डायरी: मानसी को छोड़ अनुजा से शादी क्यों करना चाहता था विपुल?

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डायरी: भाग-1

मानसी और अनुजा बचपन से ही अच्छी सहेलियां थीं. हमेशा से मनु और अनु की जोड़ी उन की पूरी मित्रमंडली में मशहूर थी. नर्सरी से एक ही स्कूल में गईं और जब कालेज चुनने की बात आई तो दोनों ने कालेज भी एक ही चुना. कालेज घर से दूर होने के कारण दोनों पास ही एक रूम ले कर उस में एकसाथ रहने लगीं.

बचपन से साथ खेलने और पढ़ने के बावजूद दोनों के स्वभाव में काफी अंतर था. एक ओर अनुजा सीधीसादी और सामान्य सी दिखने वाली लड़की थी, तो दूसरी ओर मानसी बेहद स्मार्ट और आकर्षक. अनुजा को पढ़ाई में रुचि थी तो मानसी को खेलकूद में. मानसी तो बस पास होने के लिए पढ़ाई करती जबकि अनुजा पढ़ाई में इस कदर खो जाती कि उसे अपने आसपास की दीनदुनिया की खबर ही नहीं रहती. दोनों एकदूसरे की पूरक बन अपनी मित्रता निभाती आई थीं.

कालेज के दिनों में दोनों से टकराया विपुल, जोकि एक छैलछबीले लड़के के रूप में सामने आया. ऊंची कदकाठी, ऐथलैटिक बौडी, पढ़ाई में अच्छे नंबर लाने वाला. बौस्केटबौल चैंपियन को पूरे कालेज का दिल मोह लेने में अधिक समय नहीं लगा.

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सब से पहले विपुल पर मानसी की नजर पड़ी. गरमी के दिनों पसीने से तरबतर विपुल बौस्केटबौल कोर्ट में प्रैक्टिस किया करता, क्योंकि मानसी को स्वयं भी बौस्केटबौल में रुचि थी. उस ने विपुल से दोस्ती करने में अधिक देर न लगाई. कुछ ही हफ्तों में वह विपुल से बौस्केटबौल खेलने के पैंतरे सीखने लगी. अनुजा अकसर दोनों का खेल देखा करती.

महीना बीततेबीतते विपुल उन के रूम पर आने लगा जो उन्होंने कालेज के पास ले रखा था. जब वह रूम पर आता तो मानसी उस से पढ़ाई से संबंधित नोट्स शेयर करती, नएनए गुर सीखती. विपुल उसे पूरे मन से सिखाता.

“न जाने कब इस पढ़ाई से पीछा छूटेगा. एक बार कालेज खत्म हो जाए तो मैं इन किताबों को हाथ भी नहीं लगाऊंगी. इन को तो क्या मैं किसी भी किताब को हाथ नहीं लगाऊंगी”, मानसी बोली.

“कैसी बातें करती हो तुम? किताबों के अलावा दुनिया के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती”, उस की बात सुन कर अनुजा से चुप न रहा गया.

“तुम्हें भी पढ़ने में रुचि है? मुझे भी. बिना पढ़े तो मुझे 1 दिन भी नींद नहीं आती”, विपुल ने कहा.

*उस* दिन के बाद से विपुल की दोस्ती अनुजा से भी हो गई. अब तीनों केवल कालेज में ही नहीं बल्कि उन के रूम पर भी बतियाया करते. मानसी विपुल के लुक्स और अदाओं की दीवानी थी तो विपुल अनुजा के सामान्य ज्ञान और पढ़ने के प्रति रुचि का. कुछ ही हफ्तों में वे एक तिगड़ी के रूप में पहचाने जाने लगे. तीनों अच्छे दोस्त बन गए थे. साथ पढ़ते, साथ घूमने जाते और समय व्यतीत करते.

“विपुल आता ही होगा”, फटाफट तैयार हो लिपस्टिक को फ्रैश करती मानसी ने कहा.

“ओहो, तो यह सारी तैयारी विपुलजी के लिए हो रही है?”अनुजा ने उस की टांग खींची.

“हां यार, क्या करूं, दिल है कि मानता नहीं…”, अचानक ही मानसी गुनगुनाने लगी और दोनों सहेलियां हंसने लगीं.

आज फिर पढ़ते समय मानसी धीरेधीरे अपने मन में उठ रहे विचारों की पर्चियां बना कर विपुल की ओर पास करने लगी. विपुल ने पर्चियां खोलकर पढ़ीं. पहली पर्ची में लिखा था, ‘कितना सुहाना मौसम है.’

