Hindi Kahaniyan : धमकियां – गांव की रहने वाली सुधा को क्या अपना पाया शेखर?

Hindi Kahaniyan :  *शेखर* और सुधा की मैरिज ऐनिवर्सरी के दिन सब बेहद खुश थे. शनिवार का दिन था तो आराम से सब सैलिब्रेशन के मूड में थे. पार्टी देर तक भी चले तो कोई परेशानी नहीं.

अनंत और प्रिया ने पार्टी का सब इंतजाम कर लिया था. अंजू और सुधीर से भी बात हो गई थी. वे भी सुबह ही आ रहे थे. प्रोग्राम यह था कि पहले पूरा परिवार लंच एकसाथ घर पर करेगा, फिर डिनर करने सब बाहर जाएंगे. इस तरह पूरा दिन सब एकसाथ बिताने वाले थे.

शेखर और सुधा अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए अति उत्साहित थे. अनंत तो अपनी पत्नी प्रिया और बेटी पारूल के साथ उन के साथ ही रहता था, बेटी अंजू अंधेरी में अपने पति सुधीर और बेटे अनुज के साथ रहती थी. मुंबई में होने पर भी मिलनाजुलना जल्दी नहीं हो पाता था, क्योंकि बहूबेटा, बेटीदामाद सब कामकाजी थे.

इसलिए जब भी सब एकसाथ मिलते, शेखर और सुधा बहुत खुश होते थे.सब की आपस में खूब बनती थी. सब जब भी मिलते, महफिल खूब जमती, जम कर एकदूसरे की टांग खींची जाती, कोई किसी की बात का बुरा न मानता. बच्चों के साथ शेखर और सुधा भी खूब हसंतेहंसाते.

12 बजे अंजू सुधीर और अनुज के साथ आ गई. सब ने एकदूसरे को प्यार से गले लगाया. शेखर और सुधा के साथसाथ अंजू सब के लिए कुछ न कुछ लाई थी. पारूल और अनुज तो अपनेआप में व्यस्त हो गए. हंसीमजाक के साथसाथ खाना भी लगता रहा. लंच भी बाहर से और्डर कर लिया गया था, पर प्रिया ने स्नेही सासससुर के लिए खीर और दहीबड़े उन की पसंद को ध्यान में रख कर खुद बनाए थे, जिसे सब ने खूब तारीफ करते हुए खाया.

खाना खाते हुए सुधीर ने बहुत सम्मानपूर्वक कहा, ”पापा, आप लोगों की मैरिडलाइफ एक उदाहरण है हमारे लिए. कभी भी आप लोगों को किसी बात पर बहस करते नहीं देखा. इतनी अच्छी बौंडिंग है आप दोनों की. मेरे मम्मीपापा तो खूब लड़ते थे. आप लोगों से बहुत कुछ सीखना चाहिए.”

फिर जानबूझ कर अंजू को छेड़ते हुए कहा,” इसे भी कुछ सिखा दिया होता, कितना लड़ती है मुझ से. कई बार तो शुरूशुरू में लगता था कि इस से निभेगी भी या नहीं.”

अंजू ने प्यार से घूरा,”बकवास बंद करो, तुम से कभी नहीं लड़ी मैं, झूठे…”

प्रिया ने भी कहा,”जीजू , आप ठीक कह रहे हैं, मम्मीपापा की कमाल की बौंडिंग है. दोनों एकदूसरे का बहुत ध्यान रखते हैं. बिना कहे ही एकदूसरे के मन की बात जान लेते हैं. यहां तो अनंत को मेरी कोई बात ही याद नहीं रहती. काश, अनंत भी पापा की तरह केयरिंग होता.”

अनंत से भी रहा नहीं गया, झूठमूठ गले में कुछ फंसने की ऐक्टिंग करता हुआ बोला,” मेरी प्यारी बहन अंजू, यह हम दोनों भाईबहन क्या सुन रहे हैं? क्यों न आज मम्मीपापा की बहू और दामाद को इस बौंडिंग की सचाई बता दें? हम कब तक ताने सुनते रहेंगे,” कहता हुआ अनंत अंजू को देख कर शरारत से हंस दिया.

शेखर ने चौंकते हुए कहा,”अरे, कैसी सचाई? क्या तुम बच्चों से अपने पेरैंट्स की तारीफ सहन नहीं हो रही?”

अनंत हंसते हुए बोला,”मम्मीपापा, तैयार हो जाइए, आप की बहू और आप के दामाद से हम भाईबहन आप की इस बौंडिंग का राज शेयर करने जा रहे हैं…”

फिर नाटकीय स्वर में अंजू से कहा,”चल, बहन, शुरू हो जा…”

*अंजू* ने जोर से हंसते हुए बताना शुरू किया,”जब हम छोटे थे, हम रोज देखते कि पापा मम्मी को हर बात में कहते हैं कि मैं तुम्हारे साथ एक दिन नहीं रह सकता. अम्मांपिताजी ने मेरे साथ बहुत बुरा किया है कि तुम से मेरी शादी करवा दी. मेरे जैसे स्मार्ट लड़के के लिए पता नहीं कहां से गंवार लड़की ले कर मेरे साथ बांध दिया,” इतना सुनते ही प्रिया और सुधीर ने चौंकते हुए शेखर और सुधा को देखा.

शेखर बहुत शर्मिंदा दिखे और सुधा की आंखों में एक नमी सी आ गई थी, जिसे देख कर शेखर और शर्मिंदा हो गए.

अनंत ने कहा,”और एक मजेदार बात यह थी कि रोज हमें लगता कि बस शायद कल मम्मी और पापा अलग हो जाएंगे पर हम अगले दिन देखते कि दोनों अपनेअपने काम में रोज की तरह व्यस्त हैं.

“सारे रिश्तेदारों को पता था कि दादादादी ने अपनी पसंद की लड़की से पापा की शादी कराई है और पापा को मम्मी पसंद नहीं हैं. हम किसी से भी मिलते, तो हम से पूछा जाता कि अब भी तुम्हारे पापा को तुम्हारी मम्मी पसंद नहीं हैं क्या?

“हमें कुछ समझ नहीं आता कि क्या कहें पर सब मम्मी की खूब तारीफ करते. सब का कहना था कि मम्मी जैसी लड़की संयोग से मिलती है पर पापा घर में हर बात पर यही कहते कि उन की लाइफ खराब हो गई है, यह शादी उन की मरजी से नहीं हुई है. उन्हें किसी शहर की मौडर्न लड़की से शादी करनी थी और उन के पेरैंट्स ने अपने गांव की लड़की से उन की शादी करा दी.

“हालांकि मम्मी बहुत पढ़ीलिखी हैं पर प्रोफैसर पापा अलग ही दुनिया में जीते और मैं और अंजू मम्मीपापा के तलाक के डर के साए में जीते रहे.

“कभी अनंत मुझे समझाता, तसल्ली देता कि कुछ नहीं होगा, कभी मैं उसे समझाती कि अगले दिन तो सब ठीक हो ही जाता है. हमारी जवानी तो पापा की धमकियों में ही बीत गई.”

फिर अचानक अनंत जोर से हंसा और कहने लगा,”धीरेधीरे हम बड़े हो गए और समझ आ गया कि पापा सिर्फ मम्मी को धमकियां देते हैं, हमारी प्यारी मां को छोड़ना इन के बस की बात नहीं.”

प्रिया और सुधीर ने शेखर को बनावटी गुस्से से कहा,”पापा, वैरी बैड, हम आप को क्या समझते थे और आप क्या निकले… बेचारे बच्चे आप की धमकियों में जीते रहे और हम आप दोनों की बौंडिंग के फैन होते रहे. क्यों, पापा, ये धमकियां क्यों देते रहे?”

शेखर ने सुधा की तरफ देखते हुए कहा,”वैसे अच्छा ही हुआ कि आज तुम लोगों ने बात छेड़ दी, दिन भी अच्छा है आज.”

*उन* के इतना कहते ही अंजू ने कहा,”अच्छा, दिन अच्छा हो गया अब मैरिज ऐनिवर्सरी का, बच्चों को परेशान कर के?”

”हां, बेटा, दिन बहुत अच्छा है आज का जो मुझे इस दिन सुधा मिली.”

अब सब ने उन्हें चिढ़ाना शुरू कर दिया,”रहने दो पापा, हम आप की धमकियां नहीं भूलेंगे.”

”सच कहता हूं, मैं गलत था. मैं ने सुधा को सच में तलाक की धमकी देदे कर बहुत परेशान किया. मैं चाहता था कि मैं बहुत मौडर्न लड़की से शादी करूं, गांव की लड़की मुझे पसंद नहीं थी. हमेशा शहर में रहने के कारण मुझे शहरी लड़कियां ही भातीं. जब अम्मांपिताजी ने सुधा की बात की तो मैं ने साफसाफ मना कर दिया पर सुधा के पेरैंट्स की मृत्यु हो चुकी थी और भाई ने ही हमेशा सुधा की जिम्मेदारी संभाली थी.

“अम्मां को सुधा से बहुत लगाव था. मैं ने तो यहां तक कह दिया था कि मंडप से ही भाग जाऊंगा पर पिताजी के आगे एक न चली और सारा गुस्सा सुधा पर ही उतरता रहा.

“मेरे 7 भाईबहनों के परिवार को सुधा ने ऐसे अपनाया कि सब मुझे भूलने लगे. हर मुंह पर सुधा का नाम, सुधा के गुण देख कर सब इस की तारीफ करते न थकते पर मेरा गुस्सा कम होने का नाम ही ना लेता पर धीरेधीरे मेरे दिल में इस ने ऐसी जगह बना ली कि क्या कहूं, मैं ही इस का सब से बड़ा दीवाना बन गया.

“जब आनंद पैदा हुआ तो सब को लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा पर मैं नहीं सुधरा, सुधा से कहता कि बस यह थोड़ा बड़ा हो जाए तो मैं तुम्हे तलाक दे दूंगा.

“फिर 2 साल बाद अंजू हुई तो भी मैं यही कहता रहा कि बस बच्चे बड़े हो जाएं तो मैं तुम्हे तलाक दे दूंगा और तुम चाहो तो गांव में अम्मां के साथ रह सकती हो.

“फिर बच्चे बड़े हो रहे थे तो मेरी बहनों की शादी का नंबर आता रहा. सुधा अपनी हर जिम्मेदारी दिल से निभाती रही और मेरे दिल में जगह बनाती रही पर मैं इतना बुरा था कि तलाक की धमकियों से बाज नहीं आता…

“सुधा घर के इतने कामों के साथ अपना पूरा ध्यान पढाईलिखाई में लगाती और इस ने धीरेधीरे अपनी पीएचडी भी पूरी कर ली और एक दिन एक कालेज में जब इसे नौकरी मिल गई तो मैं पूरी तरह से अपनी गलतियों के लिए इतना शर्मिंदा था कि इस से माफी भी मांगने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.

