कलाकारः सोनाक्षी सिन्हा, हुमा कुरेशी, शोभा खोटे, कंवलजीत सिंह, जहीर इकबाल, महत राघवेंद्र, डौली सिंह व अन्य
अवधिः दो घंटे 12 मिनट
युवा पीढ़ी में बौडी शेमिंग बहुत बड़ी समस्या है. इसी मुद्दे पर बोल्ड फिल्म ‘हेलमेट’ फेम निर्देशक सतराम रमानी फिल्म ‘‘डबल एक्सएल’’ लेकर आए हैं, जिसका निर्माण फिल्म की एक नायिका हुमा कुरेशी के भाई व अभिनेता साकिब सलीम ने किया है. फिल्मकार इस फिल्म के माध्यम से दर्शकों को बताना चाहते हैं कि सपनों को पूरा करने के लिए शरीर की साइज मायने नही रखता. लेकिन अफसोस उन्होने इतनी बुरी फिल्म बनायी है कि उनका संदेश दर्शकों तक पहुंच ही नही पाता. इतना ही नही फिल्म देखकर एक सवाल उठता है कि क्या साकिब सलीम व हुमा कुरेशी ने अपने पैतृक रेस्टारेंट ‘‘सलीम किचन’’ के प्रचार के लिए यह फिल्म बनायी है. पूरी फिल्म ‘स्वस्थ रहने‘ की आड़ में मोटे होने का महिमामंडन करती है. खासकर चिकन कबाब खाने का प्रचार.
कहानीः
फिल्म की कहानी शुरूआत उस दृश्य से होती है, जब राजश्री त्रिवेदी (हुमा कुरैशी) गहरी नींद में क्रिकेटर शिखर धवन के साथ डांस करने का मीठा सपना देख ही रही होती है कि मां( अलका कौशल ) हल्ला करके बेटी को जगा देती है. मां बेटी की शादी की चिंता में आधी हुई जा रही है. बेटी 30 पार कर चुकी है, मगर उसकी शादी नहीं हो रही और मां इसकी वजह बेटी का मोटापा मानती है, जबकि दादी( शुभा खोटे) और पिता(कंवलजीत)की नजर में बेटी हष्ट-पुष्ट है. उधर राजश्री को शादी का कोई शौक नहीं. राजश्री त्रिवेदी का सपना एक टीवी स्पोर्ट्स प्रेजेंटर बनना है. अपने सपने को पूरा करने के लिए राजश्री त्रिवेदी अपने पिता, मां और दादी की इच्छा के खिलाफ जाने पर आमादा हैं. राजश्री के माता पिता चाहते है कि वह शादी करके अपना घर बसा ले, लेकिन यह बात राजश्री को मान्य नही है. उधर दिल्ली निवासी सायरा खन्ना (सोनाक्षी सिन्हा) एक जिम वाले को डेट कर रही है, लेकिन उनका दिल अपना खुद का डिजाइनर लेबल बनाने को बेताब है. एक चैनल में इंटरव्यू देने के लिए राजश्री त्रिवेदी दिल्ली जाती है, जहंा रिजेक्ट हो जाने के बाद वाशरूम में रोेते हुए उनकी मुलाकात सायरा खन्ना से हो जाती है. दोनों वॉशरूम में रोते हुए अपने जीवन में गड़बड़ी के लिए अपने ‘डबल एक्सएल‘ शरीर को दोष देते हैं. सायरा खन्ना को लंदन जाकर कुछ निवेशकों के लिए एक फैशन यात्रा वृत्तांत का वीडियो बनाना है, मगर उनके पास निर्देशक नही है. तो राजश्री त्रिवेदी निर्देशक बन जाती हैं. क्योकि उन्होेने कुछ इंस्टाग्राम रील्स बनायी हैं. कैमरामैन के रूप में श्रीकांत (महत राघवेंद्र) आ जाते हैं. यह तीनों लंदन रवाना होते हैं. एअरपोर्ट पर जोई (जहीर इकबाल) इन्हे लेने आता है. जो कि इन दोनों को अपने सपनों को पूरा करने में मदद करता है. कपिल देव से जोई झूठ बोलकर राजश्री त्रिवेदी को कपिल देव से इंटरव्यू करने का अवसर दिलाता है. जिसे देखकर राजश्री त्रिवेदी को नौकरी मिल जाती है. सायरा खन्ना का अपना फैशन लेबल शुरू हो जाता है.
लेखन व निर्देशनः
बौलीवुड में बौडी शेमिंग पर ‘फन्ने खां और ‘दम लगा के हईशा’ जैसी बेहतरीन फिल्में पहले भी बन चुकी हैं. तो वहीं बंगला अभिनेत्री रिताभरी चक्रवर्ती ने भी इसी मुद्दे पर एक बंगला फिल्म ‘‘फटाफटी’’ बना रखा है. कम से कम फिल्मकार को इन पर गौर कर लेना चाहिए था. लेकिन फिल्म देखकर अहसास होता है कि फिल्मकार ने कंगना रानौट की सफल फिल्म ‘क्वीन’ सहित कई फिल्मों का कचूमर परोसते हुए केवल ‘सलीम किचन’ के प्रचार पर ही पूरा ध्यान रखा. इसी के चलते मोटापा बढ़ने पर शरीर को होने वाले नुकसान का जिक्र तक नही किया गया है. ‘‘हैप्पी भाग जाएगी’’ फेम मुदस्सर अजीज से ऐसी उम्मीद नही थी. फिल्म में किसी भी किरदार को ‘फैट फोबिया’ भी नही है. लेखक मुदस्सर अजीज व निर्देशक सतराम रमानी बौडी शेमिंग जैसे जरूरी मुद्दे वाले विषय की परतों को पूरी तरह से उकेरने में असफल रहे हैं. इतना ही नही पूरी फिल्म नारी स्वतंत्रता व आत्मनिर्भर नारी के खिलाफ गढ़ी गयी है. राजश्री त्रिवेदी इतनी आत्मनिर्भर है कि उसे लड़कियों या औरतों से किस तरह बात की जानी चाहिए, इसकी समझ नही है. तो वहीं सायरा पूरी तरह से पुरूष पर निर्भर नजर आती है.
इंटरवल से पहले फिल्म काफी धीमी गति से चलती है. इंटरवल पर अहसास होता है कि अब फिल्म में कोई रोचकता आएगी. मगर ऐसा नही होता. इंटरवल के बाद फिल्म पूरी तरह से विखर जाती है. बौडी शेमिंग के मुद्दे को जिस तरह की संवेदन शीलता की उम्मीद थी, उस पर भी लेखक व निर्देशक दोेनों खरे नही उतरे.
अभिनयः
फिल्म के किसी भी कलाकार का अभिनय प्रभावशाली नही है. दोनो नायिकाओं, हुमा कुरेशी और सोनाक्षी सिन्हा ने महज अपना वजन 15 किलो बढ़ाकर किरदार में फिट होने की इतिश्री कर ली. हुमा कुरेशी और सोनाक्षी सिन्हा की केमिस्ट्री भी नही जमी. श्रीकांत के किरदार में महत राघवेंद्र अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. जहीर इकबाल को बेहतर अभिनेता बनने के लिए अभी काफी मेहनत करनी पड़ेगी. अलका कौशल 30 पार कर चुकी अनब्याही बेटी की मां के दर्द को बखूबी बयान करती हैं. छोटे किरदार में शुभा खोटे याद रह जाती है. कंवलजीत के हिस्से करने को कुछ आया ही नही.
हमारे यहां हर लड़की औरत आए दिन बौडीशेमिंग के चलते ट्रोलिंग का शिकार होती रहती है. इसी के चलते लड़कियों को अपना मोटापा अपने सपनो को पूरा करने में बाधक लगने लगता है. जबकि मोटापे यानी कि बौडी शेमिंग का सपनों से या इंसान की प्रतिभा व कार्यक्षमता से कोई संबंध नहीं है. इसी बात को रेखंाकित करने के लिए फिल्मकार सतराम रमानी फिल्म ‘‘डबल एक्स एल’’ लेकर आ रहे हैं. जिसमें सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरेशी की अहम भूमिकाएं हैं. सतराम रमानी इससे पहले ‘सुरक्षित सेक्स’ और ‘कंडोम’ जैसे टैबू वाले विषय पर ‘‘हेलमेट’’ जैसी फिल्म बनाकर शोहरत बटोर चुके हैं.
प्रस्तुत है सतराम रमानी से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .
आपको फिल्मों का चस्का कैसे लगा?
-मेरे घर का कोई भी सदस्य फिल्म इंडस्ट्री से नहीं जुड़ा हुआ है. मैं सिंधी समुदाय से हॅूं. मेरे पिता का बिजनेस है. लेकिन मेरे पिता जी का थिएटर की तरफ काफी झुकाव रहा है. तो वह मुझे बचपन से ही मराठी थिएटर देखने के लिए ले जाया करते थे. जिसके चलते मेरे अंदर थिएटर यानी नाटक देखने और कुछ सीखने की इच्छा बलवती होती रही है. मुझे हर नाटक में एक नया क्रिएशन देखकर अच्छा लगता था. तो मेरा प्रेरणास्रोत कहीं न कहीं थिएटर ही रहा.
क्या आपने फिल्म निर्देशन की कोई ट्रेनिंग भी हासिल की?
-जी हॉ!. . जलगांव से मैं पुणे पहुंचा, जहां एमआई टी कालेज हैं. इस कालेज में फिल्म मेकिंग का कोर्स भी होता है. जलगांव में तो फिल्म मेकिंग का जिक्र भी भी नही होता था. उस वक्त तक तो लोगो को यह भी नहीं पात था कि फिल्म मेंकिंग भी एक प्रोफेशन हो सकता है. पर अब धीरे धीरे हालात बदल रहे हैं. उन दिनों सोशल मीडिया भी नही था. जब मैने कुछ रिसर्च किया तो मेरी समझ में आया कि मैं एमआई टी ज्वाइन कर लॅूं, तो शायद मेरा कुछ हो सकता है.
जब आपने अपने पिता जी को बताया होगा कि आप फिल्म मेकिंग सीखने के लिए पुणे जाना चाहते हैं, तो उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
-देखिए, फिल्म मेकिंग का कोर्स होता है, यह बात ही उनके लिए नई थी. कहां होता है, कौन सिखाता है? कैसे होगा? सहित उनके कई सवाल थे. कोई गाइड करने वाला है?कई सवालों के जवाब किसी के पास नही थे. मैने अपने पिता जी से साफ साफ कहा कि आपके सवालों के जवाब मेरे पास नहीं है. मैं सिर्फ इतना जानता हॅूं कि मुझे पुणे जाकर एमआईटी कालेज से फिल्म मेंकिंग का कोर्स करना है. उसके बाद मेरे पिता ने कहा-अगर कुछ नही हुआ और तुम खाली हाथ वापस आए, तो मायूस तो नही हो जाओगे?’इस पर मैने कहा कि मैं कोशिश करना चाहता हॅूं. मेरे पास आपके इस सवाल का भी जवाब नही है. जब तक मैं करीब से उस चीज को, हालात को देखॅूंगा नहीं, तब तक कैसे कुछ कह सकता हॅूं. मेरे एक चाचा इंदौर में युनिवर्सिटी के निदेशक थे. तो मेरे पापा ने उनसे राय ली. मेरे चाचा ने कहा कि यदि सतराम का मन कर रहा है, तो उसे करने देना चाहिए. सही होगा तो कुछ बन जाएगा, यदि गलत होगा, तो उसे एक अनुभव मिल जाएगा.
पुणे के एमआईटी से फिल्म मेकिंग का कोर्स करने के बाद कैरियर कैसे शुरू हुआ?
-पुणे में फिल्म मेकिंग का कोर्स करने के बाद मुंबई पहुंचा. जहां एक नए संघर्ष की शुरूआत हुई. मंुबई में हमारा कोई दोस्त वगैरह नही था. इसलिए भी वक्त लगा. मुझे सबसे पहले टीसीरीज की एक फिल्म में बतौर सहायक निर्देशक काम करने का मौका मिला. लेकिन इस फिल्म की शुरूआत मे देरी होती जा रही थी. तभी मुझे पोस्ट प्रोडक्शन करने का अवसर मिल गया. जिसे करते हुए मैने काफी कुछ सीखा. मेरी सोच यह रही है कि एक निर्देशक को प्री प्रोडक्शन, प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन सहित हर काम की जानकारी होनी चाहिए. पोस्ट प्रोडक्शन करते हुए बहुत अच्छा लगा. मैने एडीटिंग सहित हर विभाग के बारे मंे जाना. पोस्ट प्रोडक्शन में मैने कई फिल्में की और इससे मेरा ज्ञान काफी बढ़ गया. और कहीं न कहीं मेरी कल्पनाओं में एडीटिंग भी आने लगी. पोस्ट प्रोडक्शन के बाद मैने कुछ फिल्में बतौर सहायक निर्देशक की. फिर वह वक्त आया जब मैने तय किया कि अब मुझे अपनी कहानी खुद कहनी है. और मैंने बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘हेलमेट’ बनायी. इस फिल्म के बनाने मे मुझे चार पांच वर्ष लग गए. काफी रिजेक्शन सहे. पर अंततः कामयाब हो ही गया. अंततः मैने अपने मन पसंद विषय पर फिल्म बनायी.
जब रिजेक्शन मिलते हैं, उस वक्त अपना हौसला किस तरह से बरकरार रखते हैं?
-इसके लिए सकारात्मक माइंड सेट ही काम आता है. मुझे लगता है कि इंसान के अंदर का धैर्य ही उसका काम करवाता है. यदि आपके अंदर पैशंस नही है, तो आप किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल नहीं कर सकते. हर काम के पूरा होने में वक्त लगता है. आपने आज प्लॉट खरीदा और आप सोचेंगें कि कल इमारत खड़ी हो जाए, तो यह संभव नही है. फर्क इतना है कि इमारत बनाने का प्रोसेस दिखता है, मगर हमारे यहां का प्रोसेस नजर नहीं आता. प्लॉट खरीदने पर आपको पता होता है कि अब इसकी नींव की खुदायी होगी, फिर नींव भरी जाएगी. . . वगैरह वगैरह. . तकनीकी काम संपन्न होने के बाद लोग रहने आएंगे. इसी तरह जब लेखक के दिमाग में कोई विचार आता है, तो उस विचार पर कहानी व पटकथा गढ़ने से उसके परदे पर आने तक का एक लंबा प्रोसेस हैं, जिसमें न दिखाई देने वाला वक्त लगता है. बीच बीच में कई पड़ाव होते हैं, जहां कई बार रिजेक्शन का भी सामना करना पड़ता है. इस बीच सही तरह के लोग जुड़ेंगें. आपको उनके साथ काम करना है, उनको आपके साथ काम करना है या नहीं करना है. . उस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है. उसके बाद उस कहानी को परदे @स्क्रीन्स तक आने का एक अलग तकनीकी प्रोसेस शुरू होता है.
बतौर लेखक व निर्देशक पहली फिल्म ‘‘हेलमेट’’ के प्रदर्शन के बाद आपके प्रति फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के रवैए में क्या बदलाव आया था?
-सच यह है कि जब मैने ‘सुरक्षित सेक्स’ के मुद्दे पर फिल्म ‘हेलमेट’ बनाने का निर्णय लिया था, तभी मेरे कुछ दोस्तों ने, जो कि फिल्मकार हैं, ने कहा था कि यह बहुत रिस्की विषय है. फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कुछ लोगों ने फिल्म देखने के बाद मेरी प्रशंसा की कि मैंने इस तरह के विषय को अपनी फिल्म में उठाकर मनोरंजन प्रधान फिल्म बनायी. कई बार एक ही चीज को कुछ लोग गलत तरह से ले लेते हैं, तो वहीं कुछ लोग समझ जाते हैं. पर मैने दोनो तरह के लोगो के प्रतिशत पर गौर नही किया. मुझे लगा कि मैं अपने दिल व दिमाग की सुनकर एक फिल्म बनायी है, जिसे लोगों ने पसंद भी किया. मुझे जो सही लगा, वह मैने अपनी फिल्म में पेश किया. काफी लोगों को लगा कि शायद मैं वह इस तरह की फिल्म नही बना सकते.
‘हेलमेट’ तो सुरक्षित सेक्स व कंडोम पर आधारित फिल्म थी, जिस पर बात करना ‘टैबू’ है. ऐसे में आपको भी लगा होगा कि आपने रिस्क उठायी है?
-सर, असल में इस तरह से मैने सोचा ही नहीं था. मुझे लगा कि हमें कुछ अलग तरह के विषय पर फिल्म बनानी चाहिए, तो मैने कहानी लिखी और फिल्म बनायी. मैने इस बात पर विचार ही नही किया था कि इस फिल्म को बनाने के क्या परिणाम होंगे?
मगर इस तरह के विषय पर काम करने लिए संजीदगी और एक अलग तरह की समझ होनी चाहिए, वह समझ कहां से आयी थी?
-देखिए, फिल्म लिखते समय मेरे दिमाग में एक ही बात थी कि मुझे ज्ञान नहीं बांटना है. हमें किसी को कुछ भी सिखाना नही है. उस वक्त यह साफ था कि मुझे सनसनी नही फैलाना है. कोई गलत बात नही करनी है. इसी तरह हमने नई फिल्म ‘‘डबल एक्स एल’ में भी यह ध्यान रखना है कि मुझे किसी को मोटापे को लेकर कुछ सिखाना नहीं है. मुझे ओबीसिटी या अनहेल्दीनेस को भी प्रमोट नही करना है. हम सिर्फ यह बताना चाहते हैं कि आपके सपने आपके शरीर के किसी भी साइज का मोहताज नही है.
फिल्म ‘‘डबल एक्सएल’ की कहानी का बीज कहां से आया था?
-इस फिल्म की कहानी का बीज वास्तविक घटनाक्रम से आया था. सोनाक्षी सिन्हा व हुमा कुरेशी एक सोशल गैदरिंग में खाना खा रही थी. वहीं पर मुदस्सर अजीज भी मौजूद थे. उसी वक्त उन्हे ख्याल आया कि मोटे लोग किस तरह से सेलीब्रेट करते हैं. और हुमा ने कहा कि प्लस साइज औरतों के सपनों की कहानी पर फिल्म बनानी चाहिए. किस तरह प्लस साइज की औरतों के सपनों में रूकावट आती है. दोनों बहुत एक्साइटेड थे. दोनों ने कहा कि इस कहानी पर फिल्म बनेगी, तो हम अभिनय करना चाहेंगे. उसी वक्त मुदस्सर अजीज ने कह दिया कि वह कहानी लिखते हैं. फिर यह कहानी मेरे पास आयी, तो मैने कहा कि मैं निर्देशन करने के लिए तैयार हॅूं. उसके बाद पटकथा लिखी गयी औरशूटिंग हुई.
‘डबल एक्स एल’ की कहानी में निर्देशक के तौर पर किस बात ने आपको इंस्पायर किया?
-मैने सोचा है कि मैं हमेशा वास्तविक मुद्दों को ही अपनी फिल्म में उकेरता रहॅूं. और वह मुद्दे जिन्हे पहले किसी ने न छुए हों. प्लस सइज यानी कि मोटापे को लेकर हम सभी जागरूक हैं, लेकिन इन चीजों पर हमारा फोकश नही है. और न ही हम इन पर अटैंशन देना चाहते हैं. हमारे आस पास यह चीजें रोज हो रही हैं, पर वह सब आदत में आ चुकी हैं. यह गलत आदत है. मै देखता हॅूं कि मेरी पत्नी किसी फंक्शन मे जाने के लिए तैयार होते समय आइने के सामने खड़े होकर मुझसे पूछती हैं ‘मैं मोटी हो गयी हॅूं?’. तो अब मेरी समझ में आता है कि उन्हे मोटापे को लेकर कितना असुरक्षित पना महसूस होता है. क्योंकि किसी भी समारोह में पहुंचते ही लोग कमेंट करते हैं, ‘अरे, आपने वेट पुट ऑन किया है. ’तो उसके बाद पूरा समारोह कैसे बीतता होगा, इसे समझा जा सकता है. वास्तव में यह फिल्म मेरे पास तब आयी थी, जब यह विचार के स्तर पर ही थी. यह ऐसा विचार था जिसे बतौर निर्देशक मैं अपने दृष्टिकोण से बताना चाहता था.
क्या आपने इस मुद्दे को फिल्म में उठाया है?
-हमारी फिल्म यह कहने का प्रयास करती है कि आप जिस भी साइज या शेप में हैं, उससे आपके सपनों को पूरा होने में कोई रूकावट नही आती. हमारी फिल्म कहती है कि खुद को नॉर्मल महसूस करें. खुद को असुरक्षित महसूस न करें. हमारी फिल्म का संदेश है कि आपके सपने, आपकी प्रतिभा, आपकी क्षमताएं और सपने किसी ओर चीज से ज्यादा मायने रखती हैं.
आपकी फिल्म के किरदार छोटे शहरों से हैं. पर आप उन्हे लंदन तक ले जाते हैं. क्या सपनों को पूरा करने के लिए विदेश जाना जरुरी था?
-कहानी की मांग के कारण किरदार विदेश जाते हैं. विदेश जाने पर ही किरदारों के बीच जो कुछ बातें थीं, वह साफ होती हैं. खुद का खुद से वाकिफ होकर वापस आना जरुरी था.
इसी विषय पर बंगला में फिल्म ‘फटाफटी’बनी है?
-जी हॉ! मुझे इसकी जानकारी है. दक्षिण भारत व मराठी में भी इस विषय पर फिल्में बनी हैं. पर हमारी फिल्म इन सभी फिल्मों से काफी अलहदा है. हमारी फिल्म मूलतः प्लस साइज औरतों के सपनों की बात करती है. आपकी महत्वाकांक्षा व आपके टैलेंट की तुलना अपने शरीर के वजन से मत कीजिए. न ही समाज को इस तरह की तुलना करना चाहिए. अन्यथा हम प्लस साइज को ड्लि नही करना चाहते.
आपकी फिल्म ‘डबल एक्स एल’ के ट्रेलर से अहसास होता है कि आपकी फिल्म का कुछ हिस्सा फिल्म ‘क्वीन’ से प्रेरित है?
-लोगों को टैम्पलेट लग सकता है. मगर लिखते वक्त ऐसी कोई प्रेरणा नही ली गयी. हम सभी के दिमाग में ऐसा कुछ नहीं था कि ‘क्वीन’ से कुछ लेना है. ‘क्वीन’ तो एक अच्छी फिल्म थी और मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है. पर हमने अपनी कहानी की जरुरत के अनुसार ही दृश्य रखे हैं.
फिल्म ‘‘डबल एक्स एल’’ के प्रदर्शन के बाद किस तरह के बदलाव आएंगे?
-मुझे लगता है कि इस फिल्म को देखने के बाद लोग आपस में शरीर के साइज को लेकर यानी कि मोटापे आदि को लेकर बात करना शुरू कर देंगे. हर किसी को किसी ने कभी न कभी बौडीशेम किया है. फिल्म देखकर लोग समझेंगे कि हमने भी ऐसा किया है. तो कहीं न कहीं इसका अंदरूनी असर अवश्य होगा.
बौडीशेमिंग को लेकर जो ट्रोलिंग होती है. क्या उन ट्रोलरों को भी यह फिल्म जवाब देती है?
-सर, मुझे लगता है कि ट्रोलिंग तो कभी बंद नही हो सकती. यह तो हमारी जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है. मुझे नहीं पता कि हमारी फिल्म के प्रदर्शन के बाद ट्रोलिंग बंद होगी या नहीं या यह बढ़ेगा. जो लोग ट्रोलिंग कर रहे हैं, शायद उन्हे उसका मजा आता है. ऐसे लोग जब फिल्म देखेंगें, तो एक बार उनके मन में विचार तो आएगा ही. भले ही वह इस बार बात न करें.
स्क्रिप्ट की सभी तारीफ करते हैं, पर फिल्म बनने के बाद मामला कुछ और हो जाता है. यह कैसे हो जाता है?
-देखिए, कुछ बदलाव तो निर्देशक के स्तर पर आता ही है. देखिए, स्क्रिप्ट तो अलग बात है. जबकि फिल्म विज्युअल माध्यम है. स्क्रिप्ट की लैंगवेज अलग है. जिससे आप कहानी व दुनिया को समझाते हैं. पर वह कलाकार की परफार्मेंस व विज्युअल्स से दुनिया बदलने लगती है. यदि स्क्रिप्ट राइटर को खुश रखना है, तो निर्देशक की जिम्मेदारी बनती है कि वह स्क्रिप्ट से बेहतर फिल्म बनाए. यदि फिल्म अच्छी बनती है, तो पटकथा लेखक कहता है कि आपने हमारी पटकथा के साथ जस्टिस किया. इसके लिए निर्देशक अपनी तरफ से उसमें कुछ तो जोड़ता है. वैसे भी मेरा मानना है कि फिल्म मेकिंग मंे सभीका योगदान होता है. यह टीम वर्क है. फिर चाहे वह निर्माता का वीजन हो. यदि निर्देशक के अंदर क्षमता नहीं है कि वह पटकथा को परदे पर जीवंत रूप दे सके, तो सब बेकार है. इसमें एडीटर का भी योगदान होता है. कई बार एडीटर को लगता है कि यह दृश्य फिल्म की कहानी के साथ न्याय नहीं कर पा रहा है, तो उस वक्त निर्देशक या तो अपनी बात समझाए या फिर एडीटर की बात माने, यही दो रास्ते होते हैं. क्योंकि वह भी टीम का हिस्सा होता है. उसका मकसद भी फिल्म को बेहतर बनाना होता है. वह गलत नहीं बोल सकता.
आपने पोस्ट प्रोडक्शन करते हुए एडीटिंग सीखी है, इसका कितना फायदा निर्देशक के तौर पर मिलता है?
-बहुत ज्यादा मदद मिलती है. सबसे ज्यादा खुश निर्माता होता है. क्यांेकि हम उसका समय व पैसा दोनों बचाते हैं. निर्देशक के तौर पर हमारे दिमाग में क्लीयरिटी रहती है. हमें पता होता है कि कौन सा दृश्य रहेगा?, कौन सा दृश्य नही रहेगा?या कितनी अवधि का दृश्य रहेगा, यह वीजन साफ तौर पर आने लगा. इससे फायदा यह हुआ कि निर्माता को फायदा होने लगा. उसके समय व धन दोनों की बचत होने लगी.
कोविड महामारी के बाद सिनेमा में आ रहे बदलाव को आप किस तरह से देख रहे हैं?
-काफी बदलाव आ गया है. पिछले दो वर्षो में लोगों ने विश्व सिनेमा को काफी देखा है. लोगों केा बेहतरीन सिनेमा का एक्सपोजर मिला है. जिसके चलते लोगों ने ढेर सारी कहानियां लिखी हैं. अलग अलग तरह की कहानियां व स्टोरी टेलर सामने आ रहे हैं. अब भारतीय सिनेमा का स्टैंडर्ड उंचा हो रहा है. अब वह दौर गया, जहां मनोरंजन करने के लिए कुछ भी बना देते थे. अब कहानी में दम होना जरुरी हो गया है.
ओटीटी प्लेटफार्म के चलते सिनेमा को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
-अब बेहतर कंटेंट बेहतर तरीके से पेश करना अनिवार्य हो गया है. निर्देशक के तौर हमें अपना क्राफ्ट उपर ले जाना है.
‘‘डबल एक्स एल’’ के बाद क्या योजनाएं हैं?
-दो स्क्रिप्ट लगभग तैयार हैं. बहुत जल्द कुछ अच्छी खबरें आएंगी.
एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में इन दिनों रॉयल वेडिंग ट्रैंड कर रही हैं. जहां एक्ट्रेस कटरीना कैफ की रॉयल वेडिंग ने लोगों का ध्यान खींचा था तो वहीं अब एक और एक्ट्रेस रॉयल वेडिंग रचाती हुई नजर आने वाली हैं. दरअसल, जल्द ही एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी अपने बिजनेसमैन बॉयफ्रेंड संग शादी करने वाली है, जिसके लिए खास जगह का चुनाव हो गया है. आइए आपको बताते हैं Hansika Motwani Royal Wedding की पूरी खबर….
खबरों की मानें तो एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी की शादी की तैयारियां शुरु हो गई हैं. जहां एक्ट्रेस की शादी की डेट सामने आ गई है तो वहीं वेडिंग वेन्यू का भी चुनाव हो चुका है. दरअसल, खबरें हैं कि एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी ने अपनी शादी के लिए जयपुर का 450 साल पुराना किला मुंडोता फोर्ट चुना है, जिसमें उनकी शादी के पूरे फंक्शन सेलिब्रेट होंगे. इस शादी में गेस्ट की बात करें तो एक्ट्रेस के खास दोस्त और फैमिली शादी का हिस्सा बनते दिखेंगे.
वेडिंग की बात करें तो खबरें हैं कि एक्ट्रेस दिसंबर में सात फेरे लेने वाली हैं, जिसके चलते जयपुर के मुण्डोता फोर्ट में शादी की तैयारियां शुरु हो गई हैं. हालांकि शादी को लेकर अभी कोई ऑफिशियल जानकारी नहीं मिली है. लेकिन एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी की शादी काफी रॉयल होने वाली हैं. वहीं खबरों को सच मानें तो रॉयल वेडिंग करने वालों में एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा और कटरीना कैफ जैसी हसीनाओं के बाद एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी का नाम रॉयल वेडिंग की इस लिस्ट में शामिल होने वाला है.
बता दें, एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी ने अपने करियर की शुरुआत बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट टीवी से की थी. दरअसल, वह पौपुलर टीवी सीरियल शाका लाका बूम बूम, क्योंकि सास भी कभी बहू थी, सोन परी जैसे शोज में नजर आई थीं और बेहद सुर्खियां बटोरीं थी. वहीं बौलीवुड की फिल्मों में भी वह काम कर चुकी हैं. हालांकि वह साउथ की फिल्मों में ज्यादा नजर आई हैं.
भारत की ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’’ अर्थात ‘रॉ’ के एजेंट पिछले एक दशक से भी अधिक समय से बौलीवुड के फिल्मकारों के लिए पसंदीदा विषय बने हुए हैं. ‘रॉ’ एजेंटो को लेकर अब तक कई फिल्में व वेब सीरीज बन चुकी हैं. अब ‘रॉ’ एजेंट के रूप में एक महिला जासूस दुर्गा सिंह को केंद्र में रखकर रिभु दासगुप्ता फिल्म ‘‘कोड नेम तिरंगा’’लेकर आए हैं, जो कि बतौर लेखक व निर्देशक रिभु दासगुप्ता की अति कमजोर फिल्म है. जिसमें न कहानी है और न ही देशभक्ति, न ही प्रेम कहानी ही है. मगर इस फिल्म को देखकर लोगो को 1975 में प्रदर्शित अशोक कुमार की फिल्म ‘‘चांरी मेरा काम’’ जरुर याद आ जाएगी. इस फिल्म के कुछ दृश्यों को चुराकर फिल्मकार रिभु दासगुप्ता ने अपनी फिल्म ‘‘कोड नेम तिरंगा’’ का हिस्सा बना दिया है. रिभु दासगुप्ता कलकत्ता के फिल्मी परिवार से संबंध रखते हैं. 2011 में उन्होेने फिल्म ‘माइकल’ का निर्देशन कर शोहरत बटोरी थी. इस फिल्म को ‘शंघाई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में पुरस्कार के लिए नोमीनेट भी किया गया था. फिर 2014 में टीवी सीरियल‘युद्ध’ में उन्होने अमिताभ बच्चन को निर्देशित किया था. 2016 में रहस्य रोमांच से भरपूर फिल्म ‘तीन’ का लेखन व निर्देशन किया था. इस फिल्म में भी अमिताभ बच्चन थे. यह फिल्म बाक्स आफिस पर अपनी लागत भी नही वसूल पायी थी. 2019 में रिभु दासगुप्ता ने नेटफ्लिक्स के लिए वेब सीरीज ‘बार्ड आफ ब्लड’ का निर्देशन किया, जो काफी चर्चा में रही. इसके बाद 2020 में नेटफ्लिक्स के लिए ही परिणीति चोपड़ा को लेकर ही फिल्म ‘द गर्ल आॅन द ट्ेन’ निर्देशित की, जो कि घटिया फिल्म मानी गयी. और अब वह परिणीति चोपड़ा को ही ‘हीरो’ लेकर फिल्म ‘‘कोड नेम तिरंगा’’लेकर आए हैं. जो कि अति कमजोर, कहानी व निर्देशन विहीन फिल्म है. इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने पारित कर दिया, यह भी आश्चर्य की बात है. क्योंकि यह फिल्म कहती है कि हमारे ‘रॉ’ के दूसरे नंबर के अधिकारी पाकिस्तान व आतंकवादियों के हाथों बिके हुए हैं.
कहानीः
फिल्म की कहानी टर्की से शुरू होती है. जहां ‘रॉ’ एजेंट दुर्गा सिंह कार्यरत है. वह एक दिन नाटकीय तरीके से एक टैक्सी में संयुक्त राष्ट् के लिए कार्यरत डाक्टर मिर्जा अली से मिलती है और उसे अपना परिचय इस्मत नामक भारतीय पत्रकार के रूप में देते हुए अपने प्रेम जाल में फांसती है. दुर्गा सिंह भारतीय संसद पर हमला कर चुके खालिद ओमार के खात्मे के मिशन पर है. कहानी कई मोड़ों से गुजरती है. इसलिए डॉं. मिर्जा को प्रेम जाल में फांसती है. क्योंकि इलाके में होने वाली एक शादी में ओमार आने वाला है और डॉक्टर उस शादी के प्रीतिभोज के मेहमानों की सूची में शामिल है. इसी प्रीतिभोज में रॉ एजेंट दुर्गा सिंह की असली पहचान खुलती है. डॉ. मिर्जा अली को पता चल जाता है कि वह इस्मत नहीं दुर्गा सिंह है. पर दोनो एक साथ मरने की कसमें खाते हैं. खालिद उमर के हाथों डॉ. अली मिर्जा मारा जाता है. कहानी में कई मेाड़ आते हैं. अंततः दुर्गा, खालिद उमर को मौत के घाट उतार देती है और लोगों को बताती है कि जो भी गड़बड़ियां हो रही थीं, उसकी वजह ‘रॉ’ के दूसरे नबर के अधिकारी पाकिस्तान और खालिद ओमार के हाथों बिका होना था.
लेखन व निर्देशनः
महज नारी उत्थान के नामपर एक रॉ एजेंट को महिला के रूप में पेशकर बिन सिर पैर की कहानी गढ़ने के बाद विभु दासगुप्ता ने उसमें दूसरी फिल्मों के कुछ दृश्य चुराकर डालते हुए ‘कोड नेम तिरंगा’ के नाम से दर्शकांे को परोसते हुए सोच लिया कि दर्शक ‘तिरंगा’ के नाम पर उनकी फिल्म को सिर माथे पर बैठा लेगा. मगर वह यह भूल गए कि दर्शक को एक अच्छी कहानी चाहिए. मगर इस फिल्म में कहानी व निर्देशन दोनों का अभाव है. परिणीति चोपडा को दुर्गा सिंह के किरदार मंे लेना निर्देशक की सबसे बड़ी गलती रही. परिणीति चोपड़ा पर फिल्माए गए एक्शन दृश्य तो वीडियो गेम नजर आते हैं. इस फिल्म में न देश भक्ति है, न कोई प्रेम कहानी है. पता नही क्यों रिभु दासगुप्ता , परिणीति चोपड़ा को एक्शन स्टार बनाने के पीछे पड़ गए? क्या उन्होने कंगना रानौट की फिल्म ‘धाकड़’ का हाल नही देखा है.
बतौर लेखक व निर्देशक रिभु दासगुप्ता परिणीति चोपड़ा व हार्डी संधू के बीच प्रेम कहानी को भी ठीक से विकसित नही कर पाए.
रिभु दासगुप्ता की परवरिश कलकत्ता में बंकिमचंद्र चटर्जी लिखित गीत ‘‘वंदे मातरम’’ सुनते हुए हुई है. पर इस गीत को लेकर उनकी समझ यह है कि उन्होने ‘वंदे मातरम’ गीत को ‘युद्धगीत के रूप में अपनी फिल्म ‘‘कोड नेम तिरंगा’’ में पेश कर डाला.
अभिनयः
जहां तक अभिनय का सवाल है तो रॉ एजेंट दुर्गा सिंह के किरदार में परिणीत चोपड़ा एक प्रतिशत भी खरी नही उतरती. फिल्म प्रचारक से अभिनेत्री बनने वाली और प्रियंका चोपड़ा की कजिन परिणीति चोपड़ा को अभिनय करना आता ही नही है. इस बात को वह अतीत में ‘इशकजादे’, ‘शुद्ध देशी रोमांस’, ‘हंसी तो फंसी’, ‘दावते इश्क’, ‘किल दिल’, ‘नमस्ते इंग्लैंड’, ‘जबरिया जोड़ी’
व ‘संदीप ओर पिंकी फरार’ जैसी असफल फिल्मों में साबित कर चुकी हैं. इसके बावजूद उन्हे रॉ एजेंट के किरदार में लेना अपने आप में निर्देशक की सोच पर सवालिया निशान उठाता है. परिणीति चोपड़ा ने अपनी तरफ से इस किरदार के हिसाब से खुद को ढालने के लिए कोई मेहनत नहीं की. तनाव के दृश्यों में सिगरेट पीने भर से रॉ एजेंट स्मार्ट नहीं दिख जाता. इसके लिए एक एजेंट जैसी कद काठी, शरीर सौष्ठव और फुर्ती भी जरूरी है. डॉ. मिर्जा अली के छोटे किरदार में हार्डी संधू कमजोर कहानी व पटकथा के चलते अपनी अभिनय प्रतिभा को निखार न सके. सह कलाकारों में किसी का भी अभिनय प्रभावित नहीं करता.
बीते दिन महिलाओं ने करवाचौथ (Karwa Chauth) सेलिब्रेट किया. इनमें बौलीवुड और टीवी की एक्ट्रेसेस के नाम भी शामिल हैं. जहां कुछ एक्ट्रेसेस ने पहला करवाचौथ मनाया तो वहीं बाकी एक्ट्रेसेस ने धूमधाम से सेलिब्रेट किया. आइए आपको दिखाते हैं एक्ट्रेसेस के करवाचौथ सेलिब्रेशन की खास फोटोज…
करवाचौथ सेलिब्रेशन के मौके पर कटरीना कैफ और विक्की कौशल (Katrina Kaif And Vicky Kaushal) ने अपने शादी के बाद पहले करवाचौथ की फोटोज फैंस के साथ शेयर की हैं. इन फोटोज में वह कपल अपने सास ससुर के साथ पोज देता नजर आ रहा है तो वहीं करवाचौथ की रस्में निभाते हुए कटरीना कैफ की फोटोज बेहद खूबसूरत लग रही हैं.
कटरीना कैफ के अलावा ब्रह्मास्त्र एक्ट्रेस मौनी रॉय (Mouny Roy) ने भी अपने औफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट पर करवाचौथ सेलिब्रेशन की दो फोटोज शेयर की हैं, जिनमें वह पति सूरज नांबियार एक दूसरे को किस कर रहे हैं. वहीं दूसरी फोटोज में एक्ट्रेस मौनी रॉय छननी में पति का चेहरा देखती नजर आ रही हैं. एक्ट्रेस की इन फोटोज पर फैंस जमकर प्यार लुटा रहे हैं.
बौलीवुड एक्ट्रेस के अलावा टीवी की हसीनाएं भी अपना पहला करवाचौथ धूमधाम से सेलिब्रेट करती दिखीं. कुंडली भाग्य एक्ट्रेस श्रद्धा आर्या (Shraddha Arya) ने अपने पहले करवाचौथ के सेलिब्रेशन की खास फोटोज फैंस के साथ शेयर की, जिनमें वह अपना लुक और मेहंदी को फ्लौंट करती नजर आईं. एक्ट्रेसस की इन फोटोज को फैंस काफी पसंद कर रही हैं.
इनके अलावा सिंगर और एक्ट्रेस नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) ने पति रोहनप्रीत सिंह के साथ करवाचौथ सेलिब्रेट किया, जिसका फोटोज उन्होंने फैंस के साथ शेयर की. फैंस को एक्ट्रेस की ये फोटोज काफी पसंद आ रही हैं.
Karva Chauth 2022 आ गया है. जहां शादीशुदा महिलाएं दुल्हन की तरह पति के लिए सजने संवरने वाली हैं. वहीं बौलीवुड और टीवी की हसीनाएं भी इस व्रत को धूमधाम से मनाने वाली हैं. हालांकि इस बार कुछ ऐसी एक्ट्रेसेस हैं, जो शादी के बाद पहला करवाचौथ सेलिब्रेट करने वाली हैं. वहीं इन एक्ट्रेसेस में आलिया भट्ट से लेकर रिचा चढ्ढा जैसी हसीनाओं के नाम शामिल हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…
आलिया भट्ट मनाएंगी पहला करवाचौथ (Alia Bhatt Karva Chauth)
अपनी प्रैग्नेंसी को लेकर इन दिनों मीडिया और फैंस के बीच सुर्खियों में रहने वाली आलिया भट्ट (Alia Bhatt) इस साल 2022 को पति रणबीर कपूर के साथ पहला करवाचौथ सेलिब्रेट करने वाली हैं. हालांकि 14 अप्रैल 2022 को शादी करने वाली आलिया भट्ट हो सकता है कि प्रैग्नेंसी के कारण व्रत ना रखें. लेकिन कपूर फैमिली के साथ उनका ये पहला फंक्शन होने वाला है, जिसे धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाएगा.
एक्ट्रेस रिचा चड्ढा ने हाल ही में अपने लौंगटाइम बौयफ्रेंड और एक्टर अली फजल के साथ शादी की है, जिसके चलते वह भी अपना पहला करवाचौथ सेलिब्रेट करती हुई नजर आएंगी.
करिश्मा तन्ना भी मनाएंगी करवाचौथ (Karishma Tanna Karva Chauth)
साल 2021 में 9 दिसंबर को शादी रौयल वेडिंग रचाने वाले कटरीना कैफ और एक्टर विक्की कौशल इस साल अपना पहला करवाचौथ मनाने वाले हैं, जिसके चलते फैंस दोनों के करवाचौथ सेलिब्रेशन की फोटोज देखने के लिए बेताब हैं.
‘ब्रह्मास्त्र’ एक्ट्रेस मौनी रॉय मनाएंगी करवाचौथ (Mouny Roy Karva Chauth)
‘ब्रह्मास्त्र’ फिल्म में अपनी एक्टिंग के चलते सुर्खियों में रहने वाली एक्ट्रेस मौनी रॉय भी इस साल अपना पहला करवाचौथ मनाने वाली हैं. दरअसल, मौनी रॉय ने 27 जनवरी 2022 को गोवा में अपने लॉन्ग टाइम बॉयफ्रेंड सूरज नाम्बियार के साथ दो रीति रिवाजों से शादी की थी, जिसके बाद यह उनका पहला करवाचौथ होगा.
बॉलीवुड एक्टर सिद्धार्थ मल्होत्रा (Sidharth Malhotra) और एक्ट्रेस कियारा आडवाणी (Kiara Advani) की डेटिंग और ब्रेकअप की खबरों से सोशलमीडिया पर छाया रहता है. हालांकि दोनों अपने रिलेशनशिप को लेकर ऑफिशियली सामने नहीं आते हैं. लेकिन पार्टी और डिनर पर साथ मीडिया के सामने अक्सर पोज देते हुए नजर आते हैं. इसी बीच एक बार फिर कपल की शादी की डेट की खबरें मीडिया में छा गई हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…
फिल्म शेरशाह (Shershaah) में अपने रोमांस को लेकर फैंस का दिल जीतने वाला कियारा और सिद्धार्थ कपल कि ब्रेकअप और उसके बाद पैचअप की खबरों के बाद खबरें हैं कि दोनों अप्रैल में शादी के बंधन में बंध सकते हैं. कहा जा रहा है कि पहले दोनों अपनी शादी को रजिस्टर करवाएंगे और उसके बाद एक पार्टी रखेंगे. वहीं शादी के वेन्यू को लेकर खबरें हैं कि वह भी अली फजल और रिचा चढ्ढा की तरह दिल्ली में शादी करेंगे.
शादी की खबरों के बीच कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ मल्होत्रा हाल ही में एक रेस्टोरेंट में डिनर करने पहुंचे थे. जहां मीडिया के सामने दोनों साथ में पोज देते नजर आए थे. वहीं फैंस को दोनों की ये जोड़ी काफी पसंद है और उनकी शादी होते हुए देखना चाहते हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=O2THJyCqJAw
बता दें, एक्ट्रेस कियारा आडवाणी इन दिनों अपने एक विज्ञापन के कारण ट्रोलिंग का सिकार हो रही हैं. दरअसल, एक बैंक के विज्ञापन में वह आमिर खान के संग नजर आ रही हैं. एड की बात करें तो एक्टर्स एक शादीशुदा कपल की भूमिका निभाते हैं, जो ससुराल जाने वाली महिला की सामान्य परंपरा को यह दिखा कर तोड़ने का प्रयास करते हैं कि एक पुरुष भी घर जमाई हो सकता है. वहीं विज्ञापन की लास्ट लाइन है बदला हम से है. हालांकि, लोगों का कहना है कि यह विज्ञापन हिंदू परंपराओं का अपमान और आलोचना कर रहा है.
साउथ एक्ट्रेस नयनतारा (Nayanthara) ने बीते चार महिने पहले डायरेक्टर विग्नेश शिवन से शादी की थी, जिसकी फोटोज आज भी सोशलमीडिया पर छाई रहती हैं. इसी बीच इस कपल ने अपने पेरेंट्स बनने की खबर फैंस को दे दी है. साथ ही अपने जुड़वा बच्चों (Nayanthara Twin Name) का नाम भी फैंस के साथ शेयर किया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…
9 जून को शादी के बंधन में बंधने वाली एक्ट्रेस नयनतारा और विग्नेश ने अपने पेरेंट्स बनने की खबर से फैंस को चौंका दिया है. दरअसल, नयनतारा के पति विग्नेंश ने अपने बच्चों के साथ फोटोज शेयर करते हुए लिखा, ‘नयन और मैं अम्मा और अप्पा बन गए हैं. हम जुड़वा बच्चों के माता-पिता बने हैं. हमारी सभी प्रार्थनाएं, आशीर्वाद और सभी अच्छे भावों को मिलाकर, हमें 2 धन्य बच्चों के रुप में मिले हैं. हमें हमारे उइरो और उलगम के लिए आप सभी का आशीर्वाद चाहिए. जिंदगी और भी खूबसूरत लग रही है.’ इस पोस्ट पर फैंस और सेलेब्स कपल को बधाई दे रहे हैं.
बौलीवुड हो या साउथ, इन दिनों सरोगेसी काफी चर्चा में हैं, जिसके बाद अब एक्ट्रेस नयनतारा ने भी सरोगेसी के जरिए मां बनने का सुख प्राप्त किया है. हालांकि इससे पहले कई एक्ट्रेसेस ने मां बनने के लिए इस रास्ते को अपनाया है, जिसमें बौलीवुड एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा, शिल्पा शेट्टी और प्रिटी जिंटा जैसे बड़े नाम शामिल हैं. वहीं फैंस भी इस फैसले से एक्ट्रेस के लिए बेहद खुश हैं.
बता दें, एक्ट्रेस नयनतारा की शादी काफी सुर्खियों में रही थीं, क्योंकि इस शादी में बौलीवुड एक्टर शाहरुख खान से लेकर रजनीकांत जैसे सितारे शामिल हुए थे. वहीं प्रौफेशनल लाइफ की बात करें तो एक्ट्रेस नयनतारा जल्द ही जल्द ही शाहरुख खान की फिल्म ‘जवान’ में स्क्रीन शेयर करते हुए नजर आने वाली हैं.
‘क्वीन’ जैसी फिल्म के निर्देशक विकास बहल इंसान की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार को केद्र बनाकर फिल्म ‘गुड बाय’ लेकर आए हैं, जिसमें टकराव इस बात पर है कि इंसान के मरने के बाद उसका अंतिम संस्कार उसकी इच्छा अनुसार किया जाए अथवा हजारों वर्षों से चले आ रहे रीति रिवाज के अनुसार. कथानक के स्तर पर यह विचार बहुत संुदर है और इस पर बात भी होनी चाहिए. आखिर हम कब तक दकियानूसी या पोंगा पंथी रीति रिवाजों को झेलते रहेंगें. मगर फिल्मकार विकास बहल लेखन व निर्देशन के स्तर पर पूरी तरह से विफल रहे हैं. उन्होने अति संवेदनशील व दुःखद मृत्यु का भी मजाक बनाकर रख दिया है. विकास बहल की फिल्म कीक हानी का आधार रीति रिवउज बनाम विज्ञान है, मगर वह इसके साथ न्याय नहीं कर पाए. बल्कि वह अंततः धर्म व अंधविश्वास को बढ़ावा देने में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लिया.
फिल्म ‘गुड बाय’ की पूरी कहानी गायत्री की असामयिक मृत्यु से जूझ रहे चंडीगढ़ परिवार की दुर्दशा, अंत्येष्टि की तैयारी से लेकर तेहरवीं तक महिला के अंतिम संस्कार के इर्द-गिर्द घूमती है. काया फिल्मकार ने सी विषय पर कुछ समय पहले आयी फिल्म ‘रामप्रसाद की तेहरवीं ’ देखकर कुछ सीख लिया होता है. ‘रामप्रसाद की तेहरवीं’ मे भी फिल्मकार ने बहुत ही संुदर तरीके से वही सवाल उठाए थे, जिन्हें विकास बहल ने अपनी फिल्म में उठाया है.
कहानीः
चंडीगढ़ में हरीश भल्ला (अमिताभ बच्चन) अपनी पत्नी गायत्री (नीना गुप्ता) के साथ रहते हैं. उनके तीन बेटे व एक बेटी यानी कि चार बच्चे हैं. मगर सभी बच्चे पढ़ लिखकर चंडीगढ़ से इतर शहरांे व विदेशों में कार्यरत हैं. बेटी तारा (रश्मिका मंदाना) मुंबई में वकील हैं, दो बेटे अंगद व करन (पवेल गुलाटी) विदेश में मल्टीनैशनल कंपनी में जॉब करते हैं और छोटा बेटा नकुल माउंटेनियर है. हरीश भल्ला की एक युवा नौकरानी है, जिसे वह परिवार के सदस्य की तरह मानते है. संकेत मिलते हैं कि उसका अंगद के साथ प्रेम लीला चल रही है. जिंदगी से भरपूर गायत्री की अचानक हार्ट- अटैक से मौत हो जाती है. सभी बच्चे अपनी मां की अंतिम विदाई के लिए चंडीगढ़ पहुंचते हैं.
फिल्म शुरू होती है मंुबई के एक डिस्को बार से. जहां दुनिया दारी से बेफिक्र तारा भल्ला (रश्मिका मंदाना)‘शराब पीने के साथ ही नृत्य करती है. वह मुंबई की नवोदित वकील है, जिसने अपना पहला केस आज ही जीता है. दूसरे दिन सुबह जब डिस्को बार का वेटर तारा के घर जाता है, तो तारा अपने प्रेमी मुदस्सर के साथ सो रही होती हें. दरवाजे की घंटी बजकार वह उन्हें नींद से जगाकर मोबाइल फोन देते हुए बताता है कि रात में उनके पिता हरीश भल्ला (अमिताभ बच्चन) के कई कॉल आए थे. मजबूरन उसने एक काल उठाया तो उन्होने बुरी खबर दी थी कि आपकी यानी कि तारा की माँ गायत्री (नीना गुप्ता) नहीं रही.
तारा तुरंत चंडीगढ़ अपने घर फ्लाइट पकड़कर पहुंचती है. दाह संस्कार की तैयारी चल रही होती है. पारिवारिक मित्र पी. पी. सिंह (आशीष विद्यार्थी) खुद को परंपरा के स्वयंभू संरक्षक मानकर सभी को निर्देश देते हैं कि क्या करना है, कैसे करना है. वह रीति रिवाजों और अनुष्ठानों के बारे में बताते हैं. तारा एक युवा विद्रोही लड़की है. वह बार बार रीति-रिवाजों का विरोध करते हुए इस तथ्य पर जोर देती रहती है कि यह उस तरह का अंतिम विदायी नहीं है, जैसा उनकी मुक्त-उत्साही माँ चाहती थीं. तारा के दो भाईयों अंगद के अलावा लॉस एंजेलिस निवासी करण (पावेल गुलाटी) को उनकी मां के निधन की विधिवत सूचना दी जाती है. वह दुनिया के दो अलग-अलग हिस्सों से घर वापसआने के लिए संघर्ष करते हैं. करण अपनी अमरीकी पत्नी डेजी (एली अवराम) के साथ आता है. डेजी इस बात से अनभिज्ञ है कि हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार में किस रंग के कपड़े पहनने चाहिए. गायत्री की अंतिम यात्रा में कंधा देने मुदस्सर भी पहुॅचता है, न चाहते हुए भी हरीश भल्ला चुप रह जाते हैं. दाह संस्कार संपन्न होने के बाद पूरा परिवार गायत्री भल्ला की अस्थियों को लेकर ऋषिकेश की यात्रा पर निकलता है. जहां चतुर पंडितजी (सुनील ग्रोवर) अस्थि विर्सजन का कार्य कराते हुए जीवन और मृत्यु में धार्मिक कर्मकांडों की केंद्रीयता के बारे में बताता है. वह तारा से कहहा है, ‘जिसे आप नहीं मानती, वह गलत हो यह जरुरी नही. ’इसी के साथ वह चतुर पंडित तारा से कहता है-‘‘उन्हे उन कहानियों और यादों का जश्न मनाना चाहिए जो गायत्री ने उसके लिए छोड़ी है. ’’यहां पर पंडित के कहने पर भी बड़ा बेटा करण अपने सिर के बाल नहीं मुड़ाता है. लेकिन तीसरे भाई नकुल के बारे में के बारे में तब पता चलता है जब अंतिम संस्कार व तेहरवीं संपन्न हो चुकी होती है और हरीश भल्ला के जन्मदिन पर घर आता है कि वह माउंटेरियन है और अपनी मां की इच्छा पूरी करने के लिए पहाड़ चढ़ रहा था.
नकुल अपनी मां की मौत के बारे में दुखी होता है और अपने सिर के बाल मंुडवाता है, तब करण भी बाल मंुड़वा लेता है. यह देखकर हरीश भल्ला भी खुश हो जाते हैं.
लेखन व निर्देशनः
बौलीवुड में कुछ निर्देशक ऐसे भी हैं जिन्हे ‘वन फिल्म वंडर’ कहा जाता है. यह वह निर्देशक हैं, जिन्होने अपने पूरे कैरियर में महज एक बेहतरीन फिल्म ही दी, बाकी फिल्मों में वह मात खा गए. तो ऐसे ही ‘वन फिल्म वंडर’ निर्देशक विकास बहल एक बार फिर बुरी तरह से मात खा गए हैं. विकास बहल ने सबसे पहले 2011 में नितेश तिवारी के साथ फिल्म ‘‘चिल्लर पार्टी’’ का निर्देशन किया था. फिल्म ठीक ठाक बनी थी और इसका सारा श्रेय नितेश तिवारी को गया था. फिर 2013 में विकास बहल लिखित व निर्देशित फिल्म ‘क्वीन’’ न सिर्फ बाक्स आफिस पर सफल रही, बल्कि हर किसी ने इस फिल्म की तारीफ की. विकास बहल को ‘क्वीन’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्ीय पुरस्कार भी मिल गया. और इसी के साथ उनकी प्रतिभा पर ग्रहण लग गया. ‘क्वीन’ के बाद विकास बहल ने ‘शानदार’ और ‘सुपर 30’ का निर्देशन किया. इन दोनो ही फिल्में ने बाक्स आफिस पर पानी नही मांगा और आलोचको ने भी फिल्म को पसंद नहीं किया था. अब विकास बहल ‘गुड बाय’ लेकर आए हैं, जो कि उनकी खराब फिल्म ‘शानदार’ से भी बदतर फिल्म है. वह इस फिल्म में भारतीय संस्कार, रीतिरिवाज या विज्ञान किसी को भी ठीक से चित्रित नहीं कर पाए. कम से कम फिल्सर्जक विकास बहल यही बता देते कि मृत शरीर को नहलाकर उसके कान और नाक में रुई डालने के पीछे वैज्ञानिक मान्यता यह है कि मृतक के शरीर के अंदर कोई कीटाणु ना जा सके. व पैर के दोनों अंगूठों को बांधने के पीछे तर्क यह है कि शरीर की दाहिनी नाड़ी व बाईं नाड़ी के सहयोग से मृत शरीर सूक्ष्म कष्टदायक वायु से मुक्त हो जाए.
घटिया जोक्स, इंसान की मौत पर जिस तरह के दृश्य फिल्माए गए हैं, वह बर्दाश्त नही किए जा सकते. फिल्म में विदेशी संस्कृति को बढ़ावा दिया गया है. गायत्री की मौत के बाद उनकी जिस तरह से उनका एक बेटा घर आता है और उनकी मृत देह के पास जमीन पर गिरता है, वह दृश्य लेखक निर्देशक के ेदिवालिएपन का परिचायक है.
अमूमन हम देखते है कि अंत्येष्टि के वक्त आयी महिलाएं आपस में ही मगन रहती है. फिल्मकार ने इस फिल्म में दिखाया है कि गायत्री की सहेलियां आरामदायक कुर्सी हथियाने, सेल्फी क्लिक करने या व्हाट्सएप ग्रुप के लिए नाम तय करने में किस तरह मगन रहती है. मगर यह दृश्य इस तरह चित्रित किए गए है कि यह मनोरंजन करने की बनिस्बत झल्लाहट पैदा करते हैं.
विकास बहल ने अपनी फिल्म ‘‘गुड बाय ’’ में सवाल तो जरुर उठाया है कि इंसान अपनी मौत किस तरह से चाहता है, मौत के बाद वह अपने मृत देह का संस्कार कैसे करना चाहता है? परिवार वाले किस रीति रिवाज से मृतक का दाह संस्कार करते हैं? रीति रिवाज के वैज्ञानिक कारण क्या हैं? मगर वह इन सवालोंे के जवाब नहीं दे पाए. पूरी फिल्म विखरी विखरी सी है. इतना ही फिल्म का एक भी किरदार सही ढंग से नही लिखा गया है. हरीश व गायत्री जब अंगद को गोद लेने जाते हैं, उस वक्त के कुछ संवाद महिला विराधी हैं. इसके अलावा एक संवाद है कि जब इनकी सैलरी बढ़ी तो हमने सोचा एक बालक और गोद ले ले. तो क्या बाकी के तीन बच्चे भी गोद लिए हुए हैं? सब कुछ अस्पष्ट हैं. यहां तक कि अमिताभ बच्चन का किरदार भी विकसित नही हुआ.
विकास बहल का लेखन व निर्देशन कमियों से युक्त हैं.
अभिनयः
अमिताभ बच्चन का अभिनय ठीक ठाक ही है. वास्तव में उनकाहरीश भल्ला के किरदार अविकसित है, जिसका असर उनके अभिनय पर पड़ना स्वाभाविक है. गायत्री के किरदार में नीना गुप्ता का किरदार कुछ क्षणों के लिए फ्लेशबैक में आता है और वह अपनी छाप छोड़ जाती हैं. तारा के किरदार में रश्मिका मंदाना की यह पहली हिंदी फिल्म है. इससे पहले वह ‘पुष्पा द राइज’ में जलवा विखेर चुकी हैं. पर ‘पुष्पा द राइज’ में उन्हे पसंद करने वालों को निराशा होगी. इस फिल्म में वह सिर्फ संुदर नजर आयी हैं. पंडित के किरदार में सुनील ग्रोवर अपने अभिनय की छाप छोड़ते हैं. बाकी कोई प्रभावित नही करता.
बीते दिनों टीवी और फिल्म इंडस्ट्री से बुरी खबरे सामने आ रही हैं. जहां कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का हाल ही में निधन हुआ था तो वहीं अब लाल सिंह चड्ढा में नजर आने वाले जाने माने एक्टर अरुण बाली (Arun Bali)का निधन हो गया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…
एक्टर अरुण बाली लंबी बीमारी से पीड़ित थे, जिसके बाद 7 अक्टूबर यानी आज मुंबई में उनका 79 साल की उम्र में निधन हो गया है. दरअसल, खबरों की मानें तो एक्टर पिछले कुछ समय से न्यूरोमस्कुलर बीमारी से जूझ रहे थे, जिसमें नसें और मसल्स के बीच कम्युनिकेशन फेल हो जाता है. वहीं कुछ दिन पहले ही मुंबई के हीरानंदानी हॉस्पिटल में उन्हें एडमिट करवाया गया था, जिसके बाद उनका निधन हो गया.
दिग्गज अभिनेताओं की गिनती में आने वाले एक्टर अरुण बाली ने करीब 48 साल की उम्र में एक्टिंग डेब्यू किया, जिसके चलते वह बौलीवुड के कई बड़े एक्टर्स के साथ स्क्रीन शेयर करते हुए नजर आ चुके हैं. वहीं हाल ही में जहां एक्टर की आखिरी फिल्म ‘गुडबाय’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है तो वहीं कुछ दिनों पहले आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा’ में भी नजर आ चुके हैं, जिसमें उनकी एक्टिंग की काफी तारीफ हुई थी.
बता दें, बीते कुछ साल टीवी और बौलीवुड इंडस्ट्री के लिए काफी मुश्किल भरे रहे हैं क्योंकि इन सालों में कई दिग्गज एक्टर्स ने दुनिया को अलविदा कहा है. वहीं इनमें एक्टर ऋषि कपूर, इरफान खान जैसे एक्टर्स का नाम भी शामिल हैं. वहीं टीवी इंडस्ट्री में एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला जैसे सितारों के जानें से फैंस काफी दुखी हैं.