ती है. पहला उसके अपने जीवन के अनुभव और दूसरा उसकी अपनी कल्पना शक्ति. आप किसे कितना महत्व देती हैं?

-मैं तो हर किरदार को निभाते समय दोनों का उपयोग करती हूं. फिल्म‘ गिल्टी’ के किरदार को निभाने के लिए मेरे अपने जीवन के अनुभव नही थे. वहां मैने कल्पना शक्ति का उपयोग ज्यादा किया. किरदार को समझने के बाद मेरे अपने जीवन के जो अनुभव थे,  उनके बीच मैंने उस किरदार को निभाया, तो कल्पना श्क्ति उसमें ज्यादा थी. वैसे भी मै हर किरदार को निभाते समय किरदार को समझने के बाद अपने जीवन के अनुभवों को याद कर फिर दोनों के बीच उस किरदार को रखकर निभाती हूं. शायद यही वजह है कि एक ही किरदार को हर कलाकार अलग अलग ढंग से निभाता है. क्योंकि हर किसी का अनुभव अलग होता है. लेकिन मैं बीच मे पटकथा में लिखे किरदार के अनुभव को भी लाना पसंद करती हूं.

इंसान जितना अधिक पढ़ता है, उतना ही अधिक वह कलपना शील होता है. आप कितना पढ़ती हैं?

-मैं बहुत ज्यादा पढ़ती हूं. मुझे लोगो की बायोग्राफी पढ़ना पसंद है. मैं फिक्शन बिलकुल नही पढ़ती. सेल्फहेल्प वाली किताबें पढ़ती हूं. इंसान अपने जीवन में, अपने आस पास जो कुछ देखता है, उससे भी उसकी कल्पनाशक्ति बढ़ती है. इतना ही नहीं मेरी समस्या यह है कि मैंजो कुछ करती हूं,  उस पर भी नजर रखती हूं. जब कभी मेरी दोस्त किसी तकलीफ में हो या रो रही हो तो मैं उसे आब्जर्व करती हूं कि वह रोेते समय चेहरा कैसा बना रही है. उसकी नाक बह रही है या नहीं. . . वह अपने हाथ किस तरह से चला रही है या नही चला रही है. वगैरह वगैरह. . . इस तरह का आब्जर्वेशन भी कल्पना शक्ति को बढ़ाने में मदद ही करता है. इसके लिए पढ़ना,  आब्जर्वेशन, फिल्में देखना, लोगों से मिलना, उनसे बातें करना फायदा ही देता है.

आपका फिटनेस मंत्रा क्या है?

-मेरा मानना है कि अभिनय करने के लिए कलाकार का फिट रहना बहुत जरुरी है. इसलिए मैं फिट रहने के लिए सब कुछ करती हूं. फिटनेस को लेरक में बहुम पैशिनेट हूं. मैं बचपन से ही बहुत ज्यादा स्पोर्टस खेलती आयी हूं. मैं बैडमिंटन बहुत अच्छा खेलती हूं. टेनिस खेलती हूं. हर दिन योगा करती हूं. मैं जिम जाती हूं. रनिंग करती हूं.

आपके लिए दोस्ती के क्या मायने हैं?

-मेरे लिए मेरे दोस्त बहुत मायने रखते हैं. मेरे दोस्त बहुत हैं. मेरे सभी दोस्त मुझसे पूछते है कि तुम सबसे इतनी अच्छी दोस्ती कैसे निभाती हैं?पर मुझे लोग पसंद हैं. मुझे मेरी गर्लफ्रेंड पसंद हैं. गर्लफेंड बनाना भी मेरा शौक है. मेरी कुछ बचपन की दोस्त आज भी मेरी दोस्त हैं. मेरी पहली कक्षा की दोस्त आज भी मेरे साथ जुड़ी हुई है. मैं अपनी नई दोस्तों से भी जुड़ी हुई हूं. मेरे लिए दोस्ती को बरकरार रखना बहुत जरुरी है. मेरे दोस्त मेरे लिए परिवार की तरह हैं. मैं उनसे फोन पर बात करती हूं. या फेशटाइम करती हूं.  अपनी दोस्तो के लिए समय निकालती हूं.

दोस्ती को मेनटेन करने के लिए क्या जरुरी है?

-पहली जरुरत होती है दोस्त के लिए समय देना. मगर मेरे ज्यादातर दोस्त काफी व्यस्त रहते हैं. दूसरी बात दोस्ती में लॉयालिटी बहुत जरुरी है. हमें इतना यकीन होना चाहिए कि हमें कोई समस्या आएगी, तो मेरे साथ मेरी यह दोस्त खड़ी नजर आएगी. दोस्ती में विश्वास बहुत जरुरी है. हम हर दिन भले न मिले, हर दिन भले न बात कर पाएं, पर तीन चार माह बाद भी मिलने पर बात करने पर यह अहसास नही होता कि हमने इतने समय से बात नही की है.

निजी जिंदगी में अभिनय के अलावा कुछ करने की इच्छा है?

-अभिनय कैरियर शुरू करने से पहले मैं एक पी आर कंपनी में काम कर रही थी. कुछ समय मैंने ईवेंट भी किया. अभिनय में जब मेरे दिल की भड़ास पूरी तरह से निकल जाए, तब पुनः पी आर में या मेकअप के क्षेत्र मंे कुछ करने के बारे में सोचूं. मेकअप में भी मेरी काफी रूचि है.

मेकअप के संदर्भ में आप क्या कहना चाहेंगी? दूसरी लड़कियों को मेकअप टिप्स देना चाहेंगी?

-जब इंस्टाग्राम बड़ा होने लगा, तभी मेरा मेकअप के प्रति झुकाव बढा. उन दिनों इंस्टाग्राम पर कई मेकअप इंफ्यूलांसर थे , जिन्हे में फालो करती थी. मेकअप के साथ मेरा इंस्टेंट कनेक्शन था. मैं कई तरह के मेकअप के प्रोडक्ट खरीदती थी और उनका अपने उपर इस्तेमाल कर नए न प्रयोग किया करती थी. मैं हर ईवेंट पर खुद ही अपना और अपने दोस्तों का मेकअप किया करती थी. मेकअप करना मुझे काफी रोचक लगात है. मैं हर लड़की को यही सलाह देना चाहूंगी कि आप दूसरों की नकलकर वैसा ही मेकअप करने का प्रयास कभी न करें. आप हमेशा वैसा मेकअप करें, जो आपके उपर शूट करता हो. ऐसा मेकअप जो आपकी स्किन के लिए उपयुक्त हो. मसलन , भारतीय लड़कियों को पता नही है कि उन्हे अपनी आंखों के नीचे के धब्बे ढंकने के लिए आरेंज मेकअप करना चाहिए. क्योंकि लगभग हर भारतीय की स्किन डार्क है. इसी तरह मेकअप के कई नुस्खे हैं. हर लड़की को सबसे पहले अपनी स्किन के बारे में बेहतर ढंग से जानना चाहिए, फिर उसके अनुरूप ही मेकअप करना चाहिए. अक्सर होता यह है कि लड़कियों देखती हैं कि इस मेकअप इंफ्यूलेंसर ने ऐसा किया है, तो हम भी करते हैं. पर हम भूल जाते हैं कि उनकी स्किन अलग है. वह अपनी फोटो को ‘फोटो शॉप’ करके इंस्टाग्राम या फेशबुक पर डालती हैं. उनकी स्किन अलग प्रकार की होती है. सभी को समझना होगा कि हर स्किन, हर चेहरा अलग है, और उसी के अनुरूप मेकअप करना चाहिए.

क्या आप मानती हैं कि उम्र के अनुसार भी मेकअप में बदलाव होता है?

-जी हॉं! पहले मैं बहुत डार्क काला मेकअप करती थी. उस वक्त चेहरे पर मेकअप ढोंपना अच्छा लगता था. लेकिन मैच्योर होने के साथ ही स्टाइल बदल जाती है. वैसे मेकअप की स्टाइलें समय के साथ बदलती रहती है. फैशन भी मेकअप को डिक्टेट करता है. इन दिनों बहुत नेच्युरल चेहरा, बिना मेकअप या कम मेकअप वाला लुक ज्यादा लोकप्रिय है.  पहले हर लड़की काजल बहुत लगाती थीं. ओठों पर भी डार्क लिपस्टिक उपयोग करती थी. अब हल्के रंग की लिपस्टिक का चलन है.

18 सालों के संघर्ष के बाद Bollywood में पंकज त्रिपाठी को मिली पहचान, पढ़ें इंटरव्यू

पिछले 18 वर्षों से बौलीवुड में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते आए अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘अनारकली आफ आरा’,‘न्यूटन’,‘फुकरे रिटर्न’,‘स्त्री’,‘गुंजन सक्सेना’ जैसी फिल्मों के साथ ही ओटीटी प्लेटफार्म पर ‘मिर्जापुर’ व ‘क्रिमिनल जस्टिस’ जैसी वेब सीरीज में अपने दमदार अभिनय की बदौलत बौलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बना ली है. दर्शक उन्हें अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘मैंगो ड्रीम्स’’ के अलावा रजनीकांत के साथ तमिल फिल्म ‘‘काला’’ में भी देख चुके हैं.

