पल्लवी बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई. वहां रुक कर करती भी क्या, संजीव को शराब पीने के बाद होश ही कहां रहता था. वैसे भी अब तो उस की इच्छा पूरी हो गई थी. उस के हाथ में रुपए पहुंच गए थे. इसलिए वह कम से कम 2-4 दिन तो शांति से जी सकती थी.
कुछ देर बाद रसोई में खाना पकाते समय पल्लवी अपनी नियति के बारे में सोच रही थी. उसे वह दिन याद आ रहा था जब उस के परिवार वालों को उस के और पड़ोस में रहने वाले संजीव के रिश्ते के बारे में पता चला था. घर में कुहराम मच गया था. एक तो संजीव उस समय बेरोजगार था, ऊपर से पल्लवी के मातापिता और भाई की नजरों में उस की छवि कुछ खास अच्छी नहीं थी. उस समय पल्लवी की हालत चक्की के 2 पाटों के बीच पिसते गेहूं की तरह हो गई थी. एक तरफ पापा ने साफ कह दिया था कि वह अपनी बेटी का हाथ संजीव के हाथों में कभी नहीं देंगे. दूसरी तरफ संजीव उस पर शादी करने का दबाव बना रहा था.
पल्लवी समझासमझा कर थक गई थी, मगर पापा और संजीव में से कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं हुआ. दोनों ने पल्लवी को जल्दी ही कोई निर्णय लेने के लिए कहा था.
इसलिए पल्लवी ने निर्णय ले लिया. उस ने अपने मातापिता और परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर संजीव का हाथ थाम लिया. उसे संजीव पर इतना भरोसा था कि वह बिना कुछ सोचेसमझे अपना घर छोड़ कर उस के साथ चली आई. उस के मातापिता ने उसी समय उस से रिश्ता तोड़ लिया था. मां ने जातेजाते उस से कहा था कि एक दिन वह अपने इस फैसले पर जरूर पछताएगी.
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घर छोड़ने के बाद दोनों दिल्ली आ गए जहां उन्होंने शादी कर ली. संजीव को नौकरी भी मिल गई थी. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा. पल्लवी अपने प्यार को पा कर बहुत खुश थी. लेकिन जैसेजैसे उस के सिर से नई शादी का खुमार उतरना शुरू हुआ, उसे संजीव का असली चेहरा नजर आने लगा. संजीव को शराब की लत थी. वह अकसर शराब के नशे में उस पर हाथ भी उठाने लगा था. सिर्फ यही नहीं, वह पैसे कमाने के लिए उलटेसीधे काम करने से भी बाज नहीं आता था. उस ने बहुत लोगों को चूना लगाया था. इन्हीं आदतों के चलते उस की नौकरी भी चली गई थी.
एक बार काम से निकाले जाने के बाद संजीव ने नौकरी ढूंढ़ने की जहमत नहीं उठाई.
तब घर चलाने के लिए पल्लवी ने एक औफिस में नौकरी कर ली. उसे सारी तनख्वाह ला कर संजीव के हाथों पर रखनी पड़ती. लेकिन उस से भी संजीव का पेट नहीं भरता. वह आएदिन उस से रुपए मांगता और जब पल्लवी उस की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाती तो वह उसे रूई की तरह धुन देता. अगले दिन वह उस से माफी मांग लेता और पल्लवी उसे माफ भी कर देती. वह किसी भी कीमत पर संजीव से अलग नहीं होना चाहती थी. वापस लौट कर मांपिता के घर भी तो नहीं जा सकती थी.
जिंदगी इसी तरह ऊबड़खाबड़ रास्तों पर चल रही थी. समय के साथ संजीव की फरमाइशें बढ़ती जा रही थीं. जब उस के लिए पल्लवी की तनख्वाह कम पड़ने लगी तो उस ने एक रास्ता निकाला. वह चाहता था कि पल्लवी किसी आदमी को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उस से ठगी करे. पल्लवी ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया. उसे हैरानी हो रही थी कि कोई पति अपनी पत्नी से ऐसा करने के लिए भी कह सकता है. लेकिन उसे कुछ ही दिनों में अपना फैसला बदलना पड़ा.
