इन बीमारियों के कारण होते हैं चेहरे के ये बदलाव

हमारे शरीर में क्या कमी है, किस चीज की अधिकता है, सेहत संबंधित सारी चीजें हमारे चेहरे पर उभर आती हैं. किसी भी व्यक्ति के चेहरे को देख कर बताया जा सकता है कि उसे किस तरह की बीमारी है. आपका चेहरा कई तरह की बीमारियों का संकेत देता है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि चेहरे पर आने वाले कौन से बदलाव किस बीमारी के लक्षण होते हैं. किसी भी तरह के बदलाव के क्या मायने होते हैं.

चेहरे पर बाल आना

हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ने से इस तरह की परेशानियां महिलाओं में देखी जाती है. इससे बहुत परेशान ना हों. डाक्टर को दिखाएं, परामर्श लें. जल्दी आपको राहत मिलेगी.

शरीर पर लाल धब्बों का आना

जब आपके पेट में किसी तरह की परेशानी हो रही है तो शरीर पर लाल बड़े धब्बे उभर आते हैं.

बालों का झड़ना

बालों का झड़ना एक आम सी परेशानी है. पर अगर आपके सिर के बालों के साथ पलकें और आईब्रो भी झड़ रहें हैं तो सावधान हो जाइए. इसे नजरअंदाज ना करें. जानकारों की माने तो ये औटोइम्‍यून बीमारी के कारण होता है.

होंठ का सूखना

अगर आपके शरीर में पानी की कमी रह रही है तो आपके होंठ सूखेंगे. सारे मौसमों में अगर आपके होंठ खुश्क रहते हैं तो आपको डायबिटीज और हाइपोथाइरौडिज्म की भी जांच करा लेनी चाहिए.

चेहरे का पीला पड़ना

जब आपके शरीर में खून की कमी होती है तो आपके चेहरे का रंग बदलता है. चेहरे का पीला होना खून की कमी का सूचक है. अपने खानपान पर ध्यान दें.

समय पर होना है प्रेग्नेंट तो इस बात का ख्याल रखें

खराब खानपान का सेहत पर तुरंत असर नहीं होता, बल्कि एक लंबे समय के बाद इनका असर समझ आता है. हाल ही में हुए एक स्टडी में ये बात सामने आई कि जंकफूड का अधिक प्रयोग करने वाली महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान बहुत परेशानी होती है. शोध में पाया गया कि हफ्ते में तीन चार बार से अधिक जंकफूड का सेवन करने वाली महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में ज्यादा वक्त लगता है. वहीं जो महिलाएं जंकफूड का सेवन कम करती है वो ज्यादा सहूलियत और आसानी से प्रेग्नेंट होती हैं.

औस्ट्रेलिया में हुए इस शोध में ये बात सामने आई कि जो महिलाएं हेल्दी फूड खाती हैं वो ज्यादा फिट रहती हैं और सही वक्त पर गर्भवती भी होती हैं. फर्टिलिटी में भी हेल्दी फूड बेहद लाभकारी होते हैं. इसके अलावा ये बात भी सामने आई कि जिन खाद्य पदार्थों में जिंक और फोलिक एसिड की मात्रा प्रचुर होती है उनके सेवन से गर्भधारण की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है. हरे पत्तेदार सब्जियों, मछली, बीन्स और नट्स में ये तत्व पाए जाते हैं.

पाचन की है समस्या तो इन 5 चीजों से बना लें दूरी

जैसा हमारा खानपान हो गया है धिकतर लोगों को पेट की समस्याएं होने लगी हैं. बहुत से लोगों को परेशानी रहती है कि उनका पेट साफ नहीं रहता. अगर आपका पेट साफ नहीं रहता है तो पूरा दिन खराब जाता है. इसके अलावा आपको कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं.

इस खबर में हम आपको पांच चीजों के बारे में बताएंगे जिनसे दूरी बना कर आप अपने पेट को हेल्दी रख सकती हैं.

