कुछ महीनों से सीढि़यां चढ़ने में मेरी सांस बहुत फूलने लगती है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 42 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले कुछ महीनों से सीढि़यां चढ़ने में मेरी सांस बहुत फूलने लगती है. मैं क्या करूं?

जवाब-

सांस फूलने का मतलब है कि शरीर को पर्याप्त मात्रा में औक्सीजन नहीं मिल पा रही है, जिस से फेफड़ों पर दबाव पड़ता है और वे औक्सीजन पाने के लिए सांस की गति को बढ़ा देते हैं. सांस फूलने की समस्या कई कारणों से हो सकती है जिन में मोटापा, हृदयरोग, शरीर में पानी की कमी, श्वसनतंत्र से संबंधित समस्याएं जैसे छाती का संक्रमण, ब्रोंकाइटिस, सांस की नली में रुकावट, अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर आदि. इस के उपचार के लिए इस का कारण जानना बहुत जरूरी है. आप किसी डाक्टर को दिखाएं. अगर समय रहते इस समस्या का उपचार नहीं किया जाए तो यह घातक हो सकती है.

ये भी पढ़ें- Periods में क्लौट्स आने से हीमोग्लोबिन कम हो गया है, मैं क्या करुं?

ये भी पढ़ें- 

पहले तो हार्ट अटैक बड़ी उम्र के लोगों में देखा जाता था पर पिछले 2 सालों से कम उम्र के युवा इसका शिकार होने लगे हैं. स्टडी है कि हर मिनिट में 3 से 4 भारतीय जिनकी उम्र 30 से 50 के मध्य है वो एक सीवियर हार्ट अटैक से गुजरते हैं .साउथ एशिया के लोग अन्य किसी भी जगह के लोगों की अपेक्षा ज्यादा हार्ट अटैक झेलते हैं .क्योंकि ये हाई ब्लड प्रेशर, टाइप टू डायबिटीज और बढ़े कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित होते हैं.आखिर क्या कारण है कि युवा इतनी कम उम्र में दिल के मरीज़ हो जा रहे हैं तो आइए इसके कारण जानते हैं.

मानसिक तनाव –

आजकल युवा मानसिक रूप से अधिक परेशान होते हैं .धैर्य की कमी और काम के दौरान य्या उसकी वजह से होने वाले तनाव के कारण एंग्जायटी डिसऑर्डर होंना एक आम समस्या हो गई है .एंग्जायटी के कारण स्ट्रेस के लिए जिम्मेदार हार्मोन कार्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है जिस से हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है.

लाइफ स्टाइल –

आजकल के युवाओं की जीवन शैली बहुत ही अलग हो गई है जिसके कारण उन्हें कईं बीमारियों का सामना करना पड़ता है जिनमे हार्ट अटैक भी एक है. देर रात तक जागना और काम करना सुबह सुबह सोना ये सब हाइपरटेंशन को बढ़ा देता है जिस से हार्ट अटैक की संभावना को बढ़ जाती है.बहुत देर तक फिजिकल वर्क नहीं करना भी सेहत पर विपरीत प्रभाव डालता है.आजकल समय की कमी के कारण चलना फिरना न के बराबर हो गया है.एक्सरसाइज नहीं करने से डायबिटीज और ओबेसिटी का खतरा बढ़ जाता है.जब ब्लड में शुगर का स्तर बढ़ता है तो क्लॉट होने के चांस बढ़ जाते हैं जिस से हार्ट अटैक आ सकता है.ये आर्टरीज की दीवारों में सूजन का कारण बनता है जिस से हार्ट अटैक हो सकता है. घर से आफिस गाड़ी में जाना और वहाँ भी बैठे हुए काम करना भी सेहत के लिए हानिकारक है.वैसे ही हमारे देश को डायबिटीज कैपिटल के रूप में जाना जाता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्यों होते हैं कम उम्र में हार्ट अटैक

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बादाम तेल के 11 फायदे

बादाम सेहत और खूबसूरती दोनों के लिए फायदेमंद होता है. बादाम का तेल भी कई तरह से फायदे पहुंचाता है. बादाम में 44% तेल होता है, जिसे कोल्ड प्रैस कर के निकाला जाता है. बादाम के तेल में ऐंटीइनफ्लैमेटरी, इम्यूनिटी बूस्टिंग सहित कई गुण होते हैं. इस में विटामिन और मिनरल्स की भरपूर मात्रा होती है. पोषक तत्त्वों से भरपूर बादाम का तेल कई बीमारियों से दूर रखता है. बादाम तेल से बच्चों की मालिश की जाए तो उन का शारीरिक विकास तेजी से होता है.

बादाम तेल के कुछ ऐसे गुणों के बारे में जानिए जो खूबसूरती बरकरार रखने के साथसाथ आप को हैल्दी रखने में भी मदद करते हैं:

1. त्वचा के लिए फायदेमंद:

बादाम तेल का खूबसूरती निखारने में जवाब नहीं. यह चेहरे की रंगत निखारने के साथसाथ उसे ग्लो देने में भी बहुत असरदार होता है. इस से त्वचा को सही मात्रा में पोषण मिलता है, जिस से वह पहले से ज्यादा चमकदार और मुलायम हो जाती है. बादाम तेल में ग्लाइकोसाइड ऐमिगडेलिन होता है जो रफ त्वचा, झाइयों, अल्ट्रावायलेट किरणों से हुए स्किन को नुकसान आदि में फायदेमंद होता है. जिन लड़कियों को बाहर रहना पड़ता हो और स्किन सांवली या काली हो गई हो, उन के लिए बादाम तेल के निर्माता इसे फायदेमंद बताते हैं.

2. डार्क सर्कल्स के लिए फायदेमंद:

डार्क सर्कल्स जैसे समस्या से भी नजात पाने के लिए आप बादाम तेल का इस्तेमाल कर सकती हैं. रात को सोने से पहले आंखों के नीचे इस तेल से मालिश करें. इस तेल से हलकी मालिश करने से बहुत फायदा मिलता है.

3. जब हो जाए टैनिंग:

विभिन्न गुणों से भरपूर है यह तेल नैचुरल सनस्क्रीन की तरह भी काम करता है. टैनिंग से बचने या टैनिंग रिमूव करने के लिए बादाम तेल का इस्तेमाल कर सकती हैं. यह सूर्य की अल्ट्रावायलैट किरणों से त्वचा की रक्षा करने में मदद करता है. सेल्स गर्ल, फिजिकल क्लासें लेने वाली टीचर्स, खेलों में काम करने वाली लड़कियों को इस तेल का इस्तेमाल करना फायदेमंद हो सकता है.

4. डैंड्रफ से छुटकारा:

बादाम तेल डैड सैल्स को हटा कर डैंड्रफ से छुटकारा दिलाता है. बालों को डैंड्रफ फ्री और हैल्दी रखने के लिए इस तेल की मसाज के बाद हेयर स्टीम जरूर लें. इस से बालों की सौफ्टनैस और वौल्यूम दोनों में फर्क नजर आएगा.

