Women Health Tips: डिलीवरी के बाद फिट रहने के लिए फॉलो करें ये टिप्स

शिल्पा शेट्टी या करिश्मा कपूर की पतली कमर देख कर भला किस का दिल नहीं मचलेगा. इन अभिनेत्रियों की परफैक्ट फिगर व चमकती त्वचा को देख कर भला कौन कह सकता है कि ये न केवल शादीशुदा हैं बल्कि मां भी बन चुकी हैं अधिकतर महिलाएं शादी मां बनने के बाद खुद को रिटायर समझने लगती हैं और सोचने लगती हैं कि अब उन की फिगर पहले जैसा आकार नहीं ले सकती. इसलिए वे अपनी फिटनैस को ले कर लापरवाह हो जाती हैं, उस के लिए कोई कोशिश ही नहीं करतीं.

नतीजतन उन का शरीर थुलथुला हो जाता है व त्वचा मुरझा जाती है. जबकि हकीकत यह है कि बच्चा पैदा होने के बाद यदि थोड़ा सा भी ध्यान खुद पर दिया जाए तो कोई भी महिला इन अभिनेत्रियों की तरह सुंदर दिख सकती है.

आइए जानते हैं कि कैसे डिलिवरी के बाद भी अपने को फिट और खूबसूरत रख सकती हैं.

  1. कब शुरू करें व्यायाम

दिल्ली के सार्थक मैडिकल सैंटर की डायरैक्टर (गाइने) डाक्टर निम्मी रस्तोगी का कहना है, ‘‘अगर डिलिवरी सामान्य हुई हो तो डिलिवरी के 6 हफ्तों के बाद कोई भी महिला ऐक्सरसाइज शुरू कर सकती है और अगर डिलिवरी सिजेरियन हुई हो तो 3 महीनों के बाद महिला ऐक्सरसाइज शुरू कर सकती है.’’

डिलिवरी के समय वेट गेन होना यानी वजन का बढ़ना स्वाभाविक है. हर महिला 9 किलोग्राम से 11 किलोग्राम तक वेट गेन करती है. चूंकि इस समय फिजिकल ऐक्टिविटीज नहीं होती और घी, ड्राई फू्रट्स आदि हाईकैलोरी वाली चीजों का सेवन ज्यादा किया जाता है, तो वजन बढ़ ही जाता है. अगर नियमित रूप से व्यायाम और खानपान का ध्यान रखा जाए तो बढ़े वजन को घटाया जा सकता है.

2. कैसे करें ऐक्सरसाइज

सब से अच्छी ऐक्सरसाइज वाकिंग है. जितना अधिक चल सकें चलें, पानी बौडी को मूव करती रहें. शुरुआत सरल व्यायाम से करें. शुरू में 15 मिनट ही व्यायाम करें. धीरेधीरे व्यायाम का समय बढ़ा कर 45 मिनट करें. टोनिंग, ब्रीदिंग आदि ऐक्सरसाइज करें. ध्यान रहे हैवी  पीरियड्स के दौरान ऐक्सरसाइज न करें. ऐक्सरसाइज उतनी ही करें जिस से थकान न हो. ऐसी ऐक्सरसाइज भी न करें जिस से शरीर में खिंचाव या दर्द महसूस हो. डिलिवरी के बाद हारमोनों के प्रभाव से जोड़ों में ढीलापन आ जाता है. पेट की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं. ऐसे में व्यायाम द्वारा उन्हें मजबूत बनाया जा सकता है.

3. केगेल ऐक्सरसाइज

डिलिवरी के बाद योनि पर नियंत्रण कम होने से हंसते या खांसते समय यूरिन पास होने लगता है. इस समस्या के लिए केगेल ऐक्सरसाइज बहुत जरूरी है. यह ढीली हो चुकी योनि को मजबूत बनाती है. इस ऐक्सरसाइज द्वारा योनि को संकुचित किया जाता है. इस ऐक्सरसाइज में सांस को रोक कर योनि को 10-15 सैकंड तक सिकोड़ कर रखें. फिर ढीला छोड़ दें.

इस ऐक्सरसाइज को दिन में 5 बार करें. इस से योनि की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, उन का ढीलापन कम होता है.

4.पेट की ऐक्सरसाइज

पेट की मांसपेशियों के लिए पीठ के बल लेट जाएं और घुटनों को मोड़ लें. पेट पर दोनों हाथ क्रौस की मुद्रा में रखें. फिर सिर को उठाएं. सिर उठाने पर पेट की मांसपेशियां सख्त हो जाएंगी. फिर एक गहरी सांस लें. फिर सांस छोड़ते हुए सिर और कंधों को 45 डिग्री के कोण तक उठाएं और पेट की मांसपेशियों को सख्त कर लें. धीरेधीरे वापस पहले वाली स्थिति में आ जाएं. इस व्यायाम को धीरेधीरे बढ़ाते हुए रोज 50 बार करें.

5. मौर्निंग वाक के फायदे

यदि आप हमेशा फिट रहना चाहती हैं और अपने चेहरे की चमक भी बरकरार रखनी है तो प्रतिदिन वाकिंग को अपनी आदत में शामिल करें. इस से ब्लड में कोलैस्ट्रौल कम होने के साथसाथ हृदयरोग का खतरा भी कम होता है. जोड़ भी मजबूत होते हैं और शरीर में मैटाबोलिज्म की गति तीव्र होती है. वाक आप की रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है. इस से इमोशनल सपोर्ट भी मिलता है.

6. खानपान कैसा हो

आप प्रोटीनयुक्त भोजन करें तो ज्यादा फायदा होगा. हम जो भोजन करते हैं उस में 60% कार्बोहाइड्रेट और 25 से 40% वसा होती है जबकि प्रोटीन कम होता है. कार्बोहाइड्रेट व वसा की मात्रा कम कर के यदि प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दें तो मोटापा आसानी से कम किया जा सकता है.

