रेत से फिसलते रिश्ते: भाग 2- दीपमाया को कौनसा सदमा लगा था

लेखिका- शोभा बंसल

दीपमाया ने अपनी कजरारी आंखों को अपनी लंबी पलकों की आड़ में छिपाते हुए कहा कि वह विवाहित है, सुहागन भी पर तलाकशुदा नहीं. पर वहां ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि माया मैम विधवा हैं और उसे बेहद इज्जत व मान देते हैं.

“मिली, तुम तो जानती हो कि गणित मेरा फेवरेट सब्जैक्ट था.”

“हां याद है,” मैं ने कहा, “मैं तो सारी इक्वेशन तुम्हारी सहायता से ही सुलझा पाती थी.”

यह सुनते ही दीपमाया ने हताशा से कहा, “पर मिली, मैं तो यहीं मात खा गई. रिश्तों के समीकरण/इक्वेशन समझ ही न पाई. पतिपत्नी से जुड़े सवालों के जवाब ढूंढने में ही उलझ कर रह गई. वहां गोवा में तुम थीं नहीं, तो किस की हैल्प लेती, किस से अपनी पीड़ा शेयर करती?” दीपमाया की आंखें भर आईं.

“अब तुम्हारी प्रेम कहानी में गोवा कहां से आ गया?” मैं ने पूछा.

उस ने बताया, “एक दिन हम दोनों (रोजर और दीपमाया) अपनेअपने परिवार वालों का कड़ा विरोध देख घर से पैसागहना ले गोवा भाग आए. यहां रोजर के एक खास मित्र के परिवार ने हमें पनाह दी और हम दोनों की शादी करवा दी. उधर मेरे घरवालों ने जीतेजी मेरा पिंडदान कर सारे संपर्क तोड़ दिए.

“जब शादीब्याह में बड़ों का आशीर्वाद न मिले, तो बद्दुआ तो लग ही जाती है न. इस बात का एहसास मुझे आज तक होता है.

“रोजर मेरी पीड़ा को समझता था. वह मुझे हर तरह से खुश रखने की कोशिश करता. हम दोनों ने घर गृहस्थी की शुरुआत मिलजुल कर की. मैं गणित की ट्यूशन लेने लगी तो रोजर रात को क्लब वगैरह में गिटार बजाता. मैं उस का साथ देने के लिए वहां गाना गाती.

“जल्दी ही रोज़र अपनी जिंदादिली व खुशमिजाजी के चलते गोवा के सोशल सर्कल में फेमस हो गया और धीरेधीरे हम दोनों ने अपना बार व रैस्तरां खोल लिया. इस सब सफलता में हम दोनों अपनेअपने परिवार वालों की बेरुखी भूल कर अपने में मस्त जीवन जीने लगे.

“तभी एक और खुशी आई. मैं प्रैग्नैंट हो गई. इसी प्रैग्नैंसी ने सब बदल दिया.”

दीपमाया ने आगे बताया, “प्रैग्नैंसी में मैं ट्विंस कैरी कर रही थी. इस से मेरा शरीर बेडौल हो गया. हारमोंस के खेल ने मूड स्विंग्स कर दिए और डाक्टर ने मुझे कंप्लीट रैस्ट बता दिया. मायके और ससुराल वाले तो पहले से ही मुंह मोड़े बैठे थे.

“बेचारे रोजर से जितना हो सकता, मेरी सहायता करता और हर वक्त मेरा ध्यान रखता. घर और काम ने उस की सोशलाइजिंग को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया. शायद कहीं उस के भीतर मुझे ले कर चाम और चाहत की लड़ाई भी चल रही थी.”

दीपमाया ने पश्चात्ताप के मूड में मिली को देखते हुए बताया कि, “शायद, मेरे से भी कुछ भूल हो गई. वह बिना शिकायत मेरी केयर करता रहा और मैं बिना उस की तकलीफ समझे उस पर निर्भर होती गई. मैं ने उस के हैल्पिंग एटीट्यूड को टेकन फौर ग्रांटेड लेना शुरू कर दिया था. जबकि मुझे अपने प्रैग्नैंसी पीरियड को ब्रेवली लेना चाहिए था. यह तो हर स्त्री की लाइफ का कौमन फीचर है.

“मेरे मूड स्विंग्स और मेरे गुस्से से रोजर आहत हो जाता. लेकिन पलट कर जवाब न देता. अब रोजर ने चुप्पी लगानी शुरू कर दी.

“बस, यहीं से मेरे से गलती हो गई. मैं ने उस के इस चेंज को अनदेखा कर दिया.

“जिस रोजर को पाने के लिए मैं ने अपना मायका भुला दिया था, उसी को मैं मां बनते ही नजरअंदाज करने लगी. घर का सारा काम नौकरचाकर के ऊपर छोड़ दिया. तिनकेतिनके जोड़, सजासंवारा घर बेरौनक होने लगा. रोज़र ने कहा भी कि वह मेरा साथ पाने को तरस गया है. वह अकसर शिकायत करता कि मेरी बौडीशेप ख़राब हो गई है. मुझे अपनी फिटनैस पर भी ध्यान देना चाहिए.

“शायद, उसे तब मुझे अपने साथ ले जाने में शर्म आती थी, सही भी था. वह तो अभी भी उतना ही स्मार्ट और यंग था न. मैं बच्चों की परवरिश का बहाना कर देती और वक्त की कमी का तकाजा देती. पत्नी का फ़र्ज़ भूलती जा रही थी मैं.

“अब हमें मिले महीने हो जाते. जब मैं डिमांड करती, तो रोजर कहता कि ‘दीप तुम्हारे साथ अब वह मजा नहीं आता, तुम्हें लेडी डाक्टर को दिखाना चाहिए.’ मैं क्या कहती कि डिलीवरी के बाद ही डाक्टर ने उसे सही ढंग से ब्रेस्ट फीडिंग करवाने और केगल ऐक्सरसाइज करने की पूरी जानकारी दी थी पर मैं ने इन सब को इग्नोर कर दिया था.

“देखो न, आज उसी का तो खमियाजा भुगत रही हूं.”

टेबल पर ठंडी होती काली कौफी का सिप लेते, उसे शायद अपने जीवन के कड़वाहटभरे लम्हे को शेयर करना आसान लगा.

सो, उस ने अपनी बात जारी रखते आगे कहा, “फिर मैं ने महसूस किया कि रोजर ज्यादा समय घर से बाहर ही बिताने लगा था. एक दिन मैं ने रोजर को गोवा के साउथ बीच पर एक हीरोइन के साथ फ्लर्टिंग करते देखा, तो मैं ने हंस कर इग्नोर कर दिया. यह बात भी रोजर को चुभ गई. उस ने मेरे ‘आई डोंट केयर एटीट्यूट’ को अपने प्रति बेपरवाही समझी. वह चाहता था कि मैं उस से पत्नी की तरह लड़ाईझगड़ा करूं और मनाऊं. उस ने मुझे ताना भी दिया, ‘माया, बच्चे पैदा कर तुम्हारा मकसद पूरा हो गया है. सो, अब तुम्हारे लिए मैं यानी रोजर केवल पैसा कमाने की मशीन बन गया हूं.’

“यह मेरे लिए अलार्मिंग साइन था.

“आईने में अपना बेडौल शरीर, सूजी आंखें और उलझे बाल देख मैं हैरान रह गई कि यह वही दीपमाया है जिस पर न केवल रोजर, बल्कि पूरा कालेज लट्टू था. मुझे अपने बेपरवाह मिजाज और लापरवाही पर बहुत गुस्सा व शर्मिंदगी महसूस हुई.

“सो, मैं ने सब बदलने का फैसला किया. जिम जाना शुरू किया. डायटीशियन से बात की. प्लास्टिक सर्जन से पूरे फिगर का मेकओवर करवाया और फिर अपनी पुरानी फिगर वापस लाने के लिए मुझे एक साल कड़ी मेहनत करनी पडी.

“वह बेहद ही मुश्किल वक्त था. पर अपने रोजर को वापस पाने के लिए मुझे कुछ भी करना मंज़ूर था. हम दोनों ने मुसीबत के पलों में हंसतेमुसकराते हुए तिनकातिनका जोड़ घर और बिजनैस खड़ा किया था. सो, तब मेरा एक ही ध्येय था अपने रोजर को अपने परिवार में उचित स्थान दिलवाना. पर इस सब में बहुतकुछ बदल चुका था और जिंदगी मेरे हाथ से रेत की तरह फिसल रही थी जिसे मैं देख ही न पाई.”

मिली ने देखा कि अचानक दीपमाया की आंखें पनीली हो उठीं और वह क्षितिज में विचरण करने लगी मानो अपना खोया अच्छा पल ढूंढ रही हो या उस सौतन को, जिस ने उस के जीवन के रंग सोख लिए थे.

मिली ने माया को झकझोर कर पूछा, “कौन थी वह सौतन जिस ने तुम्हारा सुखचैन छीन लिया, माया?”

रेत से फिसलते रिश्ते: भाग 1- दीपमाया को कौनसा सदमा लगा था

लेखिका- शोभा बंसल

“मौम, पता है कल वैलेंटाइन डे पर माया मैडम ने क्या बढ़िया पार्टी अरेंज की थी. एकदम परफैक्ट और खाना..वाह बहुत टेस्टी था. मुझे तो आप याद आ गईं. आप की तरह ही सुंदर हैं. उन के लंबे बाल हैं और कजरारी आंखें, बिलकुल पंजाबी ब्यूटी. मैं ने जब उन्हें बताया कि मेरी मम्मी भी उन की तरह ही एकदम परफैक्ट वूमेन हैं- अच्छा खाना पकाना, नाचना, गाना, पार्टी अरेंजर, वन इन औल. जब मैं ने माया मैम को बताया कि हम बच्चों की परवरिश के लिए आप ने अपना अच्छाभला कैरियर दांव पर लगा दिया था तब से तो वे आप से मिलने को उत्सुक हैं.”

मेरी बेटी मिनी काठमांडू यूनिवर्सिटी से एमडी कर रही है. घर से इतनी दूर अपने बच्चों को भेजना सब के लिए ही मुश्किल होता है और जब आज मैं ने मिनी को वीडियो कौल पर यों चहकते, मुसकराते देखा तो हम सब के मन को सुकून मिल गया. शुक्र है वह घर से इतनी दूर परदेश में पीजी में एडजस्ट हो गई है. अब उस की बातें सुन लग रहा था कि सारा क्रैडिट तो उस की वार्डन मिसेज माया को जाता है, जिस ने मिनी की उदासी व अकेलेपन को दूर किया था. अब जब भी मिनी कौल करती है तो उस की जबान पर, बस, माया मैम ही होता है.

जब से मिनी ने अपनी माया मैम को बताया है कि उस की मम्मी ने ही उस के सारे बैग्स डिजाइन किए हैं तब से पता नहीं उस की माया मैम ने मेरे लिए अपने मन में क्या छवि बना ली थी. अब हम दोनों ही एकदूसरे को मिलने को उत्सुक थीं.

एक दिन मिनी जिद करने लगी कि मैं उसे और उस की माया मैम से मिलने आ जाऊं.

मैं ने हंस कर कहा, “हम आएंगे.”

“न-ना पापा को मत लाना. वे तो उस पर लट्टू हो जाएंगे,” मिनी ने अपने पापा को छेड़ा.

उस के पापा ने भी मेरा हाथ पकड़ कर पलटवार किया, “हम दोनों का तो फेविकोल का जोड़ है, कोई तोड़ नहीं सकता.”

तभी पीछे से बेटा चिललाया, “मैं आ जाता हूं तुम्हारी माया मैम से मिलने.”

“बंदर, वे मम्मी की उम्र की हैं. तू अपनी शौर्ट फिल्म की शूटिंग और अपनी हीरोइनों में ही बिजी रह,” मिनी ने अपने छोटे भाई से कहा.

जल्दी ही हमें मिनी के पास काठमांडू जाने का मौका मिल गया. मेरे पति और बेटा अपनी शौर्ट फिल्म की शूटिंग के लिए नेपाल जा रहे थे, मैं भी संग हो ली. वे दोनों मुझे काठमांडू में होटल में अकेले छोड़ अपने काम के सिलसिले में आगे निकल गए. तो मैं ने भी सोचा कि क्यों न मैं मिनी के पास जल्दी जा कर उस को अच्छा सा सरप्राइज दे दूं.

सफर की सारी थकान मिनी के पैगोडा शेप की पीजी बिल्डिंग को देख दूर हो गई. वहां पहुंच कर पता चला, मिनी तो अभी तक अपने हौस्पिटल में ही है. तो मैं ने सोचा, उस के आने तक क्यों न उस की माया मैम से ही मिल लूं और थोड़ा सा पीजी बिल्डिंग भी घूम कर देख लूं. मौडर्न व प्राचीन आर्ट का सही तालमेल देख़ मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं. लगता है मेरी मिनी की माया मैम का इंटीरियर का काफी अच्छा टेस्ट है.