चिप्स

जो लोग चिप्स का सेवन अधिक करते हैं उन्हें अपच की समस्या होती है. जिन लोगों को पहले से अपच की परेशानी है उन्हें इससे दूरी बनानी चाहिए. आलू में वसा की मात्रा अधिक होती है, जिसके कारण इसे पचने में काफी वक्त लगता है. पेट की अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि तली और भुनी हुई चीजों का अधिक सेवन करने से बचें.

दूध से बने उत्पाद

दूध से बना उत्पाद गरिष्ठ भोजन की श्रेणी में आते हैं. इसके पाचन में काफी समय लगता है. इन उत्पादों में  फाइबर की मात्रा बेहद कम होती है और वसा की मात्रा अधिक होता है. यही कारण है कि इसका अधिक सेवन करने से पेट की बहुत सी समस्याएं होती हैं.

केला

आमतौर पर पाचन में केला काफी मददगार होता है पर कच्चा केला इसके ठीक उलट प्रभाव डालता है. पेट की सेहत के लिए जरूरी है कि कच्चे केले से दूर रहें.

फ्रोजन खानों से रहें दूर

फ्रोजन खानों से दूर रहें. ज्यादा दिनों तक रखें खाद्य पदार्थ आपकी पेट की सेहत के लिए अच्छे नहीं होते. कोशिश करें कि हरी साग सब्जियों का सेवन करें.

बिस्कुट

बिस्कुट और कुकिड में मैदा की मात्रा अधिक होती है. पेट के लिए ये काफी हानिकरक होता है. पेट की सेहत के लिए जरूरू है कि इनके अधिक सेवन से बचें.

लिवर के कैंसर में फायदेमंद होता है टमाटर

अनहेल्दी फूड्स, जंक फूड्स, फास्ट फूड्स जैसी चीजों का अधिक सेवन करने से लिवर का बहुत नुकसान होता है. जिससे लिवर कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है. हाल ही में एक स्टडी में ये बात सामने आई कि अधिक टमाटर का सेवन करने से लिवर कैंसर का खतरा कम होता है.

आपको बता दें कि इस स्टडी को चूहों पर किया गया. स्टडी की रिपोर्ट्स के मुताबिक टमाटर लाइकोपीन नाम का एंटीऔक्सिडेंट, एंटी इंफ्लामेट्री और कैंसर को नष्ट करने वाले गुण पाए जाते हैं. टमाटर में मौजूद ये सारे जरूरी तत्व लिवर की सूजन, कैंसर जैसी गंभीर समस्याओं को कम करते हैं.

अमेरिका में हुए इस शोध में ये बात सामने आई कि कच्चे टमाटर के अलावा केचअप, जूस या टमाटर से बने प्रोटक्ट्स में लाइकोपीन की मात्रा अधिक होती है. जानकारों की माने तो लिवर कैंसर में टमाटर का पाउडर भी काफी अहम भूमिका निभाता है. इसके अलावा कच्चा टमाटर भी काफी फायदेमंद होता है. कच्चे टमाटर में  विटामिन-ई, विटामिन-सी, फोलेट, मिनरल्स, फिनोलिक कंपाउंड और डायट्री फाइबर पाए जाते हैं.

चूहो पर हुए इस स्टडी में ये बात सामने आई कि उन्हें टमाटर खिलाने से उनके शरीर में सूजन पैदा करने वाले बैक्टीरिया की ग्रोथ काबू में रही. आपको बता दें कि टमाटर के अलावा अमरूद, तरबूज और पपीते में भी लाइकोपीन की मात्रा अधिक होती है.

सर्वाइकल कैंसर से कैसे बचें

महत्त्वपूर्ण तथ्य

सरल शब्दों में समझें तो अगर दुनिया के विकसित देशों में 100 में से एक महिला को जिंदगी में सर्वाइकल कैंसर होता है तो भारत में 53 महिलाओं में से एक को यह बीमारी होती है यानी भारतीय दृष्टिकोण में करीब आधे का फर्क है.