दूसरी पर्ची में लिखा था,’आज तो लौंग ड्राइव पर जाना बनता है.’

तभी मानसी ने तीसरी पर्ची उस की ओर सरकाई तो वह कुछ चिढ़ गया, “तुम्हारा मन पढ़ाई में क्यों नहीं लगता, मानसी?” विपुल ने कहा तो मानसी बस खिसिया कर हंस पड़ी.

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“अरे, यह तो बचपन से ऐसी ही है. पर्चियों से इस का नजदीकी रिश्ता है. आखिर, उन्हीं के बल पर पास होती आई है”, अनुजा ने राज खोला.

“अच्छा, तो पर्चियों से पुराना नाता है. देखो न, अभी भी पढ़ते समय न जाने क्या कुछ पर्चियों पर लिख कर मेरी ओर सरकाती रहती है”, विपुल की बात पर तीनों हंस पड़े.

“और यह मैडम न जाने क्या कुछ पढ़ने में मगन रहती हैं”, कहते हुए मानसी से अनुजा के हाथ से किताब छीनी.

“अरे, मुझे तो पढ़ने दो. बहुत अच्छा आलेख प्रकाशित हुआ है इस पत्रिका में. जानते हो, हम सब की आदर्श कार मर्सिडीज का नाम कैसे पड़ा? जरमनी के एक उद्योगपति ऐमिल येलेनेक कारों को बेचने का व्यापार करते थे. उन्होंने डाइमर मोटर्स की कई गाड़ियां खरीदीं और बेचीं. गाड़ियों की इस कंपनी को लिखे कई खतों में उन्होंने यह शर्त रखी कि अपनी स्पोर्ट्स कार का नाम ऐमिल की बड़ी बेटी मर्सिडीज येलेनैक के नाम पर रखा जाए, क्योंकि उन के साथ व्यापार करने से कंपनी को काफी लाभ होता था. कंपनी ने उन की शर्त मान ली. उस वक्त मर्सिडीज केवल 11 वर्ष की थीं जब दुनिया इस दौर को ‘मर्सिडीज इरा’ पुकारने लगी.

बड़ी होने पर मर्सिडीज की 2 शादियां हुईं मगर एक भी सफल नहीं रही. अपने 2 बच्चों को पालने के लिए उन्हें लोगों के आगे हाथ पसारने पड़े. फिर उन्हें कैंसर हो गया और केवल 39 वर्ष की आयु में उन की मृत्यु हो गई. सोचो जरा, जिस कार का नाम समृद्धि और सफलता का पर्याय बन गया है, वह जिस व्यक्ति के नाम पर रखी गई उस का अपना जीवन कितना संघर्ष में बीता. है न यह कितनी बड़ी विडंबना.”

“तुम भी न जाने क्या कुछ ढूंढ़ कर पढ़ती रहती हो”, अनुजा की बात पूरी होने पर मानसी बोली.

“मेरी बकेट लिस्ट में दुनिया घूमना शामिल है”, विपुल बोला, “ऐसी रोचक जानकारियों को जानने के बाद मेरी इन जगहों को देखने की इच्छा और प्रबल हो जाती है. अब मर्सिडीज कार को देखने का मेरा नजरिया बदल जाएगा. तुम ने इतनी अच्छी जानकारी दी, उस के लिए धन्यवाद, अनुजा”, विपुल अनुजा के पढ़ने के शौक से प्रभावित हुआ. उसे भी अनुजा की तरह इतिहास, भूगोल और सामान्य ज्ञान में बेहद रूचि थी.

*शाम* को तीनों बाहर रेस्तरां में खाना खाने गए. तीनों ने अपनीअपनी पसंद का भोजन और्डर किया.

“कमाल है, तुम दोनों के खाने की पसंद भी कितनी मिलती है”, अनुजा और विपुल के साउथ इंडियन खाना और्डर करने पर मानसी ने कहा, “मैं तो मुगलई खाना मंगवाऊंगी.”

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शह और मात: भाग-1

“पल्लवी, तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है,” शरद ने पल्लवी के चेहरे की ओर इशारा करते हुए कहा.

वह उस की सहकर्मी भी थी और अच्छी दोस्त भी.

“कहां?” पल्लवी ने अपने चेहरे पर उंगलियां फिराते हुए पूछा.

“यहां,” शरद ने आगे झुक कर जैसे ही पल्लवी के गाल को छुआ, वह दर्द से कराहते हुए पीछे हो गई.

“संजीव ने तुम पर फिर से हाथ उठाया?” शरद ने उस की आंखों में झांकते हुए प्रश्न किया.