तभी मेरी निगाह सामने बैठी हमउम्र महिला पर पड़ी. शायद वह भी अपनी बेटी से मिलने आई थी. जैसे ही हम दोनों की निगाहें मिलीं, हम दोनों एकदूसरे को जानेपहचाने से लगे. हम दोनों इकट्ठे चिल्लाए, ‘अरे दीपमाया, तुम.’ और दीपमाया मुझे देख चिल्लाई, ‘अरे मिली, तुम.’ हम दोनों की आंखें खुशी से भर गइं और भाग कर हमने एकदूसरे को हग कर लिया. हम एकदूसरे का हाथ छोड़ना ही नहीं चाहते थे कि कहीं फिर से न बिछुड़ जाएं.

फिर बात को आगे बढ़ाते मैं ने कहा, “मेरी बेटी मिनी इस पीजी में रहती है. उस से और उस की माया मैम से मिलने यहां आई हूं. यार, तू बता, तू यहां कैसे?”

दीप हंसने लगी, “मैं ही तो हूं दीपमाया, माया मैम. इस पीजी को मैं ही तो चलाती हूं.”

“तो, तुम हो वह हसीन बाला जिस पर मेरी बेटी ही नहीं, हमारा पूरा घर लट्टू है,” मैं ने उसे छेड़ते हुए कहा.

करीबकरीब 30 सालों के बाद हम दोनों सहेलियां मिल रही थीं. मैं उस से दिल खोल कर ढेर सारी बातें करना चाहती थी, सो उठते ही पूछा, “कहां गया वह तुम्हारा गिटारिस्ट रोजर. तुम दोनों का प्यार तो हैड ओवर हील था. क्या शादी उसी के साथ की?

“मैं ने तो सुना था, तुम्हारे घर वाले तो इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे. वे तो कटनेकाटने को तलवारें ले आए थे. क्या सच ही? यार, पूरा किस्सा सुना न. अपने पति से भी मिलाना. देखूं तो सही, वे मिस्टर यूनिवर्सिटी अब कैसे लगते हैं?”

यह सुन माया की आंखों में पीड़ा उभरी. इस से पहले कि वह कुछ बताती, मेरी मिनी ‘मौम मौम चिल्लाती मुझ पर लटक गई.

“सर्जन बन रही हो, यह बचपना छोड़ो,” हंसते हुए लाड़ से परे धकेलते हुए मैं ने उस से कहा.

“वाउ मम्मी, आप माया मैडम को पहले से जानती हैं.”

मैं ने मिनी से कहा, “हां, हम दोनों कालेज फ्रैंड्स थीं. अब 30 साल बाद मिल रही हैं. तेरे नाना की पोस्टिंग दूसरी जगह हो गई, तो हमारा साथ छूट गया. तब आज की तरह सोशल मीडिया प्लेटफौर्म तो थे नहीं, सो संपर्क भी टूट गया. अब मिले हैं तो मुझे अपनी प्यारी सखी से ढेर सारी बातें करनी हैं.”

तभी दीपमाया बोली, “हम इन बातों को यहां नहीं, कल तुम्हें आसपास का एरिया दिखाते और यहां के प्रसिद्ध काली हाउस पर कौफी पीते हुए करेंगे. आज तुम मिनी से जीभर बातें कर लो. कल तुम 11 बजे यहीं आ जाना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.”

अगले दिन मिनी के हौस्पिटल जाने के बाद मैं और माया काठमांडू दर्शन के लिए निकल गए. जितनी दीपमाया मुझे आसपास के दर्शनीय स्थल मंदिर, पगोड़ा वगैरह दिखाने में उत्सुक थी, उस से अधिक तो मैं उस का अतीत जानने को उतावली थी. सो, काली कौफी हाउस में पहुंचते ही टेबल पर इत्मीनान से बैठ मैं अपने को रोक न पाई.

कौफी का और्डर दे मैं ने दीपमाया से रोजर से उस के रिश्ते के बारे में पूछ ही डाला.

“फिर क्या हुआ तुम्हारी लव स्टोरी का,” मेरे मुख से यह सुनते ही दीपमाया की आंखों में पीड़ा व उदासी के बादल उमड़ पड़े.

मैं तुरंत संजीदा हो उठी और उस के हाथ पर हाथ रख उस को आश्वासन दिया और पूछा, “क्या तुम दोनों की शादी नहीं हुई?”

दूरियां: भाग 4- क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

अगले दिन हिरेन जिद करने लगा कि कुछ खरीदारी करते हैं. मैं अधिकतर जींस पहनती हूं तो मु  झे शर्ट, टीशर्ट की दुकान पर ले गया. काम्या वहां पुरुषों के विभाग में शर्ट देखने में व्यस्त थी. उस ने हमें नहीं देखा. बड़ी अजीब फंकी सी शर्ट देख रही थी. खैर, मैं ने नील के लिए एक चैकदार शर्ट खरीदी और बाहर जाने लगी तो काम्या से टकरा गई.

काम्या ने अपनी ली हुई शर्ट दिखाते हुए पूछा, ‘‘यह कैसी शर्ट है?’’

शर्ट चटक औरेंज रंग की थी. मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसी शर्ट पसंद नहीं करती. लेकिन मैं ने उस से कहा अच्छी है और आगे बढ़ गई.

नील की याद इतनी सता रही थी कि बरदाश्त नहीं हो रहा था. आखिर मैं ने फोन किया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका.

अगले दिन हमारा काम खत्म हो गया. लेकिन हिरेन ने जानबू  झ कर एक

दिन अधिक रखा था आसपास घूमने का. मु  झे जान कर बड़ी बोरियत हुई. मेरा बिलकुल मन नहीं था एक भी दिन और रुकने का.

जब घर पहुंची तो नील घर पर नहीं था, सोचा उस की शर्ट निकाल कर पहन लेती हूं. मैं ऐसा अकसर करती जब भी उस की नजदीकी का एहसास करना होता था. अलमारी खोलते ही सामने औरेंज रंग की शर्ट दिखी. हाथ में ले कर देखा तो यह वही शर्ट थी जो काम्या ने अपने बौयफ्रैंड के लिए खरीदी थी. अब कहनेसुनने को कुछ नहीं बचा था. स्थिति एकदम साफ थी. एक कागज पर संदेश लिखा:

‘‘मैं तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं. अब हमारे रिश्ते में ऐसा कुछ नहीं बचा कि हम साथ रहें,’’ मैं किसी वकील से बात कर के आगे सहेली के घर रहने आ गई.

उस के बाद नील के बहुत फोन आए, लेकिन मैं ने फोन नहीं उठाया. जानती थी उस की आवाज सुन कर रो पड़ूंगी और कमजोर पड़ जाऊंगी. 17 महीनों से एक जिंदा लाश की तरह घूम रही हूं. हिरेन ने बहुत मदद की, दाद देनी पड़ेगी बंदा जितना मेरे साथ धैर्य से पेश आ रहा है कोई नहीं आ सकता. वकील से भी उस ने जोर दे कर समय लिया वरना मैं तो टालती जा रही थी.

नील ने जब मेरा हाथ पकड़ कर दबाया तो मैं अतीत से बाहर निकली.

‘‘ऐसा एकदम से क्या हुआ कि तुम घर छोड़ कर चली गई? कारण जानने के लिए मैं पागल हो गया था… तुम्हारे औफिस के इतने चक्कर लगाए, लेकिन किसी ने अंदर नहीं घुसने दिया. तुम कहां रहने चली गई मैं नहीं जान सका. तुम मेरा फोन नहीं उठाती थी.’’

मैं आहत स्वर में बोली, ‘‘बनो मत, तुम शिमला में काम्या के साथ थे. बस मु  झ से तलाक का इंतजार कर रहे हो उस से शादी करने के लिए.’’

‘‘मु  झे नहीं मालूम तुम किस काम्या की बात कर रही हो… मैं तो बस एक काम्या को जानता हूं जो मेरे औफिस में काम करती है और मु  झे बिलकुल पसंद नहीं है. हर समय मेरे पीछे पड़ी रहती है. मैं शिमला अपने दोस्तों निखिल और सोमेश के साथ गया था… वे बहुत समय से पीछे पड़े थे, लेकिन मैं टाल जाता था. जब तुम ने बताया तुम बाहर जा रही हो तो तुम्हारे बिना मैं भी यहां रह कर क्या करता. मेरे हां कहते ही दोनों ने शिमला का कार्यक्रम बना लिया.’’

‘‘तुम सच छिपाने की कोशिश मत करो. काम्या ने तुम्हें औरेंज रंग की शर्ट तोहफे में दी थी.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो. मैं उस बददिमाग लड़की से तोहफा क्यों लूंगा भला? वह शर्ट मैं ने स्वयं खरीदी थी तुम्हें चिढ़ाने के लिए. मु  झे मालूम था उस का रंग और प्रिंट देख कर तुम कितना गुस्सा खाओगी.’’

मैं उठ कर अपने कमरे में चली गई. अब यहां रुकने से कोई लाभ नहीं, पुरानी यादों से बचने

आई थी, लेकिन फिर उसी भंवर में फंस गई. नील को भी यहीं आना था, उस को छोड़ कर जाने का मन नहीं कर रहा था. 2 दिन ही सही, फिर पता नहीं जिंदगी में कभी मिलें न मिलें.

तभी बाहर का दरवाजा खोलने की आवाज आई. उसे मेरी परवाह नहीं लगता है चला गया. जो थोड़ीबहुत उम्मीद थी उसे भी खत्म कर के ही दम लेगा. मैं थोड़ी देर बाद नहाने चली गई, जब बाहर आई तो नील कमरे में मेरा इंतजार कर रहा था.

‘‘तुम एकदम से नहीं दिखाई दी तो मु  झे लगा तुम गुस्सा हो कर चली गई. देखो आज छोटी दीवाली है. मैं कुछ लडि़यां, दीपक और रंगोली के रंग लाया हूं. आखिरी ही सही हम एक बार इस नए घर में पतिपत्नी का नाटक कर के दीवाली मनाते हैं.’’

फिर उस की नजर मु  झ पर ठहर गई. हाथ का सामान नीचे रखते हुए बोला, ‘‘तू सही कहती है मैं तुम्हारी देह देख कर पागल हो जाता हूं.’’

फिर वह एकदम मेरे करीब आ कर मु  झे बांहों में कस कर किस करने लगा. कायदे से मु  झे उसे धक्का दे कर अपने से अलग कर देना चाहिए था, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी. कितनी संतुष्टि मिल रही थी उस की नजदीकी से… तन और मन कितने बेचैन थे… तृप्त हो गए.

वह हांफ रहा था, होंठों को अलग करते हुए बोला, ‘‘शादी के इतने साल बाद भी इतनी बेचैनी, कैसे रह सकेंगे एकदूसरे के बिना? यार एक अनजान लड़की ने क्या कह दिया तूने सच मान लिया. मु  झे देखा तूने उस के साथ कभी और वह शर्ट मैं ने स्वयं खरीदी थी. मैं तु  झे रसीद भी दिखा सकता हूं.’’

मैं आहिस्ता से उस से अलग होते हुए सोच रही थी कह तो यह सही रहा है. मैं ने अपना फोन खोल कर देखा हिरेन की कई कौल्स आई हुई थीं.

मेरी सहेली का संदेश था, ‘‘कहां हो यार तुम्हारा बौस पागल हो रहा है.’’

कमाल है हिरेन को क्या परेशानी है… 2 दिन की छुट्टी है. मैं कहीं भी जाऊं उसे क्या… मेरे मन में न जाने क्या आया कि मैं ने निर्मला को फोन मिलाया.

वह बेरुखी से बोली, ‘‘हैलो, बोलो क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं निर्मलाजी बस दीवाली की शुभकामनाएं देने के लिए फोन मिलाया था.’’

उन की आवाज एकदम बदल गई, ‘‘ओह, अच्छाअच्छा, आप को भी बहुतबहुत शुभकामनाएं. कल पार्टी में नहीं शामिल हुई… हिरेन सर का मूड बड़ा खराब रहा.’’

सुन कर कुछ अजीब लगा. बोली, ‘‘बस तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. इसलिए शोरशराबे से दूर अपनी मम्मी से मिलने आ गई थी. आप ने इतने कम नोटिस पर शिमला जाने का टिकट करवा दिया, आप भी कमाल हो.’’

‘‘इस में कमाल क्या, हमारी ट्रैवल एजेंट्स से सांठगांठ रहती है, 2 टिकट ही तो करवाए थे. उस में कोई दिक्कत नहीं होती, अधिक हो तो थोड़ी परेशानी हो जाती है.’’