5. स्प्लिट एंड्स से छुटकारा:

बालों को स्प्लिट एंड्स से छुटकारा दिलाना है तो समय पर ट्रिमिंग कराने के साथसाथ हलके गरम बादाम तेज को बालों के जड़ों और बालों के लंबाई के आखिर में लगाएं. इस से बालों का रूखापन खत्म होगा और स्प्लिट एंड्स से छुटकारा मिलेगा.

6. हृदय रोगों से सुरक्षा:

बादाम तेल में मौजूद मोनोअनसैचुरेटेड फैट एलडीएल यानी खराब कोलैस्ट्रौल को कम करता है और एचडीएल यानी अच्छे कोलैस्ट्रौल को बढ़ाता है जो रक्तचाप व हृदय की समस्याओं को कम करते हैं.

7. डायबिटीज:

बादाम का तेल ब्लड शुगर को कम करने में मदद कर सकता है.

8. वजन कम करने में सहायक:

बादाम के तेल के फायदों में वजन कम करना भी शामिल है. बादाम में मौजूद मोनोअनसैचुरेटेड फैट वजन घटाने में मदद सकता है.

9. आंखों के लिए फायदेमंद:

बादाम के तेल में मिलने वाला विटामिन ई आंखों को स्वस्थ बनाने का काम करता है. बादाम के तेल में अल्फाटोकोफेरोल नामक विटामिन ई मौजूद होता है जो बूढ़ी होती आंखों की रोशनी को भी बढ़ा सकता है.

10. पाचन की समस्याओं में लाभकारी:

बादाम का तेल कब्ज, डायरिया, पेट दर्द आदि को दूर करता है.

11. बच्चों के लिए फायदेमंद:

शिशु के त्वचा के लिए बादाम तेल बहुत फायदेमंद होता है क्योंकि इस में विटामिन ए, बी-1, बी-2, बी-6 विटामिन ई और आवश्यक फैटी ऐसिड होते हैं, जो शिशु की त्वचा को पोषित करने के साथसाथ उस की रंगत निखारने में भी मदद करते हैं. इस से शिशु की त्वचा मुलायम रहती है.

शिशु के शारीरिक विकास के लिए बादाम तेल से नियमित मालिश करें. इस से शिशु के शरीर के मांसपेशियों को मजबूती मिलती है. सर्दियों के मौसम में तो यह और भी फायदेमंद होता है.

बादाम तेल में मौजूद औमेगा-6 फेटी ऐसिड फायदेमंद होता है. इसे आप दूध में मिला कर बच्चों को दे सकती हैं.

गर्भावती महिलाओं के लिए:

गर्भावस्था में बादाम तेल का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है. गर्भावस्था में बादाम तेल के सेवन से डिलिवरी के नौर्मल होने की संभावना बढ़ जाती है. इस में मौजूद फौलिक ऐसिड, आयरन, कैल्सियम और दूसरे पोषक तत्त्व मां और बच्चा दोनों को फायदा पहुंचाते हैं. इस में भरपूर मात्रा में आयरन होता है, जो हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने का काम करता है. इस में मौजूद कैल्सियम और मैग्नीशियम दोनों शरीर की कई आवश्यकताओं को पूरा करते हैं.

ये भी पढ़ें- नमक कितना ज्यादा चीनी कितनी कम

ट्रांसप्लांट से क्या लिवर कैंसर से छुटकारा मिल जाएगा?

सवाल-

मैं लिवर कैंसर की तीसरी स्टेज से गुजर रहा हूं. क्या इस अवस्था में लिवर ट्रांसप्लांट संभव है और क्या इस से कैंसर से छुटकारा मिल जाएगा?

जवाब-

लिवर कैंसर 2 प्रकार का होता है – प्राइमरी एवं सैकंडरी. अधिकतर लिवर कैंसर शरीर के किसी अन्य हिस्से में पनपता है और फिर लिवर तक (सैकंडरी/मैटास्टैटिक) फैल जाता है, जबकि प्राथमिक लिवर कैंसर खुद लिवर में पनपता है और फिर लिवर के बाहर फैलता है. लिवर प्रत्यारोपण का विकल्प सिर्फ प्राइमरी लिवर कैंसर और वह भी केवल लिवर तक सीमित छोटे ट्यूमरों वाले मामलों में अपनाया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- गरमियों में बारबार पीलिया हो जाता है, इसका कारण बताएं?

ये भी पढे़ं- 

भारत में लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया में प्रगति के साथ आज न सिर्फ मरीज लंबे जीवन का आनंद ले सकता है बल्कि सर्जरी के बाद उसके जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाती है.

कई पत्रिकाओं में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, जीवित डोनर लिवर प्रत्यारोपण से गुज़रने वाले 15% से अधिक मरीज विदेशों से होते हैं. फेफड़ों की बीमारियों में वृद्धि और बढ़ती जागरुकता के साथ लगभग 85% डोनर जीवित होते हैं. इससे आकर्षित होकर मिडल ईस्ट, पाकिस्तान, श्री लंका, बांग्लादेश और म्यांमार आदि विदेशों से लोग लिवर ट्रांसप्लान्ट के लिए भारत आते हैं. आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 200 ट्रांसप्लान्ट किए जाते हैं और अबतक लगभग 2500 जीवित डोनर ट्रांसप्लान्ट किए जा चुके हैं.

जीवित या मृतक डोनर वह है जो अपना लिवर मरीज को दान करता है. भारत में अबतक का सबसे बड़ा विकास यह हुआ है कि अब मृत डोनर के अंगों को मशीन में संरक्षित किया जा सकता है. शरीर से निकाले गए अंगो को कोल्ड स्टोरेज में सीमीत समय के लिए ही रखा जा सकता है और लिवर को डोनर के शरीर से निकालने के 12 घंटो के अंदर ही प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए. जबकि मशीन संरक्षित लिवर की बात करें तो पंप के जरिए खून का बहाव जारी रहता है जिससे लिवर सामान्य स्थिति में रहकर पित्त का उत्पादन कर पाता है.”

भारत में यह तकनीक एक लोकप्रिय प्रक्रिया बन गई है. लिवर के केवल खराब भाग को प्रत्यारोपित किए जाने के कारण लिवर डोनेशन बिल्कुल सुरक्षित हो गया है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- भारत में अधिक सुरक्षित है जीवित डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

एक्सरसाइज काे लिए सबसे अच्छा औप्शन है साइकिलिंग

शारीरिक फिटनैस को ले कर हमेशा यह उलझन रही है कि कौन सी गतिविधियां सुडौल और छरहरे बदन के लिए मददगार हैं. हम में से ज्यादातर लोग बाहर घूमने से परहेज करते हैं, क्योंकि हम अपनी अन्य समस्याओं को दूर करने पर ज्यादा समय बिताते हैं.

साइकिलिंग हम में से उन लोगों के लिए एक खास विकल्प है, जो जिम की चारदीवारी से अलग व्यायाम संबंधी अन्य गतिविधियों को पसंद नहीं करते हैं. साइकिल पर घूमना शारीरिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. आप साइकिल के पैडल मार कर ही यह महसूस कर सकते हैं कि आप की मांसपेशियों में उत्तेजतना बढ़ी है. शारीरिक गतिविधि एड्रेनलिन से संबद्ध है, जो आप को बेहद ताकतवर कसरत का मौका प्रदान करती है. यह आप को बाकी व्यायाम के लिए भी उत्साहित करती है.