“मन ही मन इतना शर्मिंदा था कि आज इसलिए इस दिन को अच्छा बता रहा था कि मैं तुम सब के सामने सुधा से माफी मांगने की हिम्मत कर पा रहा हूं.

“बच्चो, तुम से भी शर्मिंदा हूं कि मेरी तलाक की धमकियों से तुम्हारा बालमन आहत होता रहा और मुझे खबर भी नहीं हुई.

“सुधा, अनंत और अंजू, तुम सब मुझे आज माफ कर दो…”

प्रिया ने सुधा की तरफ देखते हुए कहा,”मम्मी, आप भी कुछ कहिए न?”

सुधा ने एक ठंडी सांस ली और बोलने लगी,”शुरू में तो एक झटका सा लगा जब पता चला कि मैं इन्हें पसंद नहीं, मातापिता थे नहीं, भाई ने बहुत मन से मेरा विवाह इन के साथ किया था. लगा भाई को बहुत दुख होगा अगर उस से अपना दुख बताउंगी तो…

“इसलिए कभी भी किसी से शेयर ही नहीं किया कि पति तलाक की धमकियां दे रहा है. सोचा समय के साथ शायद सब ठीक हो जाए और ठीक हुआ भी. तुम दोनों के पैदा होने के बाद इन का अलग रूप देखा. तुम दोनों को यह खूब स्नेह देते, कालेज से आते ही तुम दोनों के साथ खूब खेलते.

“मैं ने यह भी देखा कि मुझे अपने पेरैंट्स के सामने या उन के आसपास होने पर ये तलाक की धमकियां ज्यादा देते हैं, अकेले में इन का व्यवहार कभी खराब भी नहीं रहा. मेरी सारी जरूरतों का हमेशा ध्यान रखते. मैं समझने लगी थी कि यह हम सब को प्यार करते हैं, हमारे बिना रह ही नहीं सकते.

“ये धमकियां पूरी तरह से झूठी हैं, सिर्फ अपने पेरैंट्स को गुस्सा दिखाने के लिए करते हैं.

“यह अपने पेरैंट्स से इस बात पर नाराज थे कि उन्होंने इन के विवाह के लिए इन की मरजी नहीं पूछी, सीधे अपना फैसला थोप दिया.

“जब मैं ने यह समझ लिया तो जीना मुश्किल ही नहीं रहा. मुझे पढ़ने का शौक था, किताबें तो यह ही ला कर दिया करते. पूरा सहयोग किया तभी तो पीएचडी कर पाई.

“रातभर बैठ कर पढ़ती तो यह कभी चाय बना कर देते, कभी गरम दूध का गिलास जबरदस्ती पकड़ा देते और अगर अगले दिन अम्मांपिताजी आ जाएं तो तलाकपुराण शुरू हो जाता, पर मैं इन के मौन प्रेम का स्वाद चख चुकी थी, फिर मुझे कोई धमकी असर न करती,” कहतेकहते सुधा बहुत प्यार से हंस दी.

*शेखर* हैरानी से सुधा का मुंह देख रहे थे, बोले,”मतलब तुम्हें जरा भी चिंता नहीं हुई कभी?”

”नहीं, जनाब, कभी भी नहीं,” सुधा मुसकराई.

अनंत और अंजू ने एकदूसरे की तरफ देखा, फिर अनंत बोला,” लो बहन, और सुनो इन की कहानी, मतलब हम ही बेवकूफ थे जो डरते रहे कि हाय, मम्मीपापा का तलाक न हो जाए, फिर हमारा क्या होगा?

“हम बच्चे तो कई बार यह बात भी करने बैठ जाते कि पापा के पास कौन रहेगा और मम्मी के पास कौन?

“हमें तो फिल्मी कोर्टसीन याद आते और हम अलग ही प्लानिंग करते. पापामम्मी, बड़ा जुल्म किया आप ने बच्चों पर. ये धमकियां हमारे बचपन पर बहुत भारी पड़ी हैं.”

शेखर ने अब गंभीरतापूर्वक कहा,”हां, बच्चो, यह मैं मानता हूं कि तुम दोनों के साथ मैं ने अच्छा नहीं किया, मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ कि मेरे बच्चों के दिलों पर ये धमकियां क्या असर कर रही होंगी, सौरी, बच्चो.”

अंजू ने चहकते हुए शरारत से कहा,”वह तो अच्छा है कि मम्मी ने यह बात एक दिन महसूस कर ली थी कि आप की तलाक की धमकियां हमें परेशान करती हैं तो उन्होंने हमें बैठा कर एक दिन समझा दिया था कि आप का यह गुस्सा दादादादी को दिखाने का एक नाटक है. कुछ तलाकवलाक कभी नहीं होगा, तब जा कर हम थोड़ा ठीक हुए थे.”

शेखर अब मुसकराए और नाटकीय स्वर में कहा,”मतलब मेरी खोखली धमकी का किसी पर भी असर नहीं पड़ रहा था और मैं खुद को तीसमारखां समझता रहा…”

सुधीर ने प्रिया की ओर देखते हुए कहा,”प्रिया, अनंत और अंजू कोई धमकी कभी दें तो दिल पर मत लेना, यार, हमें तो बड़े धमकीबाज ससुर मिले हैं, पर यह भी सच है कि आप दोनों की बौंडिंग है तो कमाल…

“एक सारी उम्र धमकी देता रहा, दूसरा एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकालता रहा, बस 2 बेचारे बच्चे डरते रहे.”

हंसी के ठहाड़ों से घर के दीवार चहक उठे थे और शेखर सुधा को मुग्ध नजरों से निहारते जा रहे थे.

Dr. Bushra Ateeq: A Beacon of Excellence in Cancer Research

Dr. Bushra Ateeq is a leading cancer biologist and molecular oncologist. She is currently a Professor in the Department of Biological Sciences and Bioengineering at the Indian Institute of Technology (IIT) Kanpur.

Dr. Ateeq’s passion for biology was evident from her high school years, which led her to pursue higher education in genetics. After earning her PhD in this field, she engaged in postdoctoral research at several prestigious institutions, including the All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) in New Delhi and the National Institute of Immunology (NII).

She continued her research at McGill University in Montreal, Canada, and later at the Michigan Center for Translational Pathology at the University of Michigan, where she also served as a Research Investigator (Junior Faculty). In February 2013, she joined IIT Kanpur, where she has played a key role in advancing cancer research.

Recognition:

Dr. Ateeq was honored with the Grihshobha Inspire Award, and her writing and research have earned her numerous accolades.

Research Focus and Contributions:

Dr. Ateeq’s research focuses on understanding genetic and epigenetic alterations in cancer. Her work has led to significant discoveries in molecular characterization and potential therapeutic targets. Her research has been published in various prestigious medical journals and continues to receive recognition.

She has made vital contributions in identifying biomarkers for prostate cancer, which has helped improve diagnostic and therapeutic strategies. Prostate cancer is increasingly affecting men over the age of 50 in India, and alarmingly, it is now also being seen in men as young as 30, largely due to lifestyle disorders. Only about 2–3% of cases are due to genetic reasons.

According to Dr. Ateeq, early detection, along with a balanced diet, regular exercise, and symptom-based monitoring, can help in managing the condition effectively.

Bridging Lab and Clinic:

Dr. Ateeq’s commitment to translational research helps bridge the gap between laboratory discoveries and clinical applications, offering hope for better management and treatment of cancer patients

 Awards and Honors:

Her outstanding work has been recognized with several prestigious awards, including:

  • Shanti Swarup Bhatnagar Prize for Science and Technology (in Medical Science)
  • S. Ramachandran National Bioscience Award
  • Basanti Devi Amir Chand Award in Biotechnology
  • C.N.R. Rao Faculty Award
  • Saeeda Begum Woman Scientist Award
  • P.K. Kelkar Research Award

 A True Inspiration:

Dr. Bushra Ateeq is an inspiration in many ways. Her research spans areas such as:

  • Cancer biomarkers
  • Cancer genomics
  • Non-coding RNA
  • Drug targets
  • Prostate, breast, and colorectal cancers

Her work emphasizes the molecular changes and biomarkers that contribute to the progression of these cancers.

In her own words:

“Our lab aims to discover targets for anti-cancer therapies. Identifying these targets is crucial because early detection significantly increases the chances of successful treatment.”

 

Social Media पर ज्योतिषी का धंधा, निशाने पर क्यों हैं बौलीवुड स्टार्स

Social Media : यों तकदीर और तदबीर की अगर बात करें तो तकदीर भी तब पलट जाती है जब तदबीर यानि कर्मों का लेखाजोखा सही होता है.अगर आप के कर्म अच्छे हैं तो कई बार आप बड़ीबड़ी मुसीबतों से ऐसे निकल जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. लेकिन आज के आधुनिक युग में जब की लोग चांद पर घर बनाने की योजना बना रहे हैं, ऐसे समय में कुछ लोगों को अपने से ज्यादा ज्योतिषों पर विश्वास है. इसी बात का फायदा उठाते हुए कई ऐसे लोग जो ज्योतिष हैं भी नहीं वे पैसा कमाने के लालच में ज्योतिषी बनने पर तुले हुए हैं क्योंकि आज के समय में जितना नाम, शोहरत और पैसा इस प्रोफेशन में है उतना कहीं और नहीं है.

लिहाजा, कई लोग जो ज्योतिषी बनने से पहले किसी और प्रोफेशन में थे, जैसे टीचर, मौडल, बिजनैस वूमन आदि वे सभी थोड़ाबहुत ज्योतिष विद्या का ज्ञान ले कर जैसे वास्तुशास्त्र, टैरोट रीडिंग, अंकशास्त्र सीख कर धड़ल्ले से अपनी ज्योतिषी की दुकान चला कर नोट छाप रहे हैं.

गौरतलब है कि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो पहले किसी दूसरे प्रोफेशन में थे जैसे टीचर, बिजनैस वूमन आदि, मगर वे अचानक से ही ज्योतिष बन कर सोशल मीडिया पर ज्योतिषी कर के नाम और पैसा कमाने लगे और उन का यह धंधा आज फलफूल भी रहा है.

इस की खास वजह यह है कि हमारे देश में अंधविश्वास से भरे लोगों की कोई कमी नहीं है.इसलिए सोशल मीडिया हो या कोई और जगह, ज्योतिष विद्या के नाम पर सो काल्ड ज्योतिष भविष्य बता कर और खराब ग्रहों से बचने के लिए तरहतरह के उपाय बता कर अपना धंधा अच्छे से चला रहे हैं.