  • पनीर: यह दांतों के लिए बेहद लाभकारी होता है. इस में पाए जाने वाले खनिज, लवण, कैल्सियम और फास्फोरस दांतों के इनैमल की रक्षा करते हैं. पनीर हड्डियों को भी मजबूत बनाता है.
  • अंकुरित अनाज: अंकुरित अनाज में बहुत सारे प्रोटीन होते हैं, जो शरीर को मजबूत रखते हैं और बीमारियों से बचाते हैं. यह पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है. इस में ऐंटीऔक्सीडैंट और विटामिन ए,बी,सी भरपूर होते हैं. फाइबरयुक्त रेशेदार अंकुरित अनाज खाने से आप का पाचनतंत्र मजबूत बनता है. अंकुरित अनाज में कैलोरी बहुत कम होती है.
  • पपीता: पपीते में विटामिन ए, बी, सी और डी, प्रोटीन तथा बीटा कैरोटिन जैसे तत्त्व पाए जाते हैं. पपीता वजन कम करने में बेहद सहायक है.

हरी पत्तेदार सब्जियां लौहयुक्त होती हैं. इन्हें खाने से डिलिवरी के बाद लौह की कमी से होने वाले एनीमिया से बचाव होता है. महिलाओं को प्रतिदिन 100 ग्राम हरी सब्जियां जरूरी खानी चाहिए. ये हमारे इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाती हैं और आंखों के लिए भी लाभदायक होती हैं. ये ब्रैस्ट कैंसर व लंग्स कैंसर की रोकथाम में भी कारगर हैं. सब्जियों में फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है.

दिल्ली के तारकोर इन इंडिया जिम सैंटर के फिटनैस ऐक्सपर्ट पीयूष कुमार के अनुसार, ‘‘डिलिवरी के बाद ऐसी ऐक्सरसाइज करें जिस से स्टमक पर ज्यादा जोर न पड़े. इस के लिए हलकी स्ट्रैचिंग, नौर्मल क्रंच आदि करें. बैठेबैठे पैरों को क्रौस कर हिलाएं. पीठ के बल लेट कर घुटनों को मोड़ सकती हैं. पैरों को 10 बार ऊपरनीचे करें. खड़े हो कर दोनों हाथों को ऊपर की तरफ खींचें. सीधी खड़ी हो कर लैफ्टराइट मूव करें.’’

दिल्ली के ब्यूटी ऐक्सपर्ट साक्षी थडानी का कहना है कि डिलिवरी के बाद महिलाओं में हारमोनल बदलाव की वजह से थकावट सी रहती है. वे पार्लर में जाने से आलस करती हैं. ऐसे में वे घर बैठे ही खूबसूरती को कायम रख सकती हैं. क्लींजर या टोनर से चेहरे की मसाज कर के चेहरा साफ कर लें. फिर चेहरे पर लाइट बेस पाउडर लगाएं. लिप कलर लाइट कलर का ही लगाएं.

घर पर ही किसी ब्यूटीशियन को बुला कर थ्रैडिंग, वैक्सिंग कराएं. थ्रैडिंग करवाने से चेहरा साफ दिखेगा. औलिव औयल से पूरी बौडी की मालिश करवाएं और फेशियल जरूर करवाएं.

Pregnancy में आपको भी होती है खाने की क्रेविंग, तो एक्सपर्ट से जानें क्या है इसके कारण

गर्भवस्था के दौरान होने वाली क्रेविंग्स के कई सारे कारण हो सकते हैं, जैसे हॉर्मोन्स, स्वाद और गंध का तीव्र हो जाना या फिर पोषक तत्वों की कमी होना. खाने की तीव्र इच्छा आमतौर पर पहली तिमाही में शुरू होती है और दूसरी तिमाही में यह अपने चरम पर होती है. हालांकि, प्रेग्नेंसी के दौरान अपने खाने को लेकर सतर्क होना जरूरी है, क्योंकि यह गर्भकालीन मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) का कारण बन सकता है, जोकि सालाना 10% गर्भवस्था को प्रभावित करता है.

डॉ. मंजू गुप्ता, सीनियर कंसल्टेंट, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा का कहना है कि आमतौर पर, जेस्टेशनल डायबिटीज को प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लड शुगर के स्तर को बढ़ने के रूप में परिभाषित किया जाता है. प्रेग्नेंसी के दौरान विकसित होते भ्रूण को और ज्यादा ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिये, एक महिला के शरीर में ग्लूकोज की खपत में बदलाव आ जाता है. वहीं, कुछ महिलाओं का शरीर ज्यादा इंसुलिन का निर्माण कर उसे समायोजित कर लेता है, जबकि बाकी उस मांग को पूरा नहीं कर पातीं.

आपको ऐसा महसूस हो सकता है कि सामान्य से ज्यादा भूख लग रही है. यदि आपको जुड़वां या ट्रिपलेट भी होने की उम्मीद है तो भी आपको दो के लिये खाने की जरूरत नहीं. खाने की अपनी सभी पसंदीदा चीजों को हटाने की बजाय, थोड़ी-थोड़ी देर में हेल्दी खाना खाएं और विविधतापूर्ण भोजन के लिये अलग-अलग चीजों से खाने की पूर्ति करें. इससे जेस्टस्टेशन डायबिटीज होने की आशंका कम हो जाएगी और यदि आपको यह बीमारी है तो उसका सही नियंत्रण हो पाएगा.

जेस्टेशनल डायबिटीज के साथ क्या जोखिम जुड़े हैं? 

गर्भावस्था के दौरान और बाद में जेस्टेशनल डायबिटीज के नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं. जेस्टेशनल डायबिटीज लोगों में गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर के होने का अधिक जोखिम होता है, जिससे संभावित घातक स्थिति प्रीक्लेम्पसिया के होने का खतरा बढ़ जाता है.

बार-बार होने वाली क्रेविंग को कम करने में मदद करने के लिये किन-किन बातों का रखें ध्यान
एक स्वस्थ, संतुलित आहार खाएं जिसमें लीन प्रोटीन स्रोत, न्यूनतम वसा वाले डेयरी उत्पाद, साबुत अनाज, फल, सब्जियां और फलियां शामिल हों. इसमें कोई कम हेल्दी चीज परोसने से आपके बच्चे के पोषण की जरूरतों में कोई रुकावट नहीं होगी, यदि आपकी डाइट संतुलित है.
ब्लड शुगर को कम होने से बचाने के लिये लगातर खाते रहने से खाने की क्रेविंग होती है. खाने को छह स्वादिष्ट, मैनेज किए जाने वाली मात्रा में बांटा जा सकता है.
अपने डॉक्टर से परामर्श लेकर नियमित एक्सरसाइज को शामिल करें
यदि आपको लगातार शक्करयुक्त या मीठा खाने की क्रेविंग हो रही है तो ज्यादा से ज्यादा अंतराल करने की कोशिश करें, यदि आपने पिछले दो घंटों में कुछ हेल्दी खाना या स्नैक लिया हो. तेज वॉक करने की कोशिश करें, घर से बाहर निकलें और पढ़ने या फिल्म देखने जैसी एक्टिविटी में शामिल हों, यह खाने से आपका ध्यान हटाएगा.