अन्य कारण

  • छोटी उम्र में संभोग करना.
  • एक से ज्यादा पार्टनर के साथ यौन संबंध बनाना.
  • ऐक्टिव और पैसिव स्मोकिंग.
  • लगातार गर्भनिरोधक दवाइयों का इस्तेमाल.
  • इम्यूनिटी कम होना.
  • बंद यूरेटर.

किडनी

  • भारतीय महिलाएं माहवारी से जुड़ी बातों पर आज भी खुल कर बात करने से बचती हैं. शायद इसलिए भारतीय महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर के बाद सर्वाइकल कैंसर दूसरा सब से आम कैंसर बन कर उभर रहा है.
  • कैसे होता है सर्विक्स गर्भाशय का भाग है, जिस में सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पैपीलोमा वायरस (एचपीवी) संक्रमण की वजह से होता है.
  • यह संक्रमण आमतौर पर यौन संबंधों के बाद होता है और इस बीमारी में असामान्य ढंग से कोशिकाएं बढ़ने लगती हैं.
  • इस वजह से योनि में खून आना, बंद होना और संबंधों के बाद खून आने जैसी समस्याएं हो जाती हैं.

लक्षण

आमतौर पर शुरुआत में इस के लक्षण उभर कर सामने नहीं आते, लेकिन अगर थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो इस के लक्षणों की पहचान की जा सकती है:

  • नियमित माहवारी के बीच रक्तस्राव होना, संभोग के बाद रक्तस्राव होना.
  • पानी जैसे बदबूदार पदार्थ का भारी डिस्चार्ज होना.
  • जब कैंसर के सैल्स फैलने लगते हैं तो पेट के निचले हिस्से में दर्द होने लगता है.
  • संभोग के दौरान पैल्विक में दर्द महसूस होना.
  • असामान्य, भारी रक्तस्राव होना.
  • वजन कम होना, थकान महसूस होना और एनीमिया की समस्या होना भी लक्षण हो सकते हैं.

कंट्रोल करने की वैक्सीन व टैस्ट

वैसे तो शुरुआत में सर्वाइकल कैंसर के लक्षण दिखाई नहीं देते लेकिन इसे रोकने के लिए वैक्सीन उपलब्ध है, जिस से तकरीबन 70 फीसदी तक बचा जा सकता है.

नियमित रूप से स्क्रीनिंग की जाए तो सर्वाइकल कैंसर के लक्षणों की पहचान की जा सकती है.

बीमारी की पहचान करने के लिए आमतौर पर पैप स्मीयर टैस्ट किया जाता है. इस टैस्ट में प्री कैंसर सैल्स की जांच की जाती है.

बीमारी की पहचान करने के लिए नई तकनीकों में लगातार विकास किया जा रहा है. इस में लिक्विड बेस्ड साइटोलोजी (एलबीसी) जांच बेहद कारगर साबित हुई है.

एलबीसी तकनीकों के ऐडवांस इस्तेमाल से सर्वाइकल कैंसर की जांच करने में सुधार  आया है.

इलाज

अगर सर्वाइकल कैंसर का पता शुरुआती स्टेज में चल जाता है तो बचने की संभावना 85% तक होती है.

वैसे सर्वाइकल कैंसर का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर किस स्टेज पर है. आमतौर पर सर्जरी के द्वारा गर्भाशय निकाल दिया जाता है और अगर बीमारी बिलकुल ऐडवांस स्टेज पर होती है तो कीमोथेरैपी या रेडियोथेरैपी भी दी जाती है.

बचाव है जरूरी

डाक्टर से सलाह ले कर ऐंटीसर्वाइकल कैंसर के टीके लगवाएं.

महिलाओं को खासतौर से व्यक्तिगत स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि जननांगों की साफसफाई बहुत महत्त्वपूर्ण है.

