Mother’s Day Special: बच्चों के लिए बनाएं मैगी पनीर रैप

वर्तमान कोरोना काल में हम सभी को हैल्दी डाइट अपने खानपान में शामिल करने की सलाह दी जा रही है. इसके अतिरिक्त आजकल लॉक डाउन भी चल रहा है जिससे बाहर से कुछ भी मंगाना सम्भव नहीं है. आज हम आपको घर में उपलब्ध सामग्री से ही एक ऐसी रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसमें एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन्स, केल्शियम और प्रोटीन तो भरपूर मात्रा में है ही साथ ही इसे घर के सभी सदस्य स्वाद लेकर खाएंगे भी. पनीर की उपलब्धता न होने पर आप घर के दूध को नीबू के रस से फाड़कर प्रयोग कर सकतीं हैं. बच्चों को पौष्टिक चीजें खिलाना काफी मुश्किल होता है परन्तु इसका मैगी फ्लेवर बच्चों को बहुत पसंद आएगा. तो आइए जानते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं-

कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

मैदा 1 कप
गेहूं का आटा 1/2 कप
पनीर 250 ग्राम
बारीक कटा प्याज 1
बारीक कटी शिमला मिर्च 2
शेजवान सॉस 1 टीस्पून

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मैगी मसाला 1 टेबलस्पून
अमचूर पाउडर 1/2 टीस्पून
भुना जीरा पाउडर 1/4 टीस्पून
काला नमक 1/4 टीस्पून
काली मिर्च 1/4 टीस्पून
तेल 1 टेबलस्पून

विधि

मैदा और गेहूं को पानी की सहायता से रोटी जैसा गूंथकर आधे घण्टे के लिए ढककर रख दें. पनीर, प्याज और शिमला मिर्च को बारीक बारीक काट लें. 1/2 टीस्पून गर्म तेल में प्याज सॉते करके शिमला मिर्च और नमक डालकर ढक दें. 3-4 मिनट बाद खोलकर पनीर डाल कर चलाएं. अब मैगी मसाला, शेजवान सॉस तथा अन्य सभी मसाले डालकर खोलकर ही 3-4 मिनट रोस्ट करें ताकि पानी सूख जाए. गैस बंद करके ठंडा होने दें. मैदा में से रोटी के जैसी छोटी लोई लेकर पतली रोटी बेलकर तवे पर हल्की सी दोनों तरफ से सेंक लें. इसी प्रकार सारी रोटियां तैयार करें. अब 1 टेबलस्पून पानी में 1 टीस्पून मैदा डालकर चलाएं. तैयार रोटी के एक साइड में एक टेबलस्पून पनीर का मिश्रण रखकर चारों तरफ मैदा का घोल लगाएं. अब रोटी में भरावन को रोल करके उंगलियों से दबाकर चिपका दें. साइड से भी चिपका दें. इसी प्रकार सारे रैप तैयार करें. इन पर ब्रश से दोनों तरफ चिकनाई लगाएं और गर्म तवे पर एकदम धीमी आंच पर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंकें. बटर पेपर पर निकालकर टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

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Mother’s Day Special: फैसला-बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

Mother’s Day Special: मदर्स डे- भाग 3

आहिस्ताआहिस्ता सीढि़यां चढ़ कर अम्मां भी ऊपर आ गईं. बोलीं, ‘‘मुझे तो छत पर चढ़े महीनों हो गए होंगे. शांति ही आ कर छत पर झाड़ू लगा देती है.’’ ‘‘अम्मां मीरा बूआ कैसी हैं?’’

‘‘अच्छी हैं, बेटा. फूफाजी के जाने के बाद उन्हें संभलने में वक्त लगा, परंतु उन्होंने हार नहीं मानी. दोनों बच्चे पढ़लिख कर नौकरी पर लग गए हैं.’’

‘‘रजत की बीवी कैसी है? बूआ से तो बहुत पटती होगी. हम लोगों से ही इतना लाड़ करती थीं, तो अपनी बहू को तो और भी ज्यादा प्यार करती होंगी.’’ ‘‘3-4 साल तो बहू की तारीफ करती रहीं… कुछ दिन पहले फोन आया था. अब सजल के साथ दूसरे फ्लैट में अलग रह रही हैं.’’

‘‘अच्छा.’’ ‘‘पहले जब बूआ छुट्टियों में रहने आती थीं तो क्या मस्ती होती थी. एक दिन खुसरो बाग, फिर एक दिन कंपनी बाग, फिर पिक्चर बस मजा ही मजा.’’

‘‘छोटी तुम बिलकुल चुप हो, क्या हुआ? सो गईं क्या?’’ ‘‘नहीं अम्मां, बातों में भला नींद कहां.’’

इरा कहने लगी, ‘‘दीदी आज तुम ताई को देख कर रो रही थीं. भूल गईं तुम्हारे बीटैक में दाखिले के समय इन्होंने कितना हंगामा किया था कि देवरजी पैसा कहां से लाएंगे. पहले क्व10 लाख पढ़ाई में खर्च करो, फिर क्व10 लाख शादी में. एक थोड़े ही है, 3-3 लड़कियां हैं.’’ ‘‘मीरा बूआ चिल्ला पड़ी थीं कि भाभी आप क्या परेशान हो रही हैं. ईशा मैरिट से पास हुई है. सरकारी कालेज में इतना पैसा नहीं लगता है. हर होशियार बच्चे को स्कौलरशिप भी मिलती है. अभी तक ईशा को हमेशा वजीफा मिला है. देखना उसे यहां भी मिलेगा.

‘‘खिसिया कर ताई बोली थी कि बीवीजी आप तो नाहक नाराज हो गईं. हम तो बेटियों की भलाई की ही बात कर रहे हैं. 1-1 कर तीनों ब्याह जाएं… कच्ची उम्र में बिटिया ससुराल में दब कर रह लेती है.’’ अब सुषमाजी भी मुखर हो उठी थीं, ‘‘हां, भाभी की सोच पुरानी थी, लेकिन मैं तो स्तंभ की तरह अपनी बेटियों के साथ खड़ी थी.

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‘‘शुरूशुरू की बात है. ईशा छोटी थी. सैंट मैरी स्कूल में नाम लिखाने के समय बहुत बवाल हुआ था. भाई साहब और भाभी ने बहुत शोर मचाया था कि ईशा का नाम वहीं लिखवाओ जहां भरत और लखन पढ़ते हैं. लेकिन मैं अकेले ईशा को साथ ले कर सैंट मेरी स्कूल गई. वहां उस का दाखिला करवा दिया. फिर तो रास्ता निकल पड़ा. तुम तीनों वहीं पढ़ीं. भाभी अकसर व्यंग्यबाण चलाती थीं. शुरूशुरू में तो तुम्हारे पापा भी मुझ से नाराज थे, लेकिन बाद में जब इस की अहमियत समझी तो तारीफ करने लगे. ‘‘इसी पढ़ाई की बदौलत तुम तीनों का जीवन बन गया. अच्छी नौकरी और अच्छा जीवनसाथी मिल गया. तुम तीनों अपनेअपने परिवार में सदा खुश रहो.’’

इरा कहने लगी, ‘‘मम्मी, आप हमेशा चुप रहती थीं. ताई शुरू से ही गरममिजाज थीं क्या? कुछ पुरानी बातें बताइए न?’’ ‘‘तुम्हारी ताई को बेटे होने का बहुत घमंड था. तुम्हारे दादीबाबा पापा के बचपन में ही चल बसे थे. ताऊजी ने ही पापा को पालपोस कर बड़ा किया. उन्हें पढ़ायालिखाया. दुकान करने के लिए भी पैसों से मदद की थी. इसीलिए पापा हमेशा ताईताऊजी की इज्जत करते थे.

