Mother’s Day Special: मां-एक मां के रूप में क्या था मालिनी का फैसला?

‘‘तुम्हारी टैस्ट रिपोर्ट ठीक नहीं है, मालिनी. लगता है, अबोर्शन करवाना ही पड़ेगा.’’

‘‘क्या कह रही हो, डा. अणिमा. मां हो कर क्या मैं हत्यारिन बनूं?’’

‘‘इस में हत्या जैसी कोई बात नहीं है. तुम्हारे रोग का इलाज जरूरी है. अच्छी तरह सोच लो.’’

‘‘सोच लिया है, मैं ऐसी कोई दवा नहीं लूंगी जिस से गर्भ में पल रहे शिशु के विकास में बाधा आए.’’

‘‘तुम समझती क्यों नहीं, मालिनी,’’ बहुत देर से मौन बैठे हर्ष भी अब उत्तेजित हो गए थे.

‘‘सब समझती हूं मैं. मुझे कैंसर है. इस रोग के लिए दी जाने वाली दवाएं व रेडियोथेरैपी गर्भस्थ शिशु के लिए सुरक्षित नहीं हैं. लेकिन आप लोग अपना निर्णय मुझ पर मत थोपिए.’’

घर आ कर मालिनी ने कहा, ‘‘कल मम्मीपापा आ रहे हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं ऊपर के दोनों कमरों की सफाई करवा देता हूं,’’ हर्ष बोले.

अगले दिन ठीक समय पर मालिनी के मातापिता आ गए. बेटी को स्वस्थ, प्रसन्न देख कर उन्हें अच्छा लगा. मालिनी और हर्ष ने कुछ नहीं बताया था किंतु 2 दिन बाद डा. अणिमा से उन की मुलाकात हो गई. मालिनी के कैंसर की जानकारी उन्हें डाक्टर से मिली तो उन की आंखों के आगे तो मानो अंधेरा ही छा गया.

‘‘कैसी हो, मां?’’

‘‘ठीक हूं. थोड़ी देर मेरे पास बैठो, कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहिए मां.’’

‘‘देखो बेटी, मैं ने हमेशा तुम्हारा सुख चाहा है. हर्ष से तुम ने प्रेम विवाह किया, हम बाधक नहीं बने. अब समय है कि तुम हमारा मान रखो. सबकुछ जान कर हम तटस्थ तो नहीं रह सकते. डाक्टर कहेंगी तो हम इलाज के लिए तुम्हें अमेरिका ले चलेंगे.’’

‘‘आप की चिंता, आप की भावना मैं समझती हूं मां. दुनिया की कोई भी मां अपनी संतान के हित के लिए किसी भी हद तक जा सकती है,’’ अपने शब्दों पर जोर देते हुए मालिनी ने कहा, ‘‘पर मेरे मन की बात कोई समझना ही नहीं चाहता. मैं खुद भी मरना नहीं, जीना चाहती हूं मां,’’ इतना कहने के साथ ही मालिनी की आंखें बरसने लगी थीं. गर्भ में पल रहे शिशु का एहसास पा कर मैं निहाल हूं. मेरे बच्चे को संसार में आने दीजिए. वैसे भी एक दिन मरना तो है ही, फिर इतना बवाल क्यों?’’

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‘‘डा. अणिमा तुम्हारी दोस्त हैं, उन की सलाह तो तुम मानोगी ही.’’

‘‘नहीं मां, इस मामले में मैं अपनी आत्मा की आवाज सुनूंगी और उसे ही मानूंगी.’’

खुले माहौल में पलीबढ़ी मालिनी के पास स्वयं के अनेक तर्क थे. माता पिता उस का मन नहीं बदल पाए. वे हताशनिराश लौट गए. उन के जाने के बाद मालिनी की स्थिति देख कर डा. अणिमा ने एक नर्स का प्रबंध कर दिया था, परंतु हर्ष इतने से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने लखनऊ से अपनी मां को बुला लिया. सास ने मालिनी के रूप में अपनी बहू को सदैव हंसतेखिलखिलाते ही देखा था, इस बार वह बहुत उदास और कमजोर दिखी.

‘‘डाक्टर ने मालिनी के पेट में कैंसर बताया है,’’ हर्ष ने मां को बताया.

‘‘यह क्या कह रहे हो?’’

‘‘जो है, वही बता रहा हूं और

डा. अणिमा इलाज भी कर रही हैं. पर मालिनी इलाज करवाना नहीं चाहती. इलाहाबाद से उस के मातापिता आए थे. उन्होंने समझाया पर थकहार कर लौट गए.’’

‘‘समझ गई, बहू के शरीर में रोग का कहर है लेकिन मन में मां बनने की चाहत की. बेटा, तू चिंता मत कर, मैं समझाऊंगी उसे. मेरी बात वह नहीं टालेगी.’’

सास ने भी मालिनी को सब तरह से समझाया. मातापिता का हवाला दे कर उस का मन बदलना चाहा, पर वह नहीं मानी. छोटे से परिवार में शीतयुद्ध का सा वातावरण बन गया था. बहू के बिना घर की कल्पना भी उन्हें भयावह लगती, पर डा. अणिमा ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी.

डा. अणिमा बारबार उसे समझातीं, ‘‘मालिनी, जिंदगी केवल भावनाओं से नहीं चलती. जीवन तो कठोर धरातल पर चलने का नाम है. मुझे देखो, कैसेकैसे फैसले लेने पड़ते हैं. संतान तो इलाज के बाद भी हो सकती है. केवल तुम्हारी हां चाहिए, बाकी सब मैं कर लूंगी.’’

‘‘तुम चिंता मत करो, अणिमा. वैसे तुम्हारे इलाज से मैं ठीक हो ही जाऊंगी, इस की भी क्या गारंटी है?’’

‘‘गारंटी तो नहीं, लेकिन उम्मीद ठीक होने की ही है, क्योंकि रोग अभी शुरुआती दौर में है. क्लिनिक से लौट कर तुम से बात करूंगी, इस बीच तुम विचार कर लेना.’’

‘‘क्या कह रही थी डाक्टर?’’ परेशान हो कर हर्ष ने पूछा.

‘‘गर्भ में पल रहा शिशु बेटा होगा,’’ मजाक करते हुए मालिनी ने कहा, ‘‘हर्ष, चिंता की कोई बात नहीं है. तुम निश्ंिचत हो कर औफिस जाओ.’’

हर्ष औफिस चले गए. कमरे के एकांत में पलंग पर लेटी मालिनी चिंतन में खो गई. शादी के 10 वर्ष बाद संतान सुख की उम्मीद जागी तो उसी के साथ कैंसर का उपहार भी मिला. 40 वसंत देख चुकी हूं पर यह नन्हा तो अभी संसार में आया भी नहीं, दुनिया देखे बिना ही इसे कैसे लौटा दूं? स्वयं ही प्रश्नोत्तर करने लगी थी. शिशु की हत्या? यह नहीं हो सकेगा मुझ से. और इसी के साथ भावी सुख के सपने देखने लगी थी मालिनी.

डा. अणिमा की पहल पर कैंसर विशेषज्ञ डा. शुभा स्वामी से भी परामर्श लिया गया. परंतु मालिनी को इलाज के लिए तैयार नहीं किया जा सका. ठीक समय पर उस ने स्वस्थ सुंदर बालक को जन्म दिया.

गुलाबी रंगत में रंगे बालक को देख मानसिक खुशी में खोई मालिनी शारीरिक वेदना भूल गई. यह खुशी उस की कठोर तपस्या का परिणाम थी. कितना संघर्ष किया था उस ने इसे पाने के लिए.

शिशु का हंसना, रोना उस की छोटी सी किलकारी मालिनी की सांसों की डोरी दूर तक खींच ले जाती. समय ने उसे जो दिया था उस के लिए एहसानमंद थी वह.

धीरेधीरे सुहास हाथपैर हिलाना सीख रहा था. संसार में आंख खोलते ही शिशु मां की पहचान कर लेता है. पुत्र के जन्म के बाद मालिनी के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा था. हर्ष भी अब उतने चिंतित नहीं थे. इलाज की तैयारी तो थी ही.

‘‘मालिनी, अगले माह औफिस से 1 साल का अवकाश ले रहा हूं. तुम्हारे इलाज में जरा भी ढील नहीं होनी चाहिए. सुहास को करुणा दीदी अपने साथ ले जाएंगी.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता,’’ मालिनी बोली, ‘‘मेरे जिगर का टुकड़ा है मेरा बच्चा, मैं इसे किसी को नहीं सौंप सकती. जब तक शरीर में जान है, यह मेरे पास ही रहेगा.’’

मालिनी का इलाज शुरू हो गया था, परंतु मालिनी के पेट का कैंसर अब तेजी से फैलने लगा था. दिनप्रतिदिन क्षीण होती मालिनी की काया, उस पर बालक की चिंता, रोग की पीड़ा से 2 हिस्सों में बंट गया था उस का अशक्त जीवन.

ऐसे अवसरों पर पास बैठे हर्ष व्यथित हो प्रश्न कर उठते, ‘‘इस घातक शत्रु को तुम ने बढ़ने क्यों दिया मालिनी?’’

बिना उत्तर दिए सुहास की ओर देख कर वह मुसकरा भर देती. मां बनने की गरिमा से उस का चेहरा चमक उठता. फिर एक दिन वही हुआ जिस की आशंका पिछले वर्ष से चली आ रही थी. रात के घने अंधेरे में सहसा सुहास के रुदन से घबराए हुए हर्ष उठे. हाथपैर पटक कर वह मां को जगाने का प्रयत्न कर रहा था, पर मां तो सब ओर से बेखबर चिरनिद्रा में विलीन हो चुकी थी. उस की बेजान देह और स्थिर पुतलियों से हर्ष स्थिति समझ गए. डाक्टर को आने के लिए फोन कर वे सुहास को संभालने में व्यस्त हो गए. जीवनभर का साथ निभाने का वादा करने वाली मालिनी सदा के लिए उन का साथ छोड़ कर जा चुकी थी.

समय अपनी गति से बढ़ता गया. मालिनी की कल्पनाएं साकार रूप लेने लगी थीं. सुहास डाक्टर बन गया. पिता के मुख से अपने जन्म की कहानी और मां के अभूतपूर्व बलिदान की गाथा सुन कर वह अभिभूत था. मां जैसा संसार में कोई नहीं, इस तथ्य को सुहास ने बचपन में ही दिल में उतार लिया था. दीवार पर लगे चित्र में मां की ममतामयी आंखों से झरती करुणा उसे मानव सेवा की प्रेरणा देती थी.

सुहास का विवाह हुआ. उस की पत्नी देविका भी डाक्टर थी. मां के नाम से क्लिनिक खोलने का स्वप्न साकार होने का समय अब आ गया था. पत्नी के सहयोग से सुहास ने ‘मालिनी स्वास्थ्य केंद्र’ की स्थापना की जहां कैंसर की जानलेवा बीमारी से जूझते रोगियों का इलाज किया जाता.