‘‘2 टिकट? लेकिन मैं तो अकेले गईर् थी?’’

‘‘तुम्हारी बगल में काम्या बैठ कर गई थी. उस का टिकट भी मैं ने ही करवाया था हिरेन सर के कहने पर. वह सर की ममेरी बहन है… उस ने तुम्हें बताया नहीं?’’

‘‘मैं इतनी थकी हुई थी कि प्लेन में बैठते ही नींद आ गई. इस कारण हमारी खास बात नहीं हुई,’’ फिर थोड़ी देर इधरउधर की बातें

कर के मैं ने फोन काट दिया.

नील मेरे निकट आते हुए बोला, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘हिरेन और काम्या भाईबहन हैं और शिमला में ऐसे नाटक कर रहे थे मानो एकदूसरे को जानते तक नहीं हैं.’’

यह दोनों की चाल थी… शक का बीज बोया. नील तुम्हें और काम्या मु  झे पाना चाहती थी… शिमला में वह मु  झ पर नजर रख रही होगी. जैसे ही मैं ने वह शर्ट खरीदी उस ने भी वैसी एक और खरीद ली होगी. मैं अभी हिरेन के घर जा कर उस की ऐसी धुनाई करूंगा कि साला आगे से मेरी बीवी की तरफ आंख उठा कर देखने की भी हिम्मत नहीं करेगा.’’

‘‘रहने दो नील हमारे रिश्ते में दरार पड़ गई थी तभी दूसरों को सेंध लगाने का मौका मिला,’’ मैं उस के एकदम करीब जा कर बोली, ‘‘मैं आज ही हिरेन की नौकरी से इस्तीफा दे कर कहीं और काम ढूंढ़ लूंगी… अपने बीच किसी तीसरे को नहीं आने देंगे,’’ मु  झे लगा मेरे दिल का अंधेरा छंट गया है और अब हम रात को मिल कर दीए सजाएंगे असली पतिपत्नी की तरह.

दूरियां: भाग 3- क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

जब मैं ने नील को बताया कि मु  झे 5 दिनों के लिए लखनऊ जाना है तो वह बड़बड़ाने लगा. यह मेरे लिए बड़ी परेशानी की बात हो गई थी कि पति का मिजाज देखूं या नौकरी. मेरा मन बड़ा खिन्न सा रहता. उस से बात करने का भी मन नहीं करता.

जाने से 2 दिन पहले निर्मलाजी ने बताया मु  झे लखनऊ

नहीं शिमला जाना होगा. वहां जो टीम औडिट करने गई है उस के एक सदस्य की तबीयत खराब हो गई है. मु  झे क्या फर्क पड़ता था फिर कहीं भी जाना हो. नील को बताने का मन नहीं हुआ. इसलिए कि फिर दोबारा उस की बड़बड़ शुरू हो जाएगी. अच्छा हुआ नहीं बताया. मु  झे नील का वह रंग देखने को मिला जिस पर मु  झे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है.

‘‘मैं जब 5 दिनों के लिए बाहर गई थी 2 महीने पहले तो क्या तुम शिमला गए थे?’’

नील आश्चर्य से, ‘‘हां, लेकिन तु  झे कैसे पता?’’

‘‘मैं भी तब शिमला में थी और मैं ने तुम्हें देखा था.’’

‘‘तुम तो लखनऊ जाने वाली थी और अगर शिमला गईर् थी तो बताया क्यों नहीं? साथ में घूमते बड़ा मजा आता.’’

‘‘अच्छा और जिस के साथ घूमने का कार्यक्रम बना कर गए थे उस बेचारी को म  झधार में छोड़ देते?’’

नील असमंजस से देखते हुए बोला, ‘‘तुम क्या बोल रही हो मु  झे नहीं पता… राहुल और सौरभ बहुत दिनों से कह रहे थे कहीं घूमने चलते हैं… मैं बस टालता जा रहा था. जब तुम जा रही थी तो मैं ने उन्हें कार्यक्रम बनाने के लिए हां कह दी.’’

‘‘रहने दो… तुम   झूठ बोल रहे हो, तुम वहां काम्या के साथ रंगरलियां मनाने गए थे.’’

नील आश्चर्य से बोला, ‘‘कौन काम्या? तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, लड़ने के बहाने ढूंढ़ती हो. अलग होना चाहती हो… हिरेन का साथ चाहती हो… ठीक है, पर गलत इलजाम मत लगाओ. अब मैं   झूठ क्यों बोलूंगा जब हम अलग हो रहे हैं… वैसे भी मैं   झूठ नहीं बोलता हूं.’’

‘‘बहुत अच्छे, तुम हिरेन को ले कर मु  झ पर कोई भी इलजाम लगाओ वह ठीक है.’’

‘‘तुम हिरेन के लिए क्या महसूस करती हो मैं नहीं जानता, लेकिन हिरेन के दिल में तुम्हारे लिए क्या है मैं सम  झता हूं… मेरे लिए तुम क्या हो तुम नहीं जानती हो, तुम मेरी जिंदगी की धुरी हो, सबकुछ मेरा तुम्हारे इर्दगिर्द घूमता है.’’

उस की आंखें और भी बहुत कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन उस की बात सुन कर मेरी आंखों में आंसू आ गए. उस की इस तरह की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर मैं मीरा की तरह उसे कृष्ण मान कर उस की दीवानी हो जाती थी.

जब मैं शिमला जाने वाले प्लेन में सवार हुई, बहुत उदास थी. पहली बार 5 दिनों के

लिए नील से अलग हो रही थी और उस ने केवल बाय कह कर मुंह फेर लिया. शुरू में हम औफिस के लिए भी जब निकलते थे तो ऐसा लगता

7-8 घंटे कैसे एकदूसरे के बिना रहेंगे, बहुत देर तक एकदूसरे के गले लगे रहते. प्लेन में मेरी बगल वाली सीट पर बैठी लड़की बहुत उत्साहित थी. कुछ न कुछ बोले जा रही थी. मु  झे उस की आवाज से बोरियत हो रही थी.   झल्ला कर मैं ने पूछा, ‘‘पहली बार प्लेन में बैठी हो या पहली बार शिमला जा रही हो?’’

वह शरमाते हुए बोली, ‘‘पहली बार अपने प्रेमी से इस तरह मिलने जा रही हूं. वह शादीशुदा है… जब तक तलाक नहीं हो जाता हमें इसी तरह छिपछिप कर मिलना पड़ेगा. तलाक मिलते ही हम शादी कर लेंगे.’’

मेरी उस की प्रेम कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. मैं आंखें बंद कर सिर टिका कर सोने की कोशिश करने करने लगी. लेकिन जब नाश्ता आया तो यह नाटक नहीं चला और वह दोबारा शुरू हो गई. उस के औफिस में ही काम करता था और उस के अनुसार दिखने में बहुत मस्त था. लेकिन बेचारा दुखी था. बीवी   झगड़ालू थी. दोनों में बिलकुल नहीं बनती थी. उस लड़की की बकबक से बचने के लिए मैं कान में इयर फोन लगा कर बैठ गई.

उतरते समय वह कुछ परेशान लगी, बोली, ‘‘मैं पहली बार इस तरह अकेली यात्रा कर रही हूं मु  झे बहुत घबराहट हो रही है. अगर वे नहीं आए तो मैं क्या करूंगी. आप मु  झे प्लीज अपना फोन नंबर और नाम बता दो. अगर जरूरत पड़ी तो मैं आप से सहायता मांग लूंगी. मेरा नाम काम्या है. मैं सुगम लिमिटेड में काम करती हूं.’’

मु  झे ऐसे लोगों से चिढ़ होती है जो बेमतलब चिपकते हैं. मैं ने उस से परिचय मांगा था… बेमतलब उतावली हो रही थी अपने बारे में बताने को. लेकिन वह उस कंपनी में काम करती है, जिस में नील भी नौकरी करता है.

हिरेन मु  झे एयरपोर्ट पर लेने आया. देख कर बड़ा खुश हुआ. अच्छे होटल में ठहरने की व्यवस्था की थी. कमरे तक पहुंचा कर हिरेन बोला, ‘‘आज रविवार है. कल से काम करेंगे. तुम अभी आराम करो. जब उठो तो कौल करना. कहीं घूमने चलेंगे.’’

‘‘बाकी सब कहां हैं?’’

‘‘वे सब चले गए… उन का काम खत्म हो गया. अब बस मेरा और तुम्हारा काम रह गया है.’’

मैं चुपचाप कमरे में अपने फोन को हाथ में पकड़ कर बैठ गई. अगर नील का फोन आया यह पूछने के लिए कि मैं ठीक से पहुंच गई कि नहीं और मैं इधरउधर हुई तो बात नहीं हो पाएगी. अत: मैं शाम तक ऐसे ही बैठी रही पर उस का फोन नहीं आया.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. खोला तो सामने हिरेन था.

‘‘यह क्या कपड़े भी नहीं बदले… जब से ऐसे ही बैठी हो. मैं इंतजार करता रहा तुम्हारे बुलाने का. तैयार हो जाओ हम बाहर घूमने चलते हैं वहीं कुछ खा कर आ जाएंगे,’’ वह बोला.

मैं बेमन सी हो गई और फिर सिरदर्द का बहाना बना कर जल्दी वापस आ कर कमरे में सो गई.

अगले दिन जिस होटल में ठहरे थे वहीं का औडिट करना था, इसलिए सुबह से शाम तक काम करते रहे. शाम को हिरेन फिर घूमने की जिद करने लगा. अकेले रोज उस के साथ इस तरह घूमना मु  झे ठीक नहीं लग रहा था. लेकिन क्या करती.

घूमतेघूमते काम्या दिख गई. अकेली थी. फिर चिपक गई. उस दिन मु  झे उस का साथ बुरा नहीं लगा. हिरेन से उस का परिचय करा कर हम इधरउधर की बातें करने लगे. काम्या ने बताया कि उस का बौयफ्रैंड कल आने वाला था सड़क मार्ग से पर गाड़ी खराब हो गई तो बीच में कहीं रुकना पड़ा. अब रात तक आएगा. वह अकेली थी. हमारे साथ घूमने लगी, हिरेन बोर हो रहा था, लेकिन मु  झे क्या.

यों ही अचानक: अकेले पड़ गए मुकुंद की जिंदगी में सारिका को क्या जगह मिली

दूरियां: भाग 2- क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

वैसे तो मु  झे उस के छूने से, उस के करीब आने से एक नैसर्गिक प्रसन्नता और तृप्ति मिलती थी, लेकिन उन दिनों औफिस के माहौल से बहुत परेशान थी. घर आते ही मन करता था नील के कंधे पर सिर रख कर औफिस की भड़ास निकाल कर थोड़ा रोने का. लेकिन उसे आधे घंटे में ट्यूशन पढ़ाने निकलना होता था. मेरे आते ही वह मु  झे बांहों में खींच कर चूमने लगता.

उस दिन कुछ तबीयत ठीक नहीं थी और औफिस में भी कुछ अधिक ही कहासुनी हो गई. भरी बैठी थी. अत: उस के करीब आते ही सारा आक्रोश उस पर निकल गया. धक्का देते हुए बोली, ‘‘इस तन के अलावा और कुछ नहीं सू  झता क्या?’’

वह ठिठक गया. फिर एकदम पलट कर बाहर चला गया.

रात को 12 बजे तक आता था और मेरी नींद न खुले, इसलिए ड्राइंगरूम में ही सो जाता

था. उस रात भी उस ने ऐसा ही किया. सुबह जब मेरी आंख खुली वह तैयार हो कर औफिस जा रहा था. बिना कुछ खाए और बोले वह चला गया. शाम को मेरे आने से 1 घंटा पहले घर आ जाता था और मेरे आते ही हम आधा घंटा अपनी तनमन की सब बातें करते थे. इस के अलावा हमारे पास एकदूसरे के लिए समय नहीं होता था. लेकिन अब मेरे आने से पहले वह निकल जाता था. रोना तो बहुत आता था, पर मैं सही थी. उस के पास मु  झ से बात करने के लिए 2 पल भी नहीं होते थे.

वह खड़ा हो गया. मेरे कंधों को जोर से पकड़ चीखते हुए बोला, ‘‘तुम ने उस दिन मेरे प्रेम को गाली दी, जीवन में अगर अपने से अधिक किसी को प्यार किया तो वह तुम हो. अगर केवल तुम्हारे तन का भूखा होता तो कालेज में 3 साल तक बिना हाथ लगाए नहीं रहता. मन तो तब बहुत मचलता था, लेकिन वादा किया था कि तुम्हारी इज्जत से कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा. वही तो आधा घंटा मिलता था करीब आने का. सारा दिन बीत जाता तुम्हारे बारे में सोचतेसोचते… तुम्हारे नजदीक आ कर पूर्णता का एहसास होता, स्फूर्ति आ जाती, दुनिया का सामना करने की ताकत मिल जाती. मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति थी वह, तुम में समा कर इतने गरीब हो जाने का एहसास था कि लगता हम एक हैं.’’