“ऐसा कुछ नहीं है. बेखयाली में कुछ लग गया होगा. मैं अभी आती हूं,” पल्लवी नजरें चुराती हुई उठ कर वहां से जाने लगी.

“अपने जिस्म पर पड़े निशानों को कब तक मेकअप से छिपाती रहोगी पल्लवी? मैं अब भी कहता हूं, मेरा हाथ थाम लो,” शरद के सवाल को सुन कर पल्लवी एक पल के लिए रुकी, लेकिन अगले ही पल तेज कदमों से वहां से चली गई.

पल्लवी के जाने के बाद भी शरद वहीं बैठा रहा. उस के दोस्त मोहसिन ने पीछे से आ कर उसकी पीठ पर धौल जमाई, “और तुम कब तक पल्लवी से इकतरफा मोहब्बत करते रहोगे? क्या तुम जानते नहीं कि वह शादीशुदा है?”

“जानता हूं यार. पूरा औफिस जानता है कि पल्लवी का पति उस के साथ कैसा जानवरों जैसा सुलूक करता है. मगर वह फिर भी उस के खिलाफ एक शब्द नहीं कहती है. मुझ से उस की यह हालत देखी नहीं जाती है,” शरद ने हताश हो कर अपने बालों में हाथ फिराया.

“लेकिन जब पल्लवी ही उस के साथ रहना चाहती है तो कोई कर भी क्या सकता है. वैसे एक बात बता, क्या तू पल्लवी को ले कर सीरियस है?” मोहसिन ने पूछा.

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“मैं पल्लवी से बहुत प्यार करता हूं और मैं जानता हूं कि वह भी मुझ से प्यार करती है. वह बस एक बार हां कह दे फिर मैं सब संभाल लूंगा,” शरद ने गंभीरता से उत्तर दिया.

“मैं कामना करुंगा कि तुम्हारी मोहब्बत को मंजिल मिल जाए. अब जल्दी चल लंच ब्रैक खत्म हो गया है.”

ब्रैक खत्म होने के बाद भी शरद की नजरें रह रहकर पल्लवी पर जा कर टिक जाती थीं. पल्लवी ने कुछ ही महीनों पहले यह औफिस जौइन किया था. उस के सरल और सुंदर व्यक्तित्व ने शरद का मनमोह लिया था. उसे पता था कि पल्लवी शादीशुदा है इसलिए उस ने अपनी भावनाओं को मन में ही रखा और मर्यादा की लकीर पार नहीं की.

पल्लवी सब से बहुत कम बात करती थी पर जब शरद ने पल्लवी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो उस ने खुशीखुशी थाम लिया. वह चाहता था कि पल्लवी हमेशा खुश रहे. लेकिन जब धीरेधीरे पल्लवी की शादीशुदा जिंदगी की कुरूप सचाई सामने आनी शुरू हुई तो वह खुद पर काबू नहीं रख पाया.

पल्लवी का पति संजीव एक नंबर का नकारा और शराबी था. वह अकसर पल्लवी के साथ मारपीट करता था, जिस के निशान वह कई दिनों तक मेकअप के सहारे छिपाती रहती थी.

पल्लवी की हालत देख कर शरद का मन तड़प उठता था. वह बस किसी तरह उसे इस नर्क से मुक्ति दिलाना चाहता था और इस के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार था. लेकिन इस बात से डरता था कि कहीं पल्लवी उसे गलत न समझ ले. इसी उधेड़बुन में एक दिन उसने पल्लवी को अपने दिल की बात बता दी. शरद को लगा था कि वह उस की बात सुन कर नाराज हो जाएगी लेकिन पल्लवी की प्रतिक्रिया तो उस की उम्मीद के बिलकुल परे थी. पल्लवी ने हां नहीं की तो इनकार भी नहीं किया. बस डबडबाई आंखों से शरद की ओर देखती रही जैसे खुद भी मन ही मन उस से प्यार करती हो.

पल्लवी की इस मूक सहमति से शरद को थोड़ी हिम्मत मिल गई थी और वह उस पर अपना अधिकार समझने लगा था. इसी अधिकार के नाते वह पल्लवी से कहता था कि वह संजीव को छोड़ कर उस से शादी कर ले. मगर पल्लवी को पता नहीं किस बात ने अब तक रोक रखा था. शरद ने गहरी सांस ली और अपने काम में व्यस्त हो गया.