‘‘तुम्हारे ताऊजी इंजीनियर थे, तुम ने देखा ही है. उन की अफसरी का और घूस की आमदनी का ताई को बहुत गुमान था. कभी छोटे शहर तो कभी बड़े शहर में उन की पोस्टिंग होती रहती थी. 2-4 नौकर उन को सरकार की ओर से मिला करते थे. इन सब कारणों से उन्होंने हमेशा मुझे और तुम तीनों को नीची निगाहों से देखा. ‘‘कभीकभी उन की बातें मेरे दिल में चुभ जाती थीं. पापा की आमदनी इतनी तो थी नहीं. सो अकसर सुनासुना कर दूसरों से कहतीं कि

3-3 पैदा कर ली हैं. छोटी सी दुकान से दालरोटी का जुगाड़ हो जाए वही बहुत है. ब्याह तो दूर की कौड़ी है, पास में पैसा है नहीं, ब्याह करते समय न हाथ फैलाएं तो कहना. मैं तो कुछ न दूंगी. मुझे भी तो अपने लड़कों के लिए और बुढ़ापे के लिए सोचना है. इरा छोटी थी तो इसे रात में दूध पीए बिना नींद नहीं आती थी, तो ताई कहतीं कि देवरजी तो सांप पाल रहे हैं. ‘‘मैं अपने कमरे में जा कर जी भर कर रो लेती थी, परंतु पापा की खुशी के लिए चुप रहती थी. बस हाथ जोड़ कर मन ही मन यही कामना करती थी कि तेरे पापा को कभी किसी के सामने हाथ न फैलाने पड़े.

‘‘धीरेधीरे तीनों बड़ी होती गईं तो झगड़ेझमेले कम होते गए. भरत और लखन पढ़ने के लिए बाहर चले गए. तुम दोनों भी ताई के स्वभाव को समझने लगी थीं. फिर ताऊजी का ट्रांसफर हो गया तो इन लोगों का आना भी होलीदीवाली पर ही होने लगा. ताऊजी ने लखनऊ में ही मकान बनवा लिया.’’ अम्मां के बारे में जान कर छोटी की आंखों से नींद कोसों दूर हो गई थी. वह सोच में पड़ गई कि अम्मां ताईजी की इतनी कड़वी बातों और व्यवहार के बावजूद आज भी कितने प्यार और इज्जत के साथ उन की देखभाल कर रही हैं और एक वह है कि शादी के 8 वर्ष होने को आए, लेकिन वह आज तक मम्मीजी (सासूमां) को प्यार और सम्मान नहीं दे पाई. उस में और दीपा भाभी में क्या अंतर है. वह भी तो मम्मीजी के साथ ऐसा ही व्यवहार करती आई है. उस ने तो दीपा भाभी से एक कदम आगे बढ़ कर नैट पर वृद्धाश्रम ढूंढ़ढूंढ़ कर लिस्ट तैयार कर आनंद को दे डाली है.

आज तो उस ने सारी सीमाएं तोड़ कर आनंद को अल्टीमेटम भी दे दिया कि इस घर में या तो मम्मीजी रहेंगी या वह.

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उस ने मम्मीजी को नौकरानी से ज्यादा कभी कुछ नहीं समझा. उन्होंने अकेले अपने कंधों पर सारे घर की जिम्मेदारी संभाल रखी है. आरुष को उन्होंने ही इतना बड़ा किया है. वह भी दादी की रट लगाए रहता है. उन्हीं का पल्लू पकड़ कर खातापीता है. आज भी उस के साथ नहीं आया. दादी से चिपक गया कि वह मम्मी के साथ नहीं जाएगा. बस इसी बात पर उस ने गुस्से में उसे 2 थप्पड़ मार दिए.

फिर तो बात बढ़ गई और फिर वह गुस्से में गाड़ी ले कर दीदी लोगों के पास एअरपोर्ट पहुंच गई. अब वह मन ही मन पछता रही थी कि वह यह क्यों नहीं सोच पाई कि जैसे उसे अपनी मम्मी प्यारी है वैसे ही आनंद को भी अपनी मम्मी प्यारी होगी. काश पहले उसे यह बुद्धि आई होती. सुबह होते ही सुषमाजी उठीं तो छोटी तैयार खड़ी थी. वह अपना बैग बंद कर जूते पहन रही थी.

सुषमाजी अचकचा कर बोली, ‘‘छोटी, सब ठीक तो है?’’ ‘‘अम्मां अभी तक तो ठीक नहीं था, लेकिन अब मैं सब ठीक कर लूंगी. आज आप ने अनजाने में ताई और दीपा भाभी की बातें बता कर मेरे मन को झकझोर दिया. अब मुझे तुरंत निकलना होगा वरना बात बिगड़ जाएगी. मैं मम्मीजी की गुनहगार हूं.

अम्मां इस बार आप ने मुझे मदर्स डे का ऐसा अनूठा उपहार दिया है कि यह जीवन को सही दिशा देगा.’’ जब तक सुषमाजी कुछ कहतीं, उस की गाड़ी रफ्तार पकड़ कर आंखों से ओझल हो चुकी थी.

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Mother’s Day Special: मदर्स डे- भाग 2

सुषमाजी ने छोटी के मुंह पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘चुप हो जाओ छोटी… भाभीजी सुन लेंगी तो उन्हें कितना बुरा लगेगा.’’ ‘‘अम्मां, आप ने हमेशा हम तीनों को ही चुप कराया है.’’

अभी तक ईशा भी आ गई थी, ‘‘जब ताईजी पापा के सामने रो रही थीं तो बताओ भला पापा कैसे उन्हें यहां न लाते.’’ वह बोली. ‘‘ईशा दीदी, तुम तो सब भूल गई हो, लेकिन मैं ताईजी की बातें जिंदगी भर नहीं भूल सकती. याद नहीं है, जब भरत भैया ने तुम्हारी कौपी पानी में फेंक दी थी, तो तुम फूटफूट कर घंटों रोई थीं. तब ताई कैसे डांट कर बोली थीं कि कौपी ही तो भीगी है, फिर से लिख लेना. ऐसे दहाड़ें मार कर रो रही हो जैसे तेरा कोई सगा मर गया हो.’’

इरा बात संभालने के लिए बोली, ‘‘छोटी, भूल जाओ यार, जो बीत गया उसे भूलना ही पड़ता है.’’ ‘‘अम्मां आज डिनर में क्या खिला रही हो?’’

‘‘तुम तीनों जो कहेंगी बना दूंगी.’’ छोटी तुरंत चिल्ला पड़ी, ‘‘अम्मां मेरे लिए दही वाले आलू और परांठे बनाना.’’

‘‘ठीक है, सब के लिए यही बना दो,’’ ईशा और इरा ने भी छोटी की बात का समर्थन किया. ‘‘तुम तीनों अपने बच्चों को छोड़ कर आई यह बहुत गलत किया. बच्चों के बिना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है.’’

‘‘अम्मां, आजकल बच्चे हम लोगों की तरह अपनी मम्मी का पल्लू पकड़ कर नहीं रहते. उन की बहुत व्यस्त दिनचर्या होती है. किसी की क्लास, किसी की कोचिंग, किसी की पार्टी, तो किसी का कैंप. उन के पास इतना समय नहीं होता कि वे अपनी मम्मी के साथ 2-4 दिन इस तरह खराब करें.’’ सुषमा के साथ तीनों बेटियां अपने कमरे में आ गईं. शोे केस में लगी बार्बी डौल पर निगाह पड़ते ही इरा बोल पड़ी, ‘‘छोटी, देख तेरी पहली वाली बार्बी डौल आज तक अम्मां ने संभाल कर रख रखी है.’’