प्रस्तुत है पंकज त्रिपाठी से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के खास अंश. .

आपने ‘नेशनल स्कूल आफ ड्रामा’ से अभिनय की ट्रेनिंग हासिल करने के बाद 16 अक्टूबर 2004 में बौलीवुड में कदम रखा था. मगर ‘‘नेशनल स्कूल आफ ड्रामा’ में ‘मैथड एक्टिंग’ सिखायी जाती है,जो कि बॉलीवुड में काम नही आती?

-आपने एकदम सही फरमाया. बीच के कुछ दशकों में काम नही आती थी.  मगर अब काम आने लगी है. ओम पुरी, इरफान खान,नसिरूद्दीन शाह,अनुपम खेर,मुकेश तिवारी,यशपाल राणा,आशुतोष राणा,सीमा विश्वास, रोहिणी हट्टंगड़ी,राज बब्बर व हमारे आने के बाद ‘नेशनल स्कूल आफ ड्रामा’ से ट्रेनिंग लेकर आने वालों की बॉलीवुड में कद्र होने लगी.  इतना ही नही ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म के आने के बाद ‘नेशनल स्कूल आफ ड्ामा’ की ‘मैथड एक्टिंग’ ज्यादा काम आने लगी है. यह सभी कलाकार सिनेमाई अभिनय से थोड़ा अलग अभिनय करते थे. अस्सी के दशक में सिनेमा में अलग तरह का अभिनय होता था. अब पैरलल सिनेमा व मेन सिनेमा का विभाजन नही रहा. जो पैरलल है,वह भी मेन स्ट्रीम हो जाती है और जो मेन स्ट्ीम होती है,वह पैरलल हो जाती है. क्योंकि अब सब कुछ बाक्स आफिस की कमायी पर निर्भर करता है. जो ज्यादा कमाई करे,वह मेन स्ट्ीम सिनेमा गिना जाता है. एन एस डी में जिस तरह का अभिनय सिखाया जाता है,उसमें लॉजिक,तर्क,नीड्स,अर्जेंसी, करेक्टराइजेशन,एक्टर प्रिपेअर्स, करेक्टर प्रिपेअरर्स, कंटेंट, टेक्स्ट,सब टेक्स्ट सहित बहुत सारी चीजें सिखायी जाती हैं,जिसका हिंदी सिनेमा में बीच के काल खंड में या कमर्शियल सिनेमा में बहुत जरुरत नही है. न अभिनेता उतनी गहराई में जाते हैं और न ही निर्देशक चाहते हैं कि कलाकार उतनी गहराई में उतरे. लेकिन अब सिनेमा बदला है. दर्शक भी दुनिया भर का सिनेमा देख रहा है. इसलिए अब अभिनय के स्तर में भी बदलव देखा जा रहा है. अब एनएसडी का मैथड एक्टिंग का तरीका कारगर है.

बालीवुड से जुड़ना कैसे हुआ?

-मैं दिल्ली में ही रह रहा था,तभी मुझे घर बैठे ही फिल्म ‘‘रन’’ में छोटा सा किरदार निभाने का अवसर मिल गया था. फिर अक्टूबर 2004 में मंुबई आया. और स्ट्गल का दौर चला. स्ट्गल के दौरान कुछ विज्ञापन फिल्में की. इक्का दुक्का फिल्म व सीरियल करता रहा. पर फिल्म‘‘गैंग ऑफ वासेपुर’’में सुल्तान के किरदार ने मुझे बतौर अभिनेता एक पहचान दिलायी. उसके बाद‘‘फुकरे,‘सिंघम रिटर्न’,‘स्त्री’,‘लुकाछिपी’,‘गंुजनसक्सेना’ सहित कई फिल्में आयी. अब अर्थपूर्ण फिल्मों के साथ साथ व्यावसायिक फिल्में भी कर रहा हूं. मैं वेब सीरीज भी कर रहा हूं. यानी कि काफी व्यस्त हूं.

आपने संघर्ष के दिनों में ज्यादातर हिंसक या गैंगस्टर के ही किरदार निभाए?

-जी नही. . इतने अधिक हिंसक किरदार नहीं निभाए. दूसरी बात मंैने पहले ही कहा कि मेरी कोई योजना नही थी. मेरे पास जो किरदार आए,मैं करता गया. ‘गैंग्स आफ वासेपुर’ में

नगेटिब किरदार था. वह काफी लोकप्रिय हुआ. लेकिन आप ध्यान से देंखेगे तो ‘गैंग्स आफ वासेपुर’ के अलावा वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ में ही नगेटिब किरदार किया है. ‘मिर्जापुर’ के कालीन भईया साफ्ट स्पोकेन हैं. ‘गुड़गांव’ में नगेटिब था. पारंपरिक विलेन नही लगते. इसके अलावा दो तीन छोटी फिल्मों में किए होंगे. उसके बाद आप ‘मसान’, ‘निल बटे सन्नाटा’,‘गंुजन सक्सेना’या ‘क्रिमिनल जस्टिस’ में माधव मिश्रा यह सब पॉजीटिब किरदार ही हैं. मेरे गैंगस्टर वाले किरदार इस कदर लोकप्रिय हुए कि लोगो को अनुभूति होती है कि मंैने गैंगस्टार या नगेटिब किरदार ज्यादा निभाए.

लेकिन आपने ‘निल बटे सन्नाटा’जैसी फिल्मों में सकारात्मक किरदार निभाने के ेबाद ‘गुड़गांव’ में पुनः गैंगस्टर का किरदार निभा लिया?

-इसकी एकमात्र वजह यह थी कि इसकी कहानी बहुत अच्छी थी. किसान किस तरह बिल्डर बनता है और उसकी अपनी क्या स्थिति होती है. जब इंसान अकूट संपत्ति कमा ले,तो फिर उसके लिए सही गलत में कोई फर्क नहीं रह जाता. इसका असर किस तरह से व्यक्ति पर पड़ता है. वह अपनी ही दुनिया में रहने लगता है. एक ग्रंथि का शिकार होकर इंट्ोवर्ट हो जाता है. वह कहानी मुझे बहुत पसंद आयी थी. वह किरदार गैंगस्टर से कहीं ज्यादा एक डार्क फिल्म थी.

फिल्म के निर्देशक श्ंाकर रमण ने जिस तरह से मुझे कहानी सुनायी, उससे मैं बहुत प्रभावित हो गया. इसके अलावा इसके निर्माता भी ‘निल बटे सन्नाटा’ वाले अजय राय ही हैं. तो उनकी बात भी रख ली.

किसी भी किरदार की तैयारी कहां से शुरू होती है?

-आप शायद यकीन न करें,मगर जब हम शौचालय में जाते हैं,तब भी हमारे साथ व हमारे दिमाग में किरदार चलता रहता है. वैसे भी किरदारों की हिस्ट्ी बहुत रोचक चीज है,जो कि दिखता नही है. जैसे कि यह इमारत जिस नींव पर टिकी है,वह नींव दिखती नही है. किरदारों की हिस्ट्ी सोचना मुझे कलाकार के तौर पर मजा देता है. तो में बाथरूम में बैठकर किरदारों की हिस्ट्ी बनाते रहता हूं. उस वक्त यह तय नहीं करता कि किस तरह परफार्म करुंगा. मसलन-यह सोचता हूं कि कालीन भैया,कालीन भैया कैसे बने होंगें? उनके बचपन,स्कूल की पढ़ाई,उनके दोस्त,क्या इतिहास रहा, उस पर जाता हूं. यह रोचक काम होता है. कलाकार के तौर पर मजा आता है. इनमें से कुछ चीजें पटकथा में भी होती हैं. संवाद में भी एक आध जगह आ जाती हैं. इसके अलावा हम निर्देशक से भी बात करते हैं.  कमर्शियल सिनेमा में भी जब कलाकार पूछता है,तो लेखक सोचकर जवाब देता है. मेरा मानना है कि लेखक लिखते समय किरदार की हिस्ट्री के बारे में सोचता होगा. कोई किरदार इस तरह से व्यवहार कर रहा है,तो क्यों कर रहा है? इसकी वजहों पर लेखक भी सोचते ही हैं,लिखते समय.

हर कलाकार दावा करता है कि वह हर किरदार में अपनी निजी जिंदगी का कुछ न कुछ अवश्य पिरोता है. आप भी ऐसा कुछ करते हैं?