उस ने मेरे कंधे छोड़ दिए, आवाज थरथरा रही थी. आंखों में दर्र्द था और वह लड़खड़ाते हुए बाथरूम में चला गया. मेरा मन भारी हो गया. उस की नजरों से कभी सोचने की कोशिश नहीं की. दोनों एकदूसरे का साथ चाहते थे, लेकिन अलगअलग तरीके से. जीवन की भागदौड़ में समय इतना कम जरूरतें इतनी अधिक सब बिखर गया. बात केवल इन गलतफहमियों के कारण बिगड़ी होती तो शायद संभल जाती, लेकिन हमारे रिश्ते में धोखा और   झूठ भी शामिल हो गए थे. कमरे में जा कर लेट गई और रोतेरोते कब सो गई पता नहीं चला.

सुबह फिर बाहर के दरवाजे के खुलने की आवाज से आंख खुली. ताला कुछ सख्त लगता है. कमरे से बाहर आई तो नील खानेपीने का सामान ले कर आया था. चेहरे पर वही उस की चिरपरिचित मुसकान. कितने भी गुस्से में हो बहुत जल्दी सामान्य हो जाता है, मैं बातों को मन में रख कर अपना भी दिमाग खराब कर लेती हूं और दूसरों से भी चिढ़ कर बात करने लगती हूं.

‘‘नीलू, आज गरमगरम कौफी पीते हैं… नीचे कुछ खानेपीने की दुकानें खुल गई हैं,’’ कह मैं जल्दी से मंजन कर आई. फिर हम कल की तरह बालकनी में फर्श पर बैठ कर नाश्ता करने लगे.

नील आसमान की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘यहां से

सुबहशाम आसमान की छटा कितनी निराली दिखती है. अद्भुत नजारा है. अगर हम साथ रहते तो कितना अच्छा लगता. रोज यहां बैठ कर बातें करते.’’

कह तो सही रहा था, लेकिन जो नहीं हो सकता मैं उस के बारे में बात नहीं करना चाहती. नाश्ते में एक पेस्ट्री भी रखी थी. हम अकसर छोटी से छोटी खुशी सैलिब्रेट करने के लिए मीठे में एक पेस्ट्री ले आते थे, दोनों आधीआधी खा लेते थे.

‘‘यह पेस्ट्री किस खुशी में?’’

‘‘याद है आज ही के दिन हमें मिले 4 महीने हुए थे और तुम ने मेरे साथ डेट पर जाना स्वीकार कर लिया था.’’

‘‘तुम भी कमाल करते हो न जाने कैसी छोटीछोटी बातें याद रख लेते हो. वह डेटवेट नहीं थी. कालेज कैंटीन में बैठ कर कौफी पी थी बस.’’

‘‘केवल तुम से संबंधित बातें ही याद रख पाता हूं. कैंटीन में उस दिन साथ बैठ कर कौफी पीना एक महत्त्वपूर्ण कदम था. जब तुम पहले दिन कालेज आई थी तो हिरेन और मेरी तुम पर एकसाथ नजर पड़ी थी. दोनों के मुंह से निकला था कि वाह, कितनी खूबसूरत लड़की है. हम दोनों के दिल पर तुम ने एकसाथ दस्तक दी थी. हम ने निश्चय किया कि हम दोनों तुम्हें लाइन मारेंगे और जिस की तरफ तुम्हारा   झुकाव होगा, दूसरा रास्ते से हट जाएगा. उस दिन कैंटीन में कौफी पीते हुए यह खामोश ऐलान था कि तुम मेरी गर्लफ्रैंड हो.’’

मु  झे ये सब नहीं पता था, हिरेन ने शुरू में मु  झे प्रभावित करने की कोशिश तो की थी. नील गुलाब देता तो वह गुलदस्ता लाता. वह पैसे वाले घर से था, इसलिए महंगे तोहफे देता था, लेकिन मु  झे नील पहली नजर में ही भा गया था. उस के हंसमुख व्यवहार और केयरिंग ऐटिट्यूड के आगे सब फीका था. धीरेधीरे हम दोनों सम  झ गए थे कि हमारा एकदूसरे के बिना गुजारा नहीं और हमारे परिवार को हमारा साथ गवारा नहीं.

नील के ब्राह्मण परिवार को मेरे खानपान से दिक्कत थी तो मेरे मातापिता को नील की आर्थिक स्थिति खल रही थी. वैसे मेरे परिवार के पास भी कुछ खास नहीं था, लेकिन पिताजी को लगता अपनी बहनों की तरह मैं भी अपनी खूबसूरती के बल पर पैसे वाले घर में स्थान बना सकती हूं.

स्नातक करते ही हम दोनों ने शादी की और जो नौकरी मिली पकड़ ली. फिर किराए का घर ढूंढ़ना शुरू किया. क्व10-12 हजार से कम का कोई अच्छा मकान नहीं मिल रहा था. बहुत धक्के खा कर 2 कमरों का प्लैट क्व7 हजार किराए पर मिला, वह भी बस कामचलाऊ था. तब हम ने निर्णय लिया आगे सोचसम  झ कर जीवन की राह पर चलेंगे. पहले कुछ पैसे जमा करेंगे. अपना स्वयं का घर नहीं बन जाता तब तक परिवार नहीं बढ़ाएंगे.

शुरू की हमारी जिंदगी बड़ी खुशहाल रही, दोनों 6 बजे तक घर आ जाते. फिर बहुत बातें करते और सपने देखते. किराया देने के बाद अधिक नहीं बचता था, लेकिन एकदूसरे के साथ मस्त थे. फिर नील को लगा कुछ और पैसे कमाने के लिए ट्यूशन पकड़ लेनी चाहिए और मु  झे लगा पदोन्नति और अच्छे वेतन के लिए एम. कौम. कर लेना चाहिए. बस हम दोनों दौड़ में शामिल हो गए, एक बेहतरीन भविष्य की कामना में. इतने थके रहने लगे कि एकदूसरे के लिए समय नहीं होता. बस   झुं  झलाहट रहने लगी.

इस बीच नील का मन सीए की पढ़ाई करने का भी करता बीचबीच में. वह बहुत होशियार है. मु  झे कई बार लगता इतनी जल्दी शादी कर के कहीं पछता तो नहीं रहा. वह आगे पढ़ कर बहुत कुछ कर सकता था.

इस बीच नील के पिताजी का देहांत हुआ तो उस के बड़े भाई ने घर बेचने का निर्णय ले लिया. घर खस्ता हालत में था, फिर भाई को पैसे चाहिए थे फ्लैट खरीदने के लिए. वह दूसरे शहर में रहता था. नील की माताजी मेरे कारण हमारे साथ नहीं रहना चाहती थीं. मकान बेच कर जो रकम मिली उस के

3 हिस्से हुए. 2 हिस्से माताजी व भाई साहब के साथ चले गए. अपने हिस्से से हम ने भी फ्लैट बुक करा दिया. हमारी मुसीबतें और बढ़ गईं. जहां रहते थे उस का किराया, फ्लैट की किश्तें, फिर जिंदा रहने के लिए रोटी और कपड़ा भी जरूरी था. अब हमारे बीच खीज भी रहने लगी. ऐसा नहीं था हम हमेशा एकदूसरे से सड़े रहते थे. जब किसी का जन्मदिन या छुट्टी होती तो प्रेम भी खूब लुटाते, लेकिन अकसर एकदूसरे से बचते या चिढ़ कर बात करते.

मजबूरन मु  झे नौकरी भी छोड़नी पड़ी. वहां का माहौल बरदाश्त के बाहर हो गया था. नील को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा. लेकिन मेरी परेशानी सम  झते हुए कुछ बोला नहीं. उन्हीं दिनों हिरेन से फिर मुलाकात हुई. वह सीए कर चुका था और अपने पिता की फर्म में काम करता था. परेशान देख जब उस ने कारण पूछा तो पुराने दोस्त के सामने बाढ़ के पानी की तरह सारा उदगार तीव्रता से उमड़ पड़ा. उस ने तुरंत अपनी फर्म में बहुत अच्छे वेतन के साथ नौकरी का प्रस्ताव दे दिया और मैं ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया. नील को यह बात भी अच्छी नहीं लगी, लेकिन इस बार वह चुप नहीं रहा.   झगड़ा किया और बहुत कुछ बोल गया.

उस समय सम  झ नहीं सकी थी नील के आक्रोश का कारण, लेकिन आज सम  झ गई. उस के स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी. अब हमारे बीच बोलचाल खत्म हो गई थी. मैं कुछ भी बोलने से डरती कि वह बखेड़ा न खड़ा कर दे. वह सामने पड़ते ही मुंह फेर कर इधरउधर हो जाता.

हिरेन के पास दिल्ली के बाहर कई दूसरे शहरों का भी काम था. वह अकसर बाहर जाता रहता था. मु  झे नौकरी करते हुए अधिक समय नहीं हुआ था, फिर भी मेरा नाम लखनऊ जाने वाली टीम में शामिल था.

यों ही अचानक: भाग 3- अकेले पड़ गए मुकुंद की जिंदगी में सारिका को क्या जगह मिली

सुदेश के दोस्त ने उन दोनों को सुदेश के बनारस के उस फ्लैट की चाबी दी जहां सुदेश अकसर यहां आने पर किराए पर रहता था. बात हुई कि दोस्त बाद में इस फ्लैट में आ कर उन्हें सारी बातें बताएगा और बिजनैस के मामले में सारिका को जानकारी देगा. दोनों होटल से अपना सामान ले कर यहां पहुंचे.

2 कमरों का यह फ्लैट सारी सुविधाओं से लैस था. कमरों में सामान अस्तव्यस्त था. दोनों मिल कर उसे समेटते रहे. अचानक दोनों एकदूसरे को देख झेंपने लगे. नशे से ले कर अश्लील वस्तुएं उधरउधर पड़ी मिल रही थीं. वैसे तो सारिका के लिए यह नई बात नहीं थी, मगर पत्नी होने का एहसास सारिका की आंखों से झरने लगा. मुकुंदजी ने उसे आवाज दी. उसे आंसू पोंछते देख वे उस के नजदीक आ गए.

झिझक को परे करते मुकुंदजी ने सारिका का हाथ धीमे से पकड़ लिया. कुछ एहसास यूं साझ हो गए कि सारिका अनजाने ही उन के करीब आ गई. 2 सांसें एकदूसरे की आहट को अपने में जज्ब करते कुछ देर यों ही खड़े रहे, फिर जैसे दोनों को अपनीअपनी शर्म और झिझक की फिक्र हो आई.

डाक्टर साहब परे हटते हुए बोले, ‘‘चलो गीजर औन है, नहा लो, फिर लंच के बाद अस्पताल चलना है न.’’

4 दिन और ऐसे ही अस्पताल तक दौड़ लगाते बीतते रहे. इस दलदल भरे जीवन में आखिर कब तक रुके रहते मुकुंदजी. उधर निलय भी अब पापा के लिए परेशान था. फिर उन के अपने मरीज. उन्हें भी डाक्टर साहब की जरूरत थी.

शाम को मुकुंदजी वापस आए तो सारिका से कहा, ‘‘निलय के बारे में सोच रहा हूं,  मुझे अब जाना होगा, मेरे मरीज भी परेशान हैं, मैं ने सुदेश के दोस्त को अच्छी तरह समझ दिया है. वह तुम्हें पूरी तरह मदद देगा. उस का फोन नंबर तो तुम्हारे पास है, अब सुदेश के सामने दोस्त की मदद से बिजनैस आदि की बातें अच्छी तरह समझ लो. घर से रिश्तेदारों को बुला लेना सही रहेगा.’’

सारिका फफक पड़ी. मुकुंदजी को वास्तविकता का ज्ञान था. उन्होंने बात जारी रखी, ‘‘मेरे रहते रिश्तेदार आएं तो तुम्हारे और मेरे बारे में बातें दूसरी निकल आएंगी. फिर तुम्हें मदद मिलनी मुश्किल होगी. मैं कल सुबह ही ट्रेन से वापस जा रहा हूं. तुम कल घर वालों को और ननदों को फोन कर के बुला लो. बिजनैस या पैसे के मामले में तुम्हें अपना हक समझना होगा. हार नहीं मानोगी, तुम्हें अपने बच्चे के साथ खुशी से जीना है, जिस ने जो किया, उसे वह मिला, यही सच है.’’