जिम की तुलना में जिन कारणों ने साइकिलिंग को अधिक प्रभावी बनाया है, वे मूलरूप से काफी सामान्य हैं. शरीर में सिर्फ एक मांसपेशी के व्यायाम के तहत आप को हमेशा दिल को तरजीह देनी चाहिए. इस का मतलब है दिल के लिए कसरत करना जिस से दिल संबंधी विभिन्न रोगों का जोखिम घटता है. महज एक स्वस्थ शरीर की तुलना में स्वस्थ दिल अधिक महत्त्वपूर्ण है.

ब्रिटिश मैडिकल ऐसोसिएशन के अनुसार, प्रति सप्ताह महज 32 किलोमीटर साइकिलिंग करने से दिल की कोरोनरी बीमारी के खतरे को 50% तक कम किया जा सकता है. एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि जो व्यक्ति प्रति सप्ताह 32 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं, उन्हें दिल की किसी बीमारी के होने की आशंका नहीं रहती है.

फायदे अनेक

साइकिलिंग का खास फायदा यह है कि इस का लाभ अबाधित तरीके से मिलता है और आप को इस का पता भी नहीं चलता. साइकिलिंग में महज पैडल मारने से ही आसान तरीके से आप की कसरत शुरू हो जाती है. इसे आराम से या उत्साहपूर्वक घुमाएं, दोनों ही मामलों में दिल की धड़कन बढ़ती है. इस से शरीर में प्रत्येक कोशिका के लिए औक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह बढ़ता है, दिल और फेफड़े मजबूत होते हैं.

ये भी पढ़ें- ले न डूबे यह लत

साइकिलिंग उन लोगों के लिए कसरत का श्रेष्ठ विकल्प है, जो किसी चोट से रिकवर हो रहे हों. क्रौस टे्रनिंग विकल्प ढूंढ़ रहे हों या 85 की उम्र में मैराथन में भाग लेने के लिए अपने घुटनों को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों. दौड़ने या जिम में ऐक्सरसाइज की तुलना में टांगों, एडि़यों, घुटनों और पैरों के लिए साइकिलिंग अधिक आसान एवं फायदेमंद है. इस से दिल शरीर के विभिन्न जोड़ों पर अधिक दबाव डाले बगैर पंपिंग करता है.

अधिक समय तक दौड़ने से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. वहीं दूसरी तरफ साइकिलिंग का कम प्रभाव है और यह घुटनों पर अधिक दबाव डाले बगैर टांगों की मांसपेशियों की कसरत है. इस के अलावा साइकिलिंग जोश बढ़ाती है.

हम में से ज्यादातर लोग साइकिलिंग के वक्त अपनी क्षमता से अधिक आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि यह बेहद आनंददायक है. इस के अलावा यह काफी कैलोरी भी अवशोषित करती है और उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो अपना अतिरिक्त वजन घटाना चाहते हैं. नियमित साइकिल चलाने से लगभग 300 कैलोरी प्रति घंटे खर्च हो सकती है और रोजाना आधा घंटा साइकिल चलाने से 1 साल में आप का 8 किलोग्राम वजन घट सकता है. यह मांसपेशियों को मजबूत बनाने और उपापचय दर बनाने में भी मददगार है.

साइकिलिंग सस्ता व्यायाम

विशेष स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग जिम की तुलना में आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कई मानों में लाभदायक हो सकती है. बाहर की ताजा हवा लेना, सुबह के समय सूर्य की गरमी को महसूस करना या शाम को त्वचा को ठंडी हवा आदि ऐसे लाभ हैं, जो जिम की कसरत में हासिल नहीं हो सकते. साइकिलिंग तनाव कम कर सकती है क्योंकि आप बाहर घूमते वक्त प्राकृतिक तौर पर ताजा हवा लेते हैं. यह क्रिया दिमाग के उस हिस्से को नियंत्रित करती है, जो चिंता और आशंका से जुड़ा होता है और उस हिस्से को सक्रिय करती है, जो सुंदरता, गति से संबद्ध है.

इन स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग आप का काफी समय बचाने में भी मददगार है. यह सर्वोच्च क्रम का मल्टीटास्किंग है. आप काम पर जाने के लिए साइकिल का चयन कर सकते हैं और फिटनैस व्यवस्था पर किसी तरह का दबाव पड़ने की चिंता से भी मुक्त रह सकते हैं.

साइकिलिंग श्रेष्ठ गतिविधियों में से एक है, आप अपनी शारीरिक फिटनैस के साथसाथ मानसिक फिटनैस के लिए भी कर सकते हैं. यह रक्तप्रवाह को बराकरार रखती है और आप के शरीर के अच्छा महसूस कराने वाले हारमोन पैदा करती है. अत: इसे अपने दैनिक रूटीन में जरूर शामिल करें.

शारीरिक फिटनैस को ले कर हमेशा यह उलझन रही है कि कौन सी गतिविधियां सुडौल और छरहरे बदन के लिए मददगार हैं. हम में से ज्यादातर लोग बाहर घूमने से परहेज करते हैं, क्योंकि हम अपनी अन्य समस्याओं को दूर करने पर ज्यादा समय बिताते हैं.

साइकिलिंग हम में से उन लोगों के लिए एक खास विकल्प है, जो जिम की चारदीवारी से अलग व्यायाम संबंधी अन्य गतिविधियों को पसंद नहीं करते हैं. साइकिल पर घूमना शारीरिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. आप साइकिल के पैडल मार कर ही यह महसूस कर सकते हैं कि आप की मांसपेशियों में उत्तेजतना बढ़ी है. शारीरिक गतिविधि एड्रेनलिन से संबद्ध है, जो आप को बेहद ताकतवर कसरत का मौका प्रदान करती है. यह आप को बाकी व्यायाम के लिए भी उत्साहित करती है.

जिम की तुलना में जिन कारणों ने साइकिलिंग को अधिक प्रभावी बनाया है, वे मूलरूप से काफी सामान्य हैं. शरीर में सिर्फ एक मांसपेशी के व्यायाम के तहत आप को हमेशा दिल को तरजीह देनी चाहिए. इस का मतलब है दिल के लिए कसरत करना जिस से दिल संबंधी विभिन्न रोगों का जोखिम घटता है. महज एक स्वस्थ शरीर की तुलना में स्वस्थ दिल अधिक महत्त्वपूर्ण है.

ब्रिटिश मैडिकल ऐसोसिएशन के अनुसार, प्रति सप्ताह महज 32 किलोमीटर साइकिलिंग करने से दिल की कोरोनरी बीमारी के खतरे को 50% तक कम किया जा सकता है. एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि जो व्यक्ति प्रति सप्ताह 32 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं, उन्हें दिल की किसी बीमारी के होने की आशंका नहीं रहती है.