-जी हॉ! हम भी ऐसा करते हैं. यह सब हमारी अपनी कल्पनाशक्ति व अनुभव की शक्ति के आधार पर ही होता है. इनके चलते हमारे अभिनय में हमारे जीवन का कोई न कोई हिस्सा आ ही जाएगा. मान लीजिए शादी का दृश्य फिल्माया जा रहा है. अब हमने निजी जीवन में कई शादियां अटैंड की हैं. तो हमें माहौल पता है कि फूफा या मौसा ऐसा करते थे. तो यह अनुभव कलाकार के तौर पर हम रोकना चाहें,तो भी अभिनय में कहीं न कहीं आ ही जाएगा. जिंदगी का अनुभव रोचक होगा ही होगा.

फिल्म ‘न्यूटन’ के किरदार को निभाते समय तो निजी जिंदगी का अनुभव नहीं रहा होगा?

-जी हॉ! उस किरदार में मेरे निजी जीवन का कोई अनुभव नहीं था. मगर मेरे फूफा जी,जो कि नेवी में अफसर हैं, उन दिनों यहीं नजदीक में ही ‘आई एन एस हमला’ में थे. तो मैं उनके पास चला गया था और उनसे ंलबी चैड़ी बातें की थी. लेफ्टीनेंट कमांडेट और उनकी हैरायकी,सब सुना. मैं उनकी कैंटीन में भी जाता था,तो बहुत कुछ देखता था. तो ‘न्यूटन’ के वक्त मैंने कल्पना की कि मेरा किरदार आज न्यूटन से मिल रहा है,पर आज शाम के बाद दोबारा कभी नही मिलेगा. पहले पटकथा में था कि मेरे किरदार को न्यूटन के ेप्रति बड़ी खुन्नस है. कुंठा है. मैने निर्देशक से कहा कि काहे को एरोगेंट या कुंठा? उसे तो पता है कि आज शाम को वोटिंग खत्म होने तक ही इस आदमी को झेलना है,फिर तो मिलना नही है.  तो फिर सिनीकलकाहे को? मेरा किरदार आत्मा सिंह समझ गया कि न्यूटन जिद्दी है,तो उसने तय किया कि इसका मजा लो,इसे खिलाओ. मैने निर्देशक अमित मसुरकर से कहा कि मैं तो ऐसा सोच रहा हूं. उन्होने कहा कि ठीक है,कुछ करो, देखते हैं. आप जो कह रहे हैं,वह दृश्य में किस तरह नजर आता है,वह देखने पर अंतिम निर्णय करते हैं. मैं अपने हिसाब से एक दृश्य में अभिनय करता हूं. आत्मा सिंह, न्यूटन को देखता रहता है. न्यूटन  हाथ से इशारा करता है,तो आत्मा सिंह भी हाथ दिखाता है. तो आत्मा सिंह व न्यूटन के बीच दिनभर चूहे बिल्ली का खेल चलता रहता है. नक्सली इलाका है,इसलिए तनाव भी है. तो कलाकार के जीवन के अनुभव और कल्पनाशक्ति न चाहते हुए भी किरदारों में आ ही जाता है.

‘मिर्जापुर’ के कालीन भैया की प्रेरणा कहां से ली थी?

-मैं एक आध बार पूर्वांचल के बाहुबलियों से मिला था,उनसे मिला भी था. उन्हे देखकर मेरी समझ में आया कि इन्हे दक्षिण भारत जाने वाली किसी ट्ेन में बैठा दिया जाए,तो कोई भी इंसान इनसे डरेगा नही. बल्कि कहेगा कि ,‘जरा सरकिए. मुझे भी बैठना है. ’क्योंकि हर बाहुबली के बारे में लोगो के दिमाग में मीडिया के माध्यम से एक ईमेज है,इसलिए लोग उनसे डरते हैं. अन्यथा वह भी एक इंसान ही है. इसलिए मेरे दिमाग में आया कि बाहुबली कालीन भैया को मैं थोड़ा साफ्ट स्पोकेन व अपप्रिडिक्टेबल बनाता हूं. उनकी नाराजगी या खुशी जल्दी समझ में  न आए.  कालीन भैया हंसकर अपनी खुशी या गुस्सा होकर अपना गुस्सा व्यक्त नहीं करते हैं.

आपने अब तक कई किरदार निभाए. क्या किसी किरदार ने आपकी निजी जिंदगी पर असर किया?

-फिल्म ‘गुड़गांव’ के किरदार ने थोड़ा सा असर किया था. बहुत ही कॉम्पलेक्स किरदार था. इस फिल्म को करते हुए और उसके बाद भी पंद्रह दिनों तक मैं परेशान रहा था.

ऐसे में परेशानी से मुक्त होने के लिए क्या करते हैं?

-कुछ खास नही. घूमना शुरू कर देते हैं. कुछ दिन अलग माहौल में रहते हैं. अथवा दूसरी फिल्म के किरदार की तरफ दिमाग को मोड़ते हैं. जब हम पत्नी व बेटी के साथ घूमने जाते हैं,तो पारिवारिक माहौल में रहते ही दिमाग पूरी तरह से पिछले किरदार से मुक्त हो जाता है. यानी कि उस किरदार का बोझ धीरे धीरे उतर जाता है. इसके अलावा जब नई फिल्म की पटकथा को पढ़ना व उस पर सोचना शुरू करते ेहैं,तब भी पिछला किरदार धीरे धीरे गायब हो जाता है.

बीच में आप फेशबुक पर किस्सा गोई के कुछ किस्से शुरू किए थे. फिर बंद क्यों कर दिया?

-एकमात्र वजह मेरी अति व्यस्तता है. इसके अलावा वीडियो फार्मेट में मेरे इतने इंटरव्यू आ रहे हैं. मेरी अपनी खुद की कहानियां वीडियो फार्मेट में आती हैं. मैने कुछ प्रशंसकों के कहने पर लॉकडाउन एक में ‘किस्सागोई ’ किया था. लोगो ने कहा था कि,‘ हम महामारी की वजह से घरांे में कैद हैं. आप कुछ किस्से सुनाइए. इससे हमारा मनोरंजन होगा और इस मुश्किल वक्त में हौसला मिलेगा. ’ऐसे में बतौर अभिनेता  हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम समाज का मनोबल बढ़ाने के लिए कुछ योगदान दें. तो मैंने सोचा कि अपने जीवन से जुड़े कुछ किस्से सुनाऊं,जो कि मनोरंजन के साथ-साथ कुछ प्रेरणादायक भी हों. इन कहानियों में एक संदेश छिपा है. मैं इसी तरह के किस्से सुनाने लगा था. इसलिए मैने छह सात सीरीज चलायी थी. अप्रत्याशित सफलता मिली थी.  मेरे फेश बुक पेज पर एक कहानी को दो करोड़ लोगोंे ने देखा था. पर कुछ माह बाद फिर से सुनाउंगा.

आपको नही लगता कि इंटरनेट के मकड़जाल में युवा पीढ़ी फंसकर रह गयी है?

-जी हॉ!फिलहाल युवा पीढी की समस्या यह है कि युवा पीढ़ी को इंटरनेट ने एक अंधेरे कंुएं में कैद कर लिया है और इंटरनेट कहता है कि सिर्फ वही देेखो,जो हम दिखा रहे हैं. इंटरनेट कहता है कि जो कुछ सीखना है,यहीं से सीखो. यह गलत है.  यदि आप वास्तव में कुछ सीखना चाहते हैं,तो लोगों से मिलना पड़ेगा. आप आसमान में देखोगे,तो सुंदर बादल व उड़ते पंछी भी काफी कुछ सिखाते हैं. बादल में कई तरह की आकृतियां हैं. किताबें पढ़ें. लोगों की पढ़ने की आदत ही खत्म हो गयी है. गलत है. हर इंसान को खासकर युवा पीढ़ी को ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़नी चाहिए.

बीच बीच में आप अपने गांव जाकर किसानी करने लगते हैं. इसके पीछे की सोच क्या है?

-मैं गांव से बहुत जुड़ा हुआ हूं. मेरे माता पिता गांव में ही रहते हैं. मंुबई की जीवन की आपाधापी से कुछ समय निकालकर गांव में समय बिताना सुखद अहसास देता है. फिल्मनगरी की दुनिया तो बनावटी है. गांव में जितने दिन रहता हूं,चप्पल नहीं पहनता हूं. मिट्टी पर नंगे पांच चलता हूं. मंुबई में मिट्टी से हमारा जुड़ाव ही नहीं होता. मुझे खेती, किसानी,खलिहानी बहुत अच्छा लगता है. इसलिए मैं हर तीन माह में कुछसमय के लिए गांव चला जाता हूं. दूसरी बात गांव जाने का मतलब जमीन व जड़ों से जुड़ना होता है. यही वजह है कि मेरा अभिनय अलग नजर आता है. मेरे अभिनय में रिलेटीविटी नजर आती है. देखिए,यदि आपका किसी चीज से या धरती से जुड़ाव नहीं रहेगा ,तब तो रिलेटीविटी का तार टूट जाएगा. मैं हर चीज से जुड़े रीने का प्रयास करता हूं. मुझे झुणका भाकर खाए हुए काफी दिन हो गए. पुणे के पास कैलाश प्रेम होटल है. बहुत अच्छा झुणका भाकर मिलता है. महाराष्ट्यिन भोजन बहुत अच्छा मिलता है.  कल ही हम पति पत्नी आपस में बात कर रहे थे कि एक दिन पुणे झुणका भाकर खाने के लिए चलते हैं. उसके मालिक से हमने बात भी की. मैं वाई से हलदी मंगाता हूं. तलेगांव से बाजरा व मक्का मंगाता हूं. नार्थ इस्ट से मिर्ची आयी है. कच्छ से कॉटन का कपड़ा मंगाता हूं.