कैंसर क्लिनिक के छोटे से चौक में मालिनी की विशाल प्रतिमा पर नजर पड़ते ही हर्ष यादों में खो जाते. इस प्रतिमा को उन्होंने कितनी ही बार देखा है. फिर आज यह सब क्यों? बेचैन मन 25 वर्ष पुराने पन्ने पलटने लगा था. कितनी जिजीविषा थी मालिनी में. उस का व्यक्तित्व घरपरिवार, औफिस सभी पर छाया था. विवाह के 10 वर्ष 10 पलों की तरह बीत गए थे.

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डा. देविका को चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य करते हुए दुखद और सुखद अनेक अनुभव हो रहे थे. कैंसर की आशंका से बिलखती युवती को जब उस ने पेट में गांठ न हो कर शिशु होने की सूचना दी तो प्रसन्नता से कैसे खिल उठा था उस का मुरझाया चेहरा.

पिछले 2 दिन से डा. अणिमा लखनऊ से आई युवती की टैस्ट रिपोर्ट्स देख रही थीं, ‘‘देविका, इधर देखो शोभा की हाल की सोनोग्राफी रिपोर्ट, यह केस तो हूबहू मालिनी जैसा ही है. संतान और कैंसर साथसाथ पल रहे हैं इस के गर्भ में.’’

‘‘कैसी हो, बहन?’’

‘‘अच्छी हूं डाक्टर.’’

‘‘तुम्हारा इलाज लंबा चलेगा. 1 सप्ताह रुकना होगा तुम्हें.’’

‘‘नहीं डाक्टर, हम लोग कल ही लखनऊ लौट जाएंगे.’’

‘‘तुम्हारे पति से बात हो गई है, उन्हें सब समझा दिया है. बिना इलाज के मैं नहीं जाने दूंगी तुम्हें.’’

‘‘मेरा इलाज नहीं हो सकता, डाक्टर. इस इलाज में कई खतरे हैं. संतान की रक्षा का सवाल मेरे लिए अहम है. अपने प्राणों की रक्षा के लिए इस की सांसें कैसे समाप्त कर सकती हूं, डाक्टर?’’

समय कैसे स्वयं को दुहरा रहा है. कुछ ऐसा ही हठ तो मालिनी का भी था.

डा. अणिमा को लगा 25 वर्ष पुरानी मालिनी खड़ी है उस के सामने. ममता, संवेदना के तानेबाने से बने मां के अस्तित्व को हरा सके ऐसी शक्ति कहां से लाए वह. इस युवती का भी मन वह नहीं बदल पाएगी, उसे ऐसा लगने लगा. कहीं पढ़ा था मां पिता से भी हजार गुना महान होती है. अपने प्रोफेशन में पगपग पर यही अनुभव हो रहा था उसे.

शोभा पति के साथ लौट गई. मालिनी की विशाल प्रतिमा की ओर देखते हुए

डा. अणिमा सोच रही थीं कि नारी के अंतर की संवेदना कितनी गहन है. मानवता की वास्तविक पूंजी यह ममता ही तो है. मां तो बस मां है. मालिनी की प्रतिमा को नमन कर वह मुसकरा दी.

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Mother’s Day Special: मां बनने के बाद और भी ज्यादा स्टाइलिश हो गई हैं टीवी की ‘कोमोलिका’

टीवी से लेकर बौलीवुड की फिल्मों में काम करने वाली एक्ट्रेस आमना शरीफ ने बीते दिनों सीरियल ‘कसौटी जिदंगी के 2’ में ‘नई कोमोलिका’ का रोल अदा करती नजर आईं थीं. हालांकि इस रोल के जरिए उन्होंने 6 साल बाद टीवी की दुनिया में कमबैक किया था, जिसके कारण उन्होंने बेहद सुर्खियां बटोरी थीं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्टाइल और फिटनेस के कारण सुर्खियों में रहने वाली एक्ट्रेस आमना शरीफ एक बच्चे की मां भी हैं. हालांकि उनके फैशन और फिटनेस को देखकर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता की 38 साल की हैं और 5 साल के बच्चे की मां हैं. इसीलिए आज हम आपको आमना शरीफ के कुछ फैशन टिप्स के बारे में बताएंगे, जिसे ट्राय करके आप भी अपने आप को स्टाइलिश बना सकती हैं.

1. इंडियन लुक्स में दिखाती हैं जलवा

फैशनेबल आमना शरीफ अक्सर इंडियन लुक में नजर आती हैं, जिनमें लहंगा सबसे ज्यादा ट्राय करती दिखती हैं. वाइट कलर के इस औफशोल्डर शिमरी लहंगे में आमना बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

 

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अनारकली लुक में लगती हैं खूबसूरत

 

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लहंगे के अलावा एक्ट्रेस आमना शरीफ के पास सूट के भी बेहद खूबसूरत कलेक्शन हैं, जिसे वह इन दिनों रमजान के महीने में ट्राय करती नजर आ रही हैं. हाल ही में रोजा खोलने के दौरान आमना पिंक अनारकली सूट में नजर आईं थीं, जो फैंस को काफी पसंद आया था.

चिकन कढ़ाई करती हैं पसंद

 

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एक्ट्रेस आमना कई बार चिकन कढ़ाई के पैटर्न वाले सूट पहने नजर आईं हैं. वहीं हाल ही में शरारा पैटर्न वाला आमना का ये चिकन सूट फैंस को बेहद पसंद आ रहा है.

शिमरी साड़ी में कहर ढांती दिखीं आमना

 

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शिमरी साड़ी का जलवा ट्रैंड में हैं. वहीं आमना शरीफ भी शिमरी साड़ी में बेहद खूबसूरत लुक कैरी करते हुए नजर आईं, जिससे नजरें हटा पाना मुश्किल है.

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वेस्टर्न लुक में भी लगती हैं कमाल

 

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इंडियन ही नहीं वेस्टर्न लुक की बात करें तो एक्ट्रेस आमना शरीफ का हर लुक लाजवाब होता है, जिसे कौलेज गर्ल्स से लेकर माएं तक हर कोई ट्राय कर सकती हैं.

Mother’s Day Special: रिश्तों की कसौटी- भाग 3

 तब तक वेटर चाय रख गया. ‘‘मेरी मम्मी आप की ही जबान से कुछ जानना चाहती हैं,’’ गंभीरता से सुरभी ने कहा.

सुन कर अमित साहनी की नजरें झुक गईं. ‘‘आप मेरे साथ कब चल रहे हैं मां से मिलने?’’ बिना कुछ सोचे सुरभी ने अगला प्रश्न किया.

‘‘अगर मैं तुम्हारे साथ चलने से मना कर दूं तो?’’ अमित साहनी ने सख्ती से पूछा. ‘‘मैं इस से ज्यादा आप से उम्मीद भी नहीं करती, मगर इनसानियत के नाते ही सही, अगर आप उन का जरा सा भी सम्मान करते हैं तो उन से जरूर मिलिएगा. वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं,’’ कहतेकहते नफरत और दुख से सुरभी की आंखें भर आईं.

‘‘क्या हुआ मालती को?’’ चाय का कप मेज पर रख कर चौंकते हुए अमित ने पूछा. ‘‘उन्हें कैंसर है और पता नहीं अब कितने दिन की हैं…’’ सुरभी भरे गले से बोल गई.

‘‘ओह, सौरी बेटा, तुम जाओ, मैं जल्दी ही मुंबई आऊंगा,’’ अमित साहनी धीरे से बोले और सुरभी से उस के घर का पता ले कर चले गए. दोपहर को सुरभी मां के पास पहुंच गई.

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‘‘कैसी रही तेरी फिल्म?’’ मां ने पूछा. ‘‘अभी पूरी नहीं हुई मम्मी, पर वहां अच्छा लगा,’’ कह कर सुरभी मां के गले लग गई.

‘‘दीदी, कल रात मांजी खुद उठ कर अपने स्टोर रूम में गई थीं. लग रहा था जैसे कुछ ढूंढ़ रही हों. काफी परेशान लग रही थीं,’’ कम्मो ने सीढि़यां उतरते हुए कहा. थोड़ी देर बाद मां से आंख बचा कर उस ने उन की डायरी स्टोर रूम में ही रख दी.

उसी रात सुरभी को अमित साहनी का फोन आया कि वह कल साढ़े 11 बजे की फ्लाइट से मुंबई आ रहे हैं. सुरभी को मां की डायरी का हर वह पन्ना याद आ रहा था जिस में लिखा था कि काश, मृत्यु से पहले एक बार अमित उस के सवालों के जवाब दे जाता. कल का दिन मां की जिंदगी का अहम दिन बनने जा रहा था. यही सोचते हुए सुरभी की आंख लग गई. अगले दिन उस ने नर्स से दवा आदि के बारे में समझ कर उसे भी रात को आने को बोल दिया.

करीब 1 बजे अमित साहनी उन के घर पहुंचे. सुरभी ने हाथ जोड़ कर उन का अभिवादन किया तो उन्होंने ढेरोें आशीर्वाद दे डाले. ‘‘आप यहीं बैठिए, मैं मां को बता कर आती हूं. एक विनती है, हमारी मुलाकात का मां को पता न चले. शायद बेटी के आगे वे कमजोर पड़ जाएं,’’ सुरभी ने कहा और ऊपर चली गई.

‘‘मम्मी, आप से कोई मिलने आया है,’’ उस ने अनजान बनते हुए कहा. ‘‘कौन है?’’ मां ने सूप का बाउल कम्मो को पकड़ाते हुए पूछा.

‘‘कोई मिस्टर अमित साहनी नाम के सज्जन हैं. कह रहे हैं, दिल्ली से आए हैं,’’ सुरभी वैसे ही अनजान बनी रही. ‘‘क…क…कौन आया है?’’ मां के शब्दों में एक शक्ति सी आ गई थी.

‘‘ऐसा करती हूं आप यहीं रहिए. उन्हें ही ऊपर बुला लेते हैं,’’ मां के चेहरे पर आए भाव सुरभी से देखे नहीं जा रहे थे. वह जल्दी से कह कर बाहर आ गई.

मालती कुछ भी सोचने की हालत में नहीं थीं. यह वह मुलाकात थी जिस के बारे में उन्होंने हर दिन सोचा था. थोड़ी देर में सुरभी के पीछेपीछे अमित साहनी कमरे में दाखिल हुए, मालती के पसंदीदा पीले गुलाबों के बुके के साथ. मालती का पूरा अस्तित्व कांप रहा था. फिर भी उन्होंने अमित का अभिवादन किया.

सुरभी इस समय की मां की मानसिक अवस्था को अच्छी तरह समझ रही थी. वह आज मां को खुल कर बात करने का मौका देना चाहती थी, इसलिए डा. आशुतोष के पास उन की कुछ रिपोर्ट्स लेने के बहाने वह घर से बाहर चली गई. ‘‘कितने बेशर्म हो तुम जो इस तरह से मेरे सामने आ गए?’’ न चाहते हुए भी मालती क्रोध से चीख उठीं.