‘‘अम्मां की तो पुरानी आदत है… कूड़े को भी सहेज कर रखेंगी.’’

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ईशा भी कुछ याद कर के बोली, ‘‘याद है हम लोगों ने जब इस की शादी की थी. शादी अच्छी तरह निबट गई. खानापीना भी हो गया था. विदा करने के समय छोटी अपनी डौल को ले कर भाग गई थी. राधिका से लड़ाई कर के बोली थी कि मुझे नहीं देनी अपनी गुडि़या. तुम से मेरी आज से कुट्टी, किसी के समझाने से भी यह नहीं मानी थी.’’

तभी अम्मां की आहट से उन का ध्यान बंट गया.

‘‘अम्मां खाना बन गया?’’ इरा ने पूछा. ‘‘कब का. मैं ताई को खिला भी चुकी. तेरे पापा भी खा चुके हैं. मैं इंतजार करतीकरती थक गई तो तुम लोगों के पास आ गई कि देखूं मेरी रचनाएं कमरे में बैठी क्या बातें कर रही हैं.’’

ईशा प्यार से मां से लिपट कर बोली, ‘‘पहले की तरह किचन से डांट कर पुकारतीं तो मजा आ जाता.’’ ‘‘बेटा तब बात और थी. अब कहां रहे

वे दिन.’’ ‘‘अम्मा आप ने परांठे नहीं सेंके?’’

‘‘2 दिनों के लिए आई हो… गरमगरम खिलाऊंगी कि ठंडे परोसूंगी.’’ प्यार से अम्मां से लिपटते हुए छोटी बोली, ‘‘आज अम्मां के लिए मैं परांठे सेंकूंगी… पहले आप खाएंगी, फिर हम तीनों.’’

सुषमाजी की आंखें भर आईं. इस तरह प्यार से तो उन्होंने अपने बचपन में अपनी मां के हाथों ही खाया था. फिर डबडबाई आंखों से बोलीं, ‘‘छोटी अब बड़ी और जिम्मेदार बन गई है. लगता है अपनी मम्मीजी को ऐसे ही प्यार से खिलाती है.’’ यह सुनते ही छोटी के चेहरे का रंग उड़ गया.

सुरेशजी को बैठा देख ईशा बोली, ‘‘अरे पापा, आज आप भी अभी तक जाग रहे हैं.’’ ‘‘अपनी लाडलियों के साथ बैठने की चाह में आज इन्हें नींद कहां?’’

‘‘अम्मां आज हम लोग पहले की तरह जमीन पर बैठ कर खाएंगे. कितना मजा आता था जब हम तीनों बहनें एक परांठे के 3 टुकड़े कर के साथसाथ खाती थीं.’’ इरा कुहनी मारते हुए बोली, ‘‘दीदी, पापा को अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘नहींनहीं, तुम तीनों को एकसाथ वैसे ही खाते देख कर खुशी होगी मुझे, क्योंकि पहले तो इसलिए डांटता था कि तुम लोग टेबल मैनर्स अच्छी तरह सीख सको.’’ ‘‘हां पापा, आप ने ही तो हम लोगों को हाथ में कांटा पकड़ना सिखाया था,’’ कह तीनों खाना खा कर अपने कमरे में पलंग पर पसर गईं. पीछेपीछे सुषमाजी भी आ गईं.

‘‘आप लेटो अम्मां. आज थक गई होंगी.’’ ‘‘तुम लोग लेटो… मैं तो देखने आई थी कि देख लूं कुछ जरूरत तो नहीं है.’’

‘‘पापा सो गए क्या?’’ हां, पापा तो लेटते ही खर्राटे भरने लगते हैं. उन की तो पुरानी आदत है. मुझे ही नींद नहीं आती. घंटों करवटें बदलती रहती हूं. ‘‘अम्मां आप कुछ कमजोर दिख रही हैं… चेहरे पर परेशानी सी झलक रही है. किसी भी तरह की कोई दिक्कत हो तो बताओ न.’’

‘‘नहीं बेटा, तुम्हारे पापा मेरा बहुत खयाल रखते हैं. अभी तो हम दोनों बिलकुल ठीक हैं… कल किसी को कोई तकलीफ हुई तो क्या होगा, बस यही चिंता सताती है.’’ तीनों बहनें उठ कर सुषमाजी से लिपट कर बोलीं, ‘‘हम किस मर्ज की दवा हैं… यह कैसे सोच लिया आप ने कि आप दोनों अकेले हैं… हम लोग दिन भर में 2-3 बार आप को क्यों फोन करते हैं? इसीलिए न?’’

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‘‘आओ आज हमारे साथ ही लेटो, कह तीनों बहनों ने उन्हें पकड़ कर अपने साथ लिटा लिया.’’ ‘‘तभी बिजली चली गईं. गरमी से सभी पसीनापसीना हो गईं.’’

‘‘बिजली का क्या भरोसा कब आए. चलो छत पर लेटते हैं,’’ ईशा बोली तो तीनों बहनें छत पर आ गईं.

एक अरसे बाद छत पर लेटने का आनंद ही अनूठा था. सिर पर चमकता पूर्णिमा का चांद, ठंडी बयार जैसे अमृत बरसा रही हो. अनगिनत चमकते तारे देख तीनों बहनें अपने बचपन में खो गईं…

ईशा कहने लगी, ‘‘न्यूयौर्क और लंदन के फ्लैट और होटल वाली व्यस्त जिंदगी में इस स्वर्णिम अनूठे आनंद की अनुभूति करना संभव ही नहीं है. काश, बच्चे भी हम लोगों के साथ आते.’’ इरा कुछ याद करते हुए बोली, ‘‘हम लोग छोटे थे तब कैसे पूरी छत पर बिस्तर लगते थे. अम्मां मिट्टी की सुराही ले कर ऊपर आती थीं. सुराही के पानी में मिट्टी की कितनी सोंधीसोंधी महक आती थी.’’

पुरानी यादों के साए में सब की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. ‘‘भरत भैया और लखन भी हम लोगों के साथ ही सोने की जिद करते थे, लेकिन ताईजी हमेशा उन्हें डांट कर बुला लेती थीं,’’ छोटी बोली.

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Mother’s Day Special: मदर्स डे- भाग 1

‘‘अम्मां,हैप्पी मदर्स डे.’’ ‘‘थैंक्स बेटा.’’

‘‘कौन था?’’ ‘‘ईशा थी.’’

‘‘तुम्हारी बेटियां भी न उठते ही फोन पर शुरू हो जाती हैं.’’ ‘‘आप से बात नहीं करतीं क्या?’’

‘‘मुझे इतनी बातें आती ही कहां?’’ तभी फिर फोन बज उठा. उधर इरा थी. उस का तो रोज का समय तय है. सुबह औफिस के लिए निकलते हुए जरूर फोन करती है.

‘‘अम्मां हैप्पी मदर्स डे’’ ‘‘थैंक्स बेटा’’

इरा ने हंसते हुए पूछा, ‘‘अम्मां, इस बार क्या गिफ्ट लोगी?’’ ‘‘कुछ भी नहीं बेटा. मैं ने पहले भी कहा था कि तुम तीनों एकसाथ आओ और 2-4 दिन रह जाओ.’’

‘‘आप भी अम्मां… अभी तो मुझे आए साल भी नहीं हुआ है.’’ ‘‘वह भी कोई आना था. सुबह आई थीं और अगली सुबह चली गई थीं.’’

‘‘ठीक है अम्मां प्रोग्राम बनाते हैं.’’