सुबह 5 बजे बगल के कमरे का दरवाजा ठेल वापसी को तैयार मुकुंदजी सारिका से मिलने आए. जाने की इत्तला देनी थी.

मद्धम नाइट लैंप की रोशनी में उन्होंने सारिका को देखा. आकर्षण का सुख मुकुंदजी की आंखों में लबालब भर गया. छरहरी परी सी काया बिस्तर पर जैसे मूक आमंत्रण दे रही थी.

किसी अनजाने लोक की रहस्यमयी स्त्री जैसे उन के संयम पर मंदमंद मुसकरा रही थी. वे उसे जानने को आतुर हो गई. भूल गए कि वे किसलिए अभी यहां आए थे, क्या कहना था उन्हें. मुकुंदजी सारिका के करीब आ गए थे. गुलाबी चुन्नी को सरकाया तो फिसल कर बदन से परे हट गई. उस के गोरे चेहरे पर और उस के रसभरे होंठों पर उन की दृष्टि निबद्ध हो गई. ‘एक पिता,’ ‘एक पति,’ ‘एक डाक्टर’ के परिचय में कैद मुकुंदजी आज अचानक अपने पिंजरे का दरवाजा खोलने को बेचैन से दिखे. रुके हुए स्रोत का बांध जैसे आज अचानक किसी ने खोल दिया था. शिला टूट गई थी, चाहत बह निकली थी.

अपने अंदर के एक अनजाने व्यक्ति से रूबरू होते हुए मुकुंदजी ने सारिका  को अपने हृदय में समेट उस के होंठों पर अपना होंठ रख दिया. एक पल को जैसे विश्व का स्पंदन थम गया. सारी ऊहापोह, नीलिमा को खोने का दुख, उस के प्रति अपराध भावना, खुद के गांभीर्य के प्रति सजग भाव सबकुछ खत्म हो गया पल में. सिर्फ 2 प्राण एक मन रह गए थे जैसे. सारिका जग चुकी थी. कुछ देर जगी हुई शांत सी पड़ी रही, फिर धीमे से दोनों हाथों से उन्हें बांध लिया. मुकुंदजी को सारिका के दिल का पता मिल गया था. वे उठ कर खड़े हो गए. कहा, ‘‘जा रहा हूं, मगर तुम्हारे लिए एक ही जगह ठहरा मिलूंगा, हां, अपना कर्तव्य पहले रखना. आज वह बीमार है, उस की दिल से सेवा करना, अगर स्वस्थ हो जाए तो उस का साथ निभाना, मेरी शुभकामनाएं हमेशा साथ रहेंगी तुम्हारे.’’ मुकुंदजी अपना बैग ले कर निकल गए. सारिका बोझिल और असहाय सी उन्हें जाते देखती रही. अब आगे क्या?

साल बीत रहे थे. निलय आज अपनी 10वीं कक्षा की परीक्षा के लिए गया था. अच्छे इलाज, देखरेख और बड़ा हो जाने की वजह से अब पहले से ज्यादा बेहतर था वह. स्कूलवालों की ओर से उसे अच्छी सुविधा दी गई थी और सैंटर से परीक्षा दिलवा कर उसे घर पहुंचाने की जिम्मेदारी स्कूल वालों ने ही ले रखी थी. मुकुंदजी की तबीयत आज कुछ ज्यादा ही खराब थी. बुखार ज्यादा चढ़ा हुआ था. 5 दिनों से वायरल हो रहा था उन्हें. अचानक उन्हें अपने सिरहाने किसी की आहट महसूस हुई. कौन हो सकता है? बेटे के निकलने के बाद आज वे दरवाजा लगाना भूल गए थे. आंखें खोलीं.

3 साल बाद अचानक कैसे. बोले, ‘‘सारिका? ’’ डाक्टर साहब व्याकुल हो उठे.

‘‘तुम कैसे आ पाई? कहां थी अब तक?’’

‘‘मायके में.’’

‘‘आओ, मेरे पास बैठो.’’

‘‘इतना बुखार है आप को?’’

‘‘तुम अपनी कहो सारिका.’’

आप के जाने के बाद महीनाभर मैं वहां रुकी रही. बेटे को मेरे मायके के ही पास स्कूल में भरती करवा दिया गया था. मेरी मां संभालती थी उसे. सभी रिश्तेदारों को खबर की गई थी, ननदें उन के बेटे और मेरे भाई आए थे.’’

‘‘उस के बाद?’’

‘‘बाद में मायके में ही आ गई मैं.’’

‘‘और सुदेश?’’

‘‘महीनेभर में ही वे चल बसे.’’

‘‘उड़ती खबर मैं ने भी सुनी थी, पर महीनेभर में ही?’’

‘‘ननदों ने अपने बेटों के लिए भी बिजनैस से हिस्सा निकाला. मुझे एक करोड़ थमाए, मैं संतुष्ट हूं, ज्यादा हिसाब नहीं मिलाती.’’

‘‘बेटा कहां है?’’

वह मायके में ही है, वहीं रम गया है. इस घर को मैं ने बेच दिया है और इसी शहर में दूसरा घर ले लिया है. आप की मरजी हो तो हम दोनों…’’

डाक्टर साहब ने उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर पूछा, ‘‘आगे कहो.’’

‘‘आप कहें तो…’’

‘‘कहो.’’

सारिका ने सिर झका लिया. ढेरों बातें उस के दिल में छटपटाने लगीं. झिझक की वह बारीक झिल्ली बड़ी मजबूत सी लग रही थी जो तोड़े न टूटती थी.

मुकुंदजी उठ कर बैठ गए, कहा, ‘‘कालोनी वालों की नजरों के सामने तुम इस घर में साथ नहीं रहना चाहती न? ठीक है हम वहीं चले जाएंगे, जहां तुम कहो. पर अच्छी तरह सोचा तुम ने कि हम दोनों के बीच उम्र का फासला… तुम कितना सह पाओगी? और फिर निलय?’’

उन के कंधे पर सारिका ने अपना माथा टिका लिया और शांति से बोलती रही, ‘‘नीलिमा दीदी की अब पूरी जिम्मेदारी मेरी, निलय अगर मुझे अपना ले और आप ने उम्र की बात छेड़ी ही क्यों? मैं ने बताया नहीं आप को कि मैं इतना हिसाबकिताब नहीं देखती.’’

मुकुंदजी मुसकरा पड़े.

‘‘हां, अब वही बातूनी सारिका मुझे वापस मिल गई है. निलय की फिक्र न करो. जरा सा प्यार मिला नहीं कि पिघला.’’

फिर तो छोटे से कमरे में बड़ेबड़े सतरंगी सपनों के हजारों फूल खिलते रहे. सारिका बोलती रही. डाक्टर मुकुंद प्रधान

इस चपलाचंचला को मंत्रमुग्ध से सुनते रहे.

यों ही अचानक: भाग 2- अकेले पड़ गए मुकुंद की जिंदगी में सारिका को क्या जगह मिली

अच्छी कदकाठी और तीखे नैननक्श वाली सारिका उन के इतना नजदीक आ  खड़ी हुई तो वे घबरा गए. स्वभाव से अंतर्मुखी और अपनेआप में सिमटे हुए से डाक्टर साहब, ‘‘नहीं… नहीं… बिलकुल भी नहीं, मैं अभी जल्दी में हूं,’’ आदि कह कर उसे जाने का विचलित सा संदेश देते रहे.

मगर सारिका ने कहा, ‘‘मैं अकेला रहना बिलकुल पसंद नहीं करती. मगर क्या बताऊं हमेशा अब अकेले रहना होगा. क्या हुआ जो अगर हम आपस में कभी थोड़ी बात कर लिया करें?’’

‘‘कर लेंगे पर आज मुझे देर हो रही है,’’ मुकुंदजी अब भी टका सा जवाब दे कर हटने के प्रयास में थे.

‘‘आप को देर नहीं होगी, आप बस तैयार हो कर मेरे घर आ जाइए… अपना टिफिन मुझे दे दीजिए… इस में मैं ‘न’ नहीं सुनूंगी.’’

डाक्टर साहब ने आखिर हार मानी और मुसकरा कर बोल पड़े, ‘‘बड़ी जिद्दी हो.’’

‘‘लाइए पहले टिफिन दीजिए,’’ और इस तरह सारिका को दीवारों से बेहतर सुनने वाला मिल गया था.

‘‘आज बाजार में दुकानदार ने मुझे ढंग लिया, आज स्कूल में टीचर को खूब खरीखरी सुना आई. मेरा पति तो इधर पटक कर मुझे भूल ही गया, आप ही बताएं क्या मैं अकेले उम्र बिताने को ब्याही गई?’’

डाक्टर साहब अपने बेटे को शाम को पढ़ा रहे होते या फिर उस की पढ़ाई के वक्त पास बैठते, सारिका इन दिनों अपने बच्चे को उस की पढ़ाई के लिए मुकुंदजी के घर ले आती. दोनों बच्चे पढ़ते और वे दोनों थोड़ी दूरी पर बैठे होते. मुकुंदजी तो कई तरह की किताबें और अखबार पढ़ते और सारिका ताबड़तोड़ अपने दिल की बात मुकुंदजी को बताती. उम्र का फासला सारिका में जरा भी झिझक पैदा नहीं कर पाता.

मुकुंदजी अब सारिका की बातों के आदी हो रहे थे. उन की झिझक कुछ कम हो रही थी. अब संग वे थोड़ा हंसते, थोड़ा मजाक भी कर लेते जैसेकि नहीं, उम्र बिताने की अब फिक्र कहां. अब तो सिलसिला चल ही पड़ा है.

सारिका भौचक उन की ओर ताकती, फिर कहती, ‘‘मैं चलती हूं. आप के बेटे को पढ़ने में दिक्कत हो रही होगी, मेरी बातों की वजह से.’’

डाक्टर साहब कहते, ‘‘चलो दूसरे कमरे में बैठें.’’

सारिका अवाक होती. पहले तो मुकुंदजी भगाने की फिराक में रहते, अब क्या? मुकुंदजी वाकई उसे ले कर अपने बैडरूम में आते. उसे बिस्तर पर बैठने का इशारा कर के खुद बगल में रखे चेयर पर बैठ जाते.

सारिका को फिर से इतिहास के खंडहरों से ले कर भविष्य के टाइम मशीन में सवार यों ही बोलतेबतियाते छोड़ देते.

सात 17 बोलते वह जब कभी मुकुंदजी से कोईर् जवाब मांगती तो वे भौचक से उस की ओर ताकते.

कई दिनों से मुकुंदजी को ले कर सारिका के दिल में एक  कचोट पैदा हो रही थी. एक दिन वह इस तरह विफर पड़ी कि डाक्टर साहब अवाक उसे देखते रह गए.

‘‘फिर क्या फर्क रह गया आप में और सुदेश में? मैं तो अपने घर में बैठी अकेली इसी तरह बकबक कर सकती हूं. सुदेश जब भी घर आते पैसा पकड़ाने और देह की भूख मिटाने के सिवा मुझ से कोई वास्ता न रखते और आजकल तो वह रस्म भी जाने कैसे खत्म हो गई. मैं हूं या नहीं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ठीक इसी तरह जैसे आप…’’

डाक्टर साहब शर्म से सिहर उठे. अवाक हो पहले तो सारिका को देखते रहे, फिर शर्म से गड़ने लगे.

अनर्गल बोलती सी सारिका अचानक ठिठक गई. महीना भर ही तो  हुआ है डाक्टर साहब से घुलतेमिलते, जाने क्याक्या वह बोल जाती है. उसे बहुत बुरा लग रहा था, वह चुप हो गई. डाक्टर साहब ऐसे ही शरमीले, इन बातों से वे शर्म से गड़ कर अखबार में ही धंस गए. उन दोनों की चुप्पी अब न जाने क्याक्या बोल उठी. डाक्टर साहब भी सुन रहे थे और सारिका भी. सारिका धीरे से उठी, नींद से बोझिल अपने बेटे को स्कूल बैग के साथ लिया और घर चली गई. 2 दिन वह नहीं आई. डाक्टर साहब ने भी कोई खबर नहीं ली.

चौथे दिन सारिका शाम 7 बजे उन के घर आई. कुछ ज्यादा ही अस्तव्यस्त, आंखें रोरो कर सूजी हुईं.

सारिका आते ही बोली, ‘‘कोई खोजखबर नहीं… मैं मुसीबत में पड़ूं तो क्या करूं. घर वाले इतनी दूर.’’

नर्मदिल डाक्टर साहब चिंतित से बोल पड़े, ‘‘क्यों क्या हुआ?’’

‘‘सुदेश बनारस गए हुए हैं, वहीं अचानक उन की तबीयत बहुत बिगड़ी… वे अस्पताल में हैं.’’

‘‘अरे क्या हुआ अचानक?’’