एक दिन जब संजीव लहूलुहान हालत में घर आया, तब उसे पता चला कि उस ने शराब और जुए के लिए कुछ गलत लोगों से बहुत मोटा कर्ज ले रखा है और वे लोग अपना पैसा वापस लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. जब उन लोगों से बचने और उन का कर्ज चुकाने का और कोई रास्ता नजर नहीं आया, तो पल्लवी ने मजबूरन वही किया जो संजीव ने उसे करने के लिए कहा था.
पल्लवी का एक सहकर्मी दिनेश उसे पसंद करता था और यह बात उस से छिपी नहीं थी. पल्लवी ने पहले उस से दोस्ती की और फिर उसे अपनी दुखभरी दास्तान सुना कर धीरेधीरे उस के साथ नजदीकियां बढ़ाने लगी.
थोड़े ही दिनों में दिनेश उस की खातिर कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो गया. यहां से झूठीसच्ची कहानियां सुना कर पैसे ऐंठने का सिलसिला शुरू हो गया. दिनेश उस के झूठों को सच मान कर उस पर विश्वास करता गया. इस तरह कुछ महीनों में संजीव का सारा कर्ज उतर गया. लेकिन पल्लवी के लिए दिनेश को संभालना मुश्किल होता जा रहा था. वह उस से शादी करना चाहता था और कई बार उस के घर तक पहुंच गया था. अगर उसे सचाई पता चल जाती तो उन के लिए बड़ी मुसीबत हो जाती. पल्लवी उस के लाखों रुपए कहां से लौटाती.
अपनी पोल खुलने से बचाने के लिए संजीव और पल्लवी ने रातोरात शहर बदल लिया. शहर बदलने के बाद भी संजीव में कोई बदलाव नहीं आया. पल्लवी ने यहां भी नौकरी कर ली थी. वह संजीव से भी नौकरी ढूंढ़ने के लिए कहती थी. लेकिन संजीव के दिमाग में तो कोई और ही खिचड़ी पक रही थी. कुछ ही दिनों में वह फिर से कर्ज में डूब गया था और उस ने पल्लवी पर दोबारा वही खेल खेलने का दबाव बनाना शुरू कर दिया था. पल्लवी ने फिर से उस की बात मान ली.
बस इसी तरह शहर बदलबदल कर लोगों के साथ ठगी करना उन का पेशा बन गया था. लेकिन इस पेशे के भी कुछ नियम थे जो संजीव ने बनाए थे. उसे हर वक्त यह शक होता कि कहीं पल्लवी अपने शिकार के ज्यादा नजदीक तो नहीं जा रही है. और इस बात की झुंझलाहट वह उस पर हाथ उठा कर निकालता. कभीकभी पल्लवी को लगता था कि वह एक अंधे कुएं में गिरती जा रही है. वह जब भी संजीव से ऐसा करने के लिए मना करती, वह उस से वादा करता कि बस यह आखिरी बार है. इस के बाद वह खुद को पूरी तरह से बदल लेगा और वे दोनों एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे.
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पल्लवी न चाहते हुए भी उस पर भरोसा कर बैठती थी. उसे लगता था कि संजीव पर भरोसा करने के अलावा उस के पास विकल्प भी क्या था? अपने सारे रिश्तेनाते तो वह खुद ही पैरों तले रौंद आई थी.
कुछ महीने पहले इंदौर आने के बाद भी संजीव ने उस से वादा किया था कि वह अब सुधर जाएगा. लेकिन हुआ क्या, अब वह पैसों के लिए शरद जैसे शरीफ और अच्छे आदमी को बेवकूफ बना रही थी. इस बार भी संजीव ने वादा किया था कि यह उन की आखिरी ठगी है, क्योंकि नई जिंदगी शुरू करने के लिए रुपयों की जरूरत तो पड़ेगी ही.
उसे अकसर यह महसूस होता था कि वे पुरुष मूर्ख नहीं हैं जिन्हें उस ने ठगा है, असल में वह खुद मूर्ख है जो बारबार संजीव की बात मान लेती है.
आगे पढ़ें- पल्लवी उन मूर्खों में से थी जिस ने खुद अपना…