अगले दिन शाम के 7 बज रहे थे. सुषमाजी पति सुरेश के साथ बैठी चाय पी रही थीं. तभी दरवाजे की घंटी बजी. वे पति से बोलीं, ‘‘आज दूध वाला बहुत जल्दी आ गया.’’

‘‘दरवाजा भी खोलोगी कि बातें ही बनाती रहोगी,’’ सुरेशजी बोले. वे खिसिया कर बोलीं, ‘‘क्या दरवाजा आप नहीं खोल सकते? सारे कामों का ठेका क्या मेरा ही है?’’

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फिर दरवाजा खोलते ही सुषमाजी चौंक उठीं. दरवाजे पर छोटी खड़ी थी. वह मम्मी से एकदम से लिपट कर बोली, ‘‘हैप्पी मदर्स डे मौम.’’ ‘‘तुम ने बताया क्यों नहीं? पापा स्टेशन लेने आ जाते.’’

‘‘लेकिन मैं तो गाड़ी से आई हूं.’’ ‘‘गोलू और आदित्य कहां हैं?’’

‘‘अम्मा मैं अकेले आई हूं, गोलू समर कैंप में और आदित्य टूअर पर.’’ बेटी की आवाज सुनते ही सुरेशजी भी बाहर आ गए और फिर छोटी को बांहों में भर कर बोले, ‘‘आओ अंदर चलें. तुम्हारी मम्मी की तो बातें ही कभी खत्म नहीं होंगी.’’

पीछे से ईशा और इरा दोनों ने आवाज लगाई, ‘‘पापा हम दोनों भी हैं.’’ सुषमाजी और सुरेशजी तीनों बेटियों को एकसाथ अचानक आया देख आश्चर्यचकित हो उठे. वे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

सुषमाजी का दिमाग किचन में क्याक्या है, इस में उलझ गया था. इरा बोली, ‘‘मां परेशान क्यों दिख रही हो? आप ही कब से कह रही थीं कि तीनों साथ आओ तो हम तीनों साथ आ गईं.’’

‘‘सोच रही हूं, तुम लोगों के लिए जल्दी से क्या नाश्ता बनाऊं.’’ ‘‘बस सब से पहले अपने हाथों की अदरक वाली गरमगरम चाय पिलाओ. हम सब के लिए गरमगरम जलेबियां और कचौडि़यां लाई हैं,’’

इरा बोली. ‘‘सुषमा… सुषमा… मुझे बताओ तो कौन आया है?’’

छोटी बोली, ‘‘यह तो ताईजी की आवाज लग रही है.’’ ‘‘अम्मां, आप ने बताया नहीं कि ताई यहां हैं?’’ ईशा बोली.

‘‘क्या करती, तुम लोगों को बताती, तो तुम तीनों नाराज होतीं. इसीलिए मैं ने किसी को नहीं बताया.’’

‘‘भरत और लखन ने मिल कर अपना मकान बेच दिया. जेठानीजी को अपने साथ ले गए. दोनों हैदराबाद में रहते हैं. 15 दिन एक के घर 15 दिन दूसरे के घर. रोधो कर यह व्यवस्था 7-8 महीने चली. ‘‘भरत और उस की बहू अवनी की व्यस्त दिनचर्या में भाभी के लिए किसी के पास समय ही नहीं था. सुखसुविधा के सारे साधन मौजूद थे, परंतु मशीनी जिंदगी में वह हर क्षण खुद को अकेली और उपेक्षित महसूस करती थीं. मुंह अंधेरे अवनी अपनी गाड़ी निकाल कर औफिस के लिए निकल जाती थी. 8 बजे तक भरत भी बाय मौम कह कर चल देता था.

‘‘घर में दिन भर नौकरानी रहती, जो समयसमय पर खाना, नाश्ता बना कर देती रहती थी. दोनों देर रात घर आते. डाइनिंगटेबल पर बैठ कर अंगरेजी में गिटरपिटर करते हुए उलटापुलटा खाते और फिर कमरे में घुस जाते. शनिवार व रविवार को उन्हें आउटिंग और पार्टियों से ही फुरसत नहीं रहती. ‘‘लखन के यहां की दूसरी कहानी थी. भाभी को देखते ही नौकरानी की छुट्टी कर दी जाती. सुबह बच्चों के टिफिन से ले कर रात के दूध तक का काम भाभी को करना पड़ता. भाभी काम करकर के परेशान हो जातीं, क्योंकि दीपा खुद तो कोई काम नहीं करती पर भाभी के हर काम में मीनमेख निकाल कर उन्हें शर्मिंदा करने से कभी नहीं चूकती.

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‘‘लखन बीवी के सामने जबान खोलने से डरता था और भाभी को भी चुपचाप काम करने की सलाह देता था, क्योंकि वह औफिस में दीपा से काफी जूनियर पोस्ट पर था. इसीलिए बीवी से बहुत डर कर रहता था. दीपा परीक्षाएं पास करती हुई मैनेजर बन गई थी. लखन एक भी परीक्षा पास नहीं कर सका था. ‘‘भाभी लखन के यहां ही बाथरूम में फिसल गई थीं और पैर की हड्डी टूट गई थी, भरत ने प्लास्टर बंधवा दिया था, लेकिन इन्होंने यहां आने की जिद पकड़ ली. फोन पर पापा से रोरो कर बोलीं कि भैयाजी, मुझे जीवित देखना चाहते हो, तो आ कर अपने साथ ले जाओ.’’

‘‘तुम्हारे पापा ने एक क्षण की भी देर नहीं की. टैक्सी कर के गए और भाभी को ले कर आ गए. अब तो भाभी काफी ठीक हो गई हैं. छड़ी ले कर चलने लगी हैं.’’ ताई के विषय में सारी बातें सुन कर ईशा तो सिसकती हुई अंदर चली गई और ताई का हाथ पकड़ कर बैठ गई.

इरा कहने लगी, ‘‘भरत भैया तो ऐसे नहीं थे… लखन तो शुरू से ही ऐसा था.’’

सुषमाजी चाय बना कर ताई के पास ही ले कर आ गई थीं. ताई फूटफूट कर रो रही थीं, ‘‘ईशा हम ने सुषमा को कभी चैन से नहीं रहने दिया. यह ब्याह कर

आई तो तुम्हारे ताऊजी और पापा के कान भर दिए कि पढ़ीलिखी बहू ला रहे हो सब को अपनी उंगलियों पर नचाएगी,’’ फिर अपने आंसू पोंछते हुए इरा से बोली, ‘‘तुम लोग बताओ कैसी हो? तीनों को एकसाथ देख कर मेरा कलेजा ठंडा हो गया.’’

‘‘ताईजी आप कैसी हैं?’’ ‘‘बिटिया हम तो अपने कर्मों का फल भुगत रहे हैं… सुषमा से हमेशा दुश्मनी करते रहे… आज वही मेरी खिदमत कर रही है.’’

तभी छोटी ताई से धीमी आवाज में यह कह कर कि अभी आई अम्मां के पास किचन में आ कर खड़ी हो गई. वह बचपन से गुस्सैल और मुंहफट थी. अम्मां से फुसफुसा कर बोली, ‘‘बहुत अच्छा हुआ… हम तीनों की नाक में दम किए रहती थी… ईशा दीदी को तो कभी चैन ही नहीं लेने देती थीं. बातबात में डांटती रहती थीं. इरा दीदी को तो काला जिराफ कह कर पुकारती थीं… बेटों का बड़ा घमंड था न.’’ फिर कुछ देर चुप रहने के बाद फिर वह क्रोधित हो कर पापा से बोली, ‘‘पापा, आप भी कम थोड़े ही हो. क्या जरूरत थी ताईजी को यहां लाने की? अम्मां के लिए आप ने एक मुसीबत खड़ी कर दी है.’’