2022 में बॉलीवुड फिल्में असफल हो रही हैं और दक्षिण की फिल्में सफल हो रही हैं. इसकी क्या वजह नजर आती है?

-मेरी समझ से लेखन की कमी हो सकती है. वैसे दक्षिण की भी सिर्फ तीन फिल्में ही सफल हुई है. हिंदी की भी दो तीन सफल रही हैं.

‘कंडोम’ जैसे टैबू पर बनीं है फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’, अविका गौर आईं नजर

हम सभी अत्याधुनिक जीवनशैली के आदी होते जा रहे हैं. मगर आज भी हमारे देश में ‘कंडोम’ टैबू बना हुआ है. आज भी लोग दुकानदार से ‘कंडोम’ मांगने में  झि  झकते हैं. जबकि ‘कंडोम’ कोई बुराई नहीं बल्कि जरूरत है. लोगों के बीच जागरूकता लाने व ‘कंडोम’ को टैबू न मानने की बात करने वाली फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ हाल ही में प्रदर्शित होने जा रही है.

इस फिल्म की खासीयत यह है कि इस के लेखन व निर्देशन की जिम्मेदारी किसी पुरुष ने नहीं, बल्कि एक महिला ने संभाली, जिन का नाम है- सारिका संजोत. इन की बतौर लेखक व निर्देशक यह पहली फिल्म है. पहली बार ही ‘कंडोम’ जैसे टैबू माने जाने वाले विषय पर फिल्म बना कर सारिका संजोत ने एक साहसिक कदम उठाया है.

फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ में ‘ससुराल सिमर’ फेम अभिनेता मनीष रायसिंघन व ‘बालिका वधू’ फेम अविका गौर के साथ ही ‘स्कैम 92’ फेम प्रतीक गांधी सहित कई अन्य कलाकारों ने अभिनय किया है.

पेश हैं, सारिका संजोत से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत के मुख्य अंश:

अब तक की आप की यात्रा कैसी रही है और फिल्मों की तरफ मुड़ने की कोई खास वजह रही?

मैं गैरफिल्मी बैकग्राउंड से हूं. बचपन से फिल्में देखने का शौक रहा है. हर परिवार में मांबाप अपने बच्चों को डाक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते हैं, वहीं मेरे पिता मु  झे फिल्म निर्देशक बनाना चाहते थे, जबकि उन का खुद का इस क्षेत्र से कोई जुड़ाव नहीं था. वे मु  झे हर तरह की फिल्में दिखाते थे. मैं ने मूक फिल्म ‘राजा हरिशचंद्र से ले कर अब तक की लगभग हर भारतीय व कई विदेशी फिल्में देखी हैं, इसलिए दिनप्रतिदिन मेरे अंदर फिल्मों को ले कर उत्साह बढ़ता गया.

धीरेधीरे मैं ने फिल्म तकनीक को ले कर पढ़ना भी शुरू कर दिया और मेरे दिमाग में यह बात आ गई थी कि मु  झे फिल्म निर्देशन करना है. फिर मैं ने फिल्म के लिए कहानी लिखनी शुरू की. पटकथा लिखी. उस के बाद अब बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ ले कर आई हूं. यह फिल्म बहुत ही अलग तरह के विषय पर है. मेरा मकसद लोगों का मनोरंजन करने के साथसाथ उन्हें संदेश भी देना है.

फिल्म ‘कहानी रबर बैंड’ की कहानी का विषय कहां से मिला?

देखिए, फिल्म देखतेदेखते मेरे अंदर समाज में घट रही घटनाओं में से कहानी तलाशने की स्वत: स्फूर्ति एक आदत सी बन गई थी. मैं ने कई घटनाक्रमों पर कई छोटीछोटी कहानियां लिख रखी हैं, जिन्हें फिल्म के अनुरूप विकसित करने की प्रक्रिया कुछ वर्ष पहले शुरू की थी. मैं ने कई कौंसैप्ट पर काम किया है. मेरी अगली फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ से एकदम अलग है. मेरा मानना है कि हमारे आसपास ही कहानियों का अंबार है.

मेरी एक सहेली ने उस के साथ ‘कंडोम’ को ले कर घटी एक घटना का जिक्र किया था, उसी से प्रेरित हो कर मैं ने ‘कहानी रबर बैंड की’ की कहानी को लिखा. मैं ने अपने अनुभवों से सीखा कि आम कहानियों को किस तरह से खास बनाया जाए. हमारी फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ एक हास्य फिल्म है, मगर हम ने इस में एक गंभीर व संजीदा मुद्दे पर बात की है.

आप ने फिल्म का नाम ‘कहानी रबर बैंड की’ क्यों रखा?

हमारी फिल्म का विषय समाज में टैबू समझे जाने वाले ‘कंडोम’ पर है. लोग ‘कंडोम’ खरीदने वाले को अजीब सी नजरों से देखते हैं, जबकि ‘कंडोम’ हर मर्द और औरत की जरुरत है. सिर्फ परिवार नियोजन के ही दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी ‘कंडोम’ अति आवश्यक है. मगर लोगों को दुकान पर जा कर ‘कंडोम’ मांगने में शर्म आती है तो हम ने सोचा कि क्यों न इसे एक ऐसा नाम दिया जाए, जिसे लोग सहजता से ले सकें. तब हम ने इसे ‘रबर बैंड’ नाम दिया. ‘रबर बैंड’ बोलने में किसी को भी न संकोच होगा और न ही शर्म आएगी.

फिल्म ‘कहानी रबरबैंड की’ की कहानी को ले कर क्या कहना चाहेंगी?

देखिए, चूक तो हर इंसान से होती है. हमारी फिल्म के नायक से भी चूक होती है. वह जब दुकानदार से इशारे में ‘कंडोम’ खरीदा और दुकानदार ने भी उसे कागज में लपेट कर पकड़ा दिया, वह चुपचाप घर आ गया. उस ने उस की ऐक्सपायरी की तारीख या कीमत कुछ भी चैक नहीं किया, पर इसी चूक की वजह से उस की पत्नी की जिंदगी में किस तरह की समस्याएं आती हैं, उसी का इस में चित्रण है.

चोरी करने वाले को सजा मिलती है पर यहां चोर कौन हैं? गलती किस की है और जिस की गलती है, उसे साबित कैसे किया जाए? फिल्म में हमारा नायक जिस ‘कंडोम’ को खरीद कर लाता है, वह फट जाता है, जिस से समस्याएं पैदा होती हैं. स्वाभाविक तौर पर दुकानदार ने सस्ता या ऐक्सपायरी वाला ‘कंडोम’ दिया था. पर सवाल है कि इस बात को अदालत में कैसे साबित किया जाए?

लेकिन ‘कंडोम’ पर ही कुछ समय पहले फिल्म ‘जनहित में जारी’ आई थी, जिसे दर्शकों ने पसंद नहीं किया था?

हर फिल्मकार चाहता है कि उस की फिल्म को ज्यादा से ज्यादा दर्शक देखें. मगर ‘जनहित में जारी’ के फिल्मकार का संदेश अलग था और मेरी अपनी फिल्म ‘कहानी रबर बैंड की’ का संदेश अलग है. हम किसी एक जैंडर को सहज नहीं करना चाहते. हम हर इंसान को ‘कंडोम’ के संदर्भ में सहज करना चाहते हैं. हम किसी लड़की से कहेंगे कि वह ‘कंडोम’ बेच कर आए, तो इस से बदलाव आएगा? जी नहीं.

इस से टैबू खत्म होगा? जी नहीं. हमें बैठ कर बड़ी सरलता से हर बच्चे को ‘कंडोम’ को दवा के रूप में बताना होगा. जब तक हम अपने बच्चों से कहेंगे कि बेटा, उधर से मुंह मोड़ ले’ या उधर मत देख, तब तक ‘कंडोम’ टैबू बना रहेगा. हम जब अपने बच्चों से कहते हैं कि उधर मत देखो, तभी हम अपने बच्चों के मन में गलत बात डाल देते हैं.

मैं यह भी नहीं कहती कि आप उपयोग किया हुआ या बिना उपयोग किया हुआ ‘कंडोम’ खुले में सड़क पर फेंक दो, पर यदि ‘कंडोम’ कहीं रखा है, तो उसे बच्चे न देखें, यह सोच गलत है. हम यह बता कर कि यह बड़ों की दवा है, सबकुछ सहज कर सकते हैं. हम अपनी फिल्म के माध्यम से टैबू को खत्म करने की बात कर रहे हैं.