अगले दिन शाम के समय पल्लवी अपने औफिस के बाहर सड़क पर औटोरिकशा का इंतजार कर रही थी. शरद‌ उसी समय बाइक से अपने घर जाने के लिए निकल रहा था. वह पल्लवी को देख कर रुक गया, “पल्लवी, आओ मैं तुम्हें घर तक छोड़ देता हूं.”

पल्लवी बिना कुछ कहे बाइक पर बैठ गई. रास्ते में उस ने शरद को एटीएम के सामने बाइक रोकने के लिए कहा और बाइक से उतर कर भीतर चली गई. कुछ मिनटों के बाद पल्लवी बाहर आई तो वह बहुत मायूस लग रही थी.

“क्या बात है पल्लवी? सब ठीक तो है ना?” शरद ने उस की मायूसी की वजह जाननी चाही.

“मुझे घर का किराया देने के लिए ₹ 10 हजार निकालने थे, लेकिन मेरे अकाउंट में इतना बैलेंस ही नहीं है. जरूर संजीव ने रुपए निकाल लिए होंगे. किराया भी आज ही देना है,” पल्लवी ने परेशान होते हुए कहा.

“बस इतनी सी बात. तुम परेशान क्यों हो रही हो, मैं तुम्हें रुपए दे देता हूं,” शरद ने कहा.

“लेकिन शरद मैं तुम से रुपए कैसे ले सकती हूं और अभी तो सैलरी मिलने को भी कई दिन बाकी हैं.”

“लेकिनवेकिन कुछ नहीं. मैं अभी रुपए निकाल कर लाता हूं.”

शरद पल्लवी एटीएम से रुपए निकाल लाया और पल्लवी के हाथ में नोट पकड़ा दिए.

“शरद मैं सैलरी मिलते ही तुम्हारे रुपए  वापस कर दूंगी,” पल्लवी ने भावुक होते हुए कहा.

“ज्यादा मत सोचो पल्लवी. घर का किराया समय पर दे देना बस. अब चलो घर नहीं जाना है क्या?” शरद ने मुसकराते हुए कहा और बाइक स्टार्ट कर दी.

अपने घर से कुछ दूरी पर पल्लवी ने शरद को बाइक रोकने के लिए कहा, “बस शरद यहां से मैं अपनेआप चली जाऊंगी.”

शरद ने कुछ कहे बिना बाइक रोक दी और पल्लवी उसे बाय बोल कर चली गई.

शरद ने पहले भी कई बार पल्लवी को यहां छोड़ा था. वह जानता था कि पल्लवी अपने पति संजीव के डर के कारण उसे यहीं रोक देती थी. पल्लवी के जाने के बाद शरद वहीं खड़ा हो कर उसे आंखों से ओझल होने तक देखता रहा.

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इधर पल्लवी जैसे ही चाबी से दरवाजा खोल कर अपने घर में दाखिल हुई, संजीव हाथ में शराब का गिलास लिए सोफे पर बैठा उस का इंतजार कर रहा था.

“रुपए मिले?” संजीव ने पूछा.

“हां, ₹10 हजार मिले हैं,” पल्लवी ने पर्स से नोट निकाल कर मेज पर रख दिए.

“चलो आज की पार्टी का इंतजाम तो ‌हो गया. लेकिन अगली बार अपने प्रेमी की जेब से जरा बड़ी रकम निकलवाना. आजकल ₹10 हजार में क्या होता है?” संजीव ने नोटों को अपनी ओर सरकाते हुए कहा.

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जीवन की नई शुरुआत: भाग-1

अरे रे रे, कोई रोको उसे, मर जाएगा वो,” अचानक से आधी रात को शोर सुन कर सारे लोग जाग गए और जो देखा, देख कर वे भी चीख पड़े. जल्दी से उसे वहां से खींच कर नीचे उतारा गया, वरना जाने क्या अनर्थ हो गया होता.

यह तीसरी बार था, जब रघु अपनी जान देने की कोशिश कर रहा था.  लेकिन इस बार भी उसे किसी ने बचा लिया, वरना अब तक तो वह मर गया होता.

क्वारंटीन सेंटर का निरीक्षण करने पहुंचे डीएम यानी जिलाधिकारी को जब रघु की आत्महत्या करने की बात पता चली और यह भी कि वह न तो ठीक से खातापीता है और न ही किसी से बात करता है. वह खुद में ही गुमशुम रहता है. कुछ पूछने पर बस वह अपने घर जाने की बात कह रो पड़ता है, तो डीएम को भी फिक्र होने लगी कि अगर इस लड़के ने क्वारंटीन सेंटर में कुछ कर लिया तो बहुत बुरा होगा.