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Mother’s Day Special: कहानी कोरोना योद्धा मां की…

लेखिका- “ज्योत्सना गुप्ता अग्रवाल”

यूं तो हर मां योद्धा होती है तभी तो मृत्यु के मुंह में जाकर नव जीवन को जन्म देती है,ऐसा दुनिया में कोई काम नहीं जो मां ना कर सके और जब यही मां कोरोना योद्धा के रूप में सामने आती है तो क्या ही कहना…..ऐसी ही एक कोरोना योद्धा मां की कहानी मैं प्रस्तुत करने जा रही हूं……

मेरी पड़ोसन और बहुत ही अच्छी मित्र ”सुमन वर्मा जी” “स्वास्थ विभाग प्रदेश सरकार” ANC/PNC के पद में कार्यरत हैं घर में दो छोटी प्यारी बच्चियाँ और बूढ़े सास-ससुर,दादी सास भी हैं इन सब की ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह वहन करके ये रोज़ सुबह अपने कर्तव्य को धर्म समझ कर पूरा करने निकल पड़ती हैं.

कभी मरीज़ों के सैम्पल कलेक्ट करने तो कभी क्वोरंटीन मरीज़ों की स्क्रीनिंग करने, इस वर्ष टीकाकरण और मरीज़ों को कोरोना किट देकर होम आइसोलेट करके उनकी तबियत का जाएजा लेना…चिंतित यें भी होती है अपने परिवार की लिए फिर भी पूरी हिम्मत और जोश के साथ वो अपनी बेटियों का पूरा ख़्याल रख रहीं हैं.

सुमन कहतीं हैं की बेटियों का प्यार,परिवार का साथ ही उन्हें हिम्मत देता है मरीज़ों का स्वस्थ होकर मुस्कुराता हुआ चेहरा उन्हें हौसला देता है वो मां है ज़ाहिर है वात्सल्य भाव तो उनकी रग रग में है चाहे घर पर बेटियां हों या कार्यस्थल पर मरीज़, वो दोनो का ख़्याल जी जान से रखतीं हैं वो भी अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ,  बिना किसी संक्रमण के डर के.

MOTHERS DAY 2021

वो अपना कर्तव्य भलीभांति जानती हैं,साथ ही जान कि क़ीमत पहचानती हैं इसलिए उनकी कोशिश हमेशा यही रहती है कि वो एक कोरोना योद्धा के रूप में अपना ज़्यादा से ज़्यादा योगदान दे सकें सुमन कहतीं हैं के ”सर्वे भवन्तु सुखिनः।सर्वे सन्तु निरामयाः।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥” इसी बात को ज़हन में रखकर ही वो अपना कार्य करती है सब रोगमुक्त हों,सब सुखी हों…..

सलाम है इन मां के जज़्बे इनकी बहादुरी को, इनके कार्यकुशलता इनकी कर्तव्यनिष्ठा को जो इतने कठिन समय में अपना परिवार और स्वास्थ्य की परवाह किए बिना हरसंभव प्रयासरत हैं सिर्फ़ इसलिए कि हम सुरक्षित रहें हमारा देश सुरक्षित रहे………एक मां की कलम से कोरोना योद्धा मां को समर्पित

अगर आप भी ऐसी ही किसी मां को जानते हैं तो उनकी कहानी हमसे शेयर कीजिए, जिसे हम ‘गृहशोभा वेबसाइट’ के जरिए लोगों तक पहुंचाएंगे.
 
आखिरी तारीख- 15 मई, 2021
(आपकी स्टोरी कम से कम 300 शब्दों की होनी चाहिए)
इस आईडी पर भेजें- grihshobhamagazine@delhipress.in

MOTHERS DAY 2021

Mother’s Day Special: मॉडर्न लाइफस्टाइल में मां की भूमिका, कितनी अलग हैं बौलीवुड मौम्स

माँ बनना संसार की सबसे अभूतपूर्व अनुभूति होती है, इसलिए एक माँ बच्चे को कोख में धारण करने से लेकर जन्म देने तक सभी कठिनाइयों को सहते हुए, जब बच्चे के मासूम चेहरे को देखती है, तो उसकी सारी समस्या पल भर में दूर हो जाती है. माँ का किसी बच्चे के साथ जुड़ाव 9 महीने पहले हो जाता है, यही वजह है कि बच्चे की किसी परेशानी को माँ आसानी से समझ लेती है. इस बारें में मुंबई की मनोचिकित्सक डॉ.पारुल टांक कहती है कि माँ बनने के साथ ही किसी भी महिला में बच्चे को बड़ा करने का दायित्व आ जाती है, इसे महिला एक ब्लेसिंग के साथ-साथ एक जरुरी काम समझती है, जिसे वह नकार नहीं सकती, लेकिन एक वर्किंग महिला के लिए ऐसा कर पाना कठिन होता है. काम और परिवार के बीच संघर्ष चलता रहता है, जिससे उन्हें बहुत अधिक तनाव का सामना करना पड़ता है, क्योंकि ऐसी वर्किंग महिलाएं और माँ हर जगह क्वालिटी टाइम देना चाहती है, जो हमेशा संभव नहीं हो पाता.

बच्चे की परवरिश में आई कमी से वह अपराधबोध की शिकार होती रहती है. इसके अलावा वह खुद के बारें में सोचना भी भूल जाती है. जबकि वर्किंग महिलाओं को सब काम एकसाथ करने के लिए अच्छी नींद और संतुलित पौष्टिक आहार बहुत जरुरी होता है. ये सही है कि लॉकडाउन की वजह से अभी माँ का बच्चे को लेकर चिंता में कमी आई है, क्योंकि अधिकतर वर्किंग माएं, बच्चे के साथ-साथ ऑफिस का काम भी घर सफलतापूर्वक कर पा रही है. आज जमाना बदला है, इसलिए महिलाओं की सोच भी बदली है. बिना शादी किये आज की महिला माँ बनना भी पसंद कर रही है. ऐसी ही बॉलीवुड की कुछ सेलेब्रिटीज जो बिना शादी किये माँ बनी और बच्चे के साथ खुश है. आइये जाने क्या कहती है सेलेब्रिटी माएं, जो इस लॉकडाउन में एक बार फिर बच्चे के साथ समय बिताने के अलावा उन्हें बढ़ते हुए देखना पसंद कर रही है. 

रवीना टंडन 

लॉकडाउन में रवीना को बच्चों के साथ समय बिताने का काफी समय मिला है, जिसमे बच्चों का बढ़ना, उनके साथ बोर्ड गेम खेलना, उनकी पढाई के बारें में ध्यान देना, अच्छी- अच्छी डिशेज बनाना आदि किया है. वह कहती है कि पिछले लॉकडाउन में मैं अपनी बेटी से सोशल मीडिया के बारें में जानकारी ली है, क्योंकि इस समय डिजिटल मीडिया ही सबसे अधिक एक्टिव है और उसे जानना जरुरी है, ताकि मैं अपने साथी और परिवारजन से हमेशा जुडी रहूं. इसके अलावा बच्चे के साथ समय बिताना मेरे लिए सबसे अच्छा पल है. 

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शिल्पा शेट्टी 

माँ बनना मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं, जब मैं विवान की माँ बनी थी. मैंने अपनी माँ के साथ हमेशा एक अच्छा समय बिताया है और वही मैं अपने बच्चों को भी देना पसंद करती हूँ. उस समय मेरी परवरिश और अब जब मैं बच्चों को देखती हूँ तो काफी बदलाव है. तब माँ की आँख से ही हम समझ जाते थे कि कुछ गलत हो रहा है और डर जाते थे, पर आज के बच्चों को धीरज के साथ हर बात को समझाना पड़ता है. मैंने अगर कुछ करने से मना किया है तो उसकी वजह उन्हें समझानी पड़ती है. अभी मैं दो हँसते खेलते हुए बच्चों की माँ हूँ.