हमारी फिल्म की कहानी ‘कंडोम’ को ‘टैबू’ मानने की वजह से होने वाली समस्याओं पर बात करती है. हमारी फिल्म किसी लड़की से कंडोम बेच कर पैसा कमाने की बात नहीं कर रही. हमारी फिल्म में यह कहीं नहीं है कि किसी के पास थोक में ‘कंडोम’ आ गए हैं, तो अब वह सोच में है कि इन्हें कैसे बेचा जाए? तो ‘जनहित में जारी’ के फिल्मकार का कहानी व समस्या को देखने का नजरिया अलग था. मेरा अपना अलग नजरिया है. यदि कोई भी लड़का या लड़की 14 वर्ष का होगा, तो उसे मेरी फिल्म की बात समझ में जरूर आएगी.

दूसरी बात मेरा मानना है कि ‘कंडोम’ खरीदने की जो  झि  झक है, वह एक दिन में नहीं जाने वाली है. हमें बच्चों के साथ बैठ कर मीठीमीठी बातें करते हुए उन्हें यह समझ कर कि यह बड़ों की दवा है, उन के मन से  झि  झक को दूर करना होगा.

फिल्म के प्रदर्शन के बाद किस तरह के बदलाव की उम्मीद करती हैं?

मु  झे उम्मीद है कि ‘कंडोम’ टैबू नहीं रह जाएगा. इसे ले कर समाज में जो हालात हैं वे बदलेंगे. लोगों की  झि  झक दूर होगी. वे इस पर खुल कर बात करेंगे और अपने बच्चों को भी ‘कंडोम’ को बड़ों की दवा के रूप में बताना शुरू करेंगे.

REVIEW: दोस्ती के जज्बे के साथ फैमिली रिश्तों व मूल्यों की बात करती ‘उंचाई’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः राजश्री प्रोडक्शन और महावीर जैन

निर्देशकः सूरज बड़जात्या

पटकथा लेखकः अभिषेक दीक्षित

कलाकारःअमिताभ बच्चन, सारिका,  अनुपम खेर, नीना गुप्ता, डैनी, बोमन ईरानी, परिणीति चोपड़ा व अन्य.

अवधिः दो घंटे उन्चास मिनट

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था और उसी दिन स्व. ताराचंद बड़जात्या ने ‘‘राजश्री प्रोडक्शन’’ की शुरूआत की थी. उनका मकसद हर इंसान तक पारिवारिक मूल्यों , रिश्तों और दोस्ती की महत्ता को पहुंचाना ही रहा. पिछले 75 वर्षों के दौरान ‘राजश्री प्रोडक्शन’ ने साठ फिल्मों का निर्माण किया. इन 75 वर्ष से ‘राजश्री प्रोडक्शन’ने कभी भी अपने मूल मकसद से नही भटका. 21 सितंबर 1992 को स्व. ताराचंद बड़जात्या के देहांत के बाद इसकी बागडोर स्व. राज कुमार बड़जात्या ने  अपने भाईयों कमल कुमार बड़जात्या व अजीत कुमार बड़जात्या के साथ मिलकर इसकी बागडोर को संभाला. 21 फरवरी 2019 को राजकुमार बड़जात्या का भी निधन हो गया. इन दिनों स्व. राज कुमार बड़जात्या के बेटे सूरज बड़जात्या ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की परंपरा को आगे ले जाते हुए फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं. ‘राजश्री प्रोडक्शन’ के बैनर तले बतौर निर्देशक सूरज बड़जात्या फिल्म ‘उंचाई’ लेकर आए हैं. फिल्म ‘उंचाई’ तीन दोस्तों के रिश्तों व रोड ट्पि की कहानी है. जिसमें सूरज बड़जात्या ने पारिवारिक रिश्तो से भी बड़ा रिश्ता दोस्ती का बताते हुए यह भी कहने का प्रयास किया हे कि परिवर्तन स्थिर नही है ओैर जीवन एकतरफा सड़क नहीं. फिल्म में उन्होने समाज में आए बदलाव को भी चित्रित किया है. मगर वह पुरानी पीढ़ी का चित्रण करते समय चूक गए. शायद इसकी मूल वजह यह है कि युवा पटकथा लेखक अभिषेक दीक्षित को उत्तर भारत के बुजुर्गो के साथ रहने का अवसर न मिला हो. दूसरी चूक फिल्म की लंबाई है.

कहानीः

मूलतः यह कहानी चार दोस्तों बेस्ट सेलर लेखक अमित श्रीवास्तव(अमिताभ बच्चन) अपने दो अन्य लंगोटिया यारों,  लेडीज कपडों की दुकान चलाने वाले जावेद (बोमन ईरानी) और हिंदी किताबों की दुकान चला रहे ओम शर्मा (अनुपम खेर) के साथ अपने दोस्त व अवकाश प्राप्त  सरकारी अफसर भूपेन(डैनी) के जन्म दिन पार्टी में जाते हैं, जहां भूपेन उन लोगो से दो माह बाद एवरेस्ट पर जाने की बात करता है. यह चारों 65 साल से अधिक उम्र के हैं, इसलिए बाकी के तीन नही जाना चाहते. पर भूपेन का बचपन नेपाल में बीता है. इसलिए वह वहां और हिमालय की बातें कर तीनों का तैयार कर लेता है. दूसरे दिन सुबह तीनों दोस्तों को भूपेन के देहांत की खबर मिलती है. भूपेन का इन दोस्तों के अलावा इस दुनिया में कोई नही है. क्योंकि भूपेन ने अपने लड़कपन के प्यार के चलते शादी नही की थी. भूपेन के अंतिम संस्कार के बाद अमित श्रीवास्तव को भूपने के घर से एवरेस्ट बेस कैंप जाने की दो माह बाद की चार टिकटें मिलती है. भूपेन की अंतिम इच्छा थी कि उनकी अस्थियों का विसर्जन एवरेस्ट बेस कैंप पर किया जाए. अब यह तीनों अपने दिवंगत दोस्त भूपेन (डैनी डेंग्जोंग्पा) को श्रद्धांजलि देने और उसकी अंतिम इच्छा को पूरी करने के लिए एवरेस्ट के बेस कैंप की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए निकल पड़ते हैं. यॅूं तो अब यह सभी दोस्त अपनी बढ़ती उम्र की चुनौतियों के साथ-साथ स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं,  मगर दोस्त की खातिर असंभव को संभव बनाने के लिए निकल पड़ते हैं.  इन सभी दोस्तों की अपनी-अपनी कहानियां भी हैं.  जावेद और उसकी पतिव्रता पत्नी शबाना ( नीना गुप्ता) के बीच एक खूबसूरत रिश्ता है,  उनकी एक शादीशुदा बेटी हीबा कानपुर में रहती है. अमित सोशल मीडिया और युवा पीढ़ी के बीच लोकप्रिय लेखक हैं, मगर उनकी असल जिंदगी में भी कुछ ऐसे राज हैं,  जो उन्होने खुद को सबसे आगे रखने के लिए छिपा रखे हैं. यह तीनों दोस्त अपने दिवंगत दोस्त भूपेन के अस्थि कलश को लेकर दिल्ली से आगरा होते हुए कानपुर जावेद की बेटी हीबा के घर पहुचते हैं. फिर लखनउ में उन्हें अपने साथ सहयात्री के रूप में माला त्रिवदेी (सारिका) को भी जोड़ना पड़ता है. कुछ समय बाद पता चलता है कि भूपेन की लड़कपन की प्यार माला त्रिवेदी थीं. वहां से गोरखपुर ओम शर्मा की पुश्तैनी हवेली होते हुए काठमांडू पहुंचते हैं. वहां ट्रैकिंग मार्गदशक दिव्या (परिणीति चोपड़ा ) के नेतृत्व में एवरेस्ट बेस कैंप की यात्रा शुरू होती है. कई कठिनाइयों के बाद यात्रा पूरी हेाती है. वह अपने दिवंगत दोस्त की अस्थियो को एवरेस्ट बेसकैंप पर विसर्जित करते हैं. एवरेस्ट बेस कैंप की चढ़ाई के दौरान यह तीनों जो कुछ सीखते हैं, उससे उनकी जिंदगी में बदलाव आता है.