जिलाधिकारी ने वहां रह रहे एकांतवासियों से पूछा कि उन्हें दिया जा रहा भोजन गुणवत्तायुक्त है या नहीं? हाथ धोने के लिए साबुन, मास्क, तौलिया आदि की व्यवस्था के बारे में भी जानकारी ली, फिर वहां की देखभाल करने वाले केयर टेकर को खूब फटकार लगाई कि वह करता क्या है?एक इनसान आत्महत्या करने की क्यों कोशिश कर रहा है, उस से जानना नहीं चाहिए?

“फांसी लगाने की कोशिश कर रहे थे, पर क्यों?” उस जिलाधिकारी ने जब रघु के समीप जा कर पूछा, तो भरभरा कर उस की आंखें बरस पड़ीं.

“कोई तकलीफ है यहां? बोलो न, मरना क्यों चाहते हो? अपने परिवार के पास नहीं जाना है?”

जब जिलाधिकारी मनोज दुबे ने कहा, तो सिसकियां लेते हुए रघु कहने लगा, “जाना है साहब, कब से कह रहा हूं मुझे मेरे घर जाने दो, पर कोई मेरी सुनता ही नहीं.”

कहते हुए रघु फिर सिसकियां लेते हुए रो पड़ा, तो जिलाधिकारी मनोज को उस पर दया आ गई.

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“हां, तो चले जाना, इस में कौन सी बड़ी बात है, बल्कि यहां कोई रहने नहीं आया है.  अवधि पूरी होगी, सभी को भेज दिया जाएगा अपनेअपने घर.  बताओ, और कोई बात है? यहां किसी चीज की समस्या हो रही है?”

“नहीं… लेकिन, मेरे मांबाप बूढ़े और बीमार हैं, उन्हें मेरी जरूरत है,” कहते हुए रघु का गला भर्रा गया.  लेकिन जिलाधिकारी को लग रहा था कि बात कुछ और भी है, जो रघु को खाए जा रही है.

अपने घरपरिवार से दूर क्वारंटीन सेंटर में 15-20 दिनों से रह रहे रघु पर मानसिक दबाव बढ़ने लगा था. वह रात को उठ कर यहांवहां घूमने लगता और अजीब सी हरकतें करता था. कभी वह क्वारंटीन सेंटर की ऊंची दीवार को नापता, तो कभी बड़े से लंबे दरवाजे को आंखें गड़ा कर देखता. कई बार तो वह पेड़ पर चढ़ जाता, ताकि वहां से फांद कर दीवार पार कर सके, पर कामयाब नहीं हो पाता.

रघु की इस हरकत पर उसे फटकार भी पड़ी थी.  लेकिन उस का कहना था कि उसे घर जाना है, क्योंकि अब उस के सब्र का बांध टूटने लगा है. उस ने कई बार मरने की भी धमकी दी थी कि अगर उसे उस के घर नहीं जाने दिया गया तो वह अपनी जान दे देगा. लेकिन कौन सुनने वाला था यहां उस का? सब उसे ‘पागल-बताहा’ कह कर चुप करा देते और हंसते. जैसे सच में वह कोई पागल हो.  लेकिन वह पागल नहीं था. यह बात कैसे समझाए सब को कि उसे यहां से जाना है, नहीं तो सब खत्म हो जाएगा.

जिलाधिकारी मनोज के पूछने पर रघु कहने लगा, “साहब, अच्छीखासी खुशहाल जिंदगी चल रही थी हमारी. किसी चीज की कमी नहीं थी. पर इस कोरोना ने एक झटके में सब बरबाद कर दिया साहब, कुछ नहीं बचा, कुछ नहीं, ना ही नौकरी और ना ही मेरा प्यार…”

बोलतेबोलते रघु की हिचकियां बंध गईं और वह बिलख कर रोने लगा, “साहब, हम गरीबों की तो किस्मत ही खराब है, वरना क्या दालरोटी पर भी मार पड़ जाती? अच्छीखासी जिंदगी चल रही थी हमारी.  मेहनतमजदूरी कर के खुश थे हम. लेकिन सब मटियामेट हो गया.”

अपने आंसू पोंछते हुए रघु बताने लगा कि अभी दो साल पहले ही वह अपने गांव सिवान से गुजरात आया था. वह यहां मिस्त्री का काम करता था, जिस से उस की अच्छीखासी कमाई हो जाती थी. अपने मांबाप के पास घर भी पैसे भेजता था. लेकिन अब क्या करेगा, समझ नहीं आ रहा है.