अपने भोजन में क्या शामिल करें?

हर किसी के लिये किसी भी समय एक हेल्दी लाइफस्टाइल जीना बेहद जरूरी है, लेकिन यह और भी जरूरी हो जाता है यदि आप गर्भवती हैं या प्रेग्नेंसी की प्लानिंग कर रहे हैं. यहां कुछ ऐसी चीजें दी गई जो आप अपने खाने में शामिल कर सकते हैं, यदि आप प्रेग्नेंट हैं.

फाइबर: प्रेग्नेंसी के दौरान कई कारणों से कब्ज की समस्या हो सकती है, जो आमतौर पर अंदरूनी हॉर्मोनल बदलावों से होता है. फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थों के सेवन से कब्ज को नियंत्रित किया जा सकता है. उच्च फाइबर वाले खाद्य पदार्थ खाने से आपको ब्लड प्रेशर के स्तर को स्थिर रखने में मदद मिलती है. फल, सब्जियां, साबुत अनाज, सीरियल्स और फलियां खाने से आपको अपनी दैनिक फाइबर की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी.

आयरन: आयरन का उपयोग शरीर हीमोग्लोबिन बनाने के लिये करता है. जब आप गर्भवती होती हैं तो आपको लगभग दोगुनी आयरन की आवश्यकता होती है. आपके शरीर को ज्यादा खून बनाने के लिये इस आयरन की जरूरत होती है ताकि आपके अजन्मे बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल सके. अगर आपके शरीर में आयरन का स्तर अपर्याप्त है या गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में आयरन नहीं मिलता है तो आपको आयरन की कमी हो सकती है. आप सिरदर्द या थकावट का अनुभव करने लगते हैं. समय से पहले जन्म और जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों का जोखिम बढ़ने के अलावा, इससे प्रसव के बाद डिप्रेशन भी हो सकता है. आयरन के कुछ अच्छे स्रोतों में पोल्ट्री, मछली और लीन रेड मीट शामिल हैं.

फोलेट: फलियां कैल्शियम, आयरन, फोलेट, फाइबर, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों के सबसे बेहतर वनस्पति-आधारित प्रदाता हैं जिनकी गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर को अधिक आवश्यकता होती है. सबसे महत्वपूर्ण बी विटामिन में से एक फोलेट है. आपको हर दिन कम से कम 600 माइक्रोग्राम फोलेट का सेवन करना चाहिए, जो सिर्फ आहार से पाना मुश्किल हो सकता है. आपका डॉक्टर फोलेट सप्लीमेंट की सलाह दे सकता है.

प्रोटीन: गर्भवती महिलाओं को लीन प्रोटीन स्रोतों का सेवन करना चाहिए. आपके प्रोटीन के विकल्प, फैट तथा शक्कर के सेवन में कमी को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिए. बर्गर या कुछ बेकन के बजाय कम वसा वाला विकल्प चुनें. अपने रोजाना के दो या तीन मील की प्रोटीन के लिये ली मीट जैसे चिकन ब्रेस्ट, व्हाइट फिश, अंडे या  छोटे-छोटे टुकड़े वाले टर्की पर विचार करें.

कैल्शियम: गर्भवती महिलाओं को दूध, पनीर, दलिया और दही जैसे डेयरी उत्पादों का सेवन करना चाहिए क्योंकि ये कैल्शियम और अन्य आवश्यक तत्वों से भरपूर होते हैं. कम वसा वाले विकल्प चुनें जैसे सेमी-स्कीम्ड, 1 प्रतिशत वसा, या स्किम्ड दूध, कम वसा और कम शक्कर वाला दही और कम वसा वाला सख्त पनीर. यदि आप डेयरी के लिये नॉन-डेयरी विकल्प चुनते हैं, तो बिना शक्कर, कैल्शियम-फोर्टिफाइड सोया ड्रिंक और दही चुनें. बिना पाश्चुरीकृत चीज़ उन चीज़ों में से हैं जिनसे आपको गर्भावस्था के दौरान दूर रहना चाहिए.

सप्लीमेंट्स: यदि आप संतुलित आहार ले रही हैं तो भी प्रमुख पोषक तत्वों की कमी हो सकती है. रोजाना प्रीनेटल विटामिन, सबसे बेहतर होगा गर्भधारण करने के तीन महीने पहले लेने से कोई भी कमी पूरी हो सकती है. यदि आप सिर्फ शाकाहारी भोजन लेती हैं या कोई क्रॉनिक स्वास्थ्य समस्या है तो आपके डॉक्टर आपको सही सप्लीमेंट लेने की सलाह दे सकते हैं. सप्लीमेंट के लिये अपने डॉक्टर से बात करें, क्योंकि कुछ खास प्रकार के हर्बल सप्लीमेंट्स, गर्भावस्था के दौरान हानिकारक हो सकते हैं.

 

New Year Special: नए साल में रहना चाहते हैं स्वस्थ, तो बस अपनाएं ये आसान टिप्स

आज हर उम्र के लोग स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो चुके है. इस बारें में मुंबई के कोकिलाबेन धीरूबाई अम्बानी हॉस्पिटल कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट डॉ प्रवीण कहाले कहते हैं कि कोविड के बाद लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है और ये अच्छी बात है, लेकिन कुछ बातें हर व्यक्ति को नए साल में समझने की जरुरत है, जो निम्न है.

अपना वज़न नियंत्रण में रखें

ध्यान रखें कि आपका वज़न जो सही होना चाहिए वही है. इसके लिए आपको अतिरिक्त कैलरीज़ से बचना होगा और नियमित रूप से कसरत करनी होगी. लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करने जैसे आसान उपाय आप हर दिन कर सकते हैं. बैठे रहना आपके लिए उतना ही हानिकारक है जितना, पैसिव स्मोकिंग है, लगातार लंबे समय तक बैठे रहने से हृदय की बीमारियों का खतरा बढ़ता है. जब आप बैठे रहते हैं तब आप अपने शरीर को उतना ही नुकसान पहुंचाते हैं जितना लकड़ी के धुंए में रहने से होता है. इसीलिए, कसरत न करने या बैठे रहने को पैसिव स्मोकिंग माना जाता है.