लेखन व निर्देशनः

‘‘प्रेम रतन धन पाया’’ के का निर्देशन करने के सात  वर्ष बाद सूरज बड़जात्या ‘उंचाई’ लेकर आ हैं. जिसमें उनके दादा स्व. ताराचंद बड़जात्या के समय से चली आ रही ‘राजश्री प्रोडक्शन’ के पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों की महक बरकरार है. मगर इस बार कहानी व पटकथा कुछ कमजोर हो गयी है. मेरी समझ से इसकी मूल वजह इसके पटकथा लेखक का नई पीढ़ी का होना है. फिल्म में एक दृश्य है, जब अनुपम खेर तीस वर्ष बाद गोरखपुर में अपनी पुश्तैनी हवेली अपने दोस्तों के साथ पहुॅचते हैं, तब जिस तरह की प्रतिक्रिया उनके बड़े भाई देते हैं, वह गले नही उतरती. माना कि समाज में बदलाव आए हैं, मगर अभी भी उत्तर भारत के बुजुर्गो में कुछ तहजीब व पारिवारिक मूल्य बाकी हैं. यूं तो फिल्म में उपदेशात्मक भाषणबाजी नही है, मगर कई दृश्यों में सीख देने का प्रयास जरुर किया गया है. लेखक व निर्देशक की इस सोच की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होने पारिवारिक व सामाजिक मूल्यों का चित्रण करने के साथ ही समाज में आए बदलाव व वर्तमान युवा पीढ़ी की सोच और उनकी समस्यायों को भी उपेक्षित चित्रित किया है. मगर एवरेस्ट बेस कैंप की युवा कैप्टन का तीन बुजुर्गो के साथ कुछ दृश्यों में किया गया व्यवहार कहीं गलत लगता है. क्योकि इस तरह की कठिन चढ़ाई के दौरान कैप्टन का काम होता है हर किसी का हौसला बढ़ाना न कि हौसले को खत्म करना.

फिल्म में माता-पिता हमेशा सही नहीं होते,  बच्चे अक्सर गलत नहीं होते,  विवाह में दूरी की आवश्यकता हो सकती है,  और प्यार अक्सर सांसारिक सुखों के आगे झुक सकता है, जैसे मुद्दे भी मनोरंजक तरीके से उठाए गए हैं. फिल्म यह संदेश भी देती है कि किसी भी काम को कल पर मत छोड़ो,  क्योंकि जीवन में कल कभी नहीं आता.

बतौर निर्देशक सूरज बड़जात्या ने जज्बातर दृश्यों में किरदारों के आंसू बहाकर मैलोड्ामा नही बनाया. निर्देशक के तौर पर सूरज बड़जात्या ने बेहतरीन काम किया है. . काश उन्हे पटकथा का पूरा सहयोग मिला होता. . . . .

फिल्म के कुछ संवाद अच्छे बन पड़े हैं. एक संवाद है-‘‘शास्त्रों में लिखा है हमारे पर्वत,  हमारे वेदों के प्रतीक हैं औरयह तो हिमालय है‘,  ‘भले ही हम हिमालय के दर्शन न कर सके,  पर हम ये न भूलें कि हमारे अंदर भी हिमालय की वह शक्ति है, जिससे हम जीवन की हर ऊंचाई पार कर सकते हैं. ‘

एवरेस्ट बेस कैंप की ट्ैकिंग करना यानी कि चढ़ना आसान नही है. उस दौरान आने वाली परेशानियों का भी जिक्र है. तैयारी का भी जिक्र है. पर विस्तार से नही. बीच रास्ते मे दो पहाड़ियों के बीच के पुल को पार करने के दौरान तेज हवाओंे के साथ बारिश के दृश्य का फिल्मांकन बहुत सुंदर है, पर इस दृश्य को आवश्यकता से ज्यादा लंबा रखा गया है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसा जा सकता था. प्री क्लायमेक्स के दृश्य भी काफी लंबे है. कम से कम इस फिल्म को तीस मिनट कम किया जा सकता था. इंटरवल से पहले फिल्म जितनी तेज गति से भागती है, इंटरवल के बाद फिल्म शिथिल पड़ जाती है. कहानी भी गडमड हो जाती है.

‘‘राजश्री प्रोडक्शन’’ की हर फिल्म की सफलता में उस फिल्म के गीत व संगीत का बहुत बड़ा योगदान रहा है. मगर ‘उंचाई ’ का उस हिसाब से खरा नही उतरता. माना कि अमित त्रिवेदी का संगीत हर सिच्युएशन के अनुसार सही है, पर वह बात नही बनी, जो बननी चाहिए थी.

अभिनयः

सूरज बड़जात्या ने फिल्म के किरदारो के अनुरूप बेहतरीन कलाकारों का चयन किया है. पर कैप्टन के किरदार में परिणीति चोपड़ा का चयन गलत रहा. वह अपने अभिनय से कहीं प्रभावित नहीं करती. अमित श्रीवास्तव के किरदार में कई परते हैं. जिसे अमिताभ बच्चन ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. अमिताभ बच्चन को नजदीकी से जानने वाले मानते है कि उनके निजी जिंदगी के कुछ तथ्य अमित श्रीवास्तव के किरदार मे हैं. मूलतः पारसी बोमन ईरानी ने मुस्लिम इंसान जावेद का किरदार निभाया है. पर कहीं न कहीं उर्दू संवाद बोलते हुए मात खा गए. पारिवारिक फिल्मों व किरदारों के लिए नीना गुप्ता तो अनिवार्य हो गयी हैं. अपने शबीना के किरदार में वह छा जाती हैं. ओम शर्मा के किरदार में अनुपम खेर का अभिनय बेहतरीन हैं, मगर उनके लहजे व मैनेरिज्म में दोहराव नजर आता है. माला त्रिवेदी के किरदार में सारिका ने कमाल का अभिनय किया है. भूपेन के  छोटे किरदार में भी डैनी अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

नारी सशक्तिकरण के बारे में क्या कहती हैं नीना गुप्ता, पढ़ें इंटरव्यू

बौलीवुड अदाकारा नीना गुप्ता की गिनती सदैव स्ट्रौंग व करेजियस महिला के रूप में होती है. कुछ लोग उन्हे बोल्ड और करेजियस ओमन भी मानते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि उन्होने क्रिकेटर विवियान रिचर्ड से रिश्ते रखे और बिना शादी किए बेटी मासाबा को जन्म देने के साथ ही उसका ‘सिंगल मदर’ के रूप में पालन पोषण भी किया. आज की तारीख में मासाबा न सिर्फ एक अभिनेत्री हैं,बल्कि मशहूर फैशन डिजायनर भी हैं. लेकिन सिंगल मदर के रूप में नीना गुप्ता को पग पग पर तकलीफें सहनी पड़ी. उनका संघर्ष  उनके लिए काफी तकलीफ देह रहा. पर उन्होने कभी हार नही मानी. उन्होने अपने सिद्धांतो से कभी समझौता भी नही किया. लगभग 49 वर्ष की उम्र में उन्होने विवेक मेहरा से विवाह रचाते हुए अभिनय से दूरी बनायी थी. पर वह खुद को अभिनय से ज्यादा समय तक दूर नहीं रख पायी. टैबू समझे जाने वाले विषय पर बनी फिल्म ‘‘बधाई हो’’ से उन्होने वापसी. तब से उनका कैरियर तेज गति से भाग रहा है. इन दिनों वह सूरज बड़जात्या निर्देशित फिल्म ‘‘उंचाई’’ को लेकर उत्साहित हैं. जो कि ग्यारह  नवंबर को प्रदर्शित हुई है.

नीना गुप्ता से उनके संघर्ष और ‘सिंगल मदर’ बनने की सलाह आदि पर लंबी बातचीत हुई. जो कि इस प्रकार रही. . .

चालिस वर्ष के कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?

-मुझे सबसे पहले शोहरत मिली हॉकिंस की विज्ञापन फिल्म से. उसके बाद टीवी सीरियल ‘‘खानदान’’ की लोकप्रियता के चलते मुझे भी शोहरत मिली. उसके बाद टर्निंग प्वाइंट्स आया दूरदर्शन से. मैने खुद ‘दर्द’,‘सांस’, ‘पलछिन’, ‘सिसकी’,‘सोनपरी’, ‘सांझ’, ‘क्यों होता है प्यार’ जैसे सीरियलों का निर्माण किया. इनमें से ‘संास’ का निर्माण,लेखन व निर्देशन किया. ‘दर्द’ का भी निर्देशन मैने ही किया था. ‘पलछिन’ व ‘सिसकी’ का भी निर्देशन किया था. लेकिन टीवी सीरियल ‘‘सांस’’ को सबसे अधिक सफलता मिली और इससे मुझे फायदा भी मिला. ‘सांस’का निर्माण,लेखन व निर्देशन कर मुझे संतुष्टि मिली. मैंने इससे नाम व धन दोनों कमाया. इसके बाद काम भी मिला. मैने कई सीरियल किए. उसके बाद मैने शादी कर ली और सोचा कुछ समय आराम करुंगी. क्योंकि मैं इतने वर्षों से लगातार दिन रात काम करती आ रही थी. मगर कुछ दिन में ही समझ में आ गया कि आराम करना मेरे वश की बात नही है. मुझे तो काम करने की लत लग चुकी है. मैं पुनः काम करना चाहती थी. पर कोई अच्छा काम मिल नही रहा था. एक दिन मैने फेशबुक पर अपनी पीड़ा व्यक्त की और मुझे सबसे पहले बोल्ड कंटेंट वाली फिल्म ‘‘बधाई हो’’ करने का अवसर मिला. तो ‘बधाई हो’’ मेरे कैरियर का टर्निंग प्वाइंट रहा. यदि मुझे ‘बधाई हो’’करने का अवसर न मिला होता,तो आज आप मेरा इंटरव्यू न कर रहे होते.