‘‘शायद लिवर में तकलीफ थी और अब तो बताया गया… और सारिका ने आंखें झका लीं, फिर तुरंत आगे कहने को उतावली सी डाक्टर साहब की ओर अपनी नजरें टिका दीं.

डाक्टर साहब ने उसे प्रेरित किया, ‘‘हां कहो और क्या बताया गया?’’

‘‘सैक्सट्रांसमिटेड डिजीज.’’

सारिका के कहते ही डाक्टर साहब की नजरें झक गईं. उन्हें सारिका पर बड़ा तरस आया कि बाकई दुखी स्त्री है.

डाक्टर साहब के साथ तो नीलिमा का प्यार और भरोसा हमेशा कायम है, लेकिन यह तो पति के रहते भी आज बहुत गरीब है.

डाक्टर साहब ने उसे अंदर ले जा कर कमरे में बैठाया. पूछा, ‘‘बनारस जाओगी?’’

‘‘मैं जाना चाहती हूं, मेरी जिंदगी यों मंझधार में…’’

सारिका को आंसू पोंछते देख डाक्टर साहब खुद को रोक नहीं पाए और आगे बढ़ उस के कंधे पर हाथ रखा. कहा, ‘‘ मैं ले जाऊंगा बनारस तुम्हें. अपने बेटे निलय को उस की बूआ के घर छोड़ दूंगा. तुम अंकित को…’’

सारिका उत्साहित सी बोल पड़ी, ‘‘मायके से कोई आ कर ले जाएगा, कहा था उन्होंने, अगर मैं बनारस जाऊं तो…’’

3 दिन बाद वे बनारस के एक होटल में थे. दोनों ने अगलबगल 2 कमरे लिए थे. तय हुआ दूसरे दिन वे अस्पताल सुदेश को देखने चलेंगे.

रात वे दोनों अपनेअपने कमरे में रहे. सुबह सारिका की  नींद खुली तो उसे बड़ी घबराहट हुई. वह तैयार हो कर मुकुंदजी के कमरे के दरवाजे पर गई. आवाज दी, सन्नाटे के सिवा कुछ भी हासिल नहीं हुआ उसे. फोन लगाया उस ने मुकुंदजी को. पता चला वे अलसुबह ही बनारस के घाट चले गए हैं.

सारिका उन्हें वहां अपने आने की इत्तला दे कर जल्दी बनारस घाट पहुंची. दूर से ही एकाकी कोने में बैठे मुकुंदजी सारिका को दिख गए. उगते सूरज को एकटक देख रहे थे वे.

सारिका कुछ देर उन के सामने खड़ी रही, फिर खुद ही बोल पड़ी, ‘‘आप मुझे छोड़ कर क्यों चल आए? अनजाने शहर में मेरी फिक्र नहीं की?’’

मुकुंदजी ने शांत भाव से सारिका को देखा और बोले, ‘‘फिक्र करता हूं तभी तो अनुमति लेने आया था.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘आगे की जिंदगी में न जाने कहां तक तुम्हारी फिक्र करनी पड़े, नीलिमा से कहे बिना कैसे तुम्हारा साथ दूं? मेरा मन कचोट रहा था, आज नीलिमा से अकेले में अपने मन की ऊहापोह…’’

एक बच्चे सी जिज्ञासा लिए सारिका पूछ बैठी, ‘‘नीलिमा दीदी से अनुमति मिल गई न?’’

डाक्टर साहब सिर झकाए बैठे रहे. क्या सारिका के प्रति वे दुर्बल हो रहे हैं? क्या उन के मन में सारिका को ले कर मोह और आकर्षण पैदा हो गया है?

और सारिका? क्या वह सिर्फ अपने हालात से जूझ रही या छोटी सी दूब उस की भी अनुभूतियों और कामनाओं की जमीन पर उग आईर् है? मुकुंदजी सारी असमंजस को एकतरफ ढकेल उठ खड़े हुए, ‘‘चलो तुम्हें अस्पताल चलना है न?’’ सारिका भी बिन कुछ कहे उठ खड़ी हुई. एक संतोष था कि शायद मुकुंदजी उस की परेशानी में साथ निभाएंगे.

सुदेश लंबा, स्मार्ट, गोराचिट्टा युवक जिसे अपने पैसे, औकात और व्यक्तित्व पर बड़ा घमंड था, जो किसी की सुनना अपनी तौहीन समझता था. अपने ऊंचे कांटेक्ट के बल पर वक्त को मुट्ठी में बांध सकता है, वह सोचता.

सुदेश जिस की पहली बीवी ने दुख झेला, बिन सहे चली गई, मगर दुख ले कर. दूसरी बीवी सहने की हद से गुजर गई तड़पती हुई. अनजाने ही दोनों की आहें लग गईं थी उसे. उस की बिंदास लापरवाह जिंदगी जीने के अंदाज ने उसे इस मरणखाट पर ला पटका था.

सुदेश से मिलने के बाद नर्स उन्हें अपने चैंबर में ले गईं. बोली, ‘‘मैं ने सुदेशजी से आप का फोन नंबर ले कर आप को फोन किया था. इन के दोस्त का नंबर मेरे पास है, वही इन का सबकुछ देख रहे हैं. कुछ देर में वे आ जाएंगे, इन के बिजनैस पार्टनर भी हैं. आप लोग उन से सारी बातें कर लें. सुदेशजी का लिवर सत्तर फीसदी खराब हो चुका है. साथ ही ट्रांसमिटेड डिजीज भी बहुत बढ़ा हुआ है, इन्फैक्शन अंदर तक फैल चुका है.’’

इस पूरे हालात में सारिका बहुत कमजोर सी पा रही थी खुद को. मुकुंदजी साथ न होते तो क्या होता… रहरह उस के दिमाग में यही खयाल आते.

प्रेम की इबारत

रात के अंधियारे में पूरा मांडवगढ़ अब कितना खामोश रहता है, यहां की हर चीज में एक भयानकता झलकती है. धीरेधीरे खंडहरों में तबदील होते महल को देख कर इतना तो लगता है कि ये कभी अपार वैभव और सुविधाओं की अद्भुत चमक से रोशन रहते होंगे. कभी गूंजती होंगी यहां रहने वाले सैनिकों की तलवारों की खनक, घोड़ों के टापों की आवाजें, हाथियों की चिंघाड़, जिस की गवाह हैं ये पहाडि़यां, ये दीवारें उस शौर्यगाथा की, जो यहां के चप्पेचप्पे पर बिखरी पड़ी हैं.

यहां बने महल का हर कोना, जिस ने देखे होंगे वह नजारे, युद्ध, संगीत और गायन जिस की स्वर लहरियां बिखरी होेंगी यहां की फिजा में. काश, ये खामोश गवाह बोल सकते तो न जाने कितने भेद खोल देते और खोल देते हर वह राज, जो दफन हैं इन की दीवारों में, इन के दिलों में, इन के फर्श में, मेहराबों में, झरोखों में, सीढि़यों में और यहां के ऊंचेऊंचे गुंबदों में.’’

‘‘चुप क्यों हो गए दोस्त, मैं तो सुन रहा था. तुम ही खामोश हो गए दास्तां कहतेकहते,’’ रानी रूपमती के महल के एक झरोखे ने दूसरे झरोखे से कहा.

‘‘नहीं कह पाऊंगा दोस्त,’’ पहला वाला झरोखा बोलतेबोलते खामोश हो चुका था. किंतु महल की दीवारों ने भी तन्मयता से उन की बातें सुनी थीं. आखिरकार जब नहीं रहा गया तो एक दीवार बोल ही पड़ी :

‘‘दिन भर यहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है. देशीविदेशी इनसानों ने हमारी छाती पर अपने कदमों के जाने कितने निशान बनाए होंगे. अनगिनत लोगों ने यहां की गाथाएं सुनी हैं, विश्व में प्रसिद्ध है यह स्थान.

‘‘मांडवगढ़ के सुल्तानों का इतिहास, उन की वीरता, शौर्य और ऐश्वर्य के तमाम किस्सों ने, जो लेखक लिख गए हैं, यहां के इतिहास को अमर कर दिया है. समूचे मांडव में बिखरा पड़ा है प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य. नीलकंठ का रमणीक स्थान हो या हिंडोला महल की शान, चाहे जामा मसजिद की आन हो, हर दीवार, गुंबद अपने में समेटे हुए है एक ऐसा रहस्य, जहां तक बडे़बडे़ इतिहासकार भी कहां पहुंच पाए हैं.’’

‘‘हां, तुम सच कहती हो, ये कहां पहुंचे?’’ दूसरी दीवार बोली, ‘‘यह तो हम जानते हैं, मांडव का हर वह किला, उस की हर मेहराब, हर सीढ़ी, हर दीवार जो आज चुप है…जानती हो बहन, वह बेबस है. काश, कुदरत ने हमें भी जबां दी होती तो हम बोल पड़ते और वह सब बदल जाता, जो यहां के बारे में दोहराया जाता रहा है, बताया जाता रहा है, कहा जाता रहा है.

‘‘हम ने बादशाह अकबर की यात्रा देखी है. कुल 4 बार अकबर ने मांडवगढ़ के सौंदर्य का आनंद उठाया था. हम ने अपनी आंखों से देखा है उस अकबर महान की छवि को, जो आज भी हमारी आंखों में बसी हुई है. हम ने सुल्तान जहांगीर की वह शानोशौकत भी देखी है जिस का आनंद उठाया था, यहां की हवाओं ने, पत्तों ने, इस चांदनी ने.’’

पहली दीवार की तरफ से कोई संकेत न आते देख दूसरी दीवार ने पूछा, ‘‘सुनो, बहन, क्या तुम सो गईं?’’

‘‘नहीं बहन, कहां नींद आती है,’’ पहली दीवार ने एक ठंडी आह भर कर कहा.

‘‘देखो तो, रात की खामोशी में हवाएं उन मेहराबों को, झरोखों को चूमने के लिए कितनी बेताब हो जाती हैं, जहां कभी रानी रूपमती ने अपने सुंदर और कोमल हाथों से स्पर्श किया था,’’ पहली दीवार बोली, ‘‘ताड़ के दरख्तों को सहलाती हुई आती ये हवाएं धीरेधीरे सीढि़यों पर कदम रख कर महल के ऊपरी हिस्से में चली जाती हैं, जहां से संगीत की पुजारिन और सौंदर्य की मलिका रानी रूपमती कभी सवेरेसवेरे नर्मदा के दर्शन के बाद ही अपनी दिनचर्या शुरू करती थीं.’’

‘‘हां बहन, मैं ने भी देखा है,’’ दूसरी दीवार बोली, ‘‘इस हवा के पागलपन को महसूस किया है. यह रात में भी कभीकभी यहीं घूमती है. सवेरे जब सूरज की किरणों की लालिमा पहाडि़यों पर बिखरने लगती है तो यह छत पर उसी स्थान पर अपनी मंदमंद खुशबू बिखेरती है, जहां कभीकभी रूपमती जा कर खड़ी हो जाती थीं. कैसी दीवानगी है इस हवा की जो हर उस स्थान को चूमती है जहांजहां रूपमती के कदम पडे़ थे.’’

पहली दीवार कहां खामोश रहने वाली थी. झट बोली, ‘‘हां, इन सीढि़यों पर रानी की पायलों की झंकार आज भी मैं महसूस करती हूं. मुझे लगता है कि पायलों की रुनझुन सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर आ रही है.’’

दीवारों की बातें सुन कर अब तक खामोश झरोखा बोल पड़ा, ‘‘आप दोनों ठीक कह रही हैं. वह अनोखा संगीत और रागों का मिलन मैं ने भी देखा है. क्या उसे कलम के ये मतवाले देख पाएंगे? नहीं…बिलकुल नहीं.

‘‘पहाडि़यों से उतरती हुई संगीत की वह मधुर तान, बाजबहादुर के होने का आज भी मुझे एहसास करा देती है कि बाजबहादुर का संगीत प्रेम यहां के चप्पेचप्पे पर बिखरा हुआ है.’’

उपरोक्त बातचीत के 2 दिन बाद :

रात की कालिमा फिर धीरेधीरे गहराने लगी. ताड़ के पेड़ों को वही पागल हवाएं सहलाने लगीं. झरोखों से गुजर कर रूपमती के महल में अपने अंदाज दिखाने लगीं.

झरोखों से रात की यह खामोशी सहन नहीं हो रही थी. आखिरकार दीवारों की ओर देख कर एक झरोखा बोला, ‘‘बहन, चुप क्यों हो. आज भी कुछ कहो न.’’

दीवारों की तरफ से कोई हलचल न होते देख झरोखे अधीर हो गए फिर दूसरा बोला, ‘‘बहन, मुझ से तुम्हारी यह चुप्पी सहन नहीं हो रही है. बोलो न.’’