सोहा अली खान 

 

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बच्चे की परवरिश में माँ की भूमिका बहुत बड़ी होती है, जिससे बच्चा स्वस्थ और हेल्दी रहे, और उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता अच्छी बनी रहे. मैंने अपनी बेटी इनाया को वैसे ही पाला है. मैंने हमेशा बेसिक बातों पर ध्यान दिया है मसलन हायजिन, हेल्थ आदि. मुझे याद आता है कि मेरी माँ ने हमेशा हम सभी को एक नार्मल परिवेश में परवरिश की है. मैं घास पर नंगे पैर दोस्तों के साथ खेलती थी. घर का भोजन खाना पड़ता था. परिवार में सभी साथ रहते थे.  जब माँ बहुत बार शूटिंग के लिए बाहर चली जाती थी, हम सब घर के स्टाफ और परिवार के साथ रहते थे. कई बार इस वजह से अकेलापन भी महसूस होता था, लेकिन माँ के आने के बाद सबकुछ माँ सोल्व कर देती थी. अभी मुझे लॉकडाउन और कोरोना की वजह से बेटी के साथ खेलने, मस्ती करने का बहुत मौका मिल रहा है. 

नेहा धूपिया

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नेहा कहती है कि माँ बनने के बाद मेरे अंदर बहुत बदलाव आया है, क्योंकि सबसे अधिक जिम्मेदारी उस बच्चे के लिए बढ़ी है. अभी लॉकडाउन है, इसलिए बेटी के साथ समय बिताना मेरी प्रायोरिटी है. बच्चे का बढ़ना, चलना, मीठी-मीठी बातें करना आदि को मैं और अंगद बहुत एन्जॉय करते है. माँ बनने के बाद मैं समझ पाई हूँ कि माँ का बच्चों से अधिक लगाव होने की वजह क्या है. मैं भी अपनी माँ के बहुत करीब हूँ . मेरा मिस इंडिया 2002 बनना, फिल्मों में आना, सब उनके सहयोग से ही हुआ है. 

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पूर्वी जोशी 

 

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कॉमेडियन और अभिनेत्री एक बेटे की माँ है और इस समय लॉकडाउन में उसके साथ समय बिता रही है. वह कहती है कि इस समय मुझे अधिकतर अपने बेटे के पीछे-पीछे भागना अच्छा लगता है, क्योंकि वह चलने लगा है और थोड़ी-थोड़ी बातें भी करने लगा है. मैं हमेशा से माँ (सरिता जोशी) से बहुत प्रेरित रही. वह थिएटर जगत की क्वीन है, मैंने हमेशा से ही उनकी तरह बनने की कोशिश की है. वह एक स्ट्रोंग महिला है और आज भी अभिनय करने से नहीं कतराती. 

Mother’s Day Special: इस बार अपनी मां को दें ये खास तोहफा

इस साल का कोरोना लॉकडाउन में ही मदर्स डे भी आ गया, लॉक डाउन और सोशल डिस्टैन्सिंग की वजह से ये साल थोड़ा चुनौती भरा है . इस बार आप हमेशा काम आने वाले आइडियाज़ इस मदर्स डे पर आप नहीं कुछ कर सकते आप माँ के लिए केक, तोहफ़ा और फ़ूल नहीं ख़रीद सकते. आप उनके लिए कोई ट्रिप प्लान नहीं कर सकते और आप कही बाहर रहते है, तो आप उनसे मिलने भी नहीं जा सकते हैं. लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की हम मदर्स डे मना नहीं कर सकते और अपना प्यार उन्हें नहीं दिखा सकते.

हम आपके लिए लॉक डाउन में मदर्स डे के लिए बहुत सारे विकल्प लेकर आये है, फिर चाहें आप माँ के साथ रह रहे हों या उनसे दूर. ये सभी विकल्प कुछ अलग, आपके बजट में और नए हैं जो आप इस मदर्स डे घर के बाहर जाए बिना कर सकते हैं.

इन सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें की आप इस मदर्स डे पर सिर्फ सोशल मीडिया पर फोटोज़ ही ना डालें, जहां शायद आपकी मां देख भी न पाए. कोशिश करें कि दोस्तों और दुनिया को दिखाने की बजाय अपनी मां को स्पेशल महसूस करवाए.

ये आइडिया उन लोगों के लिए जो अपनी माँ से दूर रह रहें हैं.

1-माँ के लिए एक शार्ट फिल्म बनाएं

अपनी क्रिएटिविटी को यूज़ करने का अच्छा तरीका है. आप अपनी मां के अलग-अलग दौर की कुछ तस्वीरें और वीडियो लेकर एक गाने के साथ शार्ट वीडियो बना सकते हैं. ये उन्हें बहुत पसंद आएगा. आप चाहें तो इसको क्रिएटिव बना सकते हैं या सिंपल भी. कुछ वीडियो एडिटिंग ऍप जैसे इन शॉटसे आप अपने वीडियो बना सकते हैं. आप उसमें अपने भाई-बहनों की मदर्स डे विश करते हुए की कुछ ओडियो या वीडियो क्लिपिंग्स लगा सकते हैं.
आप इसे इमोशनल वीडियो भी बना सकते है, उसमे आप अपनी मां से वो बातें कह सकते हैं, जो आप शायद फ़ोन पर नहीं बोल पाते. जैसे कि उनके साथ बिताये हुए पल, आप उन्हें बता सकते हैं कि जब आप उनसे दूर होते है तो आप उन्हें बहुत याद करते है.

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2-माँ को दें एक नया अनुभव

कुछ ऐसा जो आपकी माँ काफी समय से सीखना चाह रहीं होगी? हो सकता है उन्हें अंग्रेज़ी बोलना सीखना हो या स्कूटी/कार चलना सीखना हो, कोई इटेलियन व्यंजन बनाना सीखना हो, कंप्यूटर चलाना सीखना हो, या हो सकता है फ़ेस बुक या इंस्टाग्राम सीखना हो. त आप उन्हें ये सब सीखा सकते है या ऑनलाइन क्लासेज उन्हें दिलवा दे, जहां से वो सीख सके, यूट्यूब वीडियो इसमें काम आ सकते हैं. पता लगाएं कि उन्हें किस चीज़ से सशक्त महसूस होता है और फिर उन्हें वो प्राप्त करने में मदद करें.

3-वर्चुअल या होममेड DIY आइडियाज़

जब आप उनके लिए कोई कविता या गाना लिखते है, तो उनके लिए उससे अच्छी फीलिंग कोई और नहीं हो सकती. उनके लिए उनकी भाषा में कोई कविता या गाना लिखें. जरूरी यह नहीं है की वह बेहतरीन हो, लेकिन आपकी इस कोशिश से आपकी माँ बहुत ख़ुश होगीं. अगर आप एक आर्टिस्ट हैं, तो आप अपनी माँ का पोट्रेट बनायें. आप डूडल्स या एनीमेशन से अपनी व अपनी माँ से जुड़ी यादों की एक छोटी सी कहानी बना सकते हैं, या फिर उनका पसंदीदा पुराना गान गाते हुए वीडियो बनाकर उन्हें भेज सकते हैं. DIY कार्ड या फ़ोटो फ्रेम से आप अपनी माँ का दिल जीत सकती है. इस कार्ड लिए आपको यूट्यूब पर बेहतरीन लाखों वीडियो मिल जायेंगे. आपकी माँ इस जमाने के कल्चर (पॉप कल्चर) में रुझान रखती है तो आप उन्हें कुछ अपने परिवार से मिलते जुलते मज़ेदार मीम बनाकर भेज सकते हैं.