बताने लगा कि वह यहां अहमदाबाद में एक कमरे का घर ले कर रह रहा था. सोचा था कि मांबाप को भी ले आएगा, सब साथ मिल कर रहेंगे. लेकिन जिंदगी में ऐसी उथलपुथल मच जाएगी, नहीं सोचा था.

रघु हमेशा खुश रहने वाला, हंस कर बोलने वाला इनसान था और यही बात मुन्नी को, जो उस की ही बस्ती में रहती थी और वह नेपाल से थी, उस के करीब लाता था.

रघु का साथ मुन्नी को खूब भाता था. उस के पिता बड़े बाजार से थोक भाव में सब्जीफल ला कर बाजार में बेचते थे. उसी से उन के 8 परिवार का खर्चा चलता था. मुन्नी भी दोचार घरों में झाड़ूबरतन कर के कुछ पैसे कमा लेती थी. मगर रघु को मुन्नी का दूसरे के घरों में झाड़ूबरतन करना जरा भी अच्छा नहीं लगता था. उसे जब कोई गंदी नजरों से घूरता, तो रघु की आंखों में खून उतर आता. मन करता उस का कि जान ही ले ले उस की. कितनी बार उस ने मुन्नी से कहा कि छोड़ दे वह लोगों के  घरों में काम करना. पर मुन्नी उस की बात को यह कह कर टाल दिया करती कि उसे क्यों बुरा लगता है? कौन लगती है वह उस की?

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वैसे तो मुन्नी को भी दूसरे के घरों में झाड़ूबरतन करना अच्छा नहीं लगता था, मगर क्या करे वह भी? अब  8-8 जनों का पेट एक की कमाई से थोड़े ही भर सकता था.  कितनी बार लोगों की भेदती नजरों का वह निशाना बनी है. जिन घरों में वह काम करती है, वहां के मर्द ही उस पर गंदी नजर रखते हैं.

कहते तो बेटीबहन समान है, पर गलत इरादों से यहांवहां छूछाप कर देते हैं. देखने की कोशिश करते हैं कि लड़की कैसी है? लेकिन मुन्नी उस टाइप की लड़की थी ही नहीं. वह तो अपने काम से मतलब रखती थी. गरीबों के पास एक इज्जत ही तो होती है, वही चली जाए तो मरने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता है. कुछ बोल भी नहीं सकती थी, अगर आवाज उठती तो उलटे मुंह गिरती. सो बच कर रहने में ही अपनी भलाई समझती थी.

गलती मुन्नी के मांबाप की भी कम नहीं थी. एक बेटे की खातिर पहले तो धड़ाधड़ 5 बेटियां पैदा कर लीं और अब उसी बेटी को दूसरेतीसरे घरों में काम करने भेजने लगे, ताकि पैसे की कमाई होती रहे.

चूंकि मुन्नी घर में सब से बड़ी थी, इसलिए छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी भी उस के ऊपर ही थी. बेचारी दिनभर चक्करघिन्नी की तरह पिसती रहती, फिर भी मां से गालियां पड़तीं कि ‘करमजली कहां गुलछर्रे उड़ाती फिरती है पूरे दिन.’

इधर मुन्नी को देखदेख कर रघु का कलेजा दुखता रहता, क्योंकि प्यार जो करने लगा था वह उस से. अपने काम से वापस आ कर हर रोज वह घर के बाहर खटिया लगा कर बैठ जाता और मुन्नी को निहारता रहता था. लेकिन आज कहीं भी उसे मुन्नी नहीं दिख रही थी, सो हैरानपरेशान सा वह इधरउधर देख ही रहा था कि उस के सिर पर आ कर कुछ गिरा. देखा, तो पेड़ पर चढ़ी मुन्नी उस के सिर पर पत्ता तोड़तोड़ कर फेंक रही थी.

“ओय मुन्नी… तू ने फेंका?” रघु लपका.

“नहीं तो… फेंका होगा किसी ने,” एक पत्ता मुंह में दबाते हुए शरारती अंदाज में मुन्नी बोली.

“देख, झूठ मत बोल, मुझे पता है कि तुम ने ही फेंका है.”

“अच्छा… और क्याक्या पता है तुझे?” कह कर वह पेड़ से नीचे कूद कर भागने लगी कि रघु ने झपट कर उस का हाथ पकड़ लिया.

“छोड़ रघु, कोई देख लेगा,” अपना हाथ रघु की पकड़ से छुड़ाते हुए मुन्नी बोली.

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“नहीं छोडूंगा. पहले ये बता, तू ने मेरे सिर पर पत्ता क्यों फेंका?” आज रघु को भी शरारत सूझी थी.