आपने 1982 में जब कैरियर की शुरूआत की थी,तब आप बतौर हीरोईन फिल्में कर सकती थीं,पर ऐसा नहीं हुआ?

-इसकी दो वजहें रहीं. पहली वजह यह रही कि मैने बॉलीवुड में प्रवेश करते ही गलत फिल्म व गलत किरदार चुन लिया था. मैने फिल्म ‘साथ साथ’ में एक लल्लू लड़की का किरदार निभाया,जो कि मुझे नहीं निभाना चाहिए था. कुछ समय बाद एक पार्टी में गिरीश कर्नाड जी ने मुझसे कहा था कि अब मुझे हीरोईन की भूमिका कभी नही मिलेगी. दूसरी वजह यह रही कि मुझे सलाह देने या राह दिखाने वाला कोई नहीं था. उस वक्त मुझे किसी निर्माता या निर्देशक से किरदार या फिल्म मांगने में शर्म आती थी. जबकि बॉलीवुड में तो बेशर्म होना पड़ता है. काम पाने के लिए लोगों के पीछे पड़ना पड़ता है. पर मैं सोचती थी कि बार बार फोन करुंगी,तो उन्हे बुरा लगेगा. इन्ही वजहों से मैं कभी हीरोइन नही बन सकी. जबकि मेरे अंदर हीरोईन बनने के सारे गुण थे. अभिनय प्रतिभा भी थी.

आपने भारतीय फिल्मों में अभिनय करने के साथ ही तमाम इंटरनेशनल फिल्में की,पर इसे आप भुना नही पायी?

-जी हां!मैं अपना प्रचार करने में काफी कमजोर हूं. मुझे लग रहा थाकि में विदेशी फिल्मों में छोटे किरदार निभा रही हूं,पर बाद में देखा तो लगभग सभी भारतीय कलाकार इंटरनेशनल फिल्मों में छोटे किरदार ही निभारहे हैं,पर वह इस बात का हौव्वा खड़ा कर खुद को महान बताने पर उतारू हैं. पर मुझे अपनी वाह वाही करनी नही आती. मेरा अपना कोई नही है,जो मेरा प्रचार करे. मेरे पति को तो फिल्म इंडस्ट्री की समझ ही नही है. सच कह रही हूं. मैं पीआर में बहुत निकम्मी हूं. मैं पीआर करने में असफल हूं. मैं पीआर नही कर सकती. जबकि ऐसा करना बहुत जरुरी है. अन्यथा लोग आपको भूल जाते हैं. मैं आपको उदाहरण देती हूं. एक बार लेखक अश्विनी धीर,जिनका मैं एक सीरियल कर चुकी थी. वह ल्मि बना रहे थे. उनकी फिल्म की शूटिंग शुरू हो चुकी थी. मुझे पता चला कि उन्होंने मेरी उम्र की एक अन्य अभिनेत्री को अपनी फिल्म में लिया है. मैं एकदम शॉक्ड रह गयी. तो मैने उन्हे फोन करके पूछा कि तुमने मुझे क्यों नहीं लिया? जबकि वह हमेशा कहा करते थे कि मैं बहुत अच्छी अभिनेत्री हूं. मेरे फोन करने पर उन्होने अफसोस जताते हुए कहा कि वह भूल गए. तो ऐसा भी होता है. इसलिए में कहती हूं कि मैं खुद को याद दिलाते रहने में असफल रही हूं. जबकि हमें भी पता है कि यहां हम जितना काम करते हैं,उससे कहीं अधिक ‘शोबाजी’करनी पड़ती है.

आपने अपनी आत्मकथा रूपी किताब लिखी. उसके बाजार में आने के बाद किस तरहह की प्रतिक्रियाएं मिली?

-लोगों को मेरी किताब बहुत अच्छी लगी. लोगों को पता नही था कि मेेरे निजी जीवन में भी काफी संघर्ष रहा है. इमोशनल रिस्पांस तो काफी मिले.

जब आप अपने निजी जीवन के संघर्ष को किताब का रूप देने के लिए लिख रही थी,उस वक्त आपको कितनी पीड़ा हो रही थी?

-बहुत पीड़ा हुई. खासकर जब मैने अपने परिवार के संबंध में लिखा,तब कुछ ज्यादा ही पीड़ा हुई. हकीकत में लिखने के बाद उसे बार बार ठीक करने के लिए पढ़ना पड़ा. प्रूफ रीडिंग के समय पढ़ना पड़ा. तब कुछ ज्यादा ही तकलीफ हुई. एक वक्त वह आया जब पैंग्विन वाले मेरे पास करेक्शन करने के लिए भेजते थे,तो मैं नहीं पढ़ पायी. मैने उनसे कहा कि आप देख लें और खुद ही ठीक कर लें.  क्योंकि मुझे मेरा अपना संघर्ष व जीवन में जो कुछ घटा वह बहुत पीड़ा देता है.

कैरियर के शुरूआती दिनों में आपकी ईमेज स्ट्रांग ओमन की रही है?

-यह ईमेज मीडिया ने बनायी थी. स्ट्रांग का मतलब वह जो अपनी बात निडरता से कह सके. पर मैं तो अपनी बात कभी कह ही नही पायी. मैं एक भी ऐसे इंसान को नहीं जानती,जो वह कह या कर सके,जो उसका मन कहता है. तमाम लोग दावा करते है कि वह अपनी शर्तों पर जीता हैं?कौन अपनी शर्तों पर जीता है. सभी रबिश बातें करते हैं. यह सारी अच्छी अच्छी लाइने सिर्फ बोलने के लिए हैं. मगर है कुछ भी नहीं.

पर ज्यादातर अभिनेत्रियां इसी तरह की बाते करती हैं?

-यह उनकी मर्जी वह चाहे जो बातें करें. मुझे इससे कोई लेना देना नहीं. . . .

जब आपको राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘उंचाई’’ का आफर मिला,तो आपको किस बात ने इस फिल्म को करने के लिए इंस्पायर किया था?

-कभी हम इसी ‘राजश्री प्रोडकन’ के दफ्तर के बाहर से चक्कर काटा करते थे. पर मुझे अंदर आने को नहीं मिला था. जब दफ्तर में सूरज बड़जात्या जी ने मुझे बुलाकर ‘उंचाई’ में एक बेहतरीन किरदार निभाने के लिए कहा,तो उसके बाद कुछ कहने या सोचने को रह ही नही गया था. वह कहानी व किरदार सुना रहे थे और मैं हवा में उड़ रही थी. राजश्री प्रोडक्शन में और सूरज बड़जात्या के निर्देशन में काम करना अपने आप में बहुत बड़ी बात है. फिल्म भी अच्छी, किरदार भी अच्छा. निर्माण कंपनी व निर्देशक भी अच्छा.

फिल्म ‘‘उंचाई’’ के अपने किरदार के बारे में क्या कहना चाहेंगी?

-मैने शमीना सिद्दिकी का किरदार निभाया है,जो कि जावेद सिद्किी की पत्नी है. जावेद सिद्किी के किरदार में बोमन ईरानी हैं.  वह किताबों की दुकान चलाते हैं. शमीना की जिंदगी उसके पति के इर्द गिर्द घूमती है. मुझे लगता है कि औरतें मेरे किरदार के साथ आईडेंटीफाई करेंगी. क्योंकि हमारे देश में निन्यानबे प्रतिशत औरतों की जिंदगी सिर्फ उनके पति, परिवार व बच्चों के ही इर्द गिर्द तक सीमित है. पति से कहना कि यह मत खाना. तुमको डाबिटीज है,तो पार्टी में शराब मत पीना वगैरह. वगैरह. . यही मेरा किरदार है. मगर अंत में सूरज जी ने मेरे किरदार को एक नया रोचक मोड़ दिया है.

आप अपने पुराने सीरियल ‘सांस’ का दूसरा सीजन लेकर आने वाली थी?

-क्या करुं.  ‘स्टार प्लस’ ने रिजेक्ट कर दिया. जबकि स्क्रिप्ट पसंद आने के बाद ‘स्टार प्लस’ ने ही इसका पायलट एपीसोड बनाने के लिए पैसे दिए थे. मैने बडक्ष्ी मेहनत व ईमानदारी से बनाया. मगर वहां पर एक व्यक्तिऐसा था,जिसे पसंद नहीं आया. लेकिन मैने हार नही मानी है. मैं इसे बनाउंगी. वास्तव में चैनलो में एमबीए की पढ़ाई कर ऐसे लोग आकर बैठगए हैं,जिन्हे सिनेमा या टीवी की समझ ही नही है. कारपोरेेट वालों को सिनेमा की कोई समझ ही नहीं है. जब मैने पहले ‘सांस’ बनायी थी,उस वक्त रथिकांत बसु जैसे समझदार इंसान थे. एक बार विषय व पटकथा पर चर्चा हुई और सहमति बन गयी. उसके बाद कभी भी उन्होंने लेखक या निर्देशक के तौर पर मुझे विचार विमर्श करने के लिए नहीं बुलाया. अब तो वह यहां तक डिक्टेट करते हैं कि लाल नहीं नीले रंग की टी शर्ट पहनो.