ये भी पढ़ें- सुखद बनाएं Twin Pregnancy

फायदे अनेक

साइकिलिंग का खास फायदा यह है कि इस का लाभ अबाधित तरीके से मिलता है और आप को इस का पता भी नहीं चलता. साइकिलिंग में महज पैडल मारने से ही आसान तरीके से आप की कसरत शुरू हो जाती है. इसे आराम से या उत्साहपूर्वक घुमाएं, दोनों ही मामलों में दिल की धड़कन बढ़ती है. इस से शरीर में प्रत्येक कोशिका के लिए औक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह बढ़ता है, दिल और फेफड़े मजबूत होते हैं.

साइकिलिंग उन लोगों के लिए कसरत का श्रेष्ठ विकल्प है, जो किसी चोट से रिकवर हो रहे हों. क्रौस टे्रनिंग विकल्प ढूंढ़ रहे हों या 85 की उम्र में मैराथन में भाग लेने के लिए अपने घुटनों को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों. दौड़ने या जिम में ऐक्सरसाइज की तुलना में टांगों, एडि़यों, घुटनों और पैरों के लिए साइकिलिंग अधिक आसान एवं फायदेमंद है. इस से दिल शरीर के विभिन्न जोड़ों पर अधिक दबाव डाले बगैर पंपिंग करता है.

अधिक समय तक दौड़ने से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. वहीं दूसरी तरफ साइकिलिंग का कम प्रभाव है और यह घुटनों पर अधिक दबाव डाले बगैर टांगों की मांसपेशियों की कसरत है. इस के अलावा साइकिलिंग जोश बढ़ाती है.

हम में से ज्यादातर लोग साइकिलिंग के वक्त अपनी क्षमता से अधिक आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि यह बेहद आनंददायक है. इस के अलावा यह काफी कैलोरी भी अवशोषित करती है और उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो अपना अतिरिक्त वजन घटाना चाहते हैं. नियमित साइकिल चलाने से लगभग 300 कैलोरी प्रति घंटे खर्च हो सकती है और रोजाना आधा घंटा साइकिल चलाने से 1 साल में आप का 8 किलोग्राम वजन घट सकता है. यह मांसपेशियों को मजबूत बनाने और उपापचय दर बनाने में भी मददगार है.

साइकिलिंग सस्ता व्यायाम

विशेष स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग जिम की तुलना में आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कई मानों में लाभदायक हो सकती है. बाहर की ताजा हवा लेना, सुबह के समय सूर्य की गरमी को महसूस करना या शाम को त्वचा को ठंडी हवा आदि ऐसे लाभ हैं, जो जिम की कसरत में हासिल नहीं हो सकते. साइकिलिंग तनाव कम कर सकती है क्योंकि आप बाहर घूमते वक्त प्राकृतिक तौर पर ताजा हवा लेते हैं. यह क्रिया दिमाग के उस हिस्से को नियंत्रित करती है, जो चिंता और आशंका से जुड़ा होता है और उस हिस्से को सक्रिय करती है, जो सुंदरता, गति से संबद्ध है.

इन स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग आप का काफी समय बचाने में भी मददगार है. यह सर्वोच्च क्रम का मल्टीटास्किंग है. आप काम पर जाने के लिए साइकिल का चयन कर सकते हैं और फिटनैस व्यवस्था पर किसी तरह का दबाव पड़ने की चिंता से भी मुक्त रह सकते हैं.

साइकिलिंग श्रेष्ठ गतिविधियों में से एक है, आप अपनी शारीरिक फिटनैस के साथसाथ मानसिक फिटनैस के लिए भी कर सकते हैं. यह रक्तप्रवाह को बराकरार रखती है और आप के शरीर के अच्छा महसूस कराने वाले हारमोन पैदा करती है. अत: इसे अपने दैनिक रूटीन में जरूर शामिल करें.

शिव इंदर सिंह
एम.डी., फायरफौक्स बाइक्स प्रा.लि.

ले न डूबे यह लत

लोग बिस्तर तक मोबाइल से चिपके रहते हैं. मगर उन की यह लत उन्हें भारी पड़ सकती है क्योंकि हाल ही में अमेरिकन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार हफ्ते में 20 घंटे से ज्यादा टीवी या मोबाइल फोन देखने से पुरुषों के स्पर्म प्रोडक्शन में 35% तक की कमी आ सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक 1 दिन में 5 घंटे से ज्यादा टीवी देखने वालों के शरीर में स्पर्म काउंट में भारी कमी आती देखी गई है.

इस के ठीक उलट कंप्यूटर पर रोजमर्रा का औफिस का दिनभर काम करते रहने वालों के शरीर में ऐसी कोई कमी नहीं देखी गई. ऐसे लोगों के न तो स्पर्म काउंट में कोई कमी देखी गई और न ही उन के शरीर में टेस्टोस्टेरौन हारमोन के स्तर में कोई कमी आई. इस का एक कारण यह भी हो सकता है कि ऐसे लोग जो बहुत ज्यादा टीवी देखते हों, पर ज्यादा ऐक्सरसाइज नहीं करते हों और न ही हैल्दी खाना खाते हों, तो ये दोनों ही आदतें उन की फर्टिलिटी पर प्रभाव डालती हैं.

इन्फर्टिलिटी का बड़ा कारण

टीवी या मोबाइल पर फिल्में देखने वालों का दिमाग एक तरह से काम करना बंद कर देता है. जंक फूड के अत्यधिक सेवन और आलस भरे लाइफस्टाइल के चलते आजकल काफी लोग मोटापे का शिकार होते जा रहे हैं और यह इन्फर्टिलिटी का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है. मोटापे की वजह से पुरुषों और महिलाओं दोनों में कामेच्छा कम होती जाती है.

मोटापा न केवल यौन संबंध बनाने की इच्छा में कमी लाता है, बल्कि इस के चलते सैक्स के दौरान जल्दी स्खलन होने की समस्या भी पेश आती है. इस के चलते सैक्सुअल परफौर्मैंस प्रभावित होती है क्योंकि लिंग में पर्याप्त उत्तेजना नहीं आ पाती, साथ ही अगर महिला मोटापे से पीडि़त है, तो उस स्थिति में भी सही तरीके से समागम नहीं हो पाता है.

कैन, पैकेट बंद फूड और हाई फैट युक्त चीजें बहुत तेजी से और बड़ी मात्रा में ऐसिडिटी पैदा करती हैं, जिस से शरीर के पीएच स्तर में बदलाव आता है. आलस भरे लाइफस्टाइल के साथ कैमिकल ऐडिटिव्स और ऐसिडिक नेचर वाला खानपान या तो स्पर्म सैल्स के आकार और उन की गतिशीलता को नुकसान पहुंचाता है या फिर इस की वजह से स्पर्म डैड हो जाते हैं.

ये भी पढ़ें- सुखद बनाएं Twin Pregnancy

हार्ट पर खतरा

‘ब्रिटिश जर्नल औफ स्पोर्ट्स मैडिसन’ में प्रकाशित रिपोर्ट के तहत लैब ऐनालिसिस के लिए 18 से 22 साल की उम्र के 200 स्टूडैंट्स के स्पर्म सैंपल कलैक्ट किए गए. उन के विश्लेषण से यह पता चला कि सुस्त लाइफस्टाइल और स्पर्म काउंट में कमी का एकदूसरे से सीधा संबंध है.