‘‘कैसी हो, मालती?’’ उस की बातों पर ध्यान न देते हुए अमित ने पूछा और पास के सोफे पर बैठ गए. ‘‘अभी तक जिंदा हूं,’’ मालती का क्रोध उफान पर था. उन का मन तो कर रहा था कि जा कर अमित का मुंह नोच लें.

इस के विपरीत अमित शांत बैठे थे. शायद वे भी चाहते थे कि मालती के अंदर का भरा क्रोध आज पूरी तरह से निकल जाए. ‘‘होटल ताज में ईश्वरनाथजी से मुलाकात हुई थी. उन्हीं से तुम्हारे बारे में पता चला. तभी से मन बारबार तुम से मिलने को कर रहा था,’’ अमित ने सुरभी के सिखाए शब्द दोहरा दिए. परंतु यह स्वयं उस के दिल की बात भी थी.

‘‘मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया, अमित?’’ अपलक अमित को देख रही मालती ने उन की बातों को अनसुना कर अपनी बात रखी. इतने में कम्मो चाय और नाश्ता रख गई.

‘‘तुम्हें याद है वह दोपहरी जब मैं ने एक तसवीर के विषय में तुम से पूछा था और तुम ने उन्हें अपनी मां बताया था?’’ अमित ने मालती को पुरानी बातें याद दिलाईं.

मालती यों ही खामोश बैठी रहीं तो अमित ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘उस तसवीर को मैं तुम सब से छिपा कर एक शक दूर करने के लिए अपने साथ दिल्ली ले गया था. मेरा शक सही निकला था. यह वृंदा यानी तुम्हारी मां वही औरत थी जो दिल्ली में अपने पार्टनर के साथ एक मशहूर ब्यूटीपार्लर और मसाज सेंटर चलाती थी. इस से पहले वह यहीं मुंबई में मौडलिंग करती थी. उस का नया नाम वैंडी था.’’ इस के बाद अमित ने अपनी चाय बनाई और मालती की भी.

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उस ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘उस मसाज सेंटर की आड़ में ड्रग्स की बिक्री, वेश्यावृत्ति जैसे धंधे होते थे और समाज के उच्च तबके के लोग वहां के ग्राहक थे.’’ ‘‘ओह, तो यह बात थी. पर इस में मेरी क्या गलती थी?’’ रोते हुए मालती ने पूछा.

‘‘जब मैं ने एम.बी.ए. में नयानया दाखिला लिया था तब मेरे दोस्तों में से कुछ लड़के भी वहां के ग्राहक थे. एक बार हम दोस्तों ने दक्षिण भारत घूमने का 7 दिन का कार्यक्रम बनाया और हम सभी इस बात से बहुत रोमांचित थे कि उस मसाज सेंटर से हम लोगों ने जो 2 टौप की काल गर्ल्स बुक कराई थीं उन में से एक वैंडी भी थी जिसे हाई प्रोफाइल ग्राहकों के बीच ‘पुरानी शराब’ कह कर बुलाया जाता था. उस की उम्र उस के व्यापार के आड़े नहीं आई थी,’’ अमित ने अपनी बात जारी रखी. उसे अब मालती के सवाल भी सुनाई नहीं दे रहे थे. चाय का कप मेज पर रखते हुए अमित ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘मेरी परवरिश ने मेरे कदम जरूर बहका दिए थे मालती, पर मैं इतना भी नीचे नहीं गिरा था कि जिस स्त्री के साथ 7 दिन बिताए थे, उसी की मासूम और अनजान बेटी को पत्नी बना कर उस के साथ जिंदगी बिताता? मेरा विश्वास करो मालती, यह घटना तुम्हारे मिलने से पहले की है. मैं तुम से बहुत प्यार करता था. मुझे अपने परिवार की बदनामी का भी डर था, इसलिए तुम से बिना कुछ कहेसुने दूर हो गया,’’ कह कर अमित ने अपना सिर सोफे पर टिका दिया.

आज बरसों का बोझ उन के मन से हट गया था. मालती भी अब लेट गई थीं. वे अभी भी खामोश थीं. थोड़ी देर बाद अमित चले गए. उन के जाने के बाद मालती बहुत देर तक रोती रहीं.

रात के खाने पर जब सुरभी ने अमित के बारे में पूछा तो उन्होंने उसे पुराना पारिवारिक मित्र बताया. लगभग 3 महीने बाद मालती चल बसीं. परंतु इतने समय उन के अंदर की खुशी को सभी ने महसूस किया था. उन के मृत चेहरे पर भी सुरभी ने गहरी संतुष्टि भरी मुसकान देखी थी. मां की तेरहवीं वाले दिन अचानक सुरभी को उस डायरी की याद आई. उस में लिखा था : मुझे क्षमा कर देना अमित, तुम ने अपने साथसाथ मेरे परिवार की इज्जत भी रख ली थी. मैं पूर्ण रूप से तृप्त हूं. मेरी सारी प्यास बुझ गई.

पढ़ते ही सुरभी ने डायरी सीने से लगा ली. उस में उसे मां की गरमाहट महसूस हुई थी. आज उसे स्वयं पर गर्व था क्योंकि उस ने सही माने में मां के प्रति अपनी दोस्ती का फर्ज जो अदा किया था.

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Mother’s Day Special: रिश्तों की कसौटी- भाग 1

‘‘अंकल, मम्मी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई क्या?’’ मां के कमरे से डाक्टर को निकलते देख सुरभी ने पूछा. ‘‘पापा से जल्दी ही लौट आने को कहो. मालतीजी को इस समय तुम सभी का साथ चाहिए,’’ डा. आशुतोष ने सुरभी की बातों को अनसुना करते हुए कहा.

डा. आशुतोष के जाने के बाद सुरभी थकीहारी सी लौन में पड़ी कुरसी पर बैठ गई. 2 साल पहले ही पता चला था कि मां को कैंसर है. डाक्टर ने एक तरह से उन के जीने की अवधि तय कर दी थी. पापा ने भी उन की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मां को ले कर 3-4 बार अमेरिका भी हो आए थे और अब वहीं के डाक्टर के निर्देशानुसार मुंबई के जानेमाने कैंसर विशेषज्ञ डा. आशुतोष की देखरेख में उन का इलाज चल रहा था. अब तो मां ने कालेज जाना भी बंद कर दिया था.

‘‘दीदी, चाय,’’ कम्मो की आवाज से सुरभी अपने खयालों से वापस लौटी. ‘‘मम्मी के कमरे में चाय ले चलो. मैं वहीं आ रही हूं,’’ उस ने जवाब दिया और फिर आंखें मूंद लीं.

सुरभी इस समय एक अजीब सी परेशानी में फंस कर गहरे दुख में घिरी हुई थी. वह अपने पति शिवम को जरमनी के लिए विदा कर अपने सासससुर की आज्ञा ले कर मां के पास कुछ दिनों के लिए रहने आई थी. 2 दिन पहले स्टोर रूम की सफाई करवाते समय मां की एक पुरानी डायरी सुरभी के हाथ लगी थी, जिस के पन्नों ने उसे मां के दर्द से परिचित कराया.

‘‘ऊपर आ जाओ, दीदी,’’ कम्मो की आवाज ने उसे ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया. सुरभी ने मां के साथ चाय पी और हर बार की तरह उन के साथ ढेरों बातें कीं. इस बार सुरभी के अंदर की उथलपुथल को मालती नहीं जान पाई थीं.

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सुरभी चाय पीतेपीते मां के चेहरे को ध्यान से देख रही थी. उस निश्छल हंसी के पीछे वह दुख, जिसे सुरभी ने हमेशा ही मां की बीमारी का हिस्सा समझा था, उस का राज तो उसे 2 दिन पहले ही पता चला था. थोड़ी देर बाद नर्स ने आ कर मां को इंजेक्शन लगाया और आराम करने को कहा तो सुरभी भी नीचे अपने कमरे में आ गई.

रहरह कर सुरभी का मन उसे कोस रहा था. कितना गर्व था उसे अपने व मातापिता के रिश्तों पर, जहां कुछ भी गोपनीय न था. सुरभी के बचपन से ले कर आज तक उस की सभी परेशानियों का हल उस की मां ने ही किया था. चाहे वह परीक्षाओं में पेपर की तैयारी करने की हो या किसी लड़के की दोस्ती की, सभी विषयों पर मालती ने एक अच्छे मित्र की तरह उस का मार्गदर्शन किया और जीवन को अपनी तरह से जीने की पूरी आजादी दी. उस की मित्रमंडली को उन मांबेटी के इस मैत्रिक रिश्ते से ईर्ष्या होती थी.

अपनी बीमारी का पता चलते ही मालती को सुरभी की शादी की जल्दी पड़ गई. परंतु उन्हें इस बात के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. परेश के व्यापारिक मित्र व जानेमाने उद्योगपति ईश्वरनाथ के बेटे शिवम का रिश्ता जब सुरभी के लिए आया तो मालती ने चट मंगनी पट ब्याह कर दिया. सुरभी ने शादी के बाद अपना जर्नलिज्म का कोर्स पूरा किया. ‘‘दीदी, मांजी खाने पर आप का इंतजार कर रही हैं,’’ कम्मो ने कमरे के अंदर झांकते हुए कहा.

खाना खाते समय भी सुरभी का मन मां से बारबार खुल कर बातें करने को कर रहा था, मगर वह चुप ही रही. मां को दवा दे कर सुरभी अपने कमरे में चली आई. ‘कितनी गलत थी मैं. कितना नाज था मुझे अपनी और मां की दोस्ती पर मगर दोस्ती तो हमेशा मां ने ही निभाई, मैं ने आज तक उन के लिए क्या किया? लेकिन इस में शायद थोड़ाबहुत कुसूर हमारी संस्कृति का भी है, जिस ने नवीनता की चादर ओढ़ते हुए समाज को इतनी आजादी तो दे दी थी कि मां चाहे तो अपने बच्चों की राजदार बन सकती है. मगर संतान हमेशा संतान ही रहेगी. उन्हें मातापिता के अतीत में झांकने का कोई हक नहीं है,’ आज सुरभी अपनेआप से ही सबकुछ कहसुन रही थी.

हमारी संस्कृति क्या किसी विवाहिता को यह इजाजत देती है कि वह अपनी पुरानी गोपनीय बातें या प्रेमप्रसंग की चर्चा अपने पति या बच्चों से करे. यदि ऐसा हुआ तो तुरंत ही उसे चरित्रहीन करार दे दिया जाएगा. हां, यह बात अलग है कि वह अपने पति के अतीत को जान कर भी चुप रह सकती है और बच्चों के बिगड़ते चालचलन को भी सब से छिपा कर रख सकती है. सुरभी का हृदय आज तर्क पर तर्क दे रहा था और उस का दिमाग खामोशी से सुन रहा था. सुरभी सोचसोच कर जब बहुत परेशान हो गई तो उस ने कमरे की लाइट बंद कर दी.

मां की वह डायरी पढ़ कर सुरभी तड़प कर रह गई थी. यह सोच कर कि जिन्होंने अपनी सारी उम्र इस घर को, उस के जीवन को सजानेसंवारने में लगा दी, जो हमेशा एक अच्छी पत्नी, मां और उस से भी ऊपर एक मित्र बन कर उस के साथ रहीं, उस स्त्री के मन का एक कोना आज भी गहरे दुख और अपमान की आग में झुलस रहा था. उस डायरी से ही सुरभी को पता चला कि उस की मां यानी मालती की एम.एससी. करते ही सगाई हो गई थी. मालती के पिता ने एक उद्योगपति घराने में बेटी का रिश्ता पक्का किया था. लड़के का नाम अमित साहनी था. ऊंची कद- काठी, गोरा रंग, रोबदार व्यक्तित्व का मालिक था अमित. मालती पहली ही नजर में अमित को दिल दे बैठी थीं. शादी अगले साल होनी थी. इसलिए मालती ने पीएच.डी. करने की सोची तो अमित ने भी हामी भर दी.

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अमित का परिवार दिल्ली में था. फिर भी वह हर सप्ताह मालती से मिलने आगरा चला आता. मगर ठहरता गेस्ट हाउस में ही था. उन की इन मुलाकातों में परिवार की रजामंदी भी शामिल थी, इसलिए उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. पर मालती ने इस प्यार को एक सीमा रेखा में बांधे रखा, जिसे अमित ने भी कभी तोड़ने की कोशिश नहीं की. मालती की परवरिश उन के पिता, बूआ व दादाजी ने की थी. उन की मां तो 2 साल की उम्र में ही उन्हें छोड़ कर मुंबई चली गई थीं. उस के बाद किसी ने मां की खोजखबर नहीं ली. मालती को भी मां के बारे में कुछ भी पूछने की इजाजत नहीं थी. बूआजी के प्यार ने उन्हें कभी मां की याद नहीं आने दी.

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Mother’s Day Special: बच्चों को खिलाएं फ्रूट आइसक्रीम

समर सीजन में अगर आप अपने बच्चों को हेल्दी और टेस्टी रेसिपी ट्राय करके खिलाना चाहती हैं तो फ्रूट आइसक्रीम आप ट्राय कर सकती है. ये आसानी से आप बना सकती हैं.

सामग्री

– 1 आम पका

– 2 कीवी

– 4 बड़े चम्मच अनार के दाने

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– 1 सेब

– 1 केला

– 150 ग्राम वैनिला आइसक्रीम

– थोड़े से बारीक कटे बादाम.

विधि

सभी फलों को छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें. एक बाउल में वैनिला आइसक्रीम को अच्छी तरह फेंट कर उस में कटे फल मिला दें. सर्विंग बाउल में तैयार फ्रूटी आइसक्रीम डालें और बादाम से गार्निश कर सर्व करें.

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Mother’s Day Special: एक आसान मातृत्व के लिए कुछ सुझाव

एक औरत की ज़िन्दगी में माँ बनने का सुख हर सुख से परे है और वह एक अनूठा अनुभव है क्योंकि मातृत्व का सुख ,उसका एहसास सब रिश्तो से अलग होता है. इसमें एक औरत की खुद अपनी परछाई से मुलाकात होती है, जो उसे अपनी औलाद के रूप में मिलती है. पहली बार मां बनने का अहसास बहुत ही अलग होता है.

शिशु के आने से एक औरत की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. वह अपना सारा ध्यान व समय अपने शिशु को समर्पित कर देती है. माँ और शिशु का रिश्ता बड़ा ही अनमोल होता है. माँ ही शिशु के लालन -पोषण का ध्यान रखती है , उसकी हर छोटी -बड़ी जरूरत का ख्याल रखती है.

ऐसे में माँ को भी अपना ध्यान रखना चाहिए. आजकल ऐसे बहुत से प्रोडक्ट्स उपलब्ध है जो की एक आसान मातृत्व में सहायक होते हैं. नयी माताएं इन्हे इस्तेमाल करके अपनी रोज़मर्रा की दिनचार्य में शामिल कर सकती है.

नीचे कुछ सुझाव व प्रोडक्ट्स बताये गए है जिससे नयी माताएं अपनी जीवनशैली में एक स्मार्ट और सुखी मातृत्व का आनंद ले सकती है.

1. बेबी कन्वर्टबल चेयर –

यह एक 4 इन 1 समाधान है. आप इसे अपने शिशु की शांतिपूर्ण नींद के लिए एक पालने के रूप में उपयोग कर सकते हैं और खिलोने लगाकर शिशु को व्यस्त भी रख सकते है. आप डाइनिंग टेबल पर अपने साथ शिशु को खाना खिलाने के लिए इसे हाई चेयर के रूप में भी परिवर्तित कर सकते है . और जब शिशु स्वयं खाना शुरू करते हैं, तो यह आसानी से कुर्सी के रूप में भी परिवर्तित की जा सकती है . ये एक मल्टिफंक्शन प्रोडक्ट है जो कि शिशु के खाने, सोने और खेलने में सहायक होता है.

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2. माताओं के लिए ब्रैस्ट फीडिंग पम्पस –

यह माताओं को न केवल ब्रैस्ट मिल्क एक्सट्रेक्ट करने बल्कि आसानी से स्टोर करने में भी मदद प्रदान करते हैं ताकि माँ की अनुपस्थिति में माँ का दूध व उसके गुण शिशु को उपलब्ध हो सकें. ब्रैस्ट पम्प का चुनाव करते समय माताओं को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए कि ब्रैस्ट पम्प प्रभावी एवं सौम्य ढंग से दूध एक्सट्रेक्ट कर सके और साथ ही माँ के हाथ व बाजु पर प्रेशर न डाले जिससे कि वह लम्बे समय तक शिशु को ब्रैस्ट मिल्क के गुण उपलब्ध करा पाएं.

3. बाथिंग जेल –

यह 100% साबुन मुक्त फार्मूला से बनाया गया है जो शिशु की नाजुक त्वचा को जेंटली साफ करता है, और उसे सॉफ्ट बनाता है . यह नो टीयर्स फार्मूला इस तरह बनाया गया है की यह शिशु की नाजुक आँखों में जलन ना करे और क्योंकि यह जेल मैरीगोल्ड और ग्लिसरीन जैसी प्राकृतिक चीज़ो से मिलकर बना है, इसलिए यह हर रोज शिशु की नाजुक त्वचा के लिए प्रयोग किया जा सकता है जिससे शिशु की त्वचा सॉफ्ट और मॉइस्चरीज़ड बनी रहे.

4. शिशु के खाने की चीजों और सरफेस को स्वच्छ रखें-

आज कल शिशु उत्पादों और खाद्य पदार्थों को केवल पानी से धोना काफी नहीं है , बैक्टीरिया और कीटाणुओं को खत्म करने के लिए एक अच्छे डिसइंफेक्टेंट का उपयोग करना और इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. खरीदते समय माता पिता को एक ऐसे डिसइंफेक्टेंट का चुनाव करना चाहिए जो विशेष रूप से शिशु की वस्तुओं के लिए बनाया गया हो और एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुणों से युक्त हो .

5. बच्चों के लिए फेस मास्क –

बाज़ार में बच्चो के लिए स्पेशल फेस मास्क उपलब्ध हैं जो आज के समय में बच्चों की सुरक्षा के लिए अत्यधिक आवश्यक हैं. बच्चे के लिए कॉटन के कपडे का मास्क खरीदे जो सॉफ्ट और 6 लेयर प्रोटेक्शन वाला हो जिससे बच्चा आसानी से सांस ले सकता है. थोड़े समय के लिए भी घर से बाहर निकलते वक्त बच्चों को मास्क अवश्य पहनाएं.

6. शिशु के लिए हाइजीन का ध्यान रखना –

शिशु के आस-पास साफ़ – सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिए. शिशु को खाना खिलाने के बाद उसके हाथ व मुँह को बेबी वाइप्स से साफ़ करना चाहिए , उसके हाथ -पैरो पर मॉस्क्वीटो जेल /स्प्रे लगाना चाहिए जिससे आप उन्हें मच्छरों से बचा सकते हैं.

7. शिशु के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय व्यतीत करें –

रोज़ कुछ टाइम अपने बच्चे के लिए ज़रूर निकालें जिनमे उनके साथ क्रिएटिव एक्टिविटीज जैसे – म्यूजिक, डांस, पेंटिंग करे , कविता सुनाये , कहानियां पढ़े व सुनाएं ताकि उनके शारीरिक व मानसिक विकास में सहायक हो.़

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8. शिशु की ओरल हेल्थ –

शिशु के दांतों और मुंह के स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी अत्यधिक आवश्यक है. एक सॉफ्ट ब्रिस्स्ल टूथब्रश का उपयोग करे जिसकी ब्रिस्स्ल सॉफ्ट होने के साथ साथ ब्रश हेड का शेप मुँह के कोने कोने में सफाई करने में सहायक हो. बहुत छोटे शिशु के लिए फ्लोराइड फ्री टूथपेस्ट ही उपयोग करें क्यूंकि अक्सर शिशु टूथपेस्ट को निगल भी सकते हैं. फ्लोराइड फ्री टूथपेस्ट पेट में जाने पर भी शिशु को नुकसान नहीं पहुंचाती है. हर बार खाने खाने के बाद बच्चे को पानी से कुल्ला ज़रूर करवाएं.

राजेश वोहरा, चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, आर्ट्साना ग्रुप (Chicco), इन एसोसिएशन विद कीको (Chicco) रिसर्च सेंटर

Mother’s Day Special: बस कुछ घंटे- क्यों मानने के लिए तैयार नही थी मां

– मंजुला श्रीवास्तव

अस्पताल का वह आईसीयू का कमरा. बैड नंबर 7 अब भी मेरे जेहन में किसी भूचाल से कम हलचल पैदा नहीं करता. हम सब उस के सामने खड़े थे. मौन, सन्नाटे को समेटे हुए अपनेआप में भयभीत. सांसें जोरजोर से चल रही थीं हरपल जैसे एक युग के बराबर गुजर रहा हो. आतेजाते डाक्टरों पर हमारी नजरें टिकी हुई, उन के चेहरे को पढ़ती रहीं.

वह रोने को आतुर थी, पर हम सब उसे दबाए हुए थे. वह हम भाईबहनों में सब से छोटी थी. शादी जैसे बंधन से मुक्त. उस की हर सांस मां की सांसों से जुड़ी थी. जुड़े तो हम भी थे पर फिर भी हमारी गृहस्थी बस चुकी थी.