माहवारी में अच्छी क्वालिटी का सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करना चाहिए.

समय पर डाक्टर से संपर्क करना कैंसर के इलाज का सब से अहम कदम है, इसलिए शारीरिक बदलावों को नजरअंदाज न करें.

-डा. अंजलि मिश्रा, लाइफलाइन लैबोरेटरी

पहले से और ज्यादा खतरनाक हो गए हैं जंक फूड

जंकफूड से होने वाली समस्याओं पर लगातार स्टडीज होती रही हैं. इन स्टडीज से साफ हुआ है कि लोगों की सेहत के लिए जंक फूड बेहद हानिकारक है. पर हम जो खबर ले कर आएं हैं वो इससे भी अधिक गंभीर है. जानकारों की माने तो पिछले तीन दशक में रेस्टोरेंट्स में मिलने वाले जंक फूड्स की क्वालिटी में भारी गिरावट देखी गई है. रेस्ट्रोरेंट्स ने अपने मेन्यू में स्प्राउट् को ऐड किया है पर जंक फूड को बनाने में सोडियम की मात्रा को बढ़ा दिया है. इससे लोगों में मोटापे की शिकायत और बढ़ गई है.

हाल ही में प्रकाशिक एक जर्नल के मुताबिक, पिछले 30 सालों में जंक फूड की क्वालिटी में भारी गिरावट आई है और इससे लोगों की सेहत पर पहले से ज्यादा बुरा असर हो रहा है. शोध में शामिल लोगों की माने तो जंक फूड हमेशा से लोगों की सेहत के लिए हानिकारक रहा है पर बीते तीस सालों में इसकी हालत और खराब हुई है. आलम सये है कि बहुत से लोगों के मौत का कारण बन गया है जंक फूड.

आपको बता दें कि स्टडी में 1986 से ले कर 2016 के बीच में 10 रेस्टोरेंट्स के जंक फूड का अध्ययन किया गया. इसका मुख्य उद्देश्य ये पता करना था कि बदलते वक्त के साथ इसमें क्या बदलाव हो रहे हैं और इससे लोगों की सेहत पर क्या असर हो रहा है.

स्टडी में आए परिणामों के मुताबिक, इन सभी रेस्टोरेंट्स में स्टार्टर, डेजर्ट और अन्य व्यंजनों में 226 प्रतिशत की भारी भरकम बढ़ोतरी हुई है. शोधकर्ताओं को लगता है कि जंक फूड और मोटापे के बीच में गहरा रिश्ता है. उनके मुताबिक, लोगों का जंक फूड की तरफ बढ़ता रुझान उनकी सेहत पर नकारात्मक असर डाल रहा है.

स्टडी में ये बात सामने आई कि रेस्टोरेंट्स ग्राहकों को ज्यादा जंक फूड परोस रहे हैं. इसके चलते हमारी बौडी में सोडियम की मात्रा बढ़ रही है. इससे लोगों की सेहत का खासा नुकसान हो रहा है.

वजन कम करने के लिए इन चीजों को करें अपनी डाइट में शामिल

कब हमारा वजन बढ़ने लगता है हमें पता नहीं लगता, जब तक एहसास होता है देरी हो चुकी होती है और इसके बाद वजम कम करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जरूरी है कि हम अपनी डाइट पर खासा ध्यान दें. वजन कम करने में शरीर के मेटाबौलिज्म की भूमिका अहम होती है. जिन लोगों के शरीर की मेटाबौलिज्म अच्छी होती है उनका वजन जल्दी कम होता है. इसके अलावा वजन कम करने में डाइट का काफी अहम योगदान होता है, इसलिए अपनी डाइट में सही मात्रा में न्यूट्रिएंट्स को शामिल करें.