तभी झरोखों के कानों में धीमे से हवा की सरगोशियां पड़ीं तो झरोखों को लगा कि वह भी बेचैन थीं.

‘‘तुम दोनों आज सो गई हो क्या?’’ हवा ने पूरे वेग से अपने आने का एहसास दीवारों को कराया.

‘‘नहीं, नहीं,’’ दीवारें बोलीं.

‘‘देखो, आज अंधेरा कुछ कम है. शायद पूर्णिमा है. चांद कितना सुंदर है,’’ हवा फिर अपनी दीवानगी पर उतरी.

‘‘मैं आज फिर नीलकंठ गई तो वहां मुझे फूलों की खुशबू अधिक महसूस हुई. मैं ने फूलों को देखा और उन के पराग को स्पर्श भी किया. साथ में उन की कोमल पंखडि़यों और पत्तियों को भी….’’

‘‘क्या कहा तुम ने, जरा फिर से तो कहो,’’ एक दीवार की खामोशी भंग हुई.

हवा आश्चर्य से बोली, ‘‘मैं ने तो यही कहा कि फूलों की पंखडि़यों को…’’

‘‘अरे, नहीं, उस से पहले कहा कुछ?’’ दीवार ने फिर प्रश्न दोहराया.

‘‘मैं ने कहा फूलों के पराग को… पर क्या हुआ, कुछ गलत कहा?’’ हवा के चेहरे पर अपराधबोध झलक रहा था. मानो वह कुछ गलत कह गई हो. वह थम सी गई.

‘‘अरे, तुम को थम जाने की जरूरत नहीं… तुम बहो न,’’ दीवार ने उस की शंका दूर की.

हवा फिर अपनी गति में लौटने लगी.

‘‘वह जो लंबा लड़का आता है न और उस के साथ वह सांवली सी सुंदर लड़की होती है…’’

‘‘हां…हां… होती है,’’ झरोखा बोल पड़ा.

‘‘उस लड़के का नाम पराग है और आज ही उस लड़की ने उसे इस नाम से पुकारा था,’’ दीवार का बारीक मधुर स्वर उभरा.

‘‘अच्छा, इस में आश्चर्य की क्या बात है? हजारों लोग  मांडव की शान देखने आतेजाते हैं,’’ हवा ने चंचलता बिखेरी.

‘‘किस की बात हो रही है,’’ चांदनी भी आ कर अब अपनी शीतल किरणों को बिखेरने लगी थी.

‘‘वह लड़का, जो कभीकभी छत पर आ कर संगीत का रियाज करता है और वह सांवलीसलोनी लड़की उसे प्यार भरी नजरों से निहारती रहती है,’’ दीवार ने अपनी बात आगे बढ़ाई.

‘‘अरे, हां, उसे तो मैं भी देखती हूं जो घंटों रियाज में डूबा रहता है,’’ हवा ने मधुर शब्दों में कहा, ‘‘और लड़की बावली सी उसे देखती है. लड़का बेसुध हो जाता है रियाज करतेकरते, फिर भी उस की लंबीलंबी उंगलियां थकती नहीं… सितार की मधुर ध्वनि पहाडि़यों में गूंजती रहती है .’’

‘‘उस लड़की का क्या नाम है?’’ झरोखा, जो खामोश था, बोला.

‘‘नहीं पता, देखना कहीं मेरे दामन पर उस लड़की का तो नाम नहीं,’’ दीवार ने झरोखे से कहा.

‘‘नहीं, तुम्हारे दामन में पराग नाम कहीं भी उकेरा हुआ नहीं है,’’ एक झरोखा अपनी नजरों को दीवार पर डालते हुए बोला.

‘‘हां, यहां आने वाले प्रेमी जोड़ों की यह सब से गंदी आदत है कि मेरे ऊपर खुरचखुरच कर अपना नाम लिख जाते हैं, जिन की खुद की कोई पहचान नहीं. भला यों ही दीवारों पर नाम लिख देने से कोई अमर हुआ है क्या?’’ दीवार का स्वर दर्द भरा था.

‘‘कहती तो तुम सच हो,’’ शीतल चांदनी बोली, ‘‘मांडव की लगभग हर किले की दीवारों का यही हाल है.’’

‘‘हां, बहन, तुम सच कह रही हो,’’ नर्मदा की पवित्रता बोली, जो अब तक खामोशी से उन की यह बातचीत सुन रही थी.

‘‘तुम,’’ झरोखा, दीवार, हवा और शीतल चांदनी के अधरों से एकसाथ निकला.

‘‘हर जगह नाम लिखे हैं, ‘सविता- राजेश’, ‘नैना-सुनीला’, ‘रमेश, नीता को नहीं भूलेगा’, ‘रीतू, दीपक की है’, ‘हम दोनों साथ मरेंगे’, ‘हमारा प्रेम अमर है’, ‘हम दोनों एकदूसरे के लिए बने हैं.’ यही सब लिखते हैं ये प्रेमी जोडे़,’’ नर्मदा की पवित्रता ने कहा.

‘‘बडे़ कठोर प्रेमी हैं ये लोग, जिस बेदर्दी से दीवारों पर लिखते हैं, इस से क्या इन का प्रेम अमर हो गया?’’ दीवार के स्वर में अब गुस्सा था.

‘‘ये क्या जानें प्रेम के बारे में?’’ झरोखे ने कहा, ‘‘प्रेम था रानी रूपमती का. गायन व संगीत मिलन, सबकुछ अलौकिक…’’

नर्मदा की पवित्रता की मुसकान उभरी, ‘‘मेरे दर्शनों के बाद रूपमती अपना काम शुरू करती थीं, संगीत की पूजा करती थीं.’’

बिलकुल, या फिर प्रेम का बावलापन देखा है तो मैं ने उस लड़की की काली आंखों में, उस के मुसकराते हुए होंठों में’’, हवा बोली, ‘‘मैं ने कई बार उस के चंदन से शीतल, सांवले शरीर का स्पर्श किया है. मेरे स्पर्श से वह उसी तरह सिहर उठती है जिस तरह पराग के छूने से.’’

चांदनी की किरणों में हलचल होती देख कर हवा ने पूछा, ‘‘कुछ कहोगी?’’

‘‘नहीं, मैं सिर्फ महसूस कर रही हूं उस लड़की व पराग के प्रेम को,’’ किरणों ने कहा.

‘‘मैं ने छेड़ा है पराग के कत्थई रेशमी बालों को,’’ हवा ने कहा, ‘‘उस के कत्थई बालों में मैने मदहोश करने वाली खुशबू भी महसूस की है. कितनी खुशनसीब है वह लड़की, जिसे पराग स्पर्श करता है, उस से बातें करता है धीमेधीमे कही गई उस की बातों को मैं ने सुना है…देखती रहती हूं घंटों तक उन का मिलन. कभी छेड़ने का मन हुआ तो अपनी गति को बढ़ा कर उन दोनों को परेशान कर देती हूं.’’

‘‘सितार के उस के रियाज को मैं भी सुनता रहता हूं. कभी घंटों तक वह खोया रहेगा रियाज में, तो कभी डूबने लगेगा उस लड़की की काली आंखों के जाल में,’’ झरोखा चुप कब रहने वाला था, बोल पड़ा.

ताड़ के पेड़ों की हिलती परछाइयों से इन की बातचीत को विराम मिला. एक पल के लिए वे खामोश हुए फिर शुरू हो गए, लेकिन अब सोया हुआ जीवन धीरे से जागने लगा था. पक्षियों ने अंगड़ाई लेने की तैयारी शुरू कर दी थी.

दीवार, झरोखा, पर्यटकों के कदमों की आहटों को सुन कर खामोश हो चले थे.

दिन का उजाला अब रात के सूनेपन की ओर बढ़ रहा था. दीवार, झरोखा, हवा, किरण आदि वह सब सुनने को उत्सुक थे, जो नर्मदा की पवित्रता उन से कहने वाली थी पर उस रात कह नहीं पाई थी. वे इंतजार कर रहे थे कि कहीं से एक अलग तरह की खुशबू उन्हें आती लगी. सभी समझ गए कि नर्मदा की पवित्रता आ गई है. कुछ पल में ही नर्मदा की पवित्रता अपने धवल वेश में मौजूद थी. उस के आने भर से ही एक आभा सी चारों तरफ बिखर गई.

‘‘मेरा आप सब इंतजार कर रहे थे न,’’ पवित्रता की उज्ज्वल मुसकान उभरी.

‘‘हां, बिलकुल सही कहा तुम ने,’’ दीवार की मधुर आवाज गूंजी.

उन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए पवित्रता ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘क्या तुम सब को नहीं लगता कि महल के इस हिस्से में अभी कहीं से पायल की आवाज गूंज उठेगी, कहीं से कोई धीमे स्वर में राग बसंत गा उठेगा. कहीं से तबले की थाप की आवाज सुनाई दे जाएगी.’’

‘‘हां, लगता है,’’ हवा ने अपनी गति को धीमा कर कहा.

‘‘यहां, इसी महल में गूंजती थी रानी रूपमती की पायलों की आवाज, उस के घुंघरुओं की मधुर ध्वनि, उस की चूडि़यों की खनक, उस के कपड़ों की सरसराहट,’’ नर्मदा की पवित्रता के शब्दों ने जैसे सब को बांध लिया.

‘‘महल के हर कोने में बसती थी वीणा की झंकार, उस के साथ कोकिलकंठी  रानी के गायन की सम्मोहित कर देने वाली स्वर लहरियां… जब कभी बाजबहादुर और रानी रूपमती के गायन और संगीत का समय होता था तो वह पल वाकई अद्भुत होते थे. ऐसा लगता था कि प्रकृति स्वयं इस मिलन को देखने के लिए थम सी गई हो.

‘‘रूपमती की आंखों की निर्मलता और उस के चेहरे का वह भोलापन कम ही देखने को मिलता है. बाजबहादुर के प्रेम का वह सुरूर, जिस में रानी अंतर तक भीगी हुई थी, बिरलों को ही नसीब होता है ऐसा प्रेम…’’

‘‘उन की छेड़छाड़, उन का मिलन, संगीत के स्वरों में उन का खो जाना, वाकई एक अनुभूति थी और मैं ने उसे महसूस किया था.

‘‘मुझे आज भी ऐसा लगता है कि झील में कोई छाया दिख जाएगी और एहसास दिला जाएगी अपने होने का कि प्रेम कभी मरता नहीं. रूप बदल लेता है समय के साथ…’’

‘‘हां, बिलकुल यही सब देखा है मैं ने पराग के मतवाले प्रेम में, उस की रियाज करती उंगलियों में, उस के तराशे हुए अधरों में,’’ झरोखे ने चुप्पी तोड़ी.

‘‘गूंजती है जब सितार की आवाज तो मांडव की हवाओं में तैरने लगते हैं उस सांवली लड़की के प्रेम स्वर, वह देखती रहती है अपलक उस मासूम और भोले चेहरे को, जो डूबा रहता है अपने सितार के रियाज में,’’ दीवार की मधुर आवाज गूंजी.

‘‘कितना सुंदर लगता था बाजबहादुर, जब वह वीणा ले कर हाथों में बैठता था और रानी रूपमती उसे निहारती थी. कितना अलौकिक दृश्य होता था,’’ नर्मदा की पवित्रता ने बात आगे बढ़ाई.

इस महान प्रेमी को युद्ध और उस के नगाड़ों, तलवारों की आवाजों से कोई मतलब नहीं था, मतलब था तो प्रेम से, संगीत से. बाज बहादुर ने युद्ध कौशल में जरा भी रुचि नहीं ली, खोया रहा वह रानी रूपमती के प्रेम की निर्मल छांह में, वीणा की झंकार में, संगीत के सातों सुरों में.

‘‘ऐसे कलाकार और महान प्रेमी से आदम खान ने मांडव बड़ी आसानी से जीत लिया, फिर शुरू हुई आदम खान की बर्बरता इन 2 महान प्रेमियों के प्रति…’’

‘‘कितने कठोर होंगे वे दिल जिन्होंने इन 2 संगीत प्रेमियों को भी नहीं छोड़ा,’’ हवा ने अपनी गति को बिलकुल रोक लिया.

‘‘हां, वह समय कितना भारी गुजरा होगा रानी पर, बाज बहादुर पर. कितनी पीड़ा हुई होगी रानी को,’’ नर्मदा की पवित्रता बोली, ‘‘रानी इसी महल के कक्ष में फूटफूट कर रोई थीं.’’

‘‘आदम खान रानी के प्रस्ताव से सहमत नहीं हुआ. रानी का कहना था कि वह एक राजपूत हिंदू कन्या है. उस की इज्जत बख्शी जाए…आदम खान ने मांडव जीता पर नहीं जीत पाया रानी के हृदय को, जिस में बसा था संगीत के सुरों का मेल और बाज बहादुर का पे्रम.