4-माँ के लिए यादें संजोयें

आज की भागती दौड़ती इस दुनिया में हमें बहुत मुश्किल से समय मिलता है कि हम किसी को समझ सकें. तो आप इस मदर डे अपनी माँ से बात करें, उनकी शादी से पहले की जिंदगी के बारे में जानें, आप के होने के से पहले की जिंदगी के बारे में जानें, उनके अच्छे बुरे लम्हों के बारे में जानें, उनके दादा दादी के बारे में बात करें, उनके जिंदगी की मुश्किल घड़ी के बारे में जानने की कोशिश करें और वो कैसे उनसे निकल कर आयी, पता लगाए की कही उनकी भी कोई प्यारी सी लव स्टोरी तो नहीं जिसके बारे में आपको पता ही नहीं हो. ये सब जान कर आपको आश्चर्य होगा की आप अपने माँ को कितना कम जानते है. कम से कम आप इस एक दिन तो आप उन्हें आपकी जिंदगी, नौकरी या बच्चों की शिकायत करने के लिए फ़ोन ना करें, और जानने की कोशिश करें कि आपकी माँ एक पत्नी और माँ के क़िरदार के अलावा नार्मल इंसान के रूप में कैसी हैं.

ये आइडिया उन लोगों के लिए जो अपनी मां के साथ रह रहे हैं.

1-माँ के साथ रानी जैसा व्यवहार करें

अपनी मां के लिए खाना बनाना और उनकी घर के कामों में मदद करना हमेशा से एक क्लासिक मदर्स डे गिफ्ट रहा है, लेकिन आप इसको थोड़ा मज़ेदार बना सकते हैं, जैसे आप बिग बॉस के घर की तरह कुछ फन और गेम्स रख सकते हैं, उनको एक पेपर क्राउन पहना सकते हैं और उनसे कहें की वो घर की रानी है तो कुछ भी ऑर्डर दे सकती है और आप वो ऑर्डर मानेंगे साथ ही इसे उनके किसी पसंदीदा टीवी शोज़ से भी जोड़ सकते हैं, कोशिश करे की इन उदासी भरे दिनों में चीज़ों को मज़ेदार और जीवंत बनाये और याद रहे की आप सुबह जल्दी उठकर उनके लिए चाय/कॉफ़ी बनाना न भूल जाएँ.

2-पुरानी यादों को एक बार फिर से ताज़ा करें

अपनी माँ के पसन्दीदा डिश बना कर और पुरानी फोटो एलबम को निकालें और अपनी माँ के साथ बैठकर उनको देखें. ये उनकी शादी का एलबम भी हो सकता है या आपके बचपन या कोई बचपन की फैमिली ट्रिप का. किसी के साथ पुरानी यादें ताज़ा करना सबसे खूबसूरत तरीका होता है नई यादें बनाने का. आप दोनों मिलकर ऐसे काम करें जो लम्बे समय तक याद रहें. कुछ भी छोटा और निरर्धक नहीं होता है. हो सकता है ये सुनने में थोड़ा अज़ीब लगे लेकिन ये आपको और आपकी माँ को हंसने पर मज़बूर कर देगा.

3- माँ के साथ एक मूवी नाइट प्लान करें

मैं हमेशा से अपने पेरेंट्स के साथ पीकू फ़िल्म देखना चाहती हूँ. मेरी माँ मेरे नाना जी की देख-रेख करती हैं और वो एकदम मूवी की तरह ही लड़ते झगड़ते हैं. अगर आपके पास भी ऐसा कुछ है, जो आप अपनी मम्मी के साथ देखना चाहते हैं, तो ये उसके लिए सबसे अच्छा समय है.
बधाई हो, खिचड़ी-फ़िल्म, हेरा-फेरी ये कुछ ऐसी फिल्में हैं जो उन्हें हसाएंगी और बेशक आप उनके साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करेंगे. लेकिन आप उनके पसंद की मूवी चुनें नाकि ख़ुद की पसंद की. कुछ स्नैक्स बनाएं और बिना पैसे ख़र्च करे एक बढ़िया सी मूवी नाइट एन्जॉय करें.

4-माँ से कुछ नया सीखें

आपकी मां के पास भी खाना बनाने के अलावा अनगिनत टैलेंट है. इनमें से कुछ सीखना आपके लिए भी महत्वपूर्ण होगा. जैसे हिसाब करना, टाइम मैनेजमेंट, सिलाई, क्रोशिया, या फिर कोई विषय जिसमें वो अपने समय में स्कूल / कॉलेज में निपुण थीं. इससे सिर्फ आपका रिश्ता ही गहरा नहीं होगा बल्कि आपको भी कुछ नया सिखने को मिलेगा. अगर आप एक मल्टी लिंगुवल ( बहु भाषीय) परिवार से है तो जाहिर सी बात है आपके माता-पिता अलग अलग राज्यों से होंगे और उनकी अलग-अलग स्थानीय बोली होंगी. उनमें से कुछ सिखने की कोशिश करें.

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इस मदर्स डे मां को भी इंसान की तरह देखें, उन्हें एक मां की छवि से बढ़कर देखें जो दिन भर बस आपकी और घर की देखभाल करती है और उन वर्किंग मदर्स को भी जो अपनी वर्क लाइफ और घर के बीच संतुलन बनाकर चलती हैं. इस बार उन्हें एक औरत के रूप में देखें और इस मदर्स डे पर उन्हें सेलिब्रेट करें, चाहे आप उनके साथ रह रहें है या उनसे दूर.अपनी मां के लिए या अगर आप खुद मां हैं तो इस मदर्स डे को यादगार बनाते हैं.

Mother’s Day Special: शाम के नाश्ते में बनाएं बेसनी पनीर सैंडविच

गर्मियों के दिन बहुत लंबे होते हैं ऐसे में शाम को 6-7 बजे कुछ भूख सी महसूस होने लगती है. चूंकि इन दिनों हमारी पाचन क्षमता कमजोर हो जाती है इसलिए तला भुना खाने से परहेज करना चाहिए. यूं भी इन दिनों कोरोना ने अपने कहर से सबको घरों में कैद कर दिया है जिससे चलना फिरना और मॉर्निंग इवनिंग वॉक भी बंद है ऐसे में हर कोई कुछ ऐसा खाना चाहता है जिसमें तेल, मसालों का कम से कम प्रयोग किया गया हो. तो आइए आज हम आपको ऐसे स्नैक को बनाना बता रहे हैं जिसमें तेल मसालों का प्रयोग लेशमात्र भी नहीं किया गया है, बनाने में आसान होने के साथ साथ यह पौष्टिकता से भरपूर भी है क्योंकि इसमें हमने मूलतया बेसन और पनीर का प्रयोग किया है जिसमें विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.तो आइए जानते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं.