  • पैक्ड फूड्स खाना कम या बंद करें और स्वस्थ आहार को चुनें. रोज़ के खाने में बहुत सारी सब्ज़ियां
    होनी चाहिए, नमक और चीनी की मात्रा कम करें.
  • आहार पर नियंत्रण रखने के साथ-साथ, कसरत पर भी नियंत्रण रखना ज़रूरी है. बहुत ज़्यादा कसरत
    की वजह से कई बार समस्याएं खड़ी हो जाती हैं, कई बार लोग बॉडी बनाने के लिए स्टेरॉइड्स और
    इस तरह की दूसरी दवाइयां लेते हैं, जिससे कार्डिओवस्क्युलर यानी ह्रदय की बिमारियों का खतरा
    बढ़ता है.
  • बच्चों को डिजिटल दुनिया से दूर रखिए, उन्हें खेलने, कसरत करने के लिए बढ़ावा दें. बैडमिंटन, टेबलटेनिस, क्रिकेट और फुटबॉल जैसे आउटडोर खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इससे बच्चों में सहनशीलता बढ़ती है और हृदय की बिमारियों का खतरा कम होता है.

जीवनशैली में इन महत्वपूर्ण बदलावों को लाने के अलावा अच्छी गहरी नींद लेना बेहद जरूरी है.
कितनी नींद ले रहे हैं, उसके साथ-साथ नींद की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण है. सोने से पहले मोबाइल
उपकरणों और टेलीविजन से दूर रहें, क्योंकि यह आपके सर्केडियन रिदम को तोड़ता है या परेशान
करता है, जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. स्वास्थ्य अच्छा रख पाने के लिए नींद एक
महत्वपूर्ण पहलू है. दोपहर के समय में छोटी झपकी ले सकते हैं, लेकिन दिन में लंबे समय तक सोने से
निश्चित रूप से आपके हृदय संबंधी जोखिम बढ़ेगी. ये कुछ निवारक उपाय और स्वस्थ जीवन शैली को
अपनाकर आप अपना ह्रदय स्वस्थ रख सकते हैं.

  •  अलग-अलग उम्र के लोगों के लिए कसरत भी अलग-अलग तरह की होती हैं, जिन लोगों को जोड़ों का
    दर्द या अन्य समस्या होती है, वे जॉगिंग और ट्रेडमिल के बजाय तैरने और साइकिल चलाने जैसे स्थिर
    व्यायाम कर सकते हैं, इस तरह के उपकरण जिम और घर में भी आसानी से उपलब्ध होते हैं.
  • यह ज़रूरी नहीं है कि हाई स्पीड वाला व्यायाम करें. मध्यम तीव्रता वाले व्यायाम नियमित रूप से,
    लगातार करके आप तनाव को दूर रख सकते हैं, ध्यान रखें कि कभी-कभी व्यायाम हानिकारक हो
    सकता है.
  • विटामिन डी, विटामिन बी12 जैसे पोषक तत्वों की कमी की जांच कराते रहें और आयरन की कमी मानकर उसकी पूर्ति करते रहें, युवा महिलाओं के साथ-साथ वयस्क महिलाओं में भी विटामिन, आयरन की कमी बेहद आम समस्या है. कुल स्वास्थ्य को अच्छा रख पाने और विशेष रूप से हृदय के स्वास्थ्य को अच्छा रख पाने के लिए पोषण की दृष्टी से यह एक महत्वपूर्ण पहलु है.
  • किसी व्यक्ति को डायबिटीज, रक्तचाप या कोलेस्ट्रॉल न हो तो भी, मोटापे और वज़न ज़्यादा होने से ह्रदय की बीमारी का खतरा 25 प्रतिशत तक बढ़ता है. डायबिटीज और मोटापा एक जानलेवा कॉम्बिनेशन है, क्योंकि मोटापे के कारण डायबिटीज की संभावना बढ़ती है और एक बार अगर मरीज़ को हाई शुगर हो जाता है, तो हार्ट अटैक की संभावना कई गुना बढ़ जाती है.
  • धूम्रपान हार्ट अटैक की बहुत महत्वपूर्ण वजह होती है. सिगरेट के धुंए में जो केमिकल्स होते हैं उनसे शरीर में खून गाढ़ा हो जाता है, वाहिकाओं और शिराओं धमनियों में क्लॉट्स जमा होने लगते हैं.

अच्छे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है प्रोसेस्ड फूड कम खाना और नमक, चीनी की मात्रा कम रखना.
उम्र बढ़ने पर कार्डियोवेस्क्युलर रिस्क को कम करने के लिए बचपन से ही कुछ बातों का ख्याल
रखना चाहिए. शरीर को नमक और चीनी की आवश्यकता नहीं होती, यह दो चीज़ें आपके शरीर को
नहीं, बल्कि सिर्फ जीभ को खुश रखने के लिए होती हैं. अब आपको सोचना होगा कि नए साल में आप
सिर्फ जीभ को खुश रखना चाहते हैं या पूरे शरीर को?

प्रेग्नेंसी के बाद बढ़े वजन को ऐसे करें कम

प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाना एक बड़ी चुनौती होती है. आमतौर पर प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं का वजन बढ़ जाता है और आपकी लाख कोशिशों के बाद भी वो अपना वजन कम नहीं कर पाती. इस खबर में हम आपको उन तरीकों के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से आप प्रेग्नेंसी के बाद भी अपना वजन कम कर सकेंगी.

खाना और नींद रखें अच्छी

आपको बता दें कि तनाव और नींद पूरी ना होने से कई तरह के रोग हो जाते हैं. इसके अलावा आप बाहर का खाना बंद कर दें. घर का बना खाना खाएं और पर्याप्त नींद लें. स्ट्रेस ना लें. खुद को कूल रखें.

बच्चे को कराएं ब्रेस्टफीड

मां का दूध बच्चों के लिए अमृत रसपान

आपको ये जान कर हैरानी होगी पर ये सच है कि ब्रेस्टफीड कराने से महिलाओं के वजन में तेजी से गिरावट आती है. और इस बात का खुसाला कई शोधों में भी हो चुका है. ब्रेस्टफीड कराने से शरीर की 300 से 500 कैलोरी खर्च होती है. कई जानकारों का मानना है कि स्तमपान कराने से महिलाओं का अतिरिक्त वजन कम होता है.

 खूब पीएं पानी

diet to loose weight

पानी पीना वजन कम करने का सबसे आसान तरीका है. अगर आप सच में अपना वजन कम करना चाहती हैं तो अभी से रोजाना 10 से 12 ग्लास पानी पीना शुरू कर दें.

टहला करें

प्रेग्नेंसी के बाद वजन कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप वौक शुरू करें. कई रिपोर्टों में भी ये बाते सामने आई है कि प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाने के लिए जरूरी है टहलना.

माता-पिता को डायबिटीज होने से क्या मुझे भी खतरा है, इलाज बताएं?

सवाल-

मैं 43 वर्षीय महिला हूं. मेरा स्वास्थ्य सामान्य है. पर मेरे मातापिता दोनों को ही डायबिटीज थी, जिस के कारण उन्हें ढेरों परेशानियां उठानी पड़ीं. क्या परिवार में मातापिता, भाईबहन को यह रोग हो तो इस के होने का खतरा बढ़ जाता है? मुझे डायबिटीज न हो, इस के लिए मुझे क्याक्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

जवाब-

यह बात सच है कि जैनेटिक कारणों से डायबिटीज कई परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी पाई जाती है. रक्त संबंधियों जैसे मातापिता और सगे भाईबहन को डायबिटीज हो तो व्यक्ति को डायबिटीज होने का रिस्क कई गुना बढ़ जाता है. टाइप 2 डायबिटीज में पिता के डायबिटिक होने पर संतान में डायबिटीज की दर 14%, मां के डायबिटिक होने पर 19% और मातापिता दोनों के डायबिटिक होने पर 25% आंकी गई है. भाई या बहन को डायबिटीज हो तो 75% मामलों में दूसरे भाईबहनों को भी डायबिटीज होती है. डायबिटीज होने का यह रिस्क कई दूसरी चीजों के साथ भी बढ़ जाता है. जैसेजैसे उम्र बढ़ती है और 45 पार करती है, वैसेवैसे डायबिटीज का खतरा बढ़ता जाता है. इसी प्रकार शरीर पर चरबी बढ़ने, पूरापूरा दिन बैठेबैठे बिताने और शारीरिक कामकाज, व्यायाम के लिए समय न देने, ब्लडप्रैशर 140/190 अंकों से अधिक हो जाने, एचडीएल कोलैस्ट्रौल का प्रतिशत 35 मिलीग्राम से कम होने व ट्राइग्लिसराइड का प्रतिशत बढ़ कर 250 मिलीग्राम के पार जाने और धमनियों में रुकावट के लक्षण उपजने पर डायबिटीज का रिस्क बढ़ जाता है. जिस स्त्री को पोलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज रही होती है या जिस स्त्री की प्रैगनैंसी में ब्लडशुगर बढ़ने की हिस्ट्री होती है या जिस स्त्री ने पहले कभी 9 पाउंड से अधिक वजन के बच्चे को जन्म दिया होता है, उसे भी ब्लडशुगर पर खास निगरानी रखने की जरूरत होती है.

लेकिन इन जानकारियों को पा कर आप न तो घबराएं ही, न ही परेशान हों. अगर आप सही जीवनशैली अपना लें, तो बहुत संभव है कि आप इस रोग से साफ बच जाएं. संतुलित खानपान, नियमित व्यायाम और वजन पर विशेष ध्यान रखने से टाइप 2 डायबिटीज की दर 50-60% घटाई जा सकती है. संतुलित खानपान का माने है कि रोजाना कैलोरी जरूरत के मुताबिक ही लें. फैट कम मात्रा में लें यानी जंक फूड और फास्ट फूड को तिलांजलि दे दें और घी, मक्खन सीमित मात्रा में प्रयोग करें. खाना पकाने के लिए सूरजमुखी, सरसों और मूंगफली का तेल मिला कर इस्तेमाल करें और भोजन में प्राकृतिक रेशेदार चीजों पर जोर रखें. रोजाना नियम से शारीरिक कसरत करें. चुस्त चाल से की गई सैर, तैराकी, साइक्लिंग और बैडमिंटन जैसा कोई खेल इस दृष्टि से अच्छा होता है. तीसरी बात यह है कि यदि वजन अधिक है, तो उसे घटाने की पूरी कोशिश करें. मात्र 5% वजन कम करने से भी डायबिटीज का जोखिम घट जाता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

आज ही से पीना शुरू करें पालक का जूस, ये हैं फायदे

शरीर के विकास के लिए हरे साग सब्जियों का सेवन बेहद जरूरी है. इसमें पालक सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. इसमें कई तरह के मिनरल्स, विटामिन्स और कई अन्य जरूरी न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं. इसके अलावा इसमें मैगनीज, कैरोटीन, आयरन, आयोडीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम, फौस्फोरस और आवश्यक अमीनो एसिड भी पाए जाते हैं. इस खबर में हम आपको पालक जूस से होने वाले फायदे के बारे में बताएंगे.

  • पालक में एंटीऔक्सिडेंट पाए जाते हैं. इसके नियमित सेवन से त्वचा की झुर्रियां दूर रहती हैं और चेहरे पर चमक आती है.
  • गर्भवती महिलाओं के लिए भी पालक का जूस पीने की सलाह दी जाती है. इससे गर्भ में पल रहे बच्चे को आयरन की कमी नहीं होती है.
  • कई तरह के अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि पालक में मौजूद कैरोटीन और क्लोरोफिल कैंसर से बचने में हमारी मदद करता है. आंखों की रोशनी के लिए भी ये काफी असरदार होता है.
  • इसमें विटामिन्स की अच्छी मात्रा होती है. इससे हड्डियों को मजबूती मिलती है.
  • पाचन क्रिया को बेहतर करने के लिए भी पालक के जूस के सेवन की राय दी जाती है. ये शरीर के विषाक्त पदार्थों को निकाल कर पको स्वस्थ रखने का काम करती है. इसके अलावा कब्ज की परेशानी में भी खासा आराम देती है.
  • अगर आपको त्वचा से संबंधित परेशानियां हैं तो ये आपके लिए बेहद फायदेमंद होगा. इसके नियमित सेवन से त्वचा पर चमक आती है. बालों के लिए भी ये काफी फायदेमंद है.

