Diwali Special: फैस्टिवल का फायदा उठाएं प्रेमी को परिवार से मिलवाएं

पिछले 2 साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. खुशी इतनी थी कि लगता था जैसे समय को पंख लग गए हों. न दिन की खबर, न रात को चैन. बात बहुत पुरानी नहीं है. साल 2012 में सियाली और अबीर का कुछ ऐसा ही हाल था. प्यार में दोनों दुनिया से बेखबर थे और प्यार की खुमारी का आलम यह था कि दोनों के दोस्त उन से कटने लगे थे. ऐसा होना लाजिम भी था, क्योंकि जब भी औफिस के आपाधापी के माहौल से कुछ फुरसत के लमहे मिलते, तो दोनों का फेसबुक स्टेटस बताता कि दोनों साथ में हैं, वहां किसी तीसरे की जगह नहीं. उन के प्यार की प्रगाढ़ता इतनी उफान पर थी कि दोनों ने तय किया कि अब जल्दी ही सामाजिक बंधन में बंधना है. 2 साल की अंतरंगता को सामाजिक स्वीकृति देने के लिए सियाली ने अबीर को अपने परिवार से मिलने को कहा, तो इस के लिए अबीर राजी हो गया. तयशुदा समय पर अबीर दीवाली की शाम सियाली के घर आया. अबीर के स्वभाव से सियाली वाकिफ थी, इसलिए उस के घर आने से पहले उस ने उस को अपने घर वालों के बारे में कुछ बताया नहीं था. ऐसा ही सियाली ने घर वालों के साथ भी किया था. घड़ी की सूइयां शाम के 6 बजा रही थीं. बेचैनी सियाली के घर वालों के हावभाव से साफ झलक रही थी. आलम यह था कि दीवाली की रौनक में दमकते घर के अलावा सियाली के मम्मीडैडी भी नए कपड़ों में चमक रहे थे. डोरबैल बजने पर दरवाजा खोलते ही अबीर कीचड़ से सने जूते पहने रंगोली बिखेरता हुआ आया और बिना किसी फौर्मैलिटी के सोफे पर पसर गया.

उधर सियाली के मातापिता ने यह किया कि उस दिन चायनाश्ता आते ही सामने वाले से पूछे बिना खुद लेना शुरू कर दिया. सियाली मन ही मन कुढ़ती रही, क्योंकि दोनों ओर से फर्स्ट इंप्रैशन का सत्यानाश हो गया था. माना कि मौका बेहतरीन था, लेकिन मौके की नजाकत कोई नहीं समझ पाया और रिश्ते की बात फैस्टिव मूड में भी किसी को खुशी नहीं दे पाई. यह कहानी अकसर कुछ परिवारों में घटित होती है यानी सोचा था कुछ और हो गया कुछ. इसे हलके में न लें. अगली बार अगर आप अपने प्रेमी के साथ बंधन में बंधने के लिए उसे घर पर इन्वाइट करें, तो दोनों पार्टीज को फुल ट्रेनिंग दें, ताकि दोनों का इंप्रैशन शानदार रहे. और तो और मौके को देखते हुए हम आप को बता दें कि मिलनेमिलाने का बेहतरीन समय है फैस्टिव सीजन. इस में खुशी व उमंग पौजिटिव रिस्पौंस की उम्मीद जगाएगी.

पहली ट्रेनिंग घर वालों की

आप के बौयफ्रैंड की आप के मातापिता के साथ पहली मीटिंग शानदार रहे, इस के लिए आप को होमवर्क करना होगा. माना कि मांबाप आप से ज्यादा समझदार हैं, लेकिन कई बार जल्दबाजी में जबान से निकले साधारण शब्द भी सामने वाले का दिल छलनी कर सकते हैं, उस की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं. आप ने अपने प्रेमी को घर वालों से मिलाने की ठान ली है, तो सब से पहले जरूरी है मौमडैड को प्रेमी के जीवन संबंधित पूर्ण जानकारी देना. इस का फायदा यह होगा कि मौमडैड के सवालों की बौछार हैरतअंगेज नहीं होगी और बिना डरे, सकुचाए व घबराए आत्मविश्वास के साथ प्रेमी जवाब दे पाएगा. ऐसे ही अगर वह हाल ही में विदेश हो कर आया है तो यह मौमडैड को बताएं जरूर ताकि उन का उस के बारे में पूछना उसे यह महसूस कराए कि आप उस में दिलचस्पी ले रहे हैं. आप अपने मौमडैड को पहले ही बता दें कि वे कुछ संवेदनशील मुद्दों को पहली ही मुलाकात में न खगालें. यह जवाबतलबी सामने वाले को बेइज्जती का एहसास कराएगी. मसलन, सुना है कि फलां नौकरी आप को छोड़नी पड़ी थी या आप के मातापिता का तलाक हो गया है आदि. खैर, इन सवालों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. आखिर उन के जिगर के टुकड़े की जिंदगी का मामला है. वे तफतीश जरूर करें लेकिन पहली मुलाकात पर नहीं.

अगर आप के प्रेमी को किसी चीज से ऐलर्जी है या वह सौ फीसदी शाकाहारी है तो इसे छिपाएं नहीं. हो सकता है कि डिनर टेबल पर आप के मौमडैड का चिकन विद पीनट सौस पेश करने का प्लान हो और ऐसा होना उसे नागवार गुजरे. प्रेमी की फूड चौइस जानने से सभी डिनर टेबल पर हलकीफुलकी बातों के साथ डिश का मजा ले पाएंगे. यानी यहां सहजता को तरजीह मिलेगी और एकदूसरे को बेहतर समझने का मौका.

दूसरी ट्रेनिंग प्रेमी की

आप ने अपने मातापिता को होमवर्क करा दिया ताकि आप के प्रेमी से उन की पहली मुलाकात जानदार रहे. अब बारी है प्रेमी को घर में आने से पूर्व समझाने की ताकि उस के तौरतरीके आप के मातापिता का दिल जीत लें. लेकिन इस के लिए अपने प्रेमी के सामने घर वालों की बुराइयों का चिट्ठा न खोलें. जैसे आप की मां की पिता से नहीं बनती या आप की लंबे समय से घर वालों से बातचीत बंद है आदि. इन बातों से सहानुभूति जरूर मिल जाएगी, लेकिन प्रेमी के सामने आप के घर के लोगों की छीछालेदर हो जाएगी, जो आने वाले समय में रिश्ते बिगाड़ने के लिए पर्याप्त है.

बताएं कुछ कौमन बातें

अधिकांश लोगों को वही लोग पसंद आते हैं जिन के शौक उन जैसे हों. इस मानसिकता को कैश करें. प्रेमी को घर पर आने से पहले दोनों के बीच जो कुछ भी कौमन हो उसे बताएं. इस का फायदा यह होगा कि आप के मातापिता और प्रेमी के बीच बातचीत का पुल बन जाएगा. नतीजतन दोनों पार्टी बातचीत शुरू कर पाएंगे. मसलन, यदि आप के प्रेमी को गार्डनिंग पसंद है और आप जानते हैं कि मातापिता का भी गार्डनिंग में मन रमता है, तो प्रेमी को यह कौमन बात जरूर बताएं. किसी के घर आने पर आप के घर वालों की क्या प्रतिक्रिया होती है, इस से आप बखूबी वाकिफ होंगी. आप भलीभांति जानती होंगी कि उन्हें आने वाले से हाथ मिलाना पसंद है या नहीं. किसी का भी स्वागत वे गले मिल कर करते हैं या गले मिलना उन्हें कतई पसंद नहीं. कोई हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते करे तो यह तरीका उन्हें लुभाता है और कोई पांव छू कर उन का सम्मान करे तो वह शख्स तो गुड लिस्ट में शुमार हो जाता है. आप अपने प्रेमी को यह बात जरूर बताएं कि पहली मुलाकात में उस का कौन सा तरीका मौमडैड को पसंद आएगा, ताकि पहली मुलाकात में ही आप के प्रेमी का नाम नेगेटिव लोगों की लिस्ट में शुमार न हो जाए.

नियमकायदे से परिचय

हर घर के कुछ नियमकायदे होते हैं, जिन्हें घर के सभी सदस्य आंख मूंद कर अपनाते हैं. किसी से भी नियमों को अपनाने में चूक हो जाए, तो देखिए कैसे घर की शांति भंग होती है. इसलिए घर वालों से पहली मुलाकात से पहले अपने प्रेमी को अपने घर के कुछ नियमों से वाकिफ जरूर कराएं, ताकि उन नियमों का पालन प्रेमी के लिए आसान हो जाए. मसलन, आप के घर में प्रवेश से पहले जूते बाहर उतारे जाते हैं और किसी भी प्रकार की अश्लीलता व द्विअर्थी संवाद पसंद नहीं किए जाते. खाने की प्लेट में जूठन छोड़ना आप के मौमडैड को पसंद नहीं और आते ही उस पर टूट पड़ना भी.

अब आप की बारी

आप अपने घर वालों के हावभाव पढ़ लेती हैं. उन्हें क्या पसंद है और क्या नहीं सब से वाकिफ हैं, इसलिए अपने प्रेमी के आने पर हरदम उस के साथ रहें, ताकि वह सहज महसूस करे. याद रहे कि प्रेमी आप के घर में नया है, आप नहीं. ऐसी परिस्थिति में आप की जिम्मेदारी है कि आप प्रेमी को अपनत्व महसूस कराएं और अपने मौमडैड के सामने उस की तारीफ करें. तारीफ प्रेमी में आत्मविश्वास जगाएगी, साथ ही मौमडैड की गुड बुक में उस के शुमार होने की संभावना बढ़ जाएगी. अकेला छोड़ने से प्रेमी असहज तो महसूस करेगा ही बातचीत में अनकही बात भी उजागर हो सकती है. इस से बचने के लिए एक पल के लिए भी उस को अकेला न छोड़ें.