यही वजह है कि पुराने जमाने में जहां ज्योतिष छोटे से घर या कुटिया में रहते थे, गरीबी में जीते थे, वहीं अब ये महंगी कारों में घूमते हैं और आलीशान घरों में रहते हैं. मजे की बात तो यह है कि इन के खुद के घरों में शांति नहीं होती, हजारों मुसीबतों से घिरी होती है इन की जिंदगी लेकिन दूसरों को ज्योतिषी के जरीए ज्ञान बांटने से पीछे नहीं हटते और इस के लिए अच्छेखासे पैसे भी लेते हैं.

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जिस के पास कोई छोटीबड़ी दिक्कतें न हों या वह पूरी तरह से खुश हो. लिहाजा, इसी बात का फायदा उठा कर गलीनुक्कड़ से ले कर अदानी अंबानी, ग्लैमर वर्ल्ड फिल्म स्टार्स तक विभिन्न तरह के ज्योतिषों के मायाजाल में फंसे हुए हैं. ये सारे ज्योतिष ‘महंगी दुकान सस्ता पकवान’ का रास्ता अपनाते हुए अपने पास आए हुए लोगों को मुसीबतों से छुटकारा दिलाने का नाटक करते हैं और लाखोंकरोड़ों में पैसे कमाते हैं क्योंकि वे ऐसे लोगों को ही टारगेट बनाते हैं, जिन को अपनी सफलता नाम, शोहरत, पैसा खोने का डर सब से ज्यादा होता है और वे लोग जो इस सफलता को पाने के लिए किए गए अच्छेबुरे कर्मों की बदौलत दिलों में डर लिए बैठे हैं.

इसी डर का फायदा उठाते हुए इन बड़ी हस्तियों से जुड़े ज्योतिष नाम, शोहरत, पैसा भरभर के कमाते हैं.
सही शब्दों में कहें तो इंसान जितना ज्यादा अमीर होता है ज्योतिषों के मायाजाल में उतना ही ज्यादा फंसा होता है क्योंकि उस को अपनी मेहनत और कर्मों से ज्यादा ज्योतिषी द्वारा दिए गए टोनेटोटके, तंत्रमंत्र पर विश्वास होता है.

बौलीवुड स्टार्स को टारगेट बना कर और यूट्यूबर्स के जरीए काली कमाई

लाइमलाइट में आने के लिए स्टार्स की पर्सनल लाइफ पर कमैंट कर के पैसे और पब्लिसिटी पाना आम बात है. जैसे कि अगर कोई बड़ा स्टार एक आम इंसान को बीच रास्ते पर थप्पड़ मार देता है तो वह स्टार भले ही बदनाम हो जाए लेकिन थप्पड़ खाने वाला इंसान जरूर मशहूर हो जाता है.

यही वजह है कि कई बार लोग स्टार को जानबूझ कर टारगेट बनाते हैं ताकि वह किसी तरह मशहूर हो सके.

ऐसा ही कुछ आज प्रसिद्धि पाने के लिए और लाइमलाइट में आने के लिए कई ज्योतिष भी यह तरीका अपना रहे हैं ताकि वे प्रसिद्ध भी हो जाएं और ज्योतिष का धंधा भी चल निकले. इसी के चलते आजकल यूट्यूब में कई सारे यूट्यूबर्स ऐसे ज्योतिषियों का इंटरव्यू लेते हैं जो खुद पैसा दे कर जानेमाने यूट्यूबर्स को इंटरव्यू करने के लिए कहते हैं और उस इंटरव्यू के दौरान ये पैसे दे कर भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिष जानबूझ कर प्रसिद्ध कलाकारों को ले कर बिना सिरपैर के तीखे कमेंट करते हैं.

जैसे करीना सैफ अली का जल्दी ही तलाक हो जाएगा, शाहरुख सलमान खान को भयानक बीमारी हो जाएगी, सलमान का कैरियर खत्म होने वाला है, शाहरुख खान बैंक करप्ट हो चुके हैं आदि सारे कमेंट्स कुछ ज्योतिष जानबूझ कर करते हैं ताकि ऐसे कमेंट्स दर्शकों का ध्यान खींच सकें और इसी बहाने उन ज्योतिषों को पब्लिसिटी मिल सके और काफी हद तक ऐसा होता भी है.

स्टारों के खिलाफ भड़काऊ भविष्यवाणी दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ खींचने में ये कामयाब भी हो जाते हैं जिस का फायदा यूट्यूबर्स और ज्योतिष दोनों उठाते हैं और अच्छाखासा पैसा भी कमाते हैं. पर्सनली बड़े स्टार्स के पास इतना टाइम भी नहीं होता है ऐसे ज्योतिषों की भविष्यवाणी पर गौर करें लेकिन स्टारों का सहारा ले कर उन की पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को टारगेट बना कर पब्लिसिटी और पैसों के भूखे लालची ज्योतिष जरूर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं.

बौलीवुड स्टार सब से ज्यादा ज्योतिषों के जाल में फंसे हुए हैं

अगर फिल्म इंडस्ट्री की बात करें तो ज्योतिष विद्या के नाम पर यह गोरखधंधा फिल्मी सितारों के बीच सब से ज्यादा पनप रहा है.अमिताभ बच्चन से ले कर सलमान, शाहरुख, अक्षय कुमार तक और एकता कपूर से ले कर रश्मिका मंदना, करीना तक कई सारे फिल्मी कलाकार ज्योतिषों के पास चक्कर लगाते रहते हैं और अपने गले में, हाथों में ज्योतिषों द्वारा सुझाई गई राशियों के हिसाब से अंगूठियां, हार पहन कर घूमते हैं.

एकता कपूर इस बात का जीताजाता उदाहरण हैं, जो सब से ज्यादा ज्योतिष पर विश्वास करती हैं.
लेकिन ऐसे लोगों को यह बात समझ में क्यों नहीं आती कि अगर सही में ज्योतिष भविष्य की जानकारी दे सकते हैं तो शाहरुख के बेटे आर्यन खान को जेल जाने से पहले आगाह क्यों नहीं किया? सलमान खान, संजय दत्त को जेल जाने से पहले क्यों नहीं रोक पाए?

सब से बड़ी बात करोना महामारी के बारे में जो तबाही मची थी, इस बड़े सकंट की जानकारी किसी भी ज्योतिषों ने पहले से क्यों नहीं दी?

कहने का मतलब यह है कि भविष्य में या 2 पल के बाद ही क्या अच्छा या क्या बुरा होने वाला है, यह किसी को नहीं पता होता क्योंकि वैज्ञानिक समुदाय के अनुसार ज्योतिषशास्त्र एक विज्ञान है, जिसे मानना या न मानना आप के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है. ज्योतिषी की भविष्यवाणी सटीक नहीं होती.

वैज्ञानिक समुदाय ने ज्योतिष विद्या को अस्वीकार किया है. बावजूद इस के भारत में लाखों लोग ज्योतिषों के मायाजाल में फंस कर अंधविश्वास को बढ़ावा देते हुए तंत्रमंत्र के नाम पर अपराध और गलत काम भी कर रहे हैं ताकि वह खुद खुश और सुखी रह सकें और उन की इच्छाएं पूरी हों. भले ही उन को इस की कोई भी कीमत चुकानी पड़े जोकि बहुत गलत और निराशाजनक है.

50 वर्षीय स्मार्ट हैंडसम सफल कोरियोग्राफर टेरेंस लेविस क्यों हैं शादी के खिलाफ

Terence Lewis : एक समय था जब नवयुवक जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही अपनी शादी के बारे में सोचने लगते थे. मन में यही इच्छा होती थी की कब मनपसंद जीवन साथी मिले और विवाह के बंधन में बन जाए, आज इसका बिल्कुल उल्टा है अब लोग शादी को टेंशन और जिम्मेदारी मानकर शादी से दूर भाग रहे हैं. ऐसा ही कुछ प्रसिद्ध कोरियोग्राफर और डांसिंग शो के जज टेरेंस लेविस के साथ भी है जो शादी को एक बोझ समझते हैं और शादी करने से बच रहे हैं.

टेरेंस लेविस ने शादी न करने की वजह और आजीवन कुंवारा रहने के पीछे का रहस्य बताते हुए कहा मुझे नहीं लगता खुश रहने के लिए शादी करना जरूरी है, मैं 10 सालों तक लिव दिन में रह चुका हूं और उस दौरान मैने महसूस किया कि खुश रहने के लिए शादी करना जरूरी नहीं है. कोरियोग्राफर टेरेंस लेविस के अनुसार वह शादी करके घर जिम्मेदारी उठाने के बजाय अपने साथ वक्त गुजारना ज्यादा पसंद करेंगे . टेरेंस के अनुसार 12 घंटे लगातार काम करने के बाद मुझे किसी की शक्ल देखना भी अच्छा नहीं लगता , उस वक्त में सिर्फ अपने साथ वक्त गुजारना चाहता हूं. शादी करके मैं और जिम्मेदारी और टेंशन नहीं चाहता. इससे अच्छा मैं आजीवन कुंवारा रहूं और अच्छा जीवन गुजार. टेरेंस के अनुसार मेरे ऊपर पहले ही बहुत सारी जिम्मेदारियां है ऐसे में शादी के बंधन में बंध के मै और टेंशन नहीं लेना चाहता इसीलिए मैं आजीवन कुंवारा रहकर हमेशा खुश रहना चाहता हूं.

पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में एक महिला निर्देशक को खुद को साबित करना आसान नहीं होता : Arati Kadav

Arati Kadav : किसी भी फिल्म का निर्देशन हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है. सही निर्देशन फिल्म को बड़ी सफलता तक ले जाता है, वहीं गलत निर्देशन से फिल्म ठंडे बस्ते में चली जाती है और निर्देशक को फिर से एक नई फिल्म बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है.

आरती कदव उन्हीं फिल्म निर्देशकों में से हैं, जो निर्देशन की बारीकियां जानती हैं.

महाराष्ट्र के नागपुर की आरती ने आईआईटी कानपुर से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की है और अमेरिका नौकरी करने चली गईं. वहां जा कर भी उन का जनून औफिस नहीं, फिल्म निर्माण का था. ऐसे में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और इस क्षेत्र में चली आईं और छोटीछोटी फिल्मों का निर्माण करने लगीं.

आरती को हमेशा से साइंस फिक्शन पसंद रहा, लेकिन इन फिल्मों को पसंद करने वाले बौलीवुड में कम लोग हैं, पर आरती ने चुनौती ली और साइंस फिक्शन फिल्म कार्गो बनाई जिसे दर्शकों ने पसंद किया.

आज आरती हर तरीके की कहानी से दर्शकों को परिचय करवाना चाहती हैं. यही वजह है कि पिछले दिनों आरती ने फिल्म मिसेज (Mrs) बनाई है, जो एक आम स्त्री की जिंदगी से प्रेरित कहानी है. यह कहानी एक महिला के उद्देश्य और उन की इच्छा को शादी के बाद दबा देना और परिवार की सेवा में खुद को लगा देना कितना तनावपूर्ण होता है, उसे दिखाया गया है, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.