अच्छी सेहत के लिए जरूरी है पर्याप्त प्रोटीन

प्रोटीन शरीर में पेशियों, अंगों, त्वचा, ऐंजाइम, हारमोन आदि बनाने के लिए बेहद जरूरी होते हैं. ये छोटे अणु हमारे शरीर में कई महत्त्वपूर्ण काम करते हैं.

हमारे शरीर में 20 प्रकार के एमिनो ऐसिड होते हैं, जिन में से 8 जरूरी एमिनो ऐसिड कहलाते हैं, क्योंकि शरीर इन्हें खुद नहीं बना सकता. इसलिए इन्हें आहार के माध्यम से लेना बहुत जरूरी होता है. शेष 12 एमिनो ऐसिड गैरजरूरी कहे जा सकते हैं, क्योंकि हमारा शरीर खुद इन का उत्पादन कर सकता है. प्रोटीन छोटे अणुओं से बने होते हैं, जिन्हें एमिनो ऐसिड कहते हैं. ये एमिनो ऐसिड एकदूसरे के साथ जुड़ कर प्रोटीन की शृंखला बना लेते हैं.

प्रोटीन से युक्त आहार को पचाने के लिए शरीर को ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है. इसलिए प्रोटीन को पचाने के दौरान शरीर में जमा कैलोरी (वसा और कार्बोहाइड्रेट) बर्न हो जाती है. इस तरह प्रोटीन का सेवन करने से शरीर का वजन सामान्य बना रहता है.

अगर आप शाकाहारी हैं और ऐनिमल प्रोटीन का सेवन नहीं करते हैं तो आप के लिए प्रोटीन की जरूरत पूरी करना थोड़ा मुश्किल होगा. यही कारण है कि शाकाहारी लोगों में प्रोटीन की कमी होने की संभावना ज्यादा होती है.

एक व्यक्ति को औसतन कितनी मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है?

हर व्यक्ति को अपने शरीर के अनुसार अलग मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है. यह व्यक्ति की ऊंचाई और वजन पर निर्भर करता है. सही मात्रा में प्रोटीन का सेवन कई चीजों पर निर्भर करता है जैसे आप कितने ऐक्टिव हैं, आप की उम्र क्या है? आप का मसल मास क्या है? आप की सेहत कैसी है?

अगर आप का वजन सामान्य है, आप ज्यादा व्यायाम नहीं करते, भार नहीं उठाते तो आप को औसतन 0.36 से 0.6 ग्राम प्रति पाउंड (0.8 से 1.3 ग्राम प्रति किलोग्राम वजन) प्रोटीन की जरूरत होती है. औसत पुरुष के लिए 56 से 91 ग्राम रोजाना और औसत महिला के लिए 46 से 75 ग्राम रोजाना.

प्रोटीन की कमी क्या है?

प्रोटीन की कमी बहुत ज्यादा होने पर शरीर में कई बदलाव आ सकते हैं. इन की कमी शरीर के लगभग हर काम को प्रभावित करती है. ये 13 लक्षण बताते हैं कि आप अपने आहार में पर्याप्त प्रोटीन का सेवन नहीं कर रहे हैं.

वजन में कमी: प्रोटीन की कमी के 2 प्रकार हैं-

पहला क्वाशिओरकोर. यह तब होता है जब आप कैलोरी तो पर्याप्त मात्रा में ले रहे हैं, लेकिन आप के आहार में प्रोटीन की कमी है और दूसरा मरैज्मस. यह तब होता है जब आप कैलोरी और प्रोटीन दोनों ही कम मात्रा में ले रहे होते हैं.

अगर आप प्रोटीन का सेवन पर्याप्त मात्रा में नहीं कर रहे हैं, तो हो सकता है कि आप का आहार संतुलित नहीं है. आप के आहार में कैलोरी पर्याप्त मात्रा में नहीं है या आप का शरीर भोजन को ठीक से नहीं पचा पा रहा है. अगर आप बहुत कम मात्रा में कैलोरी का सेवन करते हैं, तो आप का शरीर प्रोटीन का इस्तेमाल ऐनर्जी पाने के लिए करेगा न कि पेशियां बनाने के लिए. इस से आप का वजन कम हो जाएगा. हालांकि कुछ लोगों में वजन बढ़ जाता है, क्योंकि उन के शरीर में प्रोटीन को पचाने के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं होती.

बाल, त्वचा और नाखूनों की समस्याएं: प्रोटीन की कमी का बुरा असर अकसर बालों, त्वचा और नाखूनों पर पड़ता है, क्योंकि ये अंग पूरी तरह प्रोटीन से बने होते हैं. प्रोटीन की कमी से अकसर सब से पहले बाल पतले होने लगते हैं, त्वचा पर से परतें उतरने लगती हैं और नाखूनों में दरारें आने लगती हैं.

थकान या कमजोरी महसूस होना: जब शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन नहीं मिलता तो पेशियां कमजोर होने लगती हैं, शरीर पेशियों में से एमिनो ऐसिड पाने की कोशिश करता है, जिस से मसल मास कम हो जाता है और मैटाबोलिक रेट भी कम होने लगता है. इस से शरीर में ताकत और ऐनर्जी कम हो जाती और आप हमेशा थका हुआ महसूस करते हैं.

चीनी या मीठा खाने की इच्छा: प्रोटीन को पचाने में कार्बोहाइड्रेट की तुलना में ज्यादा समय लगता है. जब आप ज्यादा कार्बोहाइड्रेट से युक्त भोजन खाते हैं, तो ब्लड शुगर अचानक बढ़ती है और फिर कम हो जाती है. इसलिए चीनी या मीठा खाने की इच्छा होती है. इस से बचने के लिए अपने आहार में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट दोनों की पर्याप्त मात्रा का सेवन करें ताकि आप का शरीर भोजन को धीरेधीरे पचाए और ब्लड शुगर के स्तर में अचानक बदलाव न आए.

ऐनीमिया या खून की कमी: अगर आप के शरीर में प्रोटीन की कमी है तो विटामिन बी12 और फौलेट की कमी होने की संभावना भी बढ़ जाती है, जिस के कारण खून की कमी यानी ऐनीमिया हो सकता है. इस में शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो जाती है, जिस कारण ब्लड प्रैशर कम हो सकता है और आप थकान भी महसूस कर सकते हैं.

प्रतिरक्षा क्षमता/ इम्यूनिटी: प्रोटीन की कमी से इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है और फिर बारबार बीमार पड़ने लगते हैं. ठीक होने में भी समय लगता है. इम्यून सैल्स प्रोटीन से बने होते हैं. इसलिए अगर आप का आहार संतुलित नहीं है तो आप डोमिनो इफैक्ट से परेशान हो सकते हैं.

ब्लड प्रैशर और हार्ट रेट कम होना: प्रोटीन की कमी से ब्लड प्रैशर कम होने की संभावना बढ़ जाती है. अगर शरीर को सही पोषण न मिले तो इस का असर शरीर के सभी कार्यों पर पड़ता है.

लिवर की समस्याएं: प्रोटीन की कमी और लिवर रोग एकदूसरे से संबंधित हैं. प्रोटीन के बिना आप का लिवर डिटौक्सीफिकेशन का काम ठीक से नहीं कर पाता.

पेशियों और जोड़ों में दर्द: प्रोटीन की कमी होने पर शरीर ऊर्जा की जरूरत पूरी करने के लिए पेशियों से कैलोरी बर्न करने लगता है, जिस से पेशियों एवं जोड़ों में दर्द, कमजोरी महसूस होने लगती है.

पेशियों में कमजोरी: मध्य आयुवर्ग के पुरुषों में अकसर उम्र बढ़ने के साथ सार्कोपेनिया हो जाता है. उन का मसल मास कम होने लगता है. अगर वे अपने आहार में प्रोटीन का सेवन पर्याप्त मात्रा में न करें तो यह समस्या और ज्यादा बढ़ सकती है.

सूजन: अगर आप के शरीर में प्रोटीन की कमी है, तो आप एडिमा यानी सूजन से पीडि़त हो सकते हैं. शरीर में पानी भरने से आप अपनेआप में फुलावट महसूस करते हैं. प्रोटीन टिशूज में खासतौर पर आप के पैरों और टखनों में पानी भरने से रोकता है.

चोट जल्दी ठीक न होना: प्रोटीन की कमी से शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता तो कमजोर होती ही है, साथ ही घाव को भरने के लिए नए टिशूज और नई त्वचा बनाने के लिए भी प्रोटीन की जरूरत होती है.

बच्चों का ठीक से विकास न होना: प्रोटीन न केवल पेशियों और हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि शरीर के विकास के लिए भी जरूरी है. इसलिए बच्चों में प्रोटीन की कमी घातक साबित होती है. प्रोटीन की कमी के कारण उन का विकास ठीक से नहीं हो पाता है.

-डा. श्रुति शर्मा, डाइट काउंसलर, बैरिएट्रिक एवं न्यूट्रिशनिस्ट, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

सेहत बिगाड़ देगा पैक्ड फ्रूट जूस

आजकल कई घरों में देखा गया है कि नाश्ते के वक्त वहां जूस के तौर पर बाजार वाला पैक्ड जूस ही पीना पसंद किया जाता है. कभीकभार मुंह का स्वाद बदलने के लिए इसे पीना बुरा नहीं है, लेकिन इन्हें प्राकृतिक फलों की जगह देना बिलकुल भी सही नहीं है. पैक्ड उत्पादों में 100 फीसदी फलों का जूस नहीं होता. इस के अलावा पैक्ड जूस में जरूरी पौष्टिक गुण गायब होते हैं. आइए, जानते हैं इन के बारे में :

नहीं होता फाइबर

पैक्ड जूस बनाते वक्त बहुत से फलों के जूस को उबाला जाता है, ताकि उन में पाए जाने वाले बैक्टीरिया खत्म हो सकें. इसी के साथ इस में जरूरी विटामिन और प्राकृतिक तत्त्व भी खत्म हो जाते हैं. पैक्ड जूस में फाइबर या गूदा नहीं होता, क्योंकि उसे निकाल दिया जाता है.

मोटापा बढ़ता है

पैक्ड फ्रूट जूस में चीनी बहुत अधिक मात्रा में होती है जोकि कैलोरी ज्यादा बनाती है. ऐसे में वजन कम करने की सारी कोशिशें बेकार हो जाती हैं. विशेषज्ञ भी मानते हैं कि प्राकृतिक फल और सब्जियों की तुलना में पैक्ड जूस को लेने से ज्यादा वजन बढ़ता है.

आर्टिफीशियल कलर

प्राकृतिक फलों में आर्टिफिशियल कलर नहीं मिला होता, लेकिन पैक्ड फू्रट जूस में आर्टिफिशियल कलर का प्रयोग किया जाता है. जिस से वह देखने में फल के रंग के जूस का लगे. यह बाजारू रंग शरीर के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक होता है क्योंकि जब आप इन का सेवन करेंगे तो आप की जीभ पर भी  रंग दिखेगा.

पेट संबंधी समस्याएं

कुछ फलों में सौर्बिटौल जैसी शुगर मौजूद होती है, जो आसानी से पचती नहीं है. ऐसे में पैक्ड जूस के कारण पेट संबंधी समस्याएं भी सामने आ सकती हैं. नाशपाती, स्वीट चेरी और सेब सरीखे कुछ फलों में ऐसी ही शुगर मौजूद होती है. ऐसे में इन फलों के पैक्ड जूस पीने से गैस, पेट में उथलपुथल और डायरिया की समस्या भी देखने में आती है. ऐसे जूस को पचाने में बच्चों को ज्यादा समस्या आती है.

डायबिटीज में नुकसानदेह

डायबिटीज के मरीजों को पैक्ड जूस बिलकुल भी नहीं पीना चाहिए. दरअसल, यह जूस रिफाइंड शुगर से बना होता है, जो डायबिटिक लोगों के लिए ठीक नहीं है. यदि इन के लैबल पर शुगरफ्री लिखा भी हो, तब भी इन के सेवन से बचना चाहिए. मीठे फल, गाजर या चुकंदर जैसे हाईशुगर वैजिटेबल्स जूस के रूप में ब्लडशुगर के स्तर को बढ़ा देते हैं.

अनियमित ब्लडशुगर

पैक्ड जूस में फलों के छिलके का सत्त नहीं होता, इसलिए शरीर को प्राकृतिक फाइबर नहीं मिल पाता. साबुत फल और सब्जियों को पचाने में शरीर में जितना समय मिलता है, उस से कहीं कम समय में शरीर जूस को जज्ब कर लेता है. इस की वजह से ब्लडशुगर का स्तर भी तुरंत बढ़ जाता है.

वजन बढ़ने से घुटनों में दर्द का इलाज क्या है?

सवाल-

मैं 18 वर्षीय बास्केटबौल खिलाड़ी हूं. पिछले महीने बास्केटबौल खेलते हुए मैं तेजी से भागने के दौरान एक खिलाड़ी से टकरा गया था. हालांकि मैं तुरंत अपने पैरों पर खड़ा हो गया, लेकिन मेरी गरदन अब तक ठीक नहीं हो पाई है. जब मैं उसे घुमाता हूं तो दर्द महसूस होता है और सिर भी भारी लगता है. मुझे आराम करने की सलाह दी गई है. कोई चिंता की बात तो नहीं है?

जवाब-

लगता है, आप गरदन में मोच की एक खास समस्या से पीडि़त हैं, जिस में गरदन की नसें और लिगामैंट्स चोटिल होते हैं. ये नसें और लिगामैंट्स सौफ्ट टिशू होते हैं, जो गरदन की हड्डियों को जोड़ते हैं. तेज और अचानक के झटके से ये चोटिल हो सकते हैं. आप को ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. गरदन को पर्याप्त आराम दें और डाक्टर की सलाह पर चलें. जरूरत पड़ने पर गरदन को सपोर्ट देने वाले कौलर का इस्तेमाल करें. इस तरह की इंजरी समय के साथ खुद ठीक हो जाती है.

सवाल

मेरी उम्र 35 वर्ष है. पिछले 5 वर्षों से डिप्रैशन में रहने के कारण मेरा वजन बहुत बढ़ गया है. 75 किलोग्राम से बढ़ कर 90 किलोग्राम हो गया है. डाक्टर बताते हैं कि स्वास्थ्य की दृष्टि से यह बड़ी समस्या बन सकती है. क्या अत्यधिक वजन के कारण मेरे घुटने भी प्रभावित हो सकते हैं?

जवाब-

हां. बढ़ते वजन का मतलब है कि उसी अनुपात में घुटनों के जोड़ों पर दबाव बढ़ना. आखिर हमारे घुटनों और टांगों को ही पूरी जिंदगी हमारे शरीर का वजन ढोना पड़ता है. बढ़ती उम्र में घुटनों में किसी न किसी तरीके से घिसाव आने लगता है. साथ ही यदि शरीर का वजन भी बढ़ता है, तो घुटनों में घिसाव और तेजी से होने लगता है. अत: जब तक घुटने काम करते रहते हैं, अच्छी तरह वर्कआउट करें. घुटनों की परेशानी बढ़ने से पहले ही अपने वजन को कम करने की कोशिश करें.

सवाल-

मेरी उम्र 59 साल है. मेरे घुटनों में घिसाव बढ़ रहा है. इसे रोकने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

बढ़ती उम्र में घुटनों में घिसाव का बढ़ना स्वाभाविक है. कुछ लोगों को इस से ज्यादा तकलीफ होती है. यदि घुटनों के बढ़ते नुकसान को रोकना है तो वजन पर नियंत्रण रखना सब से जरूरी है. लिहाजा, स्वस्थ खानपान रखें और यथासंभव व्यायाम करें. प्रतिदिन कम से कम 30-40 मिनट सैर करें, हलकेफुलके व्यायाम करें और समयसमय पर फिजियोथेरैपिस्ट से मिलते रहें. लेकिन जब टहलना भी मुश्किल हो जाए तो घुटने के प्रत्यारोपण पर विचार करें.

सवाल-

मेरी उम्र 45 साल है. हाल ही में रजोनिवृत्ति हुई है. मुझे अपनी हड्डियों की सेहत को ले कर चिंता है. मुझे औस्टियोपोरोसिस से बचने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब-

रजोनिवृत्ति के बाद ही नहीं, हड्डियों की सेहत का पूरी जिंदगी खयाल रखना चाहिए. 35 साल की उम्र के बाद हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. रजोनिवृत्ति महिलाओं में यह प्रक्रिया ज्यादा तेजी से होती है. ढलती उम्र में यह फ्रैक्चर का कारण बनता है. लिहाजा पर्याप्त कैल्सियम युक्त भोजन करें. हर 3-4 साल के अंतराल पर अपनी हड्डियों की ताकत परखने के लिए बोन डैंसिटी जांच कराती रहें. जरूरत पड़ने पर कैल्यिम और विटामिन डी सप्लिमैंट लेने के बारे में भी डाक्टर से सलाह लें.

– डा. राजीव के. शर्मा इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल, नई दिल्ली

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मेनोपौज का रिस्क कम करता है टमाटर, ऐसे करें प्रयोग

मेनोपौज आज अधिकतर महिलाओं के लिए एक बड़ी परेशानी बनी हुई है. एक उम्र में आ कर देखा जाता है कि एक बड़ी संख्या में महिलाओं को इस परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. एक हाल की स्टडी में ये बात सामने आई है कि टमाटर का प्रयोग मेनोपौज के लक्षणों को कम करने में काफी मदद करता है.

शोध में पाया गया है कि आठ हफ्तों तक दिन में दो बार 200 मिलिलीटर टमाटर का जूस मेनोपौज के लक्षणों को कम करने में काफी मददगार होता है. इसके अलावा स्ट्रेस और कौलेस्ट्रौल की परेशानी में भी ये बेहद लाभकारी है.

टोक्यो मंडिकल यूनिवर्सिटी में 93 महिलाओं पर इस शोध को किया गया. इसमें महिलाओं के हृदय की गति जैसी कुछ चीजों की जांच की गई. नतीजों में ये बात सामने आई कि स्ट्रेस, उलझन, हौट फ्लैश जैसी परेशानियां काफी कम हुई हैं. इसके अलावा आराम करने के दौरान महिलाओं की अधिक कैलोरी बर्न होती है.

एक अन्य शोध में ये बात सामने आई कि मेनोपौज के बाद महिलाओं के लिए टमाटर का अधिक सेवन ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क को भी कम करता है. टमाटर में विटामिन सी, लाइकोपीन, विटामिन और पोटैशियम जैसे जरूरी तत्व पाए जाते हैं. टमाटर में कौलेस्ट्रोल घटाने की क्षमता होती है. वजन घटाने में भी टमाटर का अहम योगदान होता है.

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