Diwali Special: तो त्योहार बन जाएगा यादगार

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में त्योहार ही हमें हंसीखुशी से सराबोर करते हैं पर आजकल त्योहारों पर महंगी चीजें खरीदने, महंगी चीजों से घर की सजावट करने और महंगे गिफ्टों के आदानप्रदान को ही अपनी शान समझा जाने लगा है. इन्हीं बेजान वस्तुओं में लोग अपनी खुशी ढूंढ़ने लगे हैं जबकि यह खुशी क्षणिक होती है. ऐसे में अपने परिवार के साथ त्योहार को कैसे मनाया जाए ताकि वह आप और आप के परिवार के लिए यादगार बन जाए और उस की अनुभूति हमेशा आप को गुदगुदाती रहे. आइए हम बताते हैं:

प्राथमिकताओं पर अमल

इस त्योहार पर आप यह जानने की कोशिश करें कि अब तक आप अपनी प्राथमिकताओं पर अमल करने में सफल रहे या नहीं. अगर नहीं तो इस त्योहार पर सब कुछ छोड़ कर अपने परिवार के साथ रहें. इस अवसर पर परिवार को ज्यादा से ज्यादा समय दें. परिवार की इस भावना को समझें कि वह बजाय किसी महंगी वस्तु के केवल और केवल आप का साथ चाहता है.

त्योहारों पर प्रियजनों के साथ समय बिताना बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अपने परिवार से प्यारा और कुछ नहीं होता है. जिन्हें हम दिल से प्यार करते हैं उन के साथ कनैक्ट होने का यह सब से बैस्ट समय होता है. जब हम सारे गिलेशिकवे भुला कर एकसाथ त्योहार मनाते हैं तो उस का आनंद ही कुछ और होता है.

पुरानी यादों को दें नया रंग

पेरैंट्स अपने बच्चों की बचपन की तसवीरों का अलबम बना कर इस त्योहार पर उन्हें भेंट करें. इस से वे अपनी पुरानी यादों से जुड़ेंगे. इस से उन्हें जो खुशी होगी वह आप को और खुशी प्रदान करेगी.

इसी तरह बच्चे भी अपने पेरैंट्स की पुरानी तसवीरों को खोजें. फिर उन्हें फ्रेम करवा कर उन्हें गिफ्ट करें. इस त्योहार पर पेरैंट्स के लिए इस से अच्छा और कोई उपहार नहीं. ऐसे उपहार ही एकदूसरे को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं.

यादों को संजोएं कुछ ऐसे

अपने बच्चों के पहले खिलौने से ले कर उन के रिपोर्ट कार्ड व कपड़ों तक को संजोएं. फिर उन्हें रैप करा कर बच्चों को गिफ्ट करें. माना कि गुजरा समय भले लौट कर न आता हो. पर आप इन छोटीछोटी चीजों से अपने बच्चों को फ्लैशबैक में पहुंचा कर सुखद अनुभूति दे सकते हैं कि वे बचपन में इन खिलौने से खेलते थे. ये कपड़े पहनते थे, उन के ऐसे मार्क्स आते थे.

बच्चों को उन के पूर्वजों से रूबरू करवाएं

आजकल एकल परिवारों के चलते बच्चे अपने पूर्वजों से अनजान रहते हैं. ऐसे में आप का फर्ज बनता है कि आप इस त्योहार पर उन्हें अपने पूर्वजों से रूबरू होने का मौका दें खास कर बेटा, बहू, दामाद, बेटी, पोतीपोते को कि वे कैसे दिखते थे, उन में क्या खासीयत थी. इस के लिए आप पुरानी तसवीरों को अपडेट कर के उन्हें दें और उन्हें उन की बातें बताएं. अगर कोई पूर्वज अभी जीवित है, तो उन से इन्हें मिलाएं. इस से बच्चे तो खुश होंगे ही. उन से मिल कर बुजुर्गों को भी बहुत खुशी होगी.

ऐसा करने से बच्चे भी परिवार के अन्य लोगों से मिल कर उन्हें जान सकेंगे कि हमारे परिवार में कौनकौन है.

ईट टुगैदर

अपने परिवार के साथ लंच या डिनर का प्रोग्राम ऐसी जगह बनाएं, जो परिवार के सभी सदस्यों को पसंद हो. ऐसे माहौल में हंसीखुशी के अलावा और कोई बात न हो. एकदूसरे की बातों को सुनें, समझें, रुचियों के बारे में जानें. ऐसा करने से अपनेपन की भावना तो जगेगी ही, साथ ही इन सब बातों के बीच खाने का मजा भी बढ़ जाएगा.

लौंगड्राइव पर जाएं

इस त्योहार पर अपनी खुशियों को आप अपने परिवार को लौंगड्राइव पर ले जा कर पूरी कर सकते हैं. इस से आप का भरपूर मनोरंजन होगा. पूरे परिवार का एकसाथ सफर करना यादगार ट्रिप बन जाएगा, क्योंकि ऐसे मौके कम ही आते हैं जब पूरी फैमिली एकसाथ कहीं जाए.

इस तरह यह त्योहार आप और आप के परिवार के लिए यादगार बन जाएगा और आप इन सुनहरी यादों में सालोंसाल खोए रहेंगे.

ननद के कारण शादीशुदा लाइफ में प्राइवेसी नहीं मिल रही, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 19 वर्षीय पटना की रहने वाली विवाहिता हूं. विवाह हुए 6 महीने हुए हैं. पति दिल्ली में कार्यरत हैं. इसी महीने पति के साथ दिल्ली शिफ्ट हुई हूं तो ससुराल वालों ने मेरी अविवाहित ननद को उस के लिए लड़का देखने की जिम्मेदारी के साथ हमारे साथ भेज दिया. उस के साथ से अनजान शहर में मुझे पति की गैरमौजूदगी में सहारा तो मिलता है पर दिक्कत भी है. सिनेमा जाएं या कहीं और हर जगह उसे साथ ले कर जाना पड़ता है. इस से हमें प्राइवेसी नहीं मिलती. बताएं क्या करें?

जवाब-

ननद के रूप में आप को एक सहेली मिल गई है. इस से नए माहौल में आप को ऐडजस्ट करने में मदद मिली है वरना पति के औफिस जाने के बाद दिनभर आप बोर हो जातीं. जहां तक प्राइवेसी की बात है, तो पति का साथ तो वैसे भी आप को रात को ही मिलता. इस वक्त भी शयनकक्ष में आप की प्राइवेसी में खलल डालने वाला कोई नहीं है. इसलिए जितना भी समय पति के साथ आप को मिलता है उसे भरपूर जीएं. वह आप का क्वालिटी टाइम होना चाहिए. फिर ननद विवाह योग्य है. आज नहीं तो कल उस का विवाह हो जाएगा. तब आप अपनी प्राइवेसी को जी भर कर ऐंजौय करेंगी.

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प्रथा नहीं जानती थी कि यों जरा सी बात का बतंगड़ बन जाएगा. हालांकि अपने क्षणिक आवेश का उसे भी बहुत दुख है, लेकिन अब तो बात उस के हाथ से जा चुकी है. वैसे भी विवाहित ननदों के तेवर सास से कम नहीं होते. फिर रजनी तो इस घर की लाडली छोटी बेटी थी. सब के स्नेह की इकलौती अधिकारी… उस के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के लिए ये जरा सी बात बहुत बड़ी बात थी.

‘हां, जरा सी बात ही तो थी… क्या हुआ जो आवेश में रजनी को एक थप्पड़ लग गया. उसे इतना तूल देने की क्या जरूरत थी. वैसे भी मैं ने किसी द्ववेष से तो उसे थप्पड़ नहीं मारा था. मैं तो रजनी को अपनी छोटी बहन मानती हूं. रजनी की जगह मेरी अपनी बहन होती तो क्या इसे पी नहीं जाती. लेकिन रजनी लाख बहन जैसी होगी, बहन तो नहीं है न. इसीलिए तांडव मचा रखा है,’ प्रथा जितना सोचती उतना ही उल झती जाती. मामले को सुल झाने का कोई सिरा उस के हाथ नहीं आ रहा था.

दूसरा कोई मसला होता तो प्रथा पति भावेश को अपनी बगल में खड़ा पाती, लेकिन यहां तो मामला उस की अपनी छोटी बहन का है, जिसे रजनी ने अपने स्वाभिमान से जोड़ लिया है. अब तो भावेश भी उस से नाराज है. किसकिस को मनाए… किसकिस को सफाई दे… प्रथा सम झ नहीं पा रही थी.

हालांकि ननद पर हाथ उठते ही प्रथा को अपनी गलती का एहसास हो गया था. लेकिन वह जली हुई साड़ी बारबार उसे अपनी गलती नहीं मानने के लिए उकसा रही थी. दरअसल, प्रथा को अपनी सहेली की शादी की सालगिरह पार्टी में जाना था. भावेश पहले ही तैयार हो कर उसे देर करने का ताना मार रहा था ऊपर से जिस साड़ी को वह पहनने की सोच रही थी वह आयरन नहीं की हुई थी.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- जरा सी बात: क्यों ननद से नाराज थी प्रथा

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

शादी से पहले यह प्लानिंग की क्या

बदलती सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों ने लोगों के जीवन को बहुत प्रभावित किया है. आधुनिकता के इस युग में ऐसी सभी सामाजिक मान्यताएं जो व्यक्ति की इच्छाओं और हितों के खिलाफ हैं, अपना औचित्य खो चुकी हैं. बदलावों की इस सूची में विवाह की प्रक्रिया को भी शामिल किया जा चुका है. जहां पहले मातापिता ही अपनी संतान के लिए हमसफर चुनते थे, वहीं अब जीवनसाथी का चुनाव युवा खुद करने लगे हैं.  प्यार के नशे में चूर युवाओं को अपने साथी के साथ के अलावा कुछ नहीं सूझता. अपने रिश्ते पर सामाजिक मुहर लगवाने के लिए शादी के बंधन में युवा बंध तो जाते हैं, लेकिन प्यार का हैंगओवर तब उतर जाता है जब पारिवारिक और आर्थिक समस्याओं से सामना होता है.

इस स्थिति में कई बार रिश्ते टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं.

ऐसा ही हुआ दिल्ली की दिव्या के साथ. वह अपने प्रेमी अमित को पति के रूप में पा कर बेहद खुश थी. दिव्या का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत था, लेकिन अमित अपने घर में इकलौता कमाने वाला था. अत: मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ छोटे भाई की पढ़ाईलिखाई का खर्च भी उसे ही उठाना पड़ता था. पहले से अमित के परिवार की आर्थिक स्थिति से अवगत दिव्या को उस के जिम्मेदाराना  स्वभाव ने ही आकर्षित किया था. लेकिन यह आकर्षण तब फीका पड़ने लगा जब दिव्या को ससुराल जा कर घरेलू कामकाज में खटना पड़ा. आमदनी अच्छी होने के बावजूद अमित दिव्या को नौकरचाकर की सुविधा उपलब्ध नहीं करा सकता था, क्योंकि उस की सैलरी का आधे से अधिक हिस्सा घर की ही जिम्मेदारियों को पूरा करने में खर्च हो जाता था.

दिव्या ने भी शादी से पहले अमित से इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने की कोई बात नहीं की थी. अमित दिव्या को इसीलिए ऐडजस्टिंग स्वभाव का समझता था. लेकिन यहां गलती दिव्या की है. गलती यह नहीं कि सुविधाओं के अभाव में वह ऐडजस्ट नहीं कर पा रही, बल्कि गलती यह है कि दिव्या ने शादी से पूर्व अपनी जरूरतों का जिक्र अमित से नहीं किया जो उस की सब से बड़ी भूल थी. दिव्या की ही तरह कई लड़कियां हैं, जो अपनी उम्मीदों को अपने प्रेमी पर शादी से पहले कभी जाहिर नहीं करतीं और बाद में उम्मीद के विपरीत परिस्थितियों में उन्हें इस बात का पछतावा होता है कि आखिर अपनी इच्छाओं को पहले जाहिर कर देते तो ये दिन न देखने पड़ते.  इसलिए बहुत जरूरी है कि शादी से पहले अपनी और अपने प्रेमी की इन बातों का खयाल कर लिया जाए:

आप का प्रेमी किराए के मकान में रहता है, मगर आप अपना घर चाहती हैं, इस बात को अपने प्रेमी के आगे रखने में कोई हरज नहीं है. यदि उस की आर्थिक स्थिति उसे शादी से पहले नया घर खरीदने की मंजूरी देगी तो वह शायद ऐसा कर सकेगा वरना शादी के बाद जल्दी से जल्दी अपना घर खरीदने का प्रयास करेगा. इस के अलावा आप खुद भी अपना घर खरीदने में अपने पति की आर्थिक सहायता करने के लिए खुद को तैयार कर सकेंगी.

आजकल कामकाजी लड़कियों के पास रसोई में परिवार के लिए खाना बनाने का समय नहीं होता, लेकिन विवाह बाद रसोई के काम के अलावा घर के बाकी काम भी करने पड़ते हैं. मगर सहयोग के लिए एक नौकर हो तो बात बन जाती है. अपने प्रेमी को शादी से पहले ही इस बात का संकेत दे दें कि आप पूरा दिन रसोई में नहीं खट सकतीं और आप को बेसिक होम ऐप्लायंस और एक नौकर की आवश्यकता पड़ेगी. यदि आप के प्रेमी के घर में पहले से ये सब चीजें उपलब्ध नहीं होगीं, तो वह कोशिश करे आप की मदद के लिए कुछ सुविधाएं उपलब्ध कराने की या फिर वह आप को साफ कह दे कि घर के काम के लिए सहयोग की उम्मीद न रखें. इस से आप अपने लिए सुविधा का सामान खुद भी जुटा सकती हैं.

घर में वाहन होने के बाद भी उस के सुख से आप वंचित हैं, क्योंकि वाहन पति नहीं पति के पिता का है. जाहिर है आप का उस वाहन पर हक नहीं है. लेकिन यदि वाहन आप के लाइफस्टाइल के लिए बहुत जरूरी है, तो इस की व्यवस्था करने के लिए प्रेमी को कहें या फिर खुद प्रयास करें.

प्रेमी की दादी, बहन या भाई की जिम्मेदारी उठाना.

प्रेमी यदि संयुक्त परिवार से है तो भाभी/देवरानी आदि की समस्याएं.

नौकरी है तो ठीक वरना अपने व्यवसाय के लंबे घंटे.

कैरियर प्लानिंग पर भी चर्चा जरूरी

आज की लड़कियां शिक्षित, आत्मनिर्भर और महत्त्वाकांक्षी हैं. घर बैठ कर रोटियां बेलने के बजाय उन्हें लैपटौप पर उंगलियां दौड़ाना पसंद है. मगर शादी के बाद पति चाहता है कि वह हाउसवाइफ बन जाए. अब यहां निर्णय आप को लेना है कि पति चाहिए या कैरियर अथवा दोनों. इस के लिए आप को विवाह का निर्णय लेने के पूर्व ही बौयफ्रैंड से इन बिंदुओं पर बात कर लेनी चाहिए:  शादी के बाद भी आप अपने कैरियर के लिए उतनी ही फिक्रमंद रहना चाहती हैं जितनी अभी हैं. हो सकता है आप का बौयफ्रैंड इस के विपरीत आप को नौकरी छोड़ घर की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए कहे. इस परिस्थिति में यदि आप अपने कैरियर से खुशीखुशी समझौता कर लेती हैं तो ठीक है वरना रिश्ते से समझौता करना ही बेहतर विकल्प होगा.

शादी के बाद प्रेमी किस शहर में शिफ्ट होने की सोच रहा है. इस बारे में प्रेमी से चर्चा करें. आपसी सहमति से ही किसी दूसरे शहर में शिफ्ट होने का निर्णय लें. कई बार शादी के बाद भी युवा अपने कैरियर से संतुष्ट नहीं होते. ऐसे में जौब छोड़ कर फिर से पढ़ने का मन बना लेते हैं. आप के साथ ऐसा न हो, इस के लिए पार्टनर से इस विषय पर भी बात कर लें.

परखें पार्टनर की नीयत

प्यार में साथी के आकर्षण में खो जाना एक आम बात है. लेकिन आकर्षण में इतना भी न खोएं कि पार्टनर की नीयत को न परख सकें. दरअसल, लड़कियां अधिक भावुक होती हैं. लड़कों की मीठीमीठी बातों में जल्दी फंस जाती हैं. लेकिन कुछ लड़कों में इस के विपरीत गुण होते हैं. वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए लड़कियों को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा लेते हैं. जैसे कानपुर की सोनिया को कौशल ने फंसाया था. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. सोनिया पढ़ाई में होशियार थी. उस के घर की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी. कौशल इन सभी बातों को भांप चुका था. सोनिया को अपने प्यार में फंसाने का उस का मकसद केवल उस के पैसों पर जिंदगी भर मजे लूटना था. घर वालों के बहुत समझाने पर भी सोनिया नहीं मानी और कौशल से शादी कर ली. शादी के बाद पति का निकम्मापन सोनिया को खलने लगा. लेकिन अब घर वालों से भी वह कुछ नहीं कह सकती थी. पछताने के सिवा अब उस के पास और कोई चारा न था.

सोनिया जैसी स्थिति का सामना हर उस लड़की को करना पड़ सकता है, जो अपने पार्टनर की नीयत को परखे बिना शादी का फैसला ले लेती है. लेकिन सवाल यह उठता है कि साथी की नीयत को कैसे परखा जाए? चलिए हम बताते हैं:

  1. पैसों को ले कर बौयफ्रैंड का क्या बरताव है, यह भांपने की कोशिश करें. जब आप दोनों साथ घूमते हैं, तो अधिक खर्चा कौन करता है? कहीं पैसे खर्च करने में साथी आनाकानी तो नहीं करता? इन बातों को समझने की कोशिश करें.
  2. भले ही आप की सैलरी आप के बौयफ्रैंड से ज्यादा हो, लेकिन उस के आत्मसम्मान को परखें. यदि वह आप से पैसे लेने में नहीं हिचकता तो जाहिर है कि उस में आत्मसम्मान की कमी है.
  3. यह जानने की कोशिश करें कि आप का साथी शादी के वक्त आप से किनकिन विलासिता की चीजों की डिमांड करता है. जाहिर है यदि वह आप से नक्द या किसी मूल्यवान वस्तु की चाहत रखता है तो उसे आप से नहीं आप के पैसों से प्रेम है.

शादी से पूर्व फाइनैंशियल प्लानिंग

कनासा स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्चर एवं असिस्टैंट प्रोफैसर औफ फैमिली स्टडीज ऐंड ह्यूमन सर्विस की सोनया बर्ट की 4,500 कपल्स पर की गई स्टडी के परिणामस्वरूप पतिपत्नी के रिश्ते में सब से बुरा वक्त तब आता है, जब पैसों को ले कर दोनों में झगड़े होते हैं. स्टडी के मुताबिक इन झगड़ों की वजह से रिश्ता टूटने के कगार पर आ जाता है. इसलिए शादी से पूर्व ही भविष्य में आने वाली आर्थिक जरूरतों पर चर्चा कर लेनी चाहिए.

इस बाबत आर्थिक सलाहकार अरविंद सिंह सेन कहते हैं, ‘‘लव मैरिज में अकसर किसी एक पक्ष के घर वालों को रिश्ते पर आपत्ति होती है. ऐसे में शादी के बाद अपनी सभी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए नए जोड़े को अपनी ही आमदनी पर निर्भर होना पड़ता है. ऐसे में सब से अधिक जरूरी होती है सिर छिपाने के लिए एक छत यानी अपना घर और आपातकालीन स्थितियों से निबटने के लिए नक्द पैसा. यदि शादी से पूर्व कुछ निवेश किए गए हों तो इस से काफी मदद मिलती है. ये निवेश इस प्रकार के हो सकते हैं :

पना घर होने के सपने को पूरा करने के लिए शादी से 2-4 साल पहले ही रियल स्टेट स्मौल इन्वैस्टमैंट प्लान लिया जा सकता है. इस प्लान के तहत बिना होम लोन लिए और एकमुश्त डाउनपेमैंट की समस्या से बचने के लिए छोटीछोटी इंस्टौलमैंट्स दे कर अपना घर बुक किया जा सकता है. हां, यह प्लान लेने से पहले कुछ जरूरी बातों पर जरूर गौर कर लें:

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई गाइडलाइन को पढ़ कर ही कोई फैसला लें.

श्वसनीय बिल्डर द्वारा बनाई गई प्रौपर्टी में ही निवेश करें.

चिट फंड कंपनियों द्वारा बनाई प्रौपर्टी में निवेश करने से बचें.

ग्रुप हैल्थ इंश्योरैंस प्लान लें. यदि आप तय कर चुकी हैं कि शादी आप को अपने बौयफ्रैंड से ही करनी है तो अपने और उस के नाम पर इस प्लान को लिया जा सकता है. यह प्लान शादी के बाद सेहत से जुड़ी हर परेशानी में आप का आर्थिक मददगार बनेगा. इस प्लान के तहत छोटीछोटी बीमारियों से ले कर प्रैगनैंसी तक इस प्लान में कवर होते हैं.

अत: भावनाओं में बह कर बनाए गए रिश्ते भविष्य में आने वाली दिक्कतों का सामना करने में कमजोर साबित हो सकते हैं. प्रेम विवाह में अकसर ऐसा ही होता है. लेकिन थोड़ी सी समझदारी, प्लानिंग और साथी को परखने की कला आप की शादीशुदा जिंदगी को सफल बना सकती है.

करवा चौथ 2022: इन 26 टिप्स से बढ़ाएं पति-पत्नी का प्यार

प्यार के महकते फूल को बचाए रखने के लिए यह जरूरी है कि बैडरूम को कुरुक्षेत्र नहीं, बल्कि प्रणयशाला बनाया जाए और इस के लिए यह बेहद जरूरी है कि बैडरूम लव की ए टु जैड परिभाषा को कायदे से जाना जाए. तो फिर चलिए प्रणयशाला की क्लास में:

1. अटै्रक्ट-आकर्षित करना

अपने साथी को आकर्षित करना ही प्रणयशाला का प्रथम अक्षर है. पत्नी को चाहिए कि वह पति के आने से पहले ही अपने काम निबटा कर बनावशृंगार कर ले और पतिदेव औफिस के काम का बोझ औफिस में ही छोड़ कर आएं.

2. ब्यूटीफुल-सुंदर

सुंदरता और आकर्षण सिक्के के 2 पहलू हैं. हर सुंदर चीज अपनी ओर देखने वाले को आकर्षित करती ही है, इसलिए शादी के बाद बढ़ते वजन पर लगाम लगाएं और ब्यूटीपार्लर जा कर अपनी सुंदरता को फिर से अपना बनाएं ताकि आप की सुंदरता को देख कर उन्हें हर दिन खास लगे.

3. चेंज-बदलाव

अगर जिंदगी एक ही धुरी पर घूमती रहे तो बेमजा हो जाती है. इसलिए अपनी सैक्स लाइफ में भी थोड़ा चेंज लाएं. मसलन, प्यार को केवल बैडरूम तक ही सीमित न रख कर एकसाथ बाथ का आनंद लें और अगर जौइंट फैमिली में हैं तो चोरीछिपे उन्हें फ्लाइंग किस दें, कभी अपनी प्यार की कशिश का चोरीछिपे आतेजाते एहसास कराएं. यकीन मानिए कि यह प्यार की लुकाछिपी आप की नीरस जिंदगी को प्यार से सराबोर कर देगी.

4. डेफरेंस-आदर

पतिपत्नी को चाहिए कि वे एकदूसरे को उचित मानसम्मान दें. साथ में एकदूसरे के परिवार का भी आदर करें, क्योंकि जिस दर पर आदर व कद्र हो, प्यार भी वहीं दस्तक देता है.

5. ऐलिगैंस-सुघड़ता

अस्तव्यस्त हालत में न तो घर अच्छा लगता है और न ही आप. कहीं ऐसा न हो कि जब आप दोनों बैडरूम में आएं तो पलंग पर सामान ही बिखरा पड़ा हो और बैठने की जगह भी न मिले. फिर प्यार की बात तो भूल ही जाएं. इसलिए घर को हमेशा संवार कर रखें.

6. फौरगेट-भूल जाना

भुलक्कड़पने की आदत वैसे तो बुरी होती है लेकिन बात जहां पतिपत्नी के रिश्ते की हो तो यह आदत अपनाना ही श्रेयस्कर है. मतलब अतीत में मिले जख्मों, शिकवेशिकायतों व लड़ाईझगड़ों को बैडरूम के बाहर ही भूल कर हर रोज अपने रिश्ते की नई शुरुआत करनी चाहिए और भूल कर भी भूली बातों को याद नहीं करना चाहिए.

7. गारमैंट्स-परिधान

यह काफी कौमन प्रौब्लम है कि लेडीज सुबह के पहने हुए कपड़ों में ही रात को सोने पहुंच जाती हैं. नतीजतन उन के कपड़ों से आने वाली सब्जियों, मसालों व पसीने की दुर्गंध बेचारे पतिदेव को व्यर्थ में ही सब्जीमंडी की याद दिला देती है. ऐसे में बेचारे दिल के कोने में दुबका पड़ा प्यार भी काफूर हो जाता है और उस की जगह चिड़चिड़ाहट ले लेती है. इसलिए प्यार के एहसास को तरोताजा करने के लिए खुद भी तरोताजा हो कर साथी के संसर्ग में आएं.

8. हैल्प-मदद

बढ़ती जरूरतों के कारण समयसीमा जिंदगी में छोटी पड़ती जा रही है. लेकिन अगर पतिपत्नी स्वेच्छा से एकदूसरे के काम में अपना सहयोग दें तो भागते समय में से प्यारमुहब्बत के पलों को आसानी से पकड़ा जा सकता है यानी जिम्मेदारियों को मिल कर उठाएं और जिंदगी का भरपूर आनंद लें.

9. इंपेशेंस-अधीरता

प्यार का मतलब सिर्फ जिस्मानी जरूरत से ही नहीं होता, बल्कि प्यार में एकदूसरे की भावना को भी मान देना जरूरी होता है. प्यार का तात्पर्य बेसब्री और अधीरता से प्रणयसंबंध बना कर दूसरी तरफ करवट ले कर सो जाना नहीं होता, बल्कि प्यार भरा आलिंगन प्रेमालाप और प्यार भरी बातों व स्नेहिल स्पर्श के द्वारा भी आप अपने साथी को प्यार से सराबोर कर सकते हैं.

10. जौइन-जोड़ना

अकसर पत्नी की आदत हो जाती है कि वह बैडरूम में आते ही ससुराल वालों की बुराई शुरू कर देती है, जिस से बेवजह माहौल में तनाव आ जाता है. माना कि आप परेशान हैं, लेकिन आप के पति को भी तो औफिस में न जाने कितने काम और टैंशनरही होगी. इन सब बेकार की बातों से आप अनजाने में वे हसीन पल गवां देती हैं, जो आप दोनों को खुशियां दे सकते थे. पतिपत्नी को स्वयं सोचना चाहिए कि जिंदगी में टैंशन तो लगी रहती है, लेकिन दिलों को जोड़ने वाले पल होते ही कितने हैं. इसलिए बैडरूम में दिलों को जोड़ें, न कि तोड़ने का काम करें.

11. किड्स-बच्चे

बच्चे होने के बाद पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत आधार मिलता है. लेकिन कहीं न कहीं पति को प्यार बंटता हुआ भी महसूस होता है, क्योंकि बच्चे होने के बाद पत्नी का ध्यान बच्चों में ज्यादा लगा रहता है जिसे पति अपनी उपेक्षा समझने लगता है. इसलिए बच्चों के साथसाथ अगर पति की भी थोड़ीबहुत फरमाइश पूरी करें तो उन को भी अच्छा लगेगा.

12. लाइक-अच्छा लगना

पतिपत्नी को एकदूसरे के स्वभाव, इच्छाओं आदि को मान देना चाहिए. स्त्री स्वभाव से शर्मिली होती है, इसलिए यह पति का कर्तव्य होता है कि वह चुंबन, आलिंगन, स्पर्श व प्यार भरी बातों से उस की झिझक को दूर करे. उसी तरह पत्नी को भी वह सब करना चाहिए जो पति को अच्छा लगे.

13. मसाज-मालिश

मसाज करने से बौडी और माइंड दोनों रिलैक्स फील करते हैं और ऐसे में यदि आप का पार्टनर ही आप को मसाज थेरैपी दे तो क्या कहने. माना कि वर्किंग डे में ऐसा होना मुश्किल है, लेकिन अगर वीकेंड में इस थेरैपी का इस्तेमाल किया जाए तो यकीन मानिए आप दोनों को ही वीकेंड का ही इंतजार रहेगा.

14. नेवर-कभी नहीं

प्यार को लड़ाईझगड़े में हथियार न बनाएं. फरमाइश पूरी न होने पर, ‘नहीं आज मूड नहीं है’, ‘मुझे सोना है’ और ‘जब देखो तब तुम्हें यही सूझता है’ जैसे संवाद रिश्तों में पड़ने वाली गिरह का काम करते हैं. इसलिए प्यार को सिर्फ प्यार ही रहने दें.

15. ओपिनियन-राय

गृहस्थ जीवन में कई ऐसे मुद्दे होते हैं, जिन में कभीकभी पतिपत्नी दोनों की राय एक होती है, तो कभीकभी दोनों की राय जुदा होती है. ऐसे मौकों पर एकदूसरे की राय को सुनें, उस पर ध्यान दें और मिल कर सही निर्णय लें फिर चाहे मसला जो भी हो.

16. प्लौडिट-प्रशंसा

हर इनसान अपनी प्रशंसा करवाना चाहता है, इसलिए जो बातें आप को एकदूसरे में अच्छी लगती हैं उन्हें निस्संकोच अपने साथी से कहें. सिर्फ इतना ही नहीं, निश्छल रूप से सहवास के आनंददायक पलों में भी बेझिझक उन की तारीफ करें. यह तारीफ आप के साथी में पहले से कई गुना ज्यादा जोश भर देगी.

17. क्वैरी-प्रश्न पूछना

अकसर संबंधों में ठहराव आने की वजह चुप्पी भी होती है, जिसे हम अपने अहं की वजह से ओढ़ लेते हैं. उस के कारण कई बार छोटेछोटे झगड़े बड़ा भयंकर रूप धारण कर लेते हैं. इसलिए चुप्पी की दीवार फांद कर उन से पूछें कि एक छोटी सी बात हमारे प्यार के बीच कब तक रहेगी? पतिपत्नी के रिश्ते में स्वस्थ संवाद होने बेहद जरूरी हैं अन्यथा दिल की धड़कनों को भी चुप्पी लगने में समय नहीं लगता.

18. रेमेंट-पोशाक

प्रेमिका या प्रेमी के रूप में आप ने अपने साथी को आकर्षित करने के लिए कितना कुछ किया, लेकिन शादी के बाद वह प्यार कहीं डब्बे में बंद कर दिया. इसलिए डब्बा खोलें और आप के हमसफर शादी से पहले आप को जिस ड्रैस व रूप में पसंद करते थे वापस उस रूप में आ जाएं.

19. सैटिस्फैक्शन-संतुष्टि

विवाह का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है पतिपत्नी दोनों की यौन इच्छाओं की तृप्ति. लेकिन किसी एक के संतुष्ट न होने पर असंतोष, द्वेष, आक्रोश व हीनता का रूप ले लेता है. इसलिए अपने साथी की जरूरतों को समझें.

20. र्म-शर्तें

पतिपत्नी के रिश्ते में आपसी तालमेल व समझदारी बहुत माने रखती है. लेकिन जब संबंधों के बीच शर्त आने लगे तो वह रिश्ते में घुन का काम करती है. कई महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जो प्यार और शर्त को एक ही पलड़े में रखती हैं. जैसे यह कहती हैं कि मुझे सोने का सैट ला कर दोगे तो ही हाथ लगाने दूंगी. नतीजा, पति का मन प्रणय संबंध से खट्टा हो जाता है और वह कहीं और प्यार की तलाश करने लगता है.

21. अनकंसर्न-उदासीन

जिस तरह प्यार में एकदूसरे का साथ जरूरी होता है, उसी तरह एकदूसरे की परवाह करना भी जरूरी होता है. ऐसा न हो कि पतिदेव आएं और आप टीवी या बच्चों में ही उलझी रहें. अगर रिश्ते में नीरसता और उदासीनता ही छाई रहेगी, तो प्यार को हरियाली कैसे मिलेगी, क्योंकि उन के छोटे से दिल में या तो उदासीनता रह सकती है या फिर आप.

22. वैराइटी-विभिन्न प्रकार

जिंदगी एक ढर्रे पर चलती रहे तो बोरिंग लगने लगती है. उसी तरह बैडरूम रोमांस में भी नई जान डालने के लिए रोमांटिक बनें. कभी बाथरूम, कभी ड्राइंगरूम तो कभी किचन रोमांस का लुत्फ उठाएं. प्रणय मिलन के समय अलगअलग रतिक्रीडाओं द्वारा सैक्सुअल लाइफ का भरपूर आनंद उठाएं.

23. व्हीड्ल-लुभाना

प्रणयमिलन का भरपूर लुत्फ उठाना चाहती हैं तो उस की शुरुआत दिन से ही करें. उन्हें फोन पर ‘आई लव यू’ कहें और मैसेज के द्वारा रोमांटिक बातें सैंड करें. उन्हें निस्संकोच बताएं कि आप उन का साथ चाहती हैं. फिर बनसंवर कर शाम को उन का इंतजार करें.

24. जेरौटिक-नीरस

बैडरूम के नीरस माहौल में तबदीली कर के उसे थोड़ा रोमांटिक व सुगंधित बनाएं. साथ में कोई धीमा संगीत चलाएं. माहौल को और ज्यादा रंगीन व खुशनुमा बनाने के लिए कोई रोमांटिक मूवी, मैगजीन या फोटो देखें, जो आप की उमंग भरी कल्पनाओं को हकीकत का रूप दे, साथ में आप की जिंदगी में नया जोश, नई उमंग भर दे.

25. योगा

हैल्दी सैक्स लाइफ के लिए हैल्दी शरीर होना बेहद जरूरी है और उस के लिए योगा यानी व्यायाम से बेहतर कोई और औप्शन नहीं है. यह आप के शरीर को नई स्फूर्ति व ऊर्जा देगा. फिट शरीर के साथ ही आप फिट सैक्स लाइफ पा सकते हैं और अपने साथी व अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं.

26. जेस्ट-मजेदार

जिंदगी मजेदार तभी होती है जब जिंदगी के हर पल का भरपूर आनंद उठाया जाए. सैक्स लाइफ को भी हैल्दी व अपडेट करना चाहते हैं, तो मुख्य सहवास क्रिया से ज्यादा फोरप्ले और आफ्टरप्ले में ध्यान लगाएं, जिस से हसीन लमहों का एहसास आप के साथसाथ आप के साथी को भी भरपूर मिले.

मां को छोड़ कर अलग रहना क्या उचित होगा?

सवाल-

मैं 34 वर्षीय युवक हूं. मेरी विधवा मां ने काफी कष्ट सह कर मेरी और मेरी बहन की परवरिश की. बहन की शादी के बाद मैं ने शादी की. मेरे विवाह को 8 वर्ष हो चुके हैं और 2 बच्चे भी हैं. मेरी समस्या यह है कि मेरी मां और पत्नी में हर समय खटपट रहती है. दोनों को समझातेसमझाते मैं आजिज आ चुका हूं. मेरी मां हमारे लिए जितनी ममतामयी रही हैं बहू को ले कर उतनी ही खड़ूस हैं. उन की पढ़ाईलिखाई (उच्च शिक्षिता हैं) और बड़प्पन कहीं नहीं दिखता. दूसरी ओर पत्नी भी कमतर नहीं है. आजकल मां रातदिन एक ही रट लगाए है कि मैं उसे ले कर अलग हो जाऊं. मैं कोई निर्णय नहीं कर पा रहा. मां पूरी तरह से स्वस्थ और सक्षम हैं. अपनी देखभाल स्वयं कर सकती हैं पर फिर भी मां को छोड़ कर अलग रहना क्या उचित होगा? लोग क्या कहेंगे? बताएं, क्या करूं?

जवाब-

सासबहू के रिश्ते में मधुरता प्राय: कम ही देखने को मिलती है. इसलिए आप के घर में यदि आप की मां और पत्नी के बीच 36 का आंकड़ा है, तो कोई अनहोनी बात नहीं है. आप के भरसक प्रयास के बावजूद यदि दोनों में तालमेल नहीं बैठ रहा तो रोजरोज की कलह से नजात पाने के लिए आप मां से अलग हो जाएं. अपने लिए घर थोड़े फासले पर ले लें. दूर रहने पर अमूमन रिश्तों में मिठास लौट आती है. दूर रह कर भी आप बीचबीच में आ कर और दिन में 1-2 बार फोन कर के उन का हालचाल पूछ सकते हैं. जहां तक लोगों की बात है तो लोग तभी तक बोलते हैं जब तक हम उन की परवाह करते हैं. अत: उन की बातों पर कान न दें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

गरबा 2022: फैमिली के स्पैशल मूमैंट्स को सैलिब्रेशन के साथ बनाएं यादगार

सुबह बच्चों को स्कूल और पति को औफिस भेजने के बाद घर के कामों में व्यस्त होने के बाद कब शाम हो जाती है, पता ही नहीं चलता. बस यही रह जाता है हमारा डेली रूटीन. ऐसे में हमारे स्पैशल डेज भी आ कर कब निकल जाते हैं पता ही नहीं चलता. यह ठीक नहीं. तो नए साल में नए जोश के साथ थोड़ा समय अपने लिए भी निकालें और डेली लाइफ में कुछ छोटेबड़े सैलिब्रेशन करते रहें. आइए, जानें कैसे:

जब हो शादी की सालगिरह या जन्मदिन

शादी की सालगिरह हर कपल की लाइफ का बहुत महत्त्वपूर्ण दिन होता है. अगर आप की भी सालगिरह नजदीक है तो उसे यादगार बनाएं. उस दिन के लिए खास प्लानिंग पहले से कर लें ताकि सालगिरह को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें. जिस से आप प्यार करते हैं, जो आप का साथी है अगर इस एक दिन उस के लिए कुछ स्पैशल किया जाए तो सोचिए उसे कितनी खुशी मिलेगी और फिर उसे खुश देख कर आप को भी बहुत खुशी मिलेगी. जानिए, कुछ टिप्स:

अगर आप की शादी की 5वीं, 10वीं, 12वीं, 14वीं या फिर 20वीं सालगिरह भी है तो फिर उसे यादगार बनाने के लिए 25वीं वर्षगांठ का ही इंतजार क्यों? उसे आज ही क्यों न यादगार बना दें. हां, इस के लिए थोड़ा पैसा जरूर खर्च होगा और अगर आप ऐसा करने में सक्षम हैं तो इस दिन को यादगार बना दें. अपने सभी सगेसंबंधियों को बुला कर पार्टी का आयोजन करें. अगर आप बाहर पार्टी नहीं करना चाहतीं तो घर पर ही मेहमानों को बुलाएं और ऐंजौय करें. यह सस्ता भी पड़ेगा. हां, इस काम की सारी जिम्मेदारी आप अकेली न उठाएं, बल्कि कुछ काम आप अपने बच्चों और परिवार के बाकी सदस्यों को भी बांट दें. यह आप का दिन है तो बाकी लोगों का भी काम करना बनता है.

द्य यदि अकेले सैलिब्रेशन करना चाहती हैं तो इस दिन अपनी वैडिंग नाइट का मेन्यू दोहरा सकती हैं. सारा नहीं, बल्कि उस दिन जो आप को अच्छा लगा हो वह. अगर आप चाहें तो खाना बाहर से भी और्डर कर के पति को सरप्राइज दे सकती हैं अथवा खुद ही उन के साथ मिल कर टाइम स्पैंड करते हुए डिनर तैयार करें. वैडिंग केक लाना न भूलें. डिनर से पहले केक काटते हुए अपनी सालगिरह कुछ अलग अंदाज में मनाएं.

इस दिन आप दोनों कुछ न करें बस एकदूसरे के साथ रहें और अपनी शादी का अलबम, वीडियो देख कर पुरानी यादें ताजा करें. पूरा दिन छोटेछोटे सरप्राइज दे कर एकदूसरे को स्पैशल फील कराएं. अपनी फीलिंग्स जो बरसों से आप ने एकदूसरे को नहीं बताईं उन्हें बताएं.

एक सरप्राइज ट्रिप प्लान करें, जिस में सिर्फ आप दोनों हों. इस के लिए अगर संभव हो तो बच्चों को 2-3 दिनों के लिए किसी रिश्तेदार के घर छोड़ दें. अगर यह संभव नहीं है तो बच्चों को साथ ले जाएं लेकिन वहां एकदूसरे के लिए समय जरूर निकालें.

लवस्टोरी थीम का फोटो शूट करें. आजकल प्रोफैशनल फोटोग्राफर हर जगह होते हैं, जो आप के इस दिन को पूरी तरह यादगार बना सकते हैं.

एकदूसरे को उपहार भी दें, एक नहीं कई छोटेछोटे उपहार दें जो साथी को पसंद हों. यहां उपहार को कीमत से न तोल कर उस के पीछे छिपी साथी की भावनाओं को समझें.

इसी तरह अगर साथी का बर्थडे है तो भी इस दिन को कुछ इस अंदाज में सैलिब्रेट करें कि वह उसे कभी न भूले. इस दिन वह सब करें जो साथी को पसंद है. अगर उसे अपनी फैमिली का साथ अच्छा लगता है तो बिना झिझके उस की फैमिली के साथ पार्टी प्लान करें और वह भी बिना साथी को बताए. उस के पुराने फ्रैंड्स को कौल कर के कुछ प्लान करें. कोई रोमांटिक मूवी देखें और स्पैशल कैंडल लाइट डिनर ऐंजौय करें. तोहफा भी ऐसा दें जिस की तमन्ना उसे कई बरसों से रही हो. इस तरह छोटीछोटी खुशियां ढूंढ़ कर साथी के इस खास दिन को सैलिब्रेट करें.

बच्चों की सफलता पर सैलिब्रेशन

रिजल्ट आने पर बच्चे अपनी पसंद का गिफ्ट तो ले ही लेते हैं, साथ ही अपने स्कूलकालेज के दोस्तों के साथ पार्टी भी करते हैं. लेकिन आप का क्या? हम में से कितने पेरैंट्स हैं जो बच्चों के ऐग्जाम को अपने खुद के ऐग्जाम की तरह देखते हैं और परीक्षा की तैयारी करने के लिए बच्चों के साथ पूरीपूरी रात जागते हैं. जब बच्चे अच्छे नंबरों से पास होते हैं या उन्हें अच्छी नौकरी मिलती है, तो जितनी खुशी बच्चों को होती है उस से कहीं ज्यादा पेरैंट्स को होती है. तो फिर इस मौके पर जब बच्चे पार्टी कर सकते हैं, तो आप का तो पार्टी करना बनता ही है, कुछ इस तरह:

एक फैमिली गैटटूगैदर रखें, जिस में परिवार के सभी लोग शामिल हों. इस से पिछले कुछ दिनों की पूरी थकान उतर जाएगी और परिवार के साथ अच्छा समय बिताने को भी मिलेगा.

अगर बच्चे को उस की सफलता के लिए कोई गिफ्ट दे रही हैं तो एक गिफ्ट अपने लिए लेने में बिलकुल कंजूसी न करें, क्योंकि यह आप का भी अचीवमैंट है.

बच्चों के लिए काफी समय से मेहनत करतेकरते आप भी थक गई होंगी, इसलिए क्यों न अब थोड़ा समय अपने लिए निकालें. अपने घर में एक पार्टी रखें, जिस में बच्चों के दोस्तों को भी बुलाएं और अपने मिलनेजुलने वालों को भी. इसी बहाने एक अच्छी पार्टी भी हो जाएगी.

गृहिणी का आउटडोर सैलिब्रेशन

क्या आप के घर में भी आप की ननद, देवर या फिर आप के अपने बेटे या बेटी की शादी हुई है अथवा कोई भी ऐसा समारोह? फंक्शन चाहे कोई भी हो, उस की लगभग सारी जिम्मेदारी गृहिणी की हो जाती है. भले ही वह जिम्मेदारियों को बांट कर काम करे, लेकिन उसे अपनी नजर हर जगह रखनी पड़ती है. यही वजह है कि घर के किसी भी खास समारोह के बाद गृहिणी पूरी तरह थक जाती है और उसे भी रिलैक्स करने की जरूरत होती है. इस बार क्यों न आप भी रिलैक्स करने के लिए अपने फ्रैंड्स के साथ आउटडोर पार्टी करें. पेश हैं, कुछ टिप्स:

यह मौका है गर्ल्सगैंग आउटिंग का. जी हां, पति, बच्चे सब से दूर. आखिर आप कब तक इन में उलझी रहेंगी. इसलिए अपने गैंग को तैयार कर आज शाम ही पार्टी पर निकल जाएं. अरे सोच क्या रही हैं, ऐसा कर के तो देखें, कालेज के दिन दोबारा न याद आ जाएं तो कहना.

अगर बहुत दिन से आप का किसी हिल स्टेशन पर जाने का मन है और वह किसी न किसी वजह से टलता रहा है तो क्यों न यह प्रोग्राम फ्रैंड्स के साथ सैट कर लें.

यह न भूलें कि सब का खयाल रखने के साथसाथ खुद की खुशी के बारे में सोचना और छोटेछोटे पलों को सैलिब्रैट करना आप को आप से मिलवाता है.

इस तरह बच्चों में डालें पढ़ने की आदत

आजकल सभी मातापिता यह शिकायत करते हैं कि बच्चे स्मार्टफोन, टैबलेट, टीवी या फिर मोबाइल पर गेम्स खेलने में लगे रहते हैं. मंजीत कहते हैं, ‘‘एक हमारा जमाना था जब हम पढ़ते हुए कभी नहीं थकते थे.’’ साथ में बैठी उन की पत्नी फौरन बोल उठीं, ‘‘मुझे तो मीकू, चीकू बहुत पसंद थे.’’  बालपुस्तकों की कमी आज भी नहीं, किंतु आज की पीढ़ी पढ़ने का खास शौक नहीं रखती है. कहीं इस के जिम्मेदार हम ही तो नहीं? पहले इतनी तकनीक हर हाथ में उपलब्ध नहीं होती थी कि बच्चे किताबों के अलावा मन लगा पाते. आजकल गैजेट्स हर छोटेबड़े हाथ को आसानी से प्राप्त हैं.

अपने नन्हे को पढ़ कर सुनाएं : 

अपने नन्हेमुन्ने का अपने जीवन में स्वागत करने के कुछ वर्षों बाद ही आप उसे कहानी पढ़ कर सुनाने की प्रक्रिया आरंभ कर दें. इस से न केवल आप का अपने बच्चे से बंधन मजबूत होगा बल्कि स्वाभाविक तौर पर उसे पुस्तकों से प्यार होने लगेगा.  उम्र के छोटे पड़ाव से ही किताबों के साथ से बच्चों में पढ़ने की अच्छी आदत विकसित होती है. प्रयास करें कि प्रतिदिन कम से कम 20 मिनट आप अपने बच्चों के साथ मिल कर बैठें और पढ़ें. पुस्तकों में कोई रोक न रखें, जो आप के बच्चे को पसंद आए, उसे वह पढ़ने दें.

पढ़ने के साथ समझना भी जरूरी : 

बच्चा तेजी के साथ किताब पढ़ पाए, यह हमारा लक्ष्य नहीं है, बल्कि जो कुछ वह पढ़ रहा है, उसे समझ भी सके. इस के लिए आप को बीचबीच में कहानी से संबंधित प्रश्न करना चाहिए. इस से बच्चा न केवल पढ़ता जाएगा, बल्कि उसे समझने की कोशिश भी करेगा. आप ऐसे प्रश्न पूछें, जैसे अब आगे क्या होना चाहिए, क्या फलां चरित्र ठीक कर रहा है, यदि तुम इस की जगह होते तो क्या करते. ऐसे प्रश्नों से आप का बच्चा कहानी में पूरी तरह भागीदार बन सकेगा तथा उस की अपनी कल्पनाशक्ति भी विकसित होगी.

बच्चे के रोलमौडल बनें : 

यदि आप का बच्चा बचपन से पढ़ने का शौकीन है तब भी घर में किसी रोलमौडल की अनुपस्थिति उसे इधरउधर भटकने पर मजबूर कर सकती है. आप स्वयं अपने बच्चे के रोलमौडल बनें और उस की उपस्थिति में अवश्य पढ़े. चाहे आप को स्वयं पढ़ना बहुत अधिक पसंद न भी हो तब भी आप को प्रयास करना होगा कि बच्चे के सामने आप पढ़ते नजर आएं. क्या पढ़ते हैं, यह आप की इच्छा है, लेकिन आप के पढ़ने से आप का बच्चा यह सीखेगा कि पढ़ना उम्र का मुहताज नहीं होता और हर उम्र में इंसान सीखता रह सकता है.

आसपास देख कर सिखाइए : 

छोटे बच्चे बिना पढ़े ही क्रीम की बोतल के नाम, शैंपू के नाम, उन के पसंदीदा रैस्तरां, जैसे डोमिनोज का नाम आदि जान जाते हैं. कैसे? चिह्नों द्वारा. मीनल बताती हैं कि उन की डेढ़ वर्र्र्षीया बिटिया ढेर सारे चिह्न (कंपनियों के लोगो) पहचानती है और उन की कंपनियों के नाम बता देती है तो जब उन के दूसरा बच्चा होने का समय निकट आया, उन्होंने नवजात शिशु की कौट के ऊपर उस के नाम के अक्षर टांग दिए. इस का असर यह हुआ कि न केवल उन की बड़ी बिटिया नाम की स्पैलिंग सीख गई, बल्कि छोटी भी बहुत जल्दी वर्णमाला सीख गई. तकनीकी भाषा में इसे ‘एनवायरनमैंटल पिं्रट’ कहते हैं अर्थात चिह्नों की सहायता से बच्चे, बिना पढ़े ही, भिन्न रैस्तरां, सौंदर्य प्रसाधन, ट्रैफिक सिग्नल, कपड़े, पुस्तकें आदि पहचानने लगते हैं और उन में भेद कर सकते हैं.  नन्हे बच्चों की उत्सुक प्रवृत्ति का लाभ उठाते हुए आप उन्हें न केवल किसी चीज का शाब्दिक अर्थ बल्कि सामाजिक महत्त्व तथा उपयोग भी बता सकते हैं. अपने आसपास की चीजें देख वे प्रश्न करेंगे और आप उत्तर के द्वारा उन्हें कईर् चीजें सिखा सकते हैं.

भिन्न प्रकार की पुस्तकों को बनाएं मित्र :

  जब आप का बच्चा पढ़ने लगे, तब आप उसे भिन्न प्रकार की पुस्तकें पढ़ने को दें, जैसे अक्षर ज्ञान वाली पुस्तकें, बाल कहानियां, कविताओं की पुस्तकें आदि. साथ ही, वह एक प्रकार की कहानियों को दूसरी से अलग करने में अपने दिमाग में विचारों को बनाना व संभालना सीखेगा.

खेलखेल में :

कई खेलों द्वारा आप अपने छोटे बच्चे को पढ़ने की ओर आकर्षित कर सकती हैं. दिल्ली की प्रेरणा सिंह कहती हैं, ‘‘हर शुक्रवार वे अपनी सोसाइटी में 5 से 7 साल के बच्चों के लिए ‘फन फ्राइडे’ मनाती हैं. यहां वे बच्चों की टोली को अलगअलग टीम में विभाजित कर खेलों द्वारा पढ़ने की ओर उन का रुझान पैदा करती हैं. इस के लिए वे कई खेलों का सहारा लेती हैं.

वे कहती हैं, ‘‘केवल स्कूली पढ़ाई ही जीवन में काम नहीं आती. जो कुछ हम अपने वातावरण से सीखते हैं, वही हमारा व्यक्तित्व बनता है और जिंदगी में हमारे काम आता है.’’

डिजिटल बनाम प्रिंट

वर्ष 2013 से 2015 तक नाओमि बैरोन द्वारा किए गए शोध में 5 देशों-भारत, जापान, अमेरिका, जरमनी व स्लोवेनिया के 429 विश्ववि-ालयों के छात्रों से जब डिजिटल बनाम कागज की किताबों की तुलना करने को कहा गया तो छात्रों की प्रतिक्रिया थी कि उन्हें कागज की खुशबू भाती है. उन्हें कागज को छूने, देखने, पकड़ने से आभास होता है कि वे पढ़ रहे हैं. पिं्रट उन्हें बेहतर समझ में आता है और अधिक याद रहता है.

सोशल मीडिया का असर

सोशल मीडिया पर ज्ञान तो बहुत है पर सही या गलत, इस का कोई प्रमाण नहीं है. जिस के जो दिल में आता है, वह उस का औडियो या वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर देता है. बच्चे व किशोर ज्ञान की कमी के कारण इस अधकचरी जानकारी को प्राप्त कर समझते हैं कि उन्हें किताबें पढ़ने की आवश्यकता नहीं है.

बच्चे को सिर्फ अक्षरज्ञान देना नहीं है, बल्कि पुस्तकों जैसे सच्चे मित्र द्वारा सामाजिक ज्ञान के साथ भावनात्मक संबलता भी प्रदान करना है. बच्चा जो पढ़े, जो सीखे, उसे गुने भी. इस के बिना पढ़ना व्यर्थ है.  केवल पढ़ना ही ध्येय नहीं, लिखना भी लक्ष्य होना चाहिए. और अच्छा लिखने के लिए ज्यादा पढ़ना आवश्यक है. अच्छी किताबें बच्चों को ज्ञान के साथ एक नई दुनिया दिखाती हैं, उन्हें सही राह पर चलने की प्रेरणा देती हैं.

खेल ऐसा जो पढ़ने में रुचि जगाए

कुछ आकर्षक खेल जिन के द्वारा आप अपने बच्चों में पढ़ने की अभिरुचि विकसित कर सकती हैं-

–     हर अक्षर की कठपुतलियां बनाइए. कोई एक शब्द कहिए, जिस की स्पैलिंग बच्चों को कठपुतलियों को उठा कर बनानी है. जो टोली पहले बना देगी, वह जीत जाएगी.

–     हर टोली में से एक बच्चा आएगा और एक बड़े बोर्ड पर किसी वस्तु की कलाकारी करेगा. दूसरी टीम को उस की स्पैलिंग बतानी होगी.

–     जिस बच्चे ने जो भी नई कहानी पढ़ी है, वह उसे पूरे समूह को सुनाएगा. कहानी समाप्त होने पर सब तालियां बजाएंगे.

–     सब बच्चों को एक विषय दिया जाएगा और उस पर उन्हें एक छोटी कहानी बनानी होगी.

–     बारीबारी से सब बच्चे दी हुई पुस्तक में से कहानीपाठ या कवितापाठ करेंगे.

शोध जो कहता है

–     करीब 1,500 अभिभावकों, जिन के 8 वर्ष तक की आयु के बच्चे हैं, से लंदन के बुकट्रस्ट द्वारा बातचीत करने पर परिणाम आया कि अभिभावक मानते हैं कि डिजिटल के मुकाबले कागज से बच्चों की दृष्टि को कम खतरा रहता है, उन को कम सिरदर्द होता है और बेहतर नींद आती है.

–     92 फीसदी लोगों का कागज की किताब में अधिक ध्यान लगता है.

–     86 फीसदी डिजिटल के मुकाबले प्रिंट को पसंद करते हैं.

–     45 फीसदी लोगों ने इस बात का भय जताया कि गैजेट के हाथ में आने से बच्चों का स्क्रीनटाइम बढ़ जाएगा.

–     31 फीसदी को डर था कि गैजेट से बच्चे गलत साइट पर जा कर कुछ अनर्गल भी देख सकते हैं.

न बनाएं लाइफ को फास्ट

आज के युवावर्ग को आमिर खान से सीखने की जरूरत है, क्योंकि आज के युवाओं में धैर्य की कमी है. उन्हें हर काम में जल्दबाजी होती है. खाना खाना हो तो जल्दी, कहीं जाना हो तो जल्दी, सड़क पर गाड़ी चलाना हो तो जल्दी, गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड बनाना हो तो जल्दी, ब्रेकअप करना हो तो जल्दी. वे समय दे कर काम खत्म करने की बजाय फटाफट करना चाहते हैं. उन्हें लगता है जिस तरह से एक क्लिक में गूगल पर हर सवाल का जवाब मिल जाता है, उसी तरह लाइफ में भी हर काम फटाफट करो और ऐंजौय करो. सोचनासमझना तो पुरानी पीढ़ी का काम है. वे तो यंग जैनरेशन हैं. अगर किसी बात के लिए पेरैंट्स कुछ कहते भी हैं तो उन का जवाब होता है कि किस के पास इतना समय है कि बैठ कर सोचे. अगर आगे बढ़ना है तो तेज भागना होगा.

जल्दबाजी में युवा भले ही काम तुरंत खत्म कर लेते हैं, पर वे इस बात को नहीं समझ पाते कि जल्दबाजी में किए गए काम में कुछ न कुछ कमी अवश्य रह जाती है.

आइए जानते हैं जल्दबाजी में किसकिस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है:

जल्दबाजी में होती है कन्फ्यूजन: जो लोग जल्दबाजी में होते हैं वे जल्दीजल्दी बोलते हैं, सामने वाले को बात खत्म करने का मौका नहीं देते, बीच में ही टोकते रहते हैं, किसी की बात ध्यान से नहीं सुनते और जब उन्हें कोई काम दिया जाता है तो उसे वे कर नहीं पाते. तब उन्हें कन्फ्यूजन होती है कि क्या करें और क्या नहीं. कई बार तो सामने वाले की बात में हामी भर देते हैं और बाद में अफसोस करते हैं कि क्यों हामी भरी.

निर्णय लेने की क्षमता में कमी: जल्दबाजी में यह समझना मुश्किल होता है कि किस सिचुएशन में क्या करना चाहिए और इसी वजह से कठिन हालात का सामना करते समय चिड़चिड़े हो जाते हैं. सिचुएशन हैंडल नहीं कर पाते और कुछ ऐसा कह देते हैं जिस की वजह से महत्त्वपूर्ण रिश्ते खो देते हैं.

एकाग्रता में कमी: जब आप जल्दबाजी में होते हैं तब आप किसी भी काम में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते. आप का ध्यान भटकता रहता है. आप को लगता है कि जल्दी से काम खत्म कर के दूसरा काम शुरू कर दें. अगर किसी काम में ज्यादा समय लगता है तो वह काम बोझ लगने लगता है और आप बिना मन के काम खत्म कर देते हैं.

असफलता का सामना: हड़बड़ी में आप अपना शतप्रतिशत नहीं दे पाते और जब सफल नहीं होते तो उसे छोड़ कर दूसरा काम करना शुरू कर देते हैं. जल्दीजल्दी में समझ नहीं पाते कि क्या सही है और क्या गलत. इस से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कई बार तो असफलता की वजह से गलत रास्ते का चुनाव करने से भी नहीं कतराते.

विश्वास कायम करने में असफल: आप सोचते होंगे कि आप जल्दीजल्दी काम कर के दूसरों पर अपना प्रभाव डालने में सफल होंगे. लेकिन एक सचाईर् यह भी है कि आप जल्दीजल्दी काम कर के सामने वाले पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकते. जरा सोचिए एक ड्राइवर आप को बैठा कर गाड़ी बहुत तेजी से चला कर समय से पहले पहुंचाता है तो दूसरा सही स्पीड पर गाड़ी चला कर समय पर पहुंचाता है. आप दोनों में से किस ड्राइवर पर ज्यादा विश्वास करेंगे? यकीनन दूसरे पर. ठीक इसी तरह लाइफ में भी आप धैर्र्य व संयम से दूसरों पर प्रभाव डालने में सफल होते हैं.

हैल्थ के लिए नुकसानदायक: आज के युवाओं को वही खाना अच्छा लगता है जो फटाफट बन जाए. उन्हें लगता है कि कौन खाना बनाने में घंटों मेहनत करे. फटाफट बनाओ और फटाफट खाओ.  यही नहीं कहीं पर भी कुछ भी खा लेते हैं. यही कारण है कि उन्हें कम उम्र में कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है.

कैरियर में जल्दबाजी करना पड़ता है महंगा: युवा काम सही तरीके से सीखने की बजाय जौब स्वीच करने में विश्वास करते हैं. अगर किसी दिन बौस या फिर अन्य कोईर् सीनियर उन के काम में कोई कमी निकाल दे तो घर आ कर बवाल खड़ा कर देते हैं कि मुझे इस कंपनी में काम नहीं करना. मैं इतना काम करता हूं, लेकिन मुझे कभी क्रैडिट नहीं मिलता वगैरहवगैरह. अगर कभी किसी बात पर जौब छोड़नी भी पड़े तो आगेपीछे की नहीं सोचते और जौब छोड़ देते हैं. लेकिन आप का ऐसा करना आप के कैरियर के लिए ठीक नहीं है. भले ही आप को एक जगह से काम छोड़ कर दूसरी जगह जौइन करने पर पैसे ज्यादा मिलें, लेकिन ऐसा कर के आप किसी भी काम में मास्टर नहीं बन पाते. आप को हर काम की थोड़ीथोड़ी नौलेज ही मिल पाती है. इसलिए जरूरी है कि आप अपने काम को बेहतर बनाने की कोशिश करें.

यही नहीं हर काम में जल्दबाजी दिखाने की वजह से आप को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. स्ट्रैस लैवल बढ़ता है. हारमोनल बदलाव आते हैं. आप के पर्सनल रिलेशन भी प्रभावित होते हैं. यह ठीक है कि आप सफल होना चाहते हैं, जीवन में आगे

बढ़ना चाहते हैं, लेकिन हर काम में जल्दबाजी दिखाने की बजाय अपने काम में थोड़ा परफैक्शन लाने का प्रयास करें, टाइम मैनेजमैंट का गुण सीखें. किसी काम को समय देने का अर्थ यह नहीं है कि आप आलसी या लेटलतीफ हैं, बल्कि इस का मतलब यह है कि आप सिस्टेमैटिक तरीके से काम करते हैं. इसलिए अब आप को कोई काम मिले तो उसे फटाफट खत्म करने के बजाय थोड़ा समय दे कर करने का प्रयास करें.

उन से करें मन की बात

शादी करने जा रही, जस्ट मैरिड लड़कियों के लिए खासतौर से और सभी पत्नियों के लिए आमतौर से ‘मन की बात’ इसीलिए करनी पड़ रही है क्योंकि पहले जो तूतू, मैंमैं, जूतमपैजार, सिर फुटव्वल एकडेढ़ साल बाद होते थे, अब 4-5 महीनों में हो रहे हैं. ऐडवांस्ड जमाना है भई सबकुछ फास्ट है.

पतियों से बहुत प्रौब्लम रहती है हमें. उन की बात तो होती रहती है. क्यों न एक बार अपनी बात कर लें हम?

– शादी हुई है, ठीक है, अकसर सब की होती है. तो खुद को पृथ्वी मान कर और पति को सूर्य मान कर उस की परिक्रमा मत करने लगो. न यह शकवहम पालो कि उस के सौरमंडल में अन्य ग्रह या चांद टाइप कोई उपग्रह होगा ही होगा. दिनरात उसी के आसपास मंडराना, अपनी लाइफ उसी के आसपास इतनी फोकस कर लेना कि उसे भी उलझन होने लगे, ऐसा मत करो, गिव हिम अ ब्रेक (यहां स्पेस पढि़ए). अपने लिए भी एक कोना रिजर्व रखना हमेशा.

– अपने अपनों को, दोस्त, सखीसहेलियों को छोड़ कर आने का दुख क्या होता है तुम से बेहतर कौन जानता है. तो उस से भी एकदम उस के पुराने दोस्तों और फैमिली मैंबर्स से कटने को मत कहो. बदला क्यों लेना है आखिर अपना घर छोड़ने का? ‘तुम तो मुझे टाइम ही नहीं देते.’ का मतलब ‘तुम बस मुझे टाइम दो’ नहीं होता समझो वरना हमेशा बेचारगी और उपेक्षा भाव में जीयोगी.

– जो काम हाउसहैल्प/घर के अन्य सदस्य कर रहे हों उन्हें जबरदस्ती हाथ में लेना यह सोच कर कि इन से परफैक्ट कर के दिखाओगी, कतई समझदारी नहीं है. अगर सास का दिल जीतने टाइप कोई मसला न हो तो इन से गुरेज करें, क्योंकि पुरुष

आमतौर पर इन मसलों में बौड़म होते हैं और आप को जब वे ताबड़तोड़ तारीफें न मिलें जो आप ने ऐक्सपैक्ट कर रखी हैं, तो डिप्रैशन होगा. बिना बात थकान और वर्कलोड अलग बढ़ेगा. तो जितने से काम चल रहा हो उतने से ही चलाओ.

– लीस्ट ऐक्सपैक्टेशंस पालो. जितनी कम अपेक्षाएं उतना सुखी जीवन. अगर ऐक्सपैक्टेशन या बियौंड ऐक्सपैक्टेशन कुछ मिल गया तो बोनस.

– न अपने खुश रहने का सारा ठेका पतिपरमेश्वर को दे दो न अपने दुखी होने का ठीकरा उस के सिर फोड़ो. अपनी खुशियां खुद ढूंढ़ो. अपनी हौबीज की बलि मत चढ़ाओ और न अपनी प्रतिभा को जंग लगाओ. बिजी रहोगी, खुश रहोगी तो वह भी खुश रहेगा. याद रखो तुम उस के साथ खुश हो, यह मैटर करेगा उसे. उसी की वजह से खुश हो नहीं. मैं कैसी दिख रही हूं, कैसा पका रही हूं, सब की अपेक्षाओं पर खरी उतर रही हूं, कहीं इन का इंट्रैस्ट मुझ में कम तो नहीं हो रहा ये ऐसी चीजें हैं, जिन में कई औरतें मरखप कर ही बाहर निकल पाती हैं, जबकि पतियों के पास और भी गम होते हैं जमाने के.

– शक का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं था. उम्मीद है ऐसी सर्जरी जो ब्रेन के उस हिस्से को काट फेंके जो शक पैदा करता है, जल्दी फैशन में आ जाए. तब तक ओवर पजैसिव और इनसिक्योर होने से बचो. कहीं का टौम क्रूज नहीं है वह जो सब औरतें पगलाती फिरें उस के पीछे. हो भी तो तुम्हारे खर्चे पूरा कर ले वही बहुत है. फिर फैमिली का भी तो पालन करना है. औलरैडी टौम है, तो बेचारे की संभावनाओं के कीड़े औलमोस्ट मर ही चुके समझो.

– लड़ाईझगड़े, चिड़चिड़ाना कौमन और एसैंशियल पार्ट हैं मैरिड लाइफ के. फिर बाद में वापस सुलह हो जाना भी उतना ही कौमन और एसैंशियल है. बस करना यह है कि जब अगला युद्ध हो तो पिछले के भोथरे हथियारों को काम में नहीं लाना है. पिछली बार भी तुम ने यही किया/कहा था, तुम हमेशा यही करते हो, रिश्तों में कड़वाहट घोलने में टौप पर हैं. जो बीत गई सो बात गई.

– हम लोग परेशान होने पर एकदूसरे से शेयर कर के हलकी हो लेती हैं, जबकि पुरुषों को ज्यादा सवालजवाब नहीं पसंद. कभी वह परेशान दिखे और पूछने पर न बताना चाहे तो ओवर केयरिंग मम्मा बनने की कोशिश मत करो. बताओ मुझे, क्या हुआ, क्यों परेशान हो, क्या बात है, मैं कुछ हैल्प करूं, प्यार नहीं खीझ बढ़ाते हैं. बेहतर है उसे एक कप चाय थमा कर 1 घंटे को गायब हो जाओ. फोकस करेगा तो समाधान भी ढूंढ़ लेगा. लगेगा तो बता भी देगा परेशानी की वजह. दोनों का मूड सही रहेगा फिर.

– कितनी भी, कैसी भी लड़ाई हो, शारीरिक हिंसा का एकदम सख्ती और दृढ़ता से प्रतिरोध करो. याद रखो एक बार उठा हाथ फिर रुकेगा नहीं. पहली बार में ही मजबूती से रोक दो. साथ ही बेइज्जती सब के सामने, माफीतलाफी अकेले में, यह भी न हो. अपनी सैल्फ रिस्पैक्ट को बरकरार रखो, हमेशा हर हाल में ईगो और सैल्फ रिस्पैक्ट के फर्क को समझते हुए.

– आदमी चेहरा और ऐक्सप्रैशंस पढ़ने में औरतों की तरह माहिर नहीं होते. इसलिए मुंह सुजा कर घूमने, भूख हड़ताल आदि के बजाय साफ बताओ क्या दिक्कत है.

– किसी भी मतलब किसी भी पुरुष से स्पष्ट और सही उत्तर की अपेक्षा हो तो सवाल एकदम सीधा होना चाहिए, जिस का हां या न में जवाब दिया जा सके. 2 उदाहरण हैं-

पहला

‘‘क्या हम शाम को मूवी चल सकते हैं?’’

‘‘हम्म, ठीक है, कोशिश करूंगा, जल्दी आने की, काम ज्यादा है.’’

दूसरा

‘‘क्या हम शाम को मूवी चलें? आ जाओगे टाइम पर?’’

‘‘नहीं, मीटिंग है औफिस में, लेट हो जाऊंगा तो चिढ़ोगी स्टार्टिंग की निकल गई. कल चलते हैं.’’

जब पुरुष का मस्तिष्क ‘सकना’ टाइप के कन्फ्यूजिंग शब्द सुनता है तो उत्तर भी कन्फ्यूजिंग देता है. अब पहली स्थिति में उम्मीद तो दिला दी थी. तैयार हो कर बैठने की मेहनत अलग जाती, टाइम अलग वेस्ट होता और पति के आने पर घमासान अलग. कभी किसी पुरुष को कहते नहीं सुना होगा कि क्या तुम मुझ से प्यार कर सकती हो या मुझ से शादी कर सकती हो? वे हमेशा स्पष्ट होते हैं, डू यू लव मी, मुझ से शादी करोगी? तो स्पष्ट सवाल की ही अपेक्षा भी करते हैं.

लास्ट बट नौट लीस्ट, अगर वह आप के साथ खड़ा है जिंदगी के इस सफर में, आप का साथ दे रहा है, तो यह सब से जरूरी बात है. आप इसलिए साथ नहीं हैं कि बुढ़ापे में अकेले न पड़ जाओ, न इसलिए कि इन प्यारेप्यारे बच्चों के फ्यूचर का सवाल है, बस इसलिए साथ हैं कि दोनों ने एकदूसरे का साथ चुना है, आखिर तक निभाने को…

डा नाजिया नईम

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