‘‘जब आदम खान नियत समय पर रानी से मिलने गया तो उस ने रूपमती को मृत पाया. रानी ने जहर खा कर अमर कर दिया अपने को, अपने प्रेम को, अपने संगीत को.’’

‘‘हां, केवल शरीर ही तो नष्ट होता है, पर प्रेम कभी मरा है क्या?’’ झरोखा अपनी धीमी आवाज में बोला.

तभी दीवार की धीमी आवाज ने वहां छाने लगी खामोशी को भंग किया, ‘‘हर जगह मुझे महसूस होती है रानी की मौजूदगी, कितना कठोर होता है यह समय, जो गुजरता रहता है अपनी रफ्तार से.’’

‘‘पराग, वह लंबा लड़का, जो रियाज करने आता है और उस के साथ आती है वह सुंदर आंखों वाली लड़की. मैं ने उस की बोलती आंखों के भीतर एक मूक दर्द को देखा है. वह कहती कुछ नहीं, न ही उस लड़के से कुछ मांगती है. बस, अपने प्रेम को फलते हुए देखना चाहती है,’’ झरोखा बोला.

‘‘हां, बिलकुल सही कह रहे हो. प्रेम की तड़प और इंतजार की कसक जो उस के अंदर समाई है वह मैं ने महसूस की है,’’ हवा ने अपने पंख फैलाए और अपनी गति को बढ़ाते हुए कहा, ‘‘उस के घंटों रियाज में डूबे रहने पर भी लड़की के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती. वह अपलक उसे निहारती है. मैं जब भी पराग के कोमल बालों को बिखेर देती हूं, वह अपनी पतलीपतली उंगलियों से उन को संवार कर उस के रियाज को निरंतर चलने देती है.’’

‘‘सच, कितनी सुंदर जोड़ी है. मेरे दामन में कभी इस जोड़ी ने बेदर्दी से अपना नाम नहीं खुरचा. अपनी उदासियों को ले कर जब कभी वह पराग के विशाल सीने में खो जाती है तो दिलासा देता है पराग उस बच्ची सी मासूम सांवली लड़की को कि ऐसे उदास नहीं होते प्रीत…’’ दीवार ने कहा.

‘‘यों ही प्रेम अमर होता है, एक अनोखे और अनजाने आकर्षण से बंधा हुआ अलौकिक प्रेम खामोशी से सफर तय करता है,’’ झरोखा बोला.

हवा ने अपनी गति अधिक तेज की. बोली, ‘‘मैं उसे देखने फिर आऊंगी, समझाऊंगी कि ऐ सुंदर लड़की, उदास मत हो, प्रेम इसी को कहते हैं.’’

खामोशी का साम्राज्य अब थोड़ा मंद पड़ने लगा था, सुबह की किरणों ने दस्तक देनी शुरू जो कर दी थी

यों ही अचानक: भाग 1- अकेले पड़ गए मुकुंद की जिंदगी में सारिका को क्या जगह मिली

होता,बहुत कुछ यों ही होता है अचानक, वरना 46 साल के सीधे से बिलकुल चुपचुप रहने वाले मुकुंद प्रधान की एक प्रेम कहानी नहीं बनती और वह भी पत्नी की मृत्यु के बाद.

मुकुंद प्रधान तो ऐसे व्यक्ति हुए कि वे सरेआम किसी लड़की को चूम भी रहे हों तो लोग अपनी आंखों को गालियां देते निकल जाएंगे, लेकिन अपनी आंखों पर भरोसा कभी न करेंगे.

बच्चों के डाक्टर उम्र तो बता ही दी, कदकाठी मध्यम. देखनेभालने की बात निकल ही आती है जब प्रेम प्रसंग की बात छिड़े. तो अपने मुकुंद प्रधान यद्यपि देखने में उतने बुरे भी नहीं थे, फिर भी कमसिन स्त्रियों की नजर उन पर कम ही पड़ती. गेहुंए वर्ण का एक सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति, मूंछें नदारद और आंखें. शायद जबान का काम करती.

बच्चों के मैडिसिन के डाक्टर थे. आए दिन गरीब बच्चों का मुफ्त इलाज करते. रविवार अपने बेटे के साथ समय बिताते. नीलिमा यद्यपि डाक्टर साहब की आगे की जिंदगी में भले ही न हों, मगर उन्हें भुलाया भी नहीं जा सकता.

नीलिमाजी डाक्टर साहब की सिर्फ अर्द्धांगिनी ही नहीं थीं, बल्कि वे डाक्टर साहब के साथसाथ पूरी कालोनी की आंखों का तारा भी थीं. गांव की सरल सी स्त्री, सीधीसादी, सूरत भोली सी. महल्ले भर में किसी को कोई तकलीफ हो नीलिमा दौड़ी जातीं. डाक्टर साहब की तो हर वक्त सेवा में मुस्तैद.

हां डाक्टर साहब और उन की पत्नी के दिल में तब चुभन सी हो जाती जब उन के इकलौते बेटे निलय की बात छिड़ जाती. 12 साल का यह बच्चा सैरेब्रल पैलेसी का शिकार था. कमर से लाचार था निलय और चलनेफिरने में उसे बहुत तकलीफ थी. नीलिमाजी इस बच्चे के उपचार के लिए आए दिन बड़ेबड़े डाक्टरों और विशेषज्ञों के चक्कर लगातीं, घर पर भी ज्यादा वक्त उसे व्यायाम करवाती रहतीं.

दूसरे शहर से खबर आई थी कि नीलिमाजी के ननदोई की तबीयत ज्यादा खराब है  और उन्हें अस्पताल में भरती करवाया गया है. नादान और सारी स्थितियों को संभालने में अक्षम. नीलिमा दौड़ी गईं ननद के पास. 3 दिन बाद वहां स्थिति कुछ सही हुई और ननद के जेठजेठानी ने आने की खबर दी तो वे वहां से वापसी का मन बना पाईं. ननद के घर से बसस्टैंड 5 किलोमीटर था. ननद के बेटे को सुबह 5 बजे स्कूटर से उन्हें बसस्टैंड तक छोड़ने को कहा गया. 2 रातों से सोई नहीं थीं नीलिमा, और उन का बीपी भी हाई रहता था. स्कूटर के पीछे बैठी नीलिमा कब नींद से बोझिल हो सड़क पर लुढ़क गईं और किस तरह अचानक सबकुछ खत्म हो गया, कोई कुछ समझ ही नहीं पाया.

एकाएक जैसे दुनिया चलती सी रुक गई थी. डाक्टर साहब जैसे बीच समंदर में फेंक दिए गए थे. दिनोंदिन उदास, चुपचुप और खुद में ही वे सिकुड़ते चले गए. निलय बीचबीच में दहाड़ें मार कर रोता और डाक्टर साहब के चुप कराने पर भी चुप नहीं होता. 3 महीने हुए थे उन की जिंदगी वीरान हुए और करीब 6 महीने पहले वे आईर् थी, ठीक उन के घर के सामने इस मकान में. वह सारिका थी, सुदेश की नई सी दिखने वाली 7 साल पुरानी 27 वर्षीय पत्नी. इन का एक 5 साल का बेटा अंकित भी साथ था.

सुदेश के कई तरह के व्यवसाय थे. 6 महीने पहले ये लोग डाक्टर साहब के घर के सामने वाला मकान खरीद कर यहां आ बसे थे.

36 साल के सुदेश महोदय की यह दूसरी शादी है. उन की पहली शादी टिकी नहीं. पत्नी ज्यादा सहनशील नहीं थी. जैसाकि आमतौर पर भारतीय महिलाओं के असंख्य गुणों में से एक माना जाता है.

सुदेश को बिजनैस ट्रिप पर जा कर नशा करने और खूबसूरत लड़कियों को बिस्तर की संगिनी बनाने का बेहद शौक था. पहली पत्नी इन की कुछ तेज किस्म की थीं. उन की खोजी दृष्टि से सुदेश बच न पाए और बीवी ने भी इस तरह घुटघुट कर जीने से बेहतर अलग हो जाना ही ठीक समझ.

सारिका बड़े परिवार और सीमित आय वाले घर की है. पैसे वाले 2 बहनों पर इकलौते लड़के का रिश्ता आते ही 21 साल की सारिका किसी भी कीमत पर बख्शी न जा सकी, ‘हर मर्द ऐसा ही होता है,’ ‘पहली पत्नी ने बदनाम करने के लिए ऐसा कहा’ आदि तर्कों से सारिका की अनिच्छा को खारिज करते हुए उसे सुदेश को सौंप दिया गया. हां यह शादी सौंप कर मुक्त हो जाने जैसी ही थी.

जिंदगी से सम?ौता तो कर लिया था सारिका ने, लेकिन अंदर की घुटन बातबात पर फूट पड़ती. पहले से ही वह ज्यादा बात करने वालों में से थी, तिस पर अब जब जिंदगी के फैसलों के आगे उस की एक न चली तो छोटीछोटी बातों पर ही वह खाने को दौड़ती.

सुदेश 2-4 दिन घर आता और निकल जाता. सारिका महसूस करती कि बिजनैस के साथसाथ उस की निजी जिंदगी के गहराए रहस्य उस के पति को बाहर दौड़ाते रहते.

आज भी वह अकेले ही बड़बड़ाती, भुनभुनाती बच्चे को स्कूल के लिए तैयार कररही थी.

बच्चा लगातार रो रहा था. सारिका को लगा बाहर स्कूल वैन आ चुकी है. वह दौड़ती गेट पर आई, वैन तो आई नहीं थी, लेकिन वह वहीं खड़े चिल्ला पड़ी, ‘‘सुबह से दहाड़ें मार रहा लड़का. पता नहीं चुप क्यों नहीं होता?’’

पास ही सामने गेट पर डाक्टर साहब अपने मुकुंद प्रधान खड़े निलय के स्कूल की गाड़ी का इंतजार कर रहे थे. उधर आंगन में बैठा निलय आधे घंटे से रोता हुआ अभी भी मां की याद में सुबुक रहा था.

सारिका के इस तरह कहने पर डाक्टर साहब बड़े लज्जित हुए. सैरेब्रल पैलेसी का शिकार निलय अपनी भावनाओं को बड़ी मुश्किल से दबा पाता है. वैसे तो पढ़ने में बड़ा होशियार है, ज्यादा शांत बैठ कर ड्राइंग आदि करता रहता है, लेकिन स्कूल जाते वक्त उसे मां की याद बड़ी सता जाती है. वह रोक नहीं पाता खुद को. डाक्टर साहब भी थोड़ी देर सहला कर छोड़ देते हैं. जितना ही वे उसे चुप कराते हैं, उस का दुख बढ़ ही जाता.

मुकुंदजी ने सारिका की ओर पलट कर देखा. आंखों में उन की मूक दर्द सा था. सारिका की उन पर नजर पड़ी. अभी तक 6 महीने बीत चुके थे, पर कभी भी उन से बातचीत नहीं हुई थी उस की. नीलिमाजी से परिचय होतेहोते ही वे चल बसीं. फिर सारिका की उन लोगों में दिलचस्पी नहीं रही. बेटे के स्कूल जाने के बाद वह घर के कामकाज और सिलाईबुनाई में व्यस्त हो जाती.

सारिका को महसूस हुआ कि उस का कहना डाक्टर साहब ने अपने बेटे के लिए समझ है. अभी वह बहुत जल्दी में थी, निलय की स्कूल वैन आ गई थी, वह जा चुका था, लेकिन सारिका का अपने बेटे को स्कूल वैन में बैठाना टेढ़ी खीर लग रहा था. लड़का कुछ ज्यादा ही अड़ गया.

डाक्टर साहब अचानक आगे आए और बच्चे को गोद में ले लिया. उसे पता नहीं कैसे बहलायाफुसलाया, लड़का स्कूल वैन में आराम से बैठ गया. उस के जाने के बाद सारिका मुकुंदजी की ओर बढ़ आई. कहा, ‘‘मैं ने अपने बेटे के बारे में कहा था कि दहाड़ें मार रहा है.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ डाक्टर साहब कह कर अंदर जाने लगे तो सारिका को अपनी बात पर अफसोस हो रहा. वह उन के पीछेपीछे अंदर तक आ गई.

डाक्टर साहब ने अचानक पीछे मुड़ कर उसे देखा तो ठिठक गए.

‘‘मुकुंदजी आज चाय मैं आप को पिलाती हूं,’’ सारिका मनुहार सी करने लगी.

‘‘चाय मैं पी चुका हूं, अब टिफिन तैयार कर क्लीनिक के लिए निकलूंगा,’’ डाक्टर साहब पिघलने को तैयार नहीं थे.

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