आरती ने अपनी जर्नी के बारे में गृहशोभा से खास बात की. आइए, जानते हैं उन की कहानी उन की ही जबानी :

रिलेटेबल कहानी

फिल्म ‘मिसेज’ के बाद अभी आरती एक साइंस फिक्शन पर काम कर रही हैं, जो उन्हें हमेशा से प्रेरित करती है. उन का सपना साइंस फिक्शन को इंडिया में मैन स्ट्रीम में लाने का है, जो यहां नहीं है. वे कहती हैं कि मेरी फिल्म ‘मिसेज’ दर्शकों को काफी पसंद आई है, जो मुझे अच्छा लग रहा है. इस कहानी को कहने के पीछे मेरी इच्छा आज की महिलाओं को जागरूक करना था. आज की मौडर्न पढ़ीलिखी स्त्री ऐसी समस्याओं से काफी परेशान होती है और यह आज की कहानी है। इसे करने के लिए फिल्म मेकर हरमन बवेजा ने बुलाया था। उन्होंने कहा था कि उन्होंने एक मलयालम फिल्म देखी है, जो आज की परिवेश के अनुसार है.

जागरूक होना जरूरी

आरती आगे कहती हैं कि इस की कहानी आज की दुनिया में एक नारी की घुटन को बताती है, जिसे सब को देखना चाहिए। ये बातें मुझे अच्छी लगीं और मैं ने इस फिल्म को बनाई. पहले तो मुझे लगा था कि एक बनी हुई फिल्म को फिर से बनाने का कोई अर्थ नहीं होता, लेकिन अभिनेत्री सानिया मल्होत्रा ने मुझे ऐसी कई महिलाओं से मिलवाया, जो ऐसी ही समस्याओं से ग्रसित थीं.

एक लड़की जो छोटी उम्र की थी, उस की शादी हो जाने के बाद उस की सारी इच्छाएं ससुराल जा कर मर चुकी थी। वह अपनी कहानी कहती हुई रोने लगी थी। उस की कहानी ने मुझे अंदर से झकझोर दिया था. इस तरह फिल्म ‘मिसेज’ की कहानी रियल है और मुझे इसे डाइरैक्ट करने के लिए एक बार भी सोचना नहीं पड़ा.

इस के अलावा अभिनेत्री सानिया मल्होत्रा के साथ इस फिल्म को बनाना मेरी लिए अच्छी बात रही, क्योंकि सानिया से लड़कियां रिलेट कर पाती हैं और उस की सहज ऐक्टिंग दर्शकों को पसंद आती है.

इस कहानी के जरीए मैं ने लोगों को बताया कि घर संभालने वाली एक स्त्री बहुत काम करती है। उसे न तो पैसे मिलते हैं और न ही इज्जत. मैं खुद भी सोचती हूं कि मैं ने मां की इच्छाओं को कभी देखा नहीं है। उन के सपने, पैशन के बारे में कभी सोचा भी नहीं है. मैं ने हमेशा उन से खुद की डिमांड पूरी की है.

हमारे परिवार और समाज में कुछ लोग एक स्त्री की इच्छा को जाने बिना होममेकर की काम की तारीफें करते हैं. कई ऐक्ट्रैस के साथ भी ऐसा हुआ है कि शादी के बाद वे काम छोड़ कर परिवार देखती हैं और इस की तारीफ मीडिया और आसपास के लोग करते हैं. मेरे हिसाब से यह तारीफ की बात नहीं है. बच्चे होने पर आप सब छोड़ कर परिवार संभालें, यह किसी भी प्रकार से एक स्त्री के लिए उचित नहीं होता। समाज चाहे जो भी कह ले, मैं मान नहीं सकती. अभी थोड़े बदलाव हुए हैं, लेकिन और अधिक होना बाकी है.

नए कौंसेप्ट से परिचय करवाना नहीं आसान

निर्देशक आरती कहती हैं कि नए कौंसेप्ट को दर्शकों से परिचय करवाना हमेशा कठिन होता है, लेकिन प्रोड्यूसर हरमन बवेजा की वजह से समस्या नहीं आई, क्योंकि यह उन की कहानी थी, लेकिन उस कहानी को अपना बनाने में समय लगा है. अभी आगे भी मेरी हर कहानी नई होगी और इसे मैं आम जनजीवन से जोड़ कर लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करती रहूंगी.

आज कोई भी फिल्ममेकर नई कहानी कहने से डरते हैं. आज केवल 2 तरह की फिल्में बन रही हैं, कुछ मसाला टाइप, जो इधरउधर से बोरो कर मिल रहे हैं, कुछ ओटीटी वालों की एक फिक्स्ड फौर्मूला होता है.

मेरे हिसाब से अच्छी फिल्म बनाने पर दर्शक उसे हमेशा पसंद करते हैं. इस के अलावा आज एक नया नाम क्रिएटिव प्रोड्यूसर सब की जबान पर है, जो काफी प्रचलित है, जो न तो निर्माता, निर्देशक है और न ही लेखक. वे इधरउधर की चीजों को जोड़ कर कुछ भी बना देते हैं और फिल्में फ्लौप होती हैं. पुराने समय के निर्माता, निर्देशक, लेखक अब नहीं रहे, जिन का पैशन एक अच्छी कहानी को सच्चे दिल से कहना हुआ करता था.

मिली प्रेरणा

इस क्षेत्र में आने के बारे में पूछने पर आरती कहती हैं कि मुझे बचपन से स्टोरी टेलिंग का बहुत शौक था और मैं एक मध्यवर्गीय परिवार में पलीबड़ी हुई हूं। ऐसे में स्टोरी टेलिंग की बात बहुत दूर की थी, क्योंकि इसे कोई प्रोफेशन मान नहीं सकता था. इसलिए मैं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और जौब करने लगी। थोड़ी वित्तीय रूप से मजबूत होने पर मैं ने खुद के लिए कैमरा खरीदा और छोटीछोटी फिल्में बनाने लगी। ऐसा करतेकरते मैं सीरियस हुई, फिल्म स्कूल गई और डाइरैक्शन सीखा, फिर आगे बढ़ी. मेरी पहली साइंस फिक्शन फिल्म ‘कार्गो’ को काफी अच्छा रिस्पांस मिला है.

परिवार का सहयोग

पहली बार परिवार को अपनी इच्छा जाहिर करने पर उन के पिता राजी नहीं हुए थे, क्योंकि इस क्षेत्र में आगे बढ़ना आसान नहीं होता.

आरती कहती हैं कि मेरी मां बहुत सपोर्ट करती थीं, लेकिन मेरे पिता को डाऊट था कि मैं ठीक कर रही हूं या नहीं, क्योंकि उन के हिसाब से मैं एक अच्छी जौब छोड़ कर आर्ट्स के क्षेत्र में जा रही हूं, जहां संघर्ष बहुत अधिक है, लेकिन सफलता की गारंटी बहुत कम होती है.

यह सही है कि मैं ने 8 से 10 साल तक बहुत संघर्ष किए, लेकिन उसी संघर्ष ने मुझे हंबल और एक अच्छा फिल्म मेकर बनाया.

रहा संघर्ष

आरती का आगे कहना है कि मैं इंडस्ट्री से बाहर की हूं, मुझे कोई आसानी से फीचर फिल्म बनाने के लिए बुलाएगा नहीं, इसलिए मैं ने छोटीछोटी फिल्में बना कर अपने टेलैंट से सब को परिचय करवाया. इस के अलावा इन छोटीछोटी फिल्मों को बनाने से मेरी एक टीम बनी, जो अब मेरे साथ काम कर रही है. धीरेधीरे मैं मैनस्ट्रीम में घुस पाई. मुझे आगे बढ़ने में समय बहुत लगा है, क्योंकि शौर्ट फिल्मों का कोई मार्केट नहीं होता, इसे शूट करने में खर्चे भी आते थे, जिसे संभालना पड़ा, लेकिन इन फिल्मों के फैस्टिवल में जाने से मेरी पहचान बनती रही.

गौडफादर के बिना इंडस्ट्री में टिके रहना नहीं आसान

आज कोई भी मेरे पास आ कर अपनी पैशन फिल्म बनाने की कहता है तो मैं उसे सब से पहले इंडस्ट्री की चुनौतियों को बताती हूं, क्योंकि मेरे समय में मुझे इतना पता नहीं था और न ही बताने वाला कोई था। मैं बहुत संघर्ष कर यहां तक पहुंची हूं और आगे भी कई चुनौतियां हैं. आज यह अच्छी बात हुई है कि ओटीटी आ चुका है। इस से नए फिल्ममेकर को काम मिल रहा है, लेकिन आज से 10 साल पहले मैं जब फिल्म स्कूल से निकली थी, तब वैसा नहीं था. तब काम मिलना भी बहुत कठिन था.

पहला ब्रेक

मैं ने एक म्यूजिक वीडियो इंडियन ओशन के लिए बनाई थी, जिसे अनुराग कश्यप ने देखा और उन्हें अच्छा लगा था. उस दौरान फीचर फिल्म की एक स्क्रिप्ट लिख कर मैं ने कई बड़े फिल्म मेकर को दिखाई भी थी, हालांकि कुछ कारणों से वह फिल्म बनी नहीं, लेकिन मेरी अच्छी नेटवर्किंग हो गई थी. इस से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा। मैं पहली फिल्म कार्गो विक्रांत मासी को ले कर बना पाई, जिस में अनुराग कश्यप का सहयोग था. पहली फिल्म के बाद लोग मुझे जानने लगे थे, क्योंकि मैं ने विक्रांत मासी के साथ काम किया था. निर्माता, निर्देशक मुझ से मिलने आते थे, इस से मुझे ‘मिसेज’ फिल्म करने का मौका मिला.

महिला निर्देशक को लगता है अधिक समय

पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में एक महिला निर्देशक के लिए लोगों का अच्छा सोचना कठिन होता है, क्योंकि उन्हें विश्वास दिलाना मुश्किल होता है कि वह अच्छा काम कर सकती है.

आरती कहती हैं मुझे भी इस चीज का बहुत सामना करना पड़ा, लोगों ने पहले मुझे सीरियसली नहीं लिया। समय लगा है, इसलिए मैं ने शौर्ट फिल्में बनाई ताकि लोग मेरे काम को देख सकें.

इंडस्ट्री कठिन है और महिला निर्देशक को कामयाबी के लिए थोड़ा अधिक समय लगता है.