आमतौर पर लोग वजन कम करने के लिए प्रोटीन का इस्तेमाल करते हैं. प्रोटीन से शरीर का मेटाबौलिज्म मजबूत होता है. पर इस खबर में हम आपको प्रोटीन के अलावा और भी न्यूट्रिएंट्स के बारे में बताएंगे जिनको अपनी डाइट में शामिल कर आप अपना वजन कम कर सकती हैं.

कैल्शियम

हड्डियों और दांतों को मजबूत रखने के साथ साथ कैल्शियम वजन घटाने में भी काफ मददगार होता है. कई स्टडीज में ये बात सामने आई कि कैल्शियमयुक्त डाइट लेने से वजन बढ़ने का खतरा कम रहता है.

फाइबर

वजन कम करने के लिए फाइबर का इस्तेमाल बेहद जरूरी है. फाइबर दो तरह के होते हैं, सौल्यूबल और इनसौल्यूबल, ये दोनों ही सेहत के लिए जरूरी होते हैं. इसके सेवन से हार्मोन्स बैलेंस्ड रहते हैं. फाइबर के डाइजेशन में काफी वक्त लगता है जिसके कारण लंबे समय तक आपको भूख नहीं लगती है. इससे आप अधिक खाना नहीं खाते और आपका वजन कंट्रोल में रहता है.

ओमेगा-3 फैटी एसिड

दिल की सेहत के लिए और स्किन के लिए ओमेगा-3 फैटी एसिड काफी लाभकारी होता है. इससे भूख कंट्रोल में रहती है. जानकारों की माने तो ओमेगा-3 फैटी एसिड से मेटाबॉलिज्म मजबूत होता है. साथ ही ज्यादा कैलोरी बर्न होती हैं.

पोटैशियम

ये भी बेहद जरूरी न्यूट्रिएंट है. आमतौर पर लोग इसे अहमियत नहीं देते. शरीर के बहुत से टौक्सिंस को बाहर करने में ये बेहद मददगार होता है. इसे अपनी डाइट में सामिल करने से किडनी और दिल ठीक ढंग से काम करते हैं.

ये एक मिनट का एक्सरसाइज, 45 मिनट के जौगिंग के बराबर है

लंबी लाइफ के साथ अच्छी सेहत के लिए एक्सरसाइज बेहद जरूरी होता है. इससे शरीर से भारी मात्रा में पसीना निकलता है जिसके साथ शरीर की बहुत सी गंदगियां बाहर निकल जाती हैं. हाल ही में एक स्टडी में ये बात सामने आई कि एक्सरसाइज करने से उम्र लंबी होती है और आप स्वस्थ रहती हैं. पर जिस तरह की लोगों की लाइफ हो चुकी है, एक्सरसाइज के लिए समय निकालना सबके बस की बात नहीं रही. ऐसे में हम आपको एक ऐसा एक्सरसाइज बताने वाले हैं जिसे सिर्फ एक मिनट तक कर के 45 मिनट के बराबर का फायदा लिया जा सकता है.

हाल ही में एक शोध के मुताबिक सिर्फ एक मिनट के हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज करने से शरीर को 45 मिनट की जौगिंग या लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज करने के बराबर फायदा होता है. इस स्टडी में लोगों को हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज के नाम पर स्प्रिंट करने को कहा गया.

इस टेस्ट में शोधकर्ताओं ने सभी लोगों को दो समूहों में बांट दिया, इसमें एक ग्रुप को 12 हफ्तों तक लगातार हर 10 मिनट के बाद हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज जैसे स्प्रिंट करनी थी. वहीं, दूसरे ग्रुप ने घंटों पसीना बहाकर लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज की.

तय वक्त के बाद लोगों की मांसपेशियों और दिल की सेहत की जांच की गई. नतीजों से ये स्पष्ट हुआ कि लिन लोगों ने सिर्फ एक मिनट की हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज की उनको भी उतना ही फायदा हुआ, जितना घंटों तक लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज करने वालों को हुआ.

अगर आपका बच्चा भी करता है ऐसा तो समझ जाइए उसे तनाव है

आजकल लोगों की लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि अधिकतर लोग तनाव से ग्रसित हैं. और इसके शिकार केवल बड़े ही नहीं हैं, बल्कि छोटे बच्चे भी हैं. बहुत से लोगों को लगता है कि तनाव केवल बड़ों को होता है, बच्चों को नहीं, उनके लिए ये खबर जरूरी है, क्योंकि इससे उनका भ्रम टूटेगा. हर उम्र के अपनी अलग चुनौतियां होती हैं, और ये चुनौतियां बच्चों को भी मिलती हैं.

हाल ही में एक स्टडी में बच्चों को होने वाले तनाव के बारे में पता चला है. स्टडी के मुताबिक, अगर आपका बच्चा स्कूल ना जाने के बहाने बनाता है और सिर्फ घर पर बैठना चाहता है, तो ये संभव है कि आपका बच्चा तनाव से परेशान हो.

अमेरिका की एक युनवर्सिटी में हुए शोध की माने तो अगर आपका बच्चा स्कूल जाने से कतराता है या स्कूल में उसकी अटेंडेंस कम है तो इसका कारण तनाव हो सकता है.

इस स्टडी को करते हुए स्कूल की अटेंडेंस को 4 भागों में बांट दिया गया. आसान शब्दों में उन्होंने वो कारण चिन्हित किए जिसके चलते बच्चे स्कूल से छु्ट्टी लेते हैं. वो चार कारण थे- कभी-कभी स्कूल ना जाना, बीमारी के चलते छुट्टी, बिना किसी कारण के छुट्टी, स्कूल जाने से साफ इंकार. अब शोधकर्ताओं को अध्ययन करके पता चला कि बिना किसी कारण के जो छुट्टी ली जाती है, उसमें सबसे बड़ा कारण तनाव होता है.

जानकारों ने इस बात पर चींता जाहिर की कि इसनी छोटी उम्र के बच्चे तनाव से ग्रसित हो रहे हैं. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ये तनाव बच्चों की पढ़ाई के साथ उनकी सामाजिक और आर्थिक विकास में भी बाधा बन सकता है.

9 घंटे से अधिक काम करने वाली महिलाएं है तनावग्रस्त

इस भागदौड़ भरी जिंदगी में अपने लिए सम निकालना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. हमेशा आगे निकलने की होड़ में पीछे छूट जाने का डर रहता है, यही कारण है कि लोग औफिस में अधिक काम करने को मजबूर होते हैं. पर जरूरत से अधिक कोई भी चीज खतरनाक होती है. हाल ही में एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि जो महिलाएं 9 घंटे या उससे अधिक काम करती हैं उनमें डिप्रेशन का खतरा अधिक रहता है.

स्टडी के मुताबिक जो महिलाएं एक हफ्ते में 55 घंटे से ज्यादा काम करती हैं, उन्हें डिप्रेशन होने का खतरा 7.3 प्रतिशत ज्यादा बढ़ जाता है. वहीं महिलाएं, जो एक हफ्ते में 35-40 घंटे काम करती हैं, वो मानसिक रूप से अधिक स्वस्थ और तनाव मुक्त रहती हैं.

जानकारों का कहना है कि ऐसा इस लिए भी है क्योंकि उन्हें केवल औफिस का काम नहीं देखना होता है, बल्कि उनके लिए घर का कामकाज भी तनाव का मुख्य कारण होता है. स्टडी में ये बात भी सामने आई कि जो महिलाएं वीकेंड में भी काम करती हैं, वो ज्यादातर सर्विस सेक्टर की होती हैं और उनकी सैलरी दूसरों की तुलना में कम होती है. अब जब सैलरी कम हो तो इंसान पर तनाव तो बढ़ता ही है और फिर वो डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं. आपको बाता दें कि इस स्टडी में 12,188 कामकाजी महिलाओं को शामिल किया गया था.

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