“हां, फेंका तो… क्या कर लेगा?” अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाते हुए मुन्नी बोली और दौड़ कर अपने घर भाग गई.

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ये घर बहुत हसीन है: आर्यन की जिंदगी में क्या था एक कौल का रहस्य?

लौकडाउन में दिल मिल गए: एक रात क्या हुआ सविता के साथ

मुख्यमंत्री की प्रेमिका: भाग-1

‘‘कंबल ले लीजिए,’’ अलसाई सी सोने की कोशिश करती मीनाक्षी पर कंबल डालते हुए चेतन ने कहा. कंबल ओढ़ कर वह आराम से सो गई.

विधानसभा चुनाव सिर पर थे. दोनों एक प्रमुख राजनीतिक दल के कार्यकर्ता थे. चेतन सब से वरिष्ठ था. वह एक तरह से कर्ताधर्ता था. उस की हैसियत छोटेमोटे प्रभावशाली क्षेत्रीय नेता जैसी बन गई थी.

मीनाक्षी एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार से थी. वह ग्रेजुएट थी. कई जगह कोशिश करने के बावजूद उसे कोई नौकरी नहीं मिली थी. उस के एक परिचित ने उसे कुछ महिलाओं को इकट्ठा कर एक चुनावी सभा में लाने को कहा. इस काम के लिए उसे 5 हजार रुपए मिले थे. कुल 25 महिलाओं को वह सभा में ले गई थी. 100 रुपए हर महिला को देने के बाद उस के पास 2,500 रुपए बच गए थे. फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा.

इसी दौरान उस की मुलाकात चेतन से हुई थी. वह अधेड़ उम्र का छुटभैया नेता था. मीनाक्षी उम्र में उस से काफी छोटी थी. दोनों का परिचय हुआ फिर घनिष्ठता बढ़ी. देखते ही देखते यह घनिष्ठता सारी सीमाएं लांघ गई. मगर उन के संबंध ढकेछिपे ही रहे.

चुनावी दौर खत्म हुआ. चेतन और मीनाक्षी की पार्टी चुनाव जीत गई. सत्ता पक्ष की पार्टी का मुख्य कार्यकर्ता होने से चेतन की पूछ बढ़ गई. वह बड़ेबड़े लोगों के काम करवाने लगा. उन से वह खूब पैसा वसूलता.

इस तरह उस के आर्थिक हालात भी सुधरने लगे. साथ ही उस की खासमखास मीनाक्षी की भी पार्टी में अच्छी स्थिति हो गई और धीरेधीरे वह एक हस्ती बन गई. मीनाक्षी ने ब्यूटीशियन का कोर्स किया हुआ था. एक पौश कालोनी के बड़े शौपिंग मौल में उस ने ब्यूटीपार्लर खोल लिया.

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आर्थिक हालात और ज्यादा सुधरे तो चेतन ने एक पौश इलाके के एक अपार्टमैंट में अगलबगल 2 बड़े फ्लैट, एक अपने नाम से और एक अपनी प्रेमिका मीनाक्षी के नाम से खरीद लिए.

एक दक्ष कारीगर द्वारा चेतन ने दोनों अपार्टमैंट्स के बीच वार्डरोब के अंदर से ही एक गुप्त दरवाजा बनवा दिया. इस का पता चेतन और मीनाक्षी के सिवा किसी अन्य को नहीं था.

चेतन का राजनीतिक कैरियर धीरेधीरे चढ़ता गया. वह पहले नगर पार्षद, फिर विधानसभा सदस्य, फिर मंत्री और अब मुख्यमंत्री पद का प्रमुख दावेदार बन गया था.

साथ ही उस की खासमखास समझी जाने वाली मीनाक्षी का कद और रुतबा भी काफी ऊंचा हो चला था. राजनीतिक क्षेत्र में उस को कोई भी सौदा पटाने, लेनदेन की रकम पहुंचाने या विवाद निबटाने के लिए उपयुक्त समझा जाता था.

मीनाक्षी काफी सुंदर होने के साथसाथ चालाक भी थी. वह जानती थी कि पैसे के साथ हुस्न और शबाब का अपना रौब होता है. उस की अपनी पार्टी में उस पर जान छिड़कने वाले अनेक लोग थे. मगर वह बिना जांचेपरखे और उस की अहमियत समझे किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी.

चेतन अब मंत्री बन गया था. उस का स्थान मंत्रिमंडल में दूसरा था. वर्तमान मुख्यमंत्री उस के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थे.

‘‘चेतन पार्टी हाई कमान पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है,’’ मुख्यमंत्री कमला प्रसाद ने अपने सहयोगियों से बात करते हुए कहा.

‘‘सर, इस में उस की खासमखास मीनाक्षी का हाथ है,’’ मुख्यमंत्री के पीए ने कहा.

‘‘इस लड़की को क्या हम अपनी तरफ नहीं मिला सकते?’’

‘‘नामुमकिन है सर. यह चेतन के प्रति पूरी वफादार है.’’

‘‘इस का संबंध पार्टी मामलों से है या और कुछ भी है?’’

‘‘इन में सबकुछ है. यह चेतन की पत्नी से भी बढ़ कर है. पिछले यूरोप के दौरे के दौरान यह भी साथ गई थी. मंत्रीजी के खानेपीने, पहनने के कपड़ों का चुनाव, किस से मिलना है किस से नहीं, सब यही तय करती है.’’

‘‘इन दोनों में दूसरे के लिए सीढ़ी कौन है?’’ मुख्यमंत्री के इस सवाल पर उन के सहयोगी एकदूसरे की तरफ देखने लगे.

‘‘सर, कई लोग कहते हैं कि चेतन को ऊंचा उठाने में मीनाक्षी का हाथ है. कई कहते हैं मीनाक्षी चेतन का साथ हो जाने से रसूख वाली बनी है. सचाई जो भी हो, वे एकदूसरे के पूरक हैं,’’ पीए ने कहा.

‘‘मीनाक्षी हमारी तरफ नहीं आ सकती?’’

‘‘सर, आप को अपनी तरफ ला कर क्या करना है?’’ पवन, जो सीएम का खास सलाहकार था, के इस सवाल पर सब हंस पड़े. मुख्यमंत्री भी हंसने लगे.

‘एक खूबसूरत जवान औरत का मुख्यमंत्री ने क्या करना था?’ यह बात सीधी भी थी और मूर्खतापूर्ण भी.

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चेतन मुख्यमंत्री के मुकाबले कम उम्र का था. एक तरह से जवान था जबकि मुख्यमंत्री 60 पार कर चुके थे.

मुख्यमंत्री मंदमंद मुसकरा रहे थे. मीनाक्षी के खूबसूरत जवान शरीर से उन्हें क्या करना था. उन्हें तो अपने काम से मतलब था. असल में वे इस बात के कायल थे कि मीनाक्षी अपने रूपयौवन से बड़े नेताओं को लुभा कर अपने प्रेमी चेतन के लिए तरक्की के रास्ते बनाती थी.

मगर क्या किसी औरत के प्रेम को भी कोई दूसरा यों पा सकता था? मीनाक्षी ने अपने रिहायशी अपार्टमैंट में ही एक ब्यूटीपार्लर भी खोल रखा था. जिन को वह अपने ब्यूटीपार्लर में ट्रीटमैंट नहीं दे पाती थी या जो स्पैशल ट्रीटमैंट चाहते थे वे स्पैशल आवर में अपार्टमैंट में आ जाते थे. इस के लिए उन्हें फीस भी ज्यादा देनी पड़ती थी.

थोड़ेथोड़े अंतराल पर मंत्रीजी भी स्पैशल ट्रीटमैंट, जिस में बौडी मसाज, हैड मसाज और अन्य उपचार शामिल थे, के लिए मीनाक्षी के पास आते थे.

आज मंत्रीजी को आना था. मीनाक्षी अपनी नौकरानी, जो उस की औल इन औल थी, के साथ स्पैशल खाना बनवा रही थी.

कभी यही चेतन मीनाक्षी को साइकिल के कैरियर पर बिठा सभाओं व कार्यक्रमों में लाता ले जाता था. फिर साइकिल की जगह मोटरसाइकिल या स्कूटर आ गया था. और अब लावलश्कर के साथ मंत्रीजी विदेशी कार में आते थे.

मंत्रीजी आ गए. कमांडो दस्ता बाहर पहरे पर खड़ा हो गया. मंत्रीजी अकेले ब्यूटीपार्लर में चले गए. पहले मालिश से उन की थकावट और तनाव दूर करने का उपचार हुआ. फिर हर्बल स्नान, फिर डिं्रक्स का हलकाफुलका दौर चला. फिर खाना सर्व हुआ.

खाना खाने के बाद मंत्रीजी अपने अपार्टमैंट में रात्रिविश्राम के लिए चले गए. मंत्रीजी ज्यादातर अपने सरकारी आवास पर परिवार सहित रहते थे. लेकिन कभीकभी विशेष बैठक या विशेष चिंतन हेतु अपने अपार्टमैंट में अकेले विश्राम करने आ जाते थे.

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