अमला रुइया : कड़ी मेहनत से राजस्थान के सैकड़ों गांवों में पानी पहुंचाया

अमला रुइया का जन्म हालांकि 1946 में यूपी के एक संपन्न परिवार में हुआ और परवरिश एक साहित्यिक और आध्यात्मिक माहौल में हुई, मगर अमला रुइया ने कम उम्र से ही समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को पहचानना आरंभ कर दिया था. इसी कारण उन्होंने पहला अवसर मिलते ही स्वयं को सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित कर दिया.

राजस्थान, एक ऐसा क्षेत्र है जो अकसर पानी की कमी से जूझता रहता है. जहां घरों में पीने तक का पानी नहीं होता, नहाने की तो बात ही छोड़ दीजिए. घर की औरतों को परिवार की पानी की जरूरत पूरी करने के लिए मीलों चल कर पानी के घड़े सिर पर ढो कर लाने पड़ते हैं.

राजस्थान के ग्रामीण समुदाय की औरतों के सामने दिनरात खड़ी ऐसी चुनौतियों ने जवान होती अमला रुइया की सोच और समझ को आकार देना शुरू किया. 1999-2000 और 2003 में राजस्थान में पड़े गंभीर सूखे की स्थिति ने अमला रुइया को बहुत परेशान किया. इसी घटना के बाद वे गांवों में जल संचयन के प्रति प्रेरित हुईं और जल सुरक्षा प्रदान करने वाले चैक डैम बनाने के लिए गांवों के साथ सा झेदारी करने के लिए आकार चैरिटेबल ट्रस्ट (एसीटी) की स्थापना की.

गांवों की सूरत बदल दी

चैक डैम बनाने की उन की प्रमुख पहल ने पूरे भारत में 450 से अधिक गांवों में 2 मिलियन से अधिक लोगों के जीवन को बदल दिया. मौसमी धाराओं पर बनाए गए छोटे ढांचे, चैक डैम, पानी को जमीन में रिसने देते हैं, जलभृतों को भरते हैं और सालभर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं. अमला ने समुदायों को श्रम और संसाधनों का योगदान करने के लिए प्रेरित किया, जिस से परियोजनाओं के लिए स्वामित्व और स्थिरता की भावना सुनिश्चित हुई.

अमला रुइया ने राजस्थान के सैकड़ों गांवों में पानी पहुंचाया. उन्होंने पारंपरिक जल संचयन तकनीकों का उपयोग कर के और चैक डैम बना कर राजस्थान के गांवों की सूरत बदल दी और यह सब स्थानीय समुदाय को शामिल कर के संभव हुआ.

नहीं देखा पीछे मुड़ कर

अमला का पहला प्रोजैक्ट मंडावर गांव में था. इस प्रोजैक्ट को बड़ी सफलता मिली और किसानों ने उन की ट्रस्ट द्वारा बनाए गए 2 चैक डैम की मदद से 1 साल के भीतर 12 करोड़ रुपए कमाए. उस के बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. एसीटी ने राजस्थान के 100 गांवों में 200 चैक डैम का निर्माण किया है और 2 लाख से अधिक लोगों को लाभ पहुंचाया है जो अब प्रति वर्ष 300 करोड़ रुपए की संयुक्त आय अर्जित करते हैं.

किसानों की जिंदगी बदली पानी के लिए अमला की लड़ाई का यह नतीजा निकला कि पहले जो किसान साल में मुश्किल से एक फसल उगा पाते थे, वे अब साल में 3 फसलें उगा पा रहे हैं. अच्छी फसल की वजह से किसानों की आमदनी बढ़ी है, इसलिए किसानों ने पशुपालन भी शुरू कर दिया है. अमला की मेहनत ने धीरेधीरे किसानों की जिंदगी बदलने का काम किया.

जिन घरों को जल संग्रहण का फायदा मिला आज उन घरों में 8 से 10 मवेशी हैं और दूध, घी और खोया से अतिरिक्त आय हो रही है. आमदनी बढ़ने का मतलब यह भी है कि अब हर परिवार के पास 1 से 2 मोटरसाइकिल और हर गांव के पास 4-5 ट्रैक्टर हैं. यह ग्रामीण भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है.

Sexual Life : सेक्सुअल लाइफ की प्रौब्लम से परेशान हूं, मैं क्या करूं ?

 Sexual Life :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 48 साल की हूं. सैक्स की इच्छा होती है पर गीलापन कम होता है. ऐसा नहीं है कि मैं चरम पर नहीं पहुंचती. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

संभव है कि यह समस्या मेनोपौज की वजह से हो रही हो, क्योंकि मेनोपौज के बाद शरीर में फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन की कमी हो जाती है और इस से भी यह समस्या हो जाती है.

शरीर में ऐस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए आप आहार संबंधी जरूरतों पर ध्यान दें. खाने में मौसमी फल, हरी सब्जियां, दूध, पनीर आदि का नियमित सेवन करें और नियमित टहलें, व्यायाम करें.

सैक्स करते वक्त आप फिलहाल क्रीम का प्रयोग कर सकती हैं. इस से चिकनाई बनी रहेगी और सैक्स में आनंद भी आएगा. बेहतर है कि सैक्स से पहले फोरप्ले करें. इस से भी काफी हद तक सूखेपन की समस्या से बचा जा सकता है.

ये भी पढ़ें-

टैम्पोन और मासिक धर्म कप को “स्त्री स्वच्छता उत्पाद” में ही गिना जाता है. पीरियड्स के दौरान वैजाइना से निकलने वाले रक्त और टिश्यू को सोखने या इकट्ठा करने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है .

टैम्पोन और मैन्सट्रुअल कप क्या हैं?

टैम्पोन और मैन्सट्रुअल कप आपको सामान्य जीवन का अनुभव कराते हैं. टैम्पोन कॉटन से बने छोटे प्लग होते हैं, जो आपकी वैजाइना के अंदर फिट होते हैं और पीरियड में आने वाले खून को सोखते हैं. कुछ टैम्पोन ऐप्लिकेटर के साथ आते हैं जो इसे वैजाइना में डालने में मदद करते हैं. टैम्पोन के अंत में एक स्ट्रिंग जुड़ी होती है, जिससे आप उन्हें आसानी से खींच सकते हैं.

मैंस्ट्रुअल कप छोटे घंटी या कटोरे के आकार के होते हैं और वे रबड़, सिलिकॉन या नरम प्लास्टिक से बने होते हैं. वजाइना के अंदर कप को पहना जाता हैं और यह पीरियड में निकले रक्त को एकत्र कर लेता है . ज्यादातर कप दोबारा उपयोग में लाए जा सकते हैं. ज़रुरत के हिसाब से आपको इसकी आवश्यकता होती है. आवश्यकता के बाद इसे धो लें और फिर से उपयोग करें. अन्य कप डिस्पोजेबल होते हैं और आप इन्हें एक बार या एक पीरियड चक्र के बाद फेंक सकते हैं.

टैम्पोन का उपयोग कैसे करें ?

टैम्पोन कईं तरह से उपलब्ध हैं, जैसे – लाइट, रेगुलर और सुपर . कुछ टैम्पोन एप्लीकेटर्स के साथ आते हैं – कार्डबोर्ड या प्लास्टिक से बनी छोटी स्टिक्स, जो वजाइना में टैम्पोन डालने में मदद करती हैं और कुछ टैम्पोन के पास एप्लीकेटर नहीं होता, इसलिए आप उन्हें अपनी उंगली से डालते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Top Hindi Kahaniyan : टौप 10 हिंदी कहानियां

Top  Hindi Kahaniyan : समाज से जुड़ी कुछ नीतियां और कुरीतियां सभी को माननी पड़ती हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो इन नियमों को मानने की बजाय अपना रास्ता खुद बनाने का प्रयास करते हैं. हालांकि इस रास्ते पर उनकी जिंदगी में कई मुश्किलें आती है. लेकिन वह बिना हार माने अपनी जीत हासिल करते हैं. तो इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की Top 10 Story in Hindi. समाज का एक पहलू दिखाती ये कहानियां आपकी लाइफ में गहरी छाप छोड़ेंगी. तो पढ़िए गृहशोभा की Top 10 Story in Hindi.

1. पीला गुलाब: क्यों कांपने लगे उसके हाथ

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एक महीना पहले ही हमारी शादी हुई थी, लेकिन लड़कियों के मामले में इन की ऐसी बातें मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती थीं. पर ये थे कि ऐसी बातों से बाज ही नहीं आते.

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2. सीलन-उमा बचपन की सहेली से क्यों अलग हो गई?

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उस ने मेरी ओर देखा और फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘जब तक जवान थी, यहां भीड़ हुआ करती थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी.

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3. उस रात का सच : क्या थी असलियत

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महेंद्र को यकीन था कि हरिद्वार थाने में वह ज्यादा दिनों तक थानेदार के पद पर नहीं रहेगा, इसीलिए नोएडा के थाने में तबादला होते ही उस ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन चला आया.

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4. मजा या सजा : कैसे बदल गया बालकिशन

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वह उस रेल से पहली बार बिहार आ रहा था. इंदौर से पटना की यह रेल लाइन बिहार और मध्य प्रदेश को जोड़ती थी. वह मस्ती में दोपहर के 2 बजे चढ़ा. लेकिन 13-14 घंटे के सफर के बाद वह एक हादसे का शिकार हो गया. पूरी रेल को नुकसान पहुंचा था.

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5. जीने की इच्छा : कैसे अरुण ने दिखाया बड़प्पन

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अरुण के पिता किसी प्राइवेट कंपनी में चपरासी थे. अभी कुछ महीने पहले ही वे रिटायर हुए थे. वे कुछ दिनों से बीमार थे. वे किसी तरह 2 बेटियों की शादी कर चुके थे.

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6. चाल : फहीम ने सिखाया हैदर को सबक

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फहीम अपने होंठ काटने लगा. उसे मालूम था कि हैदर की इस धमकी का क्या मतलब है. फहीम हैदर को देख कर ही समझ गया था कि अब यह गड़े मुर्दे उखाड़ने बैठ जाएगा.

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7. नपुंसक : नौकरानी के जाल में कैसे फंस गए रंजीत

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बड़े बिजनैसमैन रंजीत मल्होत्रा सभ्य शरीफ और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, लेकिन उन की नौकरानी ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि वह बुरी तरह फंस गए. उस जाल में वह कैसे फंसे और कैसे निकले

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8. झूठ से सुकून: शशिकांतजी ने कौनसा झूठ बोला था

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वैलफेयर सोसायटी के आदर्श नागरिक बनने के चक्कर में शशिकांतजी की जो किरकिरी हुई वह तो उन का ही दिल जानता था और इसी कारण उन्होंने जिंदगी का पहला झूठ बोला था.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें…

9. बदबू : कमली की अनोखी कहानी

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कमली अधनींदी सी लेटी हुई थी. आहट सुन कर वह उठ बैठी. देखा कि किसना ने कुछ नोट निकाले और उन्हें अलमारी में रखने लगा. कमली की आंखें खुशी से चमक उठीं.

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10. और सीता जीत गई

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वकील ने कहा, ‘मारपीट कर लेने के बाद वे जब कोर्ट में पेश करेंगे, तब गिरफ्तारी दिखाएंगे. जब तक वे थाने के बाहर कहीं रखेंगे. रात को ला कर मारपीट करने के बाद जांच पूरी करेंगे.

Hindi Moral Tales : तीन सखियां – पड़ोसन को दामिनी के दोस्तों से क्या दिक्कत थी

Hindi Moral Tales : अपनी नई नई गृहस्थी सजासंवार कर गंगा, दामिनी और कृष्णा सोफे पर ही पसर गईं. गंगा ने कहा, ‘‘चलो, भई, अब शुरू करते हैं नया जीवन, बैस्ट औफ लक.’’

‘‘हां, सेम टू यू,’’ दामिनी ने कहा तो कृष्णा कहने लगी, ‘‘शुरुआत कुछ शानदार होनी चाहिए, डिनर करने बाहर चलें? 2 दिन से अब फुरसत मिली है.’’

गंगा ने कहा, ‘‘हां, ठीक है, 7 बज रहे हैं. दामिनी, कल तुम्हें औफिस भी जाना है. चलो फिर, जल्दी डिनर कर के आते हैं. टाइम से आ कर आराम कर लेना. श्यामा भी कल से ही काम पर आएगी. बोलो, कहां चलना है?’’

दामिनी ने कहा, ‘‘शिवसागर चलते हैं.’’

कृष्णा ने कहा, ‘‘नहीं, फ्यूजन ढाबा चलते हैं.’’

गंगा ने कहा, ‘‘नजदीक ही बार्बेक्यू नेशन चलते हैं.’’

दामिनी ने फटकारा, ‘‘दिमाग खराब हो गया है, गंगा? रात में इतना हैवी डिनर करोगी वहां?’’

गंगा ने भी तेज आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारा दिमाग होगा खराब, एक रात हैवी खाने से क्या हो जाएगा? अरे, नए जीवन की पार्टी तो बनती है न.’’

कृष्णा ने टोका, ‘‘बस, फ्यूजन ढाबा चलेंगे, तुम दोनों तो किसी भी बात पर शुरू हो जाती हो.’’

तीनों की आवाजें धीरेधीरे तेज होने लगीं, अभी 2 दिन पहले ही इस ‘तुलसीधाम सोसायटी’ में तीनों ने फोर बैडरूम का फ्लैट किराए पर लिया था और अभी घर का सामान संभाल कर फ्री हुई थीं.

तीनों की आवाजें तेज होते ही फ्लैट की डोरबैल बजी. तीनों चुप हो गईं. एकदूसरे को देखा. कृष्णा ने कहा, ‘‘यह कोई सीरियल नहीं है, डोरबैल बजते ही एकदूसरे की तरफ देखने के बजाय दरवाजा खोलो. अच्छा, मैं ही देखती हूं.’’

कृष्णा ने दरवाजा खोला. एक महिला खड़ी थी. गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मैं आप के बराबर वाले फ्लैट में रहती हूं. कुछ शोर सा हो रहा था. आप लोग नई आई हैं, कुछ प्रौब्लम है क्या? मैं कुछ हैल्प करूं?’’

इतने में दामिनी और गंगा भी दरवाजे के पास आ कर खड़ी हो गईं. गंगा ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद. हमारे यहां तो अकसर यह शोर होता रहेगा. आप चिंता न करें. हम लोग मजे में हैं.’’

महिला चुपचाप चली गई. दरवाजा बंद कर तीनों खिलखिला कर हंस पड़ीं, दामिनी ने कहा, ‘‘यह बेचारी पड़ोसिन तो हमारे चक्कर में पड़ कर पागल हो जाएगी.’’ इस बात पर तीनों खूब हंसीं.

दामिनी ने कहा, ‘‘चलो, फटाफट तैयार हो जाओ. अब निकलना चाहिए.’’ तीनों अपनेअपने बैडरूम में तैयार होने लगीं. दामिनी ने तैयार हो कर फिर पूछा, ‘‘कहां कर रहे हैं डिनर?’’

कृष्णा ने अपनी शरारती मुसकराहट बिखेरते हुए कहा, ‘‘किसी नई जगह.’’

तीनों तैयार हो कर बाहर निकलीं तो पड़ोसिन महिला से फिर सामना हो गया. वह तीनों को स्टाइलिश कपड़ों में, बढि़या परफ्यूम की खुशबू बिखेरते, हंसीमजाक करते हुए जाते देख हैरान होती रही. क्या औरतें हैं, अभी तो लड़ रही थीं. तीनों ने एक शानदार होटल में डिनर किया. हमेशा की तरह आइसक्रीम खाई और कुछ जरूरी सामान खरीद कर अपने नए संसार में लौट आईं. घर आ कर कपड़े बदले, अपनेअपने बैडरूम में लगा टीवी औन किया. थोड़ी देर अपनी पसंद के प्रोग्राम देखते हुए सुस्ताईं, फिर ड्राइंगरूम में बैठ कर घरगृहस्थी के कामों व सामान पर चर्चा कर के सोने चली गईं. तीनों बहुत थकी हुई थीं. नए घर में आज तीनों की पहली रात थी. कल तक तो दिनभर सामान लगा कर सोने के लिए रात को अपनेअपने पुराने घर में चली जाती थीं, अब तो यही घर उन का सबकुछ था.

पिछले हफ्ते ही तीनों ने इस मिडिलक्लास सोसायटी में तीसरे फ्लोर पर यह 4 बैडरूम  फ्लैट किराए पर लिया था. उन का हर परिचित, रिश्तेदार उन के इस फैसले पर हैरान रह गया था. तीनों अपनेअपने बैड पर सोने लगीं तो तीनों की आंखों के आगे अपना पिछला समय चलचित्र की भांति चलने लगा.

पिछले हफ्ते तक जीवन एक पौश सोसायटी में बिताया था, पर बिल्डिंग अलगअलग थीं. तीनों सोसायटी की ही एक किटी पार्टी की सदस्य भी थीं जिस में 25 साल से ले कर उन की उम्र तक की 15 सदस्य थीं. किटी में ही तीनों का ध्यान एकदूसरे की तरफ गया था. तीनों के विचार, तौरतरीके, स्वभाव, व्यवहार एकदूसरे से खूब मेल खाते थे. तीनों हाउजी खूब उत्साह से खेलती थीं. हर गेम जीतने की कोशिश करती थीं. तीनों बहुत हंसमुख थीं. किटी की अन्य सदस्य जीवन के प्रति उन के सकारात्मक दृष्टिकोण की खुले दिल से तारीफ करती थीं. सब के दिल में उन के लिए प्यार और सम्मान था.

तीनों ही जीवन के 5वें दशक में थीं. फिर भी तीनों सैर पर भी एकसाथ जाने लगी थीं. तीनों का आपसी संबंध दिनपरदिन मजबूत होता गया था. अब तीनों अपनी व्यक्तिगत बातें, अपने सुखदुख एकदूसरे के साथ बांटना चाहती थीं. एक रविवार कृष्णा ने दोनों को फोन कर अपने घर लंच पर बुलाया था. गंगा और दामिनी 12 बजे कृष्णा के घर पहुंच गई थीं. कृष्णा ने बहुत दिल से दोनों की आवभगत की. गंगा और दामिनी ने कृष्णा के बनाए खाने की भरपूर प्रशंसा की. तीनों ने भरपेट खाया. उस के बाद कृष्णा कौफी बना कर ले आई. तीनों आराम से सोफे पर ही पसर गई थीं. कृष्णा ने कहना शुरू किया, ‘जब से हम तीनों मिले हैं, जी उठी हूं मैं, वरना यही सूना घर, वही बोरिंग रुटीन था. पर बाहर तुम लोगों से मिल कर जब घर वापस आती हूं तो घर काटने को दौड़ता है. अकेलापन सहा नहीं जाता.  घर में घड़ी की सूइयां भी ठहरी हुई सी लगती हैं.’

दामिनी ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘कितने साल हो गए आप के पति का स्वर्गवास हुए?’ 15 साल हो गए, 1 ही बेटी है जो आस्ट्रेलिया में पति और बच्चों के साथ रहती है. साल दो साल में कभी वह आ जाती है. कभी मैं चक्कर लगा आती हूं, बस.’

गंगा ने भी अपने बारे में बताया, ‘मेरा भी जीवन ऐसा ही है. आलोक से तलाक के बाद अकेली ही हूं.’

दामिनी ने पूछा, ‘तलाक क्यों हो गया था? कितने साल हो गए?’

‘आलोक से विवाह के 2 साल बाद ही तलाक हो गया था. उस का अपनी किसी सहकर्मी से अफेयर था. मैं ने आपत्ति की तो वह मुझे छोड़ने के लिए तैयार हो गया जिस के बदले में उस ने मुझे इतनी भारी रकम दी कि आज तक मुझे किसी चीज की कमी नहीं है. वह बड़ा बिजनैसमैन था. मेरे नाम मोटा बैंकबैलेंस, गहने, यह फ्लैट, सबकुछ है. एक बेवफा पति से चिपके रहने के बजाय मुझे यह जीवन ही ठीक लगा. मैं भी अब पूरी आजादी से जी रही हूं पर मेरा धीरेधीरे सभी रिश्तेदारों से भी मन खराब होता गया. न मैं उन के ताने सुनना चाहती थी न हमदर्दीभरी बातें इसलिए मैं ने सब को अपने से दूर कर दिया. अकेलापन अब बहुत खलता है पर क्या कर सकते हैं. तुम बताओ दामिनी, तुम ने शादी क्यों नहीं की?’

दामिनी ने एक ठंडी सांस ले कर बताना शुरू किया, ‘पिता नहीं रहे तो चाहेअनचाहे घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आती गई. मैं बड़ी थी. मैं ने खुद पढ़नेलिखने में बहुत मेहनत की, दोनों छोटे भाइयों को पढ़ायालिखाया, मां की देखभाल की. मां और भाइयों को संभालने में काफी उम्र निकल गई. वे भी मेरे विवाह के टौपिक से बचते रहे. एक बार उम्र निकल गई तो विवाह का खयाल मैं ने भी छोड़ दिया. अब मां तो रहीं नहीं, दोनों भाई अपनेअपने परिवार के साथ विदेश में बस गए हैं. मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे पद पर हूं. रुपएपैसे की कमी तो नहीं है पर अकेलापन खलने लगा है. इसी साल मैं 50 की हो रही हूं पर जीवन को मैं रोतेरोते नहीं जीना चाहती. जीवनभर मेहनत की है. जीवन के हर पल का आनंद उठाना चाहती हूं.’

कृष्णा ने कहा, ‘और क्या, हम तीनों ही खुशमिजाज, आर्थिक रूप से मजबूत और नए विचारों वाली महिलाएं हैं. हम क्यों अपना जीवन रोपीट कर बिताएं. जो मिलना था, मिल गया, जो नहीं मिला, बस नहीं मिला. पढ़ा है या सुना है तुम लोगों ने, एक लेखक ने भी कहा है, ‘मन का हो तो अच्छा, न हो तो ज्यादा अच्छा’.’

दामिनी ने खुश हो कर पूछा, ‘अरे, तुम भी यह सब पढ़ती हो क्या?’

‘और क्या, किताबें तो मेरी अब तक सब से अच्छी साथी रही हैं. आओ, तुम्हें अपनी छोटी सी लाइब्रेरी दिखाऊं,’ कह कर कृष्णा उन्हें अपने बैडरूम में ले गई थी.

गंगा भी चहक उठी, ‘अरे वाह, मुझे भी शौक है. मैं भी पढ़ूंगी ये सब.’

उस के बाद तीनों थोड़ी देर बातें करती रही थीं, फिर अपनेअपने घर लौट आईं. तीनों का मन साथ समय बिता कर काफी हलका था. दामिनी की शनिवार, रविवार छुट्टी होती थी. वह अब ये तीनों दिन कृष्णा और गंगा के साथ ही बिताती थी. तीनों के घर काम करने वाली मेड भी एक ही थी अब, श्यामा. कालेज जाने वाली छात्राओं की तरह तीनों सखियां अब किसी एक के घर इकट्ठी होतीं, हंसीमजाक करतीं, कभी मूवी देखने जातीं, कभी शौपिंग जातीं. तीनों को अब किसी अन्य की जरूरत महसूस नहीं होती. ऐसे ही एकदूसरे के सुखदुख को बांटते तीनों की दोस्ती को 2 साल बीत रहे थे.

एक दिन दामिनी ने कृष्णा और गंगा को अपने घर बुलाया हुआ था. तीनों खापी कर उस के बैडरूम में ही लेट गईं. दामिनी को कुछ सोचते हुए देख कर कृष्णा ने पूछा, ‘क्या सोच रही हो, दामिनी?’

‘बहुत कुछ, कुछ नई सी बात.’

‘क्या, बताओ?’

‘समझ नहीं पा रही हूं कि क्या ठीक सोच रही हूं मैं.’

गंगा ने कहा, ‘जल्दी बताओ अब.’

‘अभी दिमाग में आया, हम तीनों ही अकेली हैं, तीनों एकदूसरे के साथ खुश हैं, हम तीनों हमेशा भी तो साथ रह सकती हैं और वैसे भी हमें अपना जीवन जीने के लिए किसी पुरुष के साथ की जरूरत तो है नहीं. हम चाहें तो हमेशा साथ रह कर जीवन की सांध्यवेला में एकदूसरे का सहारा बन सकती हैं. हम तीनों का वन बैडरूम फ्लैट है. ऐसा कर सकते हैं कि आसपास किसी सोसायटी में बड़ा फ्लैट किराए पर ले कर साथ रह कर भी अपनी मरजी से जिएं. सब की प्राइवेसी भी रहे और साथ भी मिलता रहे. अपने फ्लैट किराए पर दे देंगे. सब खर्चे शेयर कर लेंगे. कम से कम घर लौटने पर किसी अपने का चेहरा तो दिखेगा. घर की खाली दीवारें अकेले होने का एहसास तो नहीं कराएंगी.’

गंगा और कृष्णा के मुंह से उत्साहपूर्वक निकला, ‘वाह, दामिनी, क्या बढि़या बात सोची है. यह बहुत अच्छा रहेगा.’

गंगा ने कहा, ‘बहुत मजा आएगा. भविष्य की बेतुकी चिंता में वर्तमान की कुछ बेहतरीन चीजें, कुछ बेहतरीन पल तो हमें इस जीवन में दोबारा नहीं मिलेंगे. फिर इन को खो कर क्यों जिएं. जीवन की राह में बस यों चलते जाना कि सांस जब तक चले, जीना ही पड़ेगा, यह सोच कर क्यों जिएं.’

दामिनी ने कहा, ‘और आजकल तो मैं कई बार सोचती हूं कि मेरे लिए अंदर से दरवाजा खोलने वाला कोई है ही नहीं. हो सकता है कभी मेरे फ्लैट का ताला तोड़ मेरा गला हुआ शव बाहर निकाला जाए. और तब मेरे परिचित मेरी संपत्ति पर हक जताने चले आएंगे.’

कृष्णा कहने लगी, ‘तुम लोग सीरियस मत हो. हमारा अब दोस्ती का सच्चा रिश्ता है जो किसी मांग पर आधारित नहीं है, द्वेष और ईर्ष्या से रहित है, स्वार्थ से परे है.’

तीनों की आंखें भर आई थीं. तीनों एकदूसरे के गले लग गई थीं. तीनों का दिल फूल सा हलका हो गया तो तीनों फिर मस्ती के मूड में आ गईं. अपने अंदर एक नया उत्साह, नई ऊर्जा महसूस की उस दिन तीनों ने. उस के बाद तो भविष्य की योजनाएं बनने लगी थीं. और फिर कई दिन कई घरों को देखने के बाद यह घर फाइनल किया था तीनों ने.  जिस ने भी सुना, हैरान रह गया था. मुंबई की इस सोसायटी में रहने वालों के लिए यह एकदम नया, अद्भुत विचार था. प्रबुद्धजन कह रहे थे, ‘किसी वृद्धाश्रम में जा कर रहने से अच्छा ही है यह आइडिया. समाज के लिए नया उदाहरण पेश कर रही हैं तीनों सखियां.’ उन की किटी पार्टी की सदस्याएं इस नए, उत्साहपूर्ण कदम में उन के साथ थीं. सब ने उन की पूरी सहायता की थी. समाज के लिए एक नई मिसाल कायम कर के तीनों ही अतीतवर्तमान में गोते लगाती हुई बेफिक्री की नींद में डूब चुकी थीं.

Latest Hindi Stories : सोच – आखिर कैसे अपनी जेठानी की दीवानी हो गई सलोनी

Latest Hindi Stories : ‘‘तो कितने दिनों के लिए जा रही हो?’’ प्लेट से एक और समोसा उठाते हुए दीपाली ने पूछा.

‘‘यही कोई 8-10 दिनों के लिए,’’ सलोनी ने उकताए से स्वर में कहा.

औफिस के टी ब्रेक के दौरान दोनों सहेलियां कैंटीन में बैठी बतिया रही थीं.

सलोनी की कुछ महीने पहले ही दीपेन से नईनई शादी हुई थी. दोनों साथ काम करते थे. कब प्यार हुआ पता नहीं चला और फिर चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर अब दोनों शादी कर के एक ही औफिस में काम कर रहे थे, बस डिपार्टमैंट अलग था. सारा दिन एक ही जगह काम करने के बावजूद उन्हें एकदूसरे से मिलनेजुलने की फुरसत नहीं होती थी. आईटी क्षेत्र की नौकरी ही कुछ ऐसी होती है.

‘‘अच्छा एक बात बताओ कि तुम रह कैसे लेती हो उस जगह? तुम ने बताया था कि किसी देहात में है तुम्हारी ससुराल,’’ दीपाली आज पूरे मूड में थी सलोनी को चिढ़ाने के. वह जानती थी ससुराल के नाम से कैसे चिढ़ जाती है सलोनी.

‘‘जाना तो पड़ेगा ही… इकलौती ननद की शादी है. अब कुछ दिन झेल लूंगी,’’ कह सलोनी ने कंधे उचकाए.

‘‘और तुम्हारी जेठानी, क्या बुलाती हो तुम उसे? हां भारतीय नारी अबला बेचारी,’’ और दोनों फक्क से हंस पड़ीं.

‘‘यार मत पूछो… क्या बताऊं? उन्हें देख कर मुझे किसी पुरानी हिंदी फिल्म की हीरोइन याद आ जाती है… एकदम गंवार है गंवार. हाथ भरभर चूडि़यां, मांग सिंदूर से पुती और सिर पर हर वक्त पल्लू टिकाए घूमती है. कौन रहता है आज के जमाने में इस तरह. सच कहूं तो ऐसी पिछड़ी औरतों की वजह से ही मर्द हम औरतों को कमतर समझते हैं… पता नहीं कुछ पढ़ीलिखी है भी या नहीं.’’

‘‘खैर, मुझे क्या? काट लूंगी कुछ दिन किसी तरह. चल, टाइम हो गया है… बौस घूररहा है,’’ और फिर दोनों अपनीअपनी सीट पर लौट गईं.

सलोनी शहर में पलीबढ़ी आधुनिक लड़की थी. दीपेन से शादी के बाद जब उसे पहली बार अपनी ससुराल जाना पड़ा तो उसे वहां की कोई चीज पसंद नहीं आई. उसे पहले कभी किसी गांव में रहने का अवसर नहीं मिला था. 2 दिन में ही उस का जी ऊब गया. उस ठेठ परिवेश में 3-4 दिन रहने के लिए दीपेन ने उसे बड़ी मुश्किल से राजी किया था. शहर में जींसटौप पहन कर आजाद तितली की तरह घूमने वाली सलोनी को साड़ी पहन घूंघट निकाल छुईमुई बन कर बैठना कैसे रास आता… ससुराल वाले पारंपरिक विचारों के लोग थे. उसे ससुर, जेठ के सामने सिर पर पल्लू लेने की हिदायत मिली. सलोनी की सास पुरातनपंथी थीं, मगर जेठानी अवनि बहुत सुलझी हुई थी. छोटी ननद गौरी नई भाभी के आगेपीछे घूमती रहती थी. सलोनी गांव की औरतों की सरलता देख हैरान होती. वह खुद दिल की बुरी नहीं थी, मगर न जाने क्यों पारंपरिक औरतों के बारे में उस के विचार कुछ अलग थे. सिर्फ घरगृहस्थी तक सीमित रहने वाली ये औरतें उस की नजरों में एकदम गंवार थीं.

शहर में अपनी नई अलग गृहस्थी बसा कर सलोनी खुश थी. यहां सासननद का कोई झंझट नहीं था. जो जी में आता वह करती. कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. दीपेन और सलोनी के दोस्त वक्तबेवक्त धमक जाते. घर पर आए दिन पार्टी होती. दिन मौजमस्ती में गुजर रहे थे.

कुछ दिन पहले ही दीपेन की छोटी बहन गौरी की शादी तय हुई थी. शादी का अवसर था. घर में मेहमानों की भीड़ जुटी थी.

गरमी का मौसम उस पर बिजली का कोई ठिकाना नहीं होता था. हाथपंखे से हवा करतेकरते सलोनी का दम निकला जा रहा था. एअरकंडीशन के वातावरण में रहने वाली सलोनी को सिर पर पल्लू रखना भारी लग रहा था. गांव के इन पुराने रीतिरिवाजों से उसे कोफ्त होने लगी.

एकांत मिलते ही सलोनी का गुस्सा फूट पड़ा, ‘‘कहां ले आए तुम मुझे दीपेन? मुझ से नहीं रहा जाता ऐसी बीहड़ जगह में… ऊपर से सिर पर हर वक्त यह पल्लू रखो. इस से तो अच्छा होता मैं यहां आती ही नहीं.’’

‘‘धीरे बोलो सलोनी… यार कुछ दिन ऐडजस्ट कर लो प्लीज. गौरी की शादी के दूसरे ही दिन हम चले जाएंगे,’’ दीपेन ने उसे आश्वस्त करने की कोशिश की.

सलोनी ने बुरा सा मुंह बनाया. बस किसी तरह शादी निबट जाए तो उस की जान छूटे. घर रिश्तेदारों से भरा था. इतने लोगों की जिम्मेदारी घर की बहुओं पर थी. सलोनी को रसोई के कामों का कोई तजरबा नहीं था. घर के काम करना उसे हमेशा हेय लगता था. अपने मायके में भी उस ने कभी मां का हाथ नहीं बंटाया था. ऐसे में ससुराल में जब उसे कोई काम सौंपा जाता तो उस के पसीने छूट जाते. जेठानी अवनि उम्र में कुछ ही साल बड़ी थी, मगर पूरे घर की जिम्मेदारी उस ने हंसीखुशी उठा रखी थी. घर के सब लोग हर काम के लिए अवनि पर निर्भर थे, हर वक्त सब की जबान पर अवनि का नाम होता. सलोनी भी उस घर की बहू थी, मगर उस का वजूद अवनि के सामने जैसे था ही नहीं और सलोनी भी यह बात जल्दी समझ गई थी.

घर के लोगों में अवनि के प्रति प्यारदुलार देख कर सलोनी के मन में जलन की भावना आने लगी कि आखिर वह भी तो उस घर की बहू है… तो फिर सब अवनि को इतना क्यों मानते.

‘‘भाभी, मेरी शर्ट का बटन टूट गया है, जरा टांक दो,’’ बाथरूम से नहा कर निकले दीपेन ने अवनि को आवाज दी.

सलोनी रसोई के पास बैठी मटर छील रही थी. वह तुरंत दीपेन के पास आई. बोली, ‘‘यह क्या, इतनी छोटी सी बात के लिए तुम अवनि भाभी को बुला रहे हो… मुझ से भी तो कह सकते थे?’’ और फिर उस ने दीपेन को गुस्से से घूरा.

‘‘मुझे लगा तुम्हें ये सब नहीं आता होगा,’’ सलोनी को गुस्से में देख दीपेन सकपका गया.

‘‘तुम क्या मुझे बिलकुल अनाड़ी समझते हो?’’ कह उस के हाथ से शर्ट ले कर सलोनी ने बटन टांक दिया.

धीरेधीरे सलोनी को समझ आने लगा कि कैसे अवनि सब की चहेती बनी हुई है. सुबह सब से पहले उठ कर नहाधो कर चौके में जा कर चायनाश्ता बना कर सब को खिलाना. बूढ़े ससुरजी को शुगर की समस्या है. अवनि उन की दवा और खानपान का पूरा ध्यान रखती. सासूमां भी अवनि से खुश रहतीं. उस पर पति और

2 छोटे बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी निभाते हुए भी मजाल की बड़ों के सामने पल्लू सिर से खिसक जाए. सुबह से शाम तक एक पैर पर नाचती अवनि सब की जरूरतों का खयाल बड़े प्यार से रखती.

घर आए रिश्तेदार भी अवनि को ही तरजीह देते. सलोनी जैसे एक मेहमान की तरह थी उस घर में. अवनि का हर वक्त मुसकराते रहना सलोनी को दिखावा लगता. वह मन ही मन कुढ़ने लगी थी अवनि से.

घर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए अब सलोनी हर काम में घुस जाती थी, चाहे वह काम करना उसे आता हो या नहीं और इस चक्कर में गड़बड़ कर बैठती, जिस से उस का मूड और बिगड़ जाता.

‘ठीक है मुझे क्या? यह चूल्हाचौका इन गंवार औरतों को ही शोभा देता है. कभी कालेज की शक्ल भी नहीं देखी होगी शायद… दो पैसे कमा कर दिखाएं तब पता चले,’ सलोनी मन ही मन खुद को तसल्ली देती. उसे अपनी काबिलीयत पर गुमान था.

सलोनी के हाथ से अचार का बरतन गिर कर टूट गया. रसोई की तरफ आती अवनि फिसल कर गिर पड़ी और उस के पैर में मोच आ गई. घर वाले दौड़े चले आए. अवनि को चारपाई पर लिटा दिया गया. सब उस की तीमारदारी में जुट गए. उसे आराम करने की सलाह दी गई. उस के बैठ जाने से सारे काम बेतरतीब होने लगे.

बड़ी बूआ ने सलोनी को रसोई के काम में लगा दिया. सलोनी इस मामले में कोरा घड़ा थी. खाने में कोई न कोई कमी रह जाती. सब नुक्स निकाल कर खाते.

अवनि सलोनी की स्थिति समझती थी. वह पूरी कोशिश रती उसे हर काम सिखाने की पर अभ्यास न होने से जिन कामों में अवनि माहिर थी उन्हें करने में सलोनी घंटों लगा देती.

मझली बूआ ने मीठे में फिरनी खाने की फरमाइश की तो सलोनी को फिरनी पकाने का हुक्म मिला. उस के पास इतना धैर्य कहां था कि खड़ेखड़े कलछी घुमाती, तेज आंच में पकती फिरनी पूरी तरह जल गई.

‘‘अरे, कुछ आता भी है क्या तुम्हें? पहले कभी घर का काम नहीं किया क्या?’’ सारे रिश्तेदारों के सामने मझली बूआ ने सलोनी को आड़े हाथों लिया.

मारे शर्म के सलोनी का मुंह लाल हो गया. उसे सच में नहीं आता था तो इस में उस का क्या दोष था.

‘‘बूआजी, सलोनी ने ये सब कभी किया ही नहीं है पहले. वैसे भी यह नौकरी करती है… समय ही कहां मिलता है ये सब सीखने का इसे… आप के लिए फिरनी मैं फिर कभी बना दूंगी,’’ अवनि ने सलोनी का रोंआसा चेहरा देखा तो उस का मन पसीज गया. ननद गौरी की शादी धूमधाम से निबट गई. रिश्तेदार भी 1-1 कर चले गए. अब सिर्फ घर के लोग रह गए थे.

अवनि के मधुर व्यवहार के कारण सलोनी उस से घुलमिल गई थी. अवनि उस के हर काम में मदद करती.

2 दिन बाद उन्हें लौटना था. दीपेन ने ट्रेन के टिकट बुक करा दिए. एक दिन दोपहर में सलोनी पुराना अलबम देख रही थी. एक फोटो में अवनि सिर पर काली टोपी लगाए काला चोगा पहने थी. फोटो शायद कालेज के दीक्षांत समारोह का था. उस फोटो को देख कर सलोनी ने दीपेन से पूछा, ‘‘ये अवनि भाभी हैं न?’’

‘‘हां, यह फोटो उन के कालेज का है. भैया के लिए जब उन का रिश्ता आया था तो यही फोटो भेजा था उन के घर वालों ने.’’

‘‘कितनी पढ़ीलिखी हैं अवनि भाभी?’’ सलोनी हैरान थी.

‘‘अवनि भाभी डबल एमए हैं. वे तो नौकरी भी करती थीं. उन्होंने पीएचडी भी की हुई है. शादी के कुछ समय बाद मां बहुत बीमार पड़ गई थीं. बेचारी भाभी ने कोई कसर नहीं रखी उन की तीमारदारी में. अपनी नौकरी तक छोड़ दी. अगर आज मां ठीक हैं तो सिर्फ भाभी की वजह से. तुम जानती नहीं सलोनी, भाभी ने इस घर के लिए बहुत कुछ किया है. वे चाहतीं तो आराम से अपनी नौकरी कर सकती थीं. मगर उन्होंने हमेशा अपने परिवार को प्राथमिकता दी.’’

सलोनी जिस अवनि भाभी को निपट अनपढ़ समझती रही वह इतनी काबिल होगी, इस का तो उसे अनुमान भी नहीं था. पूरे घर की धुरी बन कर परिवार संभाले हुए अवनि भाभी ने अपनी शिक्षा का घमंड दिखा कर कभी घरगृहस्थी के कामों को छोटा नहीं समझा था.

सलोनी को अपनी सोच पर ग्लानि होने लगी. उस ने आधुनिक कपड़ों और रहनसहन को ही शिक्षा का पैमाना माना था.

‘‘अरे भई, कहां हो तुम लोग, बिट्टू के स्कूल के प्रोग्राम में चलना नहीं है क्या?’’ कहते हुए अवनि भाभी सलोनी के कमरे में आईं.

‘‘हां, भाभी बस अभी 2 मिनट में तैयार होते हैं,’’ सलोनी और दीपेन हड़बड़ाते हुए बोले.

बिट्टू को अपनी क्लास के बैस्ट स्टूडैंट का अवार्ड मिला. हर विषय में वह अव्वल रहा था. उसे प्राइज देने के बाद प्रिंसिपल ने जब मांबाप को स्टेज पर दो शब्द कहने के लिए आमंत्रित किया तो सकुचाते हुए बड़े भैया बोले, ‘‘अवनि, तुम जाओ. मुझे समझ नहीं आता कि क्या बोलना है.’’

बड़े आत्मविश्वास के साथ माइक पकड़े अवनि भाभी ने अंगरेजी में अभिभावक की जिम्मेदारियों पर जब शानदार स्पीच दी, तो हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

घर लौटने के बाद दीपेन से सलोनी ने कहा, ‘‘सुनो, कुछ दिन और रुक जाते हैं यहां.’’

‘‘लेकिन तुम्हारा तो मन नहीं लग रहा था… इसीलिए तो इतनी जल्दी वापस जा रहे हैं,’’ दीपेन हैरान होकर बोला.

‘‘नहीं, अब मुझे यहां अच्छा लग रहा है… मुझे अवनि भाभी से बहुत कुछ सीखना है,’’ सलोनी उस के कंधे पर सिर टिकाते हुए बोली.

‘‘वाह तो यह बात है. फिर तो ठीक है. कुछ सीख जाओगी तो कम से कम जला खाना तो नहीं खाना पड़ेगा,’’ दीपेन ने उसे छेड़ा और फिर दोनों हंस पड़े.

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