ज्यादा टीवी देखने वालों का औसत स्पर्म काउंट 37 एमएन माइक्रोन प्रति एमएल था, जबकि उन स्टूडैंट्स का स्पर्म काउंट 52 एमएन माइक्रोन प्रति एमएल था, जो बहुत कम टीवी देखते हैं. सुस्त लाइफस्टाइल और टीवी देखने के आदी लोगों के स्पर्म काउंट में सामान्य के मुकाबले 38% तक कमी पाई गई है.

इस रिपोर्ट से यह भी साबित हुआ है कि अत्यधिक टीवी देखने वालों के हृदय में अत्यधिक आवेग के चलते फेफड़ों में खून का जानलेवा थक्का जमने और उस के चलते हार्ट अटैक से मौत होने की संभावना भी 45% तक बढ़ जाती है और टीवी, या मोबाइल स्क्रीन के सामने हर 1 घंटा और बिताने के साथसाथ यह संभावना और भी बढ़ती जाती है.

प्रजनन क्षमता पर असर

कुछ रिपोर्ट्स में बताया गया है कि हर हफ्ते औसतन 18 घंटे की ऐक्सरसाइज करने से स्पर्म क्वालिटी बढ़ाई जा सकती है, लेकिन अत्यधिक ऐक्सरसाइज करने से भी स्पर्म क्वालिटी पर असर पड़ता है. देखने में आया है कि शारीरिक रूप से सक्रिय रहने वाले ऐसे लोग जो हफ्ते में 15 घंटे मौडरेट ऐक्सरसाइज करते हैं या कोई खेल खेलते हैं उन का स्पर्म काउंट शारीरिक रूप से कम सक्रिय रहने वाले लोगों की तुलना में 3-4 गुना तक ज्यादा रहता है.

टीवी या मोबाइल के सामने घंटों एकटक निगाहें रखने का सीधा संबंध शरीर में गरमी बढ़ाने से होता है. स्पर्म ठंडे वातारण में ज्यादा अच्छी तरह पनपते हैं, जबकि शरीर के ज्यादा गरम रहने से वे ज्यादा अच्छी तरह नहीं पनप पाते हैं. जरूरत से ज्यादा ऐक्सरसाइज करना और लगातार टीवी देखना, दोनों ही शरीर में फ्रीरैडिकल्स के उत्पादन और उत्सर्जन को बढ़ावा देते हैं, जिस के चलते स्पर्म सैल्स मर जाते हैं, जिस का सीधा असर प्रजनन क्षमता पर पड़ता है. इसलिए डाक्टरों की सलाह है कि आप सबकुछ करें, लेकिन हर चीज की एक सीमा हो.

आप टीवी, मोबाइल देखिए, लेकिन साथ में जिन में भी वक्त बिताएं, हैल्दी डाइट लें और जीवन को अच्छी तरह ऐंजौय करें.

ये भी पढ़ें- ड्राय आईज सिंड्रोम से बचे कुछ ऐसे

मैडिकल टैस्ट क्यों जरूरी

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब लोग अपने शरीर का अच्छे से ध्यान नहीं रख पाते, तो कई बीमारियां उन के शरीर में घर कर जाती हैं, जिन्हें समय रहते अगर पकड़ लिया जाए, तो आने वाले जीवन में तकलीफों से बचा जा सकता है. लोगों का यह सोचना है कि रैग्युलर मैडिकल चैकअप सिर्फ बड़ी उम्र के लोगों के लिए होता है, लेकिन सच तो यह है कि 25 की उम्र होते ही इंसान को एक बार अपने पूरे शरीर का चैकअप करवा लेना चाहिए.

मैडिकल टैस्ट करवाने से हमें क्या फायदे होते हैं आइए उसे भी जानते हैं:

ब्लड टैस्ट: किसी भी बीमारी के इलाज से बेहतर होती है उस की रोकथाम. यदि समय से उस की रोकथाम कर ली जाए, तो आने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है. इस के लिए सब से जरूरी होता है ब्लड टैस्ट. एक ब्लड टैस्ट हमें होने वाली बहुत सी बीमारियों के बारे में बता सकता है. कई लोग साल में 3 बार अपना रूटीन चैकअप करवाना पसंद करते हैं ताकि उन को आने वाली किसी भी बीमारी के बारे में पता चल जाए. यही नहीं, यदि आप मां बनने वाली हैं तो उस समय भी आप के लिए ब्लड टैस्ट करवाना बहुत जरूरी है ताकि आप की और आप के आने वाले बच्चे की सेहत का अच्छे से खयाल रखा जा सके.

हीमोग्राम: हीमोग्राम या कंप्लीट ब्लड काउंट कई बीमारियों की जांच में मदद करता है जैसे ऐनीमिया, संक्रमण आदि. यह टैस्ट विकारों की जांच करने के लिए एक व्यापक स्क्रीनिंग परीक्षा के रूप में प्रयोग किया जाता है. यह वास्तव में रक्त के विभिन्न भागों को जांचने में मदद करता है.

किडनी फंक्शन टैस्ट: अगर हमारे शरीर में हमारी दोनों किडनियां सही ढंग से काम कर रही हों तो वे हमारे खून में मिल रही गंदगी को साफ कर देती हैं. लेकिन अगर वे खराब हो जाएं, तो हमारे शरीर में कई सारी दिक्कतें आ जाती हैं. किडनी फंक्शन टैस्ट से हमें पता चलता है कि वे सही ढंग से काम कर रही हैं या नहीं.

लिवर फंक्शन टैस्ट: लिवर फंक्शन टैस्ट एक टाइप का ब्लड टैस्ट होता है, जिस के द्वारा लिवर में हो रही सभी दिक्कतों का पता लगाया जाता है.

ये भी पढ़ें- Women’s Day के मौके पर जानें एक्ट्रेस फ्लोरा सैनी के फिटनेस मंत्र

ब्लड काउंट: यह एक ऐसा टैस्ट होता  है जिस के द्वारा हमारे शरीर के व्हाइट ब्लड सैल्स और रैड ब्लड सैल्स को काउंट किया जाता है.

ब्लड शुगर टैस्ट: यह टैस्ट मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत जरूरी है. इस के लक्षण बहुत ही आम हैं जैसे कमजोरी आना, पैरों में दर्द, वजन कम होना, हड्डियां कमजोर होना. अगर मधुमेह के किसी रोगी को चोट लगे तो वह जल्दी ठीक नहीं हो पाती. अगर समय से टैस्ट करवा लिया जाए तो व्यक्ति अपने खानेपीने का ध्यान रख सकता है.

चैस्ट ऐक्सरे: चैस्ट का ऐक्सरे करवाने से हमें छाती से जुड़ी प्रौब्लम्स का पता चलता है जैसे फेफड़ों की तकलीफ, दिल से जुड़ी बीमारियां आदि.

टोटल लिपिड प्रोफाइल: टोटल लिपिड प्रोफाइल भी एक प्रकार का ब्लड टैस्ट होता है, जिस के द्वारा कई बीमारियों का पता लगाया जाता है जैसे कोलैस्ट्रौल, जैनेटिक डिसऔर्डर, कार्डियोवैस्क्यूलर डिजीज, पैंक्रिआइटिस आदि.