‘‘कल क्या हुआ था?’’ मैं ने अपने भाई की हथेली को अपनी हथेली में समेटते हुए पूछा. उस ने मुझे भरी हुई नजरों से देखा. फिर मेरा स्पर्श पा बिलख पड़ा बच्चों की तरह. दुधमुंहे बच्चे की तरह अपनी मां की खातिर. कहते हैं न, मां के लिए बच्चा हमेशा बच्चा ही रहता है. उस की आंखों में लाल डोरे खिंच आए थे. मेरी बातें सुन कर उस ने अपनेआप को संयमित किया. फिर बताने लगा, ‘‘कुछ दिनों से मां ठीक नहीं लग रही थीं. ऐसा मैं, छोटी और पिताजी महसूस कर रहे थे. पर हम जब भी पूछते तो वे कहतीं कि मैं ठीक हूं, परेशान न करो. इधर 2 दिनों से वे खाना भी नहीं खा रही थीं. ज्यादा कहने पर बिगड़ जातीं कि खाना मुझे खाना है परेशानी तुम लोगों को है.

‘‘‘मां, लेकिन खाने के बगैर…’ मैं ने कहा था.

‘‘‘जब मुझे भूख लगेगी मैं मांग कर खा लूंगी,’ वे कहतीं. और फिर कल रात वे अचानक बाथरूम जाते वक्त गिर पड़ीं. अचेत अवस्था में थीं जब हम उन्हें यहां ले आए. दीदी, मां ठीक तो हो जाएंगी न,’’ भाई ने मुझ से ऐसे पूछा जैसे मेरे कहने मात्र से मां ठीक हो जाएंगी.

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‘‘हां, वे जरूर ठीक हो जाएंगी. हमसब की दुआ उन के साथ है,’’ मैं ने कहा.

कुछ पल हम दोनों के बीच चुप्पी छाई रही. एकदूसरे की धड़कन गिनने वाली चुप्पी.

कुछ देर बाद भाई ने मुझे थपथपाते हुए कहा, ‘‘दीदी, मां की स्थिति ठीक नहीं है. सांसें बड़ी मुश्किल से ऊपर चढ़ पाई हैं. डाक्टरों ने बताया है कि उन के हृदय की धमनियां लगभग ब्लौक हो चुकी हैं. इस स्थिति में उन का बचना शायद…’’

‘‘भैया, ऐसा मत बोलो,’’ इस बार मैं टूटती हुई नजर आ रही थी. पुरुष के सीमेंट रूपी धैर्य के आगे मेरा नारी धैर्य बालू की दीवार था जो एक झटके से ढह रहा था और शायद इसी कारण उन्होंने यह मुझे थपथपाते हुए कहा था.

मैं सुबक पड़ी थी. आंसू की बूंदें गोलगोल बनती हुई मेरे गालों पर ढुलक आई थीं.

मां के न रहने की कल्पना हमसब के लिए असहनीय थी. सच पूछो तो मैं ने अपने जीवन के 40 मौसम में मां रूपी मजबूत पेड़ नहीं देखा था जो जिंदगी के आंधीतूफान, यहां तक कि बवंडर को भी सहजता से सह लेता हो. हम छोटे थे तब पिताजी की आय सीमित थी. संयुक्त परिवार में पिताजी को ही सबकुछ देखना पड़ता था.

हम 5 भाईबहनों को पढ़ानालिखाना, दादादादी की रोज नई बीमारियों का सामना करना. दोनों बूआओं की शादी. इतने खर्च में मां अपने लिए कुछ नहीं बचा पातीं. चूड़ीबिंदी जैसी वस्तुएं भी बड़ी मुश्किल से जुट पातीं. फिर भी वे खुश रहतीं. विषम परिस्थितियों में भी हमसब ने मुसकराते हुए देखा था उन्हें.

फिर जैसेतैसे कर के वह भंवर भी टल गया था. पिताजी की आमदनी बढ़ गई थी और खर्चे कम होने लगे. पर मां को अचानक सांस की बीमारी ने जकड़ लिया था. वह समय बिलकुल वैसा ही था जैसे बुझती हुई चिता पर एक मन लकड़ी और रख दी गई हो.

डाक्टरों के कितने चक्कर हमेशा लगते रहते पर बीमारी कम होने का नाम नहीं लेती. डाक्टरों ने कहा, ‘सांस की बीमारी तो सांस के साथ ही जाती है.’

हमसब ने जब यह सुना तो लगा जैसे एकाएक हमसब पर बिजली गिर गई हो.

पर मां पर कोई असर नहीं हुआ था. वे फिर भी खुश रहतीं. अब वे खानेपीने में परहेज करने लगी थीं. दवा समय से लेतीं और व्यायाम करने लगी थीं. वे अपना सब काम खुद करतीं. फिर धीरेधीरे हम तीनों बहनों की शादी हो गई.

समय की गाड़ी चल रही थी. लाख कोशिशों के बावजूद मां की बीमारी बढ़ती ही गई. समयसमय पर डाक्टरों के चक्कर लगने लगे थे. हम जब मां के लिए चिंतित होते तो मां कहतीं, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, चिंता की कोई बात नहीं,’’ वे हमसब को समझातीं, ‘‘इस शरीर को एक दिन खत्म होना ही है. फिर वह चाहे बीमारी से हो या यों ही हो.’’

आईसीयू का दरवाजा खुला, हम सब सतर्क हो गए. बिलकुल वैसे ही जैसे कोई भूचाल आने वाला हो. डाक्टर त्रिवेदी बाहर निकले. मेरा भाई उन की ओर लपका, ‘‘सर…’’

उन्होंने उड़ती नजरों से भाई को देखा और उसे अपने केबिन में आने का इशारा किया. भाई उन के साथ उन के केबिन में गया. हमसब परिवारजन एकदूसरे को देख कर मौन भाषा में पूछ रहे थे कि डाक्टर क्या कहेगा…

कुछ मिनटों बाद भाई दौड़ता हुआ केबिन से लौटा और हमसब के बीच बैंच पर बैठ गया. पूछने के पहले ही वह रो पड़ा. बोला कि मां की स्थिति ठीक नहीं है. डाक्टर ने कहा है कि जिस मशीन की उन्हें आवश्यकता है वह उन के पास नहीं है. या फिर उन्हें वैंटिलेटर पर ले जाना पड़ेगा तब शायद कुछ दिन और…

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यह कह कर वह पिताजी की गरदन से झूल सा गया और जोर से चिल्लाने लगा, ‘‘पिताजी, वैंटिलेटर पर से लौटना भी मां के लिए मुमकिन नहीं है.’’

‘‘मां के बिना जी पाना हमारे लिए मुश्किल है, पिताजी,’’ हमसब भी उस के क्रंदन में शामिल हो गए थे.

समय की रफ्तार में पुरानी डोर, जिस में हमसब पिरोए हुए थे, टूटती नजर आ रही थी.

हम एकएक कर दौड़ पड़े थे आईसीयू के बाहर दरवाजे पर लगे शीशे से देखने के लिए. मां को बैठाया गया था. 4 डाक्टर उन के बैड के आसपास खड़े थे.  आगेपीछे कुछ मशीनें लगी थीं.

सभी लोग मां को शीशे से देख रहे थे लेकिन मैं बाहर खड़ीखड़ी एक डाक्टर से हठ करने लगी, ‘‘मैं अंदर जा कर उन से मिलना चाहती हूं.’’

डाक्टर ने बड़ी मुश्किल से मुझे अंदर जाने की इजाजत दी. मैं तेज कदमों से अंदर गई मां के पास. मां के मुंह में औक्सीजन लगी थी. आंखें उन की बंद थीं. मैं ने उन के हाथों पर अपनी हथेली रखी और पूछा, ‘‘मां, आप ठीक तो हैं न?’’

उन्होंने ‘हां’ में अपना सिर हिलाया और फिर आंखें बंद कर लीं. डाक्टर ने इशारे से मुझे बाहर जाने को कहा और मैं बाहर आ गई. मन यह मानने को तैयार नहीं था कि मां, बस कुछ घंटों की मेहमान हैं.

मैं ने डाक्टर से कहा कि वे तो कह रही हैं वे बिलकुल ठीक हैं.

वह मुसकराया और बोला, ‘‘सभी मरीज ऐसा ही कहते हैं,’’ वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘लगता है आप सब से बड़ी बेटी हैं इन की.’’

‘‘जी.’’

‘‘तो फिर मैं आप से एक बात कहता हूं कि आप अपने मन को समझा लीजिए, बस कुछ घंटे और.’’

मैं लगभग चिल्ला पड़ी, ‘‘डाक्टर, ऐसा नहीं हो सकता.’’

‘‘तो फिर वैंटिलेटर पर रखिए, शायद…’’

मैं डाक्टर की बातें सुन कर दौड़ती हुई अपनों के बीच आ गई थी. कुरसी पर बैठते ही फूटफूट कर रो पड़ी. फिर अपनेआप को संयमित कर बोली, ‘‘पापा, मां को वैंटिलेटर पर रख देते हैं.’’

पापा हमसब को निहार रहे थे. अपने बाग के माली को जाते हुए देख कर उन का मन रो रहा था. उन के लिए फैसला लेना मुश्किल हो रहा था कि क्या

किया जाए?

तब भाई ने एकाएक फैसला लिया, ‘‘मां वैंटिलेटर पर नहीं जाएंगी,’’ लगा जैसे कोई शक्ति उस का पथप्रदर्शक बन कर खड़ी हो. वह बोला, ‘‘क्योंकि मैं जानता हूं कि वैंटिलेटर से लौटना मां के लिए मुमकिन नहीं.’’

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उस ने अपना फैसला डाक्टर को सुनाया, ‘‘हम इन्हें वैंटिलेटर पर नहीं रख सकते. आप अगर कुछ कर सकते हैं तो करें वरना हम इन्हें कहीं और ले जाएंगे.’’

इस समय वह चट्टान की तरह दृढ़ बन गया था.

कुछ देर डाक्टरों के बीच बातचीत होती रही. फिर उन्होंने कहा, ‘‘वाइपेप मशीन बाहर से आ गई है.’’

डाक्टरों की बातें सुन कर हम एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

‘‘कब आई यह वाइपेप मशीन…? कुछ देर पहले तक तो वह यहां नहीं थी और न ही हम ने उस मशीन को लाते देखा, फिर अचानक कहां से…’’

पर यह बहस करने का समय नहीं था. आलीशान नर्सिंगहोम की चारदीवारी के अंदर क्या कुछ होता है यह शायद हमसब को मालूम पड़ गया था.

कुछ देर बाद डाक्टर ने आ कर कहा कि मशीन ठीक से लग गई है और वह ठीक से काम कर रही है.

उस की बातें सुन कर हमारे चेहरे की मायूसी कुछ हटी थी. बवंडर के टलने के संकेत से हमसब शांत थे.

2-3 दिनों बाद हमसब यह सोचने पर विवश हुए कि आखिर कब तक इन्हें ऐसे रखना होगा क्योंकि डाक्टर के कहे अनुसार, मशीन के हटते ही उन का बचना मुश्किल था. सुबह जब नर्सिंगहोम की चार्जशीट आती तो वह हर दिन 4-5 हजार रुपए की होती. महंगीमहंगी दवाएं ही 2-3 हजार की होती थीं उस में. तब मन सोचने पर विवश हो जाता कि क्या इतनी दवाएं प्रतिदिन उन्हें दी जा रही हैं? समझ में नहीं आता.

3 दिन बाद मां हमें बुला कर बोलीं, ‘‘मैं ठीक हूं. तुम लोग मुझे यहां से ले चलो.’’

‘‘मां, लेकिन…’’

‘‘नहीं, मैं बिलकुल ठीक हूं और घर जाना चाहती हूं. यहां रहूंगी तो शायद मैं सचमुच मर जाऊंगी.’’

तब हमसब मां के सामने विवश हो गए. हम जानते थे कि मां का दृढ़निश्चय, भरपूर आत्मविश्वास अपनेआप को जीवित रखने के लिए काफी था क्योंकि ‘वे’ वह स्तंभ थीं जिसे तोड़ पाना आसान नहीं था.

आज 4 साल बाद जब मैं उन के पास गई तो वे मुसकराते हुए हमारा स्वागत कर रही थीं. और मैं उन्हें गौर से निहार रही थी.

आज याद आ रहे थे डाक्टर के कहे वे शब्द, ‘बस, कुछ घंटे ही हैं इन के पास.’

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Mother’s Day Special: फैसला- भाग 3- बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

 मुल्क राज ग्रोवर

ये सब सुन कर मेरी मम्मी का मन फिर डोलने लगा. अमेरिका सैटल्ड लड़के के साथ मेरे रिश्ते का लालच फिर उन के मन में प्रबल हो उठा.

आंटी ने जैसे ही फोन रखा, मम्मी मेरे पास आ कर बैठ गईं. वे देखना चाहती थीं कि आंटी की बातें सुन कर मुझे कितना अच्छा लगा है. मम्मी चाहती थीं कि मैं समीर से शादी कर के अमेरिका सैटल हो जाऊं. मम्मी की यह चाह कैसे पूरी होगी, मैं नहीं जानती, लेकिन मैं हैरान हूं कि मम्मी हमेशा यह क्यों भूल जाती हैं कि हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर समीर की मम्मी ने उन्हें कैसे फटकारा था और कैसे झूठ बोल कर हम पर रोब जमाने की कोशिश करती रही थीं. तब मेरी मम्मी से कह रही थीं कि तनवी ने प्रपोजल दिया तो हम नेहा को देखने आ गए, जबकि उन्होंने समीर के लिए और भी लड़कियां देखी थीं.

आंटी के फोन के 2 दिन बाद समीर का फोन आया. फोन मैं ने ही उठाया, मम्मी के पूछने पर मैं ने बताया कि समीर का फोन है. समीर का नाम सुनते ही उन की आंखों में चमक आ गई. वे पहले मेरे नजदीक खड़ी रहीं, फिर दूर जा कर हमारी बातें सुनने की कोशिश करती रहीं.

‘समीर का फोन आने की मुझे उम्मीद नहीं थी, लेकिन मैं जानती थी कि मैं उसे कोई भाव देने वाली नहीं थी. मेरे हैलो करने पर जैसे ही उस ने ‘हैलो, मैं समीर… अमेरिका से,’ बोला, मैं ने अपने अंदर भरे आक्रोश को उगलना शुरू कर दिया, ‘ओह समीर… नहीं…नहीं… सैमी… हिंदुस्तानी नाम तो आप को पसंद नहीं. आप सैमी कहते, तब भी मैं पहचान लेती. क्योंकि मेरी आप से सगाई हो चुकी है.

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कब से शादी के सपने देख रही हूं, क्यों न देखूं आखिर सगाई के बाद अगला कदम शादी ही है न. मिस्टर सैमी आप रहते अमेरिका में हैं, लेकिन पत्नी हिंदुस्तानी चाहिए क्योंकि वह तेजतर्रार नहीं होती, बड़ों का मानसम्मान करना जानती है, मुश्किलों में साथ निभाती है जबकि अमेरिकी लड़कियां जराजरा सी बात पर तलाक के कागज भेजने की धमकी दे देती हैं.’

‘प्लीज डोंट मिसअंडरस्टैंड मी. वैन वी टौक, आई वाज टैरिबली अपसैट… इनफैक्ट आई वाज इन ए वैरी बैड मूड…’

‘क्या आप अपनी मम्मी की तरह हमेशा बैड मूड में ही रहते हैं. कुछ दिन पहले आप की मम्मी ने इसी बैड मूड के लिए मेरी मम्मी से सौरी कहने के लिए फोन किया था और आज उन के बेटे ने…’

‘आप इतनी नाराज क्यों हो रही हैं…’

‘शायद आज मैं बैड मूड में हूं… इसलिए.’

‘आई एम रियली सौरी. आप जो चाहे मुझे सजा दें. बट…बट प्लीज डोंट स्पौयल…’

‘मिस्टर सैमी, आप और आप की मम्मी दोनों इस रिश्ते को बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हैं. मेरी मम्मी तो आज भी आप की मम्मी के बेहद रूखे और डांटडपट वाले व्यवहार को भूल कर इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार बैठी हैं, लेकिन मिस्टर सैमी अब ऐसा कभी नहीं हो पाएगा.’

‘प्लीज डोंट से दैट. आई विल बी डिसअपौइंटेड…’

‘आप डिसअपौइंट क्यों हो रहे हैं. आप को हिंदुस्तानी लड़की से ही शादी करनी

है, बड़े शौक से करिए. यहां आप कुछ और लड़कियां देख गए थे. चुन लीजिए, उन में से कोई. मेरी मम्मी की तरह अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मातापिता आप को अपनी बेटी देने के लिए तैयार हो जाएंगे.’

‘आई कैन अंडरस्टैंड योर ऐंगर. आई स्वीयर इन फ्यूचर नथिंग लाइक दिस विल हैपन.’

‘आप के स्वीयर करने या सौरी कहने से क्या हमारी तकलीफें कम हो जाएंगी? हाऊ मच वी हैव सफर्ड, यू कांट इमैजिन. मैं दुआ करती हूं कि आप को जल्दी एक हिंदुस्तानी लड़की मिल जाए और आप की मम्मी को उन के दिए गए तोहफों की पूरी वैल्यू न मिलने पर खरीखोटी सुनाने का मौका एक बार फिर मिल जाए,’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

जैसे ही मैं ने फोन रखा, मम्मी गुस्से से घूरती हुई मुझे डांटने लगीं, ‘नेहा

बेटे, यह कैसा तरीका है समीर से बात करने का.’

‘क्यों मम्मा, क्या मैं कहती कि समीरजी कब से हम आप का इंतजार कर रहे थे. आप कब सेहरा बांध कर हमारे घर आओगे. जिन राहों से आप आने वाले थे, उन पर हम ने अब भी फूल बिछा रखे हैं वगैरा…वगैरा… ‘

मम्मी का गुस्सा अब भी बरकरार था, ‘बसबस बेटा, जो तुम ने किया वह ठीक नहीं था. उसे बहुत बुरा लगा होगा.’

‘बुरा लगा हो… जरूर लगे. हमें कोई परवा नहीं. अब हम क्या चाहते हैं, यह समीर की समझ में आ गया होगा. मम्मी आप की बेटी अब अमेरिका जाने वाली नहीं. वह यहीं रहेगी आप के आसपास. अब आप समीर का नाम हमेशा के लिए भूल जाएं. मम्मी, मैं आप को विश्वास दिलाती हूं, राहुल के साथ मेरी जिंदगी बड़े मजे में कटेगी. मैं खुश रहूंगी और आप भी निश्चिंत रहेंगे. आप राहुल को जानती हैं, कालेज के दिनों में वह 2 बार हमारे घर आ चुका है. जब आप उसे देखेंगी, एकदम पहचान लेंगी. कालेज के दिनों से हमारी आपस में खूब जमती थी.’

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लगभग 5 साल बाद राहुल से मेरी मुलाकात बड़े अजीब तरीके से हुई. समीर के साथ रिश्ता खत्म होने के बाद मैं ने पापा से जौब करने की अनुमति ले ली थी. जिस कंपनी में मुझे जौब मिली थी, राहुल वहां सीनियर पोस्ट पर था. जौब जौइन करने के पहले दिन जब मैं औफिस में ऐंटर कर रही थी तो उसी वक्त राहुल भी औफिस पहुंच रहा था. गार्ड ने जैसे ही दरवाजा खोला, राहुल ने मुझे पहले अंदर जाने के लिए इशारा किया. मैं ने उस की ओर देखा. मुझे उस का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा. राहुल ने दोबारा मेरी ओर देखा और हैरानी से बोला, ‘नेहा… मैं राहुल…’

‘ओ, राहुल…, कैसे हो, कहां हो.’

‘ठीक हूं, यहीं तुम्हारे शहर में हूं. इसी कंपनी में जौब कर रहा हूं. तुम ने सोचा, राहुल दुनिया से गया… अभी इतनी जल्दी नहीं है… अभी बहुत कुछ करना है. शादी करनी है, बच्चे होंगे… पापापापा बुलाएंगे… फिर उन के बच्चे…’

इतने सालों बाद मिलने पर भी राहुल सबकुछ इतना सहज कह गया, मुझे हैरानी हुई, लेकिन मैं ने सावधानी बरतते हुए तपाक से कह दिया, ‘तुम नहीं बदलोगे राहुल, उसी तरह मस्तमौला, शरारती.’

‘और बताओ नेहा जौब क्यों, तुम्हें तो वर्किंग वूमन नहीं बनना था, वाए चेंज औफ माइंड?’ राहुल ने पूछा.

इसी तरह बातें करतेकरते हम औफिस में ऐंटर कर गए.

कालेज के दिनों की लाइफ में कितनी बेफिक्री और मौजमस्ती थी. हम एकदूसरे को चाहते थे, ऐसा कुछ नहीं था. राहुल कभी मेरा हाथ थाम लेता, कभी अजीब नहीं लगता. अब 5 साल बाद मिलने पर उस तरह की सहजता इतनी जल्दी नहीं आ पाई, लेकिन धीरेधीरे हम पहले की तरह घुलनेमिलने लगे. कईर् बार वह मुझे अपनी बाइक पर घर ड्रौप कर देता.

पिछले 3-4 महीने में राहुल कई बार हमारे घर चायकौफी पर आया था. हम दोनों कितनी बार रैस्टोरैंट में बैठे गपशप कर चुके थे. एक दिन लंच टाइम में राहुल ने पूछा, ‘क्या आज शाम हम कौफी पीने जा सकते हैं?’

‘हां… क्यों नहीं,’ मैं सोच में पड़ गई. कई बार पहले भी हम जा चुके हैं. आखिर आज क्या कुछ नया है. हम उसी रैस्टोरैंट में जा बैठे जहां आमतौर पर जाया करते थे. वेटर कौफी और सैंडविच टेबल पर रख गया. अभी हम ने कौफी पीनी शुरू नहीं की थी कि राहुल ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया. मुझे हलका कंपन हुआ. पहले कितनी बार राहुल ने मेरा हाथ थामा होगा,  लेकिन कभी ऐसा नहीं लगा, जैसा आज… मुझे लगा हमारे बीच आज कुछ नया घटता जा रहा है, जो पहले से बहुत अलग है.

राहुल कुछ कहना चाहता था, लेकिन नहीं कह सका. कौफी पीने के बाद राहुल ने मुझे घर ड्रौप कर दिया. वह बिना कुछ बोले बाय कर हाथ हिला कर चला गया. अगले दिन औफिस आते समय राहुल की बाइक तेज गति से आती कार से टकरा गई. उसे गंभीर चोटें आईं. उस की सर्जरी हुई और टांग में रौड डाली गई.

एक हफ्ते बाद राहुल को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. जब राहुल औफिस आया  तो उसे देख कर मुझे अच्छा लगा लेकिन उस के हंसमुख चेहरे पर हलकी उदासी देख कर मुझे चिंता भी हुई, ‘राहुल, तुम्हें इतना बुझाबुझा पहले कभी नहीं देखा.’

राहुल की उदासी दूर करने के लिए मैं उस जैसे शरारती अंदाज में उसे ‘बकअप’ करने लगी, ‘राहुल भूल गए, तुम ने कहा था शादी करनी है, बच्चे होंगे, पापापापा बुलाएंगे. फिर उन के बच्चे…’

राहुल का शरारती चेहरा अपने असली रंग में आ गया. चंचल, मौजमस्ती वाला. मुझे लगा राहुल का असली रूप कितना लुभावना है.

राहुल ने चुटकी बजा कर मुझे सचेत किया. वह मेरी ओर देख रहा था… लगातार… उस की आंखों में एक प्रश्न था, जिस का उत्तर वह मुझ से मांग रहा था.

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मैं ने ‘हां’ में सिर हिला कर उस के प्रश्न का उत्तर दे दिया. मुझे लगा हमारे बीच नए रिश्ते की नन्ही सी, प्यारी सी कोंपल फूट आई है.

मेरी मम्मी कमरे के आसपास थीं. उन्हें बुला कर मैं ने कह दिया, ‘मैं ने फैसला कर लिया है मम्मी, समीर से कह दो वह यहां किसी उम्मीद से न आए. मैं ने राहुल को अपना बनाने का फैसला कर लिया है, लेकिन अफसोस मम्मी, अब आप यह नहीं कह सकेंगी कि आप की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है और न ही आप सालछह महीने में अपनी बेटी के पास अमेरिका जा पाएंगी.

मेरी शरारत भरी चुटकी मम्मी को पसंद आई कि नहीं, नहीं जानती, लेकिन मेरा फैसला उन्हें अच्छा नहीं लगा.

Mother’s Day Special: फैसला- भाग 2- बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

 मुल्क राज ग्रोवर

आंटी ने कहा, ‘जल्दी किसी बड़े होटल में सगाई समारोह करना होगा. आज… या ज्यादा से ज्यादा कल तक.’

अगले ही दिन एक शानदार होटल में बड़ी धूमधाम से समीर के साथ मेरी सगाई हो गई. समीर के परिवार में सभी को बहुत महंगे तोहफे दिए गए. डायमंड की अंगूठियां व महंगी घडि़यों से ले कर डिजाइनर साडि़यां व सूट आदि सभी तोहफे बहुत महंगे थे.

मेरी मम्मी बहुत खुश थीं. पापा को भी सब ठीक लग रहा था. मम्मी की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी. आखिरकार उन की बेटी अब अमेरिका चली जाएगी. वे भी सालछह महीने में एक बार वहां हो आएंगे.

अमेरिका में सैटल्ड लड़के के साथ मेरी सगाई की बधाइयां अभी भी आ ही रही थीं कि अमेरिका लौटने के अगले ही दिन समीर की मम्मी का फोन आ गया, ‘मिसेज रजनी, आप ने जो तोहफे दिए हैं, वे हमारे किस काम के. यहां अमेरिका में कौन पहनेगा इतनी हैवी साडि़यां और डै्रसेज. डायमंड ऐंड गोल्ड ज्वैलरी इज ओके बट वट टु डू विद दीज हैवी सारीज ऐंड सिल्ली ड्रैसेज. ये सब हमारे लिए बेकार हैं. यही पैसे आप ने समझदारी से खर्च किए होते… इट वुड हैव गिवन सम वैल्यू टु अस.’

समीर की मम्मी का ऐसा रूखा व्यवहार देख कर मम्मी ने अपनी गलती मान ली, ‘शिखाजी, हम से गलती हो गई. आप बुरा न मानें. आगे हम ध्यान रखेंगे.’

मम्मी ने स्वीकार कर लिया ताकि वे नाराज न हो जाएं और आगे सावधानी बरतने का विश्वास भी उन्हें दिला दिया. मुझे समीर की मम्मी का व्यवहार और अपनी मम्मी का गलती मान लेना अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैं चुप रही.

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‘मिसेज रजनी, हम डायमंड ज्वैलरी और वे गिफ्ट जो हमें ठीक लगे, साथ ले आए हैं, बाकी सब वहीं तनवी के पास छोड़ आए हैं. आप मंगवा लेना, शायद आप के किसी काम आ जाएं.’ मिसेज शिखा ने मम्मी को खूब खरीखोटी सुनाई. मम्मी जीजी करती उन की बेतुकी डांट चुपचाप सुनती रहीं.

सगाई के बाद अमेरिका लौट कर समीर की मम्मी का यह पहला फोन था. मम्मी उम्मीद कर रही थीं कि सगाई की रस्म कम वक्त में इतने बढि़या तरीके से करने पर वे उन का थैंक्स कहेंगी और हमारे दिए तोहफों के लिए आभार जताएंगी, लेकिन इतने करीबी और नएनए जुड़े रिश्ते का भी खयाल न रखते हुए उन्होंने जिस तरह मम्मी के साथ व्यवहार किया, उन्हें उस की जरा भी उम्मीद नहीं थी.

कुछ दिन तक मम्मी बहुत परेशान रहीं. पापा को सारी बात न बता कर इतना बताया कि हमारे तोहफे उन्हें पसंद नहीं आए, इसलिए शादी के वक्त हमें ध्यान रखना होगा. रिश्तों की गरिमा को ताक पर रख कर समीर की मम्मी के कड़वे बोलों ने उन्हें चिंता में डाल दिया था.

अपनी चिंता आंटी से शेयर करने के लिए मम्मी ने उन के भाई के घर फोन किया. वहां से पता चला कि वे अमेरिका लौट गई हैं. उन्होंने उसी वक्त आंटी को अमेरिका फोन कर दिया. आंटी ने मम्मी को विश्वास दिलाया, ‘चिंता की कोई बात नहीं. वे उन लोगों से बात कर के हमें वापस फोन करेंगी.‘

सगाई के बाद जब भी समीर से मेरी बात हुई, वह बेहद फीकी रही. न रोमांचक, न रोचक. जब भी मैं ने कुछ पूछा, उस ने हमेशा सधा सा जवाब दे दिया, ‘जब मैं वहां पहुंचूंगी, सब जान लूंगी.’ कई बार तो बात बस हां और ना पर ही खत्म हो जाती. समीर का इस तरह अनमना व्यवहार मुझे अच्छा नहीं लगा. मैं ने मम्मीपापा को समीर के रूखे व्यवहार के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा. मैं चुप रही. मम्मी के लिए एक और चिंता खड़ी करने से अच्छा है, चुप रहना.

मैं मम्मी को किसी नई चिंता में उलझने से कहां तक बचा पाती, क्योंकि अगले दिन तनवी आंटी का फोन आ गया. उन्होंने जो बताया, उस से हमारा सारा उत्साह फीका पड़ गया.

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‘भाभी, यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा. आप जानती हैं अमेरिका में मंदी आने से बिजनैस पर असर पड़ा है और बिजनैस मंदी की वजह से बुरे दौर से गुजर रहा है. वे लोग भी परेशान हैं. मुझे यह भी पता चला है कि वे लोग इंडिया वापस आने की भी सोच रहे हैं.

पिछली बार इंडिया आने का उन का मकसद यहां सही अवसर देखने के साथ समीर के लिए लड़की देखना भी था. उन्होंने नेहा के अलावा और भी 3-4 लड़कियां देखी थीं. मिसेज शिखा ने तब झूठ बोला

था कि वे मेरे कहने पर नेहा को देखने आ गए थे. यहां आ कर जो कुछ मुझे पता चला है, मैं ने आप को बता दिया. अब आप जैसा ठीक समझें.’

तनवी आंटी ने जो बताया, वह मम्मीपापा के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बन गया. वे लोग वापस इंडिया लौटने की सोच रहे हैं. नेहा के अलावा उन्होंने और लड़कियां भी देखीं. मिसेज शिखा कह रही थीं, तनवी ने प्रपोजल दिया, इसलिए हम आ गए.

मम्मी अपना गुस्सा समीर की मम्मी पर निकालने लगीं, ‘वाह शिखाजी, डायमंड ज्वैलरी और महंगे तोहफे तो साथ ले गईं. बाकी यहां छोड़ गईं. ऐसा सामान देते जिस की हमें वैल्यू मिलती. वैल्यू की बड़ी पहचान है आप को.’

मेरे पापा पहले ही उन से नाराज बैठे थे. कुछ दिन पहले समीर के पापा ने अमेरिका से फोन कर अपने लिए होटल बुक करवाने के लिए कहा था और होटल का बिल हमारे नाम करवा कर चले गए. अमेरिका लौट कर फोन पर सौरी कह कर अपनेआप को बचा लिया.

कुछ दिन घर में उदासी छाई रही. मम्मीपापा दोनों परेशान थे. मैं भी असमंजस की स्थिति में थी. इसी उधेड़बुन में 3 महीने से ज्यादा निकल गए. इस बीच न उधर से कोई फोन आया, न ही हम ने उन से बातचीत करने की पहल की. जो भी हुआ हम उसे भुलाने की कोशिश में थे कि अचानक तनवी आंटी का अमेरिका से फोन आ गया. आंटी समीर की मम्मी के पास बैठ कर वहीं से फोन कर रही थीं. उन्होंने मम्मी को बताया कि शिखा ने फोन पर उन्हें जो बुराभला कहा था, उस के लिए वे मेरी मम्मी को सौरी कहना चाहती हैं.

आंटी ने फोन समीर की मम्मी को दे दिया, ‘मिसेज रजनी, मैं शिखा, समीर की मम्मी. दैट डे आई वाज इन ए वैरी बैड मूड. मेरा मकसद आप का दिल दुखाने का नहीं था. आई एम रियली सौरी. नेहा हमें बड़ी अच्छी लगी. शी इज ए लवली गर्ल और हम उसे अपनी बहू बनाना चाहते हैं. आई होप यू विल नौट डिसअपौइंट अस. आप मेरी बात मान लीजिए. मैं आप को फिर एक बार सौरी बोल रही हूं’.

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‘शिखाजी, आप ऐसा न कहिए, आप को सौरी बोलने की जरूरत नहीं. आप लोग हमें बड़े अच्छे लगे. आप जैसे लोगों से रिश्ता जोड़ने में हमें कोई प्रौब्लम नहीं है. मैं नेहा के पापा से बात कर के आप को…’

समीर की मम्मी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘मिसेज रजनी आप को अपनी बेटी के बारे में फैसला लेने का पूरा हक है. नेहा के पापा आप से क्यों असहमत होने लगे. नाऊ ऐवरीथिंग इज क्लीयर बिटवीन अस. आप जब कहेंगे, हम इंडिया आ जाएंगे. लीजिए, आप तनवी से बात कीजिए,‘ और उन्होंने फोन आंटी को दे दिया.

आंटी फिर उन की वकालत करने लगीं, ‘उन का बिजनैस अब अच्छा चल रहा है. वे लोग 2 और स्टोर खोल रहे हैं. समीर के लिए अलग से घर खरीद लिया है. भाभी, आप जानती हैं अमेरिका में बच्चे बड़े होने पर मांबाप के साथ नहीं रहते. वे अलग रहना पसंद करते हैं, इसलिए समीर शादी के बाद अपने अलग घर में शिफ्ट हो जाएगा.‘

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Mother’s Day Special: फैसला- भाग 1- बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

 मुल्क राज ग्रोवर

मेरे सामने आज ऐसी समस्या आ खड़ी हुई है, जिस का हल मुझे अभी  निकालना है. मम्मी मेरे कमरे में कई बार झांक कर जा चुकी हैं, लेकिन मैं अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई हूं. अगर मैं ने जल्दी अपना फैसला न सुनाया तो मम्मी आ कर कहेंगी, ‘नेहा, बेटे तुम ने क्या सोचा. देखो, वे लोग अमेरिका से आ कर हमारे फैसले के इंतजार में बैठे हुए हैं. वे चाहते हैं तुम समीर से शादी के लिए हां कर दो.’

हम एक बार रिश्ता खत्म कर चुके हैं, फिर दोबारा उसे जोड़ने की जिद क्यों. मम्मी सोचती हैं कि समीर अच्छा लड़का है, अमेरिका में जमाजमाया बिजनैस है. वे यह क्यों भूल जाती हैं कि समीर की मम्मी ने हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर उन्हें कैसी खरीखोटी सुनाई थी. क्या हम यह भी भूल गए हैं कि समीर के पापा होटल का बिल चुकाए बिना अमेरिका लौट गए थे और बिल पापा को चुकाना पड़ा था. इस तरह की  गलती को कोई कैसे अनदेखा कर सकता है. फिर इस बात की क्या गारंटी है कि आगे ऐसा कुछ नहीं दोहराया जाएगा. अगर कभी ऐसा हुआ तो उस का अंजाम क्या होगा? मैं कहीं की नहीं रहूंगी.

अपनी बेटी को अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मांबाप समीर को बेटी दे देंगे. वरना तब तक मैं राहुल को खो चुकी होउंगी. मैं राहुल को खोना नहीं चाहती, मां.

पिछले साल इन्हीं दिनों समीर से मेरी सगाई हुई थी. मेरी एक आंटी अमेरिका से आईर् हुई थीं, उन्होंने यह रिश्ता बताया था. जब भी मेरी शादी की बात चलती, मम्मीपापा आह भर कर कहते, ‘काश, हमारी बेटी की शादी भी इंगलैंड या अमेरिका में हो जाती.’ पड़ोस में किसी के बेटे की शादी इंगलैंड से हुई है तो किसी की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है. मेरे मम्मीपापा भी चाहते थे कि उन की बेटी भी विदेश में सैटल हो जाए, तब वे भी गर्व से कह सकेंगे कि उन की बेटी अमेरिका में रहती है, बहुत बड़ा बंगला है, बड़ीबड़ी गाडि़यां हैं और तो और घर में स्विमिंग पूल भी है.

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बस, इसी लालच के चलते जैसे ही अमेरिका में रहने वाले लड़के का औफर आंटी ने दिया, मम्मी इस रिश्ते के लिए आंटी पर जोर डालने लगीं. आंटी ने कहा कि जब वे अमेरिका लौटेंगी, तब बात कर लेंगी. लेकिन मम्मी को सब्र कहां. आंटी से जिद कर के अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग इंडिया आने वाले थे, लेकिन अभी उन का कार्यक्रम रीशैड्यूल हो रहा है. 2 दिन में आने की डेट बता देंगे.

मम्मी ने 2 दिन बाद ही फिर आंटी से अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग 21 तारीख को आ रहे हैं. इंडिया में 2 हफ्ते तक रुकेंगे. मम्मी ने गिनती कर ली, आज 7 तारीख है, 2 हफ्ते बाद इंडिया आ जाएंगे. मम्मी ने आंटी से कह दिया कि यहां बात पक्की हो जाए तो नेहा अमेरिका शिफ्ट हो जाएगी. हम भी सालछह महीने में चक्कर लगा लिया करेंगे.

तनवी आंटी ने बताया कि समीर अच्छा लड़का है. उन का वहां सालों से जमा हुआ बिजनैस है. शहर में 4 बड़े स्टोर हैं. आंटी ने बढ़चढ़ कर उन की तारीफ कर दी. मम्मी को यह सुन कर अच्छा लगा.

‘यहीं बात पक्की हो जाए तो नेहा की तरफ से हम निश्चिंत हो जाएंगे,’ मम्मी ने आंटी से कह दिया, ‘जैसे ही वे लोग इंडिया आएं, अगले दिन हमारे यहां चाय पर बुला लेना. नेहा को देख कर कोई कैसे मना कर सकता है. रंगरूप में कोईर् कमी नहीं, गोरीचिट्टी, स्लिम और स्मार्ट. हम शादी में कोई कसर छोड़ने वाले नहीं. फाइव स्टार होटल में शादी करेंगे. लेनदेन में भी कोई कमी नहीं रखेंगे.’

जिस दिन वे लोग इंडिया पहुंचे, आंटी ने अगले ही दिन उन्हें चाय पर बुला लिया. मम्मी ने मुझे अच्छी तरह तैयार होने के लिए पहले से ही कह दिया था. आंटी के कहने पर समीर और उस के मम्मीपापा हमारे घर पहुंचे. आंटी ने उन का परिचय करवाया, ‘मीट मिसेज शिखा, मिस्टर हरीश और इन का बेटा समीर.’

समीर की मम्मी ने आंटी को झट टोक दिया, ‘समीर नहीं तनवी, सैमी, इसे हिंदुस्तानी नाम बिलकुल पसंद नहीं.’

‘सैमी… औल राइट,’ शिखा ने जिस सख्ती से विरोध किया, तनवी आंटी ने उतनी ही सहजता से उन की बात मान ली.

‘सौरी मिसेज शिखा, मैं खास व्यक्ति से तो इंट्रोड्यूस करवाना भूल ही गई,‘ आंटी मुझे आते देख उठ खड़ी हुईं. ‘मीट द मोस्ट चार्मिंग गर्ल, नेहा.’ आंटी ने मेरी कमर में हाथ डाल कर बड़े दुलार से उन के आगे मुझे पेश कर दिया, जैसे मैं कोई बड़ी नायाब चीज हूं.

‘नेहा बड़ी होनहार लड़की है, वैरी स्मार्ट, ब्यूटीफुल ऐंड औफकौर्स वैरी वैल ऐजुकेटेड’, आंटी ने मेरे गुणों का बखान कर दिया.

आंटी हमारे बारे में अच्छी बातें बता कर उन्हें प्रभावित कर रही थीं. ‘मिसेज शिखा, नेहा अच्छे संस्कारों वाली लड़की है, इसे अपनी बहू बना लोगी तो हमेशा मेरी आभारी रहोगी.’

आंटी ने उन्हें आश्वस्त कर दिया. शादी में किसी प्रकार की कमी नहीं रहेगी. फाइव स्टार होटल में शादी होगी… वगैरा…वगैरा…

समीर की मम्मी स्वभाव से घमंडी लग रही थीं, अमेरिका में रहती हैं न, शायद इसीलिए. समीर के पापा ज्यादा नहीं बोले, बस पत्नी की ओर देखते रहे, जैसे कहना चाहते हों, ‘श्रीमतीजी, अब बोलिए.’

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समीर की मम्मी ने जब सारे घर का अच्छी तरह मुआयना कर लिया, तब मेरी मम्मी से कहा, ‘देखिए, मिसेज रजनी, हमारा इंडिया आने का मकसद समीर के लिए लड़की देखने का नहीं था. तनवी ने जब यह प्रपोजल दिया तो हम ने सोचा, देख लेते हैं. उस के कहने पर हम आप के घर आ गए. नेहा हमें पसंद है, लेकिन हम आप को जल्दी में कोई जवाब नहीं दे सकेंगे. हमें एक हफ्ते का समय चाहिए, वी विल टेक सम टाइम टु डिसाइड, आई होप यू कैन अंडरस्टैंड,’ कहते हुए वे खड़ी हो गईं और साथ ही समीर और उस के पापा भी खड़े हो गए.

‘ओके, मिसेज रजनी, नाइस टु मीट यू औल. तनवी तुम अमेरिका कब लौट रही हो?

‘अभी कुछ दिन यहीं इंडिया में हूं. मेरे भतीजे की शादी है. यहां बहुत से रिश्तेदार हैं. सब से मिलना है. आप अचानक उठ क्यों गए, बैठिए न. चाय तो लीजिए प्लीज,’ आंटी ने कहा.

‘नहीं तनवी, अब चलेंगे. तुम्हारे कहने पर आ गए… ओके…‘ बायबाय कर के वे तीनों बाहर निकल गए.

‘तनवी, लगता है उन्हें बात जमी नहीं. ठीक से चाय भी नहीं पी. मैं ने इतनी अच्छी तैयारी की थी,‘ मेरी मम्मी ने अपनी चिंता जताई.

‘भाभी, आप चिंता न करें,’ शिखा का व्यवहार ही ऐसा है. मैं उन से बात कर के पता लगाऊंगी.

5 दिन गुजर गए, उन की तरफ से कोई खबर नहीं आई. मम्मी आंटी को फोन करने की सोच रही थीं कि तभी आंटी आ पहुंचीं. ‘2 दिन के लिए कानपुर चली गई थी, छोटी बहन के पास. भाभी, मैं अभी मिसेज शिखा से बात कर के आई हूं. कह रही हैं शाम तक बताएंगे.’

शाम तक कोई खबर नहीं आई. रात 9 बजे आंटी का फोन आया. मेरी मम्मी खुशी से उछल पड़ीं. जरूर अच्छी खबर होगी.

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‘मिसेज शिखा ने कहा है कि हम सोच रहे हैं.’ आंटी ने बताया, ‘पौजिटिव हैं.’ अगले दिन मैसेज आ गया कि उन्हें रिश्ता मंजूर है.

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