कितने लोंगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 25 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

बेसन 1 कटोरी
हल्दी पाउडर 1/4 टीस्पून
अदरक, लहसुन,
हरी मिर्च पेस्ट 1/4 टीस्पून
नमक 1/2 टीस्पून
पनीर 250 ग्राम

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खसखस 1 टेबलस्पून
टोमैटो सॉस 1 टेबलस्पून
पानी 2 कटोरी
दही 1 कटोरी
चाट मसाला 1 टीस्पून
हरी चटनी 1 टीस्पून

विधि

एक बाउल में बेसन,अदरक, हरी मिर्च, लहसुन पेस्ट, नमक और हल्दी अच्छी तरह मिलाएं. अब इसमें दही और पानी धीरे धीरे मिलाएं ताकि गुठली न पड़ें. तैयार मिश्रण को एक नॉनस्टिक पैन में डालकर तेज आंच पर लगातार चलाते हुए गाढ़ा होने तक पकाएं. जब मिश्रण पैन में चिपकना छोड़ दे तो गैस बंद कर दें और इसे चिकनाई लगी ट्रे में पतला पतला फैला दें. आधा घण्टे इसे ठंडा होने दें. खसखस को पैन में बिना चिकनाई के हल्का सा भूनकर एक प्लेट पर निकाल लें. पनीर के पतले 4 स्लाइस में काट लें. अब एक गोल कटोरी से पनीर को काट लें. उसी कटोरी से तैयार बेसन के भी 8 गोल स्लाइस काट लें. पनीर के स्लाइस पर दोनों तरफ चाट मसाला बुरकें. बेसन के एक स्लाइस पर हरी चटनी लगाएं और दूसरे पर टोमेटो सॉस लगाएं. अब बेसन के इन दो स्लाइस के बीच में पनीर का स्लाइस रखकर सैंडविच बनाएं. तैयार सैन्डविच को खसखस में दोनों तरफ से हल्के हाथ से दबाकर लपेटें. तैयार हाई प्रोटीन सैंडविच को चाय या काफी के साथ सर्व करें.

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Mother’s Day Special: बच्चे को दुनिया से रूबरू कराएंगी ये 5 जरूरी स्किल

हाल ही में कोविड—19 महामारी ने दुनिया को अभूतपूर्व रूप से बदल कर रख दिया है. इन बदले हालातों के लिए हमें अपने बच्चों को तैयार करना होगा. यह तभी संभव है जब हम उन्हें जरूरी कौशल सिखाएं ताकि वे सभी हालातों का सामना करने के लिए खुद को मजबूत बना सकें.डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी के अनुसार किसी भी बच्चे के जीवन के शुरूआती पांच साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, इन वर्षों में ही उनमें स्वास्थ्य, मानसिक—शारीरिक विकास और प्रसन्नता, भविष्य के लिए आकार लेते हैं. ‘जीवन कौशल शिक्षा’, विद्यालय में पढ़ाई जाने वाली शिक्षा के अतिरिक्त की शिक्षा है. बच्चों को यह कौशल शिक्षा, प्रशिक्षण और महत्वपूर्ण गतिविधियों के माध्यम से घर पर ही उपलब्ध कराई जा सकती है.

कुछ आवश्यक जीवन कौशलों के बारे में यहां जानकारी दी जा रही है, जिन्हें वास्तविक दुनिया का सामना करने के लिए अपने बच्चों को अवश्य सीखाना चाहिए.

1. स्वयं की देखभाल —

बच्चों को स्वयं की देखभाल करना आना बहुत जरूरी है ताकि वे अपनी शारीरिक जरूरतों को पहचान सकें और खुद की बेहतर देखभाल कर सकें. स्वयं की देखभाल करने में बच्चों के जीवन से जुड़ी आवश्यक गतिविधियां आती हैं, जैसे, सफाई, बेसिक कुकिंग, शर्ट के बटन लगाना आदि. यह स्किल स्कूल से संबंधित टास्क और लाइफ स्किल से संबंधित टास्क में बेहद काम आती हैं. इसके अलावा, यह संभव नहीं होता है कि आप हर समय अपने बच्चे के साथ हो सकें. जब वह पेड़ से सुपर हीरो की तरह छलांग लगाकर खुद को चोटिल करले, तब भी आप उसके आसपास हो यह हर बार संभव नहीं होता. इसलिए उनके लिए यह जरूरी है कि हम उन्हें प्राथमिक चिकित्सा किट का महत्व बताते हुए प्रयोग करना सिखाएं. उन्हें यह भी बताएं कि सब्जियां खाना, पर्याप्त स्वच्छ पानी पीना और सही नींद लेना कितना आवश्यक होता है.

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2. आत्मरक्षा-

आधुनिक जीवन शैली में बच्चों की सुरक्षा हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. इस कारण बच्चों में आत्म – रक्षा कौशल विकसित करने से न केवल बच्चे में आत्मविश्वास जागृत होता है, बल्कि वे स्वयं को अधिक स्वतंत्र महसूस कर पाते हैं. आज आत्म रक्षा की बुनियादी शिक्षा देना बेटे और बेटी दोनों के लिए आवश्यक हो गया है. आजकल स्कूलों में बच्चों को आत्मरक्षा के गुर सिखाए जाते हैं, हालाँकि, अगर आपके बच्चे के स्कूल में यह सुविधा नहीं है तो उन्हें बिना देर किए दूसरी जगह से प्रशिक्षण उपलब्ध कराएं. इसके अलावा, बच्चों को सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श के बारे में भी बताना बेहद महत्वपूर्ण है. अगर आपके बच्चों को आपके किसी रिश्तेदार से गले लगना या उनका किस करना पसंद नहीं है तो यह सब करने के लिए बाध्य न करें. याद रखें वे अपने शरीर के मालिक स्वयं हैं.

3. सामाजिक और भावनात्मक विकास-

एक अभिभावक के रूप में आपको, बच्चे को दूसरों की भावनाओं का मूल्यांकन करते समय भावनाओं को ठीक से व्यक्त करने और प्रबंधित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि उच्चईक्यू (भावनात्मक अनुपात), उच्चआईक्यू (बुद्धि अनुपात) से संबंधित है. अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, किंडरगार्टन में विकसित हुए एक बच्चे के सामाजिक और भावनात्मक स्किल आजीवन उनकी सफलता में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा, वर्तमान पीढ़ी के माता-पिता होने के नाते हमें अपने बच्चों को यह सिखाना बहुत जरूरी है कि वे अच्छे और बुरे अजनबियों के बीच अंतर कर सकें. अपने बच्चों को सिखाएं कि अच्छे अजनबियों के साथ वे कैसे बातचीत करें और उन्हें दोस्त बनाएं. यदि हम बच्चों को यह सब नहीं सिखाएंगे तो संभावना है कि युवा उम्र तक उनमें सकारात्मक सामाजिक कौशल विकसित नहीं हो पाएगा.

4. क्रिएटिव स्किल्स –टोडलर्स को खेल—

गतिविधियां कराई जानी बेहद आवश्यक होती है, क्योंकि इससे उनमें कम उम्र में ही संवाद करने, सीखने और खुदको अभिव्यक्त करने का कौशल विकसित होता है. अभिनव उत्पादों और सिलसिलेवार व्यवस्थित तरकीबों से बच्चों के रचनात्मक और नवोन्मेषी कौशल को महत्वपूर्ण तरीके से बढ़ाया जा सकता है.

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5. सीखने की आदत-

जो बच्चे सीखने का आनंद लेते हैं, वे ऐसे वयस्क हो जाते हैं जो जीवन में शायद ही कभी ऊबते हो. इसलिए बच्चों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करें. उनके स्क्रीन के समय को सीमित कर उन्हें बहुत सारी किताबें पढ़ने, खेलने के लिए प्रेरित करें. हम को शिश करें कि वे हमारे साथ पुस्तकालय जा सकें, उनके लिए खेल गतिविधियों का प्रबंध हम कर सकें और घर पर उन्हें थोड़ी ऊथल—पुथल करने की स्वतंत्रता उन्हें दी जाए. हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि आखिर कार बच्चे सीखने के लिए हमेशा उत्सुक होते हैं बस उन्हें सही दिशा देने की जरूरत होती है.

डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी,’गेट—सेट—पैरेंट विद पल्लवी’की संस्थापक, अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन की उपाध्यक्ष .

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