कारपोरेट के चलते सिनेमा भी गड़बड़ हुआ?

-कारपोरेट तो अभी भी है. पर सिनेमा अब बेहतर हो गया है. कोविड के चलते दो वर्ष तक घर में रहने के कारण लोगों की सिनेमाघर जाने की आदत छूट गयी है. क्योकि अब उन्हे आराम से घर पर बैठकर ओटीटी पर फिल्में देखने की आदत हो गयी है. जबकि सिनेमाघरों व ओटीटी पर फिल्म देखने के अनुभव बहुत अलग होते हैं. मैं हर इंसान से कहना चाहूंगी कि वह ‘उंचाई’ को सिनेमाघरों में ही जाकर देखें अन्यथा सिनेमा देखने का असली अनुभव पाने से वह वंचित रह जाएंगे. इसके विजुअल का आनंद ओटीटी पर आ ही नही सकता.

पिछले कुछ वर्षों से ‘वूमन इम्पॉवरमेंट’ की बातें हो रही है.  क्या असर हो रहा है?

-ज्यादा कुछ नहीं हो रहा है. केवल एक शुरूआत हुई है. शुरूआत यह हुई है कि अब ज्यादा औरतें कमाने लगी हैं. और वह भी बड़े महानगरों में. मेरी राय में नारी सशक्तिकरण तभी होगा जब नारी आर्थिक रूप से सबल होगी. इस हिसाब से फिलहाल नारी इम्पॉवरमेंट का रेशियो बहुत छोटा है. पर मैं आशावादी हूं कि शुरूआत तो हुई है,भले ही महानगरों से हुई हो.

सिंगल मदर के रूप में आपने मासाबा की परवरिश की. जिसके चलते आपका लंबा संघर्ष रहा. उन अनुभवों के बारे में बताएंगी और उन अनुभवों के आधार पर आप नई पीढी की लड़कियों या औरतों से क्या कहना चाहेंगी?

-मैंने उन अनुभवो को अपनी किताब में लिख दिया है. हर किसी से कहूंगी कि वह मेरी किताब पढ़ लें. अब मैं अपने संघर्ष व तकलीफों का रोना बार बार नहीं रोना चाहती. लेकिन मैं आपके दूसरे सवाल का जवाब देना चाहूंगी. मैं हर लड़की व औरत से कहना चाहूंगी कि मैने जो किया,उसमें मेरी अपनी परिस्थितियां थी. लेकिन मेरी परिस्थितियों से आपकी परिस्थितियां अलग हो सकती है. इसलिए मैं हर लड़की और हर औरत से कहना चाहूंगी कि आप वह मत करना, जो मैने किया. अगर आपकी मजबूरी है. आपकी बहुत ज्यादा इच्छा है. यदि आपको लगता है कि आप उसके परिणाम को सहन कर पाएंगी,तभी करें. वरना न करें. मेरी तो यही सलाह है. मैने जो कदम उठाया,उसमें बहुत तकलीफ होती है. यदि किसी नारी को लगता है कि हालात बदले हुए हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ को मान्यता दे दी है. तो भी बहुत तकलीफ होनी है. हकीकत मे कुछ नही बदला है. समाज की सोच नही बदली है. सिर्फ बड़ी बड़ी बातें हो रही हैं.

आपकी बेटी मासाबा का कैरियर किस दिशा में जा रहा है?

-उसने कुछ वेब सीरीज में अभिनय किया है. बेहतरीन अदाकारा है.  वह तो आगे भी अभिनय करते रहना चाहती है.

शादी के 7 महीने में पेरेंट्स बने आलिया-रणबीर, शेयर किया पोस्ट

प्रैग्नेंसी को लेकर सुर्खियों में रहने वाली एक्ट्रेस आलिया भट्ट और एक्टर रणबीर कपूर पेरेंट्स बन गए हैं. मां बनने का इंतजार करने वाले फैंस को एक्ट्रेस के सोशलमीडिया पर एक पोस्ट के जरिए बेटी के पैदा होने की जानकारी दी है. इसके अलावा पोती के जन्म की खुशी जाहिर करते हुए एक्ट्रेस नीतू सिंह का रिएक्शन सामने आया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

बेटी के पेरेंट्स बनें आलिया-रणबीर

 

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फैंस के लिए पोस्ट शेयर करते हुए एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने लिखा, “और हमारी लाइफ की बेस्ट न्यूज कि हमारी बेटी आ गई है… वह एक मैजिकल बच्ची की तरह है. हम ऑफिशियली तौर पर प्यार मिल रहा है…ब्लेस्ड और ऑबसेस्ड पैरेंट्स…लव लव लव…आलिया और रणबीर”. एक्ट्रेस के इस पोस्ट पर बौलीवुड से लेकर टीवी सेलेब्स और फैंस अपना प्यार लुटाते हुए दिख रहे हैं. इसके अलावा दोनों के स्वस्थ रहने की शुभकामनाएं भी दे रहे हैं.

 

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आलिया भट्ट के मां बनने और नीतू कपूर (Neetu Kapoor Video) ने दादी बनने की खुशी मीडिया के सामने जाहिर की है. हाल ही में सोशमलीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें एक्ट्रेस से जब पूछा गया कि बिटिया आलिया या रणबीर में से किस पर गई है, तो उन्होंने बड़े प्यार से  कहा कि अभी तो वह बहुत छोटी है. इसलिए अभी तो कह नहीं सकती. वहीं आलिया की तबीयत के बारे में उन्होंने अपडेट देते हुए उन्होंने कहा कि वह एक दम फर्स्ट क्लास है.

 

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बता दें, एक्ट्रेस आलिया भट्ट और रणबीर कपूर की शादी इसी साल यानी अप्रेल 2022 में हुई थी, जिसके कुछ ही महीने बाद एक्ट्रेस ने प्रैग्नेंसी की खबर फैंस को दी थी. वहीं शादी के अब 7 महीने बाद ही एक्ट्रेस ने बेटी को जन्म दिया है, जिसे लेकर लोग हैरान हैं और कह रहे हैं कि एक्ट्रेस आलिया भट्ट शादी से पहले प्रैग्नेंट थी. हालांकि इस पर एक्ट्रेस का कोई रिएक्शन सामने नहीं आया है.

मंगेतर की पहली शादी पर Hansika Motwani ने लगाए थे ठुमके, वीडियो वायरल

साउथ से लेकर बौलीवुड फिल्मों में नजर आ चुकी एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी (Hansika Motwani) इन दिनों अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में हैं. जहां बीते दिनों एक्ट्रेस की शादी की खबर और प्रपोजल की फोटोज सोशलमीडिया पर छाई हुई थीं तो वहीं अब हंसिका के होने वाले पति की पहली शादी की वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें खास बात यह है कि एक्ट्रेस खुद उस शादी में ठुमके लगा रही हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मंगेत्तर की पहली शादी में दिखीं हंसिका

एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी जल्द ही अपने बिजनेस पार्ट्नर और मंगेत्तर सोहेल खतुरिया (Sohael Khaturiya) संग शादी करने वाली हैं. इसी बीच सोशलमीडिया पर खबरें और वीडियो वायरल हो रही हैं कि हंसिका मोटवानी के मंगेतर सोहेल खतुरिया उनकी दोस्त रिंकी के एक्स हसबैंड हैं. इतना ही नहीं दोनों की शादी की वीडियो में एक्ट्रेस हिस्सा बनते हुए और ठुमके लगाते हुए नजर आई थीं, जिसकी वीडियो तेजी से वायरल हो रही है.

ठुमके लगाती दिखीं हंसिका

 

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वीडियो की बात करें तो हंसिका मोटवानी अपनी दोस्त रिंकी और उनके एक्स हसबैंड सोहेल खतुरिया की संगीत सेरेमनी में डांस करते हुए नजर आ रही हैं. इसके अलावा वह शादी के हर फंक्शन का हिस्सा बनती हुई दिखीं थीं. वहीं खबरें हैं कि रिंकी और सोहेल की शादी साल 2016 में ही हुई थी, जो शादी के कुछ समय बाद ही अलग हो गए थे.

बता दें, हाल ही में एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी के मंगेत्तर ने उन्हें आईफिल टॉवर प्रपोज किया था, जिसके बाद उनके दिसंबर में जयपुर के मुंदोता फोर्ट में शादी की खबरें सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. हालांकि इस खबर पर एक्ट्रेस का कोई रिएक्शन सामने नही आया है.

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