यूरिन और स्टूल रूटीन ऐग्जामिनेशन: यूरिन और स्टूल रूटीन ऐग्जामिनेशन से मधुमेह जैसे रोगों का भी पता चलता है.

ई.सी.जी.: ई.सी.जी. के द्वारा हमें दिल की कई बीमारियों का पता चलता है.

सभी टैस्ट करवाने से पहले एक बार डाक्टर की सलाह जरूर लें और अगर डाक्टर कहे तो पेट का अल्ट्रासाउंड और थायराइड प्रोफाइल टैस्ट भी जरूर करवाएं. यदि किसी का ब्लडप्रैशर कम रहता हो, भूख न लगती हो और पेट में दर्द रहता हो तो उसे तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करना चाहिए, चाहे वह किसी भी उम्र का हो. एक बार ये सभी टैस्ट करवाने के बाद 5 साल में एक बार इन सभी टैस्ट को दोबारा करवाना चाहिए और बीमारी या बीमारी से जुड़ा कोई भी लक्षण हो तो तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. खुद ही डाक्टर बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

इस के बाद 40 की उम्र में प्रवेश करते ही ये सभी टैस्ट हर 2 वर्ष में करवाने चाहिए, क्योंकि इस उम्र में शरीर थोड़ा कमजोर होने लगता है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इस के साथ ही जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है हमारी हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, इसलिए औरतों को बोन डैंसिटी चैकअप करवाना शुरू कर देना चाहिए. इस उम्र में अपने सभी रैग्युलर टैस्ट के साथसाथ टे्रडमिल टैस्ट (टी.एम.टी) और ईको कार्डियोग्राफी (ईको) करवाना भी आवश्यक है, क्योंकि इस उम्र में हमारी हड्डियों के साथसाथ हमारा दिल भी कमजोर होने लगता है.

ये भी पढ़ें- क्या आप भी परेशान हैं कब्ज की शिकायत से, पढ़ें खबर

औरतों को 40 से 45 की उम्र में अपना हारमोनल टैस्ट भी करवा लेना चाहिए, क्योंकि इस उम्र में बहुतों को मेनोपौज आ जाता है, जिस के साथ शरीर के हारमोंस में भी कई तरह के बदलाव आते हैं. ऐसे ही जब 50 की उम्र में आ जाए तो ये सब टैस्ट हर वर्ष करवाने चाहिए. इन सभी टैस्ट के साथसाथ पुरुषों के लिए इस उम्र में प्रोस्टेट टैस्ट करवाना भी जरूरी है. अपना रूटीन चैकअप करवाने से हम आने वाली बीमारियों के प्रति सतर्क तो रहते ही हैं, भविष्य में होने वाली कई तकलीफों से भी बच जाते हैं.                 

  -डा. अनुराग सक्सेना प्राइमस सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल

हार्ट फेल्योर से जुड़े सवालों का जवाब दें?

सवाल-

मेरे सहकर्मी को हार्ट फेल्योर की शिकायत रहती है. इस का क्या मतलब है? क्या हृदय वाकई काम करना बंद कर देता है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर एक स्थिति है जिस में कमजोर हृदय खून की सामान्य मात्रा पंप करने में सक्षम नहीं होता. इस से वह पूरे शरीर में औक्सीजन और पोषक तत्त्व प्रभावी ढंग से नहीं पहुंचा पाता. हार्ट फेल्योर को बीमारी नहीं कहा जा सकता. यह एक क्रौनिक सिंड्रोम है, जो आमतौर पर धीरेधीरे विकसित होता है. इस से शरीर को सामान्य ढंग से काम करते रहने के लिए पोषण मिलना कम होता जाता है.

हार्ट फेल्योर की स्थिति अकसर इसलिए बनती है कि या तो आप की मैडिकल स्थिति ऐसी बन जाती है या फिर पहले से ऐसी होती है. इस में कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट अटैक या उच्च रक्तचाप शामिल है. इस से आप का हृदय क्षतिग्रस्त हो गया होता है या उस पर अतिरिक्त कार्यभार पड़ गया होता है. इसे भले ही हार्ट फेल्योर कहा जाता है पर इस का मतलब यह नहीं कि आप का हृदय काम करना बंद करने वाला है. इस का मतलब है कि आप के हृदय को आप के शरीर की जरूरतें पूरी करने में खासकर गतिविधियों के दौरान मुश्किल हो रही है.

सवाल-

मुझे रात में सांस लेने में असुविधा होती है. क्या यह हार्ट फेल्योर का लक्षण है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर के आम लक्षण हैं:

खांसी, थकान, कमजोरी, बेहोशी के लक्षण व भूख नहीं लगना.

नब्ज का तेज या अनियमित चलना या फिर हृदय की धड़कन तेज होने का एहसास होना.

आप जब सक्रिय हों या लेटे हों तो सांस तेज चलना.

सूजा हुआ लिवर (यकृत) या फूला हुआ पेट.

सवाल-

हार्ट फेल्योर के कारण क्या हैं?

जवाब-

हार्ट फेल्योर कई भिन्न कारणों से हो सकता है. इस में लंबे समय से उच्च रक्तचाप रहना, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, कभी हार्ट अटैक होना, हार्ट वाल्व का बीमार होना, हृदय की अनियमित धड़कन, अनियंत्रित डायबिटीज, शराब का सेवन, अवैध नशा (जैसे कोकीन) और कुछ दवाएं (जो कीमोथेरैपी में उपयोग में लाई जाती हैं उन के जैसी), हृदय से जुड़ी जन्मजात समस्याएं (कोजेनीटेल हार्ट डिजीज) और हृदय की मांसपेशियों में संक्रमण या सूजन जैसी चीजें शामिल हैं. हार्ट फेल्योर किसी भी ऐसी समस्या के कारण हो सकता है, जो आप के हृदय को क्षतिग्रस्त कर सकता है तथा इस के अच्छे ढंग से काम करने को प्रभावित कर सकता है.

सवाल-

मैं 45 साल का हूं और शराब पीता रहा हूं. हाल के दिनों में मुझे हार्ट फेल्योर जैसे लक्षण महसूस हुए हैं. मुझे यह कैसे पता चलेगा कि यह गंभीर है कि नहीं? क्या हार्ट फेल्योर का पता लगाया जा सकता है और इसे ठीक किया जा सकता है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर को ठीक नहीं किया जा सकता पर टैक्नोलौजी में नई प्रगति और दवाओं की खोज का नतीजा है कि इस पर कंट्रोल किया जा सकता है. जीवनशैली में उपयुक्त परिवर्तन से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है, इसलिए बीमारी का समय रहते पता चलना और उपचार महत्त्वपूर्ण है. चिकित्सक कुछ परीक्षणों के जरीए इस का पता लगाता है जिन में सीने का एक्सरे, खून और पेशाब की जांच और एक इलैक्ट्रोकार्डियोग्राम शामिल है. इस जांच में दर्द नहीं होता. इस के लिए छोटेछोटे चिपचिपे टुकड़े जो कंप्यूटर से जुड़े होते हैं, आप के सीने पर रखे जाते हैं और कंप्यूटर आप के सीने की सूचना रिकौर्ड करता है.

इस के अलावा, डाक्टर इकोकार्डियोग्राम कर सकता है. इस में एक प्रोब को आप के सीने पर घुमाना होता है. इस से डाक्टर जान सकता है कि आप का हृदय कितनी अच्छी तरह पंपिंग (इजैक्शन फ्रैक्शन) कर सकता है, वाल्व ठीक काम कर रहे हैं कि नहीं, हृदय की दीवार की मोटाई कितनी है और चैंबर का आकार क्या है.

इजैक्शन फ्रैक्शन एक माप है जिस से पता चलता है कि आप का हृदय कितनी अच्छी तरह पंपिंग कर रहा है. स्वस्थ हृदय वाले लोगों का इजैक्शन फ्रैक्शन अमूमन 60% या कम होता है. हार्ट फेल्योर वाले ज्यादातर लोगों का इजैक्शन फ्रैक्शन 40% या इस से भी कम होता है.

सवाल-

हार्ट फेल्योर का उपचार कैसे किया जाता है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर के उपचार की दिशा में इधर कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, इसलिए हार्ट फेल्योर के शिकार कई लोग सामान्य जीवन जी सकते हैं और अस्पताल में दाखिल किए जाने का जोखिम भी कम रहता है. अगर आप के हार्ट फेल्योर होने का पता चला है तो कई दवाएं ऐसी हैं, जो आप के लक्षण ठीक करने के लिए एकसाथ काम करती हैं और आप के हार्ट फेल्योर को और खराब होने से बचाए रखने में सहायता करती हैं. सही भोजन और नियमित व्यायाम के साथ इन दवाओं के सेवन से आप को अपना स्वास्थ्य ठीक करने में सहायता मिलती है. इस के अलावा कार्डियैक रिसिंक्रोनाइजेशन थेरैपी (सीआरटी) को हार्ट फेल्योर के प्रभावी उपचारों में से एक माना जाता है. इस में इंप्लाट किए जाने वाले उपकरण का उपयोग किया जाता है, जो हृदय की पंप करने की कार्यकुशलता बेहतर करता है.

सवाल-

मेरे पिताजी को पिछले साल एक बार हार्ट फेल्योर हुआ था. हाल में मेरी मां ने वैसे ही लक्षण महसूस करने शुरू कर दिए हैं. क्या महिलाओं में भी हार्ट फेल्योर होता है? क्या मेरी मां जोखिम में हैं?

जवाब-

आमतौर पर महिलाओं में हार्ट फेल्योर का जोखिम वही होता है, जो पुरुषों में है. लेकिन कुछ जोखिम महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अलग तरह से प्रभावित कर सकते हैं. जैसे डायबिटीज महिलाओं में हार्ट फेल्योर का जोखिम ज्यादा बढ़ाता है. इस के अलावा कुछ जोखिम जैसे गर्भ नियंत्रण की गोलियां और रजोनिवृत्ति सिर्फ महिलाओं को प्रभावित करते हैं.

– डा. जे.एस. मक्कड़

इटरनल हार्ट केयर सैंटर ऐंड रिसर्च इंस्टिट्यूट, जयपुर

मेनोपोज और ब्रेस्ट कैंसर क्या अनुवांशिक है?

सवाल-

मेरे पिताजी को लिवर और मां को ब्रैस्ट कैंसर हो गया है. मैं ने सुना है कि यह आगे भी परिवार में हो सकता है. मेरी उम्र 32 वर्ष है. मुझे इस से बचने के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

जवाब-

यह सही है कि आनुवंशिक कारण कैंसर का एक प्रमुख रिस्क फैक्टर माना जाता है. अगर आप की मां को ब्रैस्ट कैंसर है तो आप के लिए खतरा 12 से 14% तक अधिक है. इसी तरह लिवर कैंसर में भी आनुवंशिक कारण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस से बचने के लिए आप कुछ जरूरी कदम उठा सकती हैं जैसे शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, अपना वजन न बढ़ने दें, शराब का सेवन न करें, बच्चों को स्तनपान जरूर कराएं, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन न करें विशेषकर 35 साल के बाद, मेनोपौज के बाद हारमोन थेरैपी न लें.

ये भी पढ़ें- मेरी माहवारी बंद होने वाली है, इसके कारण किन दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा?

सवाल-

मेरे परिवार में अर्ली मेनोपौज की समस्या रही है. मेरी नानी और मां को मेनोपौज 40 साल की उम्र से पहले हो गया था. मैं कैरियर के चलते अभी फैमिली प्लानिंग नहीं करना चाहती. मैं क्या करूं?

जवाब-

अर्ली मेनोपौज में आनुवंशिक कारक भी अहम भूमिका निभा सकता है. मेनोपौज की स्थिति में पहुंचने पर महिलाएं अंडोत्सर्ग नहीं कर पातीं. इस से गर्भधारण करना असंभव हो जाता है. ऐसे में आप असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीक (एआरटी) का सहारा ले सकती हैं या फिर आप अपने अंडे फ्रीज करा सकती हैं, जिन्हें आईवीएफ के दौरान इस्तेमाल किया जा सकता है अथवा आप डोनर एग का इस्तेमाल कर के भी आईवीएफ करवा सकती हैं.

ये भी पढ़ें- 

45 साल की रश्मि पिछले कुछ दिनों से अपने स्वास्थ्य में असहजता महसूस कर रही थी. इस वजह से उसे नींद अच्छी तरह से नहीं आ रही थी. ठण्ड में भी उसे गर्मी महसूस हो रही थी. पसीने छूट रहे थे. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. बात-बात में चिडचिडापन आ रहा था. डौक्टर से सलाह लेने के बाद पता चला कि वह प्री मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. जो समय के साथ-साथ ठीक हो जायेगा.

दरअसल मेनोपौज यानी रजोनिवृत्ति एक नैचुरल बायोलौजिकल प्रक्रिया है,जो महिलाओं की 40 से 50 वर्ष के बीच में होता है. महिलाओं में कई प्रकार के हार्मोनल बदलाव इस दौरान आते है और मासिक धर्म रुक जाता है.  इस बारें में ‘कूकून फर्टिलिटी’ के डायरेक्टर, गायनेकोलोजिस्ट और इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ.अनघा कारखानिस कहती है कि अगर कोई महिला पूरे 12 महीने बिना किसी माहवारी के गुजारती है तो उसे मेनोपौज ही कही जाती है, ऐसे में कुछ महिलाओं को लगता है कि मेनोपौज से उनकी प्रजनन क्षमता समाप्त होने की वजह से वे ओल्ड हो चुकी है, जबकि कुछ महिलाओं को हर महीने की झंझट से दूर होना भी अच्छा लगता है. इतना ही नहीं इसके बाद किसी भी महिला को बिना चाहे माँ बनने की समस्या भी चली जाती है.

इसके आगे डौ.अनघा बताती है कि मेनोपौज एक सामान्य प्रक्रिया होने के बावजूद उसे लेकर कई भ्रांतियां महिलाओं में है, जबकि कुछ महिलाओं में मूड स्विंग और बेचैनी रहती भी नहीं है, लेकिन वे मेनोपौज के बारें में सोचकर ही परेशान रहने लगती है,जिससे न चाहकर भी उनका मनोबल गिरता है और वे डिप्रेशन की शिकार होती है. जबकि ये सब मिथ है और इसका मुकाबला आसानी से किया जा सकता है, जो निम्न है,

मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं बुरी आदतें

“जिस तरह बुरी आदतें हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं, उसी तरह कुछ बुरी आदतें हमारे मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं.  उदाहरण के लिए ये आदतें हमारे डिप्रेशन के खतरे को बढ़ा सकती हैं, या आपको ज्यादा चिंतित या तनावग्रस्त महसूस करा सकती हैं.  कहना है डॉ ज्योति कपूर, सीनियर साइकेट्रिस्ट एवं फाउंडर, मन:स्थली का.

यहां कुछ आदतें बताई गई हैं जिनसे हमें नए साल की शुरुआत करने से पहले छुटकारा पाने की जरूरत है.

1- खराब मुद्रा

जर्नल ऑफ बिहेवियर थेरेपी एंड एक्सपेरिमेंटल साइकियाट्री में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सीधे बैठने से डिप्रेशन के लक्षणों को कम किया जा सकता है.

 2- दोषी मानना

किसी भी चीज़ के लिए ख़ुद को ज़िम्मेदार मानना, किसी भी समस्या के पैदा होने या हल करने के लिए खुद को जिम्मेदार मानना, जिनका आपसे बहुत कम या कोई लेना-देना नहीं था, खुद को छोटे-मोटे अपराध करने के लिए एक बुरा व्यक्ति मानना, और खुद को माफ न करना आदि ऐसी आदतें हैं जो आपको मानसिक रूप से नुक़सान पहुंचा जा सकती है.

ये भी पढ़ें- महिलाओं के लिए खास फायदेमंद है कसूरी मेथी

 3- एक्सरसाइज की कमी

नियमित एक्सरसाइज से एंडोर्फिन और अन्य “फील गुड” केमिकल को रिलीज करके डिप्रेशन को कम कर सकते है, डिप्रेशन को बदतर करने वाले इम्यूनिटी सिस्टम के के केमिकल्स को दबा सकते है, और शरीर के तापमान को बढ़ाकर एक शांत प्रभाव पैदा कर सकते है जिससे दिमागी सन्तुलन बना रह सकता है.

4- बिना सोचे-समझे खाना –

चटपटा खाना कोई बुराई नहीं है लेकिन चिप्स से लेकर कुकीज तक कुछ भी इस तरह की चीज़ें खाना कर स्वास्थ्य समस्याओं का प्रमुख कारण है. अक्सर तनावपूर्ण स्थितियों में देखा जाता है कि जब हम टीवी देखते हुए या मोबाइल चलाते हुए खाते हैं तो हमें भूख-प्यास है या नही, इसको जानें बिना ही हम खाते हैं.  इसलिए सोच-समझकर खाएं ताकि खाने का हर टुकड़ा जायकेदार हो और स्वस्थ हो.

 5- गुस्सा करना छोड़ दें:

जब हम कुछ तनावपूर्ण या अच्छा महसूस नही करते हैं तो हम गुस्सा करते हैं और धीरे-धीरे यह एक आदत बन जाती है.  हर सुबह अपने माथे पर हाथ रखें और मांसपेशियों को आराम प्रदान  करें,  मुस्कुराएं.  जल्द ही चेहरे की यह एक नई आदत बन जाएगी.

ये भी पढ़ें- 6 TIPS: Pregnancy में पहनें मैटरनिटी बेल्ट

मेरे बाद क्या बेटी को भी ब्रैस्ट कैंसर होने का खतरा है?

सवाल-

3 वर्ष पूर्व मेरे बाएं स्तन में कैंसर का पता चला था. चूंकि मुझ में बीआरसीए जीन पाया गया, इसलिए उस समय मेरे दोनों स्तनों को रिमूव कर दिया गया. मेरी 13 वर्ष की बेटी है. मुझे इस बात की चिंता है कि कहीं वह भी स्तन कैंसर के खतरे के दायरे में न आ जाए. हालांकि उस में इस का कोई लक्षण प्रकट नहीं हुआ है, लेकिन मैं इस को ले कर आश्वस्त होना चाहती हूं. बताएं इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

प्राय: बच्चों में जो गांठें पाई जाती हैं वे सुसाध्य (बेनाइन) होती हैं और उन के कैंसर के रूप में विकसित होने की संभावना बहुत दुर्लभ होती है. स्तन कैंसर 15 से 39 वर्ष की महिलाओं में काफी कौमन एवं आक्रामक होता है. अपने इतिहास को जानने के बाद आप की चिंता स्वाभाविक है. लेकिन जब तक आप को बेटी में कोई लक्षण न दिखाई दे तब तक भयभीत होने की जरूरत नहीं है. इस के लक्षणों में कांख अथवा स्तनक्षेत्र में गांठ, स्तन के आकारप्रकार में परिवर्तन, स्तन से रक्त का डिस्चार्ज इत्यादि शामिल हैं. हालांकि ये लक्षण अन्य बीमारियों के भी हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में चिकित्सक से संपर्क करें. दोनों स्तनों का अल्ट्रासाउंड कराएं. यदि किसी तरह का संदेह नजर आए, तो इस की पुष्टि के लिए एमआरआई कराएं.ट

ये भी पढ़ें- साइनोसाइटिस के कारण मैं काफी परेशान हूं, कृपया बताएं मुझे क्या करना चाहिए?

ये भी पढ़ें- 

ब्रैस्ट कैंसर तब होता है जब  कोशिका बढ़ती है और दो संतति कोशिकाओं का निर्माण करने के लिए विभाजित होकर स्तन में शुरू होता है. भारत में महिलाओं के बीच यह  एक प्रमुख कैंसर है, यह सर्वाइकल कैंसर के बाद दूसरे स्थान पर आता  है, लेकिन आश्वस्त रूप से, यदि शुरू के ही  स्टेज  (स्टेज I-II) में पता चलता है तो यह सभी प्रकार के कैंसर में से सबसे अधिक इलाज योग्य भी है. मेनोपॉज़  के बाद की महिलाएं (55 वर्ष से अधिक आयु) अधिक कमजोर होती हैं. हालांकि, कम उम्र की महिलाओं में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है. हर 2 साल में प्रिवेंटिव जांच अनिवार्य है, खासकर अगर तत्काल परिवार की महिला रिश्तेदार (दादी, मां, चाची या बहन) को कभी  कैंसर हुआ हो.लाइफलाइन लेबोरेटरी की एमडी (पैथ) एचओडी हेमेटोलॉजी, साइटोपैथोलॉजी और क्लिनिकल (पैथ) डॉक्‍टर मीनू बेरी के मुताबिक हालांकि यह रेयर है किन्तु  पुरुषों को भी स्तन कैंसर हो सकता है – डक्टल कार्सिनोमा और लोब्युलर कार्सिनोमा सबसे संभावित प्रकार हैं. महिला पुरुष दोनों में लक्षण कमोबेश समान होते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जानें क्या है ब्रैस्ट कैंसर और